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जैविक खेती क्या है, जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती क्या है, जैविक खेती के फायदे

भारत कृषि प्रधान देश है यह तथ्य हर कोई जानता है। इतना ही नहीं यहां के नागरिकों की खेती पर निर्भरता भी 80 फ़ीसदी के आसपास है। हरित क्रांति के शुरुआती दौर यानी 1960 से पूर्व यहां परंपरागत और जैविक खेती ही की जाया करती थी लेकिन बढ़ती आबादी और लोगों का पेट भरने के क्रम में रासायनिक खाद और उन्नत किस्मों के बीजों का चलन शुरू हुआ। हम आत्म निर्भर तो हुए, खाद्यान्न के भंडार भरे गए लेकिन खेती किसानी घाटे का सौदा होने लगा। साठ के दशक में 2 किलोग्राम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग होता था। वह अब 100 किलो तक पहुंच गया है। लागत कई गुना बढ़ गई है और उत्पादन स्थिर हो गया है। प्रधानमंत्री के 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को पूरा करने में वैज्ञानिकों के भी हाथ पैर फूल रहे हैं। उन्हें कोई बेहतर रास्ता अभी तक समझ नहीं आया है। और फिर लोग जैविक खेती की तरफ लौटने की सलाह देने लगे हैं। इसके कई कारण हैं। बेकार होती जमीन, प्रभावित होती खाद्यान्न की गुणवत्ता, पशु और मानव में बढ़ते अनेक तरह के रोग इसके मुख्य कारण हैं। पर्यावरणीय संकट इससे भी ज्यादा गंभीर है। स्वास्थ्य को लेकर सजग लोगों के लिहाज से जैविक खेती अच्छी आय का जरिया बन रही है।

जैविक और रासायनिक कृषि में क्या अंतर है

कृषि जैविक एवं रासायनिक नहीं होती यह दोनों श्रेणी खेती की होती हैं। रसायनों में जीवन नहीं होता है जबकि जैविक खेती में इस तरह के खादों का प्रयोग किया जाता है जिनमें जीवन होता है। जैविक खेती में जीवाणु आदि होते हैं जोकि जमीन और पौधे दोनों को स्थाई शक्ति प्रदान करते हैं। रसायनों में जीवन नहीं होता है जबकि जिसमें जीवन होता है वह मरता भी है। जैविक खाद गोबर, कचरा, पौधों के पत्तेआदि की सड़ने की लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार होते हैं। इनमें फसलों को पोषण देने वाले जीवाणु होते हैं।

रसायन मुक्त खेती

नशा मुक्त खेती को भी लोगों ने अनेक नाम दे दिए हैं। इनमें जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, जीरो बजट खेती, टिकाऊ खेती, आवर्तन सील खेती, वैदिक खेती आदि नाम खासी चर्चा में है। जैविक खेती में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता ‌। हरी खाद, गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, नेपेड कंपोस्ट आदि जैविक खादों का प्रयोग कर इस तरह की खेती की जाती है। जैविक खेती में बाहरी चीजों का प्रयोग बेहद कम किया जाता है। यह किसानों को प्रकृति के करीब लाती है।

जैविक खेती के फायदे

रासायनिक खादों से जहां मृदा, चारा और खाद्यान्न की गुणवत्ता प्रभावित होती है वही जैविक खादों से यह बेतहाशा बढ़ती है। जिन खेतों में जैविक खादों का प्रयोग होता है वहां की जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है और फसलों में पानी भी कम लगाना पड़ता है। जैविक खेती करने से किसानों की लागत 80 फ़ीसदी से और ज्यादा तक कम की जा सकती है।धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर आने से फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में ही इजाफा होता है। भूमि के जल स्तर में भी यह इजाफा करने का कारण बनती है। निर्यात के लिहाज से भी जैविक उत्पाद जल्दी बेचे जा सकते हैं।

