Ad

सहजन

सहजन की खेती : सेहत भी और आमदनी भी

सहजन की खेती : सेहत भी और आमदनी भी

सहजन की फलियां बेहद गुुणकारी होती हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग भी दर्जनों बीमारियों में हाता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। इसे विभिन्न क्षेत्रों में सहजन, सुजना, सेंंजन और मुनगा आदि नामों से जाना जाता है। 

इसके हर भाग का उपयोग पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसकी कच्ची फली और पत्तियों का उपयोग सब्जी में किया जाता है। जल को स्वच्छ करने के लिए भी इनका उपयोग होता है। 

सहजन का पौध 10 मीटर से भी ज्यादा लम्बा हो जाता है लेकिन लोग इससे अच्छी फली एवं पत्ती पाने के लिए इसकी मूल शाखा को एक से दो मीटर उूपर से काट देते हैं। 

इससे दो लाभ होते हैं। पहला पौधे के कल्लों की उूंचाई ज्यादा नहीं होती। दूसरा फली व पत्तों आदि को तोड़ने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

पोषक तत्वों की स्थिति

सहजन की कच्ची पत्तितयों एवं फलियां में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन बी1—बी2,  बी3, बी5, बी6,बी9, विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन, मैगनीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, जस्ता जैसे मूल एवं तकरीबन सभी शूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। 

सहजन का पत्ती, फली, छाल, जड़ एवं बीज से प्राप्त तेल आदि सभी का उपयोग भोजन में किया जा सकता है। इससे कुछ दवाएं भी बनाई जाती हैं। 

शरीर के लिए जरूरी तत्वों से भरपूर होने के कारण यह कई तरह की बीमारियोें से बचाता है। लोग तो यहां तक कहते हैं कि जो लोग दैनिक रूप से सहजन का उपयोग करते हैं वह तकरीबन तीन सौ बीमारियों से दूर रहते हैं।

क्या कहते हैं किसान

मथुरा जनपद के गांव खुशीपुरा निवासी मधु मलिक ने इसी तरह के विचार से प्रेरित होकर सहजन का बाग लगाया है। वह आठ माह का हुआ है। 

यदि बाजार में पत्त्यिों की कीमत की बात करें तो खरीददार 40 से 45 रुपए प्रति किलोग्राम का रेट बता रहे हैं। इसके अलावा बीज की बात करें तो कर्नाटक आदि राज्यों में सहजन पर काम करने वाले लोग इसका बीज दो से चार हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बेच लेते हैं। 

ये भी देखें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

बकरियों के चारे को लगा वेटरिनरी विवि में बाग

मथुरा के वेटरिनरी विश्वविद्याल में बकरियों को बीमारियों से बचाने और सभी पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सहजन का बाग लगाया गया है। इससे पत्तियां संकलित कर बकरियों को खिलाया जाएगा। इसके परिणामों का आकलन भी अनुसंधान कर किया जाएगा।

मोरिंगा पाउडर बेच रहा किसान

मथुरा के बाबूगढ़ गांव के प्रगतिशील किसान चरन सिंह बताते हैं कि पीकेएम 1 पत्ती वाली किस्म है। वह पत्ती का पाउडर मोरिंगा पाउडर को पीसकर एक हजार रुपए प्रति किलो बेच रहे हैं। 

वह कहते हैं कि एक साल में आठ से दस कटिंग हो जाती हैं। एक एकड़ में सबसे पहली कटिंग एक कुंतल निकलेगी। एक मीटर उूपर से पहली कटिंग काटते हैं। इसके बाद की बाकी सारी कटिंग नई शाखाओं में से चार इंच छोड़ छोड़ कर काट लेते हैं। 

फली के लिए दक्षिण की ओडीसी वेरायटी चलती है। डेढ फीट लंबी मोटी गूदादार फली लगती है।  पीकेएम 1 किस्म की फली ज्यादा लंबी हो जाती है लिहाजा इसकी बाजार में कीमत अच्छी नहीं मिलती।

साल में दो बार मिलती हैं फली

यदि पत्ती के लिए खेती करनी है तो कटिंग नहीं की जाती। कटिंग करनी हो तो फूल आने से काफी पहले करनी चाहिए ताकि फली बनने की प्रक्रिया पूरी हो सके। सहजन पर साल में दो बार फलियां लगती हैं।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

आज हम बात करेंगे गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों की पैदावार कैसे करते हैं और उनकी देखभाल कैसे करनी चाहिए। ताकि गर्मी के प्रकोप से इन सब्जियों और पौधों को किसी भी प्रकार की हानि ना हो। 

यदि आप भी अपने पेड़ पौधों और हरी सब्जियों को इन गर्मी के मौसम से बचाना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे। जैसा कि हम सब जानते हैं गर्मियों का मौसम शुरू हो गया है। 

सब्जियों के देखभाल और उनको उगाने के लिए मार्च और फरवरी का महीना सबसे अच्छा होता है। बागवानी करने वाले इन महीनों में सब्जी उगाने का कार्य शुरू कर देते हैं। इस मौसम में जो सब्जियां उगती है। 

उनके बीजों को पौधों या किसी अन्य भूमि पर लगाना शुरू कर देते हैं। गर्मी के मौसम में आप हरी मिर्च, पेठा, लौकी, खीरा ,ककड़ी, भिंडी, तुरई, मक्का, टिंडा बैगन, शिमला मिर्च, फलिया, लोबिया, बरबटी, सेम आदि सब्जियां उगा सकते हैं।

यदि आप मार्च, फरवरी में बीज लगा देते हैं तो आपको अप्रैल के आखिरी तक सब्जियों की अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है। 

गर्मियों के मौसम में ज्यादातर हरी सब्जियां और बेल वाली सब्जी उगाई जाती हैं। सब्जियों के साथ ही साथ अन्य फलियां, पुदीना धनिया पालक जैसी सब्जियां और साथ ही साथ खरबूज तरबूज जैसे फल भी उगाए जाते हैं।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल और उगाने की विधि:

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जी के पौधों की देखभाल करना बहुत ही आवश्यक होता है। ऐसा करने से पौधे सुरक्षित रहेंगे,उन्हें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा। 

