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नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

तरल नैनो यूरिया के कारोबारी उत्पादन करने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। गुजरात के भावनगर में केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया की मौजूदगी में गुजरात के भावगन में ड्रोन से नैनो यूरिया के छिडकाव का सफल परीक्षण किया गया।  जून में इसका उत्पादन शुरू हुआ और तब से अब तक हमने नैनो यूरिया की 50 लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन कर लिया है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया की प्रतिदिन एक लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन किया जा रहा है। इस दौरान मौजूद किसानों के मध्य मंत्री ने कहा कि उर्वरक और दवाओं के परंपरागत उपयोग को लेकर कई तरह की शंकाएं किसानों के मन में रहती हैं। छिड़काव करने वाले के स्वास्थ्य को इससे होने वाले संभावित नुकसान के बारे में भी चिंता व्यक्त की जाती है। ड्रोन से इसका छिड़काव इन सवालों और समस्याओं का समाधान कर देगा। ड्रोन से कम समय में अधिक से अधिक क्षेत्र में छिड़काव किया जा सकता है। इससे किसानों का समय बचेगा। छिड़काव की लागत कम होगी।

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उन्होंने नैनो टेक्नोलाजी की खूबी पर चर्चा करते हुए कहा कि इससे यूरिया आयात घटेगा। किसानों को और जमीन को अधिक यूरिया डालने से होन वाले नुकसान से किसान बचेंगे। जमीन की उपज क्षमता में भी लाभ होगा। संतुलित उर्वरक उपयोग से खाद्यान्न गुणवत्ता भी सुधरेगी। यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसका उपयोग अन्य जन कल्याणकारी कार्यों में किया जा सकेगा। इस दौरान इफको के प्रतिनिधियों ने किसानों की जिज्ञासा को शांत किया। उन्होंने किसानों को ड्रोन से किए जाने वाले छिडकाव को जीवन रक्षा के लिए बेहद कारगर बताया। इस अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष और इफको के उपाध्यक्ष दिलीप भाई संघानी भी उपस्थित थे।
डीएपी के लिए मारामारी,जानिए क्या है समाधान

डीएपी के लिए मारामारी,जानिए क्या है समाधान

डीएपी यानी डाई आमेनियम फास्फेट खाद के लिए समूचे देश में मारामारी की स्थिति बनी हुई है। सरसों, आलू एवं गेहूं बैल्ट में ज्यादा किल्लत है। सचाई यह है कि 1200 का डीएपी 1600 के पार बिक रहा है। यानी इस बार फिर प्री पेाजीशनिंग जैसी नीतियों के बावजूद खाद की किल्ल्त है। राजस्थान के सीमावर्ती हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के जनपदों में डीजल और डीएपी की आपाधापी ज्यादा है।

बगैर डीएपी के अच्छा मिलेगा उत्पादन

किसान यदि चाहें तो बगैर डीएपी के फसल की बुबाई कर सकते हैं। इससे भी वह अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। उत्तर प्रदेश केसेवानिवृत्त निदेशक बीज प्रमाणीकरण उत्तर प्रदेश डा ओमवीर सिंह एवं इफको के एरिया मैरेजन सत्यवीर सिंह की मानें तो किसान यदि थोड़ी समझ से काम लें तो खाद पर खर्च होने वाले पैसे में से आधा पैसा बचा सकते हैं। इसके अलावा डीएपी से बोई गई फसल से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।



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क्या है डीएपी का विकल्प

डीएपी में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस दो तत्व होते हैं। फास्फोरस का काम पौधे को मजबूती प्रदान करना दाने में चमक आदि प्रदान करना होता है। वहीं नाईट्रोजन वेजीटेटिव ग्रोथ यानी हरियाली और बजन बढ़ाने बढ़वार के काम में आता है।

एनपीके में तीन तत्व होते हैं। इनमें नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश तत्व पाए जाते हैं। यह किसी भी फसल के लिए ज्यादा अच्छा रहता है लेकिन उर्वरक का प्रयोग मृदा जांच के हिसाब से करना चाहिए।यदि जमीन में फास्फोरस की कमी है तभी ज्यादा फास्फोरस वाला उर्वरक लें अन्याथा नहीं।

एसएसपी में भी तीन तत्व होते हैं। इसमें सल्फर, कैल्शियम एवं फास्फोरस तत्व पाए जाते हैं। सल्फर सरसों जैसी तिलहनी फसलों में रोगों से लड़ने की क्षमता के साथ तेल का प्रतिशत भी बढ़ाती है। यदिइन तीनों तरह के खादों में से कोई खाद नभी मिले तब भी किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

क्या है डीएपी का समाधान

यदि किसान भाईयों को इस समय सरसों बोनी है और कोई खाद नहीं मिला है तो वह अच्छा उत्पादन कैसे ले सकते हैं। विदित हो कि डीएपी जमीन में काफी मात्रा में पूर्व के सालों का पड़ा रहता है। इसे पौधे पूरी तरह से नहीं ले पाते। जमीन में पड़े डीएपी को इस बार पौधों के उपयोग में लाने के लिए डीएपी सोल्यूवल वैक्टीरिया को बीज में मिलाएं। यह हर राज्य में ब्लाक स्थित सराकरी कृषि रक्षा इकाई पर मिल जाएगा। यह भी 90 फीसदी तक अनुदान पर मिलता है। इसे मिलाने से यह होगा कि पांच साल रुपए एकड़ की लागत में जमीन में पड़े समूची फास्फोरस का उपोग इस बार हो जाएगा। यानी बगैर डीएपी डाले ही पौधों को डीएपी मिल जाएगा।



