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सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो साल भर फूलता रहता है, इसलिए इसे सदाबहार के नाम से जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार की उत्पत्ति मैडागास्कर से हुई है। परंतु, यह वर्तमान में विश्व भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो कई बीमारियों के इलाज में काफी मददगार होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल कैंसर, मलेरिया और मधुमेह यानी डायबिटीज के उपचार के लिए किया जाता है।

सदाबहार पौधे से जुड़ी कुछ खास बातें

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो पूरे वर्ष फूलता रहता है। इसलिए इसे सदाबहार कहा जाता है, यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। इसके फूल गुलाबी, सफेद अथवा लाल रंग के होते हैं। साथ ही, इनके अंदर पांच पंखुड़ियां होती हैं। सदाबहार के
फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार एक लोकप्रिय पौधा होता है, जिसे सामान्यतः घरों और बगीचों में उगाया जाता है। यह एक कम रखरखाव वाला पौधा होता है, जो सूखे और छाया में अच्छी तरह से जीवित रह सकता है। इस छोटे से दिखने वाले पौधे के अंदर बहुत सारे औषधीय गुण उपलब्ध हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक हैं।

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सदाबहार के पौधों को इस प्रकार लगाऐं

सामान्य तौर पर तो सदाबहार का पौधा स्वयं से ही जहां-तहां निकल आता है। इसे लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु, हां यदि आप ये चाहते हैं, कि इसके रंग-बिरंगें फूलों का आनंद लिया जाए तो आप इसे कई गमलों में लगा सकते हैं। उसके लिए एक गमले में सूखी मिट्टी को रख लें और उसमें थोड़ा पानी डाल कर उसमें पौधरोपण करें। सदाबहार के पौधे को नियमित तौर पर पानी दें। परंतु, मिट्टी को भिगोने से बचें, सदाबहार के पौधे को प्रति वर्ष वसंत में खाद दें। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो बहुत सारी बीमारियों के उपचार में उपयोगी होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल मलेरिया, डायबिटीज और कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है।

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सदाबहार का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें

सदाबहार के फूलों का उपयोग डायबिटीज, कैंसर और मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। सदाबहार कैंसर, मलेरिया जैसी बीमारी में सहयोगी होने के साथ-साथ ये मधुमेह के उपचार में भी सहायता करता है। सदाबहार के फूलों में इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने के गुण विघमान होते हैं। हालांकि, सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर से सलाह लेनी बेहद आवश्यक है। सदाबहार के फूलों में कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि उल्टी, दस्त और सिरदर्द इस लिए इसका इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
मिठास से भरपूर आम की इस सदाबहार प्रजाति से बारह महीने फल मिलेंगे

मिठास से भरपूर आम की इस सदाबहार प्रजाति से बारह महीने फल मिलेंगे

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आप आम की थाईलैंड वैराइटी यानी कि थाई बारहमासी किस्म से किसान हर सीजन में बेहतरीन उत्पादन अर्जित कर सकते हैं। यह आम खाने में काफी मीठा होता है। आम की थाईलैंड प्रजाति से किसान वर्ष भर में तीन बार पैदावार हाँसिल कर सकते हैं। इस प्रजाति की विशेषता यह है, कि खेत में लगाने के दो वर्ष में ही फल मिलना प्रारंभ हो जाता है। फलों के राजा आम की खेती से किसान बेहतरीन आमदनी प्राप्त करते हैं। सामान्य तौर पर इसकी खेती से किसान वर्ष में एक ही बार फल अर्जित कर पाते हैं। परंतु, आज के समय में बाजार में ऐसी विभिन्न प्रकार की आम की उन्नत प्रजातियां आ गई हैं, जिनसे कृषक वर्षभर में आम की शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं। दरअसल, कुछ दिन पहले ही पंतनगर में आयोजित अखिल भारतीय किसान मेले में आम की बारहमासी किस्म की प्रदर्शनी लगाई गई। ऐसा कहा जा रहा है, कि आम की यह किस्म वर्ष में तीन बारी आम की बेहतरीन उत्पादन देने में समर्थ है। दरअसल, आज हम आम की उन किस्मों की बात कर रहे हैं, उसका नाम थाईलैंड किस्म का थाई बारहमासी मीठा आम है। इस किस्म की विशेषता यह है, कि थाई बारहमासी मीठा आम कम समयांतराल मतलब कि दो वर्षों में ही फल देना शुरू कर देता है। वहीं, यदि हम थाईलैंड किस्म के इस आम की मिठास पर ध्यान दें, तो यह अन्य आमों की तुलना में काफी मीठा होता है।

आम कितने सालों में आने शुरू हो जाऐंगे

थाईलैंड वैराइटी की थाई बारहमासी मीठा आम की यह प्रजाति यदि आप खेत में लगाते हैं। इसकी सही ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो किसान इसे लगभग दो वर्ष में ही आम के फल अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि शीघ्रता से आम देने की यह किस्म स्वास्थ्य व मिठास के संबंध में शायद खराब होगी। बतादें, कि यह किस्म स्वास्थ्य एवं मिठास दोनों के संबंध में ही अव्वल है।

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आम के फूल व फलन को मार्च में गिरने से ऐसे रोकें: आम के पेड़ के रोगों के उपचार वैज्ञानिकों के अनुसार, आम की यह किस्म विषाणु युक्त मानी गई है। इसके पेड़ में हर एक मौसम में किसी भी प्रकार के वायरस का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है। साथ ही, किसान आम की इस प्रजाति से पांच वर्ष के उपरांत तकरीबन 50 किलो तक आम की फसल अर्जित कर सकते हैं।

आम की इस किस्म को किसने विकसित किया है

मीडिया खबरों के अनुसार, आम की यह थाईलैंड किस्म बांग्लादेश के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म को भिन्न-भिन्न इलाकों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। कुछ राज्यों में थाईलैंड वैराइटी किस्म को काटी मन के नाम से भी जाना जाता है। आम की थाईलैंड किस्म की खेती पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और गुजरात के किसानों द्वारा सबसे ज्यादा की जाती है।