यदि आप गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों को उगाना चाहते है, तो आप हरी सब्जी उगाने के लिए इन प्रक्रिया का इस्तेमाल कर सकते हैं यह प्रक्रिया कुछ निम्न प्रकार है;

मक्का

मक्का जो आजकल स्वीट कॉर्न के रूप में लोगों के बीच बहुत ही प्रचलित है।आप इसको घर पर भी लगा सकते हैं। मक्का उगाने के लिए आपको कुछ मक्के के दाने लेने हैं उन्हें रात भर पानी में भिगोकर रखना है और फिर उन्हें किसी प्रकार के साफ कपड़े से बांधकर रख देना है। 

आप को कम से कम 2 दिन के बाद जब उनके छोटे-छोटे अंकुरित आ जाए , तब उन्हें किसी  क्यारी या मिट्टी की भूमि पर लगा देना है। मक्के का पौधा लगाने के लिए आपको अच्छी गहराई को नापना होगा। 

मिट्टी में आपको खाद ,नीम खली, रेत मिट्टी मिलानी होगी। खाद तैयार करने के बाद दूरी को बराबर रखते हुए, आपको बीज को मिट्टी में बोना होगा। मक्के के बीज केवल एक हफ्ते में ही अंकुरित होने लगते हैं।

मक्के के पौधे की देखभाल के लिए:

मक्के के पौधों की देखभाल के लिए पोलीनेशन  बहुत अच्छा होना चाहिए। कंकड़ वाली हवाओं से पौधों की सुरक्षा करनी होगी। 2 महीने पूर्ण हो जाने के बाद मक्का आना शुरू हो जाते हैं। इन मक्के के पौधों को आप 70 से 75 दिनों के अंतराल में तोड़ सकते हैं।

टिंडे के पौधे की देखभाल:

टिंडे की देखभाल के लिए आपको इनको धूप में रखना होगा। टिंडे लगाने के लिए काफी गहरी भूमि की खुदाई की आवश्यकता होती है।इनकी बीज को आप सीधा भी बो  सकते हैं।

इनको कम से कम आप दो हफ्तों के भीतर गमले में भी लगा सकते हैं। टिंडे को आपको लगातार पानी देते रहना है। इनको प्रतिदिन धूप में रखना अनिवार्य है जब यह टिंडे अपना आकार 6 इंच लंबा कर ले , तो आपको इनमें खाद या पोषक तत्व को डालना होगा। कम से कम 70 दिनों के भीतर आप टिंडों  को तोड़ सकते हैं

फ्रेंच बीन्स पौधे की देखभाल

फ्रेंच बीन्स पौधे की देखभाल के लिए अच्छी धूप तथा पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। जिससे पौधों की अच्छी सिंचाई और उनकी उच्च कोटि से देखभाल हो सके।

फ्रेंच बींस के पौधे लगाने के लिए आपको इनकी  बीज को कम से कम रात भर पानी में भिगोकर रखना चाहिए। फ्रेंच बींस के पौधे एक हफ्ते में तैयार हो जाते। 2 हफ्ते के अंतराल के बाद आप इन पौधों को गमले या अन्य बगीचा या भूमि में लगा सकते हैं। 

मिट्टी  खाद ,रेत और नीम खली जैसे खादों का उपयोग इनकी उत्पादकता के लिए इस्तेमाल कर सकते है।फलियां लगभग ढाई महीनों के बाद तोड़ने लायक हो जाती है।

भिंडी के पौधों की देखभाल

भिंडी के पौधों की देखभाल के लिए पौधों में नमी की बहुत ही आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में आप को पर्याप्त मात्रा में पानी और धूप दोनों का उचित ध्यान रखना होगा। 

 भिंडी के पौधों के लिए सामान्य प्रकार की खाद की आवश्यकता होती है। भिंडी के बीज को बराबर दूरी पर बोया जाता है भिंडी के अंकुर 1 हफ्तों के बीज अंकुरित हो जाते हैं। 

पौधों के लिए पोषक तत्वों की भी काफी आवश्यकता होती है। पानी के साथ पोषक तत्व का भी पूर्ण ख्याल रखना होता है। 

भिंडी के पौधे 6 इंच होने के बाद हल्की-हल्की मिट्टियों के पत्तो को हटाकर इनकी जड़ों में उपयुक्त खाद या गोबर की खाद को डालें। भिंडी के पौधों में आप तरल खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं , ढाई महीने के बाद पौधों में भिंडी आना शुरू हो जाएंगे।

गर्मियों के मौसम में हरी मिर्च के पौधों की देखभाल

भारत में सबसे लोकप्रिय मसाला कहे जाने वाली मिर्च ,और सबसे तीखी मिर्च गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। बीमारियों के संपर्क से बचने के लिए तीखी हरी मिर्च बहुत ही अति संवेदनशील होती है। 

इन को बड़े ही आसानी से रोपण कर बोया या अन्य जगह पर उगाया जा सकता है। इन पौधों के बीच की दूरी लगभग 35 से 45 सेंटीमीटर होने चाहिए। और गहराई मिट्टी में कम से कम 1 से 2 इंच सेंटीमीटर की होनी चाहिए , 

इन दूरियों के आधार पर मिर्च के पौधों की बुवाई की जाती है। 6 से 8 दिन के भीतर  इन बीजों में अंकुरण आना शुरू हो जाते हैं। हरी मिर्ची के पौधे 2/3 हफ्तों में पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं।

लौकी गर्मी की फसल है;

लौकी गर्मियों के मौसम में उगाई जाने वाली सब्जी है। लौकी एक बेल कहीं जाने वाले सब्जी है, लौकी में बहुत सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। लौकी को आप साल के 12 महीनों में खा सकते हैं।

लौकी के बीज को आप मिट्टी में बिना किसी अन्य देखरेख के सीधा बो सकते हैं। गहराई प्राप्त कर लौकी के बीजों को आप 3 एक साथ बुवाई कर सकते हैं। 

यह बीज  6 से 8 दिन के भीतर अंकुरण हो जाते है। लौकी की फसल के लिए मिट्टियों का तापमान लगभग 20 और 25 सेल्सियस के उपरांत होना जरूरी है।

