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आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार

आम जिसे हम फलों का राजा कहते है,  इसके लजीज स्वाद और रस के हम सभी दीवाने है। गर्मियों के मौसम में आम का रस देखते ही मुंह में पानी आने लगता है। 

आम ना केवल अपने स्वाद के लिए सबका पसंदीदा होता है बल्कि यह हमारे  स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। आम के अंदर बहुत सारे विटामिन होते है जो हमारी त्वचा की चमक को बनाए रखती है। 

हां आपको मार्च में आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने और आम के पेड़ के रोगों के उपचार की जानकारी दी जा रही है।

आम की उपज वाले राज्य और इसकी किस्में [Mango growing states in India and its varieties]

भारत में सबसे ज्यादा आम कन्याकुमारी में लगते है। आम के पेड़ो की अगर हम लंबाई की बात करे तो यह तकरीबन 40 फुट तक होती है। वर्ष 1498 मे केरल में पुर्तगाली लोग मसाला को अपने देश ले जाते थे वही से वे आम भी ले गए। 

भारत में लोकप्रिय आम की किस्में दशहरी , लगड़ा , चौसा, केसर बादमि, तोतापुरी, हीमसागर है। वही हापुस, अल्फांसो आम अपनी मिठास और स्वाद के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी काफी डिमांड में रहता है।

 

आम के उपयोग और फायदे [Uses and benefits of mango]

आम का आप जूस बना सकते है, आम का रस निकल सकते है और साथ ही साथ कच्चे आम जिसे हम कैरी बोलते है उसका अचार भी बना सकते है। 

आम ना केवल हमारे देश में प्रसिद्ध है बल्कि दुनिया के कई मशहूर देशों में भी इसकी मांग बहुत ज्यादा रहती है। आम कैंसर जैसे रोगों से बचने के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता है। 

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आम के पौधों को लगाने के लिए सबसे पहले आप गड्ढों की तैयारी इस प्रकार करें [Mango Tree Planting Method]

आम के पेड़ों को लगाने के लिए भारत में सबसे अच्छा समय बारिश यानी कि बसंत रितु को माना गया है। भारत के कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर बहुत ज्यादा वर्षा होती हैं ऐसे में जब वर्षा कम हो उस समय आप आम के पेड़ों को लगाएं। 

क्योंकि शुरुआती दौर में आम के पौधों को ज्यादा पानी देने पर वो सड़ने लग जाते है। इसके कारण कई सारी बीमारियां लगने का डर भी रहता है। 

आम के पेड़ों को लगाने के लिए आप लगभग 70 सेंटीमीटर गहरा और चौड़ा गड्ढा खोल दें और उसके अंदर सड़ा हुआ गोबर और खाद डालकर मिट्टी को अच्छी तरह तैयार कर दीजिए। 

इसके बाद आप आम के बीजों को 1 महीने के बाद उस गड्ढे के अंदर बुवाई कर दीजिए। प्रतीक आम के पेड़ के बीच 10 से 15 मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पेड़ आपस में ना टकराए।

आम के पौधों की अच्छे से सिंचाई किस प्रकार करें [How to irrigate mango plants properly?]

आम के पेड़ों को बहुत लंबे समय तक काफी ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। एक बार जब आम के बीज गड्ढों में से अंकुरित होकर पौधे के रूप में विकसित होने लगे तब आप नियमित रूप से पौधों की सिंचाई जरूर करें। 

आम के पेड़ों की सिंचाई तीन चरणों में होती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई फल लगने तक की जाती है और उसके बाद दूसरी सिंचाई में फलों की कांच की गोली के बराबर अवस्था में अच्छी रूप से की जाती हैं। 

 जब एक बार फल पूर्ण रूप से विकसित होकर पकने की अवस्था में आ जाते हैं तब तीसरे चरण की सिंचाई की जाती हैं। सबसे पहले चरण की सिंचाई में ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं 

आम के पौधों को। सबसे अंतिम चरण यानी तीसरे चरण में आम के पेड़ों को इतनी ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती हैं। आम के पेड़ों की सिंचाई करने के लिए थाला विधि सबसे अच्छी मानी जाती हैं इसमें आप हर पेड़ के नीचे नाली भला कर एक साथ सभी पेड़ों को धीरे-धीरे पानी देवे। 

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आम के पौधों के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल इस प्रकार करें [How to use manure and fertilizer for mango plants?]

