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सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना

सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना

वर्मी कंपोस्ट खाद उसे कहते हैं जो कि गोबर, फसल अवशेष आदि को केंचुऔं द्वारा अपना आहार बनाकर मल के रूप में छोड़ा जाता है।यह खाद बेहद पोषक होता है। 

इसके अलावा इस खाद में किसी तरह के खरपतवार आदि के बीज भी नहीं रहते। इस खाद में मूल तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के अलावा जरूरी अधिकांश सूक्ष्म पोषक तत्व भी मौजूद रहते हैं। 

इस खाद का प्रयोग फसलों में रासायनिक यूरिया आदि उर्वरकों की तरह बुरकाव में करने से भी फसल इसे तत्काल ग्रहण करती है। इसके इतर यदि गोबर की सादी खाद को बुर्का जाए तो फसल में दुष्प्रभाव नजर आ सकता है। खाद का प्रयोग जमीन में आखरी जुताई के समय मिट्टी में मिला कर ज्यादा अच्छा होता है।

केंचुए की मुख्य किस्में

केंचुए की मुख्य किस्में

भारत में केंचुए की कई किस्में मिलती है। इनमें आईसीनिया फोटिडा, यूट्रिलस यूजीनिया और पेरियोनेक्स एक्जकेटस प्रमुख हैं। इनके अलावा आईवीआरआई बरेली के वैज्ञानिकों द्वारा देसी जय गोपाल किस्म भी खोजी है।

सबसे ज्यादा आईसीनिया फोटिडा किस्म का केचुआ वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए प्रचलित है। विदेशी किस्म का यह केंचुआ भारत की विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में सरवाइव कर जाता है और अच्छा कंपोस्ट उत्पादन देता है।

कैसे तैयार होती है खाद

कैसे तैयार होती है खाद 

केंचुआ खाद तैयार करने के लिए छायादार जगह पर 10 फीट लंबा, 3 फीट चौड़ा और 12 इंच गहरा पक्का सीमेंट का ढांचा तैयार किया जाता है। इसे पशुओं की लड़ाई जैसा बनाया जाता है। 

जमीन से थोड़ा उठाकर इसका निर्माण कराना चाहिए। इस ढांचे में गोबर को डालने से पूर्व अभी समतल स्थान पर हल्का पानी डालकर एक-दो दिन कटाई कर ली जाए तो इसमें मौजूद मीथेन गैस उड़ जाती है। 

तदुपरांत इस गोबर को लड़ली लूमा बनाए गए पक के ढांचे में डाल देते हैं। नाचे को गोबर से भर कर उसमें 100 -200 केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गोबर को झूठ के पुराने कटों से ढक देते हैं। बेग से ढके गोबर के ढेर पर प्रतिदिन पानी का हल्का छिड़काव करते हैं।

पानी की मात्रा इतनी रखें कि नमी 60% से ज्यादा ना हो। तकरीबन 2 महीने में केंचुए इस गोबर को अपना आहार बनाकर चाय की पत्ती नुमा बना देंगे। इस खाद को 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से खेत में डालने से फसल उत्पादन बढ़ता है। 

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और फसलों में रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ती है। वर्मी कंपोस्ट में गोबर की खाद के मुकाबले 5 गुना नाइट्रोजन, 8 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटाश, 3 गुना मैग्नीशियम तथा अनेक सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।

खाद के साथ कछुए के अंडे भी जमीन में चले जाते हैं और वह जमीन की मिट्टी को खाकर उसमें चित्र बनाते हैं जो जमीन के अंदर हवा और पानी का संचार आसन करते हैं ‌।

तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

तेज बारिश और ओलों ने गेहूं की पूरी फसल को यहां कर दिया है बर्बाद, किसान कर रहे हैं मुआवजे की मांग