गोभी

गर्मियों के मौसम में गोभी बहुत ही फायदेमंद सब्जियों में से एक होती है।और इसकी देखरेख करना भी जरूरी होता हैं।गर्मियों के मौसम में गोभी की सब्जी आपके पाचन तंत्र में बेहद मददगार साबित होती है ,तथा इसमें मौजूद पोषक तत्व आप को कब्ज जैसी शिकायत से भी राहत पहुंचाते हैं। गोभी फाइबर वह पोषक तत्वों से पूर्ण रूप से भरपूर होते हैं।

पालक के पौधों की देखभाल

पालक की जड़ें बहुत छोटी होती है और इस वजह से यह बहुत ज्यादा जमीन के नीचे नहीं जा पाती हैं। इस कारण पालक की अच्छी पैदावार के लिए इसमें ज्यादा मात्रा की सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। 

पालक के पौधों की देखभाल करने के लिए किसानों को पालक के पौधों की मिट्टी को नम रखना चाहिए। ताकि पालक की उत्पादकता ज्यादा हो।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल : करेले के पौधे की देखभाल

गर्मी के मौसम में करेले के पौधों को सिंचाई की बहुत ही आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए इसकी सिंचाई का खास ख्याल रखना चाहिए। हालांकि सर्दी और बारिश के मौसम में इसे पानी या अन्य सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। गर्मी के मौसम में करेले के पौधों को 5 दिन के अंदर पानी देना शुरू कर देना चाहिए।

बीज रोपण करने के बाद करेले के पौधों को छायादार जगह पर रखना आवश्यक होगा, पानी का छिड़काव करते रहना है ,ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। 5 से 10 दिन के भीतर बीज उगना  शुरू हो जाती हैं ,आपको करेले के पौधों को हल्की धूप में रखना चाहिए।

शिमला मिर्च के पौधों की देखभाल

शिमला मिर्च के पौधे की देखभाल के लिए उनको समय-समय पर विभिन्न प्रकार के कीट, फंगल या अन्य संक्रमण से बचाव के लिए उचित दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए। 

फसल बोने के बाद आप 40 से 50 दिनों के बाद शिमला मिर्ची की फसल की तोड़ाई कर सकते हैं। पौधों में समय-समय पर नियमित रूप से पानी डालते रहें। 

बीज के अंकुरित होने तक आप पौधों को ज्यादा धूप ना दिखाएं। शिमला मिर्च के पौधों की खेती भारत के विभिन्न विभिन्न हिस्सों में खूब की जाती है। क्योंकि यह बहुत ही फायदेमंद होता है साथ ही साथ लोग इसे बड़े चाव के साथ खाते हैं।

चौलाई के पौधों की देखभाल :

चौलाई की खेती गर्मियों के मौसम में की जाती है।शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में चौलाई का उत्पादन होता है।

चौलाई की खेती ठंडी के मौसम में नहीं की जाती ,क्योंकि चौलाई अच्छी तरह से नहीं  उगती ठंडी के मौसम में। चौलाई लगभग 20 से 25 डिग्री के तापमान उगना शुरू हो जाती है और अंकुरित फूटना शुरू हो जाते हैं।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल : सहजन का साग के पौधों की देखभाल

सहजन का साग बहुत ही फायदेमंद होता है इसके हर भाग का आप इस्तेमाल कर सकते हैं। और इसका इस्तेमाल करना उचित होता है।

सहजन के पत्ते खाने के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, तथा सहजन की जड़ों से विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनती है। 

सहजन के पत्ते कटने के बाद भी इसमें  प्रोटीन मौजूद होता है। सभी प्रकार के आवश्यक तत्व जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स, खनिज,अमीनो एसिड, विटामिंस उचित मात्रा में पाए जाते हैं।

टमाटर गर्मियों के मौसम में

सब्जियों की पैदावार के साथ-साथ गर्मी के मौसम में टमाटर भी शामिल है।टमाटर खुले आसमान के नीचे धूप में अच्छी तरह से उगता है। टमाटर के पौधों के लिए 6 से 8 घंटे की धूप काफी होती है इसकी उत्पादकता के लिए।

टमाटर की बीज को आप साल किसी भी महीने में बोया जा सकते हैं।डायरेक्ट मेथर्ड या फिर ट्रांसप्लांट मेथर्ड द्वारा भी टमाटर की फसल को उगाया जा सकता है। 

माटर की फसल को खासतौर की देखभाल की आवश्यकता होती है। टमाटर की बीजों को अंकुरित होने के लिए लगभग 18 से 27 सेल्सियस डिग्री की आवश्यकता होती है। 

80 से 100 दिन के अंदर आपको अच्छी मात्रा में टमाटर की फसल की प्राप्ति होगी। टमाटर के पौधों की दूरी लगभग 45 से 60 सेंटीमीटर की होनी चाहिए। 


दोस्तों हमने अपनी  इस पोस्ट में गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों और उनकी देखभाल किस प्रकार करते हैं। सभी प्रकार की पूर्ण जानकारी अपनी इस पोस्ट में दी है और उम्मीद करते हैं,कि आपको हमारी या पोस्ट पसंद  आएगी।यदि आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करे। हम और अन्य टॉपिक पर आपको अच्छी अच्छी जानकारी देने की पूरी कोशिश करेंगे।

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

बहु उपयोगी पेड़ सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि कई स्थानीय नामों से पुकारे पहचाने जाने वाले इस फलीदार वृक्ष की खासियतों के राज यदि आप जानेंगे तो आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा। किसान मित्र औषधीय एवं खाद्य उपयोगी कम लागत की इस पेड़ की खेती कर लाखों रुपए का लाभ हासिल कर सकते हैं। ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) यानी कि सहजन या मुनगा का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) है। जड़ से लेकर पत्तियों तक कई पोषक तत्वों से भरपूर इस पौधे का उपयोग रसोई से लेकर औषधीय गुणों के कारण प्रयोगशालाओं तक विस्तृत है।

उपयोग इतने सारे

सहजन या मुनगे की पत्तियों और फली की सब्जी को चाव से खाया जाता है। मुनगे की पत्तियां जल को स्वच्छ करने में भी उपयोग की जाती हैं।



