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लहसुन

सेहत के लिए लाभकारी लहसुन फसल की विस्तृत जानकारी

सेहत के लिए लाभकारी लहसुन फसल की विस्तृत जानकारी

भारत के ज्यादातर राज्यों में लहसुन की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। किसानो द्वारा इसकी खेती अक्टूबर से नवंबर माह के बीच में की जाती है। लहसुन की खेती में किसानो द्वारा कलियों को जमीन के अंदर बोया जाता हैं और मिट्टी से ढक दिया जाता हैं। बुवाई करने से पहले एक बार देख ले कंद खराब तो नहीं हैं,अगर कंद खराब हुई तो लहसुन की पूरी फसल खराब हो सकती हैं। 

लहसुन की बुवाई करते वक्त कलियों के बीच की दूरी समान होनी चाहिए। लहसुन की खेती के लिए बहुत ही कम तापमान की आवश्यकता रहती है। इसकी फसल के लिए न ही ज्यादा ठंड की आवश्कता होती हैं और न ही ज्यादा गर्मी की। लहसुन में एल्सिन नामक तत्व पाया जाता हैं, जिसकी वजह से लहसुन में से गंध आती हैं   

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

लहसुन की खेती के लिए हमे सामान्य तापमान की जरुरत रहती हैं। लहसुन की कंद का पकना उसके तापमान पर निर्भर करता है। ज्यादा ठंड और गर्मी की वजह से लहसुन की फसल खराब भी हो सकती हैं। 

लहसुन के खेत को कैसे तैयार किया जाये 

लहसुन के खेत की अच्छे से जुताई करने के बाद खेत  में गोबर खाद का प्रयोग करें ,और उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दे। खेत की फिर से जुताई करें ताकि गोबर के खाद को अच्छे से खेत में मिलाया जा सके। इसके बाद खेत में सिंचाई का काम कर सकते है। अगर खेत में खरपतवार जैसे कोई रोग देखने को मिलते हैं तो उसके लिए हम रासायनिक खाद का भी प्रयोग कर सकते है।

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लहसुन खाने से होने वाले फायदे क्या हैं:

  • इम्युनिटी को बढ़ाने में सहायक हैं 
लहसुन खाने से इम्युनिटी बढ़ती हैं ,इसमें एल्सिन नामक तत्व पाया जाता हैं।  जो की शरीर के अंदर इम्मुनिटी को बढ़ाने में सहायता करता है।  लहसुन में जिंक ,फॉस्फोरस और मैग्नीशियम पाया जाता हैं जो की हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता हैं। 

  • केलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता हैं 
लहसुन बढ़ते हुए केलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होती हैं ,बढ़ता हुआ केलेस्ट्रॉल हमारे स्वस्थ्य के लिए हानिकारक होता हैं। ये बेकार कॉलेस्ट्रॉल को बहार निकालने में सहायक होता हैं। लहसुन खून को पतला करके  हृदय से जुडी परशानियों को कम करने में सहायक होता हैं। 

  • कैंसर जैसी बीमारियों में रोकथाम 
लहसुन कैंसर बीमारी के रोकथाम में भी सहायक हैं। लहसुन के अंदर पाए जाने वाले बहुत से तत्व ऐसे रहते हैं जो कैंसर के बढ़ते हुए सेल्स को फैलने से रोकता हैं। लहसुन को कैंसर से पीड़ित लोगो के लिए फायदेमंद माना गया है। 

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  • पाचन किर्या में सहायक 

लहसुन खाना पाचन किर्या के लिए सुलभ माना जाता हैं। लहसुन को आहार में लेने से,ये आंतो पर आयी सूजन को कम करता है। लहसुन खाने से पेट में पड़ने वाले कीड़े खत्म हो जाते है। साथ ही यह आंतो को लाभ पहुँचता है। लहसुन खाने से शरीर के अंदर पड़ने वाले बेकार बैक्टीरिया को नष्ट करता हैं। 

लहसुन खाने से होने वाले नुक्सान क्या हैं 

लहसुन खाने से बहुत से फायदे होते हैं ,लेकिन कभी कभी लहसुन का ज्यादा उपयोग करना हानिकारक होता हैं।  जानिए लहसुन के ज्यादा उपयोग करने से होने वाले नुक्सान :

  • लो ब्लड प्रेशर वालों के लिए हानिकारक 
लहसुन खाना ज्यादातर हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए बेहतर माना जाता हैं ,लेकिन यही इसका दुष्प्रभाव लो ब्लड प्रेशर वालो के व्यक्तियों के ऊपर पड सकता है। लहसुन का तासीर गर्म होता हैं जिसकी वजह से यह ,लो ब्लड प्रेशर वाले लोगो के लिए फायदेमंद नहीं  हैं। इसके खाने से जी मचलना और सीने पर जलन होना आदि हो सकता है। 