इस साल पड़ने वाली जोरों की ठंड ने सभी को परेशान किया है। अब घर में पाले के बाद ओले से किसान बेहद परेशान हो रहे हैं। मध्य प्रदेश के छतरपुर व अन्य जिलों में चना, मटर, गेहूं, सरसों की फसलों को अच्छा खासा नुकसान पहुंचा है। किसानों ने मुआवजे की मांग की है। किसानों का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले सूखे के कारण बिहार, छत्तीसगढ़ में किसानों की फसलें ही सूख गई थीं। इनके आस पड़ोस के राज्यों में बाढ़ ने कहर बरपाया। वहीं खरीफ सीजन के आखिर में तेज बारिश ने धान समेत अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया। पिछले कुछ दिनों से किसान पाले को लेकर बहुत ज्यादा परेशान हैं। इस बार बारिश और उसके साथ पड़े ओले ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है। किसान मुश्किल से ही अपनी फसलों का बचाव कर पा रहे हैं। बारिश से पड़ने वाले पानी से तो किसान जैसे-तैसे बचाव कर लेते हैं। लेकिन ओलों से कैसे बचा जाए। 

मध्य प्रदेश में ओले से फसलों को हुआ भारी नुकसान

मध्य प्रदेश में ओले से कई जगहों पर फसलें बर्बाद हो गई हैं। छतरपुर में बारिश से गेहूं की फसल पूरी तरह खत्म होने की संभावना मानी गई है। इस क्षेत्र में किसानों ने सरसों, चना, दालों की बुवाई की है। अब ओले पड़ने के कारण इन फसलों को नुकसान पहुंचा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बारिश और ओले से हुए नुकसान को लेकर छतरपुर जिला प्रशासन ने भी जानकारी दी है।

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इन क्षेत्रों में चना, गेहूं को भी नुकसान

बुदेलखंड के छतरपुर जिले में बिजावर, बड़ा मल्हरा समेत अन्य क्षेत्रों में पिछले तीन दिनों में ओले पड़ना दर्ज किया गया है। इससे चना, गेहूं समेत रबी की अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचा है। किसानों से हुई बातचीत में पता चला है, कि जब तक खेती का सही ढंग से आंकलन नहीं किया जाएगा। तब तक उनकी तरफ से यह बताना संभव नहीं है, कि फसल को कितना नुकसान हुआ है। 

प्रशासन कर रहा फसल नुकसान का आंकलन

छतरपुर समेत आसपास के जिलों में ओले इतने ज्यादा गिरे हैं, कि ऐसा लगता है मानो पूरी बर्फ की चादर बिछ गई हो। किसान अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर भी काफी परेशान हो गए हैं। इसीलिए छतरपुर जिला प्रशासन ने फसल के नुकसान को लेकर सर्वे कराना शुरू कर दिया है। ताकि प्रश्नों का सही ढंग से आकलन किया जा सके और उचित रिपोर्ट कृषि विभाग को भेजी जाए। प्रशासन द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर ही किसानों को मुआवजा दिया जाएगा 

किसान कर रहे मुआवजे की मांग

लोकल किसानों से हुई बातचीत से पता चला कि इस समय में होने वाली कम बारिश गेहूं की फसल के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद है। लेकिन पिछले 3 दिन से बारिश बहुत तेज हुई है और साथ में आने वाले ओलों ने फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। किसान अपनी फसल को लेकर परेशान हैं और निरंतर सरकार से मुआवजे की मांग कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

आलू की खेती से किसान रबी सीजन में करते हैं, किसानों को इससे काफी मुनाफा अर्जित होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि खरीफ की फसलों की कटाई का समय आ चुका है। यूपी की उपजाऊ मृदा से हो रही पैदावार निरंतर विदेशों में लोकप्रियता अर्जित कर रही है। यहां पर उगने वाले आलू की मांग सात समुंदर पार भी हो रही है। प्रथम बार यूपी के आलू को अमेरिका के गुनाया में निर्यात किया गया है। किसानों को अपनी समझ और सूझबूझकर से खेती करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह की भी जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश के आलू का दबदबा विदेशों तक भी है। दरअसल, यूपी के आलू को पहली बार हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका भेजा गया है। यूपी के आलू का जलवा विदेशों में भी है। मीडिया खबरों के अनुसार, फार्मर ग्रुप (FPO) की सहायता से 29 मीट्रिक टन आलू अमेरिका के गुयाना में भेजा गया। बतादें, कि इसके साथ ही योगी सरकार का किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना भी साकार हो रहा है।

