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सेब

सेब उत्पादन में इस साल काफी गिरावट की आशंका है

सेब उत्पादन में इस साल काफी गिरावट की आशंका है

देश में शीतलहर और बर्फवारी का कहर चल रहा है। परंतु, विगत वर्ष की तुलना में इस बार कम बारिश और बर्फबारी की वजह से देश में सेब उत्पादन काफी घट सकता है। मौसम विभाग के अनुसार, आगामी दिनों में बारिश-बर्फबारी होने की संभावना है। परंतु, ये सेब के चिलिंग पीरियड पूरे करने के लिए अनुकूल नहीं है। सेब की खेती करने वाले कृषकों के लिए एक काफी बुरी खबर है। भारत में इस साल औसत से कम बारिश एवं बर्फबारी की वजह से सेब की पैदावार में गिरावट आने की आशंका है। ये सेब बागवानों के लिए काफी बड़ी चुनौती खड़ी कर सकती है। दरअसल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश जैसे सेब उत्पादक राज्यों में इस बार ना के समान बर्फबारी दर्ज हुई है। इसकी वजह से किसान बेहद चिंतित हैं। 

जनवरी के माह में एक सप्ताह से ज्यादा का वक्त बीत जाने के उपरांत भी इन राज्यों में वर्षा नहीं हुई है। बरसात ना होने के चलते बर्फबारी का भी कोई नामोनिशान नहीं है। इससे सेब की फसल को आवश्यकता के अनुसार, सर्दियों वाला मौसम नहीं मिल रहा है। इस परिस्थिति में विशेषज्ञों ने कहा है, कि कम बर्फबारी की वजह से सेब के आकार पर काफी प्रभाव पड़ेगा और उसकी मिठास भी घट जाऐगी।

सेब उत्पादन में भारी कमी की आशंका 

बागवानी विशेषज्ञों का कहना है, कि यदि कुछ दिनों में बारिश और बर्फबारी नहीं होती है, तोसेब की पैदावार में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। सेब पैदावार में गिरावट आने की वजह से सेब की कीमत भी काफी बढ़ सकती है। ऐसा कहा जा रहा है, कि बारिश न होने की वजह से भूमि से नमी गायब हो गई है। इसके परिणामस्वरूप सेब के पौधों को पर्याप्त नमी नहीं मिल पा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सेब के पौधों के विकास के लिए न्यूनतम 800 से 1000 घंटे के चिलिंग पीरियड की आवश्यकता होती है। परंतु, बारिश-बर्फबारी न होने के चलते चिलिंग पीरियड पूर्ण नहीं हो पाया है। ऐसी स्थिति में सेब की उपज काफी प्रभावित होने की संभावना हैं।

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किसान बारिश व बर्फबारी के लिए ईश्वर से भी प्रार्थना कर रहे हैं 

अगर हिमाचल प्रदेश पर एक नजर डालें, तो यहां के कृषक भी बारिश और बर्फबारी न होने से निराशा है। प्रदेश में बारिश और बर्फबारी की कमी के परिणामस्वरूप सेब के 5500 करोड़ रुपये के व्यवसाय पर काफी संकट के बादल छा रहे हैं। क्योंकि, बर्फबारी अब तक प्रारंभ नहीं हुई है, जिससे चिलिंग पीरियड की प्रक्रिया भी आरंभ नहीं हो सकी है। बतादें, कि इससे प्रदेश के हजारों बागबानों की चिंता काफी बढ़ गई है। ऐसे में बागवान बारिश एवं बर्फबारी के लिए देवी-देवताओं की प्रार्थना कर रहे हैं।

बरसात होने को लेकर IMD ने क्या संदेश दिया है ? 

सेब एक बेहद स्वादिष्ट फसल है। हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त उत्तराखंड में भी बड़े पैमाने पर सेब की खेती की जाती है। यहां लगभग 25 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के बागान लगे हुए हैं, जिससे प्रति वर्ष तकरीबन 67 हजार टन सेब की पैदावार होती है। उत्तरकाशी, नैनीताल, चंपावत, चमोली, देहरादून, बागेश्वर और अल्मोड़ा जैसे जनपदों में किसान सेब उगाते हैं। साथ ही, इन क्षेत्रों में किसानों द्वारा पुलम, नाशपाती और खुबानी की खेती भी की जाती है। यही कारण है, कि यहां के कृषक बारिश और बर्फबारी न होने की वजह से बेहद परेशान हैं। किसानों का कहना है, कि यदि बारिश और बर्फबारी नहीं हुई तो इससे उनकी फसल बर्बाद हो जाऐगी। साथ ही, मौसम विभाग के अनुसार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आगामी कुछ दिनों में बारिश-बर्फबारी होने की संभावना हैं। 

सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

प्रसंस्करण को बढ़ावा देने की सरकार की नतियां जैव विविधता वाले देश के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आलू के सीजन में आलू उत्पादक क्षेत्र में आलू खराब होता है। टमाटर की बात हो या कीमती सेब की। हर फल का यही हश्र होता है। प्रसंस्करण उद्योगों की कमी किसानों को फलों की उचित कीमत नहीं मिलने देतीं वहीं किसानों की ए​क तिहाई तक फसल खराब हो जाती है। कभी कभार कोस्टल क्राप बाजरा के बिस्किट आदि बनाने की तकनीक विकसित करने की  तो कभी सेब का जूस निकाल कर बेकार फेंकी जाने वाली लुग्दी या छूंछ के उत्पाद बनाने की खबरें शुकून देती हैं लेकिन इन्हें यातो सरकार का साथ नहीं मिलता या इन तकनीकों पर काम करने वाले लोगों को मदद नहीं मिलती कि ये तेजी से प्रसार कर सकें। यही कारण है कि यह चीजें देश में आम प्रचलन में नहीं आ पातीं।seb ka gooda हालिया तौर पर डा वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी हिमाचल प्रदेश के वैज्ञानिकों ने सेब का जूस निकालने के बाद बचने वाले पोमेस यानी अंदरूनी गूदे से कई उत्पाद बनाने की दिशा में काम आगे बढ़ाया है। विश्वविद्यालय के फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने केक,​ बिस्किट, पोमेस पाउडर एवं जेम आदि उत्पाद तैयार किए हैं। इसके अलावा एप्पल पेक्टिन केमिकल भी तैयार किया है। इससे जैली बनाई जाती है। विदित हो कि सेब उत्पादक राज्य हिमाचल प्रदेश में सेब का जूस निकालने के बाद उसके गूदे को अधिकांशत: यूंही फेंका जाता है। इससे कीमती फल का बड़ा हिस्सा बेकार चलता जाता है। इतना ही नहीं हिमाचल में ग्रीन हाउस, पॉली हाउस की चेन विकसित होने से कम जमीन पर खेती की दिशा में काफी काम आगे बढ़ा है। इसके बाद भी काफी फल रख रखाब के अभाव में सड़ जाते हैं।

