आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जिन रोगों को लाइलाज माना जाता है, उनमें से कई रोग सामान्य सी जड़ी बूटियों से ठीक हो जाते हैं। गांव के बड़े बुजुर्ग आज भी बताते हैं कि अनेक तरह की छोटी मोटी सर्जरी गांव के पुराने हज्जाम ही किया करते थे।
भारतीय चिकित्सा पद्धति विश्व के अन्य देशों की सभ्यता के अपूर्ण विकसित होने के समय से ही चमत्कारिक औषधियां के प्रयोग से भरपूर रही है। इसी तरह की 9 वनस्पतियों के मिश्रण से तैयार योग यानी काढ़ा कोविड-19 से लड़ने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है।
इस क्लॉथ का उपयोग करने वाले लोगों की मानें तो उन्हें वजन कम करने के अलावा और कई तरह के लाभ हो रहे है ंं। स्वामी रामदेव द्वारा तैयार कोरोनिल पर लोग सवाल उठा रहे हैं, वहीं भारतीय चिकित्सा पद्धति की समृद्धि संस्कृति यह बताती है कि आयुर्वेद हर लाइलाज समस्या का नाश कर सकता है।
जरूरत इस बात की है कि नवीन लाइलाज रोगों पर इनके गुण धर्मों के अनुसार इनका उपयोग और अनुसंधान किया जाए। किस धातु को हानि रहित करने के लिए दर्जनों वनस्पतियों का काढ़ा किस आधार पर चुना जाए।उसी प्रकार किसी धातु का भस्म किस प्रकार प्राप्त किया जाए यह जानना भी सरल नहीं है।
यह जानना भी दुर्गम है कि कौन से पौधे का कौन सा भाग शरीर के किस अंग पर क्या प्रभाव डालेगा। हर्बल औषधियों की यह खूबी होती है कि वह अपना हानिकारक दुष्प्रभाव नहीं छोड़तीं।
बात कोविड-19 से लड़ने यानी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयोग में आने वाले काढ़े को नौ तत्वों से बनाया गया है। इसे पतंजलि के अलावा अनेक फार्मेशियां बना रहे हैं।
लाखों-करोड़ों लोग इसका दैनिक रूप से उपयोग भी कर रहे हैं। इन लोगों को घर की रसोई में मौजूद रहने वाली चीजों से बनने वाले काढ़े के आश्चर्यजनक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं।
काढ़े में मौजूद 9 तत्व
कोविड-19 जैसी समस्या के दौर में रोगों से लड़ने की क्षमता बनाए रखना बेहद जरूरी है। उसके लिए आयुर्वेद में अनेक तरह की जड़ी बूटियां मौजूद हैं।
बाजार में मौजूद अनेक काढ़ों मैं 9 तत्वों का मिश्रण किया गया है। इनमें तुलसी, त्वक यानी दालचीनी, शुंठी सौंठ, मारिच काली मिर्च, मुलेठी, अश्वगंधा, गिलोय, तालीसपत्र, पिप्पली शामिल हैं। इनकी सुरक्षा की पहचान प्रभाव और गुण धर्म के विषय में जानते हैं।
बरबरी तुलसी तीन प्रकार की होती है। यह तीक्ष्ण, गर्म, कड़वी, रुचिकर, अग्नि वर्धक, क्रमि एवं ज्वर नाशक होती है। यह है एवं खून से जुड़े रोगों में उपयोगी है। पित्त, कफ, वात रोग, धवल रोग , खुजली जलन, वमन,कुष्ठ और विष के विकारों को यह नष्ट करती है, इसके बीज तृषा, दाह और सूजन को दूर करते हैं।
इसकी जड़ें बच्चों की आंतों की खराबी को दूर करती हैं। श्री रस को शहद के साथ मिलाने से खांसी ठीक होती है। इसके पत्तों का रस दाद पर लगाने से बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लगाने से लाभ होता है। इसके पत्तों और शाखाओं का काढ़ा जरवल स्नायुशूल और जुकाम में लाभदायक माना जाता है।
इस की पौध जून माह में तैयार करके खेती की जाती है। कोविड-19 के प्रभाव के चलते और गाड़ी में उपयोग के कारण वर्तमान में तुलसी के पत्ते भी ₹200 किलो तक बिक रहे हैं। इसकी खेती में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता। इसके पत्ते लकड़ी और बीच सभी औषधि कंठी माला आदि मैं प्रयुक्त होते हैं।
यह चरपरी , कफ,वात तथा मलबन्ध को तोड़ने वाली, वीर्य वर्धक स्वर्ग को उत्तम करने वाली है।वमन,श्वास,शूल, हृदय रोग, उदय तथा वात रोग नाशक है। सौंठ अदरक को सुखाकर बनाई जाती है।