आलू का निर्यात अब सात समुंदर पार भी होगा

वाराणसी के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के उप महाप्रबंधक का कहना है, कि आलू को पहली बार व्‍यापारिक रूप से अमेरिका के गुयाना शहर निर्यात किया गया है। उन्‍होंने बताया है, कि निर्यात किए गए आलू को अलीगढ़ के एफपीओ से खरीद कर शीत गृह में पैक किया गया। 29 मीट्रिक टन आलू समुद्र मार्ग के जरिए गुयाना पहुंचेगा।

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अलीगढ़ में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की मुहिम

बतादें, कि इसी कड़ी में अलीगढ़ के किसान उद्यमी के साथ-साथ निर्यातक भी बन रहे हैं। अलीगढ़ में आलू के उत्पादन को मंदेनजर रखते हुए एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी अलीगढ़ में कृषि निर्यात केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है। बतादें, कि यदि अलीगढ़ जनपद में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खुलता है, तो जनपद के आसपास के हजारों लोगों को रोजगार का अवसर भी मिलेगा।

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योगी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिचौलियों को अलग करके किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में एफपीओ के जरिए से किसानों को निर्यातक बनाया जा रहा है। प्रदेश में योगी सरकार एफपीओ एवं किसान समूहों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तरफ प्रोत्साहन देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। किसानों को विदेशों में निर्यात कर बेहतरीन आमदनी देने वाली फसलों की पैदावार करनी चाहिए। किसान केवल पारंपरिक फसलों पर ही आश्रित ना रहें।
इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि एक हेक्टेयर में करीब 25 टन शकरकंद का उत्पादन होता होता है। यदि किसान इसकी कीमत 10 रुपए किलो के हिसाब से भी मानें तो एक एकड़ से उत्पादक न्यूनतम 1.25 लाख रुपए अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में विश्वभर में भारत से बहुत सारे उत्पाद व वस्तुएं निर्यात की जाती रही हैं, शकरकंद उनमें से एक है। आलू की भाँति दिखने वाला शकरकंद की भारत सहित विश्वभर में माँग की जाती है। दरअसल, विश्वभर में शकरकंद निर्यातकों की सूचि में भारत छठवें स्थान पर है, परंतु जिस प्रकार से किसान इसके उत्पादन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस हिसाब से बहुत जल्द भारत चीन को पछाड़कर निर्यातकों की सूचि में प्रथम स्थान हासिल प्राप्त करलेगा। बतादें, कि देश के बहुत सारे राज्यों में शकरकंद का उत्पादन बेहतरीन तरीके से किया जा रहा है एवं किसान इसकी फसल से अच्छा खासा लाभ भी उठा पा रहे हैं। आगे हम इस लेख में शकरकंद के उत्पादन से कैसे अधिक मुनाफा कमा पाएंगे इस विषय में हम चर्चा करेंगे। शकरकंद का उत्पादन करने हेतु सर्वप्रथम उत्पादक द्वारा स्वयं की भूमि का मृदा परीक्षण करना होगा। यदि किसान के भूमि की मृदा अत्यंत कठोर एवं पथरीली है अथवा किसान के खेत में जलभराव जैसी दिक्कत भी है, ऐसे में कृषकों हेतु शकरकंद का उत्पादन करना अच्छा नहीं होगा। साथ ही, यदि आपके खेत की मृदा का पीएच मान 5.8 से 6.8 के मध्य है, तो आप शकरकंद का उत्पादन करना बेहद आसानी से कर सकते हैं। शकरकंद का उत्पादन करने के दौरान सिंचाई का अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसानों ने ग्रीष्म ऋतु में शकरकंद के पौधे लगाए हैं, उस समय रोपाई के तुरंत उपरांत सिंचाई नहीं करनी चाहिए। किसान भाई ध्यान रखें कि सिंचाई सप्ताह में केवल एक बार ही हो। यदि बरसात का मौसम है, तो किसान बिल्कुल भी शकरकंद में बिल्कुल पानी न लगाएं।

