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जायद सीजन में इन फसलों की बुवाई कर किसान अच्छा लाभ उठा सकते हैं

जायद सीजन में इन फसलों की बुवाई कर किसान अच्छा लाभ उठा सकते हैं

रबी की फसलों की कटाई का समय लगभग आ ही गया है। अब इसके बाद किसान भाई अपनी जायद सीजन की फल एवं सब्जियों की बुवाई शुरू करेंगे। 

बतादें, कि गर्मियों में खाए जाने वाले प्रमुख फल और सब्जियां जायद सीजन में ही उगाए जाते हैं। इन फल-सब्जियों की खेती में पानी की खपत बहुत ही कम होती है। परंतु, गर्मियां आते ही बाजार में इनकी मांग काफी बढ़ जाती है। 

उदाहरण के लिए सूरजमुखी, तरबूज, खरबूज, खीरा, ककड़ी सहित कई फसलों की उपज लेने के लिए जायद सीजन में बुवाई करना लाभदायक माना जाता है। यह मध्य फरवरी से चालू होता है। 

उसके बाद मार्च के समापन तक फसलों की बुवाई कर दी जाती है। फिर गर्मियों में भरपूर उत्पादन हांसिल होता है। मई, जून, जुलाई, जब भारत गर्मी के प्रभाव से त्रस्त हो जाता है। उस समय शायद सीजन की यह फसलें ही पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करती हैं। 

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खीरा मानव शरीर को स्वस्थ भी रखता है। इस वजह से बाजार में इनकी मांग अचानक से बढ़ जाती है, जिससे किसानों को भी अच्छा-खासा मुनाफा प्राप्त होता है। शीघ्र ही जायद सीजन दस्तक देने वाला है। 

ऐसे में किसान खेतों की तैयारी करके प्रमुख चार फसलों की बिजाई कर सकते हैं। ताकि आने वाले समय में उनको बंपर उत्पादन प्राप्त हो सके।

सूरजमुखी 

सामान्य तौर पर सूरजमुखी की खेती रबी, खरीफ और जायद तीनों ही सीजन में आसानी से की जा सकती है। लेकिन जायद सीजन में बुवाई करने के बाद फसल में तेल की मात्रा कुछ ज्यादा बढ़ जाती है। किसान चाहें तो रबी की कटाई के पश्चात सूरजमुखी की बुवाई का कार्य कर सकते हैं।

वर्तमान में देश में खाद्य तेलों के उत्पादन को बढ़ाने की कवायद की जा रही है। ऐसे में सूरजमुखी की खेती करना अत्यंत फायदे का सौदा साबित हो सकता है। बाजार में इसकी काफी शानदार कीमत मिलने की संभावना रहती है।

तरबूज 

विभिन्न पोषक तत्वों से युक्त तरबूज तब ही लोगों की थाली तक पहुंचता है, जब फरवरी से मार्च के मध्य इसकी बुवाई की जाती है। यह मैदानी इलाकों का सर्वाधिक मांग में रहने वाला फल है। 

खास बात यह है, की पानी की कमी को पूरा करने वाला यह फल काफी कम सिंचाई एवं बेहद कम खाद-उर्वरक में ही तैयार हो जाता है। 

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तरबूज की मिठास और इसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तरीके से तरबूज की खेती करने की सलाह दी जाती है। यह एक बागवानी फसल है, जिसकी खेती करने के लिए सरकार अनुदान भी उपलब्ध कराती है। इस प्रकार कम खर्चे में भी तरबूज उगाकर शानदार धनराशि कमाई जा सकती है। 

खरबूज

तरबूज की तरह खरबूज भी एक कद्दूवर्गीय फल है। खरबूज आकार में तरबूज से थोड़ा छोटा होता है। परंतु, मिठास के संबंध में अधिकांश फल खरबूज के समक्ष फेल हैं। पानी की कमी एवं डिहाइड्रेशन को दूर करने वाले इस फल की मांग गर्मी आते ही बढ़ जाती है।

खरबूज की खेती से बेहतरीन उत्पादकता प्राप्त करने के लिए मृदा का उपयोग होना अत्यंत आवश्यक है। हल्की रेतीली बलुई मृदा खरबूज की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है। किसान भाई चाहें तो खरबूज की नर्सरी तैयार करके इसके पौधों की रोपाई खेत में कर सकते हैं।

खेतों में खरबूज के बीज लगाना बेहद ही आसान होता है। अच्छी बात यह है, कि इस फसल की खेती के लिए भी ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। असिंचित इलाकों में भी खरबूज की खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 

खीरा 

गर्मियों में खीरा का बाकी फलों से अधिक उपयोग होता है। खीरा की तासीर काफी ठंडी होने की वजह से सलाद से लेकर जूस के तौर पर इसका सेवन किया जाता है। शरीर में पानी की कमी को पूरा करने वाला यह फल भी अप्रैल-मई से ही मांग में रहता है। 

मचान विधि के द्वारा खीरा की खेती करके शानदार उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार कीट-रोगों के प्रकोप का संकट बना ही रहता है। फसल भूमि को नहीं छूती, इस वजह से सड़न-गलन की संभावना कम रहती है। नतीजतन फसल भी बर्बाद नहीं होती है। 

खीरा की खेती के लिए नर्सरी तैयार करने की राय दी जाती है। किसान भाई खीरा को भी रेतीली दोमट मृदा में उगाकर शानदार उपज प्राप्त कर सकते हैं। 

खीरा की बीज रहित किस्मों का चलन काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। किसान भाई यदि चाहें तो खीरा की उन्नत किस्मों की खेती करके मोटा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

ककड़ी 

खीरा की भांति ककड़ी की भी अत्यंत मांग रहती है। इसका भी सलाद के रूप में सेवन किया जाता है। उत्तर भारत में ककड़ी का बेहद चलन है। खीरा और ककड़ी की खेती तकरीबन एक ही ढ़ंग से की जाती है। किसान चाहें तो खेत के आधे भाग में खीरा और आधे भाग में ककड़ी उगाकर भी अतिरिक्त आमदनी उठा सकते हैं।

अगर मचान विधि से खेती कर रहे हैं, तो भूमि पर खरबूज और तरबूज उगा सकते हैं। शायद सीजन का मेन फोकस गर्मियों में फल-सब्जियों की मांग को पूर्ण करना है। 

साथ ही, इन चारों फल-सब्जियों की मांग बाजार में बनी रहती है। इसलिए इनकी खेती भी किसानों के लाभ का सौदा सिद्ध होगी। 

ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद

ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जानिए, जो छत और बालकनी में लगाने पर देंगे पूरा आनंद