  • गैस और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं 
लहसुन खाने से पाचन किर्या से सम्बंधित बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं , ज्यादा लहसुन खाने से डायरिया जैसी बीमारी भी हो सकती है। कमजोर पाचन किर्या वाले लोगो को ज्यादा लहसुन का पचाव अच्छे से नहीं हो पाता है ,जिसकी वजह से पेट में गैस ,दर्द और एसिडिटी जैसी बीमारियां भी उत्पन्न होती है।  

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  • रक्तश्राव और एलेर्जी जैसी समस्याओं को बढ़ावा देता हैं

जो रोजाना लहसुन का सेवन करते हैं उन्हें रक्तश्राव जैसे परेशानियां हो सकती हैं। लहसुन का उपयोग एलेर्जी से पीडित लोगो को नहीं करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को पहले से एलेर्जी हैं तो वो स्वास्थ्य परामर्श से सलाह लेकर लहसुन का प्रयोग कर सकते है। 

लहसुन का सेवन ज्यादातर सर्दियों के मौसम में किया जाता हैं, क्यूंकि लहसुन गर्म तासीर का रहता हैं। सर्दियों में ज्यादातर लोगो द्वारा भुना हुआ लहसुन खाया जाता है, क्यूंकि ये वजन कम करने और दिल को स्वस्थ्य रखने में मददगार रहता है। लेकिन जरुरत से ज्यादा लहसुन का उपयोग करने से शरीर को बहुत से नुकसान भी हो सकते है। लहसुन का खाली पेट सेवन करने से एसिडिटी जैसी समस्या भी हो सकती है। 

लहसुन में ब्लड को पतला करने वाले कुछ गुण विघमान होते हैं ,जो हृदय से संबंधित समस्याओं के लिए अच्छे होते हैं। अगर लहसुन का अधिक इस्तेमाल किया जाता है, तो इससे ब्लीडिंग जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लहसुन को खाने का सबसे सही तरीका यह है, कि आप सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी के साथ लहसुन का सेवन करें। ये स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को नियंत्रित करता है। साथ ही, त्वचा से जुड़े रोगो के लिए भी अत्यंत उपयोगी माना जाता है। 

लहसुन की कीमतों में आए उछाल की क्या वजह है ?

लहसुन की कीमतों में आए उछाल की क्या वजह है ?

लहसुन की कीमतों में अचानक से काफी उछाल आया है। भुवनेश्वर की मंडी में तो कीमत 400 रुपये प्रति किलो ग्राम तक पहुंच गई थी। लहसुन की फसल बर्बाद होने से यह हो रहा है। इस माह भाव कम होने की संभावना है।

आम जनता को महंगाई की काफी मार सहन करनी पड़ रही है। समस्त चीजों में खूब महंगाई बढ़ी है और वहीं खाने की चीजों की बात की करें तो इसमें भी बेहद इजाफा हुआ है। घरों में जो सब्जियां तैयार की जाती हैं, उनमें स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन आवश्यक होता है। परंतु, वर्तमान में देखा जाए तो लहसुन की कीमतें भी आसमान को छू रहे हैं। लहसुन ₹400 किलो तक की कीमत तक पहुँच चुका है। 

आखिर किस वजह से लहसुन की कीमतें बढ़ रही हैं ?

बीते कुछ सप्ताह की बात करें तो लहसुन की कीमतों में प्रचंड तेजी से इजाफा हुआ है। भुवनेश्वर की मंडी में तो कीमत 400 रुपये प्रति किलो ग्राम तक पहुंच गए थी। दरअसल, लहसुन की कीमत बढ़ने के पीछे जो अहम वजह है। वह लहसुन की फसल का खराब होना है। विभिन्न राज्यों में बेकार मौसम की वजह से लहसुन की फसलें बर्बाद हुई हैं। इसके चलते कीमतों में काफी उछाल देखा गया है। फसल खराब होने के चलते दूसरी फसल की रोपाई में समय लगेगा। इस वजह से लहसुन की नई उपज की आवक में देरी है, जिसके चलते कीमतें बढ़ रही हैं। 

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मध्य प्रदेश में कीमतें कब कम होंगी ?

मध्य प्रदेश में लहसुन की सर्वाधिक खेती की जाती है। परंतु, मौसम की मार की वजह से फसल काफी प्रभावित हुई है, जिसकी वजह से नई फसल आने में काफी विलंब हो रहा है। जैसे ही बाजार में लहसुन की नई फसल आ जाती है। लहसुन की कीमतों में गिरावट आऐगी। मंडी व्यापारियों के मुताबिक, खरीफ लहसुन के आने के पश्चात कीमत अत्यंत कम हो जाऐगी। मतलब कि फरवरी के माह में लहसुन की कीमतों के कम होने की संभावना है। 