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कैसे बनाएं दमदार खाद

किसी भी फसल की बिजाई के लिए जरूरी तत्वों का मिश्रण बना लेंं। इसमें जिंक, पोटाश, माइक्रोन्यूट्रियंट एवं यूरिया को मिलाकार आखिरी जोत में जमीन में मिला दें। आखिरी जुताई और बुबाई के बीच में एक दो दिन से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए। सवाल उठता है कि उक्त तत्वों की मात्रा एक एकड़ में कितनी कितनी डालें। उक्त सभी तत्वों की मात्रा प्रति एकड़ पांच पांच किलोग्राम डालनी चाहिए। यूरिया की मात्रा 15 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़ जुताई में डालनी चाहिएं। इस तरह सभी तत्वों के मिश्रण का बजन 30 से 40 किलोग्राम प्रति एकड़ होगा। इन तत्वों के मिश्रण के बुबाई करने पर पूर्व के सालों से ज्यादा अच्छी फसल उत्पादन होगा। इतना ही नहीं 30 से 40 प्रतिशत खाद की लागत में कमी आएगी और फसल केलिए जरूरी सभी तत्वों की पूर्ति हो जाएगी।

डीएपी की कमी कैसे करें पूरा

डीएपी में पाए जाने वाले मूल तत्व फास्फोरस की कमी यदि फसल में लगे तो फसल के एक डेढ़ माह ही होने के बाद इफको या किसी स्तरीय कंपनी का घुुलनशील फास्फोरसखड़ी फसल पर छिड़काव कर सकते हैं। यह तत्व 17,44,0 की इकाई में आता है। इसमें 17 प्रतिशत नाईट्रोजन 44 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है।

सफेद बैंगन उगाएं बेहतरीन मुनाफा कमाएं

सफेद बैंगन उगाएं बेहतरीन मुनाफा कमाएं

भारत में सफेद बैंगन का सर्वाधिक उत्पादन जम्मू में किया जाता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के किसान अधिकाँश जम्मू से बीज लाकर अपने खेतों में इसका उत्पादन करते हैं। बहुत सारे लोग बैंगन की सब्जी खाना बहुत पसंद करते हैं। 

बैंगन की विभिन्न प्रकार की सब्जियां बनती हैं। कुछ लोग इसे कलौंजी बनाकर तो कुछ लोग इसका भर्ता बनाकर बड़े स्वाद से खाते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों को आलू, टमाटर, बैंगन की सूखी सब्जी खाना बहुत अच्छा लगता है, तो कुछ लोगों को ग्रेवी वाली सब्जी सबसे ज्यादा भाती है। 

दरअसल, ये समस्त पकवान अधिकतर गहरे बैंगनी रंग के दिखने वाले बैंगन द्वारा निर्मित होते हैं। बतादें, कि इसके अतिरिक्त भी एक बैंगन और भी है, हालाँकि, यह बैंगन बाजार में कम उपलब्ध होता है। 

 परंतु यदि लोगों को मिल जाए तो इसको पसंद करने वाले लोग उसे घर लाने में कोई विलंब नहीं करते हैं। जिस बैंगन की हम चर्चा कर रहे हैं उसका नाम है, सफेद बैंगन जो कि बिल्कुल अंडे की भांति दिखाई देता है। 

सफेद बैंगन की मांग बाजार में बेहद तीव्रता से बढ़ती जा रही है, सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी काफी मांग देखने को मिल रही है।

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सफेद बैंगन के उत्पादन हेतु सबसे अच्छा वक्त फरवरी एवं मार्च का माह होता है। दरअसल, भारत के बहुत से इलाकों में इसके पौधे दिसंबर के अंत में भी रोपे जाने लगते हैं। 

साथ ही, जून-जुलाई के माह में भी सफेद बैंगन का भरपूर उत्पादन होता है। यदि आप खेती किसानी करते हैं, तो बेहतर मुनाफा कमाने के लिए सफेद बैंगन काफी सहायक साबित होगा।

सफेद बैंगन का पौधा इस तरह से लगाएं

सफेद बैंगन की बुआई करते समय किसानों को एक से डेढ़ मीटर लंबी एवं तकरीबन 3 मीटर चौड़ी कुदाल से क्यारी बनाना बहुत जरूर है। 

उसके उपरांत गुड़ाई करके मृदा को भुरभुरा करना है एवं प्रत्येक क्यारी में करीब दो सौ ग्राम डीएपी(DAP) लगाकर भूमि को एकसार करना होगा। 

इसके उपरांत बैंगन के बीजों को थीरम से उपचारित कर, एक रेखा खींच कर उसमें बुआई करनी होगी। उसके उपरांत इसको पुआल के जरिये से ढक देना अत्यंत आवश्यक है। कुछ समय में इसमें से पौधे निकल आएंगे।