वृंदावन। फलों के सेवन से मनुष्य का शरीर स्वस्थ एवं मन आनंदित होता है। आज हम आपको बताएंगे ऐसे एक दर्जन फलों के बारे में जो आप अपनी छत या बालकनी में लगाकर उनसे फल प्राप्त कर सकते हैं और अपने शरीर को स्वस्थ एवं मजबूत बना सकते हैं। अक्सर लोग घर की छत व बालकनी में सब्जियां उगाते हैं, लेकिन आज हम बात करेंगे फलों की। छत या बालकनी में लगे गमलों में रसदार फल आपके आंगन के माहौल को बदल देगा।

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आईए, विस्तार से जानते हैं इन फलों के बारे में:

1. सेब (Apple)

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  • स्वस्थ रहने के लिए रोजाना एक सेब का सेवन करना बेहद लाभदायक होता है। सेब का वानस्पतिक नाम मालुस डोमेस्टिका होता है। आप इसे आसानी से अपने घर की छत अथवा बालकनी पर कंटेनर में लगा सकते हैं।

2. खुबानी (Apricot)

  • खुबानी का वानस्पतिक नाम प्रूनस आर्मेनियाका माना जाता है। इसकी ऊंचाई 6-7/2-4 फीट होती है। बौनी खुबानी की किस्में लंबी नहीं होती हैं। खुबानी को आप अपने आंगन के गमले में उगा सकते हैं।

3. बेर (Berry)

Berry
  • बेर एक रसदार फल ही नहीं बल्कि इसके फूल भी भव्य होते हैं। बेर का वानस्पतिक नाम प्रूनस सबग होता है। इसकी ऊंचाई 5-8/2-4 फीट होती है। पिक्सी, सेंट जूलियन व जॉनसन बेर की अच्छी किस्म होती हैं।



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4. एवोकैडो (Avocado)

Avocado
  • एवोकैडो (Avocado) का वानस्पतिक नाम पर्सिया अमरिकाना है। जिसकी ऊंचाई 6-9 से 2-4 फीट होती है। एवोकाडो उगाने के लिए अच्छी वायु परिसंचरण वाली बालकनी एक बेहतरीन जगह मानी गई है।

5. स्ट्रॉबेरी (Strawberry)

STRAWBERRY
  • स्ट्रॉबेरी को कम जगह में भी लगाया जा सकता है। और किसी भी जलवायु में उगाए जा सकते हैं। स्ट्रॉबेरी का वानस्पतिक नाम फ्रैगरिया/अनासा माना जाता है। जिसकी ऊंचाई 1 से 2 फीट होती है।

6. ब्लूवेरी (Blueberry)

BLUEBERRY
  • ब्लूबेरी का वानस्पतिक नाम साइनोकोकस हैं। इसकी पौधे की ऊंचाई इसके किस्म पर ही निर्भर करता है। आप हैंगिंग बास्केट में भी ब्लूबेरी को लगा सकते हैं।


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7. नींबू (Lemon)

  • नींबू का वानस्पतिक नाम साइट्रस/लिमोन है। जिसकी ऊंचाई 3-6/2-4 फीट है। एक बौना नींबू का पौधा आपकी छत का सबसे अच्छा केन्द्र बिंदू हो सकता है। जो चमकदार, तिरछे पत्तों, सुगंधित फूलों और रसदार फलों के साथ आकर्षक लगता है।

8. केला (Banana)

केले की खेती
  • केला का वानस्पतिक नाम मूसा होता है। जिसकी ऊंचाई 4-12 से 5-7 फीट हैं। केले का पेड़ बालकनी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है। लेकिन इसे गमले में उगाना एक आँगन और छत के बगीचे में संभव है।

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9. आडू (Peach)

PEACH
  • आडू का वानस्पतिक नाम प्रूनस पर्सिका है। इसकी ऊंचाई 5-6 से 2-3 फीट हैं। आप एक बौने आडू के पेड़ को 6 फीट ऊंचाई तक कम कर सकते हैं। आंगन के बगीचे में देसी का स्वाद आपको आनंदित कर देगा। आपको बता दें कि इसे उगाना बेहद आसान है।

10. अमरूद (Guava)

अमरुद उगाने का तरीका
  • अमरूद का वानस्पतिक नाम प्सिडिम गुजावा है। इसकी ऊंचाई 5-8 से 2-4 फीट के बीच होता है। अगर आप गर्म जलवायु में रहते हैं, तो अपनी छत पर एक अमरूद का पेड़ उगाएं। यह एक बर्तन में अच्छा लगेगा और गोपनीयता भी प्रदान करेगा।

11. रास्पबेरी (Raspberry)

Raspberry
  • रास्पबेरी का वानस्पतिक नाम रूबस इडियस है। आपको बता दें कि इस पौधे की ऊंचाई 3-5 से 1-2 फीट होती हैं। रास्पबेरी की झाड़ियाँ डेक गार्डन पर उगने के लिए एक आदर्श फल का पौधा है।

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12. साइट्रस (Citrus)

Citrus
  • साइट्रस का वानस्पतिक नाम साइट्रस है। जिसकी ऊंचाई 4-5/2-4 फीट होती है। आप खट्टे पेड़ों को गमलों में आसानी से उगा सकते हैं। जिनमें संतरा, कुमकुम, कैलमोंडिन, और लाइमक्वेट्स है।

  ------ लोकेन्द्र नरवार

महाराष्ट्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदली लोगों की किस्मत, अब गन्ना-अंगूर छोड़कर यही उगा रहे हैं किसान

महाराष्ट्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदली लोगों की किस्मत, अब गन्ना-अंगूर छोड़कर यही उगा रहे हैं किसान

इन दिनों कई राज्यों में मौसम का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे कई राज्य हैं जहां पर अब बरसात कम होने लगी है, इससे सीधे तौर पर किसान प्रभावित होते हैं। कम बरसात के कारण मिट्टी में नमी की कमी हो जाती हैं जिससे फसलों कि बुवाई कम होती है और किसानों का मुनाफा भी कम हो जाता है। इन समस्याओं को देखते हुए अब  किसान वैकल्पिक खेती की तरफ ध्यान देने लगे हैं, जो किसानों के लिए अनुकूल हो और जिसमें किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो।

ऐसी ही एक खेती है जिसे हम ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit; पिताया फल; pitaya or pitahaya ) की खेती के नाम से जानते हैं। इस खेती में महाराष्ट्र के सांगली जिले के किसानों की रुचि दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र का सांगली जिला देश में सूखा प्रभावित इलाकों में से एक है। यहां पर बेहद कम मात्र में बरसात होती है जो किसानों के लिए मुसीबत का सबब है। यहां के किसान पानी की कम उपलब्धता के बावजूद परंपरागत गन्ना-अंगूर की खेती कर रहे हैं। अब कुछ दिनों से यहां के किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया है। इस खेती में पानी कम जरूरत होती है, इसके साथ ही अन्य फसलों की तरह इसमें देखभाल की भी उतनी जरूरत नहीं होती। सांगली में पिछले कई सालों से कुछ किसान कम संसाधनों के साथ ड्रैगन फ्रूट की खेती करके अच्छा खास लाभ काम रहे हैं।