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रोजगार के अवसर देगी तकनीक

बेरोजगार सेब का पोमेस आधिरित उद्योग लगा सकते हैं। इसके लिए नौणी विश्वविद्यालय मात्र 40 हजार में तकनीकी ज्ञान प्रदान करेगा। वह पोमेस से बनने वाले उत्पादों को संरक्षित करने के तरीके एवं स्वादानुसार उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग भी देगा। इस काम को शुरू करने के लिए तकरीबन 10 लाख रुपए की लागत आती है। पोमेस आधारित यूनिट के संचालन के लिए आठ से 10 लोगों की जरूरत होती है। पोमेस की यूनिट के साथ जूस की यूनिट भी लगाई जा सकती है ताकि कच्चे माल पोमेस को खरीदने के लिए इधर उधर न भटकना पडे और पोमेस उत्पाद की गुणवत्ता नियंत्रित रह सके। ​विदित हो कि सेब से जूस निकालने के बाद पोमेस को फ्रीज करना होता है अन्यथा उसमें तेजी से फरमंटेशन होन की संभावना बन जाती है।
जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू-कश्मीर सरकार राज्य में सेब की खेती पर अनुदान प्रदान कर रही है

जम्मू कश्मीर पूरी दुनिया में अपने सेब के लिए मशहूर है। जम्मू कश्मीर के लाखों लोग सेब की खेती के जरिए ही अपना जीवन यापन करते हैं। सेब की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए यह बड़े काम की खबर साबित होने वाली है। हमारे भारत में ही नहीं विदेशों में भी सेब को काफी अधिक पसंद किया जाता है। भारत में सेब की खेती कश्मीर राज्य में होती है। कश्मीर के मूल निवासी किसानों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया सेब की खेती है। कश्मीर का सेब दुनिया भर में मशहूर है। जम्मू कश्मीर में लगभग 25 लाख लोगों को सेब की खेती से रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। हालांकि, इस वर्ष हुई प्रचंड बरसात की वजह से सेब की फसल को काफी क्षति पहुँची है। जिसको देखते हुए सरकार ने किसानों के फायदे हेतु एक कदम उठाया है। अब सरकार सेब की खेती करने के लिए अनुदान प्रदान करेगी। खबरों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर भारत में कुल उत्पादित सेब के तकरीबन 80 प्रतिशत हिस्से में भागीदारी रखता है। सेब की खेती से प्रदेश को लगभग 1500 करोड़ रुपये की आमदनी अर्जित होती है। कश्मीर के कुपवाड़ा, गांदरबल, शोपियां, अनंतनाग, श्रीनगर, बडगाम और बारामुला जनपद में बड़े पैमाने पर सेब की खेती की जाती है।

सेब की विभिन्न किस्मों को मंगाकर भी उत्पादन किया जाएगा

जम्मू-कश्मीर प्रशासन और हॉर्टिकल्चर विभाग ने स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राज्य उच्च घनत्व वृक्षारोपण पर बल दिया है। इस वजह से राज्य के कृषकों की आमदनी में इजाफा होने की संभावना है। राज्य सरकार के इस उपयोग के दौरान यूरोप के देशों से सेब की भिन्न-भिन्न प्रजातियों को मंगा कर लगाया जाएगा। सेब की नवीन किस्मों के वृक्षारोपण के लिए जम्मू-कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट कृषकों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिड़ी देगी। इसके अतिरिक्त हॉर्टिकल्चर विभाग राज्य के किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए खेती से जुड़ी तकनीकी जानकारियां भी प्रदान कर रहा है। यह भी पढ़ें: कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति सशक्त बनेगी

अधिकारियों का कहना है, कि इस कदम से सेब के उत्पादन के साथ-साथ किसान भाइयों की आर्थिक हालत भी सशक्त होगी। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के मुताबिक, बेहद जल्द ही नए किस्म के सेब को उपलब्ध करा दिया जाएगा।

हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन को लेकर अनुदान दिया जा रहा है

कश्मीर में हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन के चलते किसानों में दिलचस्पी बढ़ी है। साथ ही, कश्मीर में फिलहाल जगह-जगह पर रिवायती सेब के पेड़ों के स्थान पर इसी हाई डेंसिटी प्लांटेशन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिसमें जम्मू कश्मीर हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट की ओर से 50% प्रतिशत का अनुदान भी किसानों को इस नई तकनीक के अंतर्गत सेब उगाने के लिए दिया जा रहा है। उसके साथ-साथ हॉर्टिकल्चर डिपार्मेंट किसानों को उत्साहित करने के लिए हर प्रकार की तकनीकी जानकारियां भी किसानों के खेतों तक पहुंचा रही है। यह भी पढ़ें: सेब की फसल इस कारण से हुई प्रभावित, राज्य के हजारों किसानों को नुकसान

युवा किसानों की भी दिलचस्पी बढ़ रही है

अब कश्मीर में पढ़े-लिखे युवा भी खेती की तरफ रुचि दिखाने लगे हैं। साथ ही, हाई डेंसिटी एप्पल प्लांटेशन उनके लिए रोजगार का साधन होने के साथ-साथ आमदनी का बेहतरीन माध्यम बनता जा रहा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कश्मीरी सेब की मांग भारत के समेत संपूर्ण विश्व में है। इसी मिठास एवं रसीलेपन की वजह इसकी मांग संपूर्ण विश्व में है। अब ऐसी स्थिति में यह कश्मीरी लोगों के लिए आमदनी का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

