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किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

जैविक खेती से कैंसर दिल और दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी सहायता मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में बहार ला सकता है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग मतलब जैविक खेती को पर्यावरण का संरक्षक माना जाता है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी ज्यादा जागरुकता पैदा हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग खाने पीने में रासायनिक खाद्य से उगाई सब्जी के स्थान