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IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM

पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले - तोमर भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023 पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।

IYoM 2023

गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज
बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए। आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं। पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

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अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।

बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज

ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया। तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है। जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।

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शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है। खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।

त्याज्य नहीं महत्वपूर्ण हैं मिलेट्स - तोमर

आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।” “भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”

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मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता

मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।

मध्य प्रदेश ने मारी बाजी

मिलेट से बने सर्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।

इनकी रही उपस्थिति

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया। महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं। इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। 'छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं' विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

आपने कई बार अखबारों और विज्ञापनों में पढ़ा होगा कि स्वास्थ्य के लिए बेहद सतर्क लोग कुकुरमुत्ता (कवक) यानि मशरूम (Mushroom) को निरंतर इस्तेमाल में लेते हैं। ऐसे ही अखबारों में छपी हेड-लाइन से प्रभावित होकर हरियाणा के 18 वर्षीय किसान विकास वर्मा (Vikas Verma) ने भी मशरूम की खेती करने के बारे में विचार बनाया। लेकिन शुरुआत में कृषि में काम आ रही आधुनिक विधियों का कोई ज्ञान ना होने की वजह से, पहले ही साल कम उम्र में ही विकास को 14 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। इतना बड़ा नुकसान किसी भी युवा किसान का हिम्मत तोड़ने के लिये काफी साबित होता है, लेकिन विकास वर्मा ने ऐसी परिस्थितियों में अपने खेत और मशरूम की खेती उगाने की प्रक्रिया में कुछ संस्थागत बदलाव किए और उसी की बदौलत आज वह हर साल 50 लाख रुपए तक मुनाफा कमा पा रहे हैं। विकास बताते हैं कि आज उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को, उनके गांव एवं आसपास के जिलों में कई किसान भाई सीखने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ लोग तो काफी सफल भी हो गए हैं। एक किसान परिवार में जन्मे विकास, बारहवीं कक्षा के बाद अपने दादा और पिता की तरह परंपरागत कृषि प्रणाली से उगाने वाले गेहूं, बाजरा और दूसरे धान की फसल से अलग हटकर कुछ करने की सोच रखते थे। इसी सोच पर काम करते हुए इन्होंने अपने परिवार वालों को उच्च शिक्षा छोड़कर कृषि में पूरा ध्यान लगाने की बात बताई, शुरुआत में कुछ नोकझोंक के बाद परिवार वाले विकास के समर्थन के लिए राजी हो गए।


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जब अपनी पढ़ाई के दौरान ही विकास अपने गांव से चंडीगढ़ जा रहे थे, तभी रास्ते में ही सोनीपत के एक क्षेत्र में इन्होंने मशरूम की खेती होती देखी और जब पूछताछ करने की कोशिश की तो पता चला कि वह किसान मशरूम की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा पा रहा है। लेकिन, विकास को जानकर आश्चर्य हुआ कि आखिर क्यों दूसरे कई किसान इस क्षेत्र में मशरूम नहीं ऊगा रहे हैं, जब की एक किसान इतना मुनाफा कमा पा रहा है। इस सवाल का जवाब विकास को खुद ही मिल गया जब उन्होंने पहले ही साल में परंपरागत रूप से मशरूम की खेती की और उन्हें बड़ा नुकसान झेलने को मिला। साल 2014 में राज्य सरकार के कृषि विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर, विकास भी मशरूम की खेती के उत्पादन में हाथ आजमाने की तैयारी कर चुके थे। आज विकास 'कंपनी कानून 2013' के तहत रजिस्टर्ड 'वेदांता मशरूम प्राइवेट लिमिटेड' (Vedanta Mushrooms (opc) Private Limited) नाम की एक सफल कंपनी भी चलाते है, जोकि मशरूम से तैयार होने वाले उत्पादों को सही दामों में लोगों तक पहुंचाने में सफल रही है। विकास ने बताया कि कृषि कैरियर के शुरुआती दिनों में, घर में जमा पैसों से और बैंक से लोन लेकर उन्होंने 14 लाख रुपए की राशि इकट्ठा की, इस पैसे की मदद से उन्होंने मशरूम उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग और एक यूनिट की स्थापना की, लेकिन जल्दबाजी में किए गए प्रयासों से विकास को बुरी तरह धक्का लगा। जब विकास ने अपनी खेती की विफलता के बारे में पूरा रिसर्च किया, तो पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया कंपोस्ट खाद मशरूम की खेती के लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं रहा और इसी कंपोस्ट खाद की वजह से विकास को इतना अधिक नुकसान उठाना पड़ा। जब विकास ने अपने खेत में जैसे-तैसे तैयार हुई कुछ मशरूम को बाजार में बेचने की कोशिश की, तब भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सौ रुपये प्रति किलो की मांग रखने वाले विकास को कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी ना होने की वजह से, अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल को औने पौने दामों में पचास रुपए प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा।


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अपनी गलतियों से सीख कर उन्होंने कृषि विभाग के कुछ वैज्ञानिकों की मदद ली और मशरूम की खेती से कई दूसरे प्रकार के वैल्यूएटेड उत्पाद बनाने की शुरुआत की। दूसरे सीजन के शुरुआती दिनों में विकास ने खेत से तैयार मशरूम को पहले सुखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उससे कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पेय-पदार्थ (Health drinks), बिस्कुट और पापड़ जैसे मार्केट में बिकने वाले प्रोडक्ट तैयार किए। विकास बताते है कि मशरूम से तैयार की गई हेल्थ ड्रिंक टीबी, थायराइड और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ, इसी वजह से जहां वह 100 रुपए प्रतिकिलो में मशरूम बेचने को लेकर संघर्ष कर रहे थे, वही उनके द्वारा तैयार उत्पाद एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से बिक रहे थे। इसी एक साल में विकास ने कुल 35 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। विकास ने बताया कि पहले उन्होंने पंजाब के लुधियाना शहर में कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट जोड़ा और आज वह दिल्ली में रहने वाले मशरुम प्रेमियों की मांग को भी पूरा कर रहे हैं।