कैसे बनाएं जैविक खाद

जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष गोबर, जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी घास फूस को जमीन के नीचे 4 फीट गहरे गड्ढे में डालते रहना चाहिए। इसे जल्दी से लाने के लिए उसे संस्थान दिल्ली एवं जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद के डिजाल्वाल्वर साल्यूसन का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा बेहद सस्ती कीमत पर सरकारी संस्थानों द्वारा जीवाणु खाद के पैकेट किसानों को दिए जाते हैं। इनमें एजेक्वेक्टर, पीएसबी, राइजोबियम आदि जीवाणु खाद प्रमुख हैं। जीवाणु खादों का प्रयोग होता है कि यह है जमीन में मौजूद नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश आदि तत्वों को अवशोषित कर के पौधों को प्रदान करते हैं। जैविक खेती में किसी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं होता। इस तरीके से खेती करने वाले किसान केवल प्राकृतिक चीजों के माध्यम से कीट फफूंद आदि को खत्म करते हैं। इससे फसल पोषण युक्त और शादी युक्त पैदा होती है। किसी भी खेत में जैविकखेती करने के लिए कम से कम 2 से 3 साल का समय लगता है। धीरे-धीरे रसायनों का प्रयोग बंद किया जाता है और कार्बनिक खादों का प्रयोग शुरू किया जाता है। आज भारत में जैविक खाद्य उत्पादों का कारोबार तेजी से गति पकड़ रहा है और इनकी बेहद डिमांड है।
कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

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अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

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खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

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अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

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बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

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खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग

जैविक खेती में किसानों का ज्यादा रुझान : गोबर की भी होगी बुकिंग

जैविक खेती में किसानों के ज्यादा रुझान के कारण गोबर की भी होगी बुकिंग

अब ज्यादातर किसान रसायनिक खेती को छोड़ कर
जैविक खेती में आ रहे है. रसायनिक खादो के इस्माल से भले ही पैदावार अच्छी होती हो, परंतु इसके अधिक इस्तमाल से बीमारियां भी हो रही है. जिसके चलते किसान जैविक खेती की ओर बढ़ रहे है. खासकर माड़ चैत्र के किसान पिछले कुछ सालों से जैविक खेती करने में ज्यादा रुचि ले रहे है. सब्जी और फलों में जैविक खाद का खासकर उपयोग हो रहा है. किसानों का जैविक खेती में अधिक लाभ होने के कारण से ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक खेती में रुचि ले रहे है.

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जैविक खेती में ज्यादा किसानों के रुझान के कारण जैविक खाद की मांग बढ़ रही है. जिसके चलते गोबर की भी भारी मात्रा में बुकिंग हो रही है. बढ़ती मांग के कारण किसान गोबर का संग्रहण कर रहे है. एक ट्राली गोबर की कीमत माड़ छेत्र में 2000 से 2200 रुपए के बीच है. एक समय जहां गोबर को लोग फेक देते थे, जब से किसानों ने जैविक खेती में आना शुरू किया है तब से जैविक खाद की मांग बड़ने लगी है. जिसके चलते किसान पशुपालकों को घर बैठे ही एडवांस में बुकिंग कर लेते है. जिसके चलते अब पशुपालक गोबर से ही हजारों कमा लेते है.

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जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती से हो रही सब्जी, फलों आदि की मांग मार्केट में अधिक है क्योंकि इसमें रसायनिक चीजों का इस्तमाल नहीं होता. जिस वजह से लोग अपनी सेहत को सही रखने के लिए प्राकृतिक तरीके से उगी सब्जियों और फलों का सेवन कर अपने और अपने परिवार को सेहतमंद रखना चाहते है. बड़ी बड़ी कंपनियां जैविक खेती के उत्पादकों को किसानों से कम दाम में खरीद कर मार्केट में बड़े दामों पे बेचती है. प्रगतिशील किसान मुकेश मीना रावडताडा, शिवदयाल मीणा नांगल शेरपुर, हरकेश मीणा आमलीपुरा, आदि ने बताया कि रासायनिक तरीके से उगाए हुए चीजों के मुकाबले जैविक तरीके से होंने वाली सब्जियां, फलों, अनाज आदि का सेवन करने से लोग स्वथ रहेंगे.  
नक्सलगढ़ के हजारों किसान करने लगे जैविक खेती