आप अभी बाजार में सेब (seb or apple) देखते होंगे तो आपको लगता होगा कि ये सेब या तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या किसी ठंडे प्रदेशों से आया है, क्योंकि अब तक आप यही जानते थे कि सेब सिर्फ ठंडे प्रदेशों में होता है। लेकिन जब आप यह जानेंगे कि अब सेब बिहार में भी उगने लगा है तो आपको हैरानी होगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बिहार सरकार के प्रयास से बीते साल बेगूसराय जिले में सेब की खेती (seb ki kheti or apple farming) की शुरुआत की गई थी, जिसमें वहां के किसानों ने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आपको यह भी बता दे कि अब तक सेब सिर्फ हिमालयी प्रदेशों में हुआ करता था। लेकिन सब कुछ अच्छा रहा तो अब सेब बिहार में भी उगेगा, यह एक अनोखा प्रयास है बिहार सरकार का, जिससे यहां के किसानों को काफी फायदा और लाभ मिलेगा।

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वैज्ञानिक की राय

भारत के सुप्रसिद्ध फल वैज्ञानिक, जो बिहार में फलों को लेकर बहुत दिनों से शोध करते हुए आ रहे हैं और किसानों को नई दिशा दे रहे हैं, उनके अनुसार सेब की खेती बिहार में किसानों के लिए वरदान है। उन्होंने बताया कि जब इसकी शुरुआत बेगूसराय में की गई तो शुरुआती दिनों में मौसम के कारण कुछ परेशानियां सामने आई, जिसे बिहार सरकार की मदद से ठीक कर लिया गया है और अब सेब की खेती सामान्य गति से हो रही है। गौरतलब है कि पूरे बिहार के किसान अब सेब की खेती में काफी बढ़ चढ़कर नई ऊर्जा और विश्वास के साथ हिस्सा ले रहे हैं। आने वाले दिनों में किसान को काफी लाभ होगा। बिहार में सेब की खेती एक खास किस्म के पौधों से संभव हो पायी है, जिसको वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है, इसका नाम है, हरमन 99 या हरिमन 99 एप्पल (HRMN-99 Apple or Hariman 99 apple)। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस नए किस्म की उपज 40-45 डिग्री तापमान पर भी संभव है और इसी गुण के कारण यह बिहार ही नहीं अपितु राजस्थान में भी इसको उगाने का प्रयास किया जा रहा है और यह लगभग सफल होता भी साबित हो रहा है।

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यही खूबी है कि इसकी उपज आने वाले कुछ दिनों में और भी अच्छी हो जाएंगी और बिहारी सेब भी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जगह बना लेगा। आपको बता दें कि इसका प्रजनन भी स्वपरागण (self pollination) के द्वारा होगा, ताकि इसे किसी भी बगीचे में आसानी से उगाया जा सकता है। आपको बता दे कि बिहार के बेगूसराय और औरंगाबाद के कुछ जिलों में किसान अपने स्तर से इसकी खेती कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि इसका पैदावार भी बहुत उन्नत किस्म का है, इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में बिहार के सेब का स्वाद और रंग कश्मीर और हिमाचल वाले सेब से कम नही होगा।

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किसानों को विशेष प्रशिक्षण

बिहार सरकार बिहारी सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे एक अभियान की तरह चला रही है। इसके पैदावार को बढ़ाने के लिए इच्छुक किसान को प्रशिक्षण भी देने की बात कही है, ताकि वे सेब की खेती से जुड़े हर तकनीक को समझ सके। बिहार सरकार और वैज्ञानिक डॉक्टर एस के सिंह का भी मानना है कि अगर किसान पारंपरिक खेती जैसे धान, गेहूं आदि के अलावा सेब की खेती पर ध्यान देते हैं, तो यह वाकई में उनके लिए एक वरदान से कम नही होगा और उनकी आय भी आने वाले दिनों में दुगुनी, तिगुनी हो सकती है।
बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

इस साल भारत में सेब (Apple) की जमकर फसल हुई है। इसके बावजूद भारतीय सेब उत्पादक बेहद परेशान हैं क्योंकि मंडियों में उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। कश्मीर में सेब उत्पादकों के लिए अब लागत खर्च निकाल पाना बेहद मुश्किल हो गया है। कश्मीर में अगस्त के महीने से सेब की नई फसल आ जाती है। अगस्त माह से लेकर अब तक मात्र 20 प्रतिशत सेब ही मंडियों तक पहुंचा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि लगातार घटते हुए भावों की वजह से सेब की मांग में भारी कमी आई है। कश्मीर के सेब किसान, सेब के कम दामों के लिए रूस को जिम्मेदार बता रहे हैं। किसानों का कहना है कि रूस का सेब अफगानिस्तान होते हुए भारत में भेजा जा रहा है, जिसके कारण घरेलू बाजार में सेब की उपलब्धता बढ़ गई है और किसानों को मन मुताबिक़ दाम नहीं मिल पा रहा है। किसानों का कहना है कि सेब की खेती में अब मुनाफा बेहद कम रह गया है, क्योंकि खेती करने का खर्च बहुत ज्यादा बढ़ चुका है और उसके मुकाबले में सेब की खेती से होने वाली आय दिनोदिन घटती जा रही है। पिछले कुछ महीनों में खाद, कीटनाशक दवाओं, डीजल आदि के दामों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है, इसके मुकाबले किसानों की आय उस हिसाब से नहीं बढ़ी है। पिछले साल कश्मीर घाटी में एक पेटी सेब की कीमत 1000 रूपये थी, अब वही पेटी मात्र 550 रूपये में बिक रही है। इस दौरान सेब के पैकिंग का खर्चा भी बढ़ा है। पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली रद्दी और सूखी घास की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, इसके साथ ही गत्ते के डिब्बे की कीमत और मजदूरी भी लगभग डेढ़ से दोगुनी हो गई है, जिसके कारण सेब किसान लगातार परशानियों का सामना कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार पिछले साल कश्मीर में कुल 180860 मीट्रिक टन सेब की पैदावार हुई थी, जिसमें इस साल 10 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई है, जो एक मामूली बढ़ोत्तरी है। इस साल पिछले साल की अपेक्षा अच्छी क्वालिटी का सेब उत्पादित हुआ है, इसके बावजूद सेब की कीमतों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। किसानों को उनकी फसल का पर्याप्त दाम न मिलने के कारण वो तनाव में हैं। बाजार में सेब के कम दामों को देखकर अधिकारियों से लेकर फलों की मार्केटिंग से जुड़े लोग भी हैरान हैं।