सफेद बैंगन सर्वाधिक कहाँ उगाया जाता है

सफेद बैंगन का उत्पादन सर्वाधिक भारत के जम्मू में होता है। जम्मू से ही बीज लेकर विभिन्न क्षेत्रों के किसान इसकी खेती करते हैं। सफेद बैंगन की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के किसान इसका उत्पादन करते हैं। 

परंतु वह बहुत छोटी एवं कम क्षेत्रफल में होती है। यदि आप इस सब्जी द्वारा अच्छा खासा लाभ उठाना चाहते हैं, तो इसका उत्पादन भी आपको अधिक करना होगा। 

सफेद बैंगन की सब्जी में काले रंग वाले बैंगन से अधिक पौष्टिक गुण विघमान होते हैं, इस वजह से बाजार में इसकी मांग भी काफी अधिक है।

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

कृषि जलवायु क्षेत्रों के अनुसार भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलें

भारत एक प्रमुख कृषि राष्ट्र है, जहां कृषि एक मुख्य आधारिक व्यवसाय है और लाखों लोगों के जीवन का आधार है। भारत में, फसलें विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के अनुसार उगाई जाती हैं, जो तापमान, वर्षा, मृदा प्रकार, और भू-परिस्थितियों जैसे कारकों द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। 

आज के इस लेख में हम यहां भारत में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार का एक सामान्य अवलोकन आपके सामने करेंगे।

भारत में कृषि के बारे में जानकारी

1. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र   

चावल, गन्ना, केले, आम, पपीता, नारियल, और मसाले जैसे काली मिर्च और इलायची भारत के उष्ण और आर्द्र तटीय क्षेत्रों में उगाए जाते हैं, जैसे पश्चिमी घाट के तटीय क्षेत्र, पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्से, और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।

2. उपतापीय क्षेत्र       

गेहूं, मक्का, जौ, सीताफल (संतरा और किनू), सेब, खुबानी, और उष्णकटिबंधीय सब्जियाँ उत्तरी भारत के उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्से में उगाई जाती है।

3. शीतल क्षेत्र

भारत में जहाँ ठण्ड अधिक होती है वहां, सेब, चेरी, नाशपाती, बेर, और केसर जैसी उच्च ऊचाई वाली शीतल क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के हिस्सों में उगाई जाती हैं।

4. सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्र

बाजरा, ज्वार, चने, तिलहन, सरसों, कपास, और अंगूर आदि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के कुछ हिस्से, और भारत के दक्षिणी हिस्सों में सूखे और अर्ध-सूखे क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।

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5. पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्र

आलू, सेब, चेरी, मक्का, और चने जैसी फसलें हिमालय के पर्वतीय और उच्चभूमि क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और सिक्किम के कुछ हिस्से।

6. तटीय क्षेत्र

चावल, नारियल, काजू, मसाले(जैसे काली मिर्च और लौंग), और समुद्री खाद्य पदार्थ भारत के तटीय क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल।

7. मध्य पठार और मैदानी क्षेत्र

गेहूं, सोयाबीन, चने, तिलहन, कपास, और ज्वार जैसी फसलें मध्य पठार और मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं,  जैसे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना के कुछ हिस्से।

8. पूर्वोत्तर हिल्ली और वन्य क्षेत्र

चावल, मक्का, बाजरा, चने, चाय, कॉफी, मसाले, फल, और सब्जियां पूर्वोत्तर राज्यों में उच्चऊन्नत हिल्ली और वन्य क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जैसे असम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, और अरुणाचल प्रदेश आदि राज्य शामिल है।

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत - बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जाएगा

नई दिल्ली। अब देश के किसानों को यूरिया की किल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मे नैनो यूरिया संयंत्र का उद्घाटन किया था। अब उत्तर-प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा में बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जा रहा है। इन कारखानों में जल्दी ही उत्पादन शुरू किया जाएगा। इसके लिए तैयारियां जोरों पर चल रहीं हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगस्त के पहले सप्ताह में कारखानों में यूरिया का उत्पादन शुरू हो जाएगा। हिंदुस्तान उर्वरक और रासायन लिमिटेड के जनरल कामेश्वर झा ने बताया कि प्लांट में सभी मशीनों की जांच की जा रही है। कम्पनी का प्रयास है कि चरणबद्ध तरीके से उत्पादन कार्य शुरू किया जाए। इसकी शुरुआत जुलाई में ही शुरू हो जाएगी। और अगस्त के महीने में पूरी क्षमता के साथ उत्पादन होगा। पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू हो जाने के बाद यहां प्रतिदिन 3850 नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन किया जाएगा।

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बीस साल बाद शुरू होगा सिंदरी खाद कारखाना

- बता दें कि पांच सितंबर 2002 को स्व. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में वित्तीय संकट के चलते सिंदरी खाद कारखाना बंद हो गया था। करीब 20 साल बाद फिर से कारखाना शुरू होने जा रहा है। सिंदरी खाद कारखाना से देश मे हरित क्रांति लाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यूरिया की कमी होगी दूर