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एक बार खुद को सफलता मिलने के बाद विकास ने अपने ज्ञान को दूसरे किसानों तक पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास किए। विकास वर्मा का मानना है कि आप केवल तभी विचारों से बड़े और अच्छे व्यक्ति बन सकते है, यदि आप अपने समाज के बुरे समय में भी उनके साथ खड़े रहे और उन्हें नई वैज्ञानिक विधियों से मदद करने की सोच रखें। पिछले 6 सालों में कुल 15000 से ज्यादा किसानों को मशरूम उत्पादन की नई तकनीक के माध्यम से फायदा पहुंचा चुके विकास बताते हैं कि, वर्तमान में वह कई खाद्य प्रसंस्करण संस्थाओं (Food processing organisation) में लगभग 3000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रहे है। हालांकि विकास इस दुविधा को भी समझते हैं कि उन्ही की मेहनत की बदौलत आने वाले समय में मशरूम का उत्पादन बढ़ने से किसानों को होने वाले मुनाफे में कमी आ सकती है, इसीलिए वह भारत के दूसरे राज्यों और अलग-अलग हिस्सों में मशरूम से तैयार उत्पादों के लिए नए मार्केट की खोज की शुरुआत भी कर चुके है।


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पिछले साल 2021 में ही उन्होंने अपना कस्टमर बेस बनाना भी शुरू किया है और अब स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां विकास से तैयार उत्पाद सीधे ही खरीद कर विदेशों में बेच रही है। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए विकास बताते है कि शुरुआत में उनके पास किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता नहीं थी, लेकिन फिर भी लोन लेकर उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच रखते हुए एक बार विफलता मिलने के बाद भी आज वह अपने आसपास के क्षेत्र के सबसे सफलतम किसानों में गिने जाते है।


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आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को विकास वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों की कहानी सुनकर, कृषि से जुड़ी नई तकनीकों को इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली होगी और भविष्य में आप भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान बनकर, स्वास्थ्यवर्धक लोगों की मांग को पूरा करने में अपना पर्याप्त सहयोग प्रदान करने के अलावा, अच्छा मुनाफा कमाने में भी सफल हो पाएंगे।
बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

पिछले कुछ सालों से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विभाग (MINISTRY OF FOOD PROCESSING INDUSTRIES) के द्वारा भारत के किसानों को कई सलाह दी गई है, जिससे कि इस सेक्टर को सुदृढ़ किया जा सके और प्रगति के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल की जा सके। इसी की तर्ज पर सब्जी और खाद्य उत्पादों के लिए कई बार नई एडवाइजरी भी जारी की जाती है।

बेबी कॉर्न की खेती के फायदे

मक्का या भुट्टा (Maize) की ही एक प्रजाति बेबीकॉर्न (Baby Corn) को जिसे शिशु मक्का भी कहा जाता है, को उगाकर भी भारत के किसान अच्छा खासा मुनाफा कमाने के साथ ही एक स्वादिष्ट और पोषकता युक्त उत्पाद को तैयार कर सकते है। 

बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट पोषक तत्व वाली सब्जी होती है जिसमें कार्बोहाइड्रेट,आयरन, वसा और कैल्शियम की कमी को पूरी करने की क्षमता होती है। कुछ किसान भाई घर पर ही बेबीकॉर्न की मदद से आचार,चटनी और सूप तैयार कर बाजार में भी बेचते है। 

पिछले 2 सालों में थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों ने भारत से सबसे ज्यादा बेबी कॉर्न की खरीददारी भी की है और आने वाले समय में भी इसकी डिमांड बढ़ती हुई नजर आ रही है। 

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बेबी कॉर्न की फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे भी बिल्कुल मक्का की तरह ही उगाया जाता है, परंतु साधारण मक्का की अपेक्षा 3 से 4 गुना तक अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसकी खेती का विकास बहुत तेजी से होता है।

युवा किसान बेबीकॉर्न के उत्पादन में काफी सफल साबित हुए है। बेबी कॉर्न हमारी उंगली के जैसे आकार का मक्के का एक भुट्टा होता है जिसमें 2 से 3 सेंटीमीटर सिल्क जैसे दिखाई देने वाले बाल निकले रहते है। 

भारत के खेतों में बेबी कॉर्न की लंबाई लगभग 6 से 10 सेंटीमीटर की होती है और अलग-अलग किस्म के अनुसार इसका उत्पादन कम या अधिक होता है। किसान भाई यह तो जानते ही है कि मक्का की खेती करने में बहुत समय लगता है, लेकिन बेबीकॉर्न एक अल्प अवधि वाली फसल होती है। 

इसके अलावा फसल को काटने के बाद प्राप्त हुए चारे को पशुओं के खाने में उपयोग लाया जा सकता है और उस चारे को काटने के बाद बची हुई जमीन को किसी दूसरी फसल के उत्पादन में उपयोग में लिया जा सकता है।

बेबी कॉर्न उगाने का समय

बेबी कॉर्न उत्पादन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे पूरे साल भर उगाया जा सकता है। आप इसे रबी या खरीफ दोनों ही प्रकार के मौसम में उगा सकते है और शहरी क्षेत्र के आसपास में उगाए जाने के लिए उचित जलवायु भी मिलती है। 

बेबी कॉर्न की खेती का समय अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होता है। दक्षिण भारत में तो इसे पूरे वर्ष लगाया जा सकता है, लेकिन उत्तर भारत में जलवायु की वजह से इसका उत्पादन फरवरी से नवंबर के बीच में बुवाई के बाद किया जाता है। 

इसके उत्पादन के लिए आपको नर्सरी पहले ही तैयार करनी होगी, जिसे अगस्त से नवंबर के बीच में तैयार किया जा सकता है। इस समय में तैयार की हुई नर्सरी सर्वोत्तम किस्म की होती है और उत्पादन देने में भी प्रभावी साबित होती है। 

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बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी व जलवायु

मक्का की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोग में लाई जा सकती है। लेकिन दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम मिट्टी माना जाता है, जिसमें यदि आर्गेनिक उर्वरक पहले से ही मिले हुए हो तो यह और भी अच्छी मानी जाती है। 

किसान भाइयों को अपनी मिट्टी की PH की जांच करवानी चाहिए, क्योंकि यदि आपके खेत की PH लगभग 7 के आसपास होती है तो बेबीकॉर्न उत्पादन सर्वाधिक हो सकता है। 

हल्की गर्म और नमी वाली जलवायु इस फसल के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की मदद से तैयार की हुई कुछ संकर किस्में वर्ष में तीन से चार बार उगाई जा सकती है और इन्हें ग्रीष्म काल या फिर वर्षा काल में भी उत्पादित किया जा सकता है। 

बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए खेत की तैयारी व किस्मों का चयन