यह रेतीली भूमि में उगाई जाती है। अदरक का रस शहद और नमक थोड़ा गुनगुना करके कान में डालने से दर्द बंद हो जाता है। सोंठ और गेरू को पानी में मिलाकर पीसकर आंखों पर इसका लेप लगाने से नेत्र रोग दूर होते हैं।
सौंठ का प्रयोग दाढ़ का दर्द, बवासीर की दवा, जुकाम की दवा, क्षय रोग की दवा, कफ जम जाने पर, दमा की दवा एवं गर्भ स्त्राव रोकने की दवा बनाने में होता है।
अदरक की खेती देश के अनेक राज्यों में बहुतायत में होती है। अदरक की बिजाई दक्षिण भारत में अप्रैल से मई के महीने के बीच की जाती है वही मध्य एवं उत्तर भारत में 15 से 30 मई तक किस की बुवाई का उचित समय माना जाता है
यह वनस्पति हिमालय, सीलोन और मलाया प्रायद्वीप में पैदा होती है। दालचीनी के नाम से बाजार में चार विभिन्न प्रकार के वृक्षों की छाल बिकती है। यह कामोद्दीपक, क्रमिनाशक,पौष्टिक और वात ,पित्त, प्यास, गले का सूखना, वायु नलियों का प्रदाह, खुजली, हृदय तथा गुदा से जुड़ी बीमारियों में लाभदायक है।
इसका तेल रक्त स्राव रोधक, पेट के अफरा को दूर करने वाला और अरुचि, बमन और दस्तों को रोकने मैं कारगर है।
लता जाति की इस वनस्पति की खेती त्रावणकोर और मलावर की उपजाऊ भूमि में बहुतायत में होती है।यहां के लोग इस लता के छोटे-छोटे टुकड़े करके पेड़ों की जड़ के पास रोप देते हैं ।
यह लताएं पौधों पर चढ़ जाती हैं और 3 साल बाद फल लगने लगते हैं। काली मिर्च अग्नि को दीपन करने वाली, कफ वात नाशक, गर्म पिक जनक, रुखी तथा दमा, फूल और कर्मियों का नाश करने वाली होती है।
इसका क्वार्ट्ज सांप बिच्छू एवं अफीम के जहर पर भी प्रभाव कारी है।काली मिर्च को घी में मिलाकर खाने से अनेक तरह के नेत्र रोग दूर होते हैं।
एक काली मिर्च को सुई की नोक में चोकर मोमबत्ती की लौ में गर्म करें और उसके धुए को नाक के रास्ते मस्तिष्क की ओर खींचने से छींक और मस्तिष्क का दर्द बंद होता है।
काली मिर्च को दही के साथ घिसकर आंखों में आंजने से रतौंधी रात में न दिखने की समस्या दूर होती है। इसके अलावा भी काली मिर्च का अनेक चीजों के साथ अनेक प्रयोग और रोगों के निदान में किया जाता है।
यह शीतल ,स्वादिष्ट नेत्रों के लिए हितकारी है । बाल तथा वर्ण को उत्तम करने वाली केश तथा स्वर के लिए भी हितकर है। रक्त विकार वमन तथा क्षय नाशक है।
मुलेठी का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से शुक्र वृद्धि एवं वाजीकरण होता है। गला खराब होने पर पान के साथ मुलेठी का सेवन श्रेयस्कर रहता है।
इसकी लकड़ी लगातार चूसने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। यह अच्छा माउथ फ्रेशनर ही नहीं संगीतज्ञ हूं के गले की मिठास को बनाए रखने में भी काम आती है।
यह भारतवर्ष में सर्वोपरि पाया जाता है। इसकी जड़ का विभिन्न औषधियों में तरह-तरह से प्रयोग होता है। यह वनस्पति वात, कफ, सूजन , श्वेत कुष्ठ, बल कारक एवं वीर्य वर्धक होती है।
सफेद मूसली, विधारा आदि धातु वर्धक औषधियों के साथ अश्वगंधा का सेवन दूध के साथ करने से बाल बढ़ता है। इसके चूर्ण का सेवन 3 से 6 मासे तक रजोधर्म के प्रारंभ में देने से महिलाओं को गर्भधारण में आसानी रहती है।
यह पौधों पर पनपने वाली लता है। पौधौं पर विकसित होने के बाद जमीन से उसका संपर्क कट जाए तब भी वह पनपती रहती है। नीम के पौधे पर चढ़ी गिलोय को ज्यादा लाभकारी माना जाता है।
इसी तरह आंवला पर चढ़ी गिलोय का असम अलग होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह है मलरोधक,फलकारक, अग्नि दीपक, हृदय को हितकारी, आयु वर्धक, प्रमेह,जरवल,दाह, रक्तशोधक, वमन,वात, कामला,पाण्डुरोग,आंव,कोढ़,कफ,पित्त आदि में लाभकारी है।
