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ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

धान, गन्ना, जवार, बाजरा, मक्का, उरद, मुंग की अच्छी पैदावार : समझें अनुभवी किसानों से

स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

हर साल ठंड का महीना शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इसका एक कारण पराली जलाने की समस्या है। हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं। इस कचरे को पराली कहा जाता है। इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है। ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है। किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुवाई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है। पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है।

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) और पराली की समस्या का हल

Super Seeder Machine

इस समस्या से निजात देने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह हैं। इस मशीन(Machine) के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की ज़रूरत नहीं होती है। सुपर सीडर(Super Seeder) के साथ धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है। इसके अलावा जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है। 

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 सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से किसानों को धान के बाद गेंहू की बुवाई के लिए बार बार जुताई नहीं करानी होती और न हर पराली को जलाने की ज़रूरत होती है। बल्कि यह पराली खाद का काम करेगी। पराली की मौजूदगी में ही गेहूँ की बिजाई संभव है। इस प्रकार सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से बुवाई खर्च कम लगेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा। धान की सीधी बिजाई एवं गेहूँ की सुपर सीडर(Super Seeder) से बुवाई करने पर कम समय एवं कम व्यय के साथ-साथ अधिक उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण तथा जल का संचयन भी आसानी से किया जा सकता है।

कैसी होती है सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine)

 सुपर सीडर(Super Seeder) में रोटावेटर, रोलर व फर्टिसीडडृलि लगा होता है। सपुर सीडर ट्रैक्टर(Super Seeder Tractor) के साथ 12 से 18 इंच खड़ी पराली के खेत में जुताई करते हैं। रोटावेटर पराली को मिट़टी में दबाने, रोलर समतल करने व फर्टिसीडड्रिल खाद के साथ बीज की बुवाई करने का काम करता है। दो से तीन इंच की गहराई में बुवाई होती है। 

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खासियत

सुपर सीडर(Super Seeder) की खासियत है कि एक बार की जुताई में ही बुआई हो जाती है। पराली की हरित खाद बनने से खेत में कार्बन तत्व बढ़ा जता है और इससे अच्छी फसल होती है। इस विधि से बुवआई करने पर करीब पाँच प्रतिशत उत्पादन बढ़ सकता है और करीब 50 प्रतिशत बुआई लागत कम होती है। पहले बुआई के लिए चार बार जुताई की जाती थी। ज़्यादा श्रम शक्ति भी लगती थी। सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बुआई की जा सकती है। जबकि किसान धान काटने के बाद पाँच से छह दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बुआई करते हैं। इससे गेहूँ की बुआई में ज्यादा लागत आती है। जबकि सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से बुआई करने पर लागत में भारी कमी आती है।

किसानों में जागरुकता का प्रसार

कई राज्यों में किसानों को सुपर सीडर(Super Seeder) चलाने और इससे गेहूँ की बुवाई करने की जानकारी दी जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि पराली जलाने की मजबूरी से सुपर सीडर(Super Seeder) निजात दिला सकता है। किसानों को जागरुक करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी जुटा है। 

कीमत

इस मशीन(machine) की कीमत बाजार में 2 से सवा 2 लाख रुपये तक है। यह मशीन एक एकड़ जमीन की जुताई एक से दो घंटे में कर सकती है। 

समस्या

हालांकि यह मशीन किसानों के लिए कारगर तो है, लेकिन इसकी महंगी कीमत होने के कारण छोटी जोत के किसानों तक इसकी पहुँच नहीं हो पाएगी। ऐसे में किसानों ने सरकार से इस मशीन के लिए सब्सिडी(Subsidy) देने की मांग की है।

बरसात के साथ बढ़ेगी ठंड

बरसात के साथ बढ़ेगी ठंड

गुजरे दशकों में मध्य नवंबर के बाद हल्की और तेज बरसात के साथ ठंड का आगाज होता हैंं। 31 दिसंबर की आखिरी तारीख घने कोहरे के आगाज का पहला दिन होती है। इस बार बरसात को लेकर मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जारी कर दिया है। इससे देश के अधिकांश हिस्सों में बूंदाबांदी और बरसात का योग बना हुआ है। बरसात से पछती धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की बिजाई का कार्य प्रभावित होगा वहीं सरसों की समय से बिजाई कर चुके किसानों को बेहद लाभ होगा। ये भी पढ़े : जानिए चने की बुआई और देखभाल कैसे करें

