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निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

निरंजन सरकुंडे का महज डेढ़ बीघे में बैंगन की खेती से बदला नसीब

किसान निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि उनके पास 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। पहले सरकुंडे अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। जिससे उनको उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, बिहार और हरियाणा में ही किसान केवल बागवानी की ओर रुख नहीं कर रहे। इनके साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी किसान पारंपरिक फसलों की जगह फल और सब्जियों की खेती में अधिक रुची ले रहे हैं। मुख्य बात यह है, कि सब्जियों की खेती करने से किसानों की आय में भी काफी इजाफा होगा। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि, पहले पारंपरिक फसलों की खेती करने पर किसानों को खर्चे की तुलना में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। साथ ही, परिश्रम भी काफी ज्यादा करना पड़ता था। बहुत बार तो अत्यधिक बारिश अथवा सूखा पड़ने से फसल भी बर्बाद हो जाती थी। परंतु, वर्तमान में बागवानी करने से किसानों को प्रतिदिन आमदनी हो रही है। 

महाराष्ट्र के नांदेड़ निवासी किसान का चमका नसीब

वर्तमान में हम महाराष्ट्र के नांदेड़ के निवासी एक ऐसे ही किसान के संबंध में बात करेंगे, जिनकी
सब्जी की खेती से किस्मत बदल गई। इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है। वह नांदेड जिला स्थित जांभाला गांव के मूल निवासी हैं। निरंजन सरकुंडे एक छोटे किसान हैं। उनके समीप काफी कम भूमि है। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि पर बैंगन की खेती की है। विशेष बात यह है, कि विगत तीन वर्षों से वह इस खेत में बैंगन की पैदावार कर रहे हैं, जिससे उन्हें अभी तक चार लाख रुपये की आमदनी हुई है।

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बैंगन विक्रय कर कमा चुके 3 लाख रुपये का मुनाफा

निरंजन सरकुंडे का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। निरंजन सरकुंडे इससे पहले अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, उससे उनको उतनी ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। अब ऐसी स्थिति में उन्होंने सब्जी का उत्पादन करने का निर्णय लिया। उन्होंने डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की बिजाई कर डाली, जिससे कि उनकी अच्छी-खासी आमदनी हो रही है। वर्तमान में वह बैंगन बेचकर 3 लाख रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं। हालांकि, वह बैंगन के साथ-साथ पांरपरिक फसलों का भी उत्पादन कर रहे हैं। 

निरंजन सरकुंडे के बैगन की बिक्री स्थानीय बाजार में ही हो जाती है

वर्तमान में निरंजन सरकुंडे पूरे गांव के लिए मिसाल बन गए हैं। वर्तमान में पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी उनको देखकर सब्जी की खेती चालू कर दी है। निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से वह तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर चुके हैं। हालांकि, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर उनको 30 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ता है। छोटी जोत के किसान निरंजन द्वारा पैदा किए गए बैंगन की स्थानीय बाजार में अच्छी-खासी बिक्री है। सरकुंडे ने बताया है, कि ह वह अपने खेत की सब्जियों को बाहर सप्लाई नहीं करते हैं। उनके बैगन की स्थानीय बाजार में ही काफी अच्छी बिक्री हो जाती है।

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसकी हमेशा मांग बनी रहती है। इसका भाव सदैव 40 से 50 रुपये किलो के समीप रहता है। एक बीघे भूमि में बैंगन का उत्पादन करने पर 20 हजार रुपये के आसपास लागत आएगी। दरअसल, लोगों का मानना है कि नकदी फसलों की खेती में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं है। विशेष रूप से हरी सब्जियों के ऊपर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। वह इसलिए कि हरी सब्जियां सामान्य से अधिक बारिश, गर्मी एवं ठंड सहन नहीं कर पाती हैं। इस वजह से ज्यादा लू बहने, पाला पड़ने एवं अत्यधिक बारिश होने पर बागवानी फसलों को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। हालाँकि, बेहतर योजना और आधुनिक ढ़ंग से सब्जियां उगाई जाए, तो इससे ज्यादा मुनाफा किसी दूसरी फसल की खेती के अंदर नहीं हैं। यही कारण है, कि अब महाराष्ट्र में किसान पारंपरिक फसलों के स्थान पर सब्जियों की खेती में अधिक परिश्रम कर रहे हैं।

किसान निरंजन को कितने लाख की आय अर्जित हुई है

आज हम आपको एक ऐसे किसान के विषय में जानकारी देंगे, जिन्होंने सफलता की नवीन कहानी रची है। बतादें, कि इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है और यह महाराष्ट्र के नांदेड जनपद के मूल निवासी हैं। सरकुंडे हदगांव तालुका मौजूद निज गांव जांभाला में पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, वर्तमान में वह बैंगन की खेती कर रहे हैं, जिससे उनको काफी अच्छी आमदनी हो रही है। मुख्य बात यह है, कि निरंजन सरकुंडे ने केवल डेढ़ बीघा भूमि में ही बैंगन लगाया है। इससे उन्हें चार लाख रुपये की आय अर्जित हुई है।

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निरंजन को देख अन्य पड़ोसी गांव के किसान भी खेती करने लगे