आम के पेड़ को पूर्ण रूप से विकसित होने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटेशियम की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती हैं। 

ऐसे में आप प्रतिवर्ष आम के पौधों को इन सभी खाद और उर्वरकों की पूर्ण मात्रा में खुराक देवे। यदि आप आम के पौधों में जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है तो 40kg सड़ा हुआ गोबर का खाद जरूर देवे। 

इस प्रकार की खाद और सड़ा गोबर डालने से प्रतिवर्ष आम के फलों की पैदावार बढ़ जाती हैं।इसी के साथ साथ अन्य बीमारियां और कीड़े मकोड़ों से भी आम के पौधों का बचाव होता है।

आप नाइट्रोजन पोटाश और फास्फोरस को पौधों में डालने के लिए नालियों का ही इस्तेमाल करें। प्रतिमाह कम से कम तीन से चार बार आम के पौधों को खाद और उर्वरक देना चाहिए इससे उनकी वृद्धि तेजी से होने लगती हैं।

आम के फूल व फलन को झड़ने से रोकने के लिए इन उपायों का इस्तेमाल करें [Remedies to stop the fall of mango blossom flowers & raw fruits]

आम के फलों का झड़ना कई सारे किसानों के लिए बहुत सारी परेशानियां खड़ी कर देता है। सबसे पहले जान लेते हैं ऐसा क्यों होता है ऐसा अधिक गर्मी और तेज गर्म हवाओं के चलने के कारण होता है। 

ऐसे में आप यह सावधानी रखें कि आम के पेड़ों को सीधी गर्म हवा से बचाया जा सके। सबसे ज्यादा आम के पेड़ों के फलों का झड़न मई महीने में होता है। इस समय ज्यादा फलों के गिरने के कारण बागवानों और किसानों को सबसे ज्यादा हानि होती हैं। 

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप नियमित रूप से सिंचाई कर सकते हैं। नियमित रूप से सिंचाई करने से आम के पौधों को समय-समय पर पानी की खुराक मिलती रहती हैं इससे फल झड़ने की समस्या को कुछ हद तक रोका जा सकता है। 

आम के फलों के झड़ने का दूसरा कारण यह भी होता है कि आम के पौधों को सही रूप में पोषक तत्व नही मिले हो। इसके लिए आप समय-समय पर जरूरतमंद पोषक तत्व की खुराक पौधों में डालें। 

इसके अलावा आप इन हारमोंस जैसे कि ए एन ए 242 btd5 जी आदि का छिड़काव करके फलों के झाड़न को रोक सकते हैं। आम के पौधों को समय समय पर खाद और उर्वरक केकरा देते रहें इससे पौधा अच्छे से विकसित होता है और अन्य बीमारियों से सुरक्षित भी रहता है।

आम के पौधों में लगने वाले रोगों से इस प्रकार बचाव करें [How to prevent and cure diseases in mango plants]

जिस प्रकार आम हमें खाने में स्वादिष्ट लगते हैं उसी प्रकार कीड़ों मकोड़ों को भी बहुत ज्यादा पसंद आते हैं। ऐसे में इन कीड़ों मकोड़ों की वजह से कई सारी बीमारियां आम के पेड़ों को लग जाती हैं और पूरी फसल नष्ट हो जाती है। 

आम के पेड़ों में सबसे ज्यादा लगने वाला रोग दहिया रोग होता है इससे बचाव के लिए आप घुलनशील गंधक को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव अवश्य करें। इससे आम के पेड़ों में लगने वाला दहिया रोग मात्र 1 से 2 सप्ताह में पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। 

इस घोल का छिड़काव आप प्रति सप्ताह दो से तीन बार अवश्य करें। छिड़कावकरते समय यह ध्यान अवसय रखे की ज्यादा मात्रा में घोल को आम के पेड़ों को ना दिया जाए वरना वो मुरझाकर नष्टभी हो सकते है। 

इसके अलावा दूसरा जो रोग आम के पेड़ में लगता है वह होता है कोयलिया रोग। से बचाव के लिए आप el-200 पीपी और 900 मिलीलीटर की मात्रा में घोल बनाकर सप्ताह में तीन से चार बार छिड़काव करें। 

