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किसान और उसकी चुनौतियां

Published on: 25-Nov-2021
किसान और उसकी चुनौतियां
सम्पादकीय सम्पादकीय

हाँ मैं किसान हूँ देश की सेवा में अपने बेटों को बॉर्डर पर भेजने वाला किसान, इंजीनियर और वैज्ञानिक देने वाला किसान और दूसरों की थाली सजा के अपनी रूखी और चटनी से खाने वाला किसान. किसी भी अफसर से मिलने जाने पर अपना तिरस्कार होते देखने वाला किसान क्यों की मेरे कपड़ों से आने वाली पसीने और मिटटी की बदबू किसी नेता या अफसर को अच्छी नहीं लगती. सत्ता में बैठी हुई सरकार को छोड़ कर बाकि सभी को मेरी फिकर होती है. क्यूंकि उनकी राजनीति मेरी फिकर करने से ही तो चलती है. 

काश मेरे भी कोई सपने पूरे होते, काश में भी महंगी गाड़ियों में चल पाता, काश में भी बिना टोल दिए निकल पाता लेकिन नहीं साहब में किसान हूँ कोई नेता या अभिनेता नहीं हूँ जो की मेरे दुःख और दर्द का कोई खबर लेने आये. आज में अपने ही देश में अपनों से ही लड़ रहा हूँ कभी कृषि कानून, कभी MSP और कभी डीजल और खाद पर आई बेहताशा महंगाई से. अपने बच्चों से रोजाना दूर रात को जंगल में खेत पर सोता हूँ ताकि अपने बच्चों को भी किताब,कपडे और खिलोने दिला सकूँ.रात भर जगता हूँ खेत को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने को और हाँ साहब अपनी जान की परवाह भी नहीं क्यूंकि मेरी जान की कोई कीमत नहीं है में तो बस हूँ तो हूँ नहीं हूँ तो नहीं हूँ. 

किसे फर्क पड़ता है. सरकार डीजल महंगा इसलिए कर देती है क्यों की उनके वश में नहीं है और हमारी फसल की कीमत इस लिए नहीं है क्यूंकि ये उनके वश में है.सबसे बड़ी बात मुझे लोन नहीं मिलता है ताकि में ट्रैक्टर खरीद सकूँ और मुझे सब्सिडी दी जाती है ट्रैक्टर के इम्प्लिमेंट्स पर, वो भी किसान नेता या किसी नेता के खास को मिल जाती है. हमें तो सरकार की योजनाओं का पता भी कहाँ चलता है साहब. में भी अब लड़ते लड़ते थक सा गया हूँ कभी मुझे खेतों की बुबाई के लिए DAP ओह सिर्फ DAP नहीं महंगा वाला DAP भी नसीब नहीं होता बाकि सब मेरे लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं. अगर सरकार MSP पर कानून ला भी दे तो क्या गारंटी है कि खरीदेगी ? 

ज्यादातर फसल के समय तो बारदाना ही नहीं आता. क्या क्या लिखूं साहब मेरे दर्द का कोई अंत नहीं है. मैं नहीं चाहता की मेरा बच्चा किसान बने वो कुछ भी करे लेकिन किसान न बने. क्या कोई डॉक्टर या नेता चाहेगा की उसका बेटा उसी के क्षेत्र में आगे ना बढे बस किसान चाहता की उसका बेटा उसकी तरह किसान ना बने ताकि उसी मानसिक प्रताड़ना से उसे गुजरना पड़े. चलते चलते मेरीखेती टीम से आग्रह करूँगा कि इसको अपनी मासिक पत्रिका में जगह दे और अपनी वेबसाइट का लिंक अपने whatsApp ग्रुप में सभी को भेजे जिससे कि और किसान भाई भी इसी तरह से अपना लेख दे सकें. धन्यवाद, राकेश शर्मा कलुआ नगला वेसवां

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