ये भी पढ़ें: श्रावण मास में उगाएंगे ये फलफूल, तो अच्छी आमदनी होगी फलीभूत

मुनगे की पहचान

एक हाथ या उससे अधिक लंबी आकार वाली मुनगे की फलियां खाद्य एवं औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। आम तौर पर बरवटी, सेम जैसी फलीदार सब्जियां बेलों पर पनपती हैं। जबकि मुनगे की फलियां वृक्ष पर लगती हैं। मुनगे के पेड़ के तने में काफी मात्रा में पानी होता है। सहजन के पेड़ की शाखाएं काफी कमजोर होती हैं। सहजन के फल-फूल-पत्तियों की बाजार में खासी डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों के क्रय एवं निर्जलीकरण के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुनगे की खेती को प्रोत्साहित करने कृषि विभाग ने पत्तियों और फलों की खरीद से जुड़ी कई प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के अधीन मुनगा पत्‍ती रोपण के बारे में किसान कल्याण मंत्री से मुनगा पत्‍ती मूल्‍य अनुबंध खेती, किसानों के लिए इसमें समाहित अनुदान, प्रावधान से संबंधित सवाल किए जा चुके हैं।



ये भी पढ़ें:
बिल्व या बेल की इन चमत्कारी स्वास्थ्य रक्षक व कृषि आय वर्धक खासियतों को जानें

गौरतलब है कि बैतूल जिले में वर्ष 2018-19 में मुनगा की खेती के लिए किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की गई थी। इसका लक्ष्य किसान से मुनगा पत्‍ती खरीदकर उन्हें लाभान्वित करना था। हालांकि सदन में यह भी आरोप लगा था कि, बैतूल के किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे की दर से घटिया गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए गए। यह पौधे मृत हो जाने से किसानों को लाभ के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।

कटाई का महत्व

पौधे की ऊंचाई की बात करें, तो आम तौर पर सहजन का पौधा लगभग 10 मीटर तक वृद्धि करता है। चूंकि जैसा हमने बताया कि इसके तने कमजोर होते हैं, इस कारण इस पर चढ़कर फल, पत्तियों की तुड़ाई करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए लगभग 10 से 12 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इसकी पैदावार करने वाले किसान इसकी हर साल इसकी कटाई कर डेढ़ से दो मीटर की ऊंचाई को कम कर देते हैं। इसके फल-फूल-पत्तियों की आसान तुड़ाई के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

स्टोरेज कैपिसिटी

अपनी फलियों के आकार के कारण ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) कहे जाने वाले मुनगा पेड़ में उगने वाली फलियां ड्रम (पाश्चात्य वाद्य) बजाने वाली स्टिक (डंडी/छड़ी) की तरह दिखती हैं। मुनगा की कच्ची-हरी फलियां भारतीय लोग रसम, सांबर, दाल में डालकर या सब्जी आदि बनाकर खाते हैं। लगभग एक बांह लंबी डंडी के आकार वाली सहजन या मुनगा की फलियां तुड़ाई के बाद 10 से 12 दिनों तक उचित देखरेख में घरेलू उपयोग में लाई जा सकती हैं। साथ ही सूखने के बाद भी इसकी फलियों का चूर्ण आदि कई तरह के उपयोग में लाया जाता है।



ये भी पढ़ें: मचान विधि – सब्जी की खेती करने का आसान तरीका

कितने गुणों से भरपूर

सहजन की पत्तियों से लेकर फलियां, छाल, जड़ तक बहुआयामी उपयोगों से परिपूर्ण हैं। मुनगा के बीज से तेल निकालकर भी उसे खाद्य एवं औषधीय उपयोग में लाया जाता है। सहजन की कच्ची हरी पत्तियों में पोषक मूल्य की मात्रा महत्वपूर्ण होती है।

USDA Nutrient database के अनुसार

सहजन में उर्जा, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशा, वसा, प्रोटीन की मात्रा ही इसे खास बनाती है। इसमें पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व से लेकर अन्य पोषक पदार्थ बहुतायत में पाए जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में मुनगा के पेड़ प्राकृतिक रूप से स्वतः पनप जाते हैं। ड्रमस्टिक (Drumstick) एवं इसकी पत्तियां कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका के नागरिक खाने में उपयोग में लाते हैं। दक्षिण भारत के तमाम व्यंजनों में इसका अनिवार्यता से प्रयोग होता है। स्वाद की बात करें तो मुनगा का टेस्ट, मशरूम सरीखा महसूस होता है। छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है।



ये भी पढ़ें: घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके औषधीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि, तकरीबन तीन सैकड़ा से अधिक रोगों की रोकथाम के साथ ही इनके उपचार की ताकत मुनगा में होती है। मुनगा में मौजूद 90 से अधिक किस्मों के मल्टीविटामिन्स, कई तरह के एंटी आक्सीडेंट, दर्द निवारक गुण और कई प्रकार के एमिनो एसिड इसके प्राकृतिक महत्व को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

कम लागत, कम देखभाल, मुनाफा पर्याप्त

स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या प्राइवेट फल-पौधों की नर्सरी से सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) के उपचारित बीज एवं पौधे क्रय किए जा सकते हैं। किसान मित्र मुनगा के पुराने पौधों की फलियों को संरक्षित करके भी उसके बीजों को बोकर पौध तैयार कर सकते हैं। हालांकि नर्सरी आदि में तैयार बीज एवं पौधे ज्यादा मुनाफा प्रदान करने में सहायक होते हैं, क्योंकि इस पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही नर्सरी या शासकीय विक्रय केंद्रों से बीज एवं पौधे खरीदने पर किसानों को मुनगे की पैदावार से जुड़़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एवं सुझाव भी मुफ्त में प्राप्त होते हैं।



ये भी पढ़ें: पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण

बारिश अनुकूल मौसम

किसान मित्रों के लिए जुलाई-अगस्त का महीना मुनगा की खेती करने के लिए हितकारी होता है। बारिश का मौसम पौध एवं बीजारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है। आमतौर पर वर्षाकाल बागवानी के लिए सबसे मुफीद होता है क्योंकि इस दौरान किसी भी पौधे को तैयार किया जा सकता है। https://youtu.be/s5PUiHTe82Q