इसका छिड़काव आप 20 20 दिन के अंतराल में जरूर करें और इसका ज्यादा छिड़काव करने से बचें। उपरोक्त उपायों से आप आम के फूल व फलन को गिरने से रोकने में काफी हद तक कामयाब हो सकते हैं ।

25 HP में स्वराज 724 एक्सएम ऑर्चर्ड ट्रैक्टर की क्या-क्या विशेषताऐं हैं ?

25 HP में स्वराज 724 एक्सएम ऑर्चर्ड ट्रैक्टर की क्या-क्या विशेषताऐं हैं ?

ट्रैक्टर किसानों की आन, बान और शान होते हैं। ट्रैक्टर को किसानों का मित्र कहा जाता है। ट्रैक्टर की कृषि क्षेत्र में एक अहम भूमिका होती है। यदि आप एक किसान हैं और छोटी खेती के लिए शक्तिशाली ट्रैक्टर खरीदने का विचार कर रहे हैं। ऐसे में आपके लिए Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर एक शानदार विकल्प हो सकता है। कंपनी का यह ट्रैक्टर बागवानी करने वाले कृषकों के लिए बेहद शानदार विकल्प बन कर सामने आ रहा है। इस स्वराज ट्रैक्टर में आपको 1800 आरपीएम के साथ 25 HP पावर उत्पन्न करने वाला 1824 सीसी इंजन दिया जाता है। भारतीय कृषकों की प्रथम पंसद स्वराज ट्रैक्टर बन गए हैं। स्वराज कंपनी के ट्रैक्टर शक्तिशाली इंजन वाले होते हैं, जो कि खेतीबाड़ी के समस्त कार्यों को सुगमता से पूर्ण करते हैं।

स्वराज 724 एक्स एम ऑर्चर्ड की क्या-क्या विशेषताऐं हैं ?

Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर में आपको 1824 सीसी क्षमता वाला 2 सिलेंडर में Water Cooled with No loss tank इंजन प्रदान किया जाता है, जो 25 HP पावर उत्पन्न करता है। कंपनी का यह मिनी ट्रैक्टर Dry type, Dual element with dust unloader एयर फिल्टर के साथ दिया जाता है। इस के इंजन से 21.1 HP अधिकतम पीटीओ पावर पैदा होती है और इसमें आपको 1800 RPM उत्पन्न करने वाला इंजन भी दिया जाता है। कंपनी का यह स्मॉल ट्रैक्टर 60 लीटर क्षमता वाले ईंधन टैंक के सहित आता है। Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर की भार उठाने की क्षमता 1000 किलोग्राम निर्धारित की गई है और यह ट्रैक्टर 1430 किलोग्राम के कुल भार के साथ आता है। इस Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर को 2850 MM लंबाई और 1320 MM चौड़ाई के साथ 1545 MM व्हीलबेस में बनाया गया है। कंपनी का यह छोटा ट्रैक्टर 235 MM ग्राउंड क्लीयरेंस के साथ आता है।

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स्वराज 724 एक्स एम ऑर्चर्ड के फीचर्स क्या-क्या हैं ?

Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर में आपको Standard Mechanical with Heavy Duty single drop arm स्टीयरिंग प्रदान किया जाता है। कंपनी का यह मिनी ट्रैक्टर 6 Forward + 2 Reverse गियर वाले गियरबॉक्स के साथ आता है। स्वराज का यह मिनी ट्रैक्टर Single Dry Plate (Diaphragm type) क्लच के साथ आता है। इस कॉम्पैक्ट ट्रैक्टर की 2.3 से 24.2 kmph फॉरवर्ड स्पीड और 2.29 से 9.00 kmph रिवर्स स्पीड निर्धारित की गई है। स्वराज कंपनी के इस ट्रैक्टर में Oil Immersed ब्रेक्स प्रदान किए गए हैं। यह ट्रैक्टर 21 Spline पावर टेकऑफ के साथ आता है, जो 1000 आरपीएम जनरेट करता है। स्वराज 724 एक्स एम ऑर्चर्ड ट्रैक्टर 2WD ड्राइव में आता है, इसमें 5 x 15 फ्रंट टायर और 11.2 x 24 रियर टायर प्रदान किए गए हैं।

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स्वराज 724 एक्स एम ऑर्चर्ड की कितनी कीमत है ?