बेबी कॉर्न की खेती के लिए बुवाई से 15 से 20 दिन पहले गोबर की खाद का इस्तेमाल करे और पूरे खेत में उर्वरक के रूप में बिखेर देना चाहिए। कम अवधि और मध्यम ऊंचाई वाली संकर किस्म का चयन कर जल्दी परिपक्व होने वाली फसल का उत्पादन किया जा सकता है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि संकर किस्म के चुनाव के समय, अधिक फल देने वाली किस्में और उर्वरक की अधिक खुराक के प्रति सक्रियता तथा बांझपन ना होना जैसी विशेषता वाली किस्म को ही चुनें। वर्तमान में बेबी कॉर्न की कुछ हाइब्रिड उन्नत किस्में जैसे कि HIM-123, VL-42 और VL-मक्का-16 के साथ ही, माधुरी जैसी किस्मों का ही चुनाव करना होगा। 

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बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए बीजोपचार व बीज दर

यदि आप अपने खेत में बीज को बोन से पहले उसका उपचार कर ले तो इसे कवकनाशी और कीटनाशकों से पूरी तरीके से मुक्ति मिल सकती है। बीजोपचार के दौरान दीमक से बचने के लिए फिप्रोलीन को 4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल कर अच्छे से मिलाना चाहिए। 

यदि बात करें बीज की मात्रा की तो प्रति हेक्टेयर एरिया में लगभग 30 से 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और इस बीज की बुवाई वर्ष में मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई जैसे माह में की जा सकती है। 

यदि आप दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में रहते हैं, तो बेबीकॉर्न की पंक्तियों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें और दो पौधे के बीच की दूरी लगभग 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, दूरी कम रखने का फायदा यह होता है कि बीच में जगह खाली नहीं रहती है, क्योंकि इसके पौधे आकार में बड़े नहीं होते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती में खाद अनुपात

गोबर की खाद का इस्तेमाल 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से किया जा सकता है। इसके अलावा 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दर से इस्तेमाल करने से अच्छी उपज की संभावनाएं बढ़ जाती है।

यदि आप के खेत में नाइट्रोजन की कमी है तो 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया का भी उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की खेती में खर पतवार नियंत्रण

खरपतवार को रोकने के लिए पहले दो से तीन बार खुरफी से निराई करनी चाहिए, साथ ही इस खरपतवार को हटाते समय पौधे पर हल्की हल्की मिट्टी की परत चढ़ा देनी चाहिए जिससे कि अधिक हवा चलने पर पौधे नीचे टूटकर ना गिरे। कुछ खरपतवार नाशी जैसे कि एट्रेजिन का इस्तेमाल भी बीज बोने के 2 दिन के भीतर ही करना चाहिए। 

बेबी कॉर्न सिंचाई प्रबंधन

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि बेबीकॉर्न फसल उत्पादन के दौरान जल प्रबंधन सिंचाई का भी ध्यान रखना होगा, इसीलिए पानी को मेड़ के ऊपर नहीं आने देना चाहिए और नालियों में पानी भरते समय दो तिहाई ऊंचाई तक ही पानी देना चाहिए। 

फसल की मांग के अनुसार वर्षा और मिट्टी में नमी रोकने के लिए समय-समय पर सिंचाई पर निगरानी रखनी होगी। 

यदि आप का पौधा युवावस्था में है और उसकी ऊंचाई घुटने तक आ गई है तो उसे पाले से बचाने के लिए मिट्टी को गिला रखना भी बहुत जरूरी है। 

बेबी कॉर्न कीट नियंत्रण

बेबी कॉर्न जैसी फसल में कई प्रकार के कीट लगने की संभावना होती है, इनमें तना भेदक, गुलाबी तना मक्खी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती है, इनकी रोकथाम के लिए कार्बेनिल का छिड़काव जरूर करना चाहिए। 

वैसे तो कम अवधि की फसल होने की वजह से इसमें अधिक बीमारियां नहीं लगती है फिर भी इन से बचने के लिए टिट्रीकम जैसे फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की तुड़ाई

जब बेबीकॉर्न के पौधे से रेशमी कोंपल निकलना शुरू हो जाए तो दो से तीन दिन के भीतर ही सावधानी पूर्वक हाथों से ही इसे तोड़ना चाहिए, इस प्रकार आप के खेत में तैयार बेबी कॉर्न की फसल को प्रति हेक्टेयर की दर से 4 से 5 दिन में तोड़ा जा सकता है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई Merikheti.com के माध्यम से दी गई जानकारी से पुर्णतया सन्तुष्ट होंगे और अपने खेत में कम समय में पक कर तैयार होने वाली इस फसल का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा कर पाएंगे।

गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

देश में महंगाई चरम पर है. सब्जी और दाल के साथ आटे के दाम भी आसमान छू रहे हैं. बढ़ी हुई महंगाई ने आम आदमी के बजट और जेब दोनों पर डाका डाल दिया है. इन बढ़े हुए दामों ने केंद्र सरकार को भी परेशान कर रखा है. वहीं बात महंगे गेहूं की करें तो, अब इसके दाम कम हो सकते हैं. आम जनता के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर हो सकती है. देश में कई बड़े राज्यों में गेहूं की बुवाई का काम हो चुका है. बताया जा रहा है कि इस साल बुवाई रिकॉर्ड स्तर पर की गयी है. हालांकि भारत के बड़े हिस्से में गेहूं की बुवाई की जाती है. जिसके बाद केंद्र सरकार 15 मार्च से गेहूं खरीद का काम शुरू कर देगी. इसके अलावा इसे जमीनी स्तर पर परखने के लिए खाका भी तैयार किया जा रहा है.

आटे की कीमतों पर लगेगी लगाम

हाल ही में केंद्र सरकार ने गेहूं और आटे की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए खुले बाजार में लगभग तीस लाख टन गेहूं बेचने की योजना का ऐलान किया था. बता दें ई-नीलामी के तहत बेचे जाने वाले गेहूं को उठाने और फिर उसे आटा मार्केट में लाने के बाद उसकी कीमतों में कमी आना तय है.
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जानकारी के लिए बता दें कि, OMSS  नीति के तहत केंद्र सरकार FCI को खुले बाजार में पहले निर्धारित कीमतों पर अनाज खास तौर पर चावल और गेहूं बेचने की अनुमति देती है. सरकार के ऐसा करने का लक्ष्य मांग ज्यादा होने पर आपूर्ति को बढ़ाना है और खुले बाजार मनें कीमतों को कम करना है. भारत में गेहूं की पैदावार पिछले साल यानि की 2021 से 2022 में 10 करोड़ से भी ज्यादा टन था. गेहूं की पैदावार की कमी की राज्यों में अचानक बदले मौसम, गर्मी और बारिश की वजह से हुई. जिसके बाद गेहूं और गेहूं के आटे के दामों में उछाल आ गया.
इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

पंजाब राज्य सरकार की तरफ से अंदाजा लगाया जा रहा है, कि प्रदेश में इस वर्ष विगत वर्ष के मुकाबले गेहूं की खरीद में इजाफा किया जाएगा। विगत वर्ष जहां आंकड़ा 96.47 करोड़ के करीब रहा था। इसबार वह आंकड़ा काफी ज्यादा रहेगा। भारत के बहुत सारे राज्यों में गेहूं कटाई चल रही है। किसान गेहूं को काटकर तत्काल मंडी लेकर पहुंच रहे हैं। किसान भाई सर्व प्रथम मौसम के रुझान को भांप रहा है। एक-दो दिन पूर्व आई बरसात ने गेहूं काट रहे किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। उधर, केंद्र एवं राज्य सरकार भी गेहूं खरीद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों के माध्यम से गेहूं खरीद का डाटा इकठ्ठा कर रही है। साथ ही, राज्य सरकार भी मंडी के स्तर से गेहूं के आंकड़ों की अपडेट ले रही हैं। खरीद केंद्रों पर किसानों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो सके। इसका भी विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। गेहूं खरीद को लेकर पंजाब से राहत भरा समाचार सुनने को सामने आया है। यहां गेहूं की धुआँधार खरीद होने का अंदाजा लगाया गया है। इससे यह बिल्कुल साफ है, कि किसान भी गेहूं बेचकर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।

पंजाब में इतने करोड़ टन गेहूं की खरीद होने की संभावना

पंजाब की मंडियों में भी गेहूं पहुंचाया जा रहा है। अधिकारी भी गेहूं खरीदने में पूरी तेयारी से जुटे हुए हैं। फिलहाल, पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा है, कि मौजूदा रबी सत्र में गेहूं की खरीद काफी अच्छी होने की संभावना है। खरीद का आंकड़ा 1.2 करोड़ टन पहुंचने का अंदाजा है। जबकि विगत वर्ष गेहूं खरीद 96.47 लाख टन रही थी। लगभग 24 लाख टन का इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

पंजाब में लगभग 14 लाख हेक्टेयर फसल को हुई हानि

पंजाब में मौसमिक अनियमितताओं के चलते बेमौसम हुई बारिश से तकरीबन 14 हैक्टेयर फसल पर काफी असर पड़ा है। वर्तमान में सांसद राघव चडढा की तरफ से भी प्रभावित किसानों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि राज्य में समकुल 34.90 लाख हेक्टेयर में फसल की बुआई की गई है, वहीं इसमें से 14 लाख हेक्टेयर फसल काफी प्रभावित हो चुकी है। जो कि अपने आप में एक बड़ा हिस्सा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा 47.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार की संभावना व्यक्त की गई है। इसी आधार पर आंकड़ा भी निकाला गया है।

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पंजाब के इन जनपदों को बेमौसम बारिश ने काफी प्रभावित किया है

ओलावृष्टि के साथ तीव्र हवाओं की वजह से पंजाब के मोगा, फाजिल्का, पटियाला और मुक्तसर सहित पंजाब के बहुत से अन्य इलाकों में भी गेंहू के साथ अन्य फसलें भी काफी प्रभावित हुई हैं। हालाँकि, सहूलियत की बात यह है, कि केंद्र सरकार की एजेंसियों के माध्यम से 18 फीसद तक भीगे, सिकुड़े और टूटे गेंहू के लिए छूट दे दी है। नतीजतन कृषकों को अत्यधिक हानि वहन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, किसान भाइयों की यही अरदास है, कि गेंहू विक्रय से पूर्व बारिश ना हो जाए।
गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुरूप, भारत में चावल एवं गेहूं की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। भारत में आम जनता के लिए सुखद समाचार है। किसान भाइयों के परिश्रम की बदौलत भारत ने खाद्य पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की है। पिछले 8 वर्ष के आकड़ों पर गौर फरमाएं तो गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, जो कि किसान के साथ- साथ सरकार के लिए भी एक अच्छा संकेत और हर्ष की बात है। विशेष बात यह है, कि सरकार द्वारा बाकी फसलों की खेती पर ध्यान केंद्रित किए जाने के उपरांत चावल और गेहूं की पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है।

आजादी के 75 सालों बाद भी तिलहन व दलहन पर आत्मनिर्भर नहीं भारत

व्यावसायिक मानकीकृत के अनुसार, भारत गेंहू और चावल का निर्यात करता है। विशेष रूप से भारत बासमती चावल का सर्वाधिक निर्यातक देश है। ऐसी स्थिति में सरकार चावल एवं गेंहू को लेकर बेधड़क रहती है। हालाँकि, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत भी भारत तिलहन एवं दाल के संबंध में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। मांग की आपूर्ति करने के लिए सरकार को विदेशों से दाल एवं तिलहन का आयात करने पर मजबूर रहती है। इसी वजह से दाल एवं खाद्य तेलों का भाव सदैव अधिक रहता है। इसकी वजह से सरकार पर भी हमेशा दबाव बना रहता है।

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ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार वक्त - वक्त पर किसानों को गेंहू - चावल से ज्यादा तिलहन एवं दलहन की पैदावार हेतु प्रोत्साहित करती रहती है। जिसके परिणामस्वरूप भारत को चावल और गेंहू की भांति तिलहन एवं दलहन के उत्पादन के मामले में भी आत्मनिर्भर किया जा सके।

बागवानी के उत्पादन में भी 1.5 फीसद का इजाफा

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। साल 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। इसी प्रकार फलों और सब्जियों की पैदावार में भी 1.5 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। फिलहाल, भारत में कुल खाद्य उत्पादन में फल एवं सब्जियों की भागीदारी बढ़कर 28.1% पर पहुंच चुकी है।

एक माह के अंतर्गत 11 रुपये अरहर दाल की कीमत बढ़ी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में दाल की कीमतें बिल्कुल बेलाम हो गई हैं। विगत एक माह के अंतर्गत कीमतों में 5 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दिल्ली राज्य में अरहर दाल 126 रुपये किलो हो गया है। जबकि, एक माह पूर्व इसकी कीमत 120 रुपये थी। सबसे अधिक अरहर दाल जयपुर में महंगा हुआ है। यहां पर आमजन को एक किलो दाल खरीदने के लिए 130 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही, एक माह पूर्व यह दाल 119 रुपये किलो बेची जा रही थी। मतलब कि एक माह के अंतर्गत अरहर दाल 11 रुपये महंगी हो चुकी है।
Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