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह बढ़ोत्तरी हुई है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि दर्ज की गई। राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी उछाल आया है। अब ऐसी स्थिति में मंडियों में लहसुन की आवक बढ़ गई है। अत्यधिक कीमत होने की वजह से बड़ी तादात में किसान लहसुन की उपज को विक्रय करने के लिए मंडी पहुंच रहे हैं। साथ ही, ऐसा भी सुनने को मिल रहा है, कि आगामी समय में कीमतों में और वृद्धि दर्ज होने की संभावना होती है। विशेष बात यह है, कि लहसुन के भाव में यह वृद्धि प्रतापगढ़ की मंडी में अधिक देखने को मिल रही है। इससे लहसुन उत्पादक किसान बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं। लहसुन की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा साबित होता है। लहसुन शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। कई बार चिकित्सक भी मरीजों को लहसुन खाने की सलाह देते हैं। अधिकांश लोग सब्जी में लहसुन का तड़का दिए बिना सब्जी पसंद नहीं करते हैं।

लहसुन के भाव में 300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह वृद्धि सामने आ रही है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से वृद्धि दर्ज की गई है। वर्तमान में मंडी के अंदर एक क्विंटल लहसुन का भाव 13000 हो चुका है। यही कारण है, कि किसान अपनी फसल विक्रय करने हेतु बड़ी तादात में मंडी पहुँच रहे हैं। मंडी में प्रतिदिन लगभग 1500 बोरी लहसुन की आवक हो रही है। लहसुन व्यापारी नितिन चंडालिया का कहना है, कि आगामी दिनों में लहसुन की कीमत में और उछाल आएगा। साथ ही, यहां से लहसुन का निर्यात फिलहाल अन्य राज्यों में भी चालू हो चुका है। यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश के किसान लहसुन के गिरते दामों से परेशान, सरकार से लगाई गुहार

टमाटर के भाव में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है

बतादें, कि राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी इजाफा दर्ज हुआ है। महाराष्ट्र राज्य में टमाटर भी काफी महंगा हो चुका है। 30 रुपये किलो में मिलने वाले टमाटर की कीमत फिलहाल 60 रुपये तक पहुँच चुका है। बतादें, कि टमाटर उत्पादक काफी प्रसन्न हैं। वर्तमान, व्यापारी कृषकों से ज्यादा कीमत पर टमाटर खरीद रहे हैं। कृषकों को पहले एक किलो टमाटर के लिए 2 से 3 रुपये मिला करते थे। लेकिन, फिलहाल उनको काफी अच्छा भाव अर्जित हो रहा है।

राजस्थान के इस जनपद में हजारों हेक्टेयर में लहसुन की खेती

जानकारी के लिए बतादें, कि विगत वर्ष राजस्थान में लहसुन की उपज का समुचित भाव नहीं मिला था। सरकार द्वारा बाजार हस्तक्षेप योजना को मंजूरी मिलने के पश्चात भी उत्पादकों को लहसुन की समुचित कीमत नहीं मिल पाई थी। बतादें, कि किसान 14 रुपये किलो की दर से लहसुन का विक्रय करने हेतु विवश थे। बतादें, कि राजस्थान में किसान 1.31 लाख हेक्टेयर भूमि में लहसुन का उत्पादन करते है। बारा, हाड़ौती, बूंदी, झालावाड़ और कोटा इलाकों में किसान सर्वाधिक लहसुन की खेती करते हैं। इन इलाकों से 90 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन होता है। इसी कड़ी में बारा जनपद में उत्पादकों ने 30 हजार 420 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन का उत्पादन किया है।
इस वजह से लहसुन की कीमतों में आया जबरदस्त उछाल

इस वजह से लहसुन की कीमतों में आया जबरदस्त उछाल

आजकल सब्जी, मसाले और अनाजों की कीमतें सातवें आसमान पर हैं। विगत वर्ष लहसुन का अच्छा-खासा उत्पादन हुआ था। इसकी वजह से होलसेल मार्केट में इसकी काफी कीमत गिर गई। ऐसी स्थिति में किसान फसल पर किया गया खर्चा तक भी नहीं निकाल पाए। भारत में महंगाई बिल्कुल भी कम होने का नाम नहीं ले रही है। टमाटर की भाँति वर्तमान में भी लहसुन का भाव 170 रुपये किलो के पार ही है। बहुत सारे शहरों में तो इसकी कीमत 180 रुपये किलो के आसपास पहुंच चुकी है। पटना में अभी एक किलो लहसुन का भाव 172 रुपये है। साथ ही, कोलकता में यह 178 रुपये किलो बिक्रय किया रहा है। जबकि, तीन से चार महीने पहले यह बेहद सस्ता था। मार्च महीने तक रिटेल बाजार में यह 60 से 80 रुपये किलो बिक रहा था। परंतु, मानसून के दस्तक देने के साथ ही इसके दाम भी महंगे हो गए।

उत्तर प्रदेश इतने प्रतिशत लहसुन की पैदावार करता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि मध्य प्रदेश के पश्चात राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लहसुन की खेती होती है। ये तीनों राज्य मिलकर 85 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन करते हैं। राजस्थान 16.81 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन करता है, जबकि उत्तर प्रदेश की भागीदारी 6.57 फीसद है।