बीज का ऑनलाइन मार्केट

ऑनलाइन मार्केट में भी कृषि सेवा प्रदान करने वाली कई कंपनियां मुनगा के बीज एवं पौधे रियायती दर पर उपलब्ध कराने के दावे करती हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोरिंगा (सफेद) बीज के 180 ग्राम वजनी पैकेट की कीमत 2 अगस्त 2022 को सभी टैक्स सहित ₹499.00 दर्शाई जा रही थी।

सहजन के लाभ एवं नुकसान

मुनगा के अंश का सेवन करने से मानव की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें भरपूर रूप से उपलब्ध कैल्‍श‍ियम की मात्रा साइटिका, गठिया के इलाज में कारगर है। हल्का एवं सुपाच्य भोज्य होने के कारण इसका खाद्य उपयोग लि‍वर की सेहत के लिए फायदेमंद है। पेट दर्द, गैस बनना, अपच और कब्ज की बीमारी भी मुनगा के फूलों का रस या फिर इसकी फलियों की सब्जी के सेवन से काफूर हो जाती है।



ये भी पढ़ें: तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

हालांकि मुनगा जहां मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी है वहीं इसके सेवन के कई नुकसान भी हो सकते हैं। मोरिंगा (सहजन) का असंतुलित सेवन शरीर में आंतरिक जलन का कारक हो सकता है। मासिक धर्म में महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए। प्रसव के फौरन बाद भी इसका सेवन वर्जित माना गया है।

मुनगा का बाजार महत्व

जैसा कि इसकी उपयोगिता से स्पष्ट है कि कच्चे फल, पत्तियों से लेकर उसके उपोत्पाद तक के मामले में सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) की तूती बोलती है। दैनिक, साप्ताहिक हाट बाजार, शासकीय निर्धारित मूल्य पर खरीद से लेकर शॉपिंग मॉल्स में भी इसकी डिमांड बनी रहती है। तो यह हुई कच्चे फल, पत्तियों के बाजार से जुड़़ी मांग की बात, अब इसके बाय प्राडक्ट पर नजर डालते हैं। दरअसल ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पाद की सेल करने वाली कंपनियां मोरिंगा (मुनगा) के उपोत्पाद भी रिटेल सेंटर्स के साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मुहैया कराती हैं। ऑनलाइन मार्केट में 100 ग्राम मोरिंगा पाउडर 2 सौ रुपए से अधिक की कीमत पर बेचा जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि, मुनगा की किसानी में कृषक को कितना मुनाफा मिल सकता है।

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे मुनगा, सेजन और सहजन (Munga, Sahjan, Moringa oleifera, Drumstick) नामों से जाना जाता है। बारहमासी सब्जी देने वाला यह पेड़ विश्व स्तर पर भारत में ही सर्वाधिक इस्तेमाल में लाया जाता है।

सुरजना पौधे का महत्व

यह वृक्ष स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी समझा जाता है और इसकी पत्तियां तथा जड़ों के अलावा तने का इस्तेमाल भी कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। सुरजना या ड्रमस्टिक (Drumstick) कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकने वाला यह पौधा राजस्थान जैसे रेगिस्तानी और शुष्क इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।सीधी धूप पड़ने वाले इलाकों में इस पौधे की खेती सर्वाधिक की जा सकती है। इस पौधे का एक और महत्व यह होता है कि इससे प्राप्त होने वाले बीजों से कई प्रकार का तेल निकाला जा सकता है और इस तेल की मदद से कई आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती है। इसके बीज को गंदे पानी में मिलाने से यह पानी में उपलब्ध अपशिष्ट को सोख लेता है और अशुद्ध पानी को शुद्ध भी कर सकता है। कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकने वाला यह पौधा जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के अलावा एक प्राकृतिक खाद और पोषक आहार के रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता है। आयुष मंत्रालय के अनुसार केवल एक सहजन के पौधे से 200 से अधिक रोगों का इलाज किया जा सकता है। यदि बात करें इस पौधे की पत्तियों और तने में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की, तो यह विटामिन ए, बी और सी की पूर्ति के अलावा कैल्शियम, आयरन और पोटेशियम जैसे खनिजो की कमी को भी दूर करता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में प्रोटीन की भी प्रचुर मात्रा पाई जाती है। वर्तमान में कई कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा इस पौधे की जड़ का इस्तेमाल रक्तशोधक बनाने के लिए किया जा रहा है। इस तैयार रक्तशोधक से आंखों की देखने की क्षमता को बढ़ाने के अलावा हृदय की बीमारियों से ग्रसित रोगियों के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जा रही है।



ये भी पढ़ें: घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

सुरजना पौधे के उत्पादन की संपूर्ण विधि :

जैसा कि हमने आपको पहले बताया सुरजना का बीज सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से पल्लवित हो सकता है। इस पौधे के अच्छे अंकुरण के लिए ताजा बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए और बीजों की बुवाई करने से पहले, उन्हें एक से दो दिन तक पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। सेजन पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने के लिए बालू और खेत की मृदा को जैविक खाद के साथ मिलाकर एक पॉलिथीन का बैग में भर लेना चाहिए। इस तैयार बैग में 2 से 3 इंच की गहराई पर बीजों का रोपण करके दस दिन का इंतजार करना चाहिए। इन बड़ी थैलियों में समय-समय पर सिंचाई की व्यवस्था का उचित प्रबंधन करना होगा और दस दिन के पश्चात अंकुरण शुरू होने के बाद इन्हें कम से कम 30 दिन तक उन पॉलिथीन की थैलियों में ही पानी देना होगा। इसके पश्चात अपने खेत में 2 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा एक गड्ढा खोदकर थैली में से छोटी पौधों को निकाल कर रोपण कर सकते है। पांच से छह महीनों में इस पौधे से फलियां प्राप्त होनी शुरू हो जाती है और इन फलियों को तोड़कर अपने आसपास में स्थित किसी सब्जी मंडी में बेचा जा सकता है या फिर स्वयं के दैनिक इस्तेमाल में सब्जी के रूप में भी किया जा सकता है। [embed]https://youtu.be/s5PUiHTe82Q[/embed]