बहु उपयोगी पेड़ सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि कई स्थानीय नामों से पुकारे पहचाने जाने वाले इस फलीदार वृक्ष की खासियतों के राज यदि आप जानेंगे तो आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा। किसान मित्र औषधीय एवं खाद्य उपयोगी कम लागत की इस पेड़ की खेती कर लाखों रुपए का लाभ हासिल कर सकते हैं। ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) यानी कि सहजन या मुनगा का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) है। जड़ से लेकर पत्तियों तक कई पोषक तत्वों से भरपूर इस पौधे का उपयोग रसोई से लेकर औषधीय गुणों के कारण प्रयोगशालाओं तक विस्तृत है।

उपयोग इतने सारे

सहजन या मुनगे की पत्तियों और फली की सब्जी को चाव से खाया जाता है। मुनगे की पत्तियां जल को स्वच्छ करने में भी उपयोग की जाती हैं।



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मुनगे की पहचान

एक हाथ या उससे अधिक लंबी आकार वाली मुनगे की फलियां खाद्य एवं औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। आम तौर पर बरवटी, सेम जैसी फलीदार सब्जियां बेलों पर पनपती हैं। जबकि मुनगे की फलियां वृक्ष पर लगती हैं। मुनगे के पेड़ के तने में काफी मात्रा में पानी होता है। सहजन के पेड़ की शाखाएं काफी कमजोर होती हैं। सहजन के फल-फूल-पत्तियों की बाजार में खासी डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों के क्रय एवं निर्जलीकरण के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुनगे की खेती को प्रोत्साहित करने कृषि विभाग ने पत्तियों और फलों की खरीद से जुड़ी कई प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के अधीन मुनगा पत्‍ती रोपण के बारे में किसान कल्याण मंत्री से मुनगा पत्‍ती मूल्‍य अनुबंध खेती, किसानों के लिए इसमें समाहित अनुदान, प्रावधान से संबंधित सवाल किए जा चुके हैं।



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गौरतलब है कि बैतूल जिले में वर्ष 2018-19 में मुनगा की खेती के लिए किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की गई थी। इसका लक्ष्य किसान से मुनगा पत्‍ती खरीदकर उन्हें लाभान्वित करना था। हालांकि सदन में यह भी आरोप लगा था कि, बैतूल के किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे की दर से घटिया गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए गए। यह पौधे मृत हो जाने से किसानों को लाभ के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।

कटाई का महत्व

पौधे की ऊंचाई की बात करें, तो आम तौर पर सहजन का पौधा लगभग 10 मीटर तक वृद्धि करता है। चूंकि जैसा हमने बताया कि इसके तने कमजोर होते हैं, इस कारण इस पर चढ़कर फल, पत्तियों की तुड़ाई करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए लगभग 10 से 12 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इसकी पैदावार करने वाले किसान इसकी हर साल इसकी कटाई कर डेढ़ से दो मीटर की ऊंचाई को कम कर देते हैं। इसके फल-फूल-पत्तियों की आसान तुड़ाई के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

स्टोरेज कैपिसिटी

अपनी फलियों के आकार के कारण ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) कहे जाने वाले मुनगा पेड़ में उगने वाली फलियां ड्रम (पाश्चात्य वाद्य) बजाने वाली स्टिक (डंडी/छड़ी) की तरह दिखती हैं। मुनगा की कच्ची-हरी फलियां भारतीय लोग रसम, सांबर, दाल में डालकर या सब्जी आदि बनाकर खाते हैं। लगभग एक बांह लंबी डंडी के आकार वाली सहजन या मुनगा की फलियां तुड़ाई के बाद 10 से 12 दिनों तक उचित देखरेख में घरेलू उपयोग में लाई जा सकती हैं। साथ ही सूखने के बाद भी इसकी फलियों का चूर्ण आदि कई तरह के उपयोग में लाया जाता है।



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कितने गुणों से भरपूर

सहजन की पत्तियों से लेकर फलियां, छाल, जड़ तक बहुआयामी उपयोगों से परिपूर्ण हैं। मुनगा के बीज से तेल निकालकर भी उसे खाद्य एवं औषधीय उपयोग में लाया जाता है। सहजन की कच्ची हरी पत्तियों में पोषक मूल्य की मात्रा महत्वपूर्ण होती है।

USDA Nutrient database के अनुसार

सहजन में उर्जा, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशा, वसा, प्रोटीन की मात्रा ही इसे खास बनाती है। इसमें पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व से लेकर अन्य पोषक पदार्थ बहुतायत में पाए जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में मुनगा के पेड़ प्राकृतिक रूप से स्वतः पनप जाते हैं। ड्रमस्टिक (Drumstick) एवं इसकी पत्तियां कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका के नागरिक खाने में उपयोग में लाते हैं। दक्षिण भारत के तमाम व्यंजनों में इसका अनिवार्यता से प्रयोग होता है। स्वाद की बात करें तो मुनगा का टेस्ट, मशरूम सरीखा महसूस होता है। छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है।



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सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके औषधीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि, तकरीबन तीन सैकड़ा से अधिक रोगों की रोकथाम के साथ ही इनके उपचार की ताकत मुनगा में होती है। मुनगा में मौजूद 90 से अधिक किस्मों के मल्टीविटामिन्स, कई तरह के एंटी आक्सीडेंट, दर्द निवारक गुण और कई प्रकार के एमिनो एसिड इसके प्राकृतिक महत्व को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

कम लागत, कम देखभाल, मुनाफा पर्याप्त

स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या प्राइवेट फल-पौधों की नर्सरी से सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) के उपचारित बीज एवं पौधे क्रय किए जा सकते हैं। किसान मित्र मुनगा के पुराने पौधों की फलियों को संरक्षित करके भी उसके बीजों को बोकर पौध तैयार कर सकते हैं। हालांकि नर्सरी आदि में तैयार बीज एवं पौधे ज्यादा मुनाफा प्रदान करने में सहायक होते हैं, क्योंकि इस पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही नर्सरी या शासकीय विक्रय केंद्रों से बीज एवं पौधे खरीदने पर किसानों को मुनगे की पैदावार से जुड़़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एवं सुझाव भी मुफ्त में प्राप्त होते हैं।