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मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक राज्य है

लहसुन के व्यापारियों के मुताबिक, मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा लहसुन उत्पादक राज्य है। यहां का मौसम एवं मिट्टी लहसुन की खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कुल उत्पादित लहसुन में मध्य प्रदेश की भागीदारी 62.85 प्रतिशत है। परंतु, पिछले साल समुचित भाव न मिलने की वजह से लहसुन उत्पादक किसानों को बेहद हानि का सामना करना पड़ा। बहुत सारे किसान कर्ज में डूब गए है। ऐसी स्थिति में किसानों ने इस वर्ष लहसुन की खेती करना कम किया, जिससे तकरीबन 50 प्रतिशत लहसुन का रकबा कम हो गया। ऐसी स्थिति में मांग के हिसाब से बाजार में लहसुन की आपूर्ति नहीं हो पाई। इसकी वजह से अचानक कीमतें बढ़ गईं।

मध्य प्रदेश अन्य राज्यों में भी लहसुन की आपूर्ति करता है

बतादें कि संपूर्ण भारत में मध्य प्रदेश से लहसुन की सप्लाई होती है। यहां से दक्षिण भारत, दिल्ली और महाराष्ट्र समेत विभिन्न राज्यों में लहसुन की सप्लाई की जाती है। नतीजतन, मध्य प्रदेश की मंडियों में लहुसन महंगे होने की वजह से दूसरे राज्यों में भी इसकी कीमतें बढ़ गईं। साथ ही, रतलाम जनपद के लहसुन उत्पादकों का कहना है, कि किसानों ने विगत वर्ष हुई हानि की वजह से लहसुन की खेती आधी कर दी थी। परंतु, इस बार की कीमतों को ध्यान में रखते हुए पुनः रकबे में इजाफा करेंगे। ऐसे में आशा है, कि लहसुन की नवीन फसल आने के बाद कीमतों गिरावट शुरू हो जाएगी।
लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

जैविक फल सब्जियों का बाजार के अंदर काफी अच्छा भाव मिलता है। ऐसी स्थिति में यदि आप लहसुन की खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो आप काफी मोटी आमदनी कमा सकते हैं। लहसुन की खेती काफी लाभदायक होती है। यदि आप इसकी खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो यह आपकी आमदनी को दोगुना कर सकती है। बाजार में रसायन मुक्त सब्जियों की काफी अधिक मांग होती है। लोग जैविक ढ़ंग से उगाई जाने वाली सब्जियों के लिए ज्यादा कीमत भी देने को तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में आज हम आपको जैविक विधि से लहसुन की खेती करने के तरीके के विषय में बताने जा रहे हैं। जिस विधि को अपनाकर आप मोटी आमदनी कर सकते हैं।

जैविक ढ़ंग से खेत तैयार करना

लहसुन की जैविक खेती का उपयुक्त वक्त जुलाई माह की गर्मी में होता है। इस दौरान खेत की जुताई के उपरांत उसमें हरी खाद के साथ ढेंचा की बिजाई भी कर सकते हैं। आप इस बात का विशेष ख्याल रखें कि आप वक्त-वक्त पर हरी खाद के साथ मृदा को पलटते रहें। खेती के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। लहसुन की बिजाई के लिए मेढ़ निर्मित की जा सकती है। मेढ़ की लम्बाई जमीन के ढाल के अनुरूप ही तैयार करें।

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लहसुन की खेती के लिए जैविक खाद

खेत के उपजाऊपन में वृद्धि के लिए आप मृदा में सड़ी हुई गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट को क्यारियों में मिला दें। आप स्वयं के घर पर नीम की पत्तियों से निर्मित खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। खेत में कम्पोस्ट अथवा गोबर खाद का इस्तेमाल लहसुन की रोपाई के 15 से 20 दिन पश्चात ही कर दें।

लहसुन की फसल की सिंचाई

लहसुन की बिजाई के पश्चात इसकी प्रथम सिंचाई 8 से 10 दिन के उपरांत कर देनी चाहिए। इसकी बेहतरीन उपज पाने के लिए दूसरी सिंचाई को 20 से 25 दिन की समयावधि पर मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर करनी चाहिए। लहसुन की फसलों को सदैव निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती रहती है।

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लहसुन का भण्डारण

लहसुन की फसल को पककर तैयार होने में लगभग पांच से छह माह का वक्त लग जाता है। जब इसके पौधों की पत्तियों का रंग पीला नजर आने लगे तो इसकी सिंचाई बंद कर दें। साथ ही, कुछ दिनों के पश्चात इसकी मृदा से निकालना शुरु कर दें। इन गठिलें लहसून को तकरीबन 3 से 4 दिनों तक छाया में सूखने के लिए रख दें। वर्तमान में आप इसे घर की किसी सूखी जगह पर रख दें। यह लहसुन आगामी 6 से 8 महीनों तक भण्डारित करके रखा जा सकता है। एक एकड़ के खेत में आप सुगमता से इसकी खेती कर 2 से 3 लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं।
लहसुन की पैदावार कितनी समयावधि में प्राप्त की जा सकती है

