मछली पालन आज केवल एक शौक नहीं, बल्कि एक लाभकारी व्यवसाय बन चुका है। इसमें न केवल अच्छी आमदनी की संभावना होती है, बल्कि यह प्रकृति के करीब रहने का भी एक सुंदर माध्यम है।
तालाब के किनारे बैठकर मछलियों की हलचल देखना एक शांतिपूर्ण अनुभव होता है। खास बात यह है कि यदि इसे व्यवस्थित रूप से किया जाए तो यह आर्थिक रूप से भी बहुत लाभदायक साबित हो सकता है।
मछली पालन न केवल किसानों के लिए बल्कि शहरी युवाओं के लिए भी स्वरोजगार का बेहतरीन विकल्प है।
भारत में ताजे पानी की उपलब्धता और अनुकूल जलवायु इसे सफल बनाने में सहायक हैं। सही प्रशिक्षण और थोड़े निवेश से कोई भी व्यक्ति मछली पालन की शुरुआत कर सकता है।
मछली पालन शुरू करने से पहले सबसे जरूरी है, एक उपयुक्त जल स्रोत का चुनाव करना। यदि आपके पास खुद का तालाब नहीं है, तो आप किराए पर भी तालाब ले सकते हैं।
तालाब पक्का या कच्चा किसी भी प्रकार का हो सकता है, लेकिन उसमें साफ पानी रहना अनिवार्य है। पानी की गहराई औसतन 5 से 6 फीट होनी चाहिए।
शुरुआत में तालाब की सफाई करनी होगी – पुराने कचरे, शैवाल और गाद को निकालें ताकि मछलियों को स्वस्थ वातावरण मिले।
पानी में जैविक संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ जलीय पौधे जैसे जलकुंभी या नीला जलकुंभी (water hyacinth) लगाए जा सकते हैं। ये पौधे ऑक्सीजन की मात्रा बनाए रखते हैं और जल को शुद्ध करने में मदद करते हैं।
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भारत में मीठे पानी की कई प्रकार की मछलियाँ पाली जाती हैं। सबसे प्रसिद्ध हैं – रोहू, कटला, मृगल, और पंगासियस। इन मछलियों की मांग बाजार में ज्यादा होती है, इसलिए इनसे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
बीज (फिश सीड) खरीदते समय खास ध्यान दें कि वह किसी मान्यता प्राप्त सरकारी हैचरी या विश्वसनीय निजी विक्रेता से ही लिया गया हो। निम्न गुणवत्ता वाला बीज बीमारी फैलने का खतरा बढ़ा सकता है और उत्पादन घटा सकता है।
यदि मछलियों की नस्ल सही और स्वास्थ्यवर्धक हो, तो उनकी ग्रोथ जल्दी होती है और ज्यादा वजन वाली मछलियां बाजार में अच्छी कीमत दिला सकती हैं।
मछलियों की सेहत और वृद्धि उनके भोजन पर निर्भर करती है। उन्हें रोज़ाना पोषक आहार देना जरूरी होता है। आहार में चावल की भूसी, सरसों की खली, गेहूं की भूसी, और रेडीमेड फिश फीड शामिल किया जा सकता है। आप चाहें तो जैविक फीड भी बना सकते हैं।
फीड डालते समय ध्यान रखें कि मात्रा संतुलित हो। जरूरत से ज्यादा फीड डालने से पानी दूषित हो सकता है, जिससे मछलियों की मौत हो सकती है।
रोज सुबह और शाम एक तय समय पर फीड डालना आदर्श रहता है। मछलियों को हमेशा एक ही स्थान पर फीड दें ताकि वे उस स्थान पर एकत्र हों और आसानी से निगरानी की जा सके।
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जब आपकी मछलियाँ 800 ग्राम से 1.5 किलो तक की हो जाएं, तब वे बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं। harvesting के लिए आप जाल या ड्रेनेज सिस्टम का उपयोग कर सकते हैं। मछलियों को पकड़ने के बाद उन्हें साफ कर बाजार में ले जाया जाता है।
आप मछलियाँ थोक बाजार, स्थानीय मंडी, होटल, रेस्टोरेंट, या मछली निर्यात कंपनियों को बेच सकते हैं। कुछ किसान प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर फिश पॉप्स, फिश टिक्का जैसे वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स बनाकर अतिरिक्त मुनाफा भी कमा रहे हैं।
सरकार मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। 'प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना' के तहत किसानों को तालाब निर्माण, बीज, फीड, ऑक्सीजन सप्लाई यूनिट, एरेटर्स, वॉटर टेस्टिंग किट आदि पर सब्सिडी मिलती है।
अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं तो आपको अपने जिले के मत्स्य पालन अधिकारी से संपर्क करना होगा। आवेदन के लिए आधार कार्ड, बैंक पासबुक, भूमि कागज, और व्यवसाय योजना की आवश्यकता होती है।
कुछ राज्यों में ऑनलाइन आवेदन की सुविधा भी है। इससे शुरुआती लागत काफी हद तक कम हो जाती है।