Ad

गलघोंटू या घरघरा रोग से पशुओं को बचाएं

Published on: 15-Jan-2020
गलघोंटू या घरघरा रोग से पशुओं को बचाएं
पशुपालन पशुपालन गाय-भैंस पालन

कृषि प्रधान देश भारत में आज भी बहुसंख्यक आबादी कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। यहां विभिन्न तरह की जलवायु है। इसक प्रभाव सभी जीव व वनस्पतियों पर नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों तरह से दिखता है। विभिन्न ऋतु में पशुओं का खान पान एवं रखरखाव की समुचित व्यवस्था न हो पाने से पालतू पशुओ में विभिन्न संक्रामक रोग होने का खतरा बना रहता है । हमारे देश में गलघोटू भैंसों के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख जीवाणु रोग है। इसको सामान्यतः घरघरा, घूरखा, घोंटुआ, अषढ़िया, डकहा आदि नामों से भी जाना जाता है। 

इस रोग से ग्रसित पशु की मृत्यु होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है। भैंसों के अलावा यह रोग गाय, सूअरों, भेड़ और बकरियों में हो सकता है तथा ऊंट, हाथी, घोड़े, गधे याक और हिरण और अन्य जंगली जुगाली करने वाले पशुओं में भी इस रोग के जीवाणुओं की विभिन्न प्रजातियों में दर्ज की गई है। हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया एक संक्रामक जीवाणु रोग है। इसे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े जुगाली करने वाले पशुओं की सबसे गंभीर बीमारी के रूप में माना जाता है। एचएस अफ्रीका और मध्य पूर्व में भी एक महत्वपूर्ण बीमारी है जिसका दक्षिणी यूरोप में छिटपुट प्रकोप होता है। 

उच्च वर्षा, आर्द्रता और कम तापमान एचएस के जीवाणु का संक्रमण बढ़ाने में मददगार साबित होती है। स्थानीय क्षेत्रों में यह 6 से 24 महीने की उम्र के बीच जानवरों में मुख्यतः पाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में महामारी उच्च मृत्यु दर के साथ हो सकती है। संक्रमण या तो स्वस्थ वाहक जानवरों अथवा संक्रमित जानवरों के साथ दूषित भोजन या पानी के अंतर्ग्रहण से या उनके श्राव से हो सकता है। नाक के स्राव में सूक्ष्मजीव बाहर निकलते रहते है जोकि दूसरे पशुओं को संक्रमित करते है ।

रोग के लक्षण

 

 सामान्य रूप से यह जीवाणु एक स्वस्थ पशु के श्वासनतंत्र के उपरी भाग में मौजूद होता है। यह रोग अति तीव्र एवं तीव्र दोनों का प्रकार संक्रमण पैदा कर सकता है जिससे रोगी पशु में उच्च मृत्यु दर पायी जाती है। इस रोग के लक्षणों में मुख्यतः उच्च बुखार तापमान में वृद्धि 104 ° .106 होने के अलावा उदर के ऊपरी हिस्से में सूजन और ग्रसनी और स्वसन नलिका पर सूजन हो जाती है। पशु के मुंह से घरर घरर की आवाजें आने लगती हैं। सांस लेने में कठिनाई के साथ मुंह से लार बहने लगती है। पशु को सांस लेने पर जीभ का बाहर निकालनी पड़ती है। पशु आठ से 24 घण्टे के अंदर मर सकता है। 

रोग से रोकथाम एवं बचाव

 

 रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें। कुछ व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का उपयोग उपचार के लिए किया जाता है जैसे कि सल्फोनामाइड पेनिसिलिन जो अगर जल्दी प्रशासित किया जाए तो प्रभावी है। 

टीकाकरण

 

 टीकों को रोकथाम के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाता है और इसमें बैक्टीरिया फिटकिरी.अवक्षेपित और एल्यूमीनियम हाइड्रॉक्साइड जेल टीके और तेल सहायक टीके शामिल होते हैं। जानवरों में 3 वर्ष की आयु एक प्रारंभिक दो खुराक 1 महीने के अलावा की सलाह दी जाती है। तत्पश्चात वार्षिक या वर्ष में दो बार टीकाकरण करें।

Ad