हिमाचल के सेब से मिल रही है सीधी चुनौती

फलों के व्यापार से जुड़े लोग और जम्मू कश्मीर के सरकारी अधिकारी भी ये मानते हैं कि कश्मीरी सेब को देश में ही चुनौती मिल रही है। हिमाचली सेबों ने बाजार में बेहतर पकड़ बना रखी है। खुद कश्मीरी अधिकारी इस चीज को मान रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक पैकिंग और ग्रेडिंग के मामले में जम्मू कश्मीर के किसानों से बेहतर काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से कश्मीरी सेब को बाजार में कड़ी टक्कर मिल रही है। सेब उगाने के मामले में भले ही हिमाचल प्रदेश कश्मीर से पीछे है, लेकिन हिमाचली किसानों के द्वारा सेब के डिब्बों की अलग-अलग तरह की पैकिंग ग्राहकों को आकर्षित करती है, जिसके कारण हिमाचली सेब बाजार में ज्यादा जल्दी बिकता है।

विदेशों में घट रही है कश्मीरी सेब की मांग

विदेशों में भी अब कश्मीरी सेब की मांग में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले साल दुबई के लूलू ग्रुप ने कश्मीर से सेब खरीदने के लिए करार किया था, लेकिन बाद में क्वालिटी का हवाला देकर उन्होंने सेब खरीदने से इंकार कर दिया। भारतीय व्यापारियों ने लूलू ग्रुप को जो सैम्पल भेजा था, वह परफेक्ट नहीं था। उसमें अलग-अलग साइज और अलग-अलग किस्म के सेब थे। व्यापारियों ने चालाकी दिखाते हुए कुछ घटिया सेब लूलू ग्रुप को बेचने की कोशिश की थी, जो उन पर ही भारी पड़ी। पिछले कुछ सालों से रूस में सेब के उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है, इसका कारण रूस के भीतर सरकार के द्वारा सेब की खेती को प्रोत्साहित करना है। साल 2018-19 में रूस में मात्र 190784 हेक्टेयर में सेब की खेती की जाती थी। लेकिन अब किसानों के बीच सकारात्मक रुझान के बीच, सेब की खेती बढ़कर 197600 हेक्टेयर में होने लगी है, जिससे रूस में सेब का बम्पर उत्पादन होने लगा है। इन दिनों रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रूस के ऊपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं, जिसके कारण रूसी व्यापारी अपने देश में उत्पादित हुई सेब की फसल निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। अफगानिस्तान के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाकर रूसी व्यापारी बड़ी मात्रा में सेब भारत में भेज रहे हैं, जो भारतीय बाजार में घरेलू सेब की कीमतों को प्रभावित कर रहा है।

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भारतीय अधिकारी इससे इंकार कर रहे हैं कि भारतीय बाजार में चोरी छिपे रूस का सेब पहुंच रहा है। हालांकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि भारतीय बाजार में सेब की कीमतों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। कई लोग बताते हैं कि सेब के दामों को नियंत्रित करने में सेब माफियाओं का बड़ा हाथ है। ये ज्यादातर सेब व्यापारी हैं और सेब के बिजनेस में इनकी मजबूत पकड़ है। ये व्यापारी दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में सक्रिय है। यह एक बड़ी थोक मंडी है जहां देश का ज्यादातर सेब बिकने के लिए आता है। यहीं से सेब देश के अन्य हिस्सों में भेजा जाता है। इसलिए आज़ादपुर मंडी में सक्रिय सेब माफिया अपने हिसाब से सेबों के दामों को बढ़ा या घटा सकते हैं। कई बार व्यापारी सेब के दाम 'कश्मीर ऐपल मार्केटिंग एसोसिएशन' के निर्देश पर भी तय करते हैं। सेबों के दाम आजकल पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो गए हैं। इसलिए सेब किसानों को चाहिए कि वो उत्पादन से लेकर पैकिंग और विक्रय तक, नई तकनीकों का इस्तेमाल करें ताकि सेब उत्पादन से लेकर सेब के विक्रय में बढ़ रहे खर्चों पर लगाम लगाई जा सके। किसान यदि पुराने तरीकों को छोड़कर नए तरीकों को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से लागत में कमी की जा सकती है। इसके साथ-साथ नई तकनीक और नई मशीनों को अपनाने से किसानों के समय की भी बचत होगी।
हाइवे में हजारों ट्रकों के फंसने से लाखों मीट्रिक टन सेब हुआ खराब

हाइवे में हजारों ट्रकों के फंसने से लाखों मीट्रिक टन सेब हुआ खराब

जम्मू कश्मीर के सेब (Apple) के किसान पहले ही संकट में हैं और अब हाइवे में जाम लगने के बाद उनके सामने एक और बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। इन दिनों जम्मू कश्मीर को बाकी भारत से जोड़ने वाले मेन हाइवे NH-44 में कुछ दिक्कत आ गई है, जिसके कारण आवागमन सुचारु रूप से नहीं चल रहा है। इसलिए सेब से लदे सैकड़ों ट्रक बीच में ही फंस गए हैं, जिसके कारण अब तक हजारों क्विंटल सेब खराब हो चुका है। इसका सीधा असर किसानों के ऊपर पड़ रहा है। चूंकि अब सेब की सप्प्लाई आगे नहीं बढ़ रही है, इसलिए जम्मू कश्मीर की मंडियों में सेबों की डिमांड भी कम हो गई है, जिसके कारण सेबों को बेंचने पर किसानों को वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं। जम्मू कश्मीर के सेब व्यपारियों का कहना है कि यदि कुछ दिनों में हालात सामान्य नहीं हुए तो और भी ज्यादा सेब खराब हो सकते हैं, जिससे उनका घाटा बढ़ जाएगा। व्यापरियों की मांग है कि सरकार को जल्दी से जल्दी हाइवे की मरम्मत करवाकर आवागमन को बहाल करना चाहिए, ताकि सेब को खराब होने से पहले ही बाजार में पहुंचाया जा सके।

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कैसे खराब हुआ इतनी बड़ी मात्रा में सेब ?