- साल 1951 में सिंदरी कारखाने की पहली यूनिट का उत्पादन शुरू हुआ था। उन दिनों प्लांट का संचालन फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जाता था। यह कारखाना पूर्वी भारत में एफसीआई द्वारा संचालित एकमात्र यूरिया उत्पादन कारखाना था। इसके बंद होने के बाद पूर्वी राज्यों में यूरिया की भारी किल्लत हो गई थी। सभी आठ कारखाने बंद हो गए थे। और यूरिया की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। स्थिति ऐसी बन गई है कि देश को यूरिया का आयात करना पड़ा रहा है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने गौरखपुर, सिंदरी और बरौनी में फिर से बंद पड़े यूरिया खाद कारखानों को शुरू करने की योजना बनाई है। बताया जा रहा है कि प्रत्येक प्लांट शुरू करने की योजना के अंतर्गत 6000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है।

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डीएपी से अभी राहत नहीं

- सरकार भले ही यूरिया की किल्लत दूर करने का दावा कर रही है। लेकिन फिलहाल डीएपी पर कोई राहत दिखाई नहीं दे रही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में डीएपी की किल्लत और बढ़ेगी। ------- लोकेन्द्र नरवार
ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका

ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका

डीएपी, यूरिया और पोटास असली या नकली ?

वृंदावन(मथुरा) बाजार में लगातार नकली खाद की बिक्री बढ़ती जा रही है। किसानों को नकली खाद के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ता है। इन दिनों बुवाई का सीजन चल रहा है और किसान
खाद डालकर ही बुवाई कर रहे हैं। खाद की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। खाद की बढ़ती कीमतों के बीच किसान को नुकसान तब होता है, जब ज्यादा से ज्यादा खाद डालने के बाद भी अच्छी पैदावार नहीं मिलती है। फसल में अच्छी पैदावार के लिए कहीं ना कहीं नकली खाद ही जिम्मेदार होता है। इस मिलावट के दौर में किसानों को हमेशा यही चिंता रहती है कि जो खाद वह अपनी फसल में डाल रहे हैं क्या वो नकली है या असली?

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आइए जानते हैं कैसे करें हम नकली या असली खाद की पहचान :

1 - डीएपी खाद (DAP) की पहचान

- किसान भाई ध्यान दें, कि आप जो DAP (Diammonium phosphate) खाद खरीद रहे हैं वो असली है या नकली है, इसकी पहचान के लिए किसान भाई डीएपी के कुछ दाने अपने हाथ मे लेकर उसमें चूना मिलाकर तम्बाकू की तरह मसलें। इसको मसलनें के बाद अगर उसमें से ऐसा तेज गंध निकलने लग जाता है, जिसे सूंघना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो समझ जाइए डीएपी खाद असली है। उधर नकली डीएपी खाद सख्त, दानेदार और भूरे व काले रंग की होती है। अगर आप इसको अपने नाखूनों से तोड़ने की कोशिश करेंगे तो यह आसानी से नहीं टूटेगा। तो आप समझ लीजिए यह कतई नकली खाद है।

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2 - यूरिया खाद की पहचान

- प्रायः यूरिया (Urea) के बीज सफेद और चमकदार होते हैं। आकार में एक समान व गोल आकार के होते हैं। यह पानी मे पूरी तरह से घुल जाते हैं। असली यूरिया के घोल को छूने पर ठंडा महसूस होता है। उधर नकली यूरिया खाद के दानों को तवे पर गर्म करके देखें, यदि इसके दाने पिघलें नहीं तो समझो यह यूरिया खाद नकली है। क्योंकि असली यूरिया के दाने गर्म करने पर आसानी से पिघल जाते हैं।

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3 - पोटास की करें पहचान

- असली पोटाश (Potash) के दाने हमेशा खिले-खिले रहते हैं। पोटाश की असली पहचान इसका सफेद नमक व लाल मिर्च जैसा मिश्रण ही होता है। उधर नकली पोटाश की पहचान के लिए आप उसके दानों पर पानी की कुछ बूंदे डाल दें, इसके बाद अगर ये आपस मे चिपक जाते हैं तो समझ लेना कि ये नकली पोटाश है। क्योंकि पोटाश के दाने पानी मे डालने पर कभी भी नहीं चिपकते हैं। *अपने खेत में खाद लगाने के लिए किसान भाई खाद खरीदने से पहले इसी तरह असली और नकली खाद की पहचान जरूर कर लें। ----------- लोकेन्द्र नरवार
'एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

'एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

भारत ब्रांड के तहत बिकेंगे देश में सभी उर्वरक

नई दिल्ली। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार एक देश में एक ही फर्टिलाइजर (One Nation One Fertilizer) के तहत काम करने जा रही है। भारत सरकार आज से एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है। अब देश मे सभी फर्टिलाइजर ब्रांड एक ही नाम से बिकेंगे। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार ने आज एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है।



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आदेश के बाद सभी उर्वरक बैग, चाहे यूरिया या डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) या म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP - Muriate of Potash) या एनपीके (NPK) हों, वह सभी ब्रांड नाम 'भारत यूरिया', 'भारत DAP', 'भारत MOP' और 'भारत NPK' के नाम से बाजार मे बिकेंगे। प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के मैन्युफैक्टर दोनों को भारत ब्रांड नाम देना होगा।