भारत में Swaraj 724 XM ORCHARD ट्रैक्टर की एक्स शोरूम कीमत 4.70 लाख से 5.05 लाख रुपये निर्धारित की गई है। इस 724 एक्स एम ऑर्चर्ड ट्रैक्टर की ऑन रोड कीमत समस्त राज्यों में आरटीओ रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स की वजह से अलग हो सकती है। कंपनी अपने इस Swaraj 724 XM ORCHARD Tractor के साथ 2 साल तक की वारंटी देती है।

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर की विशेषताएँ, फीचर्स और कीमत

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर की विशेषताएँ, फीचर्स और कीमत

फोर्स कंपनी भारतीय कृषि क्षेत्र में अपने शानदार प्रदर्शन वाले ट्रैक्टर निर्मित करने के लिए मशहूर है। फोर्स ट्रैक्टर एक शक्तिशाली इंजन के साथ आते हैं, जो खेती सहित समस्त व्यावसायिक कार्यों को सुगमता से पूर्ण कर सकते हैं। यदि आप भी खेती के लिए शक्तिशाली ट्रैक्टर खरीदने का विचार बना रहे हैं, तो आपके लिए फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force Orchard Mini Tractor) एक बेहतरीन विकल्प सिद्ध हो सकता है। कंपनी का यह मिनी ट्रैक्टर कॉम्पैक्ट साइज का होकर भी ज्यादा भार उठा सकता है। इस फोर्स ट्रैक्टर में आपको 2200 आरपीएम के साथ 27 HP शक्ति उत्पन्न करने वाला 1947 सीसी इंजन आता है।

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी की क्या-क्या विशेषताऐं हैं ? 

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force ORCHARD Mini Tractor) में आपको 1947 सीसी क्षमता वाला 3 सिलेंडर में Water Cooled इंजन दिया जाता है, जो 27 HP पावर उत्पन्न करता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर में Dry Air Cleaner एयर फिल्टर दिया गया है। इस फोर्स मिनी ट्रैक्टर की अधिकतम पीटीओ पावर 23.2 एचपी है और इसके इंजन से 2200 आरपीएम उत्पन्न होता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर में 29 लीटर क्षमता वाला ईंधन टैंक दिया गया है। फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force Orchard Mini Tractor) की भार उठाने की क्षमता 950 किलोग्राम है और इसका समकुल भार 1395 किलोग्राम है। कंपनी ने अपने इस ट्रैक्टर को 2840 MM लंबाई और 1150 MM चौड़ाई के साथ 1590 MM व्हीलबेस में तैयार किया है। इस फोर्स ट्रैक्टर का 235 MM ग्राउंड क्लीयरेंस निर्धारित किया गया है।

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी के क्या-क्या फीचर्स हैं ?

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force Orchard Mini Tractor) में आपको Single Drop Arm Mechanical स्टीयरिंग देखने को मिल जाता है, जो खेतीबाड़ी के कार्यों में आरामदायक ड्राइव प्रदान करता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर में 8 Forward + 4 Reverse गियर वाला गियरबॉक्स प्रदान किया गया है। इस फोर्स ट्रैक्टर में Dry, dual clutch Plate दिया गया है और इसमें Easy shift Constant mesh टाइप ट्रांसमिशन आता है। कंपनी के इस ट्रैक्टर में आपको Fully Oil Immersed Multiplate Sealed Disc ब्रेक्स प्रदान किए गए हैं। फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर में 2WD ड्राइव आता है, इसमें आपको 5.00 x 15 फ्रंट टायर और 8.3 x 24 रियर टायर देखने को मिल जाते हैं। कंपनी के इस मिनी ट्रैक्टर में Multi Speed PTO टाइप पावर टेकऑफ आती है, जो 540 / 1000 आरपीएम उत्पन्न करती है। 

फोर्स ऑर्चर्ड मिनी की कितनी कीमत है ?