इस साल अच्छी बरसात होने के साथ ही अनुकूल मौसम होने की वजह से जम्मू कश्मीर में बम्पर सेब का उत्पादन हुआ है, जिसके कारण मंडियों में सेब की आवक बढ़ गई है। यहीं से सेब उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों को भेजा जाता है। लेकिन देश को जम्मू कश्मीर से जोड़ने वाले मुख्य हाइवे पर इन दिनों मरम्मत का कार्य चल रहा है, जिसके कारण हजारों की संख्या में सेब ट्रक फंस गए हैं और सेबों की स्थिति खराब होना प्रारम्भ हो चुकी है।

कितनी कीमत का माल लगा है दांव पर ?

जम्मू कश्मीर सेब संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों के अनुसार, अभी तक लगभग 8,000 सेब से लदे हुए ट्रक हाइवे में फंसे हुए हैं, जिनमें कम से कम 100 करोड़ रूपये का माल लोड है। ये ट्रक पिछले दो हफ़्तों से एक भी कदम आगे नहीं बढ़े हैं, जिसके कारण इनमें रखा हुआ माल सड़ने लगा है। अभी तक इसकी जानकारी नहीं है कि इन हालातों में और कितने दिनों तक ये ट्रक हाइवे में फंसे रहेंगे। इस साल बम्पर उत्पादन की वजह से जम्मू कश्मीर में सेब का उत्पादन 21 लाख मीट्रिक टन से अधिक हुआ है।

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जम्मू कश्मीर का सेब उद्योग पहले ही चुनौतियों का सामना कर रहा है, यहां के सेब किसानों और व्यापारियों को ईरान से आने वाले सेब से घाटा हो रहा है। ईरान से आने वाले सेब के कारण बाजार में कम्पटीशन बढ़ गया है। इसलिए राज्य के सेब व्यापारियों और किसानों ने ईरान से सेब के आयत में प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है। इसके अलावा बाजार ये भी खबर है कि भारत और अफगानिस्तान के बीच मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाकर रूस के व्यापारी अपना सेब भारत में खपा रहे हैं। बड़ी मात्रा में रूसी सेब अफगानिस्तान होते हुए भारत आ रहा है, हालांकि भारतीय अधकारियों ने इन बातों का खंडन किया है। भारत दुनिया में सेब का सातवाँ सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसमें जम्मू कश्मीर अपना विशेष स्थान रखता है। भारत में सेब की खेती सबसे ज्यादा जम्मू कश्मीर में ही होती है। सेब की खेती से राज्य को हर साल लगभग 1500 करोड़ रूपये की आमदनी होती है। अगर देश में उत्पादित होने वाले सभी फलों की बात की जाए, तो सभी फलों के बीच सेब का शेयर 3 प्रतिशत के आस पास है। इसलिए सरकार को चाहिये कि जल्दी से जल्दी हाइवे की मरम्मत करवाई जाए और आवागमन को बहाल किया जाए, ताकि किसानों तथा सेब व्यापारियों को लग रहे घाटे को कम किया जा सके।
सेब के दाम में भारी गिरावट, 30 दिन नीचे तक गिरा दाम

सेब के दाम में भारी गिरावट, 30 दिन नीचे तक गिरा दाम

सेब (Apple) के औषधीय गुणों के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे, बीमार व्यक्ति के लिए सेब रामबाण का काम करता है। इसमें फाइबर पोटेशियम और तरह-तरह के पोषक तत्व पाए जाते है। लोग सुबह सुबह खाली पेट इसे खाना बहुत पसंद करते है। बहुत लोग इसे खरीदने में सक्षम नहीं हो पाते है। लेकिन अभी इसे खरीदना बेहद ही आसान हो गया है क्योंकि कश्मीरी सेब का दाम बहुत कम हो गया है। पिछले साल की तुलना में इस साल कश्मीरी सेब के दाम में लगभग लगभग 30% की गिरावट हुई है। आलू से सस्ता भी कश्मीरी सेब बाजार में मिल रहा है जिससे आमजन बहुत ही सस्ते दर में खरीद रहे है। मार्केट रेट की बात करें तो कश्मीरी सेब 25 से ₹30 किलो बाजार में मिल रहा है।

इन कारणों से घटा दाम

इस तरह से बाजार में सेब का दाम घट जाने से किसान निराश नजर आ रहे है। किसानों का कहना है की इस साल सेब का प्रोडक्शन बहुत ही शानदार हुआ है, लेकिन ट्रांसपोर्टेशन और पैकेजिंग का रेट दोगुना तक बढ़ गया है जिसके कारण सप्लाई घट गई है। सप्लाई ना होने के कारण स्वभाविक है कि दाम अपने आप गिर जाएंगे। ट्रांसपोर्टेशन और पैकेजिंग के कारण सप्लाई पूर्ण मात्रा में नही हो पाया है, जिसके कारण प्रोडक्शन पर गहरा असर पड़ा है और बाजार में सेब की कीमत तेजी से गिर गई है। डिमांड से अधिक सेब का सप्लाई बाजार में लगातार किया जा रहा है क्योंकि अगर जल्दी से उपजे हुए सेब का खपत नहीं किया गया तो सेब का सड़ना शुरू हो जाएगा ।

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दूसरा मुख्य कारण कश्मीरी सेब के दाम में गिरावट होने का यह बताया जा रहा है कि श्रीनगर-जम्मू कश्मीर नेशनल हाईवे के बार बार बंद होने के कारण भारी वाहनों का आवागमन ठप हो गया है, जिसके कारण कश्मीरी सेब से लदा हुआ ट्रक वहीं फंस जा रहा है और सेब का सड़ना शुरु हो गया है। जिसके कारण व्यापारी कम डिमांड में ही ज्यादा सप्लाई करना शुरु कर दिए है। अगर खाने वाली सब्जी आलू की बात की जाए तो जहां आलू 160 रुपए का 5 किलोग्राम मिल रहा  है वही सेब 140 रुपए का 5 किलोग्राम मिल रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार देश में सबसे ज्यादा सेब कश्मीर में उपजाया जाता है। कश्मीर में कुल सेब का 75% ऊपज होता है। जम्मू कश्मीर की जीडीपी में सेब के उत्पादन की भूमिका लगभग 9% है। अभी कश्मीर से जो सेब आ रहा है उसकी कीमत पिछले साल से लगभग 30% तक घटी हुई है।