कब और कहां होगी बरसात

मौसम विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने से कई राज्यों में बरसात की संभावना है। 18 से 19 तारीख के मध्य तमिलनाडु एवं तटीय आंध्र प्रदेश में भारी बरसात, छत्तीसगढ़ में 18 को हल्की बरसात, मध्य प्रदेश में हल्की बरसात की संभावना है। राजस्थान में 18 से 20 नवंबर के मध्य हल्की एवं मध्यम बरसात होने की संभावना बनी हुई है। 19—20 को गुजरात के कई इलाकों में हल्की एवं मध्यम बरसात होने की संभावना बनी हुई है। देश के अधिकांश राज्यों में हल्की एवं मध्यम बरसात होने के साथ ही तापमान में गिरावट होगी। ठंड का प्रभाव बढ़ना गेहूं की फसल के विकास के लिए आवश्यक होता है। इसी के चलते मध्य नवंबर के बाद मौसम बदलता है और ठंड में तेजी आती है।
18 लाख किसानों से सरकार ने खरीदा धान

18 लाख किसानों से सरकार ने खरीदा धान

धान खरीद में कई तरह की व्यावाहारिक दिक्कतों के बाद भी चालू खरीफ सीजन में धान की खरीद की गई है। चंडीगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, जम्बू एवं कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, केरल, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार सहित कई राज्यों में अभी भी खरीद जारी है।

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30 नवंबर, 2021 तक खरीफ विपणन मौसम 2021-22 में 290.98 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हो चुकी है। यह खरीद चंडीगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना, राजस्थान, केरल, तमिलनाडु, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में हुई है। सरकारी विज्ञाप्ति के अनुसार अब तक लगभग 18.17 लाख किसानों को 57,032.03 करोड़ रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिला है।

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मौजूदा खरीफ विपणन मौसम में अधिकतम खरीद पंजाब (18685532 मीट्रिक टन) से हुई है। उसके बाद हरियाणा (5530596 मीट्रिक टन) और उत्तरप्रदेश (1242593 मीट्रक टन) से खरीद हुई है। अन्य राज्यों में भी खरीद जोर पकड़ रही है।
पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार करीब 500 करोड़ के निजी निवेश पर आधारित पांच बायोगैस प्रोजेक्टों को शीघ्र शुरू करने जा रही है। इनमें धान की पराली से बायोगैस एवं खाद बनाई जाएगी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डा. राज कुमार वेरका और पेडा के चेयरमैन एच.एस. हंसपाल की मौजुदगी में राज्य के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभाग की पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पेडा) ने मैसर्ज एवरएनवायरो रिसोर्स मैनेजमेंट प्राईवेट लिमटिड, मुंबई के साथ राज्य में धान की पराली पर आधारित पाँच बायोगैस प्रोजैक्टों के लिए हस्ताक्षर करके समझौता किया।

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इस मौके पर पेडा के सी.ई.ओ रंधावा ने बताया कि यह प्रोजैक्ट जगराओं, मोगा, धूरी, पातड़ां और फिलौर तहसीलों में स्थापित किये जाएंगे। यह कंपनी लगभग 500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से इन प्रोजेक्टों की स्थापना करेगी। इन प्रोजेक्टों का कुल उत्पादन 222000 घन मीटर रा बायो गैस प्रति दिन है जिसको शुद्ध किया जायेगा जिससे प्रति दिन 92 टन बायो सीएनजी /सीबीजी प्राप्त की जा सके। इन प्रोजेक्टों में उप-उत्पाद के तौर पर जैविक खाद भी तैयार की जायेगी जो खेती ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाएगी और रासायनिक खाद के प्रयोग को भी बदलेगी। 

