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कृषि कानून

खल रही किसान नेतृत्व की कमी, सरकार कर रही खेल

खल रही किसान नेतृत्व की कमी, सरकार कर रही खेल

देश में नेतृत्व विहीन किसान एक माह से ज्यादा समय से सड़क पर हैं। कोई एक सर्वमान्य किसान नेता न होने का फायदा उठाने की कोशिश भी सरकार कुछ संगठनों को कानूनों के समर्थन में खड़ा करके कर चुकी है। सरकार द्वारा बनाए गए कानून को लेकर दिल्ली जाने वाले कई मार्गों को किसानों द्वारा बंद किए जाने के बाद कोर्ट ने भी सादगी से एक अपील सरकार से की, कि क्या इन कानूनों को होल्ड किया जा सकता है लेकिन कोर्ट ने भी बेहद मर्यादित टिपण्णी कर चुप्पी साध ली। बात साफ है सरकार बनाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जो भी करती है दृढ़ संकल्प के साथ करती है।आज हम कृषि, कृषि कानून और उस पर किसान और सरकार के बीच चल रहे दांव पेच के बीच हालात को बारीकी से समझने का प्रयास करेंगे।

सरकार पर भरोसे में आई कमी

जिस दौर में अर्थव्यवस्था परवान चढ़ रही थी उस दौर में नोट बंदी कर बेड़ा गर्क करा दिया। जिन लोगों की सलाह पर मोदी सरकार में यह फैसला लिया गया उस दौर की तकलीफें किसी से छिपी नहीं। घर परिवार की जरूरतों की चिंता में लोग दिन निकलने से लेकर सायं तक बैंक, एटीएम की लाइन और न जाने कहां-कहां भटकते नजर आए। इन कष्टों को भी लोगों ने सरकार पर भरोसा होने के कारण खुशी-खुशी सह लिया। सरकार की अपील लोगों ने कोरोना जैसी महामारी पर विजय पाने के लिए उत्साह वर्धन हेतु जमकर ताली और थाली बजाई। एक अपील पर 18 दिन घरों में कैद तक रहे। महीनों अन्य तरह की बंदिशों के शिकार रहे। कोरोना काल में अच्छे-अच्छे उद्योग और उद्योगपति हांफ गए लेकिन कृषि ने जीडीपी में 4 प्रतिशत की ग्रोथ दी लेकिन उस कृषि के उभरते हुए क्षेत्र को भी नोटबंदी की तरह छेड़ दिया। वहां अर्थव्यवस्था का बेडा गर्क हुआ वहीं यहां कृषि क्षेत्र का बेड़ा गर्क होने की आशंका से किसान सड़कों पर हैं।

खत्म हो जाएगी कृषि विविधता

कंपनी यानी लाभकारी सोच वाले लोगों का समूह। जो लोग सिर्फ लाभ कमाने में भरोसा रखते हैं वह केवल लाभ वाली चीजों पर ही फोकस करते हैं। नए कृषि कानूनों के बाद कान्ट्रेक्ट फार्मिंग के फार्मूले में भी यहीं होगा। कारोबारी या बड़ी कंपनी किसानों से वही फसलें लगवाएंगी जिनसे उन्हें ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद होगी। बात साफ है वैश्विक उत्पादन का एनालसिस करने वाले एक्सपर्ट कंपनियों के मालिकों को जो राय देंगे उसी के अनुरूप खेती का रूप स्वरूप निर्धारित होगा। कई तरह की फसलें खत्म हो जाएंगी तो कई का क्षेत्र व्यापक होगा। निश्चय ही इससे कृषि विविधता खतरे में पड़ेगी।

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16 रुपए के गेहूं का दलिया 60 रुपए किलो