निरंजन का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वह पूर्व में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, इससे उनके घर का खर्चा नहीं चल रहा था। ऐसे में उन्होंने डेढ़ बीघे खेत में बैंगन की खेती चालू कर दी। इसके पश्चात उनकी तकदीर बदल गई। वह प्रतिदिन बैंगन बेचकर मोटी आमदनी करने लगे। उनको देख प्रेरित होकर उनके पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी सब्जी का उत्पादन कर दिया। वर्तमान मे सभी किसान सब्जी की पैदावार कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

निरंजन सरकुंडे ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं

सरकुंड के गांव में सिंचाई हेतु पानी की काफी किल्लत है। इस वजह से वह ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं। उन्होंने बताया है, कि रोपाई करने के दो माह के उपरांत बैंगन की पैदावार हो जाती है। वह उमरखेड़ एवं भोकर के समीपवर्ती बाजारों में बैंगन को बेचा करते हैं। इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से निरंजन सरकुंडे को तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है। वहीं, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर 30 हजार रुपये की लागत आई थी। उनकी मानें तो फिलहाल वह धीरे- धीरे बैंगन का रकबा बढ़ाएंगे। पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक ढ़ंग से बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद है।
फूलों की खेती से चमकी किसान श्रीकांत की तकदीर, जानें इनकी सफलता की कहानी

फूलों की खेती से चमकी किसान श्रीकांत की तकदीर, जानें इनकी सफलता की कहानी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अधिकांश आबादी कृषि या कृषि से जुड़े कार्यों से आजीविका चलाती है। वर्तमान में भारत के कई पढ़े-लिखे शिक्षित लोग नौकरी को छोड़कर कृषि में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। 

साथ ही, सफलता भी हांसिल कर रहे हैं। इसी कड़ी में फूलों की खेती करके श्रीकांत बोलापल्ली ने एक छोटी स्तर से शुरुआत करके आज वार्षिक करोड़ों की आय का मुकाम हांसिल किया है। 

उन्होंने फूलों की खेती करने से पूर्व आधुनिक कृषि तकनीकों के विषय में सही से जानकारी ग्रहण की और इसका अनुसरण करके इसको कृषि में लागू किया। आज के समय में फूलों की खेती और इसके व्यवसाय में इनका काफी जाना-माना नाम है। 

फूलों की खेती की कहानी कब और कैसे शुरू हुई 

अपनी युवावस्था में आज से तकरीबन 22 वर्ष पूर्व तेलंगाना के एक छोटे से शहर से आने वाले श्रीकांत बोलापल्ली का सपना था, कि वह अपनी जमीन पर खेती करें। 

लेकिन, गरीबी के चलते और घर-परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह जमीन खरीद सकें। समय के चलते हालात बिगड़ने पर श्रीकांत ने अपने शहर ‘निजामाबाद’ को छोड़ दिया और 1995 में बेंगलुरु करियर बनाने आ गये। 

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उस दौरान डोड्डाबल्लापुरा क्षेत्र में श्रीकांत को फूलों की खेती से जुड़ी एक कंपनी में बतौर पर्यवेक्षक के रूप में काम मिला। इस समय श्रीकांत की सैलरी 1000 रुपये महीना हुआ करती थी।

बैंगलुरु से प्रारंभ किया फूलों का व्यवसाय 

2 सालों तक श्रीकांत ने इसी कंपनी में कार्य किया और फूलों की खेती करने के लिए वैज्ञानिक खेती के विषय में जानकारी अर्जित की है। 

उन्होंने यहां नौकरी करके 24000 हजार रुपये जमा किए और बैंगलुरु में ही फूलों का छोटा सा व्यवसाय शुरू किया। श्रीकांत ने विभिन्न कंपनियों और किसानों से संपर्क करके फूलों का व्यापार करना शुरू कर दिया। 

प्रारंभिक समय में वह अकेले ही फूलों को इकट्ठा किया करते थे और इनकी पैकिंग करके पार्सल किया करते थे। धीरे-धीरे मांग में वृद्धि हुई और उन्होंने दो कर्मचारियों को अपने साथ में जोड़ लिया।

श्रीकांत को इस साल करोड़ों की आय की संभावना 

बतादें, कि श्रीकांत ने काफी लंबे समय तक फूलों का व्यवसाय करने के बाद 2012 में श्रीकांत ने डोड्डाबल्लापुरा में ही 10 एकड़ भूमि खरीदी। किसान श्रीकांत ने इस भूमि पर आधुनिक तकनीकों के साथ फूलों की खेती करनी चालू की है।

श्रीकांत आज 30 एकड़ भूमि पर फूलों की खेती कर रहे हैं। फूलों की खेती करके उन्होंने पिछले वर्षों में 9 करोड़ रुपये का मुनाफा प्राप्त किया है। 

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उन्होंने इस वर्ष 12 करोड़ रुपये का लाभ कमाने का आंकलन किया है। 20 सालों में श्रीकांत के साथ कार्य करने वाले कर्मचारियों की तादात 40 हो चुकी है।

श्रीकांत ने आधुनिक कृषि तकनीकों का किया उपयोग  

किसान श्रीकांत ने पिछले चार वर्षों में आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया और अपने खेतों में इन तकनीकों का उपयोग करने लगे। 

