हालांकि मुर्गी पालन की शुरुआत करना एक बहुत ही आसान काम है, परंतु इसे एक बड़े व्यवसाय के स्तर पर ले जाने के लिए आपको वैज्ञानिक विधि के तहत मुर्गी पालन की शुरुआत करनी चाहिए, जिससे आपकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।
किसानों के द्वारा स्थानीय स्तर पर मुर्गी पालन (पोल्ट्री फार्मिंग, Poultry farming)या कुक्कुट पालन(kukkut paalan) का व्यवसाय पिछले एक दशक में काफी तेजी से बढ़ा है।
इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि पिछले कुछ सालों में प्रोटीन की मांग को पूरा करने के लिए मीट और मुर्गी के अंडों की डिमांड मार्केट में काफी तेजी से बढ़ी है।
सामान्यतया मुर्गी के छोटे बच्चों को स्थानीय स्तर पर ही एक फार्म हाउस बनाकर पालन किया जाता है और बड़े होने पर मांग के अनुसार उनके अंडे या फिर मीट को बेचा जाता है।
हालांकि भारत में अभी भी मीट की डिमांड इतनी अधिक नहीं है, परंतु पश्चिमी सभ्यताओं के देशों में पिछली पांच सालों से भारतीय मुर्गी के मीट की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ी है।
आधुनिक जिनोमिक रिपोर्ट्स की जानकारी से पता चलता है कि मुर्गी पालन दक्षिणी पूर्वी एशिया में सबसे पहले शुरू हुआ था और इसकी शुरुआत आज से लगभग 8000 साल पहले हुई थी।
भारत में मुर्गी पालन की शुरुआत वर्तमान समय से लगभग 2000 साल पहले शुरू हुई मानी जाती है, परंतु आज जिस बड़े स्तर पर इसे एक व्यवसाय के रूप में स्थापित किया गया है, इसकी मुख्य शुरुआत भारत की आजादी के बाद ही मानी जाती है।
हालांकि भारत में पोल्ट्री फार्मिंग के अंतर्गत मुर्गी पालन को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है, परंतु मुर्गी के अलावा भी मेक्सिको और कई दूसरे देशों में बतख तथा कबूतर को भी इसी तरीके से पाल कर बेचा जाता है।
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हालांकि मुर्गी पालन की शुरुआत करना एक बहुत ही आसान काम है, परंतु इसे एक बड़े व्यवसाय के स्तर पर ले जाने के लिए आपको वैज्ञानिक विधि के तहत मुर्गी पालन की शुरुआत करनी चाहिए, जिससे आपकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।
मुर्गी पालन को भी आपको एक बड़े व्यवसाय की तरह ही सोच कर चलना होगा और इसके लिए आपको एक बिजनेस प्लान भी बनाना होगा, इस बिजनेस प्लान में आप कुछ चीजों को ध्यान रख सकते हैं जैसे कि- मुर्गी फार्म हाउस बनाने के लिए सही जगह का चुनाव, अलग-अलग प्रजातियों का सही चुनाव, मुर्गियों में बड़े होने के दौरान होने वाली बीमारियों की जानकारी और मार्केटिंग तथा विज्ञापन के लिए एक सही स्ट्रेटजी।
मुर्गी पालन के लिए कई किसान छोटे फार्म हाउस से शुरुआत करते है और इसके लिए लगभग 15000 से लेकर 30000 स्क्वायर फीट तक की जगह को चुना जा सकता है, जबकि बड़े स्तर पर शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 50000 स्क्वायर फीट जगह की जरूरत होगी।
किसान भाइयों को इस जगह को चुनते समय ध्यान रखना होगा कि यह शहर से थोड़ी दूरी पर हो और शांत वातावरण होने के अलावा प्रदूषण भी काफी कम होना चाहिए। इसके अलावा बाजार से फार्म की दूरी भी ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
यदि आपका घर गांव के इलाके में है, तो वहां पर भी मुर्गी पालन की अच्छी शुरुआत की जा सकती है।
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किसी भी प्रकार के मुर्गी फार्म को बनाने से पहले किसान भाइयों को अपने आसपास में ही सुचारू रूप से संचालित हो रहे दूसरे मुर्गी-फार्म की जानकारी जरूर लेनी चाहिए। इसके अलावा भी, एक मुर्गी फार्म बनाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा जैसे कि :-
वैसे तो विश्व स्तर पर मुर्गी की लगभग 400 से ज्यादा वैरायटी को पालन के तहत काम में लिया जाता है, जिनमें से 100 से अधिक प्रजातियां भारत में भी इस्तेमाल होती है, हालांकि इन्हें तीन बड़ी केटेगरी में बांटा जाता है, जो कि निम्न है :-
इस प्रजाति की वृद्धि दर बहुत अधिक होती है और यह लगभग 7 से 8 सप्ताह में ही पूरी तरीके से बेचने के लिए तैयार हो जाती है।
इसके अलावा इनका वजन भी अधिक होता है, जिससे कि इनसे अधिक मीट प्राप्त किया जा सकता है।
कम समय में अधिक वजन बढ़ने की वजह से किसान भाइयों को कम खर्चा और अधिक मुनाफा प्राप्त हो पाता है।