किसान का गेहूं आज भी 1900 के पार एमएसपी होने के बाद भी 1600—1700 बिक रहा है। इससे बनने वाला दलिया 60, आटा 30 से 35, सूजी एवं मैदा करीब 40 रुपए प्रति किलोग्राम है। कोई बता सकता है कि एक रुपए किलो की दलाई, दो तीन रुपए की छनाई, तीन से पांच रुपए की पैकिंग के बाद सामान्य गेहूं का कोई भी दलिया 60 के भाव में क्यों बिक रहा है। आटा 16 से 35 का कैसे हो गया। मसलन कारोबारी अपनी पूरी लागत, श्रम, और लाभ हर हाल में ले लेता है। जब कारोबारी अपना लाभ किसी भी हाल में निकाल लेता है तो फिर सरकार को न्यूनतम समर्थनमूल्य पर हर हाल में खरीद की पॉलिसी पर काम करने के बजाय भुलक्कड़ नामों वाले तीन कानूनों को लाने की क्या जरूरत थी। रही बात प्रोसेसिंग के दौरान भूसी आदि के निकलने की तो वह भी गेहूं से कम कीमत पर नहीं बिकतीं।

कारोबारियों पर नियंत्रण नहीं

सरकार की नीतियों से कारोबारी भी खासे परेशान हैं लेकिन उन पर सरकार का ज्यादा जोर नहीं। यदि होता तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में आने तक कई दफा एकमात्र प्याज की कीमतें अनियंत्रित न होतीं और उसका निर्यात कर संतुलन बनाने के हालात न बनते। कारोबारियों ने 1925 के एमएसपी पर गेहूं 1800 रुपए कुंतल तक खरीदा। अब कीमतें 1600 पर अटकी हुई हैं। यह बात अलग है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में लंदन आदि में गेहूं और सस्ता है लेकिन कारोबारी ने इसकी कसक धान में निकाल ली। किसानों का धान 1000 से 1500 तक ही खरीदा। बासमती श्रेणी का धान गुजरे दशक में इससे सस्ता कभी नहीं बिका।अब ज्यादातर किसानों का स्टाक निल हो चुका है और धान पर एक हजार रुपए कुंतल तक की बढ़त है। बासमती श्रेणी का ज्यादातर धान निर्यात होता है और निर्यात करने वाले कारोबारी भी तीन चार सौ से ज्यादा नहीं हैं। देश की किस मंडी से किस किस्म का धान किस रेट में खरीदना है वह होटल में पार्टी करके तय कर लेते हैं। देश की मंडियां इसी हिसाब से चलती हैं। कारोबारी साच को और बारीकी से समझने के लिए बाता दें कि कोयले की खदानों के ठेके कई कंपनियों ने लिए हैं लेकिन वह कोयला नहीं निकाल रहीं। कोयला तब निकाला जाएगा जबकि उसकी कीमतों में तेज उछाल होगा।

फसलों के उत्पादन का होगा रिकॉर्ड

नए कानूनों के बाद कान्ट्रेक्ट फॉर्मिंग बढ़ने और बड़ी कंपनियों के कूदने से किसानों को लाभ हो न हो लेकिन सरकार को एक लाभ जरूर होगा। कंपनियों के पास भंडारित कृषि जिंसों के स्टॉक की जानकारी सरकार के पास होगी। यह बात अलग है कि कंपनियां उसे जरूरत पर सरकार को अपना लाभ छोड़कर देंगीं या सरकार चीनी मिलों की तरह उन्हें घाटे की भरपाई या किसानों के भुगतान चुकाने के लिए करोड़ करोड़ के पैकेज के रूप में लाभान्वित करेगी।
तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा

तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए 14 महीने से विवादों में घिरे चले आ रहे तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करके पूरे राष्ट्र को चौंका दिया। इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर किसान लगातार आंदोलन करते चले आ रहे हैं। किसान लगातार  कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए दिल्ली सीमा पर भारी संख्या में किसान पिछले साल सितम्बर माह से आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन को लेकर सैकड़ों किसानों की जाने तक चलीं गयीं हैं। किसान इन कृषि कानूनों को लेकर सरकार से कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं हो रहे थे। हालांकि सरकार ने यह समझाने की बहुत कोशिश की कि ये कानून छोटे किसानों के हितों के लिए हैं क्योंकि देश में 100 में से 80 किसान छोटे हैं।  लेकिन आंदोलनरत किसानों ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की जिद पकड़ ली है। किसानों की जिद के आगे सरकार को हथियार डालते हुए इन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लेना पड़ा।

