Published on: 06-Dec-2019
तरीके हर तरह के ईजाद हो चुके हैं लकिन जरूरत उनका अनुपालन करने की है। कीट नियंत्रण के लिए जैविक और रासायनिक, दोनों में से किसी तरह के तत्वों का प्रयोग किए बगैर भी कीट नियंत्रण हो सकता है। इनमें कई तरह की तकनीक वैज्ञानिकों द्वारा ईजाद की गई हैं वहीं कुछ परंपरागत तरीके किसान भी जानते हैं।
फेरामोन प्रपंच
इसमें मादा पतंगों के यौन स्नव की गंध से मिलता जुलता संश्लेषित रसायन प्रयोग करते हैं। जो नर पतंगों को संभोग करने हेतु आकर्षित करता है, जिससे उस क्षेत्र के नर पतंगे भ्रमवश यह समझकर कि जाल के अंदर मादा वयस्क है, आकर्षित होकर एकत्रित हो जाते हैं। इस प्रकार नर पतंगों की जाल में उपस्थिति से चना भेदक, बैगन, टमाटर व धान के तना छेदक के खेत में अण्डा देने की स्थिति का पूर्वज्ञान हो जाता है जिससे उपयुक्त कीट प्रबंधन प्रणाली अपनाई जा सकती है।
ये भी पढ़ें: जानिए कीट नियंत्रण और कीट प्रबंधन में क्या-क्या अंतर होते हैंयौन रसायन आकर्षण जाल मुख्यत:
दो प्रकार के होते हैं. जाल (ट्रैप)- यह एक टिन अथवा प्लास्टिक की कीप के आकार का होता है। जिसे डंडे से बाधंकर फसल में दो फीट की ऊंचाई पर खेत में लगा देते है। इसमें नीचे पॉलीथीन का थैला लगा रहता है जिसमें नर पतंगे एकत्र होते रहते हैं। यौन रसायन संतृप्त गुटका (फेरोमोन सेप्टा)- मादा पतंगा, नर पतंगा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए यौनांगों से एक विशेष प्रकार की गंध छोड़ती है जिससे नर पतंगा मादा की ओर आकर्षित होकर प्रजनन क्रिया को सम्पन्न करते हैं। इस प्राकृतिक जैव रसायन से मिलता-जुलता कृत्रिम सश्लेषित रसायन तैयार किया जाता है । यह रसायन यौन आकर्षण जाल का प्रमुख अवयव है। इसको फेरोमोन ट्रैप के बीच में बने गड्ढे में अथवा तार के फंदे में फंसाकर रख देते हैं जिससे नर पतंगे आकर्षित होकर कीप के नीचे पॉलीथीन के थैले में इकट्ठा होते रहते हैं।
प्रयोग करने की विधि
चना, अरहर, बैगन, टमाटर, धान के एक हैक्टेयर क्षेत्र में 3-4 जाल लगाने चाहिए। जाल में फंसे नर वयस्कों की नियमित निगरानी रखनी चाहिए। शीतवृत (दिसम्बर-फरवरी) के दिनों में जाल में कम पतंगे आते हैं। फरवरी के बाद जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है, जाल में पकड़े गए पतंगों की संख्या भी बढ़ती जाती है। जैसे ही 3 से 5 नर पतंगे यौन रसायन आकर्षण जाल में 3-4 दिन लगातार आने लगें तो किसानों को अपनी फसल को बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों के छिड़काव/भुरकाव अथवा नियंत्रण विधि के लिए तैयार हो जाना चाहिए, क्योंकि 6 से 10 दिन बाद मादा पतंगे अंडे देने लगते हैं, जिनसे निकली सूड़ियां फसल को हानि पहुंचाती हैं।
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सावधानी
यौन रसायन संतृप्त गुटका (फेरोमोन सेप्टा) को 25 से 28 दिनों के बाद बदल देना चाहिए क्योंकि इसका रसायन हवा में उड़कर खत्म हो जाता है। उपयोग न करने के समय फेरोमोन सेप्टा को ठंडे स्थान में बंद डिब्बे में रखें, जिसमें हवा प्रवेश न कर पाए। यदि प्रशीतन संयत्र उपलब्ध है तो उसमें बंद डिब्बे में रखकर रखें। लागत- यौन रसायन आर्कषण जाल में प्रयुक्त जाल या ट्रैप को क्षेत्रीय स्तर पर बनवा सकते हैं अथवा बना बनाया खरीद सकते हैं। फेरोमोन सेप्टा 25-28 दिनों बाद तक कारगर रहता है। इस प्रकार बहुत कम लागत में चना फली भेदक के प्रकोप का पूर्वानुमान कर सकते है। चूंकि यह सूचना पूरे ग्राम या क्षेत्र के लिए एक जैसी होती है। इसलिए यदि सम्बंधित किसान इसकी लागत को आपस में बांट लें तो खर्च बहुत ही कम हो जाएगा। यदि यौन रसायन आर्कषण जाल का प्रयोग न किया जाए तो कीट प्रकोप की जानकारी सूंडी व गिड़ार दिखाई पड़ने लायक आकार की होन पर होती है। तब तक 5- 7 प्रतिशत की क्षति हो चुकी होती है। फलस्वरूप अंडारोपण के समय से ही सावधान या सचेत हो जाना चाहिए। उपयुक्त तो यह होगा कि पौध की रोपाई के बाद से ही जैविक कीटनाशकों का छिड़काव प्रारम्भ कर देना चाहिए।