श्रीकांत ने अपने खेत में फूलों की खेती के लिए ग्रीन हाउस तैयार किया है। इस ग्रीन हाउस में उन्होंने उच्च कृषि तकनीकों को अपनाया और फूलों को अनुकूल वातावरण प्रदान किया। 

इस ग्रीन हाउस में श्रीकांत ने सिंचाई, उवर्रक का प्रयोग, घुलनशील उवर्रक, मिट्टी, कीटनाशक उपयोग और फूलों के विकास के नियमों का ख्याल रखा है। 

उन्होंने इस ग्रीन हाउस में फूलों के लिए सूर्य की रौशनी की भी व्यवस्था की हुई है। इसके अलावा उन्होंने कीट जाल भी बनाकर रखे हैं, ताकि कीटनाशक का कम से कम इस्तेमाल किया जा सके। 

श्रीकांत ने आधुनिक तकनीक को अपनाते हुए हवा की भी व्यवस्था की हुई है, जिससे फूलों को समुचित नमी प्राप्त हो सके। 

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

आज हम आपको गुरसिमरन सिंह नामक एक किसान की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं। बतादें, कि किसान गुरसिमरन ने अपने चार एकड़ के खेत में 20 से अधिक फलों का उत्पादन कर लोगों के समक्ष एक नजीर पेश की है। आज उनके फल विदेशों तक बेचे जा रहे हैं। पंजाब राज्य के मालेरकोटला जनपद के हटोआ गांव के युवा बागवान किसान गुरसिमरन सिंह अपनी समृद्ध सोच की वजह से जनपद के अन्य कृषकों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। यह युवा किसान गुरसिमरन सिंह अपनी दूरदर्शी सोच के चलते पंजाब के महान गुरुओं-पीरों की पवित्र व पावन भूमि का विस्तार कर रहे हैं। वह प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण के संरक्षण हेतु अथक व निरंतर कोशिशें कर रहे हैं। साथ ही, समस्त किसानों एवं आम लोगों को प्रकृति की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने हेतु संयुक्त कोशिशें भी कर रहे हैं।

किसान गुरसिमरन ने टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा किया हुआ है

बतादें, कि किसान गुरसिमरन सिंह ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा करने के पश्चात अपनी चार एकड़ की भूमि पर जैविक खेती के साथ-साथ विदेशी
फलों की खेती शुरु की थी। गुरसिमरन अपनी निजी नौकरी के साथ-साथ एक ही जगह पर एक ही मिट्टी से 20 प्रकार के विदेशी फल पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए थे। इससे उनको काफी ज्यादा आमदनी होने लगी थी। किसान गुरसिमरन सिंह के अनुसार, यदि इंसान के मन में कुछ हटकर करने की चाहत हो तो सब कुछ संभव होता है।

विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है

किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं

वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं। किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है। गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
अनार की खेती ने जेठाराम की तकदीर बदली, बड़े- बड़े बिजनेसमैन को पीछे छोड़ा

अनार की खेती ने जेठाराम की तकदीर बदली, बड़े- बड़े बिजनेसमैन को पीछे छोड़ा

किसान जेठाराम कोडेचा द्वारा उपजाए गए अनार की सप्लाई दिल्ली, अहमदाबाद, कलकत्ता, बेंगलुरु और मुंबई ही नहीं बल्कि बंग्लादेश में भी हो रही है। इससे वे साल में लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं। ज्यादातर लोगों का कहना है, कि खेती- किसानी में अब लाभ नहीं रहा। लागत की तुलना में आमदनी बहुत कम हो गई है। बहुत बार तो उचित भाव नहीं मिलने पर किसानों को हानि हो जाती है। परंतु, परिश्रम और नवीन तकनीक के माध्यम से खेती की जाए, तो यही धरती सोना उगलने लगती है। बस इसके लिए आपको थोड़ा धीरज रखना होगा। आज हम राजस्थान के एक ऐसे किसान के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने खेती से बड़े- बड़े व्यवसायियों को लोहा मनवा दिया है। वे खेती से ही लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।

अनार की खेती ने बदली जेठाराम की किस्मत

बतादें, कि हम बाड़मेर जिला स्थित भीमडा गांव निवासी जेठाराम कोडेचा के विषय में बात कर रहे हैं। पहले वे पांरपरिक फसलों की खेती करते थे, लेकिन इसमें उन्हें उतनी आमदनी नहीं होती थी। इसके उपरांत उन्होंने खेती करने का तरीका बदल दिया एवं बागवानी शुरू कर दी। वह वर्ष 2016 से अनार की खेती कर रहे हैं। इससे उनकी तकदीर चमक गई। उनके खेत में उगाए गए अनार की आपूर्ति महाराष्ट्र, कलकत्ता बांग्लादेश तक में हो रही है। 

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जेठाराम ने 15 लाख रुपये का लोन लेकर स्टार्टअप के रूप में अनार की खेती शुरू की थी

