जैसे ही गर्मी अपने चरम पर पहुंचती है, वैसे ही इंसानों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी यह मौसम चुनौतीपूर्ण बन जाता है। लू और तापघात जैसी समस्याएं सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि पशुधन पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ता है।
जैसे-जैसे पारा चढ़ेगा, वैसे-वैसे पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है, जिससे वे वायरल व बैक्टीरियल संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं।
खासकर दुधारू पशु अधिक प्रभावित होते हैं – वे दूध देना कम कर देते हैं और उनकी रोगों से लड़ने की ताकत भी घट जाती है।
इसका सीधा असर पशुपालकों की आय पर पड़ता है। इस लेख में कुछ सुझाव दिए गए है जिनको अपनाकर पशुपालक आपने पशुओं का ध्यान रख सकते है।
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राजस्थान सरकार ने अपने सभी जिला पशु चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे फील्ड में जाकर पशुपालकों को समय पर जानकारी दें।
गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे, पोस्टर, पर्चे, मोबाइल संदेशों और रेडियो के माध्यम से जानकारी दी जाएगी।
साथ ही, स्थानीय पशु चिकित्सालयों में विशेष व्यवस्था की जा रही है ताकि आपातकालीन स्थिति में तुरंत चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो सके।
यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि किसी भी पशुपालक को जानकारी के अभाव में अपने पशुओं की जान न गंवानी पड़े।
सरकार की अपील है कि पशुपालक न केवल इन निर्देशों का पालन करें बल्कि अन्य लोगों को भी जागरूक करें। गर्मी का मौसम कठिन जरूर है, लेकिन थोड़ी समझदारी और सावधानी से पशुओं को इस तपती हुई चुनौती से बचाया जा सकता है।
याद रखिए, स्वस्थ पशु न केवल दूध देते हैं, बल्कि एक स्वस्थ ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव भी होते हैं। आइए, मिलकर अपने पशुधन को सुरक्षित और स्वस्थ बनाए रखें।