मुँहपका व खुरपका रोग या मुँह खुर रोग विषाणु द्वारा होने वाला रोग है। गाय, भैंस, बकरी व भेड़ में अत्यधिक तेजी से फैलने वाला रोग है।
मुँहपका व खुरपका रोग या मुँह खुर रोग विषाणु द्वारा होने वाला रोग है। गाय, भैंस, बकरी व भेड़ में अत्यधिक तेजी से फैलने वाला रोग है। इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे छाले बनना और खुरों के मध्य की जगह पर छोटे-छोटे छाले बनना जिससे पशु लंगड़ाता है। बाद में ये छाले फैल जाते हैं, और उनमें जख्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में पशु जुगाली करना बंद कर देता है, मुंह से तमाम लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाते हैं। कुछ भी नहीं खाता-पीता है, खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है, तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है। पशु लंगड़ाने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है। वे कमजोर होने लगते हैं, समय पाकर व इलाज होने पर यह छाले व जख्म भर जाते हैं। परंतु संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकता है। गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है।
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प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए। पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ करके ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए। प्रभावित पशु के मुँह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संपर्क में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए।
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समय समय पर पशुओं का टीकाकरण कराते रहना चाहिए। रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बनाकर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए। प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए। मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।