विशेष बात यह है, कि वर्ष 2016 में जेठाराम ने 15 लाख रुपये का लोन लेकर स्टार्टअप के रूप में अनार की खेती शुरू की थी। इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र के नाशिक से अनार की उन्नत किस्म के 4 हजार पौधे मंगवाए थे। इसके उपरांत कोडेचा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 

जेठाराम कोडेचा को इतनी आमदनी होती है

मुख्य बात यह है, कि जेठाराम कोडेचा पढ़े- लिखे नहीं है। वे अनपढ़ अंगूठा छाप किसान हैं। इसके होते हुए भी उन्होंने बड़े- बड़े बिजनेसमैन को खुद से पीछे छोड़ दिया है। वह अपने खेत में अनार की भगवा एवं सिंदूरी सरीखी उन्नत किस्मों की पैदावार कर रहे हैं। जेठाराम ने 45 बीघा भूमि में अनार की खेती कर रखी है। एक पौधे से 25 किलो अनार की पैदावार होती है। जेठाराम की मानें तो अनार की खेती चालू करने के एक साल के उपरांत से आमदनी होने लगी। अनार बेचकर दूसरे वर्ष उन्होंने 7 लाख रुपये की आमदनी की थी। इसी प्रकार तीसरे वर्ष 15 लाख, चौथे साल 25 लाख, पांचवें साल अनार से उन्हें 35 लाख रुपये की आमदनी हुई। वह कहते हैं, कि अभी तक अनार बेचकर वह 80 लाख रुपये की आमदनी कर चुके हैं।

सिंघाड़े की खेती से किसान वार्षिक लाखों की आमदनी कर रहा है

सिंघाड़े की खेती से किसान वार्षिक लाखों की आमदनी कर रहा है

आज हम आपको एक सफल सिंघाड़े किसान साहेब जी के बारे में। बतादें, कि किसान साहब पहले किराये की जमीन में प्याज, गेहूं और धान की खेती करते थे। परंतु, उन्हें उतना मुनाफा नहीं हो पा रहा था। बहुत बार तो उन्हें हानि भी उठाना पड़ा। ऐसी स्थिति में उन्होंने सिंघाड़े की खेती चालू कर दी। वर्तमान में वह लाखों में आमदनी कर रहे हैं। समयचक्र के साथ-साथ खेती करने का तरीका भी परिवर्तित हो गया है। अब किसानों के पास खेती करने के बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं। यदि एक फसल की खेती में नुकसान होता है, तो किसान अगले वर्ष से दूसरी फसल की खेती चालू कर देते हैं, जिससे पैदावार बढ़ने के साथ-साथ आमदनी भी बढ़ जाती है। आज हम एक ऐसे किसान के विषय में चर्चा करेंगे, जिन्हें प्याज की खेती में काफी घाटा हुआ तो उसने सिंघाड़े की खेती चालू कर दी। वर्तमान में ये सिंघाड़े की खेती से वर्ष भर में लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं, इससे इनकी संपूर्ण जनपद में चर्चा हो रही है।

धान और प्याज की खेती में हानि होने पर सिंघाड़े की खेती की

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसान साहेब उदयनी गांव जनपद पटना के निवासी हैं। साहेब जी पहले धान और प्याज की खेती किया करते थे। इससे उन्हें काफी अच्छा मुनाफा नहीं हो रहा था। लागत की तुलना उन्हें घाटा ही उठाना पड़ रहा था। ऐसी स्थिति में उन्होंने पारंपरिक फसलों की खेती छोड़ सिंघाड़े की खेती चालू कर दी, जिससे वह एक वर्ष में ही लखपति बन गए। विशेष बात यह है, कि वह 10 बीघा भूमि किराए पर लेकर सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। इससे उनको प्रति वर्ष 15 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। यह भी पढ़ें: इस राज्य में धान की खेती के लिए 80 फीसद अनुदान पर बीज मुहैय्या करा रही राज्य सरकार

सिंघाड़े की फसल को काफी समय में तैयार होती है

किसान साहेब का कहना है, कि सिंघाड़े की खेती करने से पूर्व उन्होंने इसकी बारीकियों को सीखा। उन्होंने बताया है, कि सिंघाड़े की फसल तैयार होने में अन्य फसलों की तुलना में ज्यादा समय लेती है। ऐसी स्थिति में इसकी खेती करने वाले किसान भाइयों को थोड़ा धैर्य के साथ कार्य करना पड़ेगा।

किसी फसल में हानि हो तो दूसरी फसल शुरू करदें

प्रगतिशील किसान साहेब अपने गांव में लगभग दो वर्ष से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। इनका कहना है, कि रबी सीजन के दौरान ये गेहूं एवं चना की भी खेती करते हैं। इससे भी उन्हें काफी मोटी आय हो जाती है। 55 वर्षीय साहेब जी ने बताया है, कि यदि आधुनिक विधि से खेती की जाए, तो आप कम खर्चे में अच्छी आमदनी कर सकते हैं। बस इसके लिए आपको थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। उनकी मानें तो यदि किसी एक फसल की खेती में बार-बार हानि हो रही है, तो किसान को तुरंत दूसरी फसल की खेती शुरू कर देनी चाहिए।
किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