किसान घाटे का सौदा करने के लिए मजबूर है, जिससे किसान काफी निराश नजर आ रहे है

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सेब की पैकेजिंग, धुलाई, उर्वरक आदि को मिलाने के बाद एक बक्से पर लगभग ₹500 का खर्चा आता है, लेकिन कश्मीर में सेब उपजाने वाले किसानों को भारी घाट का सौदा करना पड़ रहा है। एक बॉक्स पर उन्हें 100 रुपए का घाटा हो रहा है, यानी की एक बॉक्स को वह मजबूरन ₹400 में बेच रहे हैं। कश्मीर में सिर्फ सेब का कारोबार 10 हजार से 15 हजार करोड़ रुपए का होता है जो कि एक बड़ा मार्केट है। इस तरह इस मार्केट को झटका लगना किसानों के लिए तो निराशाजनक है ही, सरकार के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है।
हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

आये दिन देख रहे होंगे की पूरे भारत में लगातार नई नई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे खेती-किसानी और भी आसान होते जा रही है। केंद्र व राज्य सरकार भी बहुत योजनाएं चला रही है, जिससे खेती किसानी और भी आसान होते जा रही है। लेकिन ये जो नई प्रयोग राज्य सरकार के द्वारा हो रही है, वह वाकई में काबिले तारीफ है। यह प्रयोग उन किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है जो पहाड़ी और पठारी इलाकों में खेती कर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। आपको बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी की शुरुआत की है, जिससे किसानों को काफी मदद मिल रही है, जिनसे वह अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इसी की योजनाओं की कड़ी में हिमाचल प्रदेश सरकार ने सेब की खेती कर रहे किसानों के लिए एक बहुत अच्छा प्रयोग शुरू किया है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जब यह प्रयोग का सफल परीक्षण हो जाएगा, तब किसान सेब की खेती कर अपना सामान बाजार तक आसानी से पहुंचा सकेंगे।
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अब क्या होगा फायदा

बीते दिन हिमाचल प्रदेश में एक अनोखा प्रयोग का परीक्षण किया गया जो कि सफल रहा। आपको बता दे इस प्रयोग से पहले सेब की खेती कर रहे किसानों को अपने फल को मंडी तक पहुंचाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। मज़दूरों के द्वारा सेब को ढोने में काफी समय लगता था व काफी नुकसान भी होते थे, जिससे किसान को मुनाफ़े की जगह घाटा का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब सफल परीक्षण के बाद किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि यह प्रयोग हिमाचल प्रदेश के किनौर के निचार गांव में हुआ है। निचार गांव के सेब बगान और वहाँ के पंचायत प्रतिनिधियों ने इस परीक्षण को किया है, जिसमें उन्होंने ड्रोन से सेब की पेटी को जिसका वजन लगभग 18 किलो के आसपास होता है, उसको इस ड्रोन के माध्यम से लगभग 12 किलोमीटर तक हवाई मार्ग के सहारे पहुंचाने में सफल रहा। इस तरीके के प्रयोग से सेब की खेती करने वाले किसान अब अपना सेब आसानी से कम समय में पहाड़ पर से नीचे उतार सकते हैं। इसमें मजदूर के तुलना में खर्च भी बहुत कम लगता है।
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गौरतलब हो की पहाड़ पर रोड की स्थिति सही नही होने के कारण बगान वालो को अपने फल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है और सेब के पैकिंग से लेकर उसको बाजार तक पहुंचने में समय भी काफी अधिक लग जाता है, जिससे सेब भी खराब हो जाता है और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

क्या कह रहे है किसान

वहां के किसानों का कहना है कि "इस प्रयोग से हम लोग को काफी लाभ मिलेगा और हमारे सेब का उचित मूल्य भी मिल पाएगा”। किसान का यह भी कहना है कि पहले व्यापारी भी रास्ते में देरी होने की वजह से कीमत काफी कम देते थे जिससे किसानों को काफी नुकसान सहन करना पड़ता था, जो अब इस परीक्षण के सफल हो जाने से खतम हो जायेगा। आपको यह भी बता दें कि ड्रोन के प्रयोग से अब किन्नौर में सेब व अन्य सामग्री को गंतव्य तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। यह जम्मू-कश्मीर के कृषकों के लिए हर्ष की बात है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया है, कि जम्मू-कश्मीर में कृषि-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप का केंद्र बनने के असीमित अवसर हैं। इसी संबंध में उनका यह भी कहना है, कि जम्मू में उत्पादित होने वाले बांसों का प्रयोग अगरबत्ती समेत विभिन्न प्रकार के आवश्यक उत्पादों के निर्माण हेतु हो सकता है। इस वजह से बांस की खेती के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ में किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्ट्रॉबेरी व सेब एवं ऐसे अन्य फलों की जीवनावधि को कोल्ड-चेन की उत्तम व्यवस्था के जरिये बढ़ाया जाना संभव है।

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उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में गैर-इमारती वन उत्पाद (NTFP) में आने वाले पौधे जिनमें मशरूम, गुच्ची एवं अन्य औषधीय पौधे काफी संख्या में मिल जाते हैं। चिनाब घाटी अथवा पीर पंजाल क्षेत्र (राजौरी, पुंछ) उच्च गुणवत्ता वाले शहद एवं एनटीएफपी का केंद्र है। दरअसल, इनकी उचित तरीके से विपणन नहीं हो पाती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया है, कि प्रदेश के जम्मू-कश्मीर औषधीय पादप बोर्ड एवं वन विभाग को साम्मिलित किया, क्योंकि एक सहायक पद्धति के जरिये से उत्पादन, बिक्री और विपणन की आवश्यकता है। 