यह भारत में दूसरे नम्बर पर इस्तेमाल की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति है।इस प्रजाति के मुर्गे मुख्यतः मेल(Male) होते है।
हालांकि इनको बड़ा होने में काफी समय लगता है, परन्तु इस प्रजाति के दूसरे कई फायदे है इसीलिए भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के मुर्गों को ज्यादा पाला जाता है।
यह चिकन प्रजाति किसी भी प्रकार की जलवायु में आसानी से ढल सकती है और इसी वजह से इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पर बड़ी ही आसानी से स्थानांतरित भी किया जा सकता है।
इस प्रजाति का इस्तेमाल अंडे उत्पादन करने के लिए किया जाता है।यह प्रजाति लगभग 18 से 20 सप्ताह के बाद अंडे देना शुरु कर देती है और यह प्रक्रिया 75 सप्ताह तक लगातार चलती रहती है।
यदि इस प्रजाति के एक मुर्गी की बात करें तो वह एक साल में लगभग 240 से 250 अंडे दे सकती है।
हालांकि इस प्रजाति का इस्तेमाल बड़ी-बड़ी कंपनियां अंडे व्यवसाय के लिए करती है क्योंकि छोटे स्तर पर इनको पालना काफी महंगा पड़ता है।
मुर्गी पालन के लिए अलग-अलग राज्यों में कई प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है, हालांकि पिछले कुछ समय से मुर्गी पालन की बढ़ती मांग के मद्देनजर भारतीय सरकार मुर्गी पालन के लिए आवश्यक लाइसेंस की संख्या को धीरे धीरे कम कर रही है।
वर्तमान में आपको दो प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होगी।
किसान भाइयों को प्रदूषण बोर्ड के द्वारा दिया जाने वाला 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' (No Objection Certificate) लेना होगा, साथ ही भूजल विभाग (Groundwater Department) के द्वारा पानी के सीमित इस्तेमाल के लिए भी एक लाइसेंस लेना होगा।
इन दोनों लाइसेंस को प्राप्त करना बहुत ही आसान है, इसके लिए ऊपर बताए गए दोनों विभागों की वेबसाइट पर अपने व्यवसाय के बारे में जानकारी डालकर बहुत ही कम फीस में प्राप्त किया जा सकता है।
एक जानकारी के अनुसार मुर्गी पालन में होने वाले कुल खर्चे में लगभग 40% खर्चा मुर्गियों के पोषण पर ही किया जाता है और दाने की गुणवत्ता अच्छी होने की वजह से मुर्गियों का वजन तेजी से बढ़ता है, जिससे कि उनकी अंडे देने की क्षमता और बाजार में बिकने के दौरान होने वाला मुनाफा भी बढ़ता है।
वर्तमान में भारत में कई कंपनीयों के द्वारा मुर्गियों में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाना बनाकर बेचा जाता है, जिन्हें 25 और 50 किलोग्राम की पैकिंग में 25 रुपए प्रति किलो से 40 रुपए प्रति किलो की दर में बेचा जाता है।
कई कम्पनियों के दाने बड़े और मोटे आकार के होते है, जबकि कई कंपनियां एक पिसे हुए चूरे के रूप में दाना बेचती है।
भारतीय मुर्गी पालकों के द्वारा 'गोदरेज' और 'सुगुना' कंपनी के दानों को अधिक पसंद किया जाता है।
पोल्ट्री सेक्टर से जुड़े वैज्ञानिकों के द्वारा मुर्गी पालन में किए गए नए अनुसंधानों की वजह से अब मुर्गी पालन में भी कई प्रकार की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में तो रोबोट के द्वारा भी मुर्गी पालन किया जा रहा है। ऐसी ही कुछ नई तकनीक भारत में भी कुछ बड़े मुर्गीपालकों के द्वारा इस्तेमाल में ली जा रही है, जैसे कि :
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किसी भी प्रकार के व्यवसाय के दौरान आपको एक सही दिशा में काम करने वाली मार्केटिंग स्ट्रेटजी को अपनाना अनिवार्य होता है, ऐसे ही मुर्गी पालन के दौरान भी आप कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे कि :
मुर्गी पालन के दौरान किसान भाइयों को को मुर्गी में होने वाली बीमारियों से पूरी तरीके से बचाव करना होगा अन्यथा कई बार टाइफाइड जैसी बीमारी होने पर आपके मुर्गी फार्म में उपलब्ध सभी मुर्गियों की मौत हो सकती है।
पशुधन मंत्रालय के द्वारा ऐसे ही कुछ बीमारियों के लक्षण और बचाव तथा उपचार के लिए किसान भाइयों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है।
एक वायरस की वजह से होने वाली इस बीमारी से मुर्गियों में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और यदि इसका सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो एक सप्ताह के भीतर ही मुर्गियों की मौत भी हो सकती है।
प्रदूषित पानी के इस्तेमाल तथा बाहर से कई दूसरे पक्षियों से संपर्क में आने की वजह से मुर्गियों में इस तरह की बीमारी फैलती है।