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सांगली जिले के किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में पहली बार में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा निवेश होता है। लेकिन उस हिसाब से इसमें उत्पादन भी ज्यादा होता है, जिससे लागत बहुत जल्दी वसूल हो जाती हैं। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट के भाव भी अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं। पहली बार के बाद इसमें उतने ज्यादा निवेश की जरूरत नहीं होती। सांगली जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले कई किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में गन्ने की खेती की अपेक्षा मुनाफा ज्यादा होता है। अगर किसान गन्ने की खेती करके 1 लाख रुपये कमा पाते थे तो वहीं अब वो ड्रैगन फ्रूट की खेती करके 8 से 9 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। इसके साथ ही पानी की कम जरूरत के साथ ही खेती की लागत में कमी के कारण ड्रैगन फ्रूट की खेती में दिमागी टेंशन भी कम होती है। इसके साथ ही इस फसल में ओलावृष्टि बारिश या सूखा से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। यह फल ज्यादातर विदेशों में निर्यात किया जाता है। वहां पर इस फल की उचित कीमत मिलती है। सांगली जिले के कई किसानों ने बताया की वो पिछले कुछ सालों से अपने उत्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दुबई को निर्यात करते हैं। विदेशों के साथ ही भारत में भी ड्रैगन फ्रूट का चलन काफी बढ़ गया है, जिससे भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, जयपुर और गुवाहाटी में यह फल लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है और इस फल की काफी डिमांड रहती है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है

ड्रैगन फ्रूट की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है

ड्रैगन फ्रूट को पिताया के नाम से भी जाना जाता है। यह कैक्टस की प्रजाति का ही एक फल है। यह अन्य फलो की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है। ड्रैगन फ्रूट बहार से अनानास के जैसे प्रतीत होता है। लेकिन अंदर से यह कीवी के जैसा दिखता है, इसका गूदा सफ़ेद रंग का होता है और छोटे छोटे काले बीजो से भरा हुआ होता है। यह फल गुलाबी रंग का होता है और इसकी बाहरी त्वचा पर हरे रंग की पंक्तियाँ होती हैं, जो बिल्कुल ड्रैगन के जैसे दिखाई पड़ती हैं। इसीलिए इसे ड्रैगन फ्रूट के नाम से जाना जाता है। 

ड्रैगन फ्रूट दक्षिणी अमेरिका का फल है। ड्रैगन फल की खेती उष्ण जलवायु में की जाती है। फसल के पकाव के लिए उचित तापमान 20 -36 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता रहती है। ड्रैगन फ्रूट का पौधा एक सीजन में कम से कम 3 -4 बार फल देता है। एक ही पौधे पर 50 -120 के तकरीबन फल लगते है। ड्रैगन फ्रूट को आँखों की रौशनी और त्वचा के मॉइस्चर के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। इस फल की खेती इसलिए ख़ास मानी जाती है, क्योंकि इसमें एक बार पैसा लगाने के बाद कई वर्षो तक मुनाफा उठाया जा सकता है। 

यह फल पोषक तत्वों से भरपूर है 

इस फल की कीमत अन्य फलो की तुलना में अधिक रहती है। यह हृदय को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है। किसान पारम्पारिक खेती को छोड़ कर इस खेती की और आकर्षित हुए है। फसल की अच्छी उत्पादकता और पैदावार के लिए सफल और उन्नत किस्मो का उपयोग करें। साथ ही इसमें बहुत से विटामिन और मिनरल्स भी पाए जाते है, जो रोगों से लड़ने में सहायक रहते है। 

ड्रैगन फ्रूट की किस्में 

ड्रैगन फ्रूट की मुख्यत: किस्में तीन प्रकार की होती है , इन तीनो किस्मो में से किसान किसी भी किस्म का उत्पादन कर सकता है। ड्रैगन फ्रूट की किस्में इस प्रकार है ,1  सफ़ेद गूदा वाला गुलाबी रंग का फल , 2 लाल गूदे वाला लाल रंग का फल ,3 सफ़ेद गूदे वाला पीले रंग का फूल।  इन सभी किस्मो का उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

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कैसे करें इसकी खेती 

इसकी खेती भी सामान्य रूप से ही की जाती है।यह किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है , लेकिन ज्यादा बेहतर दोमट और बलुई मिट्टी को माना जाता है।  इसके पौधो को खेत में 5  हाथ की दूरी पर लगाया जाता है। और अन्य फसलों के समान इसमें सिंचाई का काम किया जाता है।  बुवाई के बाद पौधो में हल्की सिंचाई की जाती है , उसके बाद आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई की जाती है। इसकी खेती ज्यादातर अप्रैल से मई के माह में की जाती है वैसे यह एक बारहमासी पौधा है। 

खाद और कीटनाशक 

किसानों द्वारा फसल को खरपतवार से बचाने के लिए समय पर नराई और गुड़ाई का काम किया जाना चाहिए। साथ ही फसल की अच्छी उत्पादकता और पैदावार के लिए खेत में खाद और अन्य रासायनिक कीटनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है। जुताई करते वक्त किसान खेत में गोबर की खाद का भी उपयोग कर सकता है, इससे फल निरोगी रहते है। कलियाँ निकलने पर पौधे पर विशेष ध्यान दिया जाता है , क्योंकि उस समय रोग लगने की ज्यादा सम्भावनाये होती है। 

ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसान इतना कमा सकता है 

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसान को पहले उस खेती में निवेश करना पड़ता है यानी कम से कम 8 -9 लाख रुपया का निवेश किसान द्वारा किया जाता है। इस फसल को ज्यादा प्रबंधन की आवश्यकता नहीं रहती है। बुवाई के दूसरे वर्ष के बाद से ही किसान इस फसल से अच्छा मुनाफा कमा सकते है। इन दिनों ड्रैगन फ्रूट की कीमत बाजारों में बढ़ती जा रही है। 

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ड्रैगन फ्रूट की कीमत बाजार में 200 -250 रुपया प्रति किलो है। इस फल के उत्पादन किसान भारी मुनाफा कमा सकते है।  इस फल की खेती के लिए किसानों को हर साल जोखीम लेने की भी आवश्यकता नहीं है।  एक बार लगने पर यह कई वर्षो तक फल देता है। किसान अन्य फसलों की तुलना में इस फसल से ज्यादा मुनाफा कमा रहा है ,इसकी खेती में बहुत ही कम एकदम न के समान कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। 

ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसान साल में 5 लाख प्रति एकड़ कमा सकते है। एक बार पौधे लगाने के बाद यह 30 -35 वर्ष तक फल देता है। अब इस चीज से अनुमान लगाया जा सकता है किसान इन सालो में अच्छा मुनाफा कमा सकता है। ड्रैगन फ्रूट की फसल के लिए खेत को तैयार करने में लगभग 9 -10  लाख का खर्चा आता है। लेकिन इससे मिलने वाली आय 1 करोड़ से भी ज्यादा कमाई जा सकती है। 

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर मिलेगी 80% फीसद छूट

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर मिलेगी 80% फीसद छूट

भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत के 70% फीसद से ज्यादा लोग खेती किसानी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के किसानों की मदद हेतु केन्द्र और राज्यों की सरकार हर संभव प्रयास करती हैं। 

इसको लेकर सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाती है। साथ ही, किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। इसी कड़ी में सरकार ड्रैगन फ्रूट की खेती में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर तकनीक का इस्तेमाल करने वाले कृषकों को 80% फीसद तक का अनुदान दिया जा रहा है।

स्प्रिंकलर तकनीक से ड्रैगन फ्रूट की अच्छी उपज मिलेगी 

भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती बड़ी ही तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। हालांकि, यह फल मुख्य रूप से थाईलैंड, इजरायल, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों में काफी प्रसिद्ध है। 

लेकिन, वर्तमान में इसे भारत के लोगों द्वारा भी बेहद पसंद किया जा रहा है। यदि आप ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं अथवा फिर करने की योजना बना रहे हैं, तो आप ड्रैगन फ्रूट की खेती में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अवश्य करें। 

ड्रैगन फ्रूट की खेती में इस तकनीक का उपयोग करने से आपके खेतों में फसल की उपज काफी बढ़ेगी। स्प्रिंकलर तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए सरकार की ओर से 80% प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाएगा।

ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी है 

फल हमारे स्वास्थ के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं। ड्रैगन फ्रूट का सेवन करने से आपको विभिन्न प्रकार के स्वास्थ से संबंधित लाभ मिलते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ड्रैगन फ्रूट के अंदर भरपूर मात्रा में Vitamin C पाया जाता है। 

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इसका सेवन करने से इम्यून सिस्टम भी बेहद मजबूत होता है। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट का सेवन करने से मधुमेह को काबू में रखा जा सकता है। साथ ही, आपको इससे कॉलेस्ट्रोल में भी अत्यंत लाभ मिल सकता है। ड्रैगन फ्रूट एक ऐसा फल है, जिसमें फैट और प्रोटीन की मात्रा बेहद कम पाई जाती है।

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए कितनी सब्सिडी दी जा रही है 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार सरकार उद्यान निदेशालय ने किसानों के लिए एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना के अंतर्गत ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले कृषकों को सरकार की ओर से प्रति इकाई लागत (1.25 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) का 40% अनुदान दिया जाएगा। 

इस हिसाब से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों को अनुदान के तौर पर 40% प्रतिशत यानी 50 हजार रुपये मिलेंगे। 

योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन यहां करें 

यदि आप बिहार राज्य में रहते हैं और इस योजना का लाभ उठाना चाहते हैं, तो बिहार कृषि विभाग, उद्यान निदेशालय की ऑफिसियल वेबसाइट horticulture.bihar.gov.in पर आवेदन कर सकते हैं।

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

ड्रैगन फ्रूट की खेती करके लाखों कमा रहे किसान

हमारे यूजर श्री संजय शर्मा जी, राकेश कुमार ग्राम कलुआ नगला, ने ड्रैगन फ्रूट के बारे में जानकारी मांगी थीड्रैगन फ्रूट मूलतः वियतनाम,थाईलैंड,इज़रायल और श्रीलंका में मशहूर है.या आप कह सकते हैं की वहीं से ये दुनियां में फैला है.ड्रैगन फ्रूट का पेड़ कैकटस प्रजाति का होता है। इसे कम उपजाऊ मिट्टी और कम पानी के साथ भी उगाया जा सकता है। इसको बीज के साथ भी उगाया जा सकता है लेकिन ये एक लम्बी और कठिन प्रक्रिया है इसको कटिंग के साथ उगाने की सलाह दी जाती है इसके फ्रूट से शरीर को कई पोषक तत्व मिलते हैं इसको खाने से मधुमेह, शरीर में दर्द और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो की शरीर को कई तरह के रोगों से लड़ने में सहायता करता है। भारत में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी बढ़ने लगी है।

लगाने का समय:

ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।

मिट्टी की सेहत:

इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी  का ठहराब न हो।

उपयुक्त जलवायु:

इसको बहुत ज्यादा तापमान भी बर्दास्त नहीं होता नहीं होता है तो इससे बचने के लिए इसके लिए छाया की व्यवस्था की जा सकती है. वैसे गर्मी से बचने के लिए इसमें समय समय पर पानी देना होता है. पानी देने के लिए ड्राप सिचांई ज्यादा अच्छी रहती है. एक बार कम तापमान में इसका पौधा जम जाये तो ये ज्यादा तापमान को भी झेल लेता है।

खेत की तैयारी:

इसके लिए खेत को समतल करके अच्छी जुताई करके 2 मीटर के अंतराल पर 2 X2 X2 फुट के गड्ढे बना देने चाहिए तथा इसको 15 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए जिससे की इसकी गर्मी निकल जाये उसके बाद इसमें गोबर की सूखी और बनी हुई खाद बालू , मिटटी और गोबर को बराबर के अनुपात में गड्ढे में भर देना चाहिए और कटिंग लगाने के बाद रोजाना शाम को ड्राप सिंचाई करनी चाहिए. ये पौधे को जमने में और बढ़ने में सहायता करता है।

ड्रैगन फ्रूट्स के प्रकार:

[caption id="attachment_2984" align="aligncenter" width="300"]Dragon fruit ड्रैगन फल[/caption] ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।

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रखरखाब:

  • इसके पेड़ को किसी सहारे की जरूरत होती है क्योकि जब पेड़ बढ़ता है तो ये अपना वजन सह नहीं पता है तो इसके पेड़ के पास कोई सीमेंटेड पिलर या लकड़ी गाड़ देनी चाहिए जो की इसके पेड़ का बजन सह सके।
  • आप ड्रैगन फलों के पौधों को कटिंग और बीज दोनों से उगा सकते हैं। हालांकि, बीज द्वारा ड्रैगन फल की सिफारिश नहीं की जाती है क्योंकि इसमें लंबा समय करीब करीब 5 साल का वक्त लग जाता है।
  • जब आप कटिंग से ड्रैगन फ्रूट उगाते हैं, तो 1 फुट लंबाई का 1 साल पुराना कटिंग लगाने के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
  • ड्रैगन फ्रूट कुछ शेड को सहन कर सकता है और गर्म जलवायु परिस्थितियों को प्राथमिकता देता है। इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है.ड्रैगन फ्रूट प्लांट को मध्यम नम मिट्टी की आवश्यकता होती है जो कि ड्राप सिंचाई से पूरी कि जा सकती है.
  • आप फूल और फल आने के समय पानी की मात्रा बढ़ा सकते हैं। ड्रैगन फ्रूट कि खेती में ड्रिप सिंचाई ही सबसे उपयुक्त होती है।
  • ड्रैगन फल आसानी से बर्तन, कंटेनर, छत पर और घर के बगीचे के पिछवाड़े में उगाए जा सकते हैं.यदि आप कंटेनर को सूरज की रोशनी के लिए खिड़की के पास रखते हैं, तो ड्रैगन फलों को घर के अंदर उगाया जा सकता है।
  • ड्रैगन फलों के पौधों को दुनिया के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय स्थानों में उगाया जा सकता है।
  • किसी भी अन्य फलों के पौधों की तरह, ड्रैगन फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • ड्रैगन फ्रूट के पौधों को 40 ° C के तापमान तक सबसे अच्छा उगाया जा सकता है।

बाजार:

इसकी मांग वहां ज्यादा होती है जहाँ हेल्थ को लेकर लोग जागरूक होते है इसका मतलब है की आप इसको बड़े शहरों में बेच सकते हो जहाँ आपको इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी. इसका कीमत 150 से 250 रुपये किलो के हिसाब से होती है इसको अगर एक्सपोर्ट करना हो तो जैसे ही इसका रंग लाल होना शुरू हो तभी इसको तोड़ लेना चाहिए तथा ध्यान रहे की इसमें कोई निशान या किसी बजन से दबे नहीं, नहीं तो इसके ख़राब होने के चांस बढ़ जाते है।

रोग:

ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।

खाद:

  • ड्रैगन फ्रूट्स को खाद की जरूरत ज्यादा होती है. ये एक गूदा वाला फल होता है तो इससे अच्छा और बड़ा फल लेने के लिए इसके  फलों के पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • पौधे की उपलब्धता और बाजार के बारे में स्थान स्थान के हिसाब से बदल जाते हैं. इसके लिए बेहतर है की आप अपने क्षेत्र के कृषि अधिकारी से बात करें तथा पूरी जानकारी लेने के बाद ही इसकी खेती शुरी करें।
कैसे करें पैशन फल की खेती

कैसे करें पैशन फल की खेती

पैशन फल अपने स्वाद पौष्टिकता और औषधीय गुणों के लिए विश्व भर में जाना जाता है। सर्वप्रथम यह फल ब्राजील में उगाया गया यहां से इसका प्रचार-प्रसार अफ्रीका तथा एशियाई देशों में हुआ। इस फल की पूरे विश्व में 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में इस फल की मुख्य दो प्रजातियां पाई जाती हैं। 1. पैसीफ्लोरा यूडिलिस इस प्रजाति के फलों का रंग शुरुआती दौर में हरा एवं आकार गोल होता है । पकने पर इसका रंग बैंगनी तथा स्वाद में हल्का अम्लीयता होता है । फल में रस की मात्रा अधिक और बीजों का रंग हल्का काला होता है। 2. पैसीफ्लोरा फ्लेवीकॉरपा इस प्रजाति के पौधों के फलों का रंग पीला होता है। इसका आकार बैंगनी रंग के फलों की अपेक्षा बड़ा होता है। इस प्रजाति के फलों में रस की मात्रा कम तथा फलों का स्वाद अम्लीय होता है।

भारत में पैशन फल मुख्यत

भारत में पैशन फल केरल, तमिलनाडु, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश हिमाचल प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय में होता है। उत्तराखंड के शीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में भी इसकी
बागवानी सीमित क्षेत्र में होने लगी है। विडंबना यह है की महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर फल होते हुए भी इसकी नियमित बागवानी हमारे देश में नहीं हो पा रही है। देश के कुछ प्रदेशों में ही इसकी बागवानी के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के शोधकर्ताओं के अनुसार किसानों को इस की बागवानी के बारे में पूरी जानकारी का ना होना इसकी खेती के विस्तार में बाधक है ।

जलवायु

पैशन फल का पौधा एक बेल युक्त पौधा होता है जिसकी लंबाई 15 से 20 फुट तक हो सकती है। इसे किसी भी जलवायु में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है लेकिन अर्ध शुष्क जलवायु इसके लिए उपयुक्त पाई गई है। इसकी बागवानी अट्ठारह सौ मीटर ऊंचाई तक तथा 15 - 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।

मृदा तथा भूमि

इस फल की खेती के लिए हल्की या भारी बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इस फल की बागवानी के लिए पीएच मान 6:30 से 7:30 होना चाहिए। जिस मिट्टी में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक तत्व हो वह मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। यदि मिट्टी में अम्लीयता अधिक हो तो उसमें चूना मिलाकर से खेती योग्य बनाया जा सकता है।

उर्वरक

फलों के बड़े आकार तथा अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर उर्वरकों का प्रयोग करते रहना चाहिए ।उर्वरकों में जैविक खाद के रूप में गोबर की साड़ी खाद को समय-समय पर निश्चित अनुपात में डालना चाहिए ।अगर जैविक खाद उपलब्ध ना हो तो रासायनिक खादों का सही तथा निश्चित अनुपात में प्रयोग होना चाहिए । नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश को 2-1-4 के अनुपात में डालना चाहिए। इसके अलावा अन्य पोषक तत्वों का भी निश्चित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए, जिससे पौधों की वृद्धि तथा अच्छी पैदावार मिलती रहे। यह भी पढ़ें: सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

सिंचाई

इस फल की अच्छी पैदावार के लिए इसमें समय समय पर सिंचाई करनी चाहिए। खसकर जब फल परिपक्व हो रहे हों उस समय सिंचाई करते रहने से पौधे को पोषक तत्व मिलते रहते हैं तथा फलों का आकार भी ठीक रहता है। यदि समय पर सिंचाई नहीं की जाती तो पौधे को उचित पोषक तत्व नहीं मिलते और फलों का आकार भी परिपक्व नहीं हो पाता।

पौधों की सफाई व छंटाई

पौधों की सफाई का कार्य नियमित अंतराल पर करते रहना चाहिए जिससे पौधों की उचित वृद्धि होती रहे तथा पौधे उत्तम पैदावार देते रहें। पौधों की सधाई का कार्य फल तोड़ाई के बाद करना चाहिए तथा सूखी और बीमारियों से ग्रसित शाखा या बैलों को काट देना चाहिए। सफाई का कार्य जाड़े के मौसम में करना चाहिए।