नक्सलगढ़ के हजारों किसान करने लगे जैविक खेती

छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र से विख्यात बस्तर खेती-किसानी में भी काफी समृद्ध है। यहां के किसान भी देश के अन्य किसानों की तरह खेतों में रासायनिक खाद का उपयोग करते थे, लेकिन राज्य सरकार के प्रोत्साहन से अति पिछड़े नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में गिने जाने वाले बस्तर के किसान भी अब जैविक खेती कर रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप सरकार इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए २००० रुपए दे रही है। ज्ञात हो कि देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। कई राज्यों में किसान खुद से प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में भी काफी संख्या में किसान जैविक खेती करने लगे हैं। जिले में पहली बार इस तरह का प्रयोग किया गया है।


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कई राज्य जैविक खेती को दे रहे बढ़ावा

जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि फसलों में कीटनाशक का प्रयोग कितना घातक सिद्ध हो रहा है। यह लोगों में कई बीमारियों का कारण भी बन रहा है। इन सबको देखते हुए कई राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा दे रही हैं। छत्तीसगढ़ में भी प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। सूबे के कई किसान अब जैविक खेती की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। इसके तहत यहां के हजारों किसानों ने परंपरागत रसायनिक खाद वाली खेती को अलविदा कह कर जैविक खेती करने का संकल्प लिया है। बस्तर जिले में प्राकृतिक खेती को लेकर किसानों को रुझान पहली बार इतना अधिक देखने के लिए मिला है।


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अभी तक पांच हजार से अधिक किसान आए आगे

बस्तर में धान के लिए अनुकूल परिस्थितियां होने के कारण सरकार वहां के किसानों को जैविक खेती अपनाने पर ज्यादा फोकस कर रही है। और सरकार की मेहनत भी रंग लाई और जिले के ५ हजार से अधिक किसान जैविक खेती करने के लिए सामने आए हैं। यहां किसान लगभग सात हजार हेक्टेयर जमीन में जैविक खेती कर रहे हैं।

जिले का कृषि विभाग भी किसानों को कर रहा प्रोत्साहित

प्रोत्साहन हर क्षेत्र में एक कारण माध्यम साबित होता है। जब तक व्यक्ति को प्रोत्साहित न किया जाए, वह कोई भी काम को बखूबी अंजाम नहीं दे सकता है। ऐसे में जिले के किसानों को जैविक खेती की ओर प्रोत्साहित करने में, जिले के कृषि विभाग का बड़ा योगदान माना जा रहा है। विभाग किसानों को जैविक खेती करने के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहा है। इसके तहत किसानों को खेती के प्रति हेक्टेयर दो हजार रुपए देने की योजना बनाई है। किसानों को दी जाने वाली यह प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में ट्रांसफर की जा रही है। दरअसल जिले में कृषि विभाग द्वारा, राज्य में जैविक खेती मिशन के तहत किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए जागरूक किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। ट्रेनिंग के बाद किसानों का कहना है कि वो अब प्राकृतिक खेती ही करेंगे। किसानों को प्राकृतिक करने के लिए कृषि विभाग द्वारा सभी किसानों को हर संभव मदद देने का आश्वसन दिया है।


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जिले में चलाया जा रहा विशेष अभियान

बस्तर जिले में किसानों को जैविक खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए अभी भी विशेष अभियान चलाया जा रहा है। विभाग के उपसंंचालक एसएस सेवता ने कहा कि जिले भर में किसानों को जैविक खेती से जोडऩे के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है, ताकि सभी किसान जैविक खेती की ओर रुख कर सकें। उन्होंने कहा कि जल्द ही राज्य में प्राकृतिक खेती से संबंधित जानकारी दी जाएगी, शुरुआती दौर में जिले के लगभग पांच हजार किसान इस नई पहल का हिस्सा बन गए हैं। इसे प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयेर दो हजार रुपए की राशि दिए जाने की योजना बनायी गई है। जैविक खेती करने के बहुत सारे फायदे हैं. इसकी खेती से, भूमि से अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है, साथ ही जमीन की उर्वरक क्षमता भी बनी रहेगी।