भारत में फोर्स कंपनी ने फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force Orchard Mini Tractor) की एक्स शोरूम कीमत 5.00 लाख से 5.20 लाख रुपये निर्धारित की गई है। इस फोर्स मिनी ट्रैक्टर की ऑन रोड प्राइस समस्त राज्यों में लगने वाले आरटीओ रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स के चलते भिन्न हो सकती है। कंपनी अपने इस फोर्स ऑर्चर्ड मिनी ट्रैक्टर (Force Orchard Mini Tractor) के साथ 3000 घंटे या 3 साल की वारंटी प्रदान करती है। 

किसान एक बार बादाम का पेड़ लगाकर 50 सालों तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं

किसान एक बार बादाम का पेड़ लगाकर 50 सालों तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे आप बादाम की खेती करके अच्छा-खासा मुनाफा उठा सकते हैं। जानकारी के ले बतादें, कि बादाम के पेड़ की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि इसका पेड़ लगा कर आप 50 सालों तक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। क्योंकि बादाम का पेड़ तकरीबन 50 वर्षों तक फल प्रदान करता है। जैसा कि हम जानते हैं, कि ड्राई फ्रूट्स की मांग संपूर्ण विश्व में सदैव बनी रहती है। परंतु, भारत में विशेष रूप से इसकी मांग अधिक होती है। यहां ड्राई फ्रूट्स से मिठाइयां भी निर्मित होती हैं और इसका उपयोग शादी विवाह में भी होता है। अगर बादाम की बात की जाए तो जिसकी मांग ड्राई फ्रूट्स में सर्वाधिक होती है। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि बादाम का सेवन करने से दिमाग काफी तेज होता है। इस वजह से बच्चों को भी शुरुआत से ही बादाम खिलाए जाते हैं। परंतु, बादाम इतने महंगे होते हैं, कि इनको सब नहीं खा सकते। विशेष रूप से किसान वर्ग से तो ये आज भी दूर है। इसलिए हम इस लेख में आपको जानकारी देंगे की आप अपने घर में बादाम का पेड़ कैसे लगा सकते हैं।

घर पर इस तरह लगाऐं बादाम का पेड़

अगर आप गांव के निवासी हैं एवं अपने घर के बाहर अथवा फिर बगीचे में बादाम का पेड़ लगाना चाहते हैं, तो बड़ी आसानी से लगा सकते हैं। हालाँकि, आपको इसके लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना पड़ेगा। दरअसल, बादाम का पेड़ लगाने के लिए सबसे पहली बात तापमान का ध्यान रखना पड़ता है। यदि आपकी इच्छा हैं, कि आपका बादाम का पेड़ शीघ्रता से बड़ा हो जाए तो प्रयास करें कि इसके आसपास का तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस ही रहे। साथ ही, बादाम के पौधरोपण के दौरान आपको विशेष ध्यान रखना है, कि जहां आप इसको लगा रहे हो वहां की मृदा को न्यूनतम तीन से चार बार बेहतर ढंग से जोत लें। पौधा लगाने के पश्चात इसमें अत्यधिक जल ना डालें, कोशिश करें की कम से कम जल ही इसमें डाला जाए। इस बात का विशेष ख्याल रखें कि प्रारंभिक कुछ महीनों तक पौधे पर प्रत्यक्ष रूप से धूप सारे दिन ना पड़े। बतादें, कि यदि ऐसा होता है, तो पौधा मुरझा जाएगा। यह भी पढ़ें: अमेरिकन बादाम से भी महंगी हो गई है भारत की यह सब्जी जाने 1200 प्रति किलो मूल्य होने का क्या है कारण?

भारत के इन क्षेत्रों में बादाम की खेती हो रही है

बादाम सामान्यतः ठंडे प्रदेश की खेती है। भारत के उत्तराखंड, तिब्बत, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के आसपास ही प्रमुख तौर पर उत्पादित की जाती है। हालांकि, इसकी बढ़ती मांग को देखा-देखी वर्तमान में यूपी बिहार के लोग भी इसके पेड़ अपने यहां लगाने लग गए हैं।

एक बार पौधा लगा कर 50 वर्षों तक कमाइए मुनाफा?