जो गिलोय नमी वाले पौधों पर चढ़ती है वह पुराने बुखार में बेहद लाभकारी है। हर किस्म के ताप को नष्ट करती है। दिल जिगर और मेदें की जलन को मिटाती है।
यह भूख बढ़ाती है और काम इंद्रियों को ताकत देती है। मिश्री के साथ लेने से पित्त को जलाती है। इसका काढ़ा सैकड़ों रोगों का नाश करता है। कोरोना के चलते बाजार में बढ़ी मांग में इसकी कीमतों को भी आसमान में पहुंचा दिया है।
के पौधे की जड़ का काढ़ा पागल कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्तियों को दिया जाता है। इसके पत्ते मिर्गी रोग में भी काम आते हैं। खांसी, दमा श्वसन रोग में भी इसके पत्तों का उपयोग होता है।
इस काढ़े का प्रयोग कोविड-19 के कोहराम के बीच हजारों लोगों ने किया है। इनमें से कुछ के अनुभव हम आपके साथ साझा कर रहे हैं। वेटरनरी विश्वविद्यालय मथुरा के डेयरी विभाग के डॉ प्रवीण कुमार खुद इस काढ़े का सेवन कर रहे हैं।
कानपुर में रहने वाले अपने माता-पिता के लिए भी उन्होंने एक दर्जन पैकेट भिजवाए हैं। उन्हें इस काढ़े से कई तरह की समस्याओं से मुक्ति 20 दिन में ही मिलने लगी है।
कई अन्य लोगों ने इस काढ़े के लगातार प्रयोग से 20 दिन में 2 किलो वजन कम होने की पुष्टि की है। कई लोगों ने यहां तक दावा किया कि जब से उन्होंने काढ़े का प्रयोग शुरू किया है वह कई तरह की गोलियां लेना छोड़ चुके हैं।
मथुरा के पार्षद राजेश सिंह पिंटू गुणकारी काढ़े का अपने समूचे परिवार में तो प्रयोग कर रहे हैं कई दर्जन लोगों को उन्होंने काढ़े गिफ्ट किए हैं।
समाज में काढ़े का प्रचलन बढ़ाने के लिए अनेक लोगों ने सैकड़ों सैकड़ों की तादात में काढ़े के पैकेट का वितरण किया है। उत्तर प्रदेश के मथुरा में यह काढ़ा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मस्थली स्थित परिसर में बनाया जा रहा है। कामधेनु गौशाला फार्मेसी के 200 ग्राम के पैकेट का मूल्य ₹40 रखा है।
सैकड़ों तरह के व्यंजन, हजारों तरह के मसाले, मेवा और कोस्टल क्राप भारत की समृद्ध जैव विविधता की निशानी हैं। विदेशी आक्रांता भी यहां के व्यंजनों का आनंद लेने और अनेक तरह की फसलों को लूटने आते रहे। उनके आक्रमण भी उसी समय होते जबकि फसलों की कटाई हो चुकी होती और किसान के अन्न भंडार भरे होेते। कोरोना टाइम में कृषि निर्यात की रफ्तार ने खेती की उपयोगिता को एकबार फिर सिद्ध कर दिया है। कृषि निर्यात में भारत उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है।
कोविड टाइम में भी कृषि क्षेत्र ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बागडोर संभाले रखी। विश्व ट्रेड आर्गनाइजेशन की वैश्विक कृषि रुझान रिपोर्ट 2021 के मुताबिक दुनियां में भारत नौवें स्थान पर खड़ा है। देश के कुल निर्यात में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी अकेल कृषि की है। खेती ने कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी देश को जो संबल प्रदान किया वह हर तरह से संतोशजनक है। हमारी समृद्ध कृषि परंपरा ने कोरोना जैसी महामारी के काल में भी समूचे विश्व को अनेक तरह के अनाज, चावल, बाजरा, मक्का, फल एवं सब्जियों की आपूर्ति की।
यूरोपीय महाद्वीप में मौसम की प्रतिकूलता कई तरह की चीजों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर करती है। इस निर्भरता को हमारे किसानों की फसलों ने पूरा किया। अमेरिका, चीन, नेपाल, मलेशिया, ईरान जैसे अनेक देशों की खाद्य जरूरतों को हमारे किसानों की फसलों ने पूरा किया। भारत का चावल कभी 1121 तो कभी 1509 गल्फ देशों के अलावा कई देशों में पसंद किया जाता है। यहां के मसालों की सुगंध भी समूचे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुकी है।