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हालांकि, इसका फर्टिलाइजर कंपनियों ने नेगेटिव प्रतिक्रया दी है। कंपनियों के मुताबिक उनके ब्रांड वैल्यू और मार्केट में फर्क उन्हें खत्म कर देगा। सरकारी आदेश में यह भी कहा गया है कि सिंगल ब्रांड नाम और प्रधानमंत्री भारतीय जनउरवर्क परियोजना (PMBJP) का लोगो भी लगाना होगा। ये वो स्कीम है जिसके जरिये केंद्र सरकार सालाना सब्सिडी देती है। कंपनी को ये लोगो (Logo) बैग पर दिखाना होगा। इंडस्ट्री के मुताबिक कुल पैकेजिंग के छोटे हिस्से पर ही कंपनी का नाम लिखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम उर्वरक कंपनियों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि अलग ब्रांडिंग होने से फर्टिलाइजर में किसानों को फर्क साफ तरीके से दिखाई देगा। फर्टिलाइजर कंपनियां अपने आप को दूसरों से अलग करने के लिए कई तरह की एक्टिविटी करती है। इसके बाद यह सब शीघ्र ही बंद हो जाएगा। ---- लोकेन्द्र नरवार
डीएपी जमाखोरी में जुटे कई लोग, बुवाई के समय खाद की किल्लत होना तय

डीएपी जमाखोरी में जुटे कई लोग, बुवाई के समय खाद की किल्लत होना तय

कई जगह हो रहा है डीएपी का स्टॉक

नौहझील। किसानों को फसलों की बुवाई के लिए डीएपी (
DAP - Diammonium Phosphate) खाद की जरूरत होती है, जिससे बीज अच्छी तरह अंकुरित होकर विकसित हो सके। लेकिन गत वर्ष की तरह इस बार भी खाद की किल्लत होना तय है। बताया जा रहा है कि नौहझील क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण स्थानों पर डीएपी खाद का अभी से स्टॉक हो रहा है और बाजार में दुकानदार भी डीएपी के भाव निर्धारित रेट से काफी ऊपर बता रहे हैं। ऐसे में फसल बुवाई के समय खाद की किल्लत होना तय है। अभी सरसों, आलू व गेहूं सहित रवि की कई फसलों में बुवाई शुरू भी नहीं हुई है और अभी से डीएपी के लिए किसानों को दर-दर भटकना पड़ रहा है। सरकारी गोदामों पर खाद नहीं है। दुकानदार किसान को डीएपी दे नहीं रहे हैं।

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पिछले वर्ष डीएपी की भारी किल्लत रही थी। दुकानदारों ने डीएपी के मनमानी कीमत वसूली थीं। इस बार भी खाद की किल्लत होने की अंदेशा को देखते हुए दुकानदार किसानों को अभी से डीएपी देने से इनकार कर रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार नौहझील क्षेत्र में कई स्थानों पर डीएपी खाद की जमाखोरी की जा रही है। किसान नेता चौ. रामबाबू सिंह कटैलिया कहते हैं कि डीएपी के स्टॉक को लेकर शिकायतें मिल रहीं हैं। जिला प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। भाकियू (राजनैतिक) के जिलाध्यक्ष राजकुमार तोमर ने कहना है कि फसलों की बुवाई के समय खाद कमी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, जिला प्रशासन अभी से तैयारियां शुरू कर दें। भाकियू (टिकैत) के तहसील अध्यक्ष रोहताश चौधरी का कहना है कि सहकारी समितियों पर समय से खाद पहुंचना चाहिए, जिससे किसानों को समय पर खाद मिल सके। खाद की किल्लत होने पर किसान आंदोलन को बाध्य होंगे। किसान धर्मवीर सिंह, लेखराज चौधरी, हरिओम सिंह, राजपाल सिंह, महावीर सिंह, घनश्याम सिंह, महेन्द्र सिंह, तेजवीर सिंह आदि ने डीएम से डीएपी का स्टॉक करने वालों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।

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राजस्थान के किसानों तक पहुंचा था मथुरा से डीएपी

पिछले साल 2021-22 में रवि की फसल बुवाई के समय डीएपी की काफी किल्लत बढ़ गई थी। राजस्थान में भी डीएपी को लेकर किसानों में मारामारी मची हुई थी, तो मथुरा से बड़ी तादात में डीएपी राजस्थान के किसानों तक पहुंचा था। संभावना जताई जा रही है कि इस साल भी पिछले साल की पुनरावृत्ति हो सकती है।
अब नहीं होगी किसानों को उर्वरकों की कमी, फसलों के लिए प्रयाप्त मात्रा में मिलेगा यूरिया और डी ए पी

अब नहीं होगी किसानों को उर्वरकों की कमी, फसलों के लिए प्रयाप्त मात्रा में मिलेगा यूरिया और डी ए पी