सुरजना पौधे के उत्पादन के दौरान रखें इन बातों का ध्यान :

सुरजाना पौधे के रोपण के बाद किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि इस पौधे को पानी की इतनी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए सिंचाई का सीमित इस्तेमाल करें और खेत में जलभराव की समस्या को दूर करने के लिए पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था भी रखें। रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल की सीमित मात्रा में करना चाहिए, बेहतर होगा कि किसान भाई जैविक खाद का प्रयोग ही ज्यादा करें, क्योंकि कई रासायनिक कीटनाशक इस पौधे की वृद्धि को तो धीमा करते ही हैं, साथ ही इससे प्राप्त होने वाली उपज को भी पूरी तरह से कम कर सकते है। घर में तैयार नर्सरी को खेत में लगाने से पहले ढंग से निराई गुड़ाई कर खरपतवार को हटा देना चाहिए और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का पूरा पालन करना चाहिए।



ये भी पढ़ें: जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

सेजन उत्पादन के दौरान पौधे में लगने वाले रोग और उनका उपचार :

वैसे तो नर्सरी में अच्छी तरीके से पोषक तत्व मिलने की वजह से पौधे की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी हो जाती है, लेकिन फिर भी कई घातक रोग इसके उत्पादकता को कम कर सकते है, जो कि निम्न प्रकार है :-

पौधे की नर्सरी तैयार होने के दौरान ही इस रोग से ग्रसित होने की अधिक संभावना होती है। इस रोग में बीज से अंकुरित होने वाली पौध की मृत्यु दर 25 से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। यह रोग नमी और ठंडी जलवायु में सबसे ज्यादा प्रभावी हो सकता है और पौधे में बीज के अंकुरण से पहले ही उसमें फफूंद लग जाती है।

इस रोग की एक और समस्या यह है कि एक बार बीज में यह रोग हो जाने के बाद इसका इलाज संभव नहीं होता है, हालांकि इसे फैलने से जरूर बचाया जा सकता है।

इस रोग से बचने के लिए पौधे की नर्सरी को हवादार बनाना होगा, जिसके लिए आप नर्सरी में इस्तेमाल होने वाली पॉलिथीन की थैली में चारों तरफ कुछ छेद कर सकते है, जिससे हवा आसानी से बह सके।

यदि बात करें रासायनिक उर्वरकों की तो केप्टोन (Captan) और बेनोमील प्लस (Benomyl Plus) तथा मेटैलेक्सिल (metalaxyl) जैसे फंगसनाशीयों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • पेड़ नासूर रोग (Tree Canker Disease) :

सेजन के पौधों में यह समस्या जड़ और तने के अलावा शाखाओं में देखने को मिलती है।

इस रोग में पेड़ के कुछ हिस्से में कीटाणुओं और इनफैक्ट की वजह से पौधे की पत्तियां, तने और अलग-अलग शाखाएं गलना शुरू हो जाती है, हालांकि एक बार इस रोग के फैलने के बाद किसी भी केमिकल उपचार की मदद से इसे रोकना असंभव होता है, इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई सलाह के अनुसार पेड़ के नासूर ग्रसित हिस्से को काटकर अलग करना होता है।

कुछ किसान पूरे पेड़ पर ही केमिकल का छिड़काव करते हैं, जिससे कि जिस हिस्से में यह रोग हुआ है इसका प्रभाव केवल वहीं तक सीमित रहे और पेड़ के दूसरे स्वस्थ भागों में यह ना फैले।

पेड़ के हिस्सों को काटने की प्रक्रिया सर्दियों के मौसम में करनी चाहिए, क्योंकि इस समय काटने के बाद बचा हुआ हिस्सा आसानी से रिकवर हो सकता है।



ये भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें

गर्मी और बारिश के समय में इस प्रक्रिया को अपनाने से पेड़ के आगे के हिस्से की वृद्धि दर भी पूरी तरीके से रुक जाती है। इसके अलावा कई दूसरे पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों जैसे कि फंगस, वायरस और बैक्टीरिया की वजह कई और रोग भी हो सकते हैं परंतु इनका इलाज इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (Integrated Pest Management) विधि की मदद से बहुत ही कम लागत पर आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को हर तरह से पोषक तत्व प्रदान करने वाला 'न्यूट्रिशन डायनामाइट' यानी कि सुरजना की फसल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी कम लागत पर वैज्ञानिकों के द्वारा जारी एडवाइजरी का सही पालन कर अच्छा मुनाफा कर पाएंगे।

गंभीर रोगों की दवा हैं जंगली पौधे

गंभीर रोगों की दवा हैं जंगली पौधे

खरपतवार समझकर किसान ब्रज में खत्म कर रहे हैं इन जंगली बूटियों को। ब्रज अंचल हो या अन्य क्षेत्रीय वनौषधियां यहां खत्म होती जा रही हैं। पशुओं के रोग हों या मानव स्वास्थ्य सभी से इनका गहरा नाता रहा है। खरपतवार समझकर खत्म की जा रहीं यह सभी औषधियां बहुत उपयोगी हैं। इन पर हर अनुसंधान संस्थान में काम चल रहा है। यहां जीएलए विश्वविद्यालय में सेवानिवृत्त डीएचओ बीएल पचौरी एक हर्बल वाटिका बनाकर इस पर काम कर रहे हैं। आइए जानें कौन-सी हैं यह औषधियां और कितनी उपयोगी हैं। फरास का पेड़ ब्रज का मुख्य वृक्ष रहा है। वर्तमान में यह विलुप्त होने के कगार पर है। इसे गर्मी का कुचालक माना जाता है। जिस खेत की मेंढ़ पर यह पौधा खड़ा हो वहां फसल को पाला नहीं मार सकता। गर्मी का प्रभाव इसके 50 मीटर से ज्यादा दूरी तक नहीं हो सकता। यह वृक्ष महाभारत कालीन है। कहा जाता है कि इस वृक्ष पर आकाशीय बिजली नहीं गिरती। इसीलिए बरसात के दिनों में जंगली जीव इसके नीचे शरण लेते हैं। खारे पानी में मौजूद तत्व कार्बन डाई एवं मोनो आक्साइड आदि को खत्म करता है। खारे पानी में उत्पन्न होने वाली गैस को खत्म करता था। इसकी पत्ती खिलाने से जानवरों का दूध बढ़ता है।