वित्तीय वर्ष 2020—21 में करीब साढे 29 हजार करोड़ रुपए की विदेशी मु्द्रा अकेल मसालों से प्राप्त हो चुकी है। सरकार भी विदेशी मांग के अनुुरूप फसलों के उत्पादन की दिशा में किसानों को ट्रेन्ड करने को अनेक प्रोग्राम चला चुकी हैं।
ये भी पढ़े: कोरोना काल और एस्कॉर्ट ट्रेक्टर की बिक्री में उछाल
इसका प्रयोजन यह है कि किसान सुरक्षित कीटनाशी का उपयोग करें ताकि विदेशों को निर्यात आसान हो सके। जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, एफपीओ आदि के माध्यम से सांगठनिक खेती का विचार खेती को नई दिशामें ले जाने का काम कर रहा है। निर्यात की दिशा में इजाफे का ग्राफ काफी बढ़ा है। साल 2020—21 में कृषि उत्पाद करीब सवा 41 अरब डालर के निर्यात हुुए। यानी हमारे उत्पादों का बाजार बढ़ रहा है।
अब हमारे किसानों, कृषि इनपुट विक्रेताओं की जिम्मेदारी भी बनती है कि वह किसानों को सेफ दवाएं दें। फसलों में जिनका प्रभाव तो हो लेकिन दानों तक उनका अंश न रहे। कीटनाशी कंपनियां व वैज्ञानिक इस तरह की तकनीकों को आसान बनाएं ताकि किसानों को फसलों से कीट एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए दूरगामी प्रभाव वाले जहरों के छिड़काव से बचना पड़े। हेल्दी फूड हेल्दी सोसायटी के विचार को आगे बढ़ाते हुए विश्व की जरूरतों को पूरा करने की संकल्पना को किसान, वैज्ञानिक, कंपनियां और सरकार सभी को मिलकर पूरा करना होगा।
कोविड 19 के प्रभाव के चलते भारत में बेरोजगारी का संकट पैदा होने वाला है। अभी तक बेकार घूम रहे लोगों जितनी संख्या और बढ़ने की संभावना है। संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘आईएलओ निगरानी- दूसरा संस्करण : कोविड-19 और वैश्विक कामकाज’ में कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है। आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने मंगलवार को कहा, ‘‘विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं में श्रमिकों और व्यवसायों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है।
हमें तेजी से, निर्णायक रूप से और एक साथ कदम उठाने होंगे।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में दो अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से ज्यादातर उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हैं और ये विशेष रूप से संकट में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 संकट से पहले ही अनौपचारिक क्षेत्र के लाखों श्रमिकों प्रभावित हो चुके हैं। आईएलओ ने कहा, ‘‘भारत, नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन और अन्य नियंत्रण उपायों से बड़ी संख्या में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिक प्रभावित हुए हैं।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है।’’ इसके मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है। राइडर ने कहा, ‘‘यह पिछले 75 वर्षों के दौरान अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है। यदि कोई एक देश विफल होगा, तो हम सभी विफल हो जाएंगे।
हमें ऐसे समाधान खोजने होंगे जो हमारे वैश्विक समाज के सभी वर्गों की मदद करें, विशेष रूप से उनकी, जो सबसे कमजोर हैं या अपनी मदद करने में सबसे कम सक्षम हैं।’’ रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार में सबसे अधिक कटौती अरब देशों में होगी, जिसके बाद यूरोप और एशिया-प्रशांत का स्थान होगा। भाषा सभार