खाद पर निर्भरता हो रही कम

जैविक खेती का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि किसानों को अब खाद पर निर्भर नहीं होना पड़ रहा है। सरकार द्वारा बनाए गए गौठानों से आसानी से किसानों को खाद उपलब्ध हो जा रही है। वहीं वे खुद भी खाद बनाकर खेती कर पा रहे हैं। इससे उनकी लागत में कमी आ रही है और कमाई भी बढ़ रही है। बाजार में इसके अच्छे दाम भी मिलने लगे हैं।


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जैविक खेती बनी लाभ का धंधा

जैविक खेती करने के सुखद परिणाम भी किसानों ने खुद बयां किए हैं। खुद किसानों का कहना है कि कीटनाशक का लगातार उपयोग करने से उनकी जमीन की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही थी, जिससे उत्पादन भी कम घटता जा रहा था। लेकिन जब से उन्होंने जैविक खेती अपनाई है, उनकी जमीन में अचंभित करने वाले परिर्वत देखने को मिल रहे हैं। भूमि की उर्वरा शक्ति तो बढ़ी ही है, साथ ही फसल की पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिल रही है, जिस कारण उनकी आय भी एकाएक बढ़ गई है। किसानों का कहना है कि जैविक खेती उनके लिए सभी मायनों में लाभ का धंधा साबित हो रही है।
जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

किसानों ने माना खेत की मिट्टी हो रही मुलायम, बुआई और रोपाई में कम लग रही मेहनत

रायपुर। भारत सहित पूरे विश्व में जब भी खेती-किसानी की बात आती है, तो उसके साथ खाद का उपयोग भी एक बड़ी चुनौती या यूं कहें कि हर साल एक समस्या के रूप में उभरकर सामने आती है। वहीं फसल की बुआई से पहले किसानों को खाद की चिंता सताने लगती है। हर साल खाद की कालाबाजारी के भी मामले देशभर में सामने आते रहते हैं। दूसरी ओर किसान भी यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें खाद की उचित मात्रा में आपूर्ति नहीं की जाती, जिस कारण सोसायटियों में हमेशा खाद की किल्लत बनी रहती है। ऐसे में हर साल एक बड़ा रकबा खाद की कमी से कम पैदावार कर पाता है। वहीं अब इस समस्या को दूर करने के लिए कई राज्य जैविक खाद को अपनाने लगे हैं। ऐसे में
छत्तीसगढ़ के किसान जैविक खाद का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और फसल की पैदावार बढ़ा कर अपने को और स्वाबलंबी बना रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से खेत की मिट्टी मुलायम हो रही है। इस खरीफ सीजन में खेत की जुताई और धान की रोपाई में किसानों को काफी आसानी हुई है।

छत्तीसगढ़ मेें जैविक खाद लेना अनिवार्य किया

जहां एक ओर कीटनाशक के प्रयोग से फसल जहरीली हो रही है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कमजोर हो रही है, ऐसे में छत्तसीगढ़ सरकार जैविक खाद का उपयोग करने किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार का मानना है जैविक खाद के प्रयोग से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ेगी ही, दूसरी ओर रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से इसकी कालाबाजारी कम होगी और हर साल किसानों को होने वाली खाद की किल्लत से किसानों को छुटकारा मिल जाएगा। इसी के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को जैविक खाद लेना अनिवार्य कर दिया है।


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जैविक खाद के फायदे

छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जैविक खाद का उपयोग हर मामले में किसानों के लिए लाभदायक साबित होगा। इससे किसानों को घंटों सोसायटियों में खाद के लाइन लगाने से जहां छुटकारा मिलेगा और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में मदद मिलेगी। वहीं जैविक खाद के उपयोग कें कई फायदे भी हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार होता है व उर्वरक क्षमता बढ़ती है। वहीं रासायनिक खाद के उपयोग से मिट्टी में जो सूक्ष्म जीव होते हैं उनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस कारण हर साल किसानों को फसल का नुकसान होता है। जैविक खाद के उपयोग से उन सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है और वे फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। वहीें जैविक खाद का उपयोग मिट्टी की संरचना में सुधार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अपना सकती है, जिससे पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। वहीं इसके उपयोग से मृदा अपरदन कम होता है। मिट्टी में तापमान व नमी बनी रहती है।