नर्सरी तैयार करना

पैशन फल के पौधे मोक्षित है बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। बीजों की बुवाई फलों से निकलने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। बुवाई के लिए पौधशाला की ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर तथा लंबाई 1 से 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 20 को आधे से 1 इंच तक मिट्टी में दबाना चाहिए। जब पौधे की लंबाई 10 इंच की हो जाए तब इसे पौधशाला से निकाल कर दूसरी जगह रोहित कर देना चाहिए। अन्य विधियों में रोपण ग्राफ्टिंग या कटिंग विधि से भी पर तैयार की जा सकती है। ग्राफ्टिंग रोपण विधि में जब कलिका तैयार हो जाए तो इसे मूल ग्रंथ से काटकर पुराने बीजू पौधे पर सावधानीपूर्वक चढ़ाना चाहिए। 70 से 80% सफलता प्राप्त की जा सकती है।

फलों की तोड़ाई

पैशन फलों की तोड़ाई फल का रंग जब हरे रंग से गहरे बैंगनी रंग का हो जाता है तो यह पक चुका होता है तथा फल को इस समय तोड़ लेना चाहिए। इसका फल परागण के 70 से 80 दिनों के बाद पक जाता है। पैशन फल वर्ष में दो बार तैयार होता है। पहली बार मार्च से मई तक तथा दूसरी बार अगस्त से दिसंबर तक पूर्ण विकसित पौधे से साल में 25 से 30 किलोग्राम फल प्राप्त किया जा सकता है।

भंडारण एवं विपणन

फलों की तोड़ाई के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया भंडारण की होती है। पके फलों को ज्यादा समय तक सामान्य तापमान पर भंडारित किया जा सकता है । इस फल के भंडारण के लिए कोई विशेष प्रबंध नहीं करना होता। पैशन फल शीघ्र खराब ना हो इसके लिए फल को पकने के बाद तोड़ लेना चाहिए। इन्हें आकर्षक दिखाने के लिए पॉलिथीन की थैलियों में रख देना चाहिए तथा इसे 2 सप्ताह तक इस अवस्था में रखा जा सकता है। इस प्रकार यह फल अपनी उत्पादकता पोषक तत्व की प्रचुरता सरल बागवानी से काश्तकारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जरूरत इस बात की है कि किसान भाइयों के बीच इसका सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रचार प्रसार किया जाए।
यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा

यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, जिसकी दुम पर पैसा

यह ड्रैगन फ्रूट ऐसा, बीस साल तक बरसे पैसा : जानें ड्रैगन फ्रूट की जैविक खेती का राज

हम बात कर रहे हैें ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की। इसे पिताया फल (
pitaya or pitahaya) के नाम से भी जाना जाता है। इसकी जैविक खेती करने वाले भारत के किसान मित्र भरपूर कमाई कर रहे हैं। लगभग बीस सालों तक किसान की कमाई का जरिया बने रहने वाले इस फ्रूट के और लाभ क्या हैं, कहां इसका बाजार है, इन विषयों पर हाजिर है पड़ताल।

ड्रैगन फ्रूट के लाभ

ड्रैगन फ्रूट लगाने से लाभ पक्का होने की वजह कई प्रदेशों के साथ ही विदेशों में इस स्पेशल फ्रूट की भारी डिमांड है। खास बात यह भी है कि, ड्रैगन फ्रूट लगाने के लिए किसानों को सरकारी मदद भी दी जाती है।

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जिले का उद्यान विभाग ड्रैगन फ्रूट की खेती के इच्छुक किसान को अनुदान प्रदान करता है। अनुदान योजना की शर्तें पूरी करने पर प्रति एकड़ के मान से किसान को ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए अनुदान दिया जाता है।

पैदावार बढ़ाने वाले कारक

ड्रैगन फ्रूट की ऑर्गेनिक खेती से लाभ है। वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद, गोमूत्र और नीम से बने कीटनाशक का इस्तेमाल ड्रैगन फ्रूट की उत्तम पैदावार में सहायक है। इसकी सिंचाई ड्रिप सिस्टम से होती है। खास बात यह है कि, जैसे-जैसे ड्रैगन फ्रूट का पेड़ पुराना होता जाता है, उसकी पैदावार क्षमता बढ़ती जाती है।

आयु 20 साल

ड्रैगन फ्रूट की आयु करीब 20 वर्षों से ज्यादा मानी गई है। इस अवधि के दौरान ड्रैगन फ्रूट का पेड़ न केवल खेत के लिए फायदेमंद साबित होता है बल्कि उसकी सेवा करने वाले किसान की भी तकदीर बदल देता है।

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देश और विदेश में है मांग

ड्रैगन फ्रूट की मांग देश और विदेश में है। उत्तरी राज्यों लखनऊ, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इसका अच्छा बाजार है। इसके अलावा विदेशों में भी ड्रैगन फ्रूट का निर्यात किया जाता है।

खराब न होने की खासियत

ड्रैगन फ्रूट की खास बात ये है कि यह फल जल्दी खराब नहीं होता। ज्यादा समय तक खराब न होने के इस गुण के कारण ड्रैगन फ्रूट की पैदावार से किसान की कमाई के अवसर कई सालों तक सतत बरकरार रहते हैं।

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के हरदोई जिले में की जाने वाली इस स्पेशल फ्रूट की फार्मिंग किसानों के बीच चर्चा का विषय है। हरदोई के पहाड़पुर में इस स्पेशल फल की खेती की जा रही है। यहां के किसानों को लखनऊ में एक सेमिनार के दौरान ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) के फल को देखने का अवसर मिला था। इस फल की खेती और उससे मिलने वाले लाभों को जानकर वे इसकी खेती करने लिए आकर्षित हुए थे। ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में सेमिनार से हासिल जानकारी जुटाने के बाद उन्होंने अपने खेत पर ड्रैगन फ्रूट की खेती करना शुरू कर दिया।

जिला उद्यान विभाग की मदद

जिला उद्यान विभाग की सहायता से किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की है। जिसमें सलाहकारी एवं आर्थिक मदद शामिल है।

सीमेंट का पोल

इसकी खेती के लिए सीमेंट के पोल के सहारे 4 पौधे लगाए जाते हैं, क्योंकि समय के साथ इसका पेड़ काफी वजनदार होता जाता है। ड्रैगन फ्रूट पेड़ों से उत्पादन क्रमशः बढ़ते हुए 25 से 30 किलो के आसपास पहुंच जाता है।

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उद्यान विभाग ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसानों को आर्थिक मदद प्रदान करता है। जिला उद्यान विभाग से ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए जरूरी जानकारी प्रदान की जाती है। जैविक खेती की मदद से इसकी सफल किसानी का खास मंत्र बताया जाता है। ड्रैगन फ्रूट पोषक तत्वों से भी भरपूर है। इस फल में फाइबर की प्रचुर मात्रा तो उपलब्ध है ही, साथ ही इसका व्यापक बाजार भी इसकी खेती के लिए किसानों को प्रेरित कर रहा है।
सिंघाड़े की खेती की जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए सिंघाड़े सम्बंधित जानकारी