खाद्य सुरक्षा, संरक्षा और पोषण पर महामारी के प्रभाव को लेकर की चर्चा खाद्य अपव्यय व नुकसान से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संकल्प प्रधानमंत्री श्री मोदी इस कोविड-19 के संकट से निपटने के लिए सहयोगी देशों में सबसे आगे वैश्विक महामारी के खिलाफ एकजुटता से लड़े सभी देश- कृषि मंत्री श्री तोमर नई दिल्ली, 21 अप्रैल 2020 को कोविड-19 से निपटने के लिए G-20 देशों के कृषि मंत्रियों की मंगलवार को असाधारण बैठक हुई। इसमें खाद्य सुरक्षा, संरक्षा और पोषण पर इस महामारी के प्रभाव को लेकर चर्चा की गई।
इस दौरान खाद्य अपव्यय एवं नुकसान से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संकल्प लिया गया। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित इस बैठक में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विभिन्न देशों में इस संकट से निपटने के लिए सहयोगी देशों में सबसे आगे हैं और हमारे नागरिकों की जरूरतों के अनुरूप कृषि मंत्रालय भी इसमें पीछे नहीं है। श्री तोमर ने इस वैश्विक महामारी के खिलाफ सभी देशों से एकजुटता के साथ लड़ने का आव्हान किया।
ये भी पढ़े: कोरोना की तीसरी लहर से पूर्व बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की दरकार
सऊदी अरब के पर्यावरण, जल एवं कृषि मंत्री श्री अब्दुल रहमान अलफाजली की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में मुख्य रूप से COVID-19 के मुद्दे पर चर्चा की गई। इसमें सभी G-20 सदस्यों, कुछ अतिथि देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ भारत की ओर से केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विचार-विमर्श में भाग लिया। श्री तोमर ने सऊदी अरब द्वारा जी-20 देशों को, किसानों की आजीविका सहित खाद्य आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने के तरीकों पर विचार करने के लिए एक साथ लाने की पहल का स्वागत किया। उन्होंने सामाजिक सुधार, स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, लॉकडाउन अवधि के दौरान सभी कृषि कार्यों को छूट देने और आवश्यक कृषि उपज और खाद्य आपूर्ति की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के निर्णयों को साझा किया।
श्री तोमर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विभिन्न देशों में इस संकट से निपटने के लिए सहयोगी देशों में सबसे आगे हैं और हमारे नागरिकों की जरूरतों के अनुरूप कृषि मंत्रालय भी कतई पीछे नहीं है। बैठक में जी-20 कृषि मंत्रियों की एक घोषणा भी स्वीकार की गई। G-20 राष्ट्रों ने खाद्य अपव्यय और नुकसान से बचने के लिए, COVID-19 महामारी की पृष्ठभूमि में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करने का संकल्प लिया और कहा कि सीमाओं के पार भी खाद्य आपूर्ति की निरंतरता बनाए रखी जाना चाहिए। उन्होंने खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए एक साथ काम करने, सीखे गए सर्वोत्तम अभ्यासों और अनुभवों को साझा करने, अनुसंधान, निवेशों, नवाचारों और सुधारों को बढ़ावा देने का भी संकल्प किया जो कृषि और खाद्य प्रणालियों की स्थिरता और लचीलापन में सुधार करेंगे।