जैविक खाद के उपयोग से मुलायम हो रही मिट्टी



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वहीं वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई के समय छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से उनकी जमीन कह मिट्टी मुलायम हुई है। इस कारण इस साल उन्हें जुताई और रोपाई करने में काफी मदद मिली। फसल लगाने में हर बार उन्हें जो महनत करनी पड़ती थी वह इस बार काफी कम हुई, जिससे उनके समय और पैसे दोनों की बचत हुई है।

गौठानों में बनाई जा रही कंपोस्ट खाद

छत्तीसगढ़ में धान की खेती व्यापक रुप से की जाती है। यही कारण है कि इसे धान का कटोरा कहा जाता है। जब खेती व्यापक होगी तो खाद की जरूरत ज्यादा होगी। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जैविक खाद की आपूर्ति करने में गौठान एक महत्वपूर्ण भूका निभा रहे हैं।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने गांव-गांव में पशुओं का रखने के लिए गौठान बनाने योजना शुरू की थी, जिसके तहत प्रदेश के लाखों पशुओं को एक ठिकाना मिला। वहीं दूसरी गौठानों में अजीविका के कई कार्य भी शुरु किए गए, जिसमें कंपोस्ट खाद निर्माण में इन गौठानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और किसानों को खाद की किल्लत से राहत पहुंचाई।

ऐसे में बनाई जाती है जैविक खाद

जैविक खाद बनाना काफी आसान है। यही कारण है कि आज किसान जैविक खाद खेत या अपने घर पर ही तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों में इस खाद को तैयार किया जाता है। इसको बनाने के लिए सरकार ने हर गौठान में एक टैंक बनवाया है। इसमें गोबर डालकर इसमें गोमूत्र मिलाया जाता है। इसके साथ ही इसमें सब्जियों का उपयोग भी कर सकते हैं। कही-कही इसमें गुड़ का उपयोग भी किया जा राह है। इसके बाद इसमें पिसी हुई दालों व लकड़ी का बुरादा डाल दें। आखिर में इस मिश्रण को मिट्टी में साना जाता है।


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यह जरूरी है कि खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थों की मात्रा सही हो। जैविक खाद बनाने के लिए 10 किलो गोबर,10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड, एक किलो चोकर एक किलो मिट्टी का मिश्रण तैयार करें। इन पांच तत्वों को अच्छी से मिला लें। मिश्रण में करीब दो लीटर पानी डाल दें। अब इसे 20 से २५ दिन तक ढंक कर रखें। अच्छी खाद पाने के लिए इस घोल को प्रतिदिन एक बार अवश्य मिलाएं। 20 से २५ दिन बाद ये खाद बन कर तैयार हो जाएगी। यह खाद सूक्ष्म जीवाणु से भरपूर रहेगी खेत की मिट्टी की सेहत के लिये अच्छी रहेगी।
विश्व मृदा दिवस: 5 दिसंबर को मनाया जाता है

विश्व मृदा दिवस: 5 दिसंबर को मनाया जाता है

हर साल 5 दिसंबर को 'विश्व मृदा दिवस' (World Soil Day) मनाया जाता है, इस दिन का मकसद तेजी से बढ़ती जनसंख्या के चलते समस्याओं को भी उजागर करना है। मृदा जैसा की हम जानते है, कि मिट्टी हमारा जीवन का एक विशेष अंग है। बिना इसके हम जीवित नहीं रह सकते क्योंकि जीवित रहने के लिए हम जो अनाज या और कुछ खाते हैं, वो इसी में पैदा होता है। परंतु आज के इस डिजिटल युग में ज्यादा आधुनीकरण के कारण हम इस को दूषित करते जा रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि कम होती जा रही है। विश्व मृदा दिवस का उदेश्य लोगो को मृदा के बचाव के लिए प्रेरित करना है और मृदा के उपजाऊपन में बढ़ोत्तरी करना है। भूमि की उपजाऊ शक्ति ज्यादा होगी तभी आज की बढ़ती जनसंख्या की खाने की आपूर्ति हो सकती है। भूमि को भूमि कटाव से भी बचाना और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा कर पर्यावरण को भी बचाना इसका अहम उद्देश्य है।