किसान खाद किस तरह से लगाएं

वर्तमान दौर में यदि आप किसी भी फसल का उत्पादन कर रहे हैं, याद रहे कि आपकी फसल का उत्पादन खेतों में दिए गए खाद की गुणवत्ता एवं मात्रा एक अहम भूमिका निभाती है। यदि कृषक शकरकंद का उत्पादन कर रहे हैं, तो किसानों को निज खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोसर एवं पोटाश का समुचित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। साथ ही, यदि आपकी जमीन अत्यधिक अम्लीय है, ऐसी स्थिति में कृषकों को मैग्निशियन सल्फेट, जिंकोसल्फेट एवं बोरोन का उपयोग करना होगा। ऐसे उर्वरकों को किसान कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों के दिशा निर्देशानुसार ही समुचित मात्रा में दें।


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कितनी होगी पैदावार

आज के समय में फसल उत्पादकों हेतु बेहतरीन फसल का चुनाव सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बात है। किसानों को जिस फसल से अत्यधिक लाभ हो सके एवं उनके द्वारा किये गए व्यय को निकालकर वह अच्छी आमंदनी भी अर्जित कर सकें। हालाँकि, शकरकंद की बात की जाए तो यह फसल काफी अच्छी आमंदनी करने में सहायक साबित होती है। उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर में तकरीबन 25 टन शकरकंद की पैदावार होती है। किसान कम से कम 10 रुपए किलो भी शकरकंद का मूल्य रखें उस गणित से एक एकड़ में उत्पादन कर किसान न्यूनतम 1.25 लाख रुपए का लाभ अर्जित कर सकते हैं।
किसान इन तीन पत्तों के कारोबार से अच्छी खासी आमदनी कर सकते हैं

किसान इन तीन पत्तों के कारोबार से अच्छी खासी आमदनी कर सकते हैं

वर्तमान की नई पीढ़ी को शायद साखू के पत्तों के विषय में जानकारी भी नहीं होगी। एक दौर था जब वैवाहिक कार्यक्रमों में इसके पत्ते का उपयोग प्लेट के तौर पर किया जाता था। भारत में विभिन्न तरह की खेती की जाती है। भिन्न-भिन्न सीजन और रीजन के अनुरूप यहां किसान अपनी फसल का चयन करते हैं। बहुत सारे लोग पारंपरिक खेती से इतर फूलों का उत्पादन करते हैं, तो कुछ किसान सब्जियों का उत्पादन करते हैं। साथ ही, कुछ लोग फलदार पेड़ लगाकर उससे आमदनी अर्जित करते हैं। हाल ही में जड़ी बूटियों की खेती से भी बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा रहा है। परंतु, हम आज जिस खेती के विषय में चर्चा कर रहे हैं, वो पत्ते हैं। जी हां, पत्ते, जिन्हें अक्सर किसी काम का नहीं समझा जाता। परंतु, यह तीन पत्ते आपके भाग्य को चमका सकते हैं। पूरे साल इनकी इतनी मांग रहती है, कि यदि आपने इनकी खेती कर ली तो मालामाल हो जाएंगे।

पान के पत्तों से अच्छी आमदनी होगी

बनारस के पान के संबंध में तो आपने अवश्य सुना ही होगा। परंतु, यह बनारस का पान पनवाड़ी के पास किसी खेत से ही आता है। बतादें, कि पान की मांग अब उत्तर भारत से निकल कर संपूर्ण विश्व में हो रही है। इसके औषधीय लाभों ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है। गुटका खाने वाले लोग भी अब इसके स्थान पर पान को विकल्प बना रहे हैं। भारत सहित दुनियाभर में पान विभिन्न तरह के निर्मित किए जाते हैं, उसी प्रकार से पान के पत्ते के भी विभिन्न प्रकार के होते हैं। यदि आप भी पान से धन अर्जित करना चाहते हैं, तो आज ही इसकी खेती का प्रशिक्षण लीजिए और इन्हें अपने खेतों में उत्पादित करना आरंभ कर दीजिए। ये भी पढ़े: बनारस के अब तक 22 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, अब बनारसी पान भी इसमें शामिल हो गया है