लहसुन की पैदावार कितनी समयावधि में प्राप्त की जा सकती है

किसान भाई अपने घर के अंदर ही बड़ी सहजता से लहसुन का उत्पादन कर सकते हैं। यह लगभग आठ महीने में तैयार हो जाता है। लहसुन एक ऐसा मसाला है, जो किसी भी व्यंजन के स्वाद और जायके को सुगमता से बढ़ा सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी लहसुन का महत्व किसी से छिपा नहीं है। आयुर्वेद में लहसुन को सौ मर्ज की एक औषधी बताया गया है। घर की थाली में यदि आप ताजा लहसुन को शम्मिलित करना चाहते हैं, तो इसे अपने घर में उगा सकते हैं। इसके लिए कुछ बातों का खास ख्याल रखना जरूरी है। कुछ आसान टिप्स अपनाकर आप घर में उगे लहसुन का लुफ्त उठा सकते हैं।

किसान भाई बेहतर गुणवत्ता वाले लहसुन का ही चयन करें

अगर आप अपने घर के अंदर लहसुन उगाने की योजना तैयार कर रहे हैं, तो सदैव सुनिश्चित करें कि आप बेहतरीन गुणवत्ता वाले लहसुन को ही चुनें। इससे उत्पादन काफी अच्छा होगा। मजबूत और बेदाग बड़ी कलियां चुनें, जिससे कि बेहतरीन गुणवत्ता वाला लहसुन उगाने में सहायता मिलेगी।

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लहसुन उत्पादन के लिए मृदा कैसी होनी चाहिए

घर में लहसुन उगाना सुगम नहीं होता है। इसके लिए मृदा की पीएच वैल्यू 7.0 के आसपास ही रहनी चाहिए। मृदा अत्यधिक अम्लीय अथवा क्षारीय नहीं होनी चाहिए। मृदा में खाद के साथ गोबर मिलाना फायदेमंद रहेगा। मृदा की आधी मात्रा के बराबर गोबर मिलादें। ज्यादा नाइट्रोजन वाले उर्वरक पौध को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

लहसुन की फसल में कार्बनिक खाद का उपयोग लाभकारी

लहसुन की फसल आठ माह के अंदर पककर तैयार होती है। तब पत्तियां हरा रंग छोड़कर पीली पड़ने लगती हैं। लहसुन की फसल के लिए कार्बनिक खाद का इस्तेमाल अधिक अच्छा माना जाता है।

लहसुन का पौधरोपण इस प्रकार करें

लहसुन की कली को बड़ी ही सावधानी से निकालें। परतदार छिलके को बिल्कुल न हटाएं। कलियां अलग करते वक्त आप कंद को नुकसान न पहुंचाएं। बड़ी कली लगाना सबसे बेहतर होता है, जिसमें छोटे अंकुर दिखाई पड़ते हैं। रोपण के लिए पंक्तियों के मध्य 6 इंच की दूरी होनी चाहिए। रोपण के उपरांत सीमित मात्रा में ही पानी डालें साथ ही कली को मृदा से ढक दें।
भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

वैसे तो मध्य प्रदेश की चर्चा आमतौर पर कृषि के क्षेत्र में कार्य करने हेतु होती रहती है। बार-बार न्यूज़ मीडिया के माध्यम से यह बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए कार्य कर रही है। किसान किस तरह से आत्मनिर्भर हो और किसान की आय में किस तरह से बढ़ोतरी हो, इसको लेकर लगातार मध्य प्रदेश सरकार काम करने की कोशिश कर रही है।

भोपाल के किसानों की फसल का अब क्या होगा ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किसानों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। किसानों को उनकी फसल का उचित रेट भी नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसान काफी मायूस है। भोपाल के मंडियों में किसानों को उनके उगाई गई फसल लहसुन और
प्याज का उचित मूल्य भी प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी बनी हुई है। किसानों की तो यह स्थिति हो चुकी है कि फसल को बाजार तक लाने का किराया भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ शायद अन्याय कर दिया है, क्योंकि जहां देश के कई राज्यों में बारिश नहीं होने के कारण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं देश के अन्य राज्यों में अधिक बारिश होने के कारण सारे फसल पानी लग जाने के कारण बर्बाद हो चुके हैं। फसलों का इस तरह से बर्बाद हो जाना किसानों के लिए बहुत ही महंगा साबित हो रहा है। इस बार मौसम की बेरुखी के कारण ऐसे ही फसलों की उपज में कमी पाई गई है, वहीं दूसरी तरफ किसानों ने जो फसल उगाई थे उसका भी उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है।


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कृषि मंत्री का अजीबोगरीब बयान

एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार विश्व के बाजारों में अपने उत्पादन को प्रमोट करती हुई दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की राजधानी में ही किसानों का यह हाल है कि उनके द्वारा उपजाए गए फसलों का ही उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों के साथ सरकार का रुख नरम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्याओं का समाधान करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री ने कुछ इस तरह का बयान दे दिया जिससे किसानों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल समस्याओं का निराकरण करने के बजाय है यह कहते हुए पाए गए कि किसानों को इस तरह की फसल नहीं उगाना चाहिए जिसका मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिलता है। अब सवाल यह है कि क्या किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिसका मंडियों में उचित मूल्य मिलता हो?