जी-20 देशों ने महामारी पर नियंत्रण के लिए सख्त सुरक्षा और स्वच्छता उपायों पर विज्ञान आधारित अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश विकसित करने पर भी सहमति व्यक्त की। श्री तोमर ने कोरोना वायरस की महामारी के खिलाफ, संयुक्त लड़ाई में भारत के लोगों की ओर से एकजुटता का आव्हान करते हुए सभी प्रतिभागियों का अभिनंदन किया। साथ ही इस विशेष समस्या का समाधान करने के लिए जी-20 के कृषि मंत्रियों की यह असाधारण बैठक बुलाने के लिए सऊदी अरब के प्रति विशेष आभार जताया। श्री तोमर ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी निजी तौर पर विश्व के राष्ट्र प्रमुखों के साथ निरंतर संपर्क बनाए हुए हैं तथा इस बैठक से हमें एक ऐसा सुअवसर प्राप्त होगा जिसके माध्यम से हम समस्त मानव जाति के लिए खाद्यान्न और किसान उत्पादकों के लिए आजीविका सुनिश्चित करके जी-20 के इस संकल्प में योगदान देंगे। सभी जानते हैं कि लॉजिस्टिक्स और उत्पादन चक्र में अवरोध के कारण उत्पन्न चुनौतियों से खाद्य सुरक्षा पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं।
ऐसे में भारत की सशक्त परिसंघीय व्यवस्था और विविधता में एकता अपेक्षा के अनुसार मजबूत होकर सामने आई है। इस संबंध में सभी राज्य अपेक्षित व्यवस्थाओं को निर्धारित करने, केन्द्र सरकार के अनुदेशों और फैसलों पर अमल करने के लिए एकजुट हैं। हमारे लिए कृषि प्राथमिकता का क्षेत्र है तथा आवश्यक कृषि कार्यों की इस आशय के साथ अनुमति दी गई है ताकि सामाजिक दूरी, सफाई और स्वच्छता संबंधी आवश्यक नवाचारों की पाबंदी का पालन करते हुए कृषि संबंधी प्रचालनों को जारी रखा जा सकें। जब यह महामारी शुरू हुई थी, तब हमारी प्राथमिक चिंता यह थी कि तैयार फसल की कटाई कैसे होगी। हमारे किसान खेतों में कोरोना से लड़ने वाले सच्चे योद्धा हैं, जिसके फलस्वरूप 31 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बोये गए 67 प्रतिशत से भी अधिक गेहूं को काट लिया गया है। तिलहन और दलहन की कटाई पूरी हो चुकी है।
ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई पिछले वर्ष समवर्ती अवधि की तुलना में 36 प्रतिशत अधिक है। आगामी वर्षा के दौरान बुआई संबंधी आदान राज्यों में पहुंचाए जा रहे हैं, इसलिए हमें एक बार फिर अच्छी फसल होने का विश्वास है। देश में आयात को सहज और सरल बनाने के लिए एक लचीली कार्यपद्धति अपनाई गई है- पादप स्वच्छता प्रमाण-पत्रों की डिजिटल प्रतियां स्वीकार की जा रही हैं। हम चावल, गेहूं, फलों और सब्जियों के प्रमुख निर्यातक होने संबंधी अपनी स्थिति को समझते हैं और यह भी जानते हैं कि कई अन्य देश इन उत्पादों की आपूर्ति बनाए रखने के लिए भारत पर भरोसा करते हैं। उनका यह भरोसा कायम रहेगा।
गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय मंत्री, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख कर राज्य में जल जीवन मिशन की धीमी गति की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया है।इसके लिए 2522 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं वही 1000 करो पूर्व का सरकार के पास है।
राज्य में पीने का साफ पानी मुहैया कराना आज भी एक चुनौती बना हुआ है। जंहा एक ओर राज्य में सूखा ग्रस्त क्षेत्र है, तो दूसरी ओर रेगिस्थान है, एवं ग्रामीण इलाकों में भू-जल में रासायनिक प्रदूषण की समस्या भी एक चुनौती है।
श्री शेखावत ने राजस्थान में जल जीवन मिशन के कार्य को तेज़ी देने के लिए अपनी प्रतिबधता जताते हुवे मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत का ध्यान इस ओर दिलाया है कि वर्ष 2019-20 के दौरान राज्य ने 18 लाख नल कनेक्शन की तुलना में सिर्फ़ 1 लाख नल कनेक्शन दे दिए हैं। अब वर्ष 2020-21 के लिए 35 लाख परिवारों को नल कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है। यहाँ ये उल्लेखनीय है कि राज्य मैं सूखा जैसी स्थिति, पानी की कमी और भू-जल में रासायनिक प्रदूषण की स्थित के ध्यान मैं रख कर केंद्रीय सरकार द्वारा जल जीवन मिशन के तहत वार्षिक आवंटन में वरीयता दी जाती है। इसलिए ही राजस्थान को जल जीवन के अंतर्गत अपेक्षाकृत अधिक राशि प्राप्त हो रही है।