कृषि संबंधित औघोगिक क्रांति से बेहद मुनाफा हो सकता है

उपरोक्त में जैसा बताया गया है, कि डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं।. इसी दौरान मंत्री का कहना है, कि कृषि, बागवानी एवं ग्रामीण विकास की भाँति अनेकों प्रगतिशील क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी संगठनों हेतु निरंतर सहायता की आवश्यकता है। साथ ही उनका कहना है, कि शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय (SKUAST) कश्मीर, को उद्यमिता विकास संस्थान (EDI) के साथ मिलकर भेड़पालन व पशुपालन विभागों को सहायता प्रदान करनी चाहिए। 

किसानों को (एफपीओ) व सहकारी समितियों के जरिये संस्थागत होना चाहिए

बतादें कि, मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है, कि किसानों को सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से संस्थागत होना महत्वपूर्ण है। कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों में स्थानीय मांगो पर ध्यान केंद्रित हो, एवं ऐैसे नौजवानों को तैयार करना होगा जिनकी इस क्षेत्र में कार्य करने की रूचि हो। साथ ही, एनजीओ किसानों को फसल बीमा अर्जन हेतु संवेदनशील बनाना अति आवश्यक है, क्योंकि इसकी जम्मू और कश्मीर में बेहद जरूरत है। केंद्रीय मंत्री के अनुसार, इस प्रकार के सरकारी संगठनों द्वारा समर्थन हेतु कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कार्यशील प्रमुख गैर सरकारी संगठनों व अनुसंधान संस्थानों का सम्मिलित होना अति आवश्यक है। बाजार में अच्छी पकड़ हेतु, अधिकारियों द्वारा कोई ऐसी नीति जारी होनी जरूरी है, जो स्थानीय कृषि और बागवानी उत्पादों जैसे अखरोट, सेब व राजमा आदि के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की जिम्मेदारी उठा सके।

मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

आम को फलों का राजा कहा जाता है और इसमें भी जो सबसे खास है, वह अल्फांसो यानी हापुस है। बाजार में अल्फांसो का लोगों को हमेशा इंतजार रहता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मुंबई के वासी मंडी में अलफांसो आम की पहली खेप पहुँच चुकी है जिसका व्यापारी काफी गर्मजोशी से स्वागत कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस आम की पहली खेप संजय पनसार नामक व्यापारी के यहाँ पहुंचा है। इस पहली खेप में हापुस आम का 600 दर्जन आम मंडी में पहुंचा है। इतना ही नहीं, इसी बाजार में अफ्रीका के मलावी से भी 800 दर्जन आम पहुँच चुका है। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि मलावी के आम का भी स्वाद अल्फांसो के स्वाद की तरह ही होता है। व्यापारियों का कहना है, कि अभी इन आमों की कीमत काफी अधिक है, लेकिन जब आम की आवक मार्च के पहले हफ्तों से शुरू हो जाएगी तब इसकी कीमत थोड़ी कम हो सकती है। पंसार के अनुसार फिलहाल इस आम की रेट की बात करें तो ₹5000 प्रति दर्जन के आसपास है, वही जब इसकी आवक मंडी में शुरू हो जाएगी, तब इसकी कीमत अधिकतम ₹2000 प्रति दर्जन तक रहेगी।

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गौरतलब है, कि मुंबई की इस मंडी में पहुंचने वाला हापुस आम का उत्पादन देवदत्त स्थित कटवन गांव के दो युवा आम उत्पादकों के द्वारा किया गया है। जिसका नाम दिनेश शिंदे और प्रशांत शिंदे बताया जाता है। इन युवाओं ने ही लगभग छह दर्जन हापुस आम की पहली पेटी मुंबई स्थित वाशी बाजार में भेजा है। आपको यह बता दें, कि अलफांसो नामक आम की खेप बिना सीजन बाजार में पहुंचना काफी अच्छा माना जा रहा है। इसके पहले खेप के पहुंचते ही बाजार के प्रबंधक सहित कई व्यापारियों और अध्यक्ष द्वारा इसकी पूजा अर्चना भी की गई। इस पहले खेप हापुस आम की पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से चलता आ रहा है। आपको यह जानकर बेहद खुशी होगी, कि इस अल्फांसो नामक आम की डिमांड देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी है, जिसके कारण इसका उत्पादन भी अधिक पैमाने पर किया जा रहा है। इस अल्फांसो नामक आम को जियोटैग भी मिला हुआ है।

कौन सा इलाका करता है अल्फांसो का सबसे ज़्यादा उत्पादन

अल्फांसो मांगो नामक आम का सबसे बड़ा उत्पादक महाराष्ट्र को बताया जाता है। महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में इसका उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में होता है, जिसमें रत्नागिरि, रायगढ़ और कोंकण प्रमुख है। विशेषज्ञों के अनुसार इस साल भी अल्फांसो मांगो नामक आम हर साल की भांति फरवरी में मुंबई के वासी बाजार में आने लगेगा। अल्फांसो मांगो नामक आम का मुख्य सीजन मार्च, अप्रैल और मई माना जाता है। इस साल भी कोंकण क्षेत्रों से अल्फांसो नामक आम की आवक मार्च से शुरू हो जाएगी।
कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

खेती-किसानी के क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों का काबिल ए तारीफ योगदान रहता है। अगर वैज्ञानिक शोध करना बंद करदें तो किसानों को कृषि से उत्पन्न होने वाले नवीन आय के संभावित स्त्रोतों की जानकारी नहीं मिलेगी। जिससे खेती किसानी एक सीमा में ही सिमटकर रह जाएगी। किसानों को काफी फायदा होगा। कृषि विशेषज्ञों ने अब पंजाब की मृदा एवं जलवायु के अनुकूल सेब की किस्म विकसित की है। जी, हाँ अब पंजाब के किसान भाई भी सेब का उत्पादन करके अच्छी खासी आमदनी कर पाएंगे। जैसा कि हम जानते हैं, पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य के तौर पर जाना जाता है। उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि और उपयुक्त जलवायु होने की वजह के चलते इसको छोड़के दूसरे स्थान पर पंजाब राज्य में सर्वाधिक गेहूं की खेती की जाती है। हालाँकि, अब पंजाब के किसान सेब का भी उत्पादन कर सकेंगे। दरअसल, कृषि विज्ञान केंद्र पठान कोट के जरिए एक ऐसी सेब की किस्म विकसित की गई है। जो कि पंजाब की जलवायु हेतु बिल्कुल उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में अब पंजाब के किसान सेब का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकेंगे। मुख्य बात ये है, कि सेब की इस किस्म की खेती करने पर कम खर्चा आएगा।