झरबेरी

jharbari

झरबेरी जंगलों में लगातार घट रही है। राजस्थान में आज भी इसे पशुओं के चारे में प्रयोग में लाया जाता है। इससे दूध की पौष्टिकता के साथ घी में सुगंध बढ़ती है। इसके साथ यह पशुओं को कई बीमारियों से दूर रखता है।

बरना

barna

बरना का पेड़ ब्रज में बहुतायत में हुआ करता था। इसे वरुण देवता का द्योतक माना जाता है।इस वृक्ष से सूखा पड़ने की सूचना तीन माह पहले ही मिल जाती थी। यह गर्मी में अच्छा फल फूल रहा हो तो समझ जाता था, इस बार बरसात अच्छी होंगी। अन्यथा सूखा पड़ेगा। गलाघोंटू के लिए इसकी लकड़ी को पशुओं के गले में बांधा जाता है। इसकी छाल का काढ़ा आज भी आदिवासी अपने पशुओं को रोग संक्रमण से बचाने के लिए पिलाते हैं।

कदंब

kadamb

कदंब के पास गाय बांधने से पशु में दूध बढ़ता और प्रजनन क्षमता में सुधार होता है।इसीलिए भगवान कृष्ण ने सारी लीलाएं इसके पास कीं। इसके साथ ही इससे गेस्ट्रिक ट्रबल खत्म होती है। विषाणु एवं जीवाणुनाशी है।

करील

kareel

करील को हमने मिटा दिया है। दिल के रोगों, ब्लड प्रैसर का समाधान इस वृक्ष से होता है। गर्मी से बचने के लिए काम आता है। मिर्गी रोग के लिए इसकी कोपल व फूल की सब्जी बनाकर खाई जाती थी। इसके फल टैंटी का अचार आज भी चाव से खाया जाता है।

सहजन

sehjan

सहजन का वृक्ष हमारी जमीन को भी ठीक करता है।गठिया से जुड़े रोगों को दूर करता है। इसकी छाल व जड़ काम में आती है। गंभीर गैस्ट्रिक रोगियों को सहजन का मुरब्बा खाने की सलाह वैद्य आज भी देते हैं।

गोंदी

gondi

गोंदी ब्रज की मुख्य वनौषधि थी। इसे सरस्वतीजी का द्योतक माना जाता था। गले के रोगों के लिए इसकी पत्ती प्रयोग में लाई जाती थी। गले के छाले या कष्ट इसकी पत्तियों से खत्म न हों तो समझ जाता था कि कोई गंभीर रोग होने वाला है।

पीलू

पीलू  ब्रज का प्रमुख वृक्ष रहा है। राधा- कृष्ण की लीलाओं में भी इसका जिक्र आता है। यहां इसे खड़ार के नाम से भी जाना जाता है। इसकी जड़ अरब देश में मुस्लिम, बहुतायत में प्रयोग करते हैं। यहां भी लोग एक दशक पूर्व तक इसकी टहनियों को दातुन के रूप में प्रयोग करते थे। यह मुख के रोगों के लिए वरदान है। दांतों के रोग पायरिया आदि को दूर करने के गुण इसमें विद्यमान हैं।

पसैंदू ‘तमाल’

tamal

पसैंदू तमाल वृक्ष खुरपका मुंहपका में इसके पके फलों को घाव पर बांधते थे। फलों को पानी में उबालकर संक्रमित स्थान को धोते थे। इसके नीचे बच्चों को नहलाने से त्वचा रोग दूर होते हैं। गुजरात में भी यह पाया जाता है। ज्यादा पानी वाले क्षेत्रों में पैरों की उंगलियां गलने के रोग दूर करने में इसका प्रयोग होता है। इसके बीजों में नाइट्रोजन ज्यादा होती है। इसीलिए किसान इसके नीचे की मिट्टी खेतों में डालते थे। इसे श्याम तमाल के नाम से भी जाना जाता है। इंडोनेशिया में इसके फल को आम की तरह प्रयोग करते हैं।

मेरेला ‘वन मैथी’

methi

मेरेला ‘वन मैथी’ जानवरों का दूध बढ़ाती है। मरुआ की सुगंध अच्छी होती है। कीटनाशक गुण होने के कारण बच्चों के पेट में कृमि होने पर गुदा मुख पर लगाया जाता है। इसका रायता पीने से गैस्ट्रिक ट्रबल खत्म होती है। इसके नीचे सर्प नहीं आता है। यदि आ भी जाए तो वह इस पौधे के दायरे में आने पर निष्क्रिय हो जाता है। इसका प्रयोग मिर्गी रोग में भी किया जाता है।

ऊंट कटेरा

unth

ऊंट कटेरा जंगली खरपतवार है। यह जानवारों के दूध बढ़ाने में काम आता है। गर्भाधान की क्रिया को ठीक करता है। हरे चारे के रूप में इसके सेवन से पशु दूसरे ब्यांत में दूध अच्छा देता है। ग्लायडिया विदेशी पुष्प है। यह गर्मियों में भी यहां अच्छा होता है। ब्रज में चूंकि खारी पानी की समस्या है। इसलिए इसकी खेती खारी पानी वाले इलाकों में बहुत अच्छी हो सकती है।

चंद्रसूर

chandraasur

चंद्रसूर बहुत पुराना गठिया रोकने एवं महिला व पशुओं में दूध कम उतरने की समस्या को कम करने के काम में आता है। मान्यता है कि इसके पत्ते पर बच्चों को बैठकर खिलाने से उनमें वजन बढ़ता है। यह क्षारीय भूमि में होता है। पहले यह मेंथी के साथ होता था।