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बारिश अनुकूल मौसम

किसान मित्रों के लिए जुलाई-अगस्त का महीना मुनगा की खेती करने के लिए हितकारी होता है। बारिश का मौसम पौध एवं बीजारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है। आमतौर पर वर्षाकाल बागवानी के लिए सबसे मुफीद होता है क्योंकि इस दौरान किसी भी पौधे को तैयार किया जा सकता है। https://youtu.be/s5PUiHTe82Q

बीज का ऑनलाइन मार्केट

ऑनलाइन मार्केट में भी कृषि सेवा प्रदान करने वाली कई कंपनियां मुनगा के बीज एवं पौधे रियायती दर पर उपलब्ध कराने के दावे करती हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोरिंगा (सफेद) बीज के 180 ग्राम वजनी पैकेट की कीमत 2 अगस्त 2022 को सभी टैक्स सहित ₹499.00 दर्शाई जा रही थी।

सहजन के लाभ एवं नुकसान

मुनगा के अंश का सेवन करने से मानव की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें भरपूर रूप से उपलब्ध कैल्‍श‍ियम की मात्रा साइटिका, गठिया के इलाज में कारगर है। हल्का एवं सुपाच्य भोज्य होने के कारण इसका खाद्य उपयोग लि‍वर की सेहत के लिए फायदेमंद है। पेट दर्द, गैस बनना, अपच और कब्ज की बीमारी भी मुनगा के फूलों का रस या फिर इसकी फलियों की सब्जी के सेवन से काफूर हो जाती है।



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हालांकि मुनगा जहां मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी है वहीं इसके सेवन के कई नुकसान भी हो सकते हैं। मोरिंगा (सहजन) का असंतुलित सेवन शरीर में आंतरिक जलन का कारक हो सकता है। मासिक धर्म में महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए। प्रसव के फौरन बाद भी इसका सेवन वर्जित माना गया है।

मुनगा का बाजार महत्व

जैसा कि इसकी उपयोगिता से स्पष्ट है कि कच्चे फल, पत्तियों से लेकर उसके उपोत्पाद तक के मामले में सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) की तूती बोलती है। दैनिक, साप्ताहिक हाट बाजार, शासकीय निर्धारित मूल्य पर खरीद से लेकर शॉपिंग मॉल्स में भी इसकी डिमांड बनी रहती है। तो यह हुई कच्चे फल, पत्तियों के बाजार से जुड़़ी मांग की बात, अब इसके बाय प्राडक्ट पर नजर डालते हैं। दरअसल ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पाद की सेल करने वाली कंपनियां मोरिंगा (मुनगा) के उपोत्पाद भी रिटेल सेंटर्स के साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मुहैया कराती हैं। ऑनलाइन मार्केट में 100 ग्राम मोरिंगा पाउडर 2 सौ रुपए से अधिक की कीमत पर बेचा जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि, मुनगा की किसानी में कृषक को कितना मुनाफा मिल सकता है।

'आलू' करेगा मिस्र में खाद्य संकट को काबू, गेहूं के लिए भारत से आस लगाए बैठा है मिस्र

'आलू' करेगा मिस्र में खाद्य संकट को काबू, गेहूं के लिए भारत से आस लगाए बैठा है मिस्र

काहिरा। इन दिनों मिस्र में खाद्य सामग्री का भीषण संकट है। इस खाद्य संकट को काबू में करने के लिए आलू मददगार साबित हो सकता है। मिस्र के आपूर्ति मंत्री अली एल मोसेल्ही का कहना है कि देश मे अधिक आटा निकालने के लिए अधिक से अधिक आलू का उपयोग करने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। ऐसा करने से कम गेहूं से भी देश में खाद्य संकट को काबू में किया जा सकता है। मिस्र दुनियां में सबसे ज्यादा गेहूं का आयात करने वाला देश है। लेकिन इस साल रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मिस्र को गेहूं नहीं मिल सका है और यही वजह है कि आज देश के सामने खाद्य संकट खड़ा हो गया है। कभी भारत के गेहूं को सड़ा हुआ बताकर वापस लौटाने वाला मिस्र अब गेहूं के लिए भारत से ही आस लगाए बैठा है।

80 हजार टन गेहूं खरीद का हुआ अनुबंध

- मिस्र ने हाल ही में भारत से 80 हजार टन गेहूं खरीदने का अनुबंध किया है। हालांकि यह खेप पहले के मुकाबले काफी कम है। मिस्र की कुल 10.3 करोड़ आबादी है। लेकिन फिलहाल की परिस्थितियों को काबू करने के लिए काफी मददगार साबित होगी।

तुर्की और मिस्र से ठुकराया भारत का गेहूं इजराइल के बंदरगाह पर

- तुर्की और मिस्र ने भारत के गेहूं को सड़ा हुआ बताकर वापस लौटा दिया था। तुर्की और मिस्र से ठुकराया हुआ 56000 टन गेहूं इजराइल के बंदरगाह पर अटका हुआ है, क्योंकि तुर्की और मिस्र होते हुए गेहूं अब इजराइल पहुंच गया है, जहां से भारत सरकार से हरी झंडी मिलने का इंतजार है।
शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज : जानें यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति?

शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज : जानें यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति?

शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज

मथुरा। यूपी में बीज बेचने से पहले शासन से अनुमित लेनी होगी। इसके लिए गाइडलाइंस जारी कर दिए गए हैं। प्रमाणित और अप्रमाणित बीजों की आपूर्ति गैर प्रान्त की संस्थाएं विक्रेताओं को कर रहीं हैं। इनमें अधिकांश संस्थाएं हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान की हैं। अब
उत्तर-प्रदेश के बीज विक्रेताओं को आपूर्ति करने से पहले गैर प्रान्त की संस्थाओं को अपर कृषि निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) लखनऊ से अनुमति लेनी होगी। आपूर्ति से पहले उस बीज का भारत सरकार के शोध केन्द्र और प्रदेश में कृषि संस्थानों में कम से कम दो साल का ट्रायल भी होना आवश्यक है। इसके लिए फुटकर एवं बीज विक्रेताओं को निर्देश जारी किए गए हैं। जिला कृषि अधिकारी अश्विनी कुमार सिंह ने बताया कि अब केवल वही संस्थाएं बीज की आपूर्ति कर पाएंगी, जिनको अपर कृषि निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) लखनऊ से अनुमति जारी की गई होगी। जिस संस्था का बीज अपनी दुकान पर बेच रहे हैं, विक्रेता को उस संस्था से प्रदेश में बीज बिक्री की अनुमति की प्रति लेकर रखनी होगी।