यह प्रोजैक्ट दिसंबर, 2023 तक या इससे पहले बायो सीएनजी का व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देंगे। यह प्रोजैक्ट लगभग 7000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार प्रदान करेंगे। इन प्रोजैक्टों के चालू होने पर लगभग 3.5 लाख टन सालाना धान की पराली खपत होगी। इस तरह राज्य के किसानों को अपने खेतों में इन प्रोजैक्टों के लिए खेती के अवशेष की बिक्री से भी लाभ होगा और पराली जलाने की समस्या से भी काफ़ी निजात मिलेगी।

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सी.ई.ओ. ने आगे बताया कि पेडा ने राज्य में कुल 263 टन प्रति दिन सामर्थ्य वाले 23 ऐसे बायो सीएनजी प्रोजैक्ट, प्राईवेट डिवैलपरों को बीओओ के आधार पर अलाट किये हैं, जिनमें उपरोक्त 5 प्रोजैक्ट भी शामिल हैं। यह प्रोजैक्ट 2022-23 और 2023-24 तक लगभग 1300-1500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से पूरे किये जाएंगे। इन प्रोजैक्टों से लगभग 35000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार मिलेगा।

यह प्रोजैक्ट चालू होने पर लगभग 9 लाख टन सालाना धान की पराली का उपभोग करेंगे। मैसर्ज वर्बियो इंडिया प्राईवेट लिमटिड द्वारा गाँव भुटाल कलाँ, जि़ला संगरूर में प्रति दिन 33.23 टन बायो-सीऐनजी सामथ्र्य का स्थापित किया जा रहा सबसे बड़ा प्रोजैक्ट है, दिसंबर 2021 तक व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देगा। इस प्रोजैक्ट में लगभग 1.25 लाख टन धान की पराली की खपत की जायेगी।

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : किसानों ने की धान की नर्सरी की तैयारी की शुरुआत

मानसून की आहट : मथुरा के नौहझील क्षेत्र में धान की नर्सरी तैयार करते किसान

मानसून की आहट देख किसानों ने धान की नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। धान-बीज विक्रेताओं की दुकानों पर धान का बीज खरीदने को किसानों की भीड़ लगने लगी है। नर्सरी में पौध तैयार होते ही धान (Rice Paddy) की रोपाई शुरू हो जाएगी। 

किसानों को इस बार भी अच्छी वर्षा की उम्मीद है। जिसे देखकर किसान धान की पैदावार करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। हालांकि धान की फसल की रोपाई में अभी वक्त बाकी है, लेकिन धान की रोपाई के लिए किसानों ने नर्सरी की तैयारी शुरू कर दी है। 

सिंचाई साधन मौजूद होने पर कुछ किसानों ने तो धान की पौध तैयार करने के लिए खेत तैयार कर लिए हैं। नौहझील ब्लॉक के गांव भालई निवासी किसान जितेन्द्र सिंह ने बताया कि धान की रोपाई समय से होने पर अच्छी उपज की संभावना बनी रहती है। जिससे समय से नर्सरी (पौध) की तैयारी की जा रही है। 

मथुरा के गांव मरहला मुक्खा निवासी किसान लेखराज सिंह का कहना है कि धान की उपज के लिए बाजार में विभिन्न प्रजातियों के बीज दुकानदारों द्वारा बेचे जा रहे हैं। अच्छा बीज भी पैदावार के लिए महत्वपूर्ण होता है।

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कैसे तैयार करें धान की नर्सरी

ऐसे लगाएं धान की नर्सरी: - धान की नर्सरी लगाने से पहले खेत की 2-3 बार अच्छे से जुताई कर लें। - खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर 50-55 सेमी ऊंची मेंड़बंदी कर लें। - धान की बीजाई से पहले बीजों को अंकुरित कर लेना चाहिए।

पौध के अच्छे विकास के लिए धान नर्सरी में प्रति 500 वर्गमीटर क्षेत्र में 5 किलो नाइट्रोजन, 1.60 किलो फास्फोरस, 2.1 किलो पोटाश मिट्टी में डालकर अच्छे से मिला लें। - पौधों के अच्छे अंकुरण के लिए पानी की बेहद जरूरत होती है। शाम के समय नियमित पानी लगाएं - समय-समय पर पौधों पर कीटनाशक छिड़काव भी जरूरी है।

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नर्सरी के लिए बीज की आवश्यकता

- खेत में क्यारियां तैयार करने के बाद उपचारित धान के बीज का प्रति 100 वर्ग मीटर 500 से 800 ग्राम बीज का छिड़काव करना चाहिए। - विभिन्न किस्मों के अनुसार बीज की मात्रा थोड़ी बहुत कम या ज्यादा हो सकती है। - अत्यधिक ज्यादा बीज से पौधों की ग्रोथ (बढ़वार) कम होने की संभावना रहती है। अतः नर्सरी में तय दर के हिसाब से बीज डालना चाहिए।

नर्सरी का समय और धान रोपाई का समय

धान की कई किस्में जल्दी पककर तैयार हो जाती हैं। उनकी नर्सरी जून के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। वहीं कुछ किस्में देर से पककर तैयार होतीं हैं, उनकी नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह में शुरू हो जानी चाहिए। - धान रोपाई के लिए जलाई माह का दूसरा व तीसरा सप्ताह उत्तम रहता है।

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अगर किसान भाई धान की फसल की करें उचित देखभाल, तो हो जायेंगे मालामाल। ------- लोकेन्द्र नरवार

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में अनेक प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। प्रत्येक फसल के बोने व काटने का समय अलग अलग होता है। 

इसी प्रकार धान की भी फसल है जो एक प्रकार की खरीफ की फसल है। यह हमारे देश को लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न है। इसके अलावा मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है वो धान है। 

अगर इसकी खेती में पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। धान की खेती की संपूर्ण जानकारी ।

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अच्छे बीज का चयन करना। कई बार किसान महंगे बीज खरीदने के बावजूद भी अच्छी फसल नहीं उगा पता। इसका मुख्य कारण है उसके द्वारा एक स्वस्थ बीज का चयन ना कर पाना। 

इसके कारण चुना गया बीज महंगा नहीं बल्कि वहां की जलवायु के अनुरूप होना चाहिए। हम जानते हैं कि धान की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। विभिन्न हिस्सों की। 

जलवायु भी भिन्न भिन्न होती है इसके लिए किसानों को वहां की जलवायु के हिसाब से उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए।

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बुवाई का समय :-

धान की फसल एक प्रकार की खरीफ की फसल है जो मुख्य रूप से बरसात शुरू होने के पहले बोई जाती है। यह फसल मई की शुरुआत में बोई जाती है, ताकि मानसून आते ही किसान धान की रोपाई शुरू कर दें। 

धान की फसल में मुख्य रुप से ध्यान रखने योग्य बात बीज का शोधन है इसमें किसान कई महंगे बीजों को खरीद कर फसल में अच्छी लागत नहीं पा पाते। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीच के साथ बीजों का उपचार भी करना चाहिए।

बीजोपचार :-

आज की खेती में मुख्य बात बीजों का चयन करना है एवं बीजों का शोधन है। किसानों को बीजों के शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए ऐसा करने से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 खर्च करने होते हैं। 

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बीज उपचार करने के लिए हमें एक घोल तैयार करना होता है। इस घोल को तैयार करने के लिए एक बर्तन में 10 लीटर पानी लेते हैं और उसमें लगभग 1.5 किलो नमक मिलाते हैं अब इस पानी ने एक आलू या फिर एक अंडा डालते हैं 

अगर आलू घील पर तैरने लगे तो समझ जाओ कि हमारा होल तैयार हो गया है और अगर आलू या अंडा घोल पर नहीं तैरता है तो पानी में उस समय तक नमक मिलाते रहें जब तक कि आलू घोल तैरने ना लगे। 

अब इस घोल में धीरे-धीरे करके धान के बीज डालते हैं जो भी इस घोल के ऊपर तैरने लगते हैं बेबीज कम गुणवत्ता के होते हैं उन्हें निकाल कर बाहर फेंक देना चाहिए और जो भी बोल में डूब जाते हैं वह बीज बुवाई के योग्य होते हैं। 

इस गोल के माध्यम से हम धान के बीजों का शोधन तीन से चार बार तक कर सकते हैं। बीजों का शोधन करने के बाद प्राप्त बीजों को तीन से चार बार पानी में अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

क्षेत्र के हिसाब से धान की उन्नत किस्मों का चुनाव :-

हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है ऐसे में धान की अच्छी फसल पाने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बीजों का चयन भी एक प्रमुख कार्य है इसके लिए उस क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से बीजों का चयन किया जाता है।

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बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई :-

बीजों की बुवाई के लिए सबसे पहले जमीन को बीजों की बुवाई के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें। 

सबसे पहले किसान पौधों को नर्सरी में तैयार करें इसके बाद उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में ले जाकर उसकी रोपाई करें रोपाई में पौधों की बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई की जाए।

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जिस खेत में पानी ना भरता हो उस खेत में धान की रोपाई श्रीविधि से करें। इस विधि में खेत में पानी ना भरने दें इसमें खेत की समय-समय पर सिंचाई करते रहें इस विधि में सिंचाई करने के लिए गेहूं के जैसे ही सिंचाई करें। और धान का प्रबंधन सभी धान की तरह करें।

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

धान की किस्म कावेरी 468 की पूरी जानकारी

धान की किस्म कावेरी 468 की पूरी जानकारी

हमने धान की कई किस्में देखी हैं। कुछ किस्में कम समय पर कर तैयार हो जाती हैं तो कुछ किस्मों को पकने में ज्यादा समय लगता है। ऐसी ही धान की एक किस्म कावेरी 468 है जो बहुत ही कम समय में पककर तैयार हो जाती है। धान की इस किस्म की खास बात यह है कि, इस किस्म को किसान रबी और खरीफ दोनों मौसम में बो सकता है। इस केस में पानी के अधिक मात्र की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसान पानी की उपलब्धता कम होने के बावजूद भी इस धान का उत्पादन कर सकता है। धान की एक किस्म रोग प्रतिरोधी भी है। यह कम समय में पक जाने के कारण इसमें हल्दी रोग काफी कम लगता है। 

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कावेरी 468 की खासियत :

धान की यह किस्म कम दिन में पक कर तैयार हो जाती है। जिससे किसानों को खेत में दूसरी फसलें जैसे सब्जियां, सरसों आदि बोने का समय मिल जाता है। इसके माध्यम से किसान और अधिक मुनाफा कमाते हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि आप धान की इस किस्म की बुवाई रबी और खरीफ दोनों के मौसम में कर सकते हैं। रबी के मौसम की बात करें तो आप इसकी बुवाई सितंबर से अक्टूबर में और खरीफ के मौसम की बात करें तो आप इसकी बुआई मई और जून में कर सकते हैं। आपने देखा होगा कि अगर किसान किसी फसल की बुवाई करने मैं विलंब कर देते हैं तो उन्हें उस फसल में काफी नुकसान हो जाता है फसल का उत्पादन भी काफी कम होता है। लेकिन धान की यह किस्म इन सभी समस्याओं को देखते हुए बनाई गई है। अगर आप इस किस्म की बुवाई में विलंब कर देते हैं तो भी आपको कोई नुकसान नहीं होगा। 

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हमारे द्वारा अधिकांश रूप से देखा जाता है कि जब तेज हवाएं चलती हैं तो धान के पौधे गिर जाते हैं लेकिन इस किस्म के पौधे काफी हद तक तेज हवाओं का सामना कर सकते हैं। इस किसी के दाने लंबे मोटे और चमकदार होते हैं जो कि धान की इस किस्म को खास बनाता है। इसके पौधों की बालियां लंबी और मोटी होती हैं। 

कावेरी 468 की तैयारी :

यह खरीफ और रबी दोनों की फसल है। रवि के मौसम में आप इसकी बुवाई सितंबर और अक्टूबर में इसके अलावा खरीफ के मौसम में आप इसकी बुवाई मई और जून में कर सकते हैं अगर आप किसी कारणवश इसकी बुवाई जुलाई में भी करते हैं तो भी आपको अच्छा उत्पादन देखने को मिलता है। 