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यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के एक किसान ने कृषि मंत्री श्री पटेल को फोन कर किसानों की हालत से अवगत कराया। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री श्री पटेल ने यह कहा कि मैं किसानों को उनकी उपज का यानी लहसुन प्याज का उचित मूल्य कहां से दूं, कुछ दिन और रुक जाओ लहसुन के दाम 4 गुना अधिक हो जाएंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ दिन बाद बाजार में नए फसल आ जाएंगे तो फिर लहसुन और प्याज का उचित मूल्य कहां से प्राप्त होगा। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास कृषि विभाग है, मेरे अंदर लहसुन और प्याज का विभाग नहीं आता है। कृषि मंत्री का किसानों के प्रति इस तरह का विवादास्पद बयान देना बहुत ही आपत्तिजनक है। इस तरह के बयानों से किसानों को सिर्फ निराशा हाथ लगती है किसान मायूस हो जाते हैं और इसका असर आने वाले समय में व्यापक स्तर पर होने लगता है क्योंकि अगर किसान फसल ही नहीं उगाएंगे तो फिर क्या हालात होगी। ये भी पढ़ें : प्याज़ भंडारण को लेकर सरकार लाई सौगात, मिल रहा है 50 फीसदी अनुदान बात यहीं तक नहीं रुकती है। मंत्री जी ने किसानों को यह सलाह देते हुए कहा कि उन्हें मूंग की खेती करनी चाहिए। कई बार किसानों को उनकी फसल पर दोगुना तिन गुना अधिक रेट मिलता है। इसीलिए किसान को परेशान नहीं होना चाहिए। अगर किसान मूंग की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा। लेकिन किसानों का कहना है कि इससे पहले हमने सोयाबीन की खेती की थी उसका भी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। किसी तरह का कोई सर्वे सरकार के द्वारा नहीं कराया गया, अगर हम मूंग (Mung bean) की फसल का उपज करते हैं तो इसकी गारंटी कौन लेगा कि आने वाले समय में इस फसल पर हमें अच्छा रेट मिल पाएगा।


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मूंग का मिल जाएगा अच्छा रेट?

अब यह समझने की भी जरूरत है कि फसलों को उगाने में किसान अपना सब कुछ लगा देते हैं और इन्हीं फसलों को बेचकर अपना उपार्जन करते हैं। फसलों का मौसम की बेरुखी के कारण बर्बाद हो जाना और उसके बाद इनकी समस्याओं को दरकिनार कर विवादास्पद बयान सरकार के मंत्रियों के द्वारा देना क्या किसानों के लिए हितकारी साबित होगा। जमीनी स्तर पर यह किस तरह से संभव हो पाएगा की किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिनका मार्केट वैल्यू यानी बाजार में अच्छे रेट मिल रहे हैं। क्योंकि फसल को उपजाने में मौसम का अहम योगदान होता है, यदि मौसम फसलों के अनुकूल होती है तो अच्छी उपज होती है इसके विपरीत अगर मौसम प्रतिकूल हो तो उपज पर गहरा असर पड़ता है और पैदावार अच्छी नहीं होती है। फसल वृद्धि का मौसम के साथ गहरा संबंध है। कुछ फसलों को अपना अंकुरण शुरू करने से लेकर और आगे विकास जारी रखने तक के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना कैसे संभव है कि मौसम के विपरीत जाकर सिर्फ मूंग की खेती करने से किसानों की समस्याओं का हल हो जाएगा। इस समय सरकार को किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं पर विचार करते हुए उनके समस्याओं का निराकरण करना चाहिए और किस तरह से किसान बेहतर खेती कर पाए और उसके द्वारा उपजाए गए फसलों को उचित मूल्य बाजार और मंडियों में प्राप्त हो, इसके लिए सरकार को पहल करना चाहिए।


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साथ ही साथ सरकार को किसानों के फसल उगाने के लिए नए तकनीकों के साथ जोड़ने और प्रशिक्षण देना चाहिए, जिससे किसान आने वाले समय में अच्छा उपज करके अपनी फसल को बाजार और मंडियों में बेचकर उचित मूल्य को प्राप्त कर सके और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ सके।
किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की 70% फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि व कृषि संबधी कार्यों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। हम लोग खेती-किसानी का कार्य हम जितना सहज समझते हैं, वास्तविकता में यह उतना ज्यादा आसान नहीं है। 