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कृषि विभाग जारी करता है बीज बिक्री का लाइसेंस

कृषि विभाग बीजों की बिक्री करने का लाइसेंस जारी करता है। थोक और फुटकर बीज विक्रेता के यहां बेचे जा रहे बीज की गुणवत्ता परखने को विभागीय अधिकारी समय-समय प4 निरीक्षण करते हैं। अब तक की कार्यवाई में पाया गया है कि हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान आदि राज्यों के आपूर्तिकर्ता और बीज उत्पादक संस्था बीजों की आपूर्ति जिले में कर रहीं हैं। बीज विक्रेता किसानों को आपूर्तिकर्ता संस्था के बिल नहीं देते हैं। बीज विक्रेता यह भी पता नहीं करते कि जिस संस्था का बीज वह बेच रहे हैं, उस संस्था को प्रदेश में बीच बेचने की अनुमति मिली है या नहीं। इसलिए यह कदम उठाया गया है।

यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति ?

बीजो के इस लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए किसान के पास किसी प्रकार की डिग्री होने की आवश्यकता नहीं होती है | यदि वह खाद और दवा का लाइसेंस प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए उसे खाद और दवा से सम्बंधित डिग्री की आवश्यकता होती है। इससे पहले इस तरह के लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए BSC-रसायन विज्ञान से डिग्री की जरूरत होती थी, किन्तु सरकार इस प्रक्रिया को और आसान कर दिया है अब बस 21 दिन के विशेष डिप्लोमे से इस लाइसेंस को प्राप्त किया जा सकेगा | इसके अलावा यदि आप BSC-रसायन एग्रीकल्चर तब भी आप इसके लिए आवेदन के पात्र माने जायेंगे।

खाद्य लाइसेंस प्रक्रिया की फीस

यदि आप खाद के इन तीन लाइसेंस को प्राप्त करना चाहते है तो उसके लिए आपको निर्धारित फीस का भुगतान करना होता है | इस फीस का निर्धारण अलग-अलग राज्य के हिसाब से अलग-अलग रखी गयी है।

लाइसेंस का प्रकार                                       फीस कीटनाशकों- दवाइयों के लाइसेंस के लिए    -  1500 बीज लाइसेंस के लिए                                  -  1000 खाद-उर्वरक लाइसेंस के लिए                      -  1250

खाद-बीज लाइसेंस के लिए आवश्यक दस्तावेज

- आवेदन हेतु फॉर्म - आधार कार्ड - पैन कार्ड - पासपोर्ट साइज फोटो - करेंट अकाउंट की बैंक पासबुक - बायोडाटा की फोटो कॉपी - 2-3 कंपनियों के प्रिंसिपल सर्टिफिकेट - मान्य योग्यता डिग्री की फोटो कॉपी - फीस का चालान - जीएसटी सर्टिफ़िकेट - दुकान या गोदाम का नक्शा - क्षेत्रीय एनओसी अनापत्ति प्रमाण पत्र

------ लोकेन्द्र नरवार

बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

बंदरगाहों पर अटका विदेश जाने वाला 17 लाख टन गेहूं, बारिश में नुकसान की आशंका

मुंबई। भारत से विदेश जाना वाला करीब 17 लाख टन गेहूं विभिन्न बंदरगाहों पर अटक गया है। बारिश से इसके खराब होने की आशंका जताई जा रही है। पिछले महीने निर्यात पर पाबंदी के बाद भारत ने 469202 टन गेहूं को निर्यात की मंजूरी दी गई है। यह निर्यात मुख्य रूप से फिलीपीन, बांग्लादेश, तंजानिया और मलेशिया को भेजा जाना है। मुंबई के एक डीलर ने कहा कि कोडला और मुद्रा पोर्ट्स पर सबसे ज्यादा 13 लाख टन से अधिक गेहूं पड़ा हुआ है। सरकार को बंदरगाहों पर पड़े गेहूं के निर्यात की अनुमति देनी चाहिए। खाद्य संकट के दौर से गुजर रहे कई देशों ने भारत से 15 लाख टन से अधिक गेहूं की आपूर्ति मांगी है।

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तुर्की ने 56,877 टन गेहूं की खेप लौटाई

- बीते 29 मई को तुर्की ने भारत से गए 56,877 टन गेहूं की खेप लौटा दी है। इंस्ताबुल के एक कारोबारी नव गेहूं में रुबेला वायरस पाए जाने की बात कही है। इस पर खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि भारत सरकार ने तुर्की के अधिकारियों से इस बारे में ज्यादा जानकारी मांगी है।

अच्छी फसल है इसलिए ज्यादा गेहूं भेजा

- वैश्विक कंपनियों के तीन डीलरों के मुताबिक प्रतिबंध लगाने से पहले, निर्यातकों ने बड़ी मात्रा में बंदरगाहों पर गेहूं भेज दिया था। उस समय तक अच्छी फसल की पैदावार का अनुमान था। व्यापारियों को उम्मीद थी कि भारत इस साल 80 लाख से एक करोड़ टन या इससे भी अधिक के शिपमेंट को मंजूरी देगा। पिछले साल 72 लाख टन के निर्यात की अनुमति दी गई थी।

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कांडला और मुंद्रा पोर्ट में सबसे ज्यादा गेहूं

मुंबई के एक ग्लोबल ट्रेडिंग फर्म के डीलर ने कहा कि कांडला और मुंद्रा पोर्ट्स में सबसे ज्यादा गेहूं का भंडार फंसा है। इन दोनों बंदरगाहों पर करीब 13 लाख टन से अधिक गेहूं पड़ा हुआ है। सरकार को तुरंत निर्यात परमिट जारी करने की आवश्यकता थी। ऐसा इसलिए, क्योंकि बंदरगाहों पर गेहूं खुले में था। बारिश की चपेट में यह कभी भी आ सकता है। एक डीलर ने कहा कि गेहूं को बंदरगाहों से बाहर और आंतरिक शहरों में स्थानीय खपत के लिए ले जाना संभव नहीं था। इससे व्यापारियों को लोडिंग और यातायात लागत के कारण और भी ज्यादा नुकसान होगा।

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निर्यात की अनुमति फिलहाल नहीं

-भारत सरकार ने फिलहाल गेहूं निर्यात की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया है। जिससे बंदरगाहों पड़े गेहूं को लेकर व्यापारियों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं हैं।