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इस दिन का उदेश्य किसानों को भी मृदा संरक्षण के बारे में जागरूक करना है और उनको जैविक खेती की ओर अग्रसर करना है। क्योंकि आज कल किसान अपनी भूमि में ज्यादा रासायनिक ऊर्वरक का इस्तमाल कर रहे हैं। जिस से फसल का उत्पादन तो ज्यादा होता है, लेकिन इन में केमिकल होने के कारण ये भूमि में जो किसान मित्र कीट होते हैं उन्हे मार देते हैं और भूमि की उपजाऊ शक्ति को खत्म कर देते हैं। किसानों को अपनी भूमि को उपजाऊ बनाने का लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करने की जानकारी देना मृदा दिवस का मत्वपूर्ण लक्ष्य है।

5 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है?

खबरों के मुताबिक थाईलैंड के महाराजा स्व. एच.एम भूमिबोल अदुल्यादेज ने अपने कार्यकाल में उपजाऊ मिट्टी के बचाव के लिए काफी काम किया था। उनके इसी योगदान को देखते हुए हर साल उनके जन्म दिवस के अवसर पर यानी 5 दिसंबर को विश्व मिट्टी दिवस के रूप में समर्पित करते हुए उन्हें सम्मानित किया गया। इसके बाद से हर साल 5 दिसंबर को मिट्टी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=JeQ8zGkrOCI[/embed]
पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप सिंह ने भारत में नवाचार डेयरी किसान के टूर पर मिसाल कायम कर रहे हैं। गगनदीप का 150 गाय के डेयरी फार्म (Dairy farm) सहित बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) भी है, जिसके जरिये वह अपने गांव की प्रत्येक आवश्यकता को पूर्ण कर रहे हैं, प्रतिदिन भारत से एक नवीन हुनर सामने आता दिख रहा है। सर्वाधिक नवाचार कृषि जगत में देखने को मिल रही है। एक इनोवेटिव आइडिया किसानों के साथ-साथ पूरे गांव के हालात परिवर्तित कर देते है। 

वर्तमान दौर में हमारे मध्य ऐसे बहुत से किसान उपलब्ध हैं, जो खुद के इनोवेटिव आइडिया की वजह से स्वयं तो आत्मनिर्भर हुए ही हैं साथ ही अपने पूरे गांव एवं किसानों के प्रति सामाजिक दायित्व को निभाते हुए बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। इसमें सबसे विशेष जो बात है वह ये कि गगनदीप का Innovation पर्यावरण सुरक्षित रखने में बेहद सहायक साबित हो रहा है।

इस लेख में हम आगे गगनदीप के सराहनीय Innovative Idea के बारे में और गगनदीप के बारे में जानेंगे जिसने गाँव की तकदीर ही बदल दी। बतादें कि गगनदीप सिंह के डेयरी फार्म में लगभग 150 गौवंश मौजूद है। इन गौवंशों से ना केवल दूध उत्पादन लिया जा रहा है, जबकि गाय के गोबर द्वारा उत्तम मुनाफा कमा रहा है। गगनदीप सिंह ने डेयरी फार्म के सहित एक बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है, जिसमें गाय के गोबर के एकत्रित करके बायोगैस एवं जैविक खाद निर्मित की जा रही है। 

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) द्वारा उत्पन्न गैस के माध्यम से आज पूरा गांव अपना चूल्हा चला रहा है। दूसरी तरफ अतिरिक्त बचे गोबर के अवशेष द्वारा जैविक खाद तैयार कर किसानों को उपलब्ध किया जा रहा है। गगनदीप द्वारा Innovative Idea का यह प्रभाव है, कि वर्तमान में गांव के किसी भी घर में रसोई गैस का सिंलेंडर नहीं है। गाँव के लोग बायोगैस प्लांट द्वारा उत्पन्न गैस से मुफ्त में भोजन बनाते हैं। 