कलिहारी

kalihari

कलिहारी की जड़ छह फीट नीचे तक जाती है। इसमें क्रोमोजोम बहुत होते हैं। पहले फसलों का उत्पादन बढ़ाने के काम आता था। प्रसव से पहले बच्चा आसानी से नहीं होता तो सिर से पैर तक इसका लेप किया जाता था। क्रोमोजोम की संख्या के चलते पहले ब्रीडिंग में भी इसका उपयोग करते थे। अब वैज्ञानिकों के अन्य आधुनिक संसाधन विकसित कर लिए हैं तो इसकी उपयोगिता खत्म हो गई है।

लटजीरा

latjeera

इसे ब्रज में ओंगा के नाम से जाना जाता है। यह एण्टी एलर्जिक, एण्टी सेप्टिक एवं एण्टी वायरल गुणों वाला होता है। इसको चारे के रूप में खिलाने से पशुओं की आधी बीमारी खत्म हो जाती हैं। हड्डी टूटने पर इसके पत्तां को घी के साथ छौंक करके पशुओं को खिलाया जाता था। इसकी जड़ बहुत उपयोगी है। लोग इसकी दातुन भी करते थे। गर्भाशय के रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके चावल खाने से भूख नहीं लगती।

दूब घास

doob-laas

दूब घास को हम सब भूल रहे हंै। यह नीली, हरी, गांदर, और सफेद चार तरह की होती है। यह एण्टी वायरल, एण्टी बैक्टीरयल व एण्टी सेप्टिक होती है। इसके रस से बच्चों की नकसीर व महिलाओं का प्रदर की बीमारी दूर होती है। कॉलेस्ट्राल को कंट्रोल करती है। गांवों में चेचक मोतीझला होने पर नीम के साथ घर में या मुख्य द्वार पर इसे लगाया जाता है। जरूरत इस बात की है कि किसान इन वनौषधियों के महत्व को समङों और इनका उपयोग करें।

ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि देश के किसान सहजन की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसके पीछे मुख्य कारण सहजन की लोगों के बीच बढ़ती हुई लोकप्रियता है। 

जिससे बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा यह फसल कम लागत में किसानों को अच्छी खासी कमाई भी करा देती है। जिसके कारण किसान इसकी खेती करना पसंद कर रहे हैं। 

बाजार में सहजन के फूल और उसके फलों की भारी मांग रहती है। सहजन के बीजों का तेल निकालकर उपयोग में लाया जाता है। साथ ही इसके बीजों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसका विदेशों में निर्यात किया जाता है। 

इस हिसाब से देखा जाए तो सहजन की खेती हर प्रकार से किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है। सहजन के बारे में कहा जाता है कि यह पेड़ बंजर भूमि पर भी उगाया जा सकता है। 

साथ ही इस पेड़ की देखभाल करने की भी कोई खास जरूरत नहीं होती। सहजन के फूल, फल, पत्तियों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की सब्जियों के रूप में किया जाता है। 

औषधीय गुणों से युक्त सहजन की खेती भारत के अलावा  फिलीपिंस, श्रीलंका, मलेशिया, मैक्सिको जैसे देशों में भी की जाती है। अगर किसान भाई एक एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो साल भर में 6 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।

सहजन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सहजन का पौधा शुष्क और उष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगता है। इसकी खेती के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। इस तरह की जलवायु में सहजन के पौधे तेजी से विकसित होते हैं। 

ज्यादा ठंड सहजन के लिए अच्छी नहीं होती है। अधिक ठंड में सहजन के पौधे पाले के शिकार हो सकते हैं। इसके साथ ही ज्यादा तापमान भी सहजन सहन नहीं कर सकता। 

40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर सहजन के फूल झड़ने लगते हैं। यह पौधा विभिन्न प्रकार की परिस्थियों में बेहद आसानी से उग जाता है। इसके ऊपर कम या अधिक वर्षा का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

ये भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

सहजन की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

सहजन की खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। कहा जाता है कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा शक्ति वाली भूमि में भी सहजन का पौधा आसानी से उग जाता है। 

साथ ही यदि आपके पास बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत उपलब्ध हैं तो यह सहजन के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। ध्यान रहे कि खेत की मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

सहजन के पौधों की रोपाई

सहजन के पौधों को कटिंग के द्वारा लगाया जाता है। इसके लिए 45 सेंटीमीटर लंबी कलम तैयार करना चाहिए। कलमों को खेत में सीधे लगाया जा सकता है। कलम को लगाने के पहले खेत में गड्ढे तैयार कर लें। 

उन गड्ढों में कम्पोस्ट या खाद डालें और मिट्टी से भर दें, इसके बाद गड्ढों में पानी डालें। जब पानी सूख जाए तो कलम को लगा दें और हल्की सिंचाई कर दें। ध्यान रखें कि एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 3 मीटर होनी चाहिए।

ये भी पढ़ें: चंदन की खेती : Sandalwood Farming 

इसके अलावा सहजन के बीजों के माध्यम से भी पौध तैयार की जा सकती है। इसे नर्सरी में तैयार किया जाना चाहिए। इसके बाद पौधों को भी गड्ढे में समान प्रक्रिया के साथ लगाना चाहिए। भारत के अधिकतर राज्यों में सहजन की रोपाई जुलाई से सितम्बर माह के बीच की जाती है।

सहजन की किस्में

बाजार में सहजन कि जो किस्में उपलब्ध हैं उनमें पी.के.एम.1, पी.के.एम.2, कोयंबटूर 1 तथा कोयंबटूर 2 प्रमुख हैं। इन किस्मों के पेड़ 4 से 6 मीटर तक ऊंचे होते हैं साथ ही 100 दिन के भीतर फूल लगने लगते हैं। इन पेड़ों से लगातार 4 से 5 वर्षों तक फसल प्राप्त की जा सकती है।

सहजन की पैदावार एवं मुनाफा

यह एक अधिक मुनाफा देने वाली फसल है, जिसमें किसान भाई कम लागत में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। प्रत्येक पेड़ से एक साल में कम से कम 50 किलोग्राम सहजन प्राप्त किया जा सकता है। 

फल में रेशा आने से पहले तक सहजन के फलों की बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है। अगर किसान भाई दो एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो हर साल लगभग 10 लाख रुपये तक की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं।