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कर्ज लेकर घाटे की खेती: किसानों के लिए विनाशकारी चक्र

Published on: 08-Apr-2025
Updated on: 08-Apr-2025
Happy Indian farmer receiving cash payment in a green agricultural field
सम्पादकीय सम्पादकीय

भारत में कृषि का संकट गहराता जा रहा है। रबी और चालू ज़ायद सीजन में गाजर, टमाटर, फूलगोभी, पत्ता गोभी और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। 

किसान मेहनत और पूंजी लगाकर फसल उगाते हैं, लेकिन जब बाजार में उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता, तो उनकी पूरी मेहनत बेकार चली जाती है। यह स्थिति केवल मौसमी नहीं है, बल्कि कृषि तंत्र में गहरे बैठे आर्थिक असंतुलन को दर्शाती है।

क्यों हो रही है सब्जी उत्पादन में हानि?

  1. अत्यधिक उत्पादन और गिरती कीमतें – जब किसान किसी एक फसल की खेती बड़े पैमाने पर करने लगते हैं, तो बाजार में उसकी आपूर्ति बढ़ जाती है। इससे कीमतें गिर जाती हैं और किसानों को लागत भी नहीं मिल पाती।
  2. बिचौलियों का शोषण – किसान अपनी उपज सीधे उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचा पाते। बिचौलिए और थोक व्यापारी सस्ते में फसल खरीदकर मुनाफा कमाते हैं, जबकि किसान को उसकी लागत भी नहीं मिलती।
  3. बढ़ती कृषि लागत – बीज, खाद, कीटनाशक, श्रम और सिंचाई लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन किसानों को मिलने वाला मूल्य स्थिर या घटता जा रहा है।
  4. जलवायु परिवर्तन और अनिश्चित मौसम – समय पर बारिश न होना, अत्यधिक गर्मी या ओलावृष्टि जैसी समस्याएँ फसलों को नुकसान पहुँचा रही हैं।
  5. भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी – किसान यदि अपनी उपज का भंडारण कर पाते तो वे कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर नहीं होते। लेकिन कोल्ड स्टोरेज और भंडारण सुविधाओं की कमी उन्हें नुकसान में धकेल देती है।

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बिक रही हैं किसानों की जमीनें

जब किसान लगातार घाटा सहते हैं, तो उन्हें कर्ज लेना पड़ता है। ब्याज दरें अधिक होती हैं, और जब समय पर फसल का अच्छा मूल्य नहीं मिलता, तो कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है। 

इस स्थिति में, किसान मजबूरन अपनी जमीन बेचने लगते हैं। नतीजा यह होता है कि कृषि भूमि धीरे-धीरे किसानों से निकलकर अमीर और शौकिया ज़मीन मालिकों के पास जा रही है। 

ये नए भू-स्वामी खेती को केवल निवेश के रूप में देखते हैं और अक्सर कृषि की जगह रियल एस्टेट, फार्महाउस, या औद्योगिक विकास में अपनी भूमि का उपयोग करने लगते हैं।

क्या यह एक चेतावनी है?

अगर यह स्थिति जारी रही, तो कुछ वर्षों में देश में वास्तविक किसान कम हो जाएँगे और खेती एक व्यापारिक गतिविधि बनकर रह जाएगी। 

जो लोग परंपरागत रूप से खेती करते आए हैं, वे अपनी पुश्तैनी जमीनें खो देंगे, और कृषि एक महँगा पेशा बन जाएगी, जिसमें केवल पूँजीपति ही टिक पाएँगे। यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर चुनौती है।

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समाधान क्या हो सकता है?

  1. मूल्य समर्थन और सरकारी खरीद नीति में सुधार – सरकार को उन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करना चाहिए, जिनमें किसानों को घाटा हो रहा है।
  2. प्रत्यक्ष विपणन प्रणाली – किसानों को अपनी उपज सीधे ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए अधिक सुविधाएँ मिलनी चाहिए, जिससे वे बिचौलियों से बच सकें।
  3. भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों का विकास – सरकार को गाँवों में छोटे-छोटे कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स बनवानी चाहिए, जिससे किसानों को मजबूरी में सस्ती दरों पर अपनी उपज न बेचनी पड़े।
  4. फसल विविधीकरण – किसानों को केवल एक ही फसल पर निर्भर रहने के बजाय विविध फसलें उगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे जोखिम कम हो।
  5. सामूहिक खेती और सहकारी मॉडल – किसान मिलकर समूह में खेती करें और संसाधनों को साझा करें, जिससे लागत कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा।

निष्कर्ष

यदि वर्तमान स्थिति नहीं बदली, तो आने वाले वर्षों में गरीब और मध्यम वर्गीय किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएँगे और भारत की कृषि भूमि अमीरों के हाथों में केंद्रित हो जाएगी। 

खेती को लाभदायक बनाना ही किसानों की जमीन बचाने का एकमात्र तरीका है। सरकार, समाज और किसानों को मिलकर ऐसी रणनीतियाँ अपनानी होंगी, जो उन्हें खेती में बनाए रखें और उन्हें कर्ज में डूबने से बचाएँ। अन्यथा, आने वाली पीढ़ियों के लिए किसान केवल एक ऐतिहासिक कथा बनकर रह जाएँगे।