बद्री नस्ल पहाड़ी क्षेत्र में पाली जाने वाली गाय की नस्ल हैं। इस नस्ल को दोहरे उद्देश्य वाली ‘देसी’ मवेशी नस्ल में गिना जाता हैं। बद्री नस्ल की गाय को दूध देने और भार ढोने के उद्देश्य से पाला जाता है।
छोटी बद्री गाय को पहाड़ी क्षेत्र में पाले जाने के कारण लाल पहाड़ी गाय और पहाड़ी गाय के नाम से भी जाना जाता हैं। ये नस्ल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं।
ये एक ठण्ड और रोग प्रतिरोधी नस्ल हैं जो कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों के पहाड़ी क्षेत्रों में भी आसानी से रह रही हैं।
बद्री गाय को शुभ माना जाता है और इसका उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है।
बद्री नस्ल की गाय प्रतिदिन 1 लीटर से 3 लीटर तक है दूध का उत्पादन कर सकती हैं।
उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद और आईआईटी रुड़की द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन के अनुसार, बद्री गाय के दूध में लगभग 90% A2 बीटा-केसीन प्रोटीन होता है - और यह किसी भी देशी प्रजाति में सबसे अधिक है।
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि उत्तराखंड में पहली प्रमाणित मवेशी गाय की नस्ल बद्री है।
सरकार ने बद्री नस्ल के मवेशियों के पालन को बढ़ावा देने के लिए विपणन सुविधाओं में सुधार करने, पौष्टिक चारा और चारा उपलब्ध कराने और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर देने का प्रयास किया है।