बादाम के पेड़ की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि इसका पेड़ लगा कर आप 50 सालों तक मुनाफा उठा सकते हैं। अर्थात यह पेड़ तकरीबन 50 वर्षों तक फल देता है। बाजार में इस समय आपको अमेरिकन, मामरा और केलिफोर्निया किस्म के बादाम मिलेंगे। इनमें उत्पादन की दृष्टि से देखा जाए तो केलिफोर्निया बादाम सबसे अच्छा माना जाता है। इनके एक पेड़ से आपको कई किलोग्राम बादाम अर्जित हो जाऐंगे।

बादाम से क्या-क्या लाभ होते हैं

भारत में बादाम के गिरी को अत्यधिक पसंद किया जाता है। विशेष रूप से अत्यधिक पोषक और औषधीय गुणों की प्रचूर मात्रा होने के चलते इसकी मांग दवाइयों एवं सौंदर्य सामग्री में उपयोग के लिए भी होती है। बादाम बेकार कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक साबित होता है। इससे दिल के दौरे का जोखिम भी काफी कम होता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बादाम का सेवन करने से दिमाग भी तेज होता है। इसके साथ-साथ बादाम दांतों एवं हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायता करता है।

बादाम की खेती के दौरान ध्यान रखने योग्य अहम बातें

  • गर्मियों के दौरान हर 10 दिन में सिंचाई करनी चाहिए। वहीं, शर्दियों में 20-25 दिन में सिंचाई करनी चाहिए।
  • बादाम के पौधों को हवा से संरक्षण हेतु उसको बांस से सहारा देना चाहिए।
  • बादाम की खेती के साथ-साथ बाकी प्रकार की सब्जियों का भी उत्पादन किया जा सकता है।
  • यदि आप काफी उम्दा पैदावार चाहते हैं, इसके साथ मधुमक्खी पालन भी करें, जो आपके पौधों में परागण को बढ़ाएंगी, जिससे पैदावार बढ़ेगी।
बादाम की खेती करने से पूर्व कृषि विशेषज्ञ से अपनी-अपनी मृदा की जांच पड़ताल करवा लें एवं साथ ही जलवायु के अनुरूप ये भी पता कर लें कि किस किस्म के बादाम उगाने चाहिए। विभिन्न जलवायु के अनुरूप भिन्न-भिन्न किस्म होती हैं। गलत किस्म का चयन करने से उत्पादन प्रभावित होता है।
सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते हैं, इनसे बचाव के तरीकों के विषय में जानने के लिए आप इस लेख को अवश्य पढ़ें। सूरन की खेती भारत के काफी इलाकों में की जाती है। 

इसे खाने के साथ-साथ एक औषधीय फसल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में इसे ओल के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल से अच्छी उपज पाने के लिए पौधों का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।

सामान्यतः ऐसी फसलों में विभिन्न प्रकार के रोगों और बीमारियों के लगने का संकट रहता है। यह रोग फसल की पैदावार को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनका संरक्षण

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते है। इसके लिए फसल की समयानुसार देखभाल की जरूरत होती है। फसल की बेहतरीन उपज और बेहतर मुनाफा के लिए हमें इनको रोगों से बचाना बेहद जरूरी होता है। 

हम इस लेख के जरिए से आपको सूरन में लगने वाले रोग और उनके बचाव की प्रक्रिया के विषय में बताने जा रहे हैं।

झुलसा रोग

यह एक जीवाणु जनित रोग है। इसका आक्रमण पौधों पर सितम्बर माह के दौरान होता है। यह सूरन की पत्तियों को खा जाता है, जिससे पौधे की पत्तियों का रंग हल्का भूरा हो जाता है। 

कुछ दिन के पश्चात पत्तियां गिरने लगती हैं और पौधों की उन्नति रुक जाती है। इससे संरक्षण के लिए सूरन के पौधे पर इंडोफिल और बाविस्टीन के घोल को समुचित मात्रा मे पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

तना गलन

यह रोग जलभराव युक्त क्षेत्रों में देखा जाता है। इस तरह के रोग अत्यधिक बरसात वाले स्थानों पर होते हैं। इसके रोकथाम का सबसे बड़ा तरीका यह है, कि आप पेड़ के आस-पास जल भराव के हालात बिल्कुल ही उत्पन्न न होने दें। 

इकट्ठा होने वाला पानी पेड़ो की जड़ों में गलन पैदा करता है, जिस वजह से पौधे कमजोर होकर नीचे गिरने लगते हैं। पौधे के तने को सड़ने से बचाने के लिए इसकी जड़ों पर कैप्टन नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए। 