किसानों के कल्याण के लिए ईमानदारी से कोशिश की थी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमने हमेशा किसानों की समस्याओं और उनकी चिंताओं का ध्यान रखा और उन्हें दूर करने का प्रयास किया जब आपने हमें 2014 में सत्ता सौंपी तो हमें यह लगा कि किसानों के कल्याण, उनकी आमदनी बढ़ाने का कार्य करने का निश्चय किया। हमने कृषि वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों आदि से सलाह मशविरा करके कृषि के विकास व कृषि करने की आधुनिक तकनीक को अपना कर किसानों का हित करने का प्रयास किया।  काफी विचार-विमर्श करने के बाद हमने देश के किसानों खासकर छोटे किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक दाम दिलाने, उनका शोषण रोकने एवं उनकी सुविधाएं बढ़ाने के प्रयास के रूप में तीन नये कृषि कानून लाये गये। उन कृषि कानूनों को लागू किया गया।

किसानों को पूरी तरह से समझा नहीं पाये

राष्ट्र के नाम अपने संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने सच्चे मन एवं पवित्र इरादे से देश हित व किसान हित के सारे नियमों को समेट कर ये तीन कानून बनाये।  देश के कोटि-कोटि किसानों, अनेक किसान संगठनों ने इन कृषि कानूनों का स्वागत किया एवं समर्थन दिया। इसके बावजूद किसानों का एक वर्ग इन कृषि कानूनों से नाखुश हो गया। उन्होंने कहा कि हमने इन असंतुष्ट किसानों से लगातार एक साल तक  विभिन्न स्तरों पर बातचीत करने का प्रयास किया उन्हें सरकार की मंशा को समझाने का प्रयास किया । इसके लिए हमने व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से किसानों को समझाने का प्रयास किया।  किसानों के असंतुष्ट वर्ग को समझाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों, मार्केट विशेषज्ञों एवं अन्य जानकार लोगों की मदद लेकर पूर्ण प्रयास किया किन्तु सरकार के प्रयास सफल नहीं हो पाये। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि सरकार ने दीपक के सत्य प्रकाश जैसे कृषि कानूनों के बारे में किसानों को समझाने का पूरा प्रयास किया लेकिन हमारी तपस्या में कहीं कोई अवश्य ही कमी रह गयी होगी जिसके कारण हम किसानों को पूरी तरह समझा नहीं पाये। कृषि कानून

किसानों को मनाने का पूरा प्रयास किया

18 मिनट के राष्ट्र के नाम संदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज गुरु नानक जयंती जैसे प्रकाशोत्सव पर किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है और न ही हम किसी में कोई दोष ठहराने की सोच रहे हैं बल्कि हमने जिस तरह से देश हित और किसान हित में ये कृषि कानून लाये थे। भले ही देश के अधिकांश किसानों ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया हो लेकिन किसान का एक वर्ग नाखुश रहा और हम उसे नही समझा पाये हैं। उन्होंने कहा कि हमने किसानों को हर तरह से मनाने का प्रयास किया।

किसानों को अनेक प्रस्ताव भी दिये

आंदोलनकारी किसानों ने कृषि कानूनों के जिन प्रावधानों पर ऐतराज जताया था, सरकार उनको संशोधित करने को तैयार हो गयी थी। इसके बाद सरकार ने इन कृषि कानूनों को दो साल तक स्थगित करने का भी प्रस्ताव दिया था। इसके बावजूद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया था।  इन सब बातों को पीछे छोड़ते हुए सरकार ने नये सिरे से किसान हितों और देश के कल्याण के बारे में सोचते हुए प्रकाश पर्व जैसे अवसर पर इन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लिया है।\

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पिछली बातों को छोड़कर आगे बढ़ें

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में आंदोलनकारी किसानों का आवाहन करते हुए कहा कि हम सब पिछली बातों को भूल जायें और नये सिरे से आगे बढ़ें और देश को आगे बढ़ाने का काम करें। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि कानूनों को वापस करने का फैसला ले लिया है।  उन्होंने कहा कि में आंदोलनकारी किसानों से आग्रह करता हूं कि वे आंदोलन को समाप्त करके अपने घरों को अपने परिवार के बीच वापस लौट आयें। अपने खेतों में लौट आयें । अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इसी महीने के अंत में होने वाले संसद के सत्र में इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की सभी विधिक कार्यवाही पूरी की जायेंगी।

किसान हित के लिए और बड़ा प्रयास करेंगे

प्रधानमंत्री का कहना है कि सरकार अब इससे अधिक बड़ा प्रयास करेगी ताकि किसानों का कल्याण उनकी मर्जी के अनुरूप किया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार ने छोटे किसानों का कल्याण करने, एमएसपी को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने सहित सभी प्रमुख मांगों पर आम राय बनाने के लिए एक कमेटी के गठन का फैसला लिया है। जिसे शीघ्र ही गठित करके नये सिरे से इससे भी बड़ा प्रयास किया जायेगा। कृषि कानून

छोटे किसानों का कल्याण करना सरकार की प्राथमिकता

प्रधानमंत्री ने दोहराया कि हम लगातार छोटे किसानों के कल्याण के लिये प्रयास करते रहेंगे। देश में 80 प्रतिशत छोटे किसान हैं।  इन छोटे किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम खेती है। इस तरह के किसानों की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है। हमारी सरकार ने फसल बीमा योजना को अधिक से अधिक प्रभावी बनाया। 22 करोड़ किसानों को मृदा परीक्षण कार्ड देकर उनकी कृषि करने की तकनीक में मदद की। उन किसानों की कृषि लागत कम हो गयी तथा उनका लाभ बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों को ताकत देने के लिए सरकार ने हर संभव मदद देने का प्रयास किया और आगे भी ऐसे ही प्रयास करते रहेंगे।

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सितम्बर, 2020 में शुरू हो गया था आंदोलन

लोकसभा से तीनों कृषि कानून 17 सितम्बर, 2020 को पास हो गये थे और राष्ट्रपति ने दस दिन बाद  इन कृषि कानूनों पर अपनी मुहर लगाकर लागू कर दिया था। इसके बाद ही किसानों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया था। ये तीन कृषि कानूनों में पहला कानून कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, दूसरा कानून कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करारा विधेयक 2020 तथा तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) 2020 नाम से तीसरा कानून था।

किन प्रावधानों पर थे किसान असंतुष्ट

किसानों को सबसे ज्यादा पहले कानून कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020 के कई प्रावधानों में ऐतराज था।  मंडी के बाहर फसल बेचने की आजादी, एमएसपी और कान्टेक्ट फार्मिंग के प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जतायी गयी थी । सरकार ने अनेक स्तरों से सफाई दी और अनेक तरह के आश्वासन दिये लेकिन आंदोलनकारी किसानों को कुछ भी समझ में नहीं आया और उन्होंने किसान से इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की जिद ठान ली।  किसानों की जिद के सामने सरकार को आखिर झुकना पड़ा भले ही इसके लिए किसानों को 14 महीने का लम्बा समय अवश्य लगा।
कृषि प्रधान देश में किसानों की उपेक्षा असंभव

कृषि प्रधान देश में किसानों की उपेक्षा असंभव

जिस देश की 80 फीसद आबादी परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से खेती किसानी से जुड़ी हो वहां किसानों की उपेक्षा कोई नहीं कर सकता। वह चाहे दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर निर्णय के आदी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मेादी ही क्यों न हों।आखिरकार प्रधानमंत्री को देशवासियों से क्षमा मांगते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी ही पड़ी। उन्होंने दैवीय शक्त्यिों का आह्वान करते हुए कहा कि हे देवि मुझे इतनी शक्ति दो कि शुभकार्य करने से पीछे न हटूं। उन्होंने स्पष्ट किया कि 29 नवंबर को शुरू हो रहे संसद सत्र में कानून रद्द करने का प्रस्ताव लाया जाएगा। मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में कई लाभकारी और अहम फैसले लिए लेकिन कृषि कानूनों को अमल में लाने से उन प्रयासों पर पानी फिर गया। प्रधानमंत्री ने देश के किसानों की छोटी जोत और उससेे जीविका संचालन की दिक्कतों का मार्मिक जिक्र किया लेकिन लंबे समय तक कानून वापसी की मांग पर अड़े किसानों की अनदेखी भी उनसे छिपी नहीं रही । कानून वापसी के आन्देालन में तकरीबन 700 किसानों को जान गंवानी पड़ी। राजनीतिक समीक्षक इसे राजनीक पैतरे बाजी से जोड़ सकते हैं लेकिन यदि कानून वापसी का निर्णय उनके द्वारा लिया गया है तो वह काबिले तारीफ है। कानून को लागू करने और उसके समर्थन में माहौल बनाने में सरकार ने ऐडी चोटी का जोर लगाया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सभी संस्थान के निदेशकों ने प्रेस के माध्यम से कानून के फायादे गिनाने का प्रयास किया। पद्मश्री किसानों ने भी ज्यादातर सरकार का पक्ष लिया लेकिन कोई भी मत बहुसंख्यक किसानों की अनदेखी की हुंकार के आगे नहीं टिक पाय। सरकार ने अपने पक्ष में कई किसान संगठनों को भी खड़ा किया लेकिन कहीं न कहीं कानून को जीरो आवर्स लाने जैसे सरकार के निर्णय के चलते उसे विवादास्पद होने के कलंक से मुक्ति नहीं मिल सकी। आन्दोलन चलने के दौरान यह मसला भी भरपूर उठाया गया कि आन्दोलन में पंजाब, हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों के किसान नहीं हैं लेकिन किसानों को डिगाने की कोशिशें नाकाम रहीं। यूंतो सरकार कानून को लेकर काफी कुछ समीक्षा कर चुुकी है लेकिन कानून वापसी के निर्णय के बाद भी समीक्षा का दौर जारी रहेगा। बहुसंख्यक किसानों वाले देश में कृषि और किसानों का भरोसे में लिए बगैर किसी ठोस नीति के अमल लाने की कल्पना भविष्य में भी कोई सरकार शयद ही कर पाए। ये भी पढ़े : तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा

कानून रद्द करने की क्या होगी प्रक्रिया

—जिस कानून को रद्द करना होता है उसका एक प्रस्ताव कानून मंत्रालय को भेजा जाता है। —कानून मंत्रालय सारे कानूनी पहलुओं की जांच परख एवं अध्ययन करता है। —जिस मंत्रालय से संबंधित कानून होता है वह मंत्रायल उसे वापस लिए जाने संबंधी बिल सदन में पेश करता है। —बिल पर सदन में बहस और बहस के बाद मतदान कराया जाएगा। कानून वापसी के समर्थन में ज्यादा मत पड़ने पर उसे वापस लिया जाएगा। —सदन में प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के माध्यम से कानून रद्द करने की अधिसूचना जारी होगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने किया स्वागत

संयुक्त किसान मोर्चा ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के प्रधानमंत्री के निर्णय का स्वागत किय है। मोर्चा घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा। यदि ऐसा होता है तो यह भारत में एक साल के किसान संघर्ष की ऐतिहासिक जीत होगी। बसपा सुप्रीमो मायावती एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार को यह निर्णय काफी पहले लेना चाहिए था ताकि देश अनेक प्रकार के झगड़ों से बच जाता ।
किसान और उसकी चुनौतियां

