जिंस बाजार में श्रमिकों की मार का असर दिखने लगा है। सरकार लाख प्रयास कर रही है लेकिन हर चीज को व्यवस्थित रख पाना मुश्किल हो रहा है।खाद्यान्न,सब्ज्यिां, तेल,अनाज दाल, दूध जैसी जरूरी चीजों की कीमतें और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ रहा है। प्रसंस्करण का कार्य श्रमिकों की कमी और समय सीमा के बंधन के चलते ठप होने लगा है।
बाजार की बात करें तो पिछले 15 दिन में थोक मंडी में 85 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रही मूंग दाल 26 मार्च को 100 रुपए के पार पहुंच गई है। छोटे शहरों में 24 रुपए किलोग्राम वाले गेहूं का आटा 40 के पार पहुंचने लगा है। स्टाक भले ही पर्याप्त हों लेकिन उनका थोक मंडी से गांव देहात तक पहुंचने में दिक्कत होने लगी है। वाहनों के संचालन पर मंदी के चलते कीमतों में उछाल और कालाबाजारी ने जोर पकड़ लिया है। कोरोनावायरस के डर के चलते श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं। उनके लिए मास्क सेनेटाइजर और लगातार काम मिलने की गारंटी कोई कारोबारी देने को तैयार नहीं है।
आटा मिलों को भी श्रमिकों की कमी से जूझना पड़ रहा है। मंडी से लेकर परिवान सेवा से जुडे लोग माल की ढलाई में रुचि नहीं ले रहे हैं। आवाश्यक सेवाओं को बहाल रखने के लिए विशेष पास जैसी कोई व्यवस्था देश में नहीं दिख रही। माल वाहक वाहन माल की ढुलाई तो प्रूव कर पाते हैं लेकिन माल खलने के बाद उन्हें पुलिस की अडचनों से जूझना पड़ रहा है।
अनेक ट्रक ग्रांमीण अंचल के ढाबों पर फंसे हैं। दिक्कतों का एक कारण यह भी है कि जो लोग कभी किलो दो किलो चीनी लेते थे लेकिन अब एक बोरी चीनी ले जा रहे हैं। देश में लॉक डाउन का असर महंगाई, कालाबाजारी, मिलावटखोरी जैसी दिक्कत बढाने के साथ नए तरह की समस्याओं के रूप में दिखने लगा है। आजादी के साथ जीने, कहीं भी पीकने थूकने और मूतने के आदी लोगों को लॉक डाउन कतई रास नहीं आ रहा।