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तम्बाकू सुंडी

सूरन में लगने वाला यह एक कीट जनित रोग है। इस तम्बाकू सुंडी कीट का लार्वा काफी ज्यादा आक्रमक होता है। इसके लार्वा का रंग हल्का सफेद होता है। यह पौधों की पत्तियों को आहिस्ते-आहिस्ते खाकर खत्म करने लगता है। 

इन कीटों के लगने का समय जून से जुलाई माह के मध्य होता है। सूरन के पौधों पर लगने वाले इस रोग से संरक्षण हेतु मेन्कोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड एवं थायोफनेट की समुचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।

किसान सूरन का कितना उत्पादन कर सकते हैं

बतादें, कि एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 90 टन सूरन की उपज की जा सकती है। बाजार में इसकी कीमत 3000 रूपए प्रति क्विटल है। किसान भाई इसकी प्रति एकड़ में खेती कर 4 से 5 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं। 

सूरन की फसल बुआई के तकरीबन आठ से नौ माह में तैयार होती है। जब इन पौधों की पत्तियाँ सूख कर पीली पड़ने लगें तो इसकी खुदाई की जाती है। 

सूरन को जमीन से निकालने के उपरांत बेहतर ढ़ंग से मृदा तैयार कर दे और दो से चार दिन के लिए धूप में सूखा लें। धूप लगने से सूरन की जीवनावधि बढ़ जाती है। आप इसे किसी हवादार स्थान पर रख कर अगले 6 से 7 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती करने के लिए दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होती है। नींबू का उपयोग सब्जी के स्वाद को बढ़ाने, नींबू की चाय बनाने और गर्मियों में शिकंजी बनाने के लिए किया जाता है। आज हम इस लेख में आपको नींबू की विभिन्न प्रकार की किस्मों के विषय में बताने वाले हैं। नींबू की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। यह पीले रंग का बेहद ही खट्टा एवं चटपटे स्वाद का होता है। इसका उपयोग चटनी, अचार एवं शरबत आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसे औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसकी खेती के लिए कम देखभाल की आवश्यकता होती है। आज हम आपको इन विभिन्न तरह की किस्मों एवं उनसे जुड़ी विशेषताओं के संबंध में बताने जा रहे हैं।

नींबू की गोंधोराज लेबू किस्म

बतादें, कि
नींबू की इस किस्म की खेती अधिकांश बंगाल में होती है। गोंधोराज लेबू की खेती इन क्षेत्रों में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके छिलके मोटे एवं काफी मजबूत होते हैं। इसकी सुगंध बेहद अच्छी होती है। इसका उपयोग बंगाल के डाक्टर दवाइयाँ तैयार करते हैं। ये भी पढ़े: नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की नेपाली गोल किस्म

नेपाली गोल किस्म के नींबू की खेती भारत के दक्षिणी राज्यों में की जाती है। इस नींबू के अंदर बाकी नींबू की तुलना में काफी अधिक रस होता है। बतादें, कि इस प्रजाति का नाम नेपाली है। परंतु, यह दक्षिणी राज्यों में काफी ज्यादा मशहूर है।

नींबू की मौसंबी नींबू किस्म

मौसंबी नींबू आकाक मौसंबी की तरह होता है। यह सबसे सहजता से मिलने वाली किस्म है। इसे आप किसी भी फल अथवा सब्जियों की दुकान पर सहजता से खरीद सकते हैं। यह नींबू की प्रमुख किस्मों में से एक है, जो स्वाद में हल्का कड़वा एवं मीठा होता है।

नींबू की शरबती नींबू किस्म

शरबती नींबू के छिलके आकार में काफी मोटे होते हैं। साथ ही, इनका रस भी काफी मोटा होता है। इसकी खेती मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में अधिक होती है। इसका अधिकांश इस्तेमाल आचार निर्मित करने के लिए किया जाता है। ये भी पढ़े: नींबू की बढ़ती कीमत बढ़ा देगी आम लोगों की परेशानियां