दरअसल, खेती में भी कृषकों को जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। कृषि क्षेत्र के अंदर सर्वाधिक जोखिम फसल को लेकर है। अगर उचित समय पर फसल की बुवाई कर दी जाए तो पैदावार शानदार हांसिल हो सकती है। 

वहीं अगर समय का प्रतिकूल चुनाव किया गया तो कोई सी भी फसल बोई जाए उत्पादन बहुत कम हांसिल होता है। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी में भी गिरावट आ जाती है। 

किसानों को प्रत्येक फसल की शानदार उपज प्राप्त हो सके इसके लिए हम आपको बताएंगे कि आप किस महीने में कौन-सी सब्जी की बुवाई करें। जिससे आपको ज्यादा उपज के साथ ही बेहतरीन लाभ हांसिल हो सके। माहवार सब्जी की खेती कृषकों के लिए सदैव लाभ का सौदा रही है। 

किसान भाई जनवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को वर्ष के प्रथम महीने जनवरी में किसान भाईयों को मूली, पालक, बैंगन, चप्पन कद्दू, राजमा और शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। 

किसान भाई फरवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

फरवरी के महीने में राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, अरबी, ग्वार बोना ज्यादा लाभदायक होता है। 

किसान भाई मार्च के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को मार्च के महीने में लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिंडी, अरबी, ग्वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया और करेला की खेती करने से लाभ हांसिल हो सकता है। 

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किसान भाई अप्रैल के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अप्रैल के महीने में चौलाई, मूली की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाई मई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई मई के महीने में मूली, मिर्च, फूलगोभी, बैंगन और प्याज की खेती से शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। 

किसान भाई जून के महीने में इन फसलों को उगाएं  

कृषक जून के महीने में किसानों को करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्डी, टमाटर, प्याज, चौलाई, शरीफा, फूलगोभी, खीरा-ककड़ी और लोबिया आदि की बुवाई करनी चाहिए।

किसान भाई जुलाई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई जुलाई के महीने में खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिंडी, टमाटर, चौलाई, मूली की फसल लगाना ज्यादा मुनाफादायक रहता है।

किसान भाई अगस्त के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अगस्त के महीने में बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्स स्प्राउट, चौलाई, गाजर, शलगम और फूलगोभी की बुवाई करना अच्छा रहता है।

किसान भाई सितंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई सितंबर के महीने में आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली, गाजर, शलगम और फूलगोभी की खेती से शानदार उपज प्राप्त हो सकती है।

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किसान भाई अक्टूबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई अक्टूबर के महीने में काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्याज, लहसुन, गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू और टमाटर की खेती करना लाभकारी हो सकता है।

किसान भाई नवंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई नवंबर के महीने में टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज, मटर, धनिया, चुकंदर, शलगम और फूलगोभी की फसल को उगाकर कृषक बेहतरीन लाभ कमा सकते हैं।

किसान भाई दिसंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई दिसंबर के महीने में पालक, पत्ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्याज, टमाटर, काली सरसों के बीज और मूली की खेती से बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

लहसुन के कीट रोगों से बचाए

लहसुन के कीट रोगों से बचाए

लहसुन में चुनिंदा कीट एवं रोग लगते हैं लेकिन इनका समय से नियंत्रण बेहद आवश्यक है। कम पत्तों वाली फसल होने के कारण इस पर रोग प्रभाव का गहरा असर होता है।

थ्रिप्स -



लहसुन एवं प्याज में लगने वाला मुख्य कीट है। यह छोटे और पीले रंग का होता है। इसके द्वारा पत्तियों का रस चूस लिया जाता है। इससे पौधे का विकास रुक जाता है। नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोपड 5 एमएल प्रति 15 लीटर पानी या थायेमेथाक्झाम 125 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करेें।

शीर्ष छेदक कीट -

इस कीट की लार्वी पत्तियों को खाते हुये शल्क कंद के अंदर प्रवेश कर सड़न पैदा करती है। नियंत्रण हेतु फोरेट 1 से 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। बैंगनी धब्बा रोग का प्रकोप फरवरी एवं अप्रेल में होता है। इससे पप्ते बदरंग हो जाते हैं।



मेन्कोजेब+कार्बेंडिज़म 2.5 ग्राम दवा के मिश्रण से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करें। मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।



झुलसा रोग  में नाम के अनुरूप पौधे झुलसे जैसे हो जाते हैं। बचाव हेतु मैकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडिज़म 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें। लहसुन के खेत में खड़ी फसल के आधे पौधों की गर्दन लुढ़क जाए तो  समझ लें कि फसल तैयार हो चुकी है। जिस समय पौधौं की पत्तियां पीली पड़ जायें और सूखने लगें तो सिंचाई बन्द दें । इसके बाद गाँठो को 3-4 दिनों तक छाया में सुखा लें। फिर 2 से 2.25 से.मी. छोड़कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं ।