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धान की यह किस्म 115 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस फसल के पौधे की लंबाई 105 से 110 सेंटीमीटर होती है। इसमें 15 से 20 कर ले निकल आते हैं और दाने लंबे मोटे और चमकदार होते हैं। जिसके माध्यम से किसान धान की इस किस्म से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसके अलावा अगर हम इस किस्म के उत्पादन की बात करें, इस किस्म का उत्पादन 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। और अगर आप इसकी बुवाई सूखा क्षेत्र में करते हैं तो आपको समान रूप से 25 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन देखने को मिल सकता है। इसका दाना काफी वजनदार होता है जो हमारे किसान भाइयों के लिए काफी लाभदायक होता है। इससे किसान धान की फसल में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। 

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इसके अलावा अगर हम खेतों में बीज दर की बात करें तो 4 से 5 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। धान की फसल मौसम के प्रति ज्यादा प्रभावशाली नहीं होती है अर्थात अगर ज्यादा पानी बरसे चाहे ज्यादा पानी ना बरसे फिर भी इस फसल के उत्पादन में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। धान की इस केस में इतनी खूबियां होने के बावजूद भी कुछ खामियां भी हैं। कई बार धान का अंकुरण सही नहीं होता है, ऐसे में किसान भाइयों को तुरंत बीज विक्रेता और कंपनी में सूचित कर शिकायत दर्ज करानी चाहिए, ताकि समय रहते उचित समाधान जैसे पैसे वापस या बदले में सही बीज मिल जाएँ। धान की यह किस्म किसानों की पहली पसंद बनी हुई है क्योंकि यह किस्म कम पानी और कम मिट्टी में भी अच्छा उत्पादन देती है। इन सभी विशेषताओं को देखते हुए धान की यह किस्म किसानों की पहली पसंद बनी हुई है।

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

हमारे देश में गेहूं के बाद जिस फसल के उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है वह है धान। विश्व में सबसे ज्यादा चावल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर आता है। इसी कारण सरकार धान के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दे रही है। जिस वजह से सरकार धान की नई नई किस्में ला रही है, जिनमें से पूसा बासमती 1728 भी धान की एक किस्म है। इस किस्म की धान में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसमें आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार की धान में किसान को उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। उर्वरक की मात्रा सीमित होनी चाहिए। पूसा द्वारा निर्मित धान की इस किस्म में रोगरोधी क्षमता काफी अधिक है।

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पूसा 1728, पूसा 6 का एक नया वर्जन है लेकिन इस किस्म का उत्पादन पूसा 1401 जैसा ही है। कृपा करके सानु स्पेशल की देखरेख बहुत अच्छे से करें तो वह स्पेशल से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

पूसा 1728 की तैयारी :

पूसा द्वारा विकसित यह बासमती चावल किस्म एक अच्छी उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म की बुआई 20 मई से लेकर 22 जून के बीच करनी चाहिए। एवं इसके पौधों की रोपाई का समय 15 जून से 5 जुलाई के मध्य होता है।

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फसलों में बीमारी लगने पर किसान अनेक प्रकार की जहरीली दवाओं का छिड़काव चावल की फसल पर कार्य था। जिस कारण से हमारे देश का चावल विदेशों से कई बार रिजेक्ट हो जाता था। इसलिए इस किस्म के पौधों में दवाई के छिड़काव की आवश्यकता न के बराबर होती है। किसान को बहुत कम मात्रा में स्प्रे की जरूरत पड़ेगी। एसे में किसानों के पैसे की बचत होगी। इस प्रकार की धान में प्रति एकड़ 4 से 5 किलोग्राम रोपाई और अनुसंधित धान के लिए 1 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की रोपाई है। इसमें दुख तारों की बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और दो पौधों की बीच की दूरी का अंतर 15 सेंटीमीटर होना चाहिए।

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पूसा 1728 : फसल का बीज उपचार :

किसी भी फसल के बीज की बुवाई से पहले उसके बीच का बीज उपचार करना बहुत जरूरी होता है धान की इस किस्म के बीज के बीज उपचार करने के लिए इसे पहले 10 ग्राम बाविस्टिन और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइगिसन का 8 लीटर पानी के घोल में 24 घंटे तक भिगोते हैं। यह घोल 4 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। इससे बीज का अच्छी तरह से बीज उपचार हो जाता है और किसान द्वारा स्वस्थ बीज बोने से फसल की पैदावार भी अधिक होती है।

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पूसा 1728 में उर्वरक की मात्रा :