किसान संजय सिंह आम की बागवानी करके वार्षिक 20 लाख की आय कर रहे हैं  

बिहार के इस किसान ने आम की बागवानी आरंभ कर अपनी तकदीर बदल दी है। आज वह तकरीबन 20 लाख रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं। बिहार के सहरसा के जनपद के निवासी किसान संजय सिंह ने पारंपरिक खेती को छोड़ आम की बागवानी चालू की। आज वह प्रति वर्ष लगभग 20 लाख से अधिक आम का टर्नओवर कर रहे हैं। इसके पहले संजय सब्जियों की खेती किया करते थे। परंतु, उनके एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने आम की बागवानी के विषय में सोचा और वह आज अपने क्षेत्र में लोगों के लिए एक मिशाल बन गए हैं।  

किसान संजय सिंह ने 20 बीघे में बागवानी शुरू की 

संजय जी ने अपनी विरासत की भूमि पर आम के पौधों को लगाने के विषय में विचार किया। उन्होंने जनपद के कृषि विभाग से आम की नवीन प्रजातियों की खरीदारी की एवं जैविक तरीके से इसकी बुआई की। संजय का कहना है, कि शुरु में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। परंतु, परिवार की सहायता से उन्हें काफी हौसला मिला। वहीं, आज उनकी सफलता की कहानी सबको पता है। वह विगत 8 वर्षों से आम की बागवानी कर रहे हैं। पारंपरिक खेती के मुकाबले में बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद होता है।  

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संजय सिंह की आर्थिक स्थिति में भी आया सुधार 

संजय सिंह का कहना है, कि आम की खेती से बेहतरीन आमदनी होने लगी। साथ ही, उनके घर की स्थिति भी अच्छी हो गई। पहले खेती से उनको कोई फायदा नहीं होता था। परंतु, अब वह काफी बेहतरीन आमदनी कर अपने परिवार की देख भाल कर रहे हैं। 

 

संजय सिंह प्रतिवर्ष लाखों की आय करते हैं 

किसान संजय सिंह का कहना है, कि उन्होंने शुरुआत में कुछ ही पेड़ों से आम का उत्पादन कर बेचना शुरु किया था। परंतु, मांग बढ़ने के उपरांत उन्होंने इसकी खेती बड़े पैमाने पर चालू की और इससे उनको आमदनी काफी ज्यादा होने लगी। वह इन आमों की बिक्री से प्रति वर्ष 20 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। संजय जी ने अपने खेतो में कुल 300 से ज्यादा आम के पेड़ लगा रखे हैं। आपको बतादें, एक आम के पौधे की कीमत 400 रुपये के आसपास थी। यह 5 से 6 वर्ष तक फल देने योग्य होता है।

किसान कुलविंदर परंपरागत खेती की बजाए खरबूजे की खेती शुरू कर बना मालामाल

किसान कुलविंदर परंपरागत खेती की बजाए खरबूजे की खेती शुरू कर बना मालामाल

पंजाब के इस किसान ने अपने घर की परंपरागत खेती छोड़कर खरबूज की खेती करना शुरू किया है। आज वह लोगों के लिए एक नजीर बन चुके हैं। 

पंजाब के मानसा जनपद के रहने वाले एस. कुलविंदर सिंह ने अपनी बीए की पढाई समाप्त करने के उपरांत खेती करने के बारे में सोचा। उन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़ खरबूजे की खेती चालू की और आज उनका खरबूजे का व्यवसाय एक बड़े पैमाने पर पहुंच गया है।

कृषि की तकनीक के विषय में जाना

आपको बतादें, कि शुरुआती दौर में कुलविंदर सिंह पारंपरिक फसलों का ही उत्पादन किया करते थे। परंतु, वक्त के साथ उन्होंने विगत 6-7 वर्षों से सब्जी की खेती की तरफ अपना रुख किया। 

इसके पश्चात उन्होंने खरबूजे की खेती आरंभ की। खरबूज की खेती के संबंध में बहुत सारी तकनीकी जानकारियां वह कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के विशेषज्ञों और प्रगतिशील किसानों के जरिए से लिया करते थे।

पारंपरिक फसलों के मुकाबले अधिक फायदा मिला

कुलविंदर ने सर्वप्रथम वर्ष 2021 में अपने एक एकड़ के खेत में खरबूजे की खेती आरंभ की। तरबूज की खेती की शुरुआत में उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 

इस फसल में कभी पीला धब्बा रोग तो कभी फल मक्खी का आकस्मिक आक्रमण हो जाता था। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद भी खरबूजे की खेती से उनको पारंपरिक फसलों के मुकाबले अधिक मुनाफा मिला। 

इस वजह से उन्होंने खरबूजे की खेती को सुचारू रखने का सोचा। प्रथम बार के कड़वे अनुभव के उपरांत उनको दूसरी बार बेहद अच्छी सफलता अर्जित हई।

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तरबूज और खरबूज की अगेती खेती के फायदे

कृषि विशेषज्ञों की सलाहनुसार ही किया उत्पादन

वह आज खरबूज की खेती आधा एकड़ से चालू कर अपने 17 एकड़ की कुल भूमि पर आधुनिक तकनीक अपनाकर खेती कर लोगों के सामने सफलता की एक कहानी रच दी। इ