पूरा गाँव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

गोबर को धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सोना कहा जाता है। इसके द्वारा ना केवल मृदा की उर्वरक शक्ति बढ़ रही है, साथ ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी यह काफी सुरक्षित है। पंजाब राज्य के रूपनगर निवासी गगनदीप सिंह द्वारा इसी गोबर का उचित प्रयोग करके पूरे गांव को समृद्ध एवं सुखी बना दिया है। आपको जानकारी हेतु बतादें कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं 150 गाय के डेयरी फार्म सहित 140 क्यूबिक मीटर का भूमिगत बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) निर्मित किए हैं, जहां से एक पाइपलाइन को भी निकाल दिया गया है। इस ​पाइपलाइन द्वारा गांव के प्रत्येक व्यक्ति को बायोगैस का कनेक्शन दे दिया गया है। वर्तमान में इस पाइपलाइन कनेक्शन के माध्यम से प्रत्येक रसोई को 6 से 7 घंटे प्रतिदिन खाना निर्मित करने हेतु बायोगैस उपलब्ध करायी जाती है।

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इस गैस को पूर्णतयः निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है, इससे गांव के प्रत्येक घर में सिलेंडर का 800 से 1000 रुपये का व्यय खत्म हो गया है। कोरोना महामारी के मध्य, जब भारत में रसोई गैस की आपूर्ति हेतु काफी दिक्कत हो रही थी, उस समय गगनदीप के गांव का प्रत्येक चूल्हा बिना किसी दिक्कत के प्रज्वलित हो रहा था। 

किसानों को भी हो रहा है फायदा

जानकारी हेतु बतादें, कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं के डेयरी फार्म के नीचे भूमिगत नालियां स्थापित की हैं, जिनके माध्यम से गाय के गोबर तथा गौमूत्र को पानी सहित बायोगैस प्लांट में पहुँचाया जाता है। बायोगैस प्लांट में स्वचालित तरीके से कार्य होता रहता है। प्लांट के ऊपरी स्तर से निकलने वाली गैस को रसोईयों में भेजा जाता है। शेष बचा हुआ गोबर एवं अवशेष (स्लरी) गड्ढों में जमा हो जाता है।

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यह स्लरी किसानों के लिए बेची जाती है, इससे किसान जैविक खाद निर्मित कर खेती में उपयोग करते हैं। पहले किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों हेतु जो व्यय किया जाता था, इस खाद की वजह से उस समस्त खर्च की बचाया जा रहा है। इसकी वजह से किसान पर्यावरण के संरक्षण के लिए जैविक खेती की तरफ अग्रसर होने की प्रेरणा मिली है। 

बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए सरकार दे रही अनुदान

वर्तमान भारत में 53 करोड़ से अधिक पशुधन हैं, जिनसे प्रतिदिन 1 करोड़ टन गोबर मिलती है। अगर किसान एवं पशुपालक इसी गोबर का समुचित उपयोग किया जाए तो अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। आपको बतादें कि गोबर की शक्ति का सबसे ज्यादा फायदा यह है, कि वर्तमान में सरकार भी बड़े बायोगैस प्लांट स्थापित करने हेतु सब्सिडी प्रदान करती है। ऐसे गोबर गैस प्लांट में 55 से 75 प्रतिशत मीथेन का उत्सर्जन विघमान होता है, जिसका उपयोग भोजन निर्मित करने से लेके गाड़ी चलाने हेतु भी किया जाता है।

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

इफको (IFFCO) कंपनी द्वारा निर्मित इस जैव उर्वरक से किसान फसल की गुणवत्ता व पैदावार दोनों बढ़ा सकते हैं