किसानों को फसलों की अच्छी पैदावार लिए पर्याप्त मात्रा में यूरिया (urea) और डी ए पी (DAP) की आवश्यकता होती है। पिछले साल किसानों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक न उपलब्ध होने की वजह से बहुत समस्या आयी थी, जिसको ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश सरकार उर्वरकों की उपलब्धता पूर्ण मात्रा में करने की तैयारी में जुटी हुई है। साथ ही किसानों को सूचित किया गया है कि उर्वरकों की तरफ से किसानों को बिल्कुल चिंता करने की आवश्यता नहीं है, भरपूर मात्रा में यूरिया और डी ए पी का प्रबंध है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने स्वयं उर्वरकों की प्रबंधन प्रणाली की समीक्षा की है। शिवराज चौहान केंद्र सरकार के सहयोग से भरपूर मात्रा में उर्वरकों की पूर्ति करने में सफल रहे हैं। अप्रैल से लेकर अब तक १९.०९ लाख मीट्रिक टन यूरिया, ८.५८ लाख मीट्रिक टन सिंगल सुपर फॉस्फेट और ३. ४२ लाख मीट्रिक टन एनपीके (NPK) की व्यवस्था हो चुकी है।


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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जी की पहचान किसान मित्र के रूप में उभर कर सामने आ रही है। वह किसानों के लिए कई प्रकार की कल्याणकारी योजनायें लागू करते रहते हैं। दशहरा से पहले उन्होंने किसानों के खातों में अतिवृष्टि व बाढ़ से हुए नुकसान से राहत देने के लिये सहायक धनराशि ट्रांसफर की है। अब रबी की फसल के लिए किसानों को यूरिया और डी ए पी आदि की कमी न रहे, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार पूर्व से ही यूरिया और डी ए पी का उचित प्रबंध करने में जुट गयी है।

उर्वरकों के वितरण का क्या प्रबंध होगा ?

उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद भी सही प्रकार से वितरण करना एक मुख्य समस्या रही है। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार वितरण प्रणाली को बेहतर और प्रभावी बनाने की हर संभव कोशिश कर रही है, जिससे किसी भी किसान को उर्वरकों के लिए इंतज़ार न करना पड़े और उसके पास समय से ही पूर्ण मात्रा में यूरिया इत्यादि उपलब्ध हो सके। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का सख्त निर्देश है कि उर्वरकों की उपलब्धता से सम्बंधित किसी भी किसान की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए और जिन किसानों की शिकायत आयी हों, उनका जल्द से जल्द निराकरण किया जाये।


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आखिर किस कारण सहकारिता विभाग से कम हुआ उठान?

सहकारिता विभाग से उर्वरकों के कम उठान के सन्दर्भ में कृषि विभाग के मुख्य सचिव अजित केसरी जी का कहना है कि राज्य में उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, मध्य प्रदेश सरकार उर्वरकों के लिए केंद्र सरकार का सहयोग ले रही है। केंद्र की तरफ से मध्य प्रदेश के किसानों के लिए भरपूर उर्वरक प्रदान किये जा रहे हैं, यही कारण है कि सहकारिता विभाग से उर्वरकों के उठान में बेहद कमी देखने को मिल रही है। साथ ही जनपद विपणन अधिकारियों को किसानों की उर्वरक सम्बंधित मांग को अतिशीघ्र पूर्ण करने का आदेश है।
नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

नैनो डीएपी के व्यवसायिक प्रयोग को मंजूरी, जल्द मिलेगा लाभ

खेती में उर्वरकों का इस्तेमाल बेहद बढ़ चुका है. जिस कम करने के लिए नैनो फर्टिलाइजर्स बनाये जा रहे हैं. कुछ समय पहले ही सरकार की तरफ से नैनो यूरिया को मंजूरी दी गयी थी. लेकिन अब इफको के नैनो डीएपी फर्टिलाइजर को अब कमर्शियल रिलीज के लिए मंजूरी दे दी है. सरकार के इस फैसले से डीएपी फर्टिलाइजर किसानों को ना सिर्फ कम कीमत में मिलेगा बल्कि हम मात्रा में फसल की पैदावार भी ज्यादा होगी. अब तक डीएपी की 50 किलो उर्वरक की बोरी की कीमत करब 4 हजार रुपये थी, जो सरकारी सब्सिडी लगने के बाद 13 सौ 50 रुएये में दी जा रही थी.  लेकिन सरकार के फैसले के बाद 50 किलो की बोरी को एक 5 सौ एमएल की बोतल में नैनो डीएपी लिक्विड फर्टिलाइजर के रूप में दिया जाएगी. इसकी कीमत सिर्फ 6 सौ रुपये होगी. हालांकि इस पूरे मामले में अभी सरकार की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसे व्यवसायिक इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है. जिस वजह से खेती और किसानी लागत को कम करने में काफी मदद मिलेगी. इसके अलावा जो सब्सिडी सरकार की ओर से भुगतान की जाएगी, उसमें भी काफी कमी आएगी.

सरकार को सब्सिडी बचाने में मिलेगी मदद

किसानों के लिए कीमतों में इस्तेमाल में काफी सुविधाजंक साबित हो सकता है. जिससे सरकार को अच्छी खासी मात्रा में सब्सिडी बचाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा नैनो डीएपी को लिक्विड यूरिया भी कहा जाता है. जो आमतौर पर यूरिया से एकदम अलग और दानेदार होती है. इसे इफको और कोरोमंडल इंटरनेशन ने मिलकर बनाया है. ये भी देखें: जाने क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर और किन फसलों पर किया जा रहा है ट्रायल?