सके चलते उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निर्मित पीएयू फल मक्खी जाल का उपयोग किया और पीले धब्बे की बीमारी को नियंत्रण के लिए प्रचंड सिंचाई से दूरी बनाई। 

वह वक्त-वक्त पर अपनी उपज को बेहतर करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों से सलाह भी लेते रहते हैं।

कुलविंदर खरबूज की खेती से मोटा मुनाफा उठा रहे हैं

कुलविंदर ने अपने गांव में खरबूजे की अच्छी मार्केटिंग के लिए समीपवर्ती गांवों के किसानों को भी खरबूजे की खेती करने के लिए बढ़ोत्तरी की। 

खरबूजे की खेती का रकबा अच्छा होने की वजह से व्यापारी सीधे उनके खेतों से फसल की खरीदारी करने लगे और सभी कृषकों को आमदनी भी अच्छी होने लगी। 

कुलविंदर के मुताबिक, आज वह खरबूजे की खेती से प्रति एकड़ 80 से 90 हजार रुपये की आमदनी कर रहे हैं।

सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

सेवानिवृत फौजी महज 8 कट्ठे में सब्जी उत्पादन कर प्रति माह लाखों की आय कर रहा है

राजेश कुमार का कहना है, कि उन्होंने वीएनआर सरिता प्रजाति के कद्दू की खेती की है। बुवाई करने के एक माह के उपरांत इसकी पैदावार शुरू हो गई। नौकरी से सेवानिवृत होने के उपरांत अधिकतर लोग विश्राम करना ज्यादा पसंद करते हैं। उनकी यही सोच रहती है, कि पेंशन के सहयोग से आगे की जिन्दगी आनंद और मस्ती में ही जी जाए। परंतु, बिहार में सेना के एक जवान ने रिटायरमेंट के उपरांत कमाल कर डाला है। उसने गांव में आकर हरी सब्जियों की खेती चालू कर दी है। इससे उसको पूर्व की तुलना में अधिक आमदनी हो रही है। वह वर्ष में सब्जी बेचकर लाखों रुपये की आमदनी कर रहे हैं। 

राजेश कुमार पूर्वी चम्पारण की इस जगह के निवासी हैं

सेवानिवृत फौजी पूर्वी चम्पारण जनपद के पिपरा कोठी प्रखंड मोजूद सूर्य पूर्व पंचायत के निवासी हैं। उनका नाम राजेश कुमार है, उन्होंने रिटायरमेंट लेने के पश्चात विश्राम करने की बजाए खेती करना पसंद किया। जब उन्होंने खेती आरंभ की तो गांव के लोगों ने उनका काफी मजाक उड़ाया। परंतु, राजेश ने इसकी परवाह नहीं की और अपने कार्य में लगे रहे। परंतु, जब मुनाफा होने लगा तो समस्त लोगों की बोलती बिल्कुल बंद हो गई। 

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कद्दू की बिक्री करने हेतु बाहर नहीं जाना पड़ता

विशेष बात यह है, कि राजेश कुमार को अपने उत्पाद की बिक्री करने के लिए बाजार में नहीं जाना पड़ता है। व्यापारी खेत से आकर ही सब्जियां खरीद लेते हैं। सीतामढ़ी, शिवहर, गोपालगंज और सीवान से व्यापारी राजेश कुमार से सब्जी खरीदने के लिए उनके गांव आते हैं। 

कद्दू की खेती ने किसान को बनाया मालामाल

किसान राजेश कुमार की मानें तो 8 कट्ठा भूमि में कद्दू की खेती करने पर 10 से 20 हजार रुपये की लागत आती थी। इस प्रकार उनका अंदाजा है, कि लागत काटकर इस माह वह 1.30 लाख रुपये का मुनाफा हांसिल कर लेंगे।

 

किसान राजेश ने 8 कट्ठे खेत में कद्दू का उत्पादन किया है

विशेष बात यह है, कि पूर्व में राजेश कुमार ने प्रयोग के रूप में पपीता की खेती चालू की थी। प्रथम वर्ष ही उन्होंने पपीता विक्रय करके साढ़े 12 लाख रुपये की आमदनी कर डाली। इसके पश्चात सभी लोगों का मुंह बिल्कुल बंद हो गया। मुनाफे से उत्साहित होकर उन्होंने आगामी वर्ष से केला एवं हरी सब्जियों की भी खेती शुरू कर दी। इस बार उन्होंने 8 कट्ठे भूमि में कद्दू की खेती चालू की है। वह 300 कद्दू प्रतिदिन बेच रहे हैं, जिससे उनको 4 से 5 हजार रुपये की आय अर्जित हो रही है। इस प्रकार वह महीने में डेढ़ लाख रुपये के आसपास आमदनी कर रहे हैं।