सेब की खेती से बढ़ेगी किसानों की आमदनी

दैनिक भास्कर के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट का सेब के ऊपर चल रहा परीक्षण सफलतापूर्वक हो चुका है। अब पंजाब के किसान पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सेब की खेती कर सकते हैं। इससे उन्हें अधिक आमदनी होगी। कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट के अधिकारी सुरिंदर कुमार ने बताया है, कि राज्य सरकार किसानों को फसल चक्र से बाहर निकालना चाहती है। जिससे कि वह बाकी फसलों की खेती कर सकें। ऐसे में सेब की खेती पंजाब में खेती किसानी करने वाले कृषकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी।

अब गर्म जलवायु वाला पंजाब भी सेब का उत्पादन करेगा

अगर हम आम आदमी के नजरिये को ध्यान में रखकर बात करें तो अधिकाँश लोगों का यह मानना है, कि सेब का उत्पादन केवल ठंडे राज्यों में किया जा सकता है। विशेष रूप से उन जगहों पर जहां बर्फबारी हो रही है। हालाँकि, अब वैज्ञानिकों के प्रयासों से पंजाब जैसे अधिक तापमान वाले राज्य में भी सेब की खेती की जा सकती है। इतना ही नहीं अब कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट कृषकों को सेब के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जागरूक करने का कार्य करेगा। ये भी पढ़े: सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

गेंहू की भी तीन नवीन किस्म विकसित की थी

बतादें, कि खेती करने के दौरान लागत को कम करने के लिए और उत्पादन को अधिक करने के लिए देश के समस्त विश्वविद्यालय वक्त-वक्त पर नवीन किस्मों को विकसित करते रहते हैं। बतादें, कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बीते माह गेंहू की तीन नवीन किस्मों को विकसित किया गया था। जिसके ऊपर अधिक तापमान का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सेब की इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है, कि गर्मी का आरंभ होने से पूर्व ही यह पककर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी।

यह किस्म HD-2967 एवं HD-3086 किस्म की तुलना में ज्यादा पैदावार देता है

खबरों के अनुसार, ICAR के वैज्ञानिकोंं ने बताया था, कि उन्होंने गेहूं की जिस किस्म को विकसित किया था। उनका प्रमुख उदेश्य बीट-द-हीट समाधान के अंतर्गत बुवाई के वक्त को आगे करना है। यदि इन नवीन विकसित किस्मों की बुवाई 20 अक्टूबर के मध्य की जाती है। तो यह होली से पूर्व पक कर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी। मतलब कि गर्मी आने से पहले पहले इसको काटा जा सकता है। बतादें कि पहली किस्म का नाम HDCSW-18 है। यह HD-2967 व HD-3086 किस्म के तुलनात्मक अधिक गेहूं की पैदावार देगी।
इस विदेशी फल से 6 माह में किसान कर सकते हैं मोटी कमाई, जानें खेती करने का तरीका

इस विदेशी फल से 6 माह में किसान कर सकते हैं मोटी कमाई, जानें खेती करने का तरीका

आजकल देश में देशी फलों के साथ-साथ विदेशी फलों की मांग भी तेजी से बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि अब देश के किसान विदेशी फलों की खेती की तरफ भी अपना रुझान बढ़ाते जा रहे हैं। जिससे देश के किसान अब स्ट्रॉबेरी और ड्रैगन फ्रूट जैसे फलों की खेती करना प्रारंभ कर चुके हैं। इन फलों की खेती में जहां उन्हें जबरदस्त मुनाफा हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इन फलों की खेती में किसानों को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। इसी प्रकार का एक फल है जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। उस फल का नाम है थाई एप्पल बेर (Thai Apple Ber)। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि यह थाईलैंड में पाया जाने वाला फल है, जिसकी खेती अब भारत सहित कई देशों में की जाने लगी है। यह फल दिखने में सेब की तरह होता है, लेकिन खाने में इसका स्वाद बेर की तरह होता है। साथ ही इस फल में जबरदस्त रोग प्रतिरोधकल क्षमता होती है। यह भी पढ़ें: क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती बाजार में इस फल की डिमांड को देखते हुए किसान भाई शुरुआत में कम लागत से इस फल की खेती शुरू कर सकते हैं। थाई एप्पल बेर के पौधे लगाने के लिए सबसे पहले भूमि पर गड्ढों की खुदाई की जाती है। ध्यान रहे कि गड्ढों की लंबाई और चौड़ाई 2-2 फीट होनी चाहिए। साथ ही एक गड्ढे की दूसरे गड्ढे से दूरी 5 मीटर होनी चाहिए। गड्ढों की खुदाई करने के बाद कम से कम 25 दिन तक तेज धूप में इन्हें सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद 20-25 किलो जैविक खाद, या सड़ी गोबर की खाद से गड्ढों को भर दिया जाता है। गड्ढों को भरने में नीम की पत्तियों और नीम की खली का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। थाई एप्पल बेर की खेती में कलम विधि का इस्तेमाल किया जाता है। किसान भाई एक बीघा खेत में 80 पौधों की रोपाई बेहद आसानी से कर सकते हैं। रोपाई करते समय ध्यान रखें की हर पेड़ के बीच कम से कम 15 फीट की दूरी अवश्य हो। इसके साथ ही पेड़ों के बीच खाली पड़ी जमीन में किसान भाई किसी भी प्रकार की सब्जियों की खेती कर सकते हैं ताकि किसान भाइयों को कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। इसकी खेती में मुख्यतः देसी और हाइब्रिड किस्मों का इस्तेमाल किया जाता है। अगर थाई एप्पल बेर की खेती में इन किस्मों का इस्तेमाल करते हैं पेड़ से 6 माह के भीतर ही 100 किलो तक का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। खेत में एक बार थाई एप्पल बेर के पेड़ को लगाने के बाद किसान भाई अगले 50 साल तक इससे फल प्राप्त सकते हैं और बाजार में महंगे दामों पर बेंचकर मोटी कमाई कर सकते हैं।