इसके इलाज के लिए मुर्गियों को डिहाइड्रेट किया जाता है और उन्हें कुछ समय तक सूरज की धूप में रखा जाता है।
एवियन इनफ्लुएंजा के दौरान मुर्गियों की खाना खाने की इच्छा पूरी तरीके से खत्म हो जाती है और उनके शरीर में उर्जा भी बहुत कम हो जाती है।
यह रोग आसानी से एक मुर्गी से दूसरी में फैल सकता है।भारत के मुर्गीफ़ार्मों में होने वाली सबसे भयानक बीमारी के रूप में जाने जाने वाला यह रोग मुर्गियों के पाचन तंत्र को पूरी तरह से बिगाड़ देता है और उनकी अंडा उत्पादन करने की क्षमता पूरी तरीके से खत्म हो जाती है।हालांकि वर्तमान में इस बीमारी के खिलाफ वैक्सीन उपलब्ध है।
यदि किसान भाइयों को मुर्गियों में छींक और खांसी जैसे लक्षण नजर आए तो उनके संपर्क करने से बचें, क्योंकि यह मुर्गियों से इंसानों में भी फैल सकती है।
यह एक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है जिसमें चूज़े के शरीर के अंदर की तरफ घाव हो जाते है।
इस बीमारी का पता लगाने के लिए एक टेस्ट किया जाता है,जिसे सिरम टेस्ट बोला जाता है।यह एक मुर्गी से पैदा हुए चूजे में फैलता है।
इस बीमारी के दौरान चूजों के पैरों में सूजन आ जाती है और वह एक जगह से हिल भी नहीं पाते है, जिससे कि नमी से होने वाली बीमारियां भी बढ़ जाती है।
एक बार मुर्गी फार्म में इस बीमारी के फैल जाने पर इसे रोकना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए समय-समय पर सीरम टेस्ट करवा कर इसे फैलने से पहले ही रोकना अनिवार्य होता है।
इनके अलावा भी कई बीमारियां मुर्गी पालकों के सामने चुनौती बनकर आ सकती है, लेकिन सही वैज्ञानिक विधि से उन रोगों को आसानी से दूर किया जा सकता है।
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पिछले 6 सालों से भारतीय निर्यात में मुर्गी पालन का योगदान काफी तेजी से बढ़ा है और इसी को मध्य नजर रखते हुए भारत सरकार और कई सरकारी बैंक मुर्गी पलकों के लिए अलग-अलग स्कीम संचालित कर रहे हैं। जिनमें कुछ प्रमुख स्कीम जैसे कि :
यह स्कीम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा संचालित की जाती है और इसमें मुख्यतया मुर्गे की ब्रायलर प्रजाति पर ही ज्यादा फोकस किया जाता है।
इस स्कीम के तहत किसानों को मुर्गी पालन के लिए जगह खरीदने और दूसरे प्रकार के कई सामानों को खरीदने के लिए कम ब्याज पर लोन दिया जाता है।
'आत्मनिर्भर भारत स्कीम' के तहत सरकार के द्वारा इस लोन पर 3% की ब्याज रियायत भी दी जाएगी।
इस स्कीम के तहत पशुधन विभाग के द्वारा किसानों के बड़े ग्रुप को मुर्गी पालन से जुड़ी नई तकनीकों की जानकारी दी जाती है और पशु चिकित्सकों की मदद से मुर्गी पालन के दौरान होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए मुफ्त में दवाई वितरण भी किया जाता है।
हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने महिलाओं के लिए एक स्कीम लॉन्च की है जिसके तहत मुर्गी पालन के दौरान होने वाले कुल खर्चे पर गरीब परिवार की महिलाओं को 50% सब्सिडी दी जाएगी वहीं सामान्य श्रेणी की महिलाओं को 25% तक सब्सिडी उपलब्ध करवाई जाएगी।
2014 में लॉन्च हुई इस स्कीम के तहत ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को फसल उत्पादन के लिए नई तकनीकी सिखाई जाने के साथ ही मुर्गियों की बेहतर ब्रीडिंग के लिए आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध करवाई जाएगी। इसके अलावा ऐसे मुर्गीपलकों को अपने व्यवसाय को बड़ा करने के लिए मार्केटिंग स्ट्रेटजी के लिए भी ट्रेनिंग दी जाएगी।
वर्तमान में केरल और गुजरात के किसानों के द्वारा इस स्कीम के तहत काफी लाभ कमाया जा रहा है।
ऊपर बताई गई जानकारी का सम्मिलित रूप से इस्तेमाल कर कई मुर्गी पालन अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं और यदि आप भी मुर्गी पालन को एक बड़े व्यवसाय के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं, तो कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें,जैसे कि :
आशा करते है कि सभी किसान भाइयों और मुर्गी पालकों को Merikheti.com के द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बढ़ती मांग की तरफ अग्रसर होने वाले मुर्गी-पालन व्यवसाय से आप भी अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।