सिंघाड़े की खेती की जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए सिंघाड़े सम्बंधित जानकारी

सिंघाड़ा (Singhada; Water chestnut; सिंघारा, वॉटर चेस्टनट, वाटर कैलट्रॉप, सिंगडा) एक सुप्रसिद्ध फल है, जिसको ज्यादातर लोग बेहद पसंद करते हैं। इस मौसम में, उत्तर भारत में सिंघाड़ा प्रायः हर जगह बाजार में उपलब्ध रहता है। यह मौसमी फल होने के साथ साथ बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है। सिंघाड़े का उपयोग सामान्य रूप से खाने के साथ ही फलहार एवं व्रत में उपयोग होने वाले आटे के रूप में भी होता है। सिंघाड़ा थोड़ा मीठा एवं स्वादिष्ट फल है, इसी वजह से लोग सिघाड़े को बेहद पसंद करते हैं, साथ ही बाजार में भी इसकी खूब मांग होती है। सिंघाड़ा नवंबर दिसम्बर के सीजन में आना शुरू हो जाता है, क्योंकि इसकी बुवाई जून जुलाई के समय होती है। इसकी पैदावार किसी तालाब पोखर जैसे अड़िग जलीय स्थानों पर ही होती है, मगर इसका उत्पादन जलभराव के लिए गड्डा खोदकर भी किया जा सकता है। सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान इस विधि से भी सिंघाड़ा उत्पादन करते हैं। सिंघाड़े की फसल को पूर्ण रूप से तैयार होने में ५ से ६ माह का समय लगता है, जून जुलाई में सिंघाड़े की रोपाई के उपरांत नवंबर दिसम्बर में इसकी फसल तैयार होकर बाजार में आ जाती है।

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सिंघाड़ा काफी मशहूर एवं प्रचलित फसल है, इसकी अपने बाजार में अच्छी खासी मांग और उपयोगिता है। सिंघाड़ा उत्पादक किसान इसकी उत्तम पैदावार करके बेहतर मुनाफा अर्जित करते हैं, जिसकी एक वजह यह भी है कि सिंघाड़े का उपयोग भिन्न भिन्न रूप में किया जाता है। सिंघाड़े को कुछ दिनों धूप में सुखाने के उपरांत इसके अंदर के फल को पीसकर आटा निर्मित होता है, जिसको लोग उपवास के दौरान प्रयोग करते हैं। शीतकाल के दौरान सिंघाड़े की मांग आसमान छूने लगती है, इससे न केवल किसान को लाभ होता है, बल्कि अन्य ठेली व रेहड़ी वाले भी इसको विक्रय कर मुनाफा कमाते हैं। [caption id="attachment_11773" align="alignnone" width="750"]ताजा सिंघाड़ा व सूखा सिंघाड़ा ताजा सिंघाड़ा व सूखा सिंघाड़ा[/caption]

सिंघाड़े की उम्दा किस्मों के प्रकार एवं खेती का प्रबंधन

सिंघाड़े की मुख्यतया दो किस्म पायी जाती हैं, जिसमे पहली किस्म को लाल छिलके व दूसरी को हरे छिलके के नाम से जाना जाता है। लाल छिलके में सबसे प्रसिद्ध किस्म VRWC1 एवं VRWC 2 हैं, लेकिन हरे छिलके वाली किस्म VRWC 3 की अपेक्षा में लाल छिलके की किस्म को किसान कम पसंद करते हैं। जिसकी मुख्य वजह यह है कि लाल किस्म के सिंघाड़े की किस्में शीघ्रता से खराब हो जाती हैं और इसी कारण से बाजार में इसकी मांग काफी कम होती है। जबकि हरे छिलके वाली सिंघाड़े की बाजार में अत्यधिक मांग होती है, साथ ही यह काफी समय तक खराब भी नहीं होती।

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सिंघाड़े की फसल की तैयारी के लिए किसानों को सर्वप्रथम उम्दा एवं अच्छे बीजों को जनवरी एवं फरवरी माह में जल के अंदर डाल कर उनकी बेल अंकुरित होने तक संजोकर रखना होगा। साथ ही किसान सिंघाड़े की रोपाई मई जून के महीने में करें, क्योंकि इसकी फसल का वातानुकूलित समय वही होता है। सिंगाड़े की खेती एक स्थिर जलीय स्थान पर ही संभव होती है, फसल लगभग १ से २ फीट जल के अंदर निरंतर रहनी आवश्यक है।

सिंघाड़े के कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं।

  • सिंघाड़े से व्रत में उपभोग करने हेतु आटा निर्मित होता है।
  • सिंघाड़ा खाने में भी अत्यंत स्वादिष्ट लगता है।
  • सिंघाड़े के प्रयोग से शरीर में विघमान खुश्की भी दूर हो जाती है, साथ ही पीड़ाजनक शारीरिक स्थानों पर यह एक सफल औषधी का कार्य करता है।
  • सिंघाड़ा महिलाओं को पीरियड्स के समय होने वाली दिक्कतों से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाता ही है, साथ ही गर्भवती होने के समय गर्भपात जैसे भय को खत्म करने की भी क्षमता रखता है।
  • सिंघाड़ा के इस्तेमाल से कई सारे रोगों से निजात मिल सकती है, जैसे की अस्थमा, बवासीर इत्यादि।
  • सिंघाड़े में केल्सियम प्रचूर मात्रा में होता है, जो कि हड्डियों की मजबूती एवं आँखों के लिए फायदेमंद होने के साथ साथ ही शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
  • सिंघाड़े की खेती करके किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। सिंघाड़े की प्रसिद्धि से बाजार में इसकी खूब मांग है, जिसके चलते इसका अच्छा भाव बाजार में मिल जाता है।
इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

बीमारियों के दौरान कीवी(Kiwifruit or Chinese gooseberry) ही ऐसा फल है, रोग प्रतिरोधक काफी सुद्रढ़ बनाया है। इस फल को जानवरों से भी कोई हानि नहीं होती। कीवी की फसल के माध्यम से किसान अधिकतर वर्षों तक फायदा उठा सकते हैं। मौसम परिवर्तन की वजह से सेहत काफी दुष्प्रभावित होती है व लोग अतिशीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो चुकी है कि आज औषधियों की सहायता लिए बिना स्वास्थ्य को अच्छा और संतुलित रखना बेहद कठिन हो गया है। इसी कारण से बाजार में अब फलों की मांग में वृद्धि हो रही है। अन्य फलों की अपेक्षाकृत कीवी के फल की मांग बाजार में अत्यधिक बढ़ गयी है जो किसान और लोगों के लिए एक सही संकेत है। कीवी की मांग में बढ़ोत्तरी के मध्य इसकी बागवानी एवं कृषि व्यापार करके किसान बेहतरीन लाभ प्राप्त कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि कीवी की बागवानी करने हेतु अत्यधिक व्यय वहन नहीं करना होगा, क्योंकि राष्ट्रीय बागवानी मिशन स्कीम (National Horticulture Mission) एवं प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के तहत 10 लाख तक का अनुदान, प्रशिक्षण व कर्ज की सुविधा भी दी जाएगी। अब बात करते हैं व्यवसाय से होने वाले लाभ एवं तरीकों के बारे में।