साखू के पत्तों से कमाऐं

आजकल की नई पीढ़ी को साखू के पत्तों के विषय में शायद ही पता होगा। एक वक्त था जब वैवाहिक कार्यक्रम में इसके पत्ते का उपयोग प्लेट के तौर पर किया जाता था। उत्तर भारत एवं पहाड़ी क्षेत्रों में यह बेहद लोकप्रिय है। जब से लोगों के अंदर जागरुकता और समझदारी आई है। डिस्पोजल को छोड़ कर पुनः नेचर की ओर लौट रहे हैं। इस वजह से साखू के पत्तों की मांग विगत कुछ वर्षों में बढ़ी है। सबसे खास बात यह है, कि एक ओर जहां आप साखू के पत्तों से आमदनी करते हैं। साथ ही, दूसरी ओर आप इसकी लकड़ी को बेचकर भी लाखों रुपये की आमदनी की जा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि साखू की लकड़ी की मांग भारत सहित विदेशों में भी सदैव बनी रहती है।

केले के पत्ते से कमाऐं

केले के पत्तों का उपयोग खाना खाने के लिए किया जाता है। दक्षिण भारत में इसकी मांग बेहद अधिक होती है। परंतु, फिलहाल भारत के अन्य इलाकों में भी केले के पत्तों की मांग में इजाफा हुआ है। दरअसल, साउथ इंडियन रेस्टोरेंट भारत के प्रत्येक इलाके में तीव्रता से खोले जा रहे हैं। अधिकांश साउथ इंडियन रेस्टोरेंट फिलहाल अपने ग्राहकों को ऑथेंटिक भोजन खिलाना चाहते हैं। इसके लिए वह उस भोजन को परोसने के लिए केले के पत्ते का उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है, कि दक्षिण भारत के साथ-साथ उत्तर भारत और देश के बाकी इलाकों में भी केले के पत्तों की मांग बढ़ी है। केले की खेती में सर्वोत्तम बात यह है, कि अब इसका हर हिस्सा बिक जाता है। केला, केले का पत्ता यही नहीं वर्तमान में कुछ लोग इसके तने तक भी खरीद रहे हैं। दरअसल, केले के तने से एक फाइबर उत्पन्न हुई है, जो काफी ज्यादा मजबूत होता है। यही कारण है, कि कुछ लोग केले के तने को भी खरीद रहे हैं।
कोसी विकास प्राधिकरण के गठन से इस राज्य की फसलों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है

कोसी विकास प्राधिकरण के गठन से इस राज्य की फसलों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है

बिहार राज्य के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने बताया है, कि इस योजना पर कार्य होने से उत्तर बिहार की काफी बड़ी परेशानी आहिस्ते-आहिस्ते समाप्त हो जाएगी। लोगों को अपना घर छोड़कर बाहर रोजगार के लिए नहीं जाना पड़ेगा। कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। यह नदी नेपाल से होते हुए बिहार में अंदर आ जाती है। बतादें, कि एक रिपोर्ट के अनुसार, कोसी नदी में आई बाढ़ से प्रति वर्ष तकरीबन 21,000 वर्ग किमी का क्षेत्रफल प्रभावित होता है। इससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था पूर्णतया बर्बाद हो जाती है। साथ ही, भारी तादात में जान-माल का भी खतरा रहता है। अब ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदा को काबू करने के लिए कोसी विकास प्राधिकरण बनाने की मांग उठ रही है। बिहार सरकार केंद्र सरकार से यह मांग कर रही है। परंतु, केंद्र की ओर से कोई आधिकारिक तौर पर उत्तर नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, पटना हाईकोर्ट की ओर से भी कोसी विकास प्राधिकरण बनाने की मांग पर मुहर लग गई है।

हाय डैम की जरूरत 1950 में महसूस की गई थी

दरअसल, बिहार सरकार कोसी नदी से होने वाली तबाही को काबू करने के लिए केंद्र सरकार से कोसी विकास प्राधिकरण बनाने की गुहार कर रही है। परंतु, केंद्र की एनडीए सरकार की ओर से कोई सटीक और संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के समक्ष समस्याएं खड़ी हो गई हैं, अब इनका समाधान किस तरह से किया जाए। विशेष बात यह है, कि कोशी की विनाशकारी बाढ़ से संरक्षण हेतु भारत- नेपाल सीमा पर ‘हाय डैम’ की आवश्यकता 1950 में ही महसूस की जा चुकी थी। परंतु, राजनीतिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर विफलता की वजह से आज तक समाधान नहीं खोज पाए हैं।