इन उर्वरकों पर भी ध्यान

नैनो डीएपी के बाद अब सरकार जल्फ़ इफको नैनो पोटाश, नैनो जिंक और नैनो कॉपर जैसे उर्वरकों पर भी ध्यान देगी. इतना ही नहीं वो जल्द ही इन उर्वरकों को लॉन्च भी कर सकती है. बता दें इफको ने साल 2021 जून के महीने में पारम्परिक यूरिया के ऑप्शन में नैनो यूरिया को लिक्विड रूप में लॉन्च किया था. इतना ही नहीं नैनो यूरिया का उत्पादन बढे, इसके लिए मैनुफेक्चरिंग प्लांट भी बनाए गये थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक कई देशों में नैनो यूरिया के सैम्पल भेज दिए हैं, जहां ब्राजील ने इफको नैनो यूरिया लिक्विड फर्टिलाइज को पास करके मंजूरी दे दी है.

होगी सरकार की बचत

खेती और किसानी में उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. जिसका असर मिट्टी की उर्वरता पर पड़ रहा है. इस तरह की समस्या से नैनो उर्वरक निपटने में मदद करेंगे. इससे उर्वरकों के आयात पर निर्भरता भी कम हो जाएगी और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी नहीं पड़ेगा. नैनो यूरिया के इस्तेमाल की बात की जाए तो इसके फायदों के बारे में खुद उर्वरक मंत्री ने भी बताया था. उनके अनुसार किसानों को वाजिब दामों में उर्वरकों की उपलब्धता करवाई जाएगी. वहीं इफको द्वारा बनाया गया प्रोडक्ट सरकारी सब्सिडी के बिना भी कई गुना सस्ता है. इससे किसानों को बड़ी बचत होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
केंद्र द्वारा किसान भाइयों को दिया जायेगा 50 फीसद कम मूल्य पर DAP

केंद्र द्वारा किसान भाइयों को दिया जायेगा 50 फीसद कम मूल्य पर DAP

कृषि में उपयोग होने वाला डीएपी (DAP) अब आधे मूल्य में उपलब्ध किए जाने से किसानों का खर्च अतिशीघ्र कम हो जाएगा। केंद्र सरकार इस दिशा में दीर्घ काल से कार्य कर रही थी एवं फिलहाल उसने इफ्को से विकसित किया गया नैनो डीएपी (Nano DAP) जारी कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं, अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को कृषि कार्यों में डीएपी (DAP) उर्वरक पर काफी मोटा धन खर्च करना पड़ता है। हालाँकि, भारत सरकार इस पर अच्छा खासा अनुदान प्रदान करती है। फिलहाल, मोदी सरकार दीर्घ काल से उस तरह की खाद तैयार करने पर जोर दे रही है। जो कि कृषकों एवं सरकार दोनों के खर्च को कम कर दिया है। फिलहाल, कृषि मंत्रालय द्वारा नैनो डीएपी को जारी कर दिया है। इसका भाव डीएपी (DAP) बोरी के वर्तमान भाव के तुलनात्मक आधे से भी कम है। लिक्विड नैनो डीएपी (Nano DAP) को सहकारी क्षेत्र की खाद कंपनी इफ्को (IFFCO) द्वारा तैयार किया गया है। इफ्को के मैनेजिंग डायरेक्टर यू. एस. अवस्थी एवं केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस संबंध में ट्विटर पर जानकारी प्रदान की है। अवस्थी द्वारा जहां इसे मृदा एवं पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण पहल बताया गया है, वहीं मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा इसको आत्मनिर्भर भारत निर्माण हेतु एक बड़ी उपलब्धि माना गया है।

आधा लीटर बोतल कितने मूल्य पर उपलब्ध हो जाएगी

आपको बतादें कि इफ्को द्वारा तैयार इस नैनो डीएपी (Nano DAP) का मूल्य 600 रुपये होगा। इस मूल्य पर किसान भाइयों को 500 मिली मतलब आधा लीटर लिक्विड डीएपी मिलेगा। यह डीएपी की एक बोरी के समरूप कार्य करेगी। भारत में यूरिया के उपरांत डीएपी का उपयोग दूजी सर्वाधिक उपयोग होने वाला उर्वरक है। इसके पूर्व इफ्को द्वारा नैनो यूरिया (Nano Urea) भी तैयार किया है। बिना अनुदान के इस बोतल का भाव 240 रुपये है। डीएपी खाद की एक बोरी का भाव फिलहाल 1,350 से 1,400 रुपये है। इस प्रकार किसानों का डीएपी (DAP) पर होने वाला व्यय आधे से भी कम आएगा। भारत में वार्षिक डीएपी (DAP) का अनुमानित उपयोग 1 से 1.25 करोड़ टन है। वहीं घरेलू स्तर पर केवल 40 से 50 लाख टन डीएपी (DAP)  का ही उत्पादन किया जाता है। अतिरिक्त का आयात करना होता है।