फसल में उर्वरक मिलाने से उस फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। जैविक उर्वरक की अपेक्षा कीटनाशक उर्वरक से अधिक पैदावार होती है लेकिन कीटनाशक के छिड़काव से फसलें जहरीली हो जाती हैं। धान की फसल में उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी का परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसमें उर्वरक का इस्तेमाल रोपाई के 35 से 40 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की फसल में औसत उपज पर्याप्त मात्रा में होती है। दोनों की परिपक्व होने पर इस फसल को काट लेते हैं। इसकी औसत उपज 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ है। धान की इस किस्म से किसान अच्छी उपज प्राप्त करता है और मुनाफा कमाता है।

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इसे प्रकृति का मानसून ऑफर समझिये और अपने घर, बगिया, खेत में लगाएं मानसून की वो फसल साग-सब्जी, जिनसे न केवल घरेलू खर्च में हो कटौती, बल्कि खेत में लगाने से सुनिश्चित हो सके आय में बढ़ोतरी। लेकिन यह जान लीजिये, ऐसा सिर्फ सही समय पर सही निर्णय, चुनाव और कुशल मेहनत से संभव है। घर की रसोई, छत की बात करें, इससे पहले जान लेते हैं मानसून की फसल यानी खरीफ क्रॉप में मुख्य फसलों के बारे में। खरीफ की यदि कोई मुख्य फसल है तो वह है धान

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(Paddy Farming: किसानों को इस फार्म से मुफ्त में मिलते हैं पांरपरिक धान के दुर्लभ बीज) जबलपुर निवासी, अनुभवी एवं प्रगतिशील युवा किसान ऋषिकेश मिश्रा बताते हैं कि, बारिश के सीजन में धान की रोपाई के लिए अनुकूल समय, बीज, रोपण के तरीके के साथ ही सिंचन के विकल्पों का होना जरूरी है।

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धान (dhaan) के लिए जरूरी टिप्स (Tips for Paddy)

खरीफ क्रॉप टिप्स (Kharif Crop Tips) की बात करें, तो वे बताते हैं कि शुरुआत में ही सारी जानकारी जुटा लें, जैसे खेत में ट्रैक्टर, नलकूप आदि के साथ ही कटाई आदि के लिए पूर्व से मजदूरों को जुटाना, लाभ हासिल करने का बेहतर तरीका है। समय पर डीएपी, यूरिया, सुपर फास्फेट, जिंक, पोटास आदि का प्रयोग लाभ कारी है। धान की प्रजाति की किस्म का चुनाव भी बहुत सावधानी से करना चाहिए।

ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी ऋषिकेश बताते हैं कि, एक एकड़ के खेत में बोवनी से लेकर कटाई की मजदूरी, बिजली, पानी, ट्रैक्टर, डीजल आदि पर आने वाले खर्चों को मिलाकर, जुलाई से नवंबर तक के 4 से 5 महीनों के लगभग 23 से 24 हजार रुपये के कृषि निवेश से, औसतन 22 क्विंटल धान पैदा हो सकता है। मंडी में इसका समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल था। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रति एकड़ पर 20 से 21 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। खरीफ सीजन की मेन क्रॉप धान की रोपाई वैसे तो हर हाल में जुलाई में पूर्ण कर लेना चाहिए, लेकिन लेट मानसून होने पर इसके लिए देरी भी की जा सकती है बशर्ते जरूरत पड़ने पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो।

ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation) कृषि के जानकारों की राय में, धान की खेती (Paddy Farming) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा को रोपाई के 58 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।

खरीफ कटाई का वक्त

जून-जुलाई में बोने के बाद, अक्टूबर के आसपास काटी जाने वाली फसलें खरीफ सीजन की फसलें कही जाती हैं। जिनको बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता के अलावा परिपक़्व होने, यानी पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है।