भण्डारण



अच्छी प्रक्रिया से सुखाये गये लहसनु को उनकी छटाई कर के साधारण हवादार स्थान पर रखें।छह माह में 20 फीसदी तक नमी सूखती है। पत्तियों सहित बण्डल बनाकर रखने से कम हानि होती है।

लहसुन की खेती करे कमाल (Garlic Crop Cultivation Information )

लहसुन की खेती करे कमाल (Garlic Crop Cultivation Information )

लहसुन की खेती यूंतो समूचे देश में की जाती है लेकिन हर राज्य के कुछ चुनिंदा इलाके इसकी खेती के लिए जाने जाते हैं। यह एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसकी कलियों को ही बीज के रूप में रोपा जाता है।  इसमें एलसिन नामक तत्व गंध और इसके स्वाद के लिए जिम्मेदार होता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। हर दिन लहसुन की एक कली खाने से रोग दूर रहते हैं। इसका उपयोग आचार,चटनी,मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। इसका उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, पेट के विकारों, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिये, कैंसर व गठिया की बीमारी, नपुंसकता तथा खून की बीमारी के लिए होता है। इसमें एण्टीबैक्टीरियल तथा एण्टी कैंसरस गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है। इसकी खेती मुख्यत: तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी, गुजरात, मध्यप्रदेश के इन्दौर, रतलाम व मन्दसौर, में बड़े पैमाने पर होती है। 

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 लहसुन की खेती के लिए मध्यम तापमान ज्यादा अच्छा रहता है। छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिये अच्छे होते हैं। इसकी सफल खेती के लिये 29.35 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता उपयुक्त होती है 

भूमि का चयन

 

 किसी भी कंद वाली फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी अच्छी रहती है। इसके लिये उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है।

लहसुन की उन्नत किस्में

 

 एग्रीफाउड व्हाईट किस्म करीब 150 दिन में तैयार होकर 140 कुंतल, यमुना सफेद 1 (जी-1) 150-160 दिनों में तैयार होकर 150-160 क्विन्टल, यमुना सफेद 2 (जी-50) 160—70 दिन में 140 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती हैं। जी 50 किस्म बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील है। यमुना सफेद 3 (जी-282) किस्म 150 दिन में 200 कुंतल, यमुना सफेद 4 (जी-323) 175 दिन में 250 कुंतल तक उपज देती है। इनके अलावा भी अनेक किस्में क्षेत्रीय आधार पर ​विकसित हो चुकी हैं। इनके विषय में विस्तार से जानकारी हासिल कर किसान उन्हें लगा सकते हैं। लहसुन की बिजाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर माह होता है। 

बीज की बिजाई

 

 लहसुन की बुवाई हेतु स्वस्थ एवं बडे़ आकार की कलियों का उपयोग करें। इनका फफूंदनाशक दबा से उपचार अवश्य करें। ऐसा करने से कई तरह के रोग संक्रमण से फसल को प्रारंभिक अवस्था में बचाया जा सकता है। बीज 5-6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर लगता है। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए न करें।  कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3  ग्राम दवा के सममिश्रण के घोल से उपचारित करना चाहिए। लहसुन की बुआई कूड़ों में, छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 से.मी. की गहराई में गाड़कर उपर से हलकी मिट्टी से ढकना चाहिए। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को उपर ही रखते है। बोते समय कलियों से कलियों की दूरी 8 से.मी. व कतारों की दूरी 15 से.मी.रखना उपयुक्त होता है। 

खाद एवं उर्वरक

 

 लहसुन की खेती के लिए कम्पोस्ट खाद ​के अलावा  175 कि.ग्रा. यूरिया, 109 कि.ग्रा., डाई अमोनियम फास्फेट एवं 83 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश की जरूरत होती है। गोबर की खाद, डी.ए. पी. एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा को खडी फसल में 30-40 दिन बाद छिडकाव के साथ देनी चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु 20 से 25 किलोग्राम माइक्रोन्यूट्रियंट मिश्रण मिट्टी में मिलाएं। 

सिंचाई प्रबंधन

कंद वाली ज्यादातर फसलों का बीज बोने के तत्काल बाद अच्छे अंकुरण हेतुु हल्की सिंचाई करें। तदोपरांत जरूरत और जमीन की मांग के अनुरूप पानी लगाएंं। जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निदाई-गुडाई एवं दूसरी निदाई-गुडाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु प्लुक्लोरोलिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुआई के पूर्व या पेड़ामेंथिलीन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व बुआई बाद अंकुरण पूर्व 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल कृषि क्षेत्र से जुड़ी इसी संस्थान की एडवाइजरी के अनुसार, भारत के किसान नीचे बताइए गई किसी भी फली या सब्जियों का उत्पादन कर सितंबर महीने में भी अपने परती पड़े खेत से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, यह भी देखें : पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
यह भी देखें : पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, 
यह भी देखें : बैंगन की खेती साल भर दे पैसा
  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
यह भी देखें : मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।