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नैनो डीएपी द्वारा केंद्र सरकार के डीएपी अनुदान पर आने वाली लागत में भी काफी गिरावट आएगी। साथ ही, आयात में कमी आने से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के संरक्षण में भी काफी सहायता मिलेगी।

इन उर्वरकों के नेंनो वर्जन आने की तैयारी

इफ्को नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) के जारी करने के उपरांत फिलहाल नैनो पोटाश, नैनो जिंक एवं नैनो कॉपर उर्वरक पर भी कार्य कर रहा है। आपको बतादें कि भारत डीएपी के अतिरिक्त बड़े स्तर पर पोटाश का भी आयात करता है।
नैनो DAP किसान भाइयों के लिए अब 600 रुपए में उपलब्ध, जानें यह कैसे तैयार होता है

नैनो DAP किसान भाइयों के लिए अब 600 रुपए में उपलब्ध, जानें यह कैसे तैयार होता है

कृषकों के लिए एक खुशखबरी है। दरअसल, अब से भारत के समस्त किसानों को इफको की Nano DAP कम भाव पर मिलेगी। किसानों को अपनी फसलों से बेहतरीन पैदावार पाने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों को करना होता है। उन्हीं में से एक खाद व उर्वरक देने का भी कार्य शम्मिलित है। फसलों के लिए डीएपी (DAP) खाद काफी ज्यादा लाभकारी माना जाता है। भारतीय बाजार में किसानों के बजट के अनुरूप ही DAP खाद मौजूद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दुनिया का पहला नैनो डीएपी तरल उर्वरक गृह एवं सहकारिता मंत्री द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। केंद्रीय आवास और सहकारिता मंत्री ने नई दिल्ली में इफको (IFFCO) के मुख्यालय में इफको के नैनो डीएपी तरल (Nano Liquid DAP) उर्वरकों को राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित किया। एफसीओ के अंतर्गत इंगित इफको नैनो डीएपी तरल शीघ्र ही किसानों के लिए मौजूद होगा। अगर एक नजरिए से देखें तो यह पौधे के विकास के लिए एक प्रभावी समाधान है। खबरों के अनुसार, यह 'आत्मनिर्भर कृषि' के पारंपरिक डीएपी से सस्ता है। डीएपी का एक बैग 7350 है, जबकि नैनो डीएपी तरल की एक बोतल केवल 600 रुपये में उपलब्ध है।

जानें DAP का उपयोग और इसका उद्देश्य क्या है

यह इस्तेमाल करने के लिए जैविक तौर पर सुरक्षित है और इसका उद्देश्य मिट्टी, जल एवं वायु प्रदूषण को कम करना है। इससे डीएपी आयात पर कमी आएगी। साथ ही, रसद और गोदामों से घर की लागत में काफी गिरावट देखने को मिलेगी। बतादें, कि तरल उर्वरक दुनिया के पहले नैनो डीएपी (Nano DAP), इफको द्वारा जारी किया गया था। नैनो डीएपी उर्वरक का उत्पादन गुजरात के कलोल, कांडा एवं ओडिशा के पारादीप में पहले ही चालू हो चुका है। इस साल नैनो डीएपी तरल की 5 करोड़ बोतलों का उत्पादन करने का लक्ष्य है, जो सामान्य डीएपी के 25 लाख टन के बराबर है। वित्त वर्ष 2025-26 तक यह उत्पादन 18 करोड़ होने की आशा है। ये भी पढ़े: दिन दूना रात चौगुना उत्पादन, किसानों को नैनो तकनीक से मिल रहा फायदा

नैनो DAP तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है

नैनो डीएपी तरल नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत माना जाता है। साथ ही, यह फास्फोरस व पौधों में नाइट्रोजन व फास्फोरस की कमी को दूर करने में सहायता करता है। नैनो डी-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) तरल भारतीय किसानों द्वारा विकसित एक उर्वरक है। उर्वरक नियंत्रण आदेश के मुताबिक, भारत की सर्वोच्च उर्वरक सहकारी समिति (इफको) को 2 मार्च, 2023 को अधिसूचित किया गया था। साथ ही, भारत में नैनो डीएपी तरल का उत्पादन करने के लिए इफको को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। यह जैविक तौर पर सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है। अपशिष्ट मुक्त साग की खेती के लिए उपयुक्त है। इससे भारत उर्वरकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर तीव्रता से निर्भर रहेगा। नैनो डीएपी उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा व जीवन दोनों को भी बढ़ाएगा। किसान की आमदनी और भूमि के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान होगा। ये भी पढ़े: ‘एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

नैनो DAP कैसे निर्मित हुई है

नैनो DAP के मामले में इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने बताया है, कि "नैनो डीएपी को तरल पदार्थों के साथ निर्मित किया गया है। किसान समृद्धि और आत्मनिर्भर भारत के लिए पीएम मोदी का विजन किसानों की आमदनी बढ़ाने एवं उन्हें बेहतर करने के उद्देश्य से लगातार कार्य कर रहा है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. यू एस अवस्थी ने बताया है, कि नैनो डीएपी तरल पदार्थ फसलों के पोषण गुणों एवं उत्पादकता को बढ़ाने में काफी प्रभावी पाए गए हैं। इसका पर्यावरण पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है।