 

कीवी के फल से क्या क्या लाभ हैं

कीवी का रंग एवं केश के प्रकार बाहरी सतह भी आकर्षण का कारण बनी हुई है। कीवी के फल में विटामिन-ई, विटामिन-के, विटामिन-सी व पोटैशियम की प्रचूर मात्रा होती है। ये पोटैशियम व फोलेट जैसे पोषक तत्वों का भी बेहतरीन स्रोत है। कीवी के फल का स्वाद खट्टा व मीठा पाया जाता है। कीवी के उपयोग के द्वारा स्वास्थ्य की रोग प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है। यह स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों से लड़ने में काफी सहायक साबित होता है। कीवी का फल विशेष रूप से होने वाले किसी भी रोगों के संक्रमण, मलेरिया व डेंगू जैसे खतरनाक रोगों से लड़ने में बेहद सहायक साबित होता है। 

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इस क्षेत्रों में कीवी आसानी से होता है

कीवी का फल मुख्य रूप से चीन में होता है, चीन के कीवी के फल को विश्वभर में अलग ही ख्याति प्राप्त हुई है। हालाँकि, कीवी के भाव थोड़ा अधिक है , लेकिन इससे कीवी की मांग एवं खपत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मिट्टी व जलवायु के अनुरूप हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश मेघालय, उत्तराखंड, नागालैंड, केरल, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में कीवी की फसल एवं इसका प्रोसेसिंग व्यवसाय कर सकते हैं। कश्मीर से लेकर हिमाचल तक इसका प्रचार प्रसार है।

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

आज हम आपको गुरसिमरन सिंह नामक एक किसान की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं। बतादें, कि किसान गुरसिमरन ने अपने चार एकड़ के खेत में 20 से अधिक फलों का उत्पादन कर लोगों के समक्ष एक नजीर पेश की है। आज उनके फल विदेशों तक बेचे जा रहे हैं। पंजाब राज्य के मालेरकोटला जनपद के हटोआ गांव के युवा बागवान किसान गुरसिमरन सिंह अपनी समृद्ध सोच की वजह से जनपद के अन्य कृषकों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। यह युवा किसान गुरसिमरन सिंह अपनी दूरदर्शी सोच के चलते पंजाब के महान गुरुओं-पीरों की पवित्र व पावन भूमि का विस्तार कर रहे हैं। वह प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण के संरक्षण हेतु अथक व निरंतर कोशिशें कर रहे हैं। साथ ही, समस्त किसानों एवं आम लोगों को प्रकृति की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने हेतु संयुक्त कोशिशें भी कर रहे हैं।

किसान गुरसिमरन ने टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा किया हुआ है

बतादें, कि किसान गुरसिमरन सिंह ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा करने के पश्चात अपनी चार एकड़ की भूमि पर जैविक खेती के साथ-साथ विदेशी
फलों की खेती शुरु की थी। गुरसिमरन अपनी निजी नौकरी के साथ-साथ एक ही जगह पर एक ही मिट्टी से 20 प्रकार के विदेशी फल पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए थे। इससे उनको काफी ज्यादा आमदनी होने लगी थी। किसान गुरसिमरन सिंह के अनुसार, यदि इंसान के मन में कुछ हटकर करने की चाहत हो तो सब कुछ संभव होता है।

विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है

किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं

वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं। किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है। गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

काला अमरुद सिर्फ आमदनी के लिए ही नहीं बल्कि मानव सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। आज हम आपको इसके अद्भुत गुणों के साथ-साथ इसकी खेती की भी जानकारी देंगे। हम सब अमरुद के संबंध में तो काफी अच्छे से जानते ही हैं। आज हम इसकी खेती को लेकर भी बहुत सी जानकारियों से परिचित हैं। परंतु, हम जिस अमरुद की चर्चा करने जा रहे हैं। वह सामान्य अमरुद की श्रेणी से अलग है और इतना ही नहीं इस अमरुद का रंग भी बाकी अमरुद से पूर्णतय भिन्न है।

भारत के अंदर काला अमरुद इन जगहों पर उगाया जाता है

काले
अमरुद का उत्पादन भारत के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किया जाता है। परंतु, यदि बाकी अमरूदों से इसकी तुलना करें तो यह बेहद ही कम मात्रा में उगाया जाता है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि काले रंग में यह अमरुद ही नहीं होता बल्कि इसके पत्ते और पेड़ में भी आपको कालिमा स्पष्ट तौर पर दिखाई देगी। यदि हम इस अमरुद के भाव की बात करें तो यह बाकी अमरूदों की तुलना में सबसे अधिक होती है।

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काले अमरुद में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काले अमरुद में अगर हम पोषक तत्वों की बात करें तो यह एक औषधीय फल है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ यदि हम इसके बाकी तत्वों की बात करें तो इसके अंदर विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन के साथ-साथ और भी बहुत से मल्टीविटामिन तथा मिनरल्स होते हैं। एक तरह से हम कह सकते हैं, कि यह अमरुद हमारे शरीर के लिए पूर्ण रूप से एक आयुर्वेदिक औषधी का कार्य करती है।

काले अमरूद की खेती कैसे की जाती है

काले अमरुद की खेती करने के लिए सर्वोत्तम समय ठण्ड का मौसम होता है। अगर आप मृदा की जांच करा कर इस पौधे को सही तरीके से बोते हैं, तो यह 2 से 3 साल में ही आपको फल देने लग जाता है। सामान्य रूप से इस पौधे के लिए दोमट मृदा सबसे अनुकूल होती है। आप इनके 1 से 3 वर्ष के पौधों में 10 से 20 किलो तक गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही सिंगल सुपर फास्फेट 250 से 750 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 200 से 400 ग्राम का इस्तेमाल करना चाहिए। हम इनके बेहतरीन विकास के लिए यूरिया 50 से 250 ग्राम और जिंक सल्फेट 25 ग्राम प्रति पौधा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन सब के उपरांत भी यदि आपके अमरुद के पेड़ में फूल नहीं आ रहे हैं, तो आप इसमें यूरिया अथवा एथेफॉन-यूरिया स्प्रे की उच्च सांद्रता का इस्तेमाल करें। यह पौधों में एक प्रेरक का कार्य करता है।