महिला किसान स्मारिका चंद्राकर ने MNC कंपनी से लाखों की नौकरी छोड़ खेती को चुना

महिला किसान स्मारिका चंद्राकर ने MNC कंपनी से लाखों की नौकरी छोड़ खेती को चुना

आज हम मेरीखेती के इस लेख में आपको एक सफल महिला किसान स्मारिका चंद्राकर के विषय में बताऐंगे। बतादें, कि महिला किसान के कृषि फार्म में 19 एकड़ में बैंगन और टमाटर लगा हुआ है। हालाँकि, इससे पूर्व उसी खेत में अन्य बागवानी फसलें जैसे कि खीरा, करेला और लौकी लगा हुआ था। दरअसल, स्मारिका का बचपन गांव में बीता है, इसके बाद वह पढ़ाई करने के लिए पुणे चली गई हैं। परंतु, वह पुनः गांव में ही आकर बस गई। अब वह आत्मनिर्भर किसान है। कृषि वर्तमान में एक व्यवसाय भी बन गया है। नवीनतम एवं उन्नत तकनीकों के आने से पूर्व की तुलना में फल, सब्जी और अनाजों का उत्पादन भी गढ़ गया है। इससे किसानों की आय काफी बढ़ गई है। यही कारण है, कि अब पढ़े- लिखे युवा भी लाखों रुपये महीने की नौकरी छोड़ कर खेती- किसानी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। परंतु, आज हम एक ऐसी युवती के विषय में जानकारी देंगे, जो नौकरी छोड़ने के उपरांत खेती से करोड़पति बन गई। वर्तमान में अन्य दूसरे लोग भी युवती से खेती करने की बारीकी सीख रहे हैं।

स्मारिका चंद्राकर मूलतयः कहाँ की रहने वाली है

दरअसल, हम जिस युवती के विषय में चर्चा कर रहे हैं, उसका नाम स्मारिका चंद्राकर है। वह छत्तीसगढ़ के धमतरी जनपद स्थित कुरुद प्रखंड के चरमुड़िया गांव की मूल निवासी हैं। स्मारिका चंद्राकर ने पुणे महाराष्ट्र से एमबीए पास है। साथ ही, उसने कम्प्यूटर साइंस में बीई भी कर रखी है। पहले वह मल्टीनेशनल कंपनी में 15 लाख रुपए के वार्षिक पैकेज पर नौकरी किया करती थी। बतादें, कि सबकुछ अच्छा चल रहा था। इसी दौरान उसके पिताजी की तबीयत खराब हो गई। यही स्मारिका चंद्राकर के लिए टर्निंग प्वांइट साबित हुआ।

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स्मारिका चंद्राकर बागवानी से जबरदस्त उत्पादन प्राप्त कर रही हैं

स्मारिका चंद्राकर का कहना है, कि उसके पिता के पास गांव में काफी ज्यादा भूमि है। उन्होंने वर्ष 2020 में 23 एकड़ भूमि पर सब्जी की खेती चालू की थी। परंतु, स्वास्थ्य खराब होने के चलते वे बेहतर ढ़ंग से खेती नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में स्मारिका चंद्राकर ने नौकरी छोड़ गांव आकर अपने पिता के साथ खेती में सहयोग करना शुरू कर दिया। उसके बाद देखते ही देखते वह वैज्ञानिक ढ़ंग से अपने समस्त भू-भाग पर खेती शुरू कर दी। उसने मृदा की गुणवत्ता के मुताबिक ही फसल का चुनाव भी किया। इससे उन्हें जबरदस्त उत्पादन प्राप्त होने लगा।

स्मारिका चंद्राकर की सब्जियों की सप्लाई कई राज्यों में होती है

बतादें, कि स्मारिका चंद्राकर ने कुछ रुपये खर्च कर अपने खेत को आधुनिक कृषि फार्म बना दिया। इसका लाभ यह हुआ कि अब स्मारिका चंद्राकर के धारा कृषि फार्म से प्रतिदिन 12 टन टमाटर और 8 टन बैंगन की पैदावार हो रही है। स्मारिका का वार्षिक टर्नओवर एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। मुख्य बात यह है, कि स्मारिका न केवल खेती से आमदनी कर रही है, बल्कि 150 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कर रखा है। स्मारिका के खेत में उगाए गए बैंगन और टमाटर की आपूर्ति उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में भी होती है।
बिहार के इस किसान ने मधु उत्पादन से शानदार कमाई कर ड़ाली है

बिहार के इस किसान ने मधु उत्पादन से शानदार कमाई कर ड़ाली है

बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जनपद के मूल निवासी किसान आत्मानंद सिंह मधुमक्खी पालन के जरिए वार्षिक लाखों रुपये का मुनाफा उठा रहे हैं। उन्होंंने बताया कि मधुमक्खी पालन उनका खानदानी पेशा है। उनके दादा ने इस व्यवसाय की नीम रखी थी, जिसके पश्चात उनके पिता ने इस व्यवसाय में प्रवेश किया और आज वह इस व्यवसाय को काफी सफल तरीके से चला रहे हैं।

कुछ ही दिन पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने देश के किसानों को खेती के नए तरीके सीखने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि खेती में कुछ नया करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। उनकी यह बात बिहार के एक किसान पर पूर्णतय सटीक बैठती है। उन्होंने फसलों की अपेक्षा मधुमक्खी पालन को आमदनी का जरिया बनाया और आज वे वार्षिक लाखों का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं, बिहार के किसान आत्मानंद सिंह की जो कि मुजफ्फरपुर जनपद के गौशाली गांव के निवासी हैं। वह एक मधुमक्खी पालक हैं और इसी के माध्यम से अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। अगर शिक्षा की बात करें तो उन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है। 

मधु उत्पादक किसान आत्मानंद के पास मधुमक्खी के कितने बक्से हैं ?