नींबू की काजी नींबू किस्म

काजी नींबू असम राज्य का मशहूर नींबू है। बतादें, कि इस पौधे को तैयार होने में लगभग एक वर्ष तक का समय लग जाता है। बाकी नींबू के मुकाबले में यह काजी नींबू ज्यादा रसदार एवं ताजा होता है। बतादें, कि इसका उपयोग भी जूस एवं अचार तैयार करने में किया जाता है।
अमरूद की फसल को इन दो बिमारियों से बचाने का वैज्ञानिक तरीका

अमरूद की फसल को इन दो बिमारियों से बचाने का वैज्ञानिक तरीका

अमरूद की फसल में लगने वाले दो रोग फल मक्खी एवं मिली बक्की फसल को पूर्णतय क्षतिग्रस्त कर सकती हैं। इस पर काबू करने के लिए कृषकों को फसल चक्र में तब्दीली से लेकर विभिन्न बातों का ख्याल रखना पड़ेगा। अमरूद एक काफी लोकप्रिय फल है, भारत के अधिकांश कृषकों के द्वारा अमरूद का उत्पादन किया जाता है। यदि देखा जाए तो अमरूद के आर्थिक व्यावसायिक महत्व के कारण यहां के कृषकों की दिलचस्पी इसकी ओर काफी बढ़ रही है।  ऐसी स्थिति में आज हम कृषकों के लिए अमरूद की फसल में लगने वाली बीमारियां इसकी रोकथाम की जानकारी लेकर आए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार गोस्वामी का कहना है, कि अमरूद में सबसे बड़ी दिक्कत बरसात के फसल में फल मक्खी की होती है। इसका सबसे शानदार तरीका फसल चक्र में बदलाव अधिकांश लोग इसको बाहर नियंत्रण भी कहते हैं।

अमरूद में कितनी बार फूल फल लगते हैं

बतादें, कि अमरूद में दो बार फूल आते हैं और दो बार ही फल लगते हैं। जो बरसात की फसल होती है, उसके फूल अप्रैल माह में आते हैं। यदि किसान अप्रैल माह में उन फूलों को झड़ा दें, तो फल मक्खी पर काबू पा सकते हैं। उसके केवल दो तरीके हैं या तो उसकी प्रूनिंग कर दें अथवा फिर उसमें 10 फीसद यूरिया का घोल स्प्रे कर दें। साथ ही, यदि किसान ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो उसकी दूसरी विधि फेरोमेन ट्रैप है।

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फल मक्खी बीमारी पर इस प्रकार नियंत्रण करें 

पूसा वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार गोस्वामी ने बताया कि अमरूद में लगने वाली फल मक्खी है। उसकी रोकथाम के लिए मिथाइल यनल के ट्रैप वर्तमान में बाजार में उपलब्ध हैं। फेरोमेन ट्रैप के साथ-साथ में ये बैगिंन भी आजकल उपलब्ध हो रही हैं, जोकि एक पॉली प्रोफाइनल ट्यूब है। यदि यह भी कृषकों के पास मौजूद नहीं हैं, तो वह लिफाफे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे मिथाइल यनल ट्रैप के साथ-साथ फिरान ट्रैप के नाम से भी जाना जाता है।  इसके लिए कृषकों को एक बात का विशेष ख्याल रखना है, कि फेरोमोन ट्रैप में रखे रसायन को 15-21 दिन के समयांतराल में बदलना है। दरअसल, इसमें फेरोमेन, मिथाइल यू जनाइल एवं स्पाइनोसस का घोल होता है। इसके पश्चात आपको 30 से 45 दिन के पश्चात बैगिंग करनी है, जिससे फल बेर की आकृति का हो जाएगा। ऐसा करने से फल मक्खी के आक्रमण पर काबू देखने को मिलेगा।

अमरूद की फसल को प्रभावित करने वाली बक्की बीमारी

साथ ही, वर्तमान में अमरूद की फसल में दूसरी परेशानी भी आने लगी हैं, जो मिली बक्की है। यह एक ऐसा रोग है, जिसमें कृषकों को अमरूद के पत्तों में सफेद-सफेद बिल्कुल रुई की भांति इसमें कीड़े नजर आऐंगे। इसकोू काबू करने के लिए आप किसी भी कपड़े धोने वाले पाउडर का घोल बनाकर इसपर स्प्रे कर दें। उसके उपरांत कार्बोसल्फान का लगभग 2 ML प्रति लीटर के हिसाब से आप इस पर घोल का छिड़काव करें।