भारत के दक्षिणी-पूर्वी समुद्री तटों में उगने वाले लाल-भूरे रंग के शैवाल भी फसल की गुणवत्ता के साथ पैदावार में बढ़ोत्तरी हेतु भी काफी सहायक साबित होते हैं। इफको (IFFCO) द्वारा इस समुद्री शैवाल के प्रयोग से जैव उर्वरक भी निर्मित किया जाता है। कृषि क्षेत्र को और ज्यादा सुविधाजनक बनाने हेतु केंद्र व राज्य सरकारें एवं वैज्ञानिक निरंतर नवीन प्रयोग करने में प्रयासरत रहते हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के साथ मशीनों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इनका उपयोग करने के लिए कृषकों को अधिक खर्च वहन ना करना पड़े। इस वजह से बहुत सारी योजनाएं भी लागू की गयी हैं और आज भी बनाई जा रही हैं। इन समस्त प्रयासों का एकमात्र लक्ष्य फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार में बेहतरीन करना है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए फसलीय पैदावार अच्छी दिलाने में जैविक खाद व उर्वरक स्थायी साधन की भूमिका निभा रहे हैं। जैविक खाद तैयार करना कोई कठिन कार्य नहीं है। किसान अपनी जरूरत के हिसाब से अपने गांव में ही जैविक खाद निर्मित कर सकते हैं। परंतु, मृदा का स्वास्थ्य एवं फसल के समुचित विकास हेतु कुछ पोषक तत्वों की भी आवश्यकता पड़ती है, जिसको उर्वरकों के उपयोग से पूर्ण किया जाता है। वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या यह है, कि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मृदा की शक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए ही जैव उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ाने और उपयोग में लाने की राय दी जाती है। समुद्री शैवाल जैव उर्वरक का अच्छा खासा स्त्रोत माना जाता है। जी हां, भारत में नैनो यूरिया (Nano Urea) एवं नैनो डीएपी (Nano DAP) को लॉन्च करने वाली कंपनी इफको ने समुद्री शैवाल के प्रयोग से बेहतरीन जैव उर्वरक (Bio Fertilizer) निर्मित किया है। जो कि फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार को अच्छा करने में काफी सहायक माना जा रहा है।

इफको (IFFCO) 'सागरिका' को किस तरह से तैयार करता है

देश के दक्षिण-पूर्वी तटों से सटे समुद्र में उत्पन्न होने वाले लाल-भूरे रंग के शैवालों के माध्यम से इफको ने 'सागरिका' उत्पाद निर्मित किया है। इसकी सहायता से पौधों की उन्नति व विकास के साथ-साथ फसलीय उत्पादन की बढ़ोत्तरी में काफी सहायता प्राप्त होती है। इफको वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के मुताबिक, इफको के सागरिका उत्पाद में 28% कार्बोहाइड्रेट, प्राकृतिक हार्मोन, समुद्री शैवाल, प्रोटीन सहित विटामिन जैसे कई सारे पोषक तत्व उपलब्ध हैं। 

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'सागरिका' से क्या क्या लाभ होते हैं

इफको की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, समुद्री शैवाल से निर्मित सागरिका का विशेष ध्यान फसल की गुणवत्ता में बेहतरी लाना है। इसकी सहायता से फल एवं फूल का आकार बढ़ाने, प्रतिकूल परिस्थितियों में फसल का संरक्षण, मृदा की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने एवं पौधों की उन्नति व विकास हेतु आंतरिक क्रियाओं को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है। किसान इसका जरूरत के हिसाब से फल, फूल, सब्जियों, अनाज, दलहन, तिलहन की फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं।

सागरिका जैविक खेती हेतु काफी लाभदायक होता है

बहुत सारे किसान वर्षों से रसायनिक कृषि करते आ रहे हैं। इसलिए वह एकदम से ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming)की दिशा में बढ़ने से घबराते हैं। क्योंकि किसानों को फसलीय उत्पादन में घटोत्तरी का काफी भय रहता है। इस प्रकार की स्थिति में इफको सागरिका किसानों के लिए काफी हद तक सहायक भूमिका निभा सकता है। यह एक रसायन रहित उर्वरक व पोषक उत्पाद है, जो कि फसल को बिना नुकसान पहुंचाए उत्पादन को बढ़ाने में कारगर साबित होता है। किसान हर प्रकार की फसल पर इफको सागरिका का दो बार छिड़काव कर सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 30 दिन के अंतर्गत सागरिका का छिड़काव करने से बेहतर नतीजे देखने को मिलते हैं। यह तकरीबन 500 से 600 रुपये प्रति लीटर के भाव पर विक्रय की जाती है। किसान एक लीटर सागरिका का पानी में मिश्रण कर एक एकड़ फसल पर छिड़काव किया जा सकता है।