घर और खेत के लिए सब्जियों के विकल्प

खरीफ की प्रमुख सब्जियों की बात करें तो भिंडी, टिंडा, तोरई/गिलकी, करेला, खीरा, लौकी, कद्दू, ग्वार फली, चौला फली के साथ ही घीया इसमें शामिल हैं। इन बेलदार सब्जियों के पौधे घर की रसोई, दीवार से लेकर छत पर लगाकर महंगी सब्जियां खरीदने के खर्च में कटौती करने के साथ ही सेहत का ख्याल रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा वहीं किसान खेत के छोटे हिस्से में भिंडी, तोरई, कद्दू, करेला, खीरा, लौकी, के साथ ही फलीदार सब्जियों जैसे ग्वार फली लगाकर एक से सवा माह की इन सब्जियों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं।

साग-सब्जी टिप्स

घर में पानी की बोतल, छोटे मिट्टी, प्लास्टिक, धातु के बर्तनों में मिट्टी के जरिये जहां इन सब्जियों की बेलों को आकार दिया जा सकता है, वहीं खेत में मिश्रित खेती के तरीके से थोड़े, थोड़े अंतर पर रसोई के लिए अनिवार्य धनिया, अदरक जैसी जरूरी चीजें भी उगा सकते हैं। घरेलू उपयोग का धनिया तो इन दिनों घरों में भी लगाना एक तरह से नया ट्रेंड बनता जा रहा है।
बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत में खेती का खरीफ सीजन चल रहा है। इस मौसम में उत्पादित की जाने वाली फसलों की बुवाई लगभग भारत भर में पूरी हो चुकी है। कई राज्यों में तो अब खरीफ की फसलें लहलहा रही हैं लेकिन इस बार धान की फसल में एक रोग ने किसानों की रातों की नींद खराब कर दी है। यह धान में लगने वाला बौना रोग (paddy dwarfing)  है जो धान की फसल को बर्बाद कर रहा है। यह बीमारी वर्तमान समय में पंजाब में तेजी से फ़ैल रही है जिससे राज्य के किसान परेशान हो रहे हैं, क्योंकि इस रोग में धान के पौधे अविकसित रह जाते हैं व उनसे धान का उत्पादन नहीं हो पायेगा।


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इस रोग के कारण पंजाब राज्य के कई जिले प्रभावित हो चुके हैं। वहां के किसान इस रोग के कारण बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें अपनी धान की खेती खराब होने का भय सता रहा है। इस रोग की समस्या मुख्यतः लुधियाना, पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ और पटियाला में है। जहां सैकड़ों हेक्टेयर जमीन में लगी हुई धान की फसल चौपट हो रही है। बौनेपैन का रोग धान की फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर रहा है। इस रोग की वजह से अब तक लुधियाना जिले को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। राज्य में बड़े पैमाने पर धान उगाया जा रहा है, लेकिन अब तक 3,500 हेक्टेयर से अधिक फसल में बौनेपैन का रोग लग चुका है। अगर धान के मूल्य का हिसाब किया जाए, तो सिर्फ लुधियाना में ही अब तक इस रोग के कारण किसानों को 51.35 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। यह किसानों के लिए बड़ा झटका है क्योंकि आने वाले दिनों में यदि यह बीमारी नहीं रुकी, तो यह बीमारी और भी ज्यादा धान की फसल को अपने चपेट में ले सकती है। यह सब के चलते धान के उत्पादन में असर पड़ना तय है और इस कारण से किसानों को इस बार धान की खेती में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।


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जब यह बीमारी तेजी से बढ़ने लगी उसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने धान के पौधों में बौनेपन की इस बीमारी पर रिसर्च किया। जिसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले चीन की धान की खेती में देखी गई थी। उसके बाद यह दुनिया में फ़ैली है। पौधों में यह बीमारी डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस के कारण होती है, जिसके मुताबिक इसे बौना रोग कहते हैं। इसके पहले पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने इस बीमारी को अज्ञात बीमारी के तौर पर चिन्हित किया था। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ पंजाब की सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिए लगातार प्रयासरत है ताकि किसानों की कड़ी मेहनत से उगाये गए धान को बचाया जा सके। इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए पंजाब सरकार ने सम्बंधित विभागों को आदेश जारी किये हैं, क्योंकि यदि इस समस्या के समाधान में देरी की गई तो पंजाब के किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी हुई धान की खेती खराब हो सकती है, जो किसानों के लिए बड़ा झटका होगा।