 ------ लोकेन्द्र नरवार

देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

भारत में किसानों का रुझान प्राकृतिक खेती (प्राकृतिक कृषि पद्धति) से धीरे धीरे हटते जा रहा है। सरकार किसानों का ध्यान जैविक खेती की ओर बढ़ा रही है। जैविक खेती करने के लिए सरकार नई नई योजनाएं लागू कर रही है। 

और सरकार के इन प्रयासों का असर भी किसानों पर हुआ है। किसानों का ध्यान धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर जा रहा है। 

ऐसे में सरकार खेती को नुकसान पहुंचाए बिना, भारत में 2030 तक जैविक खेती का रकबा 30 फ़ीसदी तक बढ़ सकता है। जो कि फिलहाल में केवल 15% ही है। लेकिन 2020 तक 30 फीसदी जमीन पर जैविक खेती करने का अनुमान लगाया जा रहा है।

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भारत सरकार पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए किसानों को जैविक खेती की ओर ले जा रही है। हमारे देश में जैविक खेती का रकबा 15% है जिसे 30% करने की तैयारी की जा रही है। 

इसके साथ ही अनुमान लगाया जा रहा है कि जैविक खेती करने से उत्पादन में कमी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। और अगर किसी कारणवश ऐसा हो जाता है तो इसकी भरपाई उर्वरक सब्सिडी में कमी से की जाएगी। 

ऐसे में भारत में खाद्य समस्या को लेकर धीरे-धीरे जैविक खेती का विस्तार किया जाएगा। भारत के मध्य प्रदेश राजस्थान और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में कोल खेती का जैविक खेती के रूप में 6 फ़ीसदी तक बढ़ाया जा सकता है।

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भारत में खाद्य उत्पादन बढ़ रहा है :

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में यह कार्य श्रीलंका से सबक लेते हुए किया जाएगा क्योंकि श्रीलंका में उर्वरक के इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था जिसके कारण श्रीलंका में खाद्य संकट पैदा हो गया। 

क्योंकि देश का खाद्य उत्पादन पिछले कई वर्षों में 3% से अधिक की दर से बढ़ रहा है इसके साथ ही जनसंख्या वृद्धि दर 1.5% से भी कम है ऐसे में खाद्य की घरेलू मांग में भी कमी आ रही है।

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कुल उत्पादन का कितना निर्यात :

अगर रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना बंद हो जाएगा तो हमारे देश में खाद्य संकट पैदा हो सकता है जिससे खाद उत्पादन में कमी आती है। लेकिन भारत उत्पादन कम होने पर धीरे-धीरे आगे बढ़ने की स्थिति में है। 

जानकारी के मुताबिक भारत में खेती के कुल उत्पादन का 6 से 7 फ़ीसदी तक निर्यात किया जाता है। खाद्यान्नों की वापस शॉपिंग करने की नीति के कारण देश खाद्य संकट और कीमतों के झटके से बच सकता है। 

क्योंकि गंगा नदी के किनारे स्थित खेतों में पूरे देश में रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। लेकिन हमारा देश अभी उस स्थिति तक नहीं पहुंच पाया है जहां वह बफर स्टॉकिंग और खरीद व्यवस्था को छोड़ सके।

गाय का शुद्ध दूध बेचकर झारखंड की शिल्पी ने खड़ा कर दिया इतना बड़ा कारोबार

गाय का शुद्ध दूध बेचकर झारखंड की शिल्पी ने खड़ा कर दिया इतना बड़ा कारोबार

बेंगलुरु। आज के युग में खाद्य पदार्थों में शुद्धता की गारंटी शून्य स्तर तक पहुंच चुकी है। इसमें भी दूध, दही, पनीर और मक्खन जैसे उत्पादों में मिलावट खोरी ज्यादा बढ़ गई है। ऐसे में शुद्ध दूध मिलना आसान नहीं है। बाजारों में अशुद्ध और मिलावटी दूध से हर कोई परेशान है। यदि अच्छे पोषक तत्वों वाला शुद्ध दूध मिल जाए तो मनुष्य के जीवन और सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है। झारखंड की 27 वर्षीय शिल्पी ने गाय का शुद्ध दूध देकर लोगों में अपना भरोसा बनाया है। आज शिल्पी की एक निजी कंपनी (The Milk India Company) है जो एक करोड़ रुपए का टर्नओवर कर रही है। लेकिन शिल्पी ने गाय का शुद्ध दूध लोगों तक पहुंचाने के लिए काफी मेहनत की है। साथ ही लोगों के विश्वास हांसिल किया है।

आइए जानते हैं शिल्पी की दिनचर्या

- शिल्पी सिन्हा झारखंड के डाल्टनगंज की रहने वाली हैं। शिल्पी हमेशा अपने दिन की शुरुआत एक कप दूध से करतीं हैं। शिल्पी को शुद्ध दूध और अशुद्ध दूध के महत्व का अहसास तब हुआ, जब शिल्पी को बैंगलोर जैसे एक महानगर में अशुद्ध दूध मिलता था। तभी से शिल्पी ने लोगों को शुद्ध दूध पिलाने का बीड़ा उठाया।

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शुरुआत में शिल्पी को कोई सहायक नहीं मिला था, जब उन्होंने गाय के दूध का काम शुरू किया। वह प्रातः काल चार बजे खेतों में खुद गायों के लिए चारा लेने जाती थीं। एक महिला के लिए ऐसे अकेले जाना सुरक्षित नहीं था, इसलिए उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए पेप्पर स्प्रे और चाकू रखा था । बाद में कारोबार में बढ़ोतरी हुई तो मदद के लिए सहायकों का प्रबंध हो सका ।

किसानों को साथ लेकर बढ़ाया कारोबार

- गाय के शुद्ध दूध के कारोबार को बढ़ाने के लिए शिल्पी ने आस-पास के किसानों को साथ लिया। किसानों की समस्याओं को समझा और उनका समाधान कराया। पशुओं को तत्काल चिकित्सा मुहैया कराने का प्रबन्ध किया, और लोगों को कारोबार से जोड़ती गईं। शुरुआत में केवल 11000 रुपए लगाकर कारोबार शुरू किया, जो आज एक लाभदायक और बड़ा बिज़नेस बन गया है। शिल्पी ने पहले दो साल करीब 27 लाख रुपए का बिज़नेस किया और बाद में 70 लाख रुपए का वार्षिक कारोबार बन गया। जो आज एक करोड़ का टर्नओवर कर रहा है। ------- लोकेन्द्र नरवार