केंद्र से 70 प्रतिशत खर्च करने का आग्रह किया गया है

सबसे विशेष बात यह है, कि पटना हाईकोर्ट ने वर्ष 2022 में एक जनहित याचिका पर इस संबंध में सुनवाई की थी। उस वक्त हाईकोर्ट द्वारा केंद्र और राज्य सरकार को वर्ष 2023 में कोसी विकास प्राधिकरण बनाने के लिए निर्देशित किया था। साथ ही, पटना हाईकोर्ट ने इस प्राधिकरण में बिहार सरकार, भारत सरकार और नेपाल सरकार की प्रतिनिधि को शम्मिलित करने हेतु बोला था। इस निर्णय के बाद बिहार सरकार द्वारा केंद्रीय जल शक्ति मंत्री को हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक कोसी विकास प्राधिकरण तैयार करने के लिए पत्र भी भेजा। ये भी देखें: इस राज्य सरकार ने देश के सरोवरों को सुंदर और संरक्षित करने की कवायद शुरू करदी है इसमें कोसी हाइडेन के निर्माण और अन्य वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध होने तक राज्य को अंतर्राष्ट्रीय नदियों की वजह बाढ़ से होने वाले नुकसान के लिए राशि का 70% खर्चा भारत सरकार द्वारा प्रदान करने का आग्रह किया गया। परंतु, बिहार में एनडीए सरकार के जाने के बाद मामला ठंडे बस्ते में न पड़ जाए। इस वजह से हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कोसी मेची नदी जोड़ने की योजना हेतु फंडिंग के मुद्दे को भी शीघ्रता से निराकरण करने हेतु भारत सरकार को रिपोर्ट देने को बोला था।

कितने हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी

कोसी मेची लिंक परियोजना से बिहार के तपोवन क्षेत्र में 214000 हेक्टेयर से ज्यादा भूमि की सिंचाई हो सकेगी। मजेदार बात यह है, कि भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं जल शक्ति मंत्रालय से इसके लिए मंजूरी ली जा सकती है। भारत सरकार की उच्च स्तरीय समिति द्वारा इस योजना को राष्ट्रीय परियोजना में शम्मिलित करने की अनुशंसा भी कर चुकी है। परंतु, फंडिंग पैटर्न पर भारत सरकार द्वारा आज तक कोई निर्णय नहीं किया है। इसकी वजह से राष्ट्रीय परियोजना में शम्मिलित नहीं किया जा सकता है।

फसल क्षतिग्रस्त होने से बच पाएगी

बिहार सरकार के मुताबिक, केंद्र सरकार से उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की केन बेतवा लिंक योजना की तरह ही कोसी मेची लिंक योजना के लिए भी 80% प्रतिशत अनुदान लिया जा सकता है। बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा का कहना है, कि इस योजना पर कार्य होने से उत्तर बिहार की काफी बड़ी परेशानी से धीरे-धीरे छुटकारा मिल जाएगा। लोगों को अपना घर छोड़कर कहीं बाहर रोजगार खोजने नहीं जाना नहीं पड़ेगा। साथ ही, किसानों की फसल चौपट भी नहीं हो सकेगी।
अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

अदरक और टमाटर सहित इस फल की भी कीमत हुई दोगुनी

बारिश से फसल को हानि पहुंचने के कारण आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो गई है। नई फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक ज्यों की त्यों रहेंगी। टमाटर ने एक बार पुनः अपना रुद्र रूप दिखाना चालू कर दिया है। विगत एक पखवाड़े में टमाटर एवं अदरक के भावों में रॉकेट की रफ्तार जितनी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ समय पूर्व हुई बारिश से उत्तर भारत में टमाटर की फसल प्रभावित हुई है। वहीं दूसरी तरफ, अदरक के किसान अपनी फसल को अभी रोक रहे हैं। विगत वर्ष हुई क्षति की भरपाई के लिए कीमतों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं।