श्री शेखावत ने कहा कि पिछले वित्तीय वर्ष में जहां राजस्थान को 1,051 करोड़ रुपये दिए गये थे, वहीं इस साल जल जीवन मिशन के अन्तर्गत 2,522 करोड़ रुपये आबंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष के आबंटन का लगभग ढाई गुना है। इसके अतिरिक्त, फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए 1,145 करोड़ रुपए दिए गये हैं। वर्तमान स्थिति मैं राज्य के पास केंद्रीय हिस्से के रूप में इस साल की केंद्रीय निधि को मिलाकर साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक की राशि उपलब्ध होगी।
श्री शेखावत ने अपने लिखे पत्र में अवगत कराया कि राजस्थान के लिए अब निधि के कमी नही होगी कुल मिलकर राज्य सरकार के पास इस साल परिवारों को घरेलू नाल कनेक्शन देने के लिए सात हजार करोड़ से भी ज्यादा की धनराशि उपलब्ध है।
इसके अलावा 15वें वित्त आयोग अनुदान के तौर पर राजस्थान के पंचायती राज संस्थानों को 3,862 करोड़ रुपये आवंटित किए गये हैं जिसमें 50 प्रतिशत राशि, 1,931 करोड़ रुपये जल आपूर्ति और स्वच्छता पर खर्च की जानी है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत गंदले जल के शोधन और इसका पुनर्उपयोग करने हेतु भी अलग से धनराशि प्रदान की जा रही है। राजस्थान सरकार चाहे तो इस उपलब्ध धन से ग्रामीण क्षेत्रों में गावँ की गलियों में बहने वाले गंदले जल की समस्या में काफ़ी हद तक सुधार ला सकती है। साथ ही राजस्थान मिनिरल बहुल राज्य है और राज्य के हर जिले के पास डिस्ट्रिक्ट मिनिरल डिवेलप्मेंट फ़ंड उपलब्ध है जिसकी सहायता से पानी की योजना के श्रोत के ऐक्वफ़र को रीचार्ज किया जा सकता है एवं उपलब्ध मनरेगा धन की सहायता से भी ग्राम मैं तालाबों व कुवों की सफ़ाई व गहरा करने का कार्य किया जा सकता है।
श्री शेखावत ने अपने पत्र में ध्यान दिलाया है कि राज्य में जिन परिवारों को नल कनेक्शन नहीं मिल सके हैं, उनमें से अधिकांश परिवार समाज के गरीब वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हैं। यदि पाइप जल प्रणाली वाले इन गांवों में शेष बचे परिवारों को मौजूदा स्कीमों की रिट्रोफिटिंग/ स्तरोन्नयन का काम लेकर नल कनेक्शन दिए जाएं तो अगले 4 से 6 मास में ही, 50 लाख घरों को नल कनेक्शन उपलब्ध कराए जा सकते हैं और ये गांव ‘‘हर घर जल गांव’’ बन सकते है। साथ ही फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में दिसंबर, 2020 तक पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने की बात की है।
राज्य सरकार पिछले साल के उपलब्ध धन को तेज़ी से ख़र्च के ज़िससे केंद सरकार घरों को नल से पानी देने के लिए अगली किस्त तत्काल दे सके।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए, सभी घरों में जल आपूर्ति का काम वरीयता के आधार पर हर घर को नल कनेक्शन प्रदान करने के लिए किया जाएगा। तो यह न केवल सामाजिक दूरी का पालन करने में मदद करेगा अपितु इससे स्थानीय लोगों को रोजगार पाने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भी सहायता मिलेगी व हर घर को पानी भी मिल पाएगा।
केंद्रीय मंत्री जल शक्ति भारत सरकार ने राजस्थान के मुख्य मंत्री श्री गहलोत से राजस्थान को मार्च 2024 तक, 100% घरों में नल कनेक्शन वाला राज्य यानी ‘हर घर जल राज्य’ बनाने के लिए सभी प्रकार सहायता देने का वचन दिया।