किसान और उसकी चुनौतियां

हाँ मैं किसान हूँ देश की सेवा में अपने बेटों को बॉर्डर पर भेजने वाला किसान, इंजीनियर और वैज्ञानिक देने वाला किसान और दूसरों की थाली सजा के अपनी रूखी और चटनी से खाने वाला किसान. किसी भी अफसर से मिलने जाने पर अपना तिरस्कार होते देखने वाला किसान क्यों की मेरे कपड़ों से आने वाली पसीने और मिटटी की बदबू किसी नेता या अफसर को अच्छी नहीं लगती. सत्ता में बैठी हुई सरकार को छोड़ कर बाकि सभी को मेरी फिकर होती है. क्यूंकि उनकी राजनीति मेरी फिकर करने से ही तो चलती है. 

काश मेरे भी कोई सपने पूरे होते, काश में भी महंगी गाड़ियों में चल पाता, काश में भी बिना टोल दिए निकल पाता लेकिन नहीं साहब में किसान हूँ कोई नेता या अभिनेता नहीं हूँ जो की मेरे दुःख और दर्द का कोई खबर लेने आये. आज में अपने ही देश में अपनों से ही लड़ रहा हूँ कभी कृषि कानून, कभी MSP और कभी डीजल और खाद पर आई बेहताशा महंगाई से. अपने बच्चों से रोजाना दूर रात को जंगल में खेत पर सोता हूँ ताकि अपने बच्चों को भी किताब,कपडे और खिलोने दिला सकूँ.रात भर जगता हूँ खेत को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने को और हाँ साहब अपनी जान की परवाह भी नहीं क्यूंकि मेरी जान की कोई कीमत नहीं है में तो बस हूँ तो हूँ नहीं हूँ तो नहीं हूँ. 

किसे फर्क पड़ता है. सरकार डीजल महंगा इसलिए कर देती है क्यों की उनके वश में नहीं है और हमारी फसल की कीमत इस लिए नहीं है क्यूंकि ये उनके वश में है.सबसे बड़ी बात मुझे लोन नहीं मिलता है ताकि में ट्रैक्टर खरीद सकूँ और मुझे सब्सिडी दी जाती है ट्रैक्टर के इम्प्लिमेंट्स पर, वो भी किसान नेता या किसी नेता के खास को मिल जाती है. हमें तो सरकार की योजनाओं का पता भी कहाँ चलता है साहब. में भी अब लड़ते लड़ते थक सा गया हूँ कभी मुझे खेतों की बुबाई के लिए DAP ओह सिर्फ DAP नहीं महंगा वाला DAP भी नसीब नहीं होता बाकि सब मेरे लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं. अगर सरकार MSP पर कानून ला भी दे तो क्या गारंटी है कि खरीदेगी ? 

ज्यादातर फसल के समय तो बारदाना ही नहीं आता. क्या क्या लिखूं साहब मेरे दर्द का कोई अंत नहीं है. मैं नहीं चाहता की मेरा बच्चा किसान बने वो कुछ भी करे लेकिन किसान न बने. क्या कोई डॉक्टर या नेता चाहेगा की उसका बेटा उसी के क्षेत्र में आगे ना बढे बस किसान चाहता की उसका बेटा उसकी तरह किसान ना बने ताकि उसी मानसिक प्रताड़ना से उसे गुजरना पड़े. चलते चलते मेरीखेती टीम से आग्रह करूँगा कि इसको अपनी मासिक पत्रिका में जगह दे और अपनी वेबसाइट का लिंक अपने whatsApp ग्रुप में सभी को भेजे जिससे कि और किसान भाई भी इसी तरह से अपना लेख दे सकें. धन्यवाद, राकेश शर्मा कलुआ नगला वेसवां

कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित

नई दिल्ली। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने एक साल तक दिल्ली सीमा पर आंदोलन करके सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। सरकार जिस जोश में ये कृषि कानून लायी थी, किसानों ने उसी जोश से उनका विरोध किया और एक साल तक लगातार प्रदर्शन करके यह दिखा दिया कि वे किसी भी तरह सरकर के सामने झुकने वाले नहीं हैं। इसके बाद सरकार ने एक माह में कानून वापस भी ले लिये हैं और किसानों से उनकी पांच प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा भी किया है। इसके बाद किसानों नेअपना आंदोलन स्थगित करके दिल्ली सीमा से अपना डेरा हटाते हुए घरों को लौट गये। घर वापसी पर किसानों का वीरों की भांति पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया। जाते जाते किसानों ने सरकार को यह चेतावनी भी दी है कि यदि जरूरत पड़ी ते वह फिर दिल्ली सीमा पर आकर आंदोलन कर सकते हैं।

कृषि कानून बनते ही शुरू हो गया था विरोध

किसानों का आंदोलन सितम्बर 2020 में उस समय शुरू हो गया था जब सरकार ने कृषि कानूनों को संसद से पारित करवा कर और राष्टÑपति से हस्ताक्षर कराकर लागू करने का ऐलान किया था। उसके बाद से लगातार दिल्ली के पंजाब-हरियाणा बार्डर के सिंघू बॉर्डर और शम्भू बॉर्डर पर किसानों डेरा डालकरअपना प्रदर्शन शुरू कर दिया था वहीं उत्तर प्रदेश की ओर से गाजीपुर बॉर्डर से भाकियू सहित अनेक किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया था।  26 जनवरी के दिल्ली के लालकिला पर जोरदार प्रदर्शन के बाद आंदोलन की धार  कुंद पड़ गयी थी और आंदोलन समाप्ति की ओर चल दिया था।

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राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन में जान फूंक दी

उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश से गाजियाबाद जिला प्रशासन ने जब गाजीपुर बॉर्डर से आंदोलनकारी किसानों को हटाने का प्रयास किया तो भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंसू बहाकर आंदोलन को नये सिरे से खड़ा कर दिया।  राकेश टिकैत को किसानों का भावनात्मक समर्थन मिलने के बाद सरकार का पक्ष कमजोर हो गया।

सरकार की सारी कोशिशें रहीं नाकाम

इस दरम्यन सरकार ने किसानों को कृषि कानूनों की अच्छाइयों का प्रचार करना जारी रखा और लोगों को खूब समझाने की कोशिश की। इस बीच आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट कर दिया कि वे कृषि कानूनों की वापसी से कम पर कोई बात नहीं मानेंगे। इस दौरान सरकार की ओर से किसानों को मनाने के लिए कई दौर की वार्ताएं हुर्इं लेकिन कोई बात नहीं बनी।

सरकार और किसानों के बीच शुरू हुई चुनावी जंग

इसके बाद  किसानों और सरकार के बीच चुनावी जंग शुरू हो गयी। कई राज्यों में भाजपा की चुनावी हार के बाद सरकार को समझ में आया कि किसानों से तकरार से कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि नुकसान बढ़ने वाला है।

सियासी नुकसान देख सरकार को झुकना पड़

जब उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होने लगी तो सरकार को अपनी ही पार्टी की संभावित हार नजर आने लगी तब सरकार ने मंथन करके गुरुनानक जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया। लेकिन किसान संगठनों ने उनकी इस बात पर विश्वास नहीं किया बल्कि कहा कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं ले लेती तब तक आंदोलन जारी रखा जायेगा।

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जितनी तेजी से कानून बने थे, उतनी तेजी से कानून वापस भी लिये गये

इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद जब ये कानून वापस हो गये तो किसान संगठनों के तेवर ढीले पड़ गये और उसके बाद भी वो आंदोलन वापस लेने को तैयार नही हुए और अपनी पांच प्रमुख मांगों पर सरकार से लिखित आश्वासन देने की मांग उठा दी।