तरबूज की कीमत किस वजह से बढ़ी है

इसी मध्य, तरबूज के बीज की कीमत तीन गुना तक बढ़ चुकी है। दरअसल, इसको सूडान से आयात किया जाता है। परंतु, वहां पर सैन्य संघर्ष चल रहा है। जिसके चलते आपूर्ति काफी कम है। दिल्ली के एक व्यापारी संजय शर्मा का कहना है, कि एक किलो तरबूज के बीज का भाव फिलहाल 900 रुपये है। जो कि सूडान संघर्ष से पूर्व मात्र 300 रुपये थी।

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टमाटर का भाव दोगुना हो चुका है

खुदरा बाजार में टमाटर का भाव 15 दिन पूर्व 40 रुपये प्रति किलोग्राम थी। जिसमें फिलहाल तकरीबन 80 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं। आजादपुर बाजार में टमाटर ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कौशिक के मुताबिक बारिश से फसल को क्षति पहुंचने की वजह से आजादपुर मंडी (दिल्ली में) में टमाटर की आपूर्ति काफी कम हो चुकी है। नवीन फसल आने तक भाव कुछ वक्त तक इतना ही रहने वाला है। कौशिक का कहना है, कि दक्षिणी भारत से टमाटर की भारी मांग है, जिससे भी भाव बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा है, कि टमाटर फिलहाल हरियाणा एवं यूपी के कुछ इलाकों से आ रहे हैं। कीमतों का कम से कम दो माह तक ज्यों के त्यों रहने की आशंका है।

अदरक की कीमतों में हुई वृद्धि

अदरक की कीमत जो कि 30 रुपये प्रति 100 ग्राम थी। वह अब बढ़कर 40 रुपये तक हो गई है। ऑल इंडिया वेजिटेबल ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्रीराम गढ़वे का कहना है, कि पिछली साल किसानों को कम भाव के चलते नुकसान वहन करना पड़ा था। इस बार वह बाजार में सावधानी से फसल उतार रहे हैं। अब जब कीमतों में वृद्धि हुई है, तो वह अपनी फसल को बेचना चालू कर देंगे। भारत का वार्षिक अदरक उत्पादन करीब 2.12 मिलियन मीट्रिक टन है।
भारत सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर लगाए गए बैन के हटने की संभावना

भारत सरकार द्वारा नॉन बासमती चावल के निर्यात पर लगाए गए बैन के हटने की संभावना

केंद्र सरकार की तरफ से हाल में 20 जुलाई को भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके पश्चात अमेरिका से लेकर दुबई तक चावल को लेकर हाहाकार देखा गया। वर्तमान में खबर है, कि चावल का निर्यात पुनः शुरू हो सकता है। वर्तमान में केंद्र सरकार ने 20 जुलाई को भारत से गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार का कहना था, कि चावल की बढ़ती कीमतों को काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया गया है। परंतु, क्या यही एकमात्र कारण है चावल एक्सपोर्ट पर बैन लगाने की, क्या सरकार इस बैन को फिर से हटा सकती है ? इस संदर्भ में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने बहुत सारे संकेत दिए हैं। बतादें, कि भारत विश्व के 40 प्रतिशत चावल निर्यात पर राज करता है। इसलिए जब भारत ने चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया तो दुबई से लेकर अन्य खाड़ी देशों में कोहराम सा मच गया, जहां चावल की खपत काफी ज्यादा है। साथ ही, अमेरिका जैसे देश में सुपर मार्केट के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखी गईं। भारत 140 से अधिक देशों को चावल निर्यात करता है।

भारत सरकार ने चावल निर्यात पर इस वजह से लगाया बैन

इस संबंध में नीति आयोग के सदस्य एवं कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद ने कहा कि भारत इस वर्ष भी 2 करोड़ टन से ज्यादा चावल का निर्यात करेगा। इससे भारत की फूड सिक्योरिटी पर भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि, भारत कौ ‘गैर बासमती सफेद चावल’ के निर्यात को रोकना पड़ा है। इसकी वजह वैश्विक बाजारों में चावल की मांग का बहुत ज्यादा हो जाना है। यदि सरकार इस चावल के निर्यात पर बैन नहीं लगाती तो भारत से 3 करोड़ टन से ज्यादा चावल का निर्यात होता।