उन्होंने बताया कि मधु उत्पादन के क्षेत्र में अपने काम और योगदान के लिए उन्हें बहुत सारे पुरस्कार भी हांसिल हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो वार्षिक उनके पास 1200 बक्से तक हो जाते हैं। परंतु, वर्तमान में उनके पास 900 ही बक्से हैं। उन्होंने बताया कि इस बार मानसून और मौसम की बेरुखी के चलते मधुमक्खियों को भारी हानि हुई है। इस वजह से इस बार उनके पास केवल 900 डिब्बे ही बचे हैं। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन एक सीजनल व्यवसाय है, जिसमें मधुमक्खी के बक्सों की कीमत बढ़ती है। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन के इस व्यवसाय को चालू करने में किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की। उन्होंने स्वयं ही इस व्यवसाय को खड़ा किया और आज बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।

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किसान आत्मानंद वार्षिक कितना मुनाफा कमा रहा है 

उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन की वार्षिक लागत बहुत सारी चीजों पर निर्भर करती है। वैसे तो इसमें वन टाइम इन्वेस्टमेंट होती है, जो शुरुआती वक्त में मधुमक्खियों के बॉक्स पर आती है। इसके अतिरिक्त लागत में मेंटेनेंस और लेबर कॉस्ट भी शम्मिलित होती है। उन्होंने बताया कि ये सब बाजार पर निर्भर करता है। मधुमक्खियों के बॉक्स की कीमत सीजन के अनुरूप बढ़ती घटती रहती हैं। इसी प्रकार वर्षभर विभिन्न तरह की चीजों को मिलाकर उनकी लागत 15 लाख रुपये तक पहुँच जाती है। वहीं, उनकी वार्षिक आमदनी 40 लाख रुपये के करीब है, जिससे उन्हें 10-15 लाख रुपये तक का मुनाफा प्राप्त हो जाता है।

इस तकनीक से शिमला मिर्च की खेती कर किसान कमा रहा लाखों का मुनाफा

इस तकनीक से शिमला मिर्च की खेती कर किसान कमा रहा लाखों का मुनाफा

खेती-किसानी के तौर तरीकों में समय के साथ-साथ बदलाव आया है। किसान अपनी फसलों का उत्पादन पॉली हाउस जैसी उन्नत तकनीकों के जरिए कर रहे हैं। 

दरअसल, पॉली हाउस आधुनिकता से भरी एक उन्नत तकनीक है। इस तकनीक के जरिए खेती करने से फसल पर मौसम का प्रभाव भी नहीं पड़ता है। साथ ही, किसानों की भी तगड़ी कमाई होती है।

यदि आप भी परम्परागत खेती कर के ऊब चुके हैं और चाहते हैं कुछ नया करना तो आज का यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। 

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किसान भाई अब परंपरागत खेती की वजाय लाल-पीली शिमला मिर्च उगा रहे हैं। इससे उनको साल में लाखों का मुनाफा भी हांसिल हो रहा है।

खेती करने से पहले मृदा एवं जल की जाँच 

आजकल आधुनिकता के बढ़ते अब खेती की तकनीक भी बदल रही हैं। किसान भाई खेती करने के लिए नई तकनीकों को इस्तेमाल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक किसान पॉली हाउस में शिमला मिर्च की जैविक खेती कर तगड़ा मुनाफा प्राप्त कर रहा है।

हाथरस जनपद के गांव नगला मोतीराय के मूल निवासी सेवानिवृत शिक्षक श्याम सुंदर शर्मा और उनके बेटे अमित शर्मा ने लगभग 6 साल पहले पॉली हाउस लगाकर रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती शुरू की थी। रंग बिरंगी शिमला मिर्च की खेती शुरू करने से पहले उन्होंने खेत की मिट्टी-पानी आदि की जांच कराई। 

किसान कैसे कमा रहा अच्छा मुनाफा   

श्याम सुंदर शर्मा ने बताया है, कि फसल को कीट और रोग मुक्त करने के लिए भी जैविक तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। आम शिमला मिर्च के मुकाबले रंग-बिरंगी शिमला मिर्च बाजार में अच्छे रेटों पर बिकती है। 

उन्होंने आगे बताते हुए कहा, कि उनका ये पॉली हाउस एक एकड़ में फैला हुआ है। रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती से वह साल भर में लगभग 12 से 14 लाख रुपये की आमदनी कर लेते हैं।

वहीं, पिता की खेती में मदद कर रहे श्याम सुंदर शर्मा के पुत्र अमित शर्मा बताते हैं, कि ये काम मन को तसल्ली देने वाला है। लाल-पीली शिमला मिर्च का मार्केट आगरा और दिल्ली में है। 

गाड़ी लोड होकर मंडी पहुंच जाती है और पैसा आ जाता है। वह अन्य किसानों को भी पॉली हाउस लगाकर रंग-बिरंगी शिमला मिर्च की खेती करने की सलाह देते हैं।