सरकार को पांच मांगें भी माननी पड़ीं

सरकार की ओर से जब किसान संगठनों के संयुक्त किसानमोचा को लिखित रूप से किसानों की सभी पांचों प्रमुख मांगों को स्वीकार करने का लिखित आश्वासन दिया तब आंदोलनकारी किसानों ने शनिवार यानी 11 दिसम्बर से सिंघू बार्डर से अपने तम्बू हटाये और अपने घर की वापसी की।  उसके बाद गाजीपुर बॉर्डर से भी तम्बू हटे और अब वहां से आंदोलनकारी किसान अपने घरों को लौट गये हैं।

किसानों ने 15 जनवरी तक का दिया है अल्टीमेटम

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि आगामी 15 जनवरी को किसानों की बैठक होगी जिसमें  समीक्षा की जायेगी कि सरकर ने यदि लिखित आश्वासन के बाद वादा पूर नहीं किया तो फिर आंदोलन करेंगे।

किसानों का फूलों की वर्षा करके किया स्वागत

गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिमी उत्तरप्रदेश स्थित अपने घरों की वापसी के समय भाकियू नेता राकेश टिकैत सहित किसानों का फूलों की वर्षा करके स्वागत किय गया । पंजाब और हरियाणा के किसानों की घर वापसी के समय एक एनआरआई ने विमान को किराये पर लेकर उससे पुष्प वर्षा कर किसानों क स्वागत किया।

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वापसी से पहले किसानों ने अरदास की और मिठाई बांटी

आंदोलन को स्थगित करने के ऐलान के साथ ही किसानोंं ने शंभु बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से अपने तम्बू हटाये उससे पहले अरदास की उसके बाद अपना डेरा समेट कर घरवापसी की। आंदोलन में अपनी जीत मानने वाले किसानों ने घर वापसी के दौरान मिठाई बांट कर जीत का जश्न मनाया।

वे कौन सी मांगें मानने के बाद किसान घरों को लौटे

किसान नेताओं ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से कृषि सचिव संजय अग्रवाल के हस्ताक्षर वाली एक चिटठी मिली है। इस चिटठी में यह बताया गया है कि सरकार ने किसान संगठनों की पांंच प्रमुख मांगों पर अपनी सहमति जताई है। ये मांगे इस प्रकार हैं:-
  1. एमएसपी के बारे में केन्द्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस मुद्दे पर एक किसान कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसानमोर्चा के प्रतिनिधिलिये जायेंगे, जिन फसलों पर एमएसपी मिल रहा है वो जारी रहेगा।
  2. किसानों के मुकदमें होंगे वापस, इस मुद्दे पर यूपी, उत्तरखंड और हरियाणा की सरकार ने किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिये जाने पर सहमति जताई है। इसके अलावा दिल्ली, रेलवे और अन्य प्रदेश भी किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेंगे।
  3. यूपी और हरियाणा सरकार में भी इस बात पर सहमति बन गयी है कि जिस प्रकार पंजाब किसानों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देती है उसी प्रकार इन दोनों राज्यों की सरकार भी मुआवजा देंगी।
  4. किसानों के बिजली के बिल पर भी विचार किया जायेगा। किसानों को प्रभावित करने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा की जायेगी और उसके बाद किसान मोचा से वार्ता करके ही संसद में बिल पेश किया जायेगा।
  5. पराली को जलाने के मामले में केन्द्र सरकार ने जो कानून पारित किये हें, उसकी धारा 14 और 15 में आपराधिक जिम्मेदारी से किसानों को मुक्त किया जायेगा।

किसानों की जीत के मायने

किसानों ने अपनी मांगें मनवा कर कृषि कानून मुद्दे पर जीत दर्ज कर ली है। किसानों ने एक तरह से देश के समक्ष यह उदाहरण पेश किया है कि सरकार से बड़ी जनता की ताकत होती है। सरकार किसी तरह के कानून जनता पर थोप नहीं सकती बल्कि जनता चाहे तो सरकार को झुकने को मजबूर कर सकती है।