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अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क उन्होंने कहा कि जब से रूस-यूक्रेन युद्ध आरंभ हुआ है, तभी से खान पान की चीजों के भाव बेतहाशा बढ़े हैं। बीते 6 से 7 महीनों में चावल और चीनी के भाव अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत बढ़े हैं और इनकी मांग भी ज्यादा है। इससे घरेलू बाजार पर प्रभाव पड़ने की संभावना थी। साथ ही, सरकार का दूसरे देश की सरकार के साथ होने वाला गैर-बासमती चावल का निर्यात आज भी सुचारू है।

चावल की फसल के उत्पादन में कमी होना

चावल पर बैन का एक अन्य कारक अल-निनो की वजह से गत वर्ष मानसून को लेकर अनिश्चिता होना। फिर विलंभ से बारिश होने की वजह से बुवाई का भी विलंभ से होना। इसके पश्चात बाढ़ की वजह से विभिन्न क्षेत्रों में फसल का चौपट होना। इन समस्त कारणों से सरकार ने सावधानी भरा रुख अपनाया और चावल के निर्यात को प्रतिबंध कर दिया।

भारत आगे चलकर एक्सपोर्ट पर बैन हटा सकता है

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद द्वारा मीड़िया एजेंसियों को दिए एक साक्षात्कार में कहा है, कि सरकार चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटा सकती है। यह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की डिमांड पर निर्भर करेगा। सरकार को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक बार चावल की मांग गिरने की प्रतीक्षा है, जिससे कि चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटाया जा सके। वहीं, इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाएगा, कि इस वर्ष फसल कैसी रहती है। नई फसल का आंकलन सितंबर-अक्टूबर तक लग जाएगा, इसी के आधार पर सरकार आगामी निर्णय लेगी।
विश्व बैंक ने चावल की वैश्विक कीमतों में 2025 तक कोई गिरावट की संभावना जारी नहीं की है

विश्व बैंक ने चावल की वैश्विक कीमतों में 2025 तक कोई गिरावट की संभावना जारी नहीं की है

वैश्विक बाजारों में चावल के भाव में किसी भी तरह की कोई गिरावट की सभावनांए आज की तारीख में नजर नहीं आ रही हैं। विश्व बैंक ने कुछ ही समयांतराल में अपनी रिपोर्ट जारी की हैं। विश्व बैंक की ग्लोबल कमोडिटी आउटलुक के अनुसार, 2025 से पूर्व चावल की वैश्विक कीमतों में किसी तरह की उल्लेखनीय कमी आने की बिल्कुल संभावना नहीं है। चावल की कीमतों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह अलनीनो का जोखिम जारी रहना है। इसके साथ ही विश्व के प्रमुख निर्यातकों और आयातकों के नीतिगत निर्णय और चावल पैदावार एवं निर्यात के बाजार में संकुचन से भी है।

इस खरीफ सीजन में कम चावल उपज की संभावना

विश्व बैंक की हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 के मुकाबले 2023 में वैश्विक बाजार के अंदर चावल की कीमत औसतन 28 फीसद ज्यादा है। 2024 तक वैश्विक बाजार में चावल के मूल्यों में 6 फीसद और महंगाई आने की संभावनाएं हैं। इसकी वजह से भारत में चावल की कीमतों में इजाफा होने की संभावना से चिंता बढ़ गई हैं। क्योकि, अगस्त के माह में कम बारिश की वजह से 2023 में घरेलू बाजार के अंदर इस खरीफ सीजन में चावल की पैदावार कम होने की काफी संभावनाएं हैं।

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भारत सरकार ने चावल का निर्यात बंद किया हुआ है

भारत सरकार की तरफ देश से चावल के निर्यात को पहले ही प्रतिबंधित कर दिया हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि भारत में चावल की कुछ प्रजातियों पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क है। साथ ही, बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य लागू है। कैंद्र सरकार के इस सराहनीय कदम से वैश्विक बाजार में चावल के निर्यात में 40 फीसद तक आपूर्ति में गिरावट दर्ज की गई है। दरअसल, इस रिपोर्ट के अंतर्गत कहा गया है, कि पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति की वजह से 2023 में कृषि जिंसों की कीमतों में लगभग 7 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है। साथ ही, 2024-25 में कृषि जिंसों की कीमतों में 2 प्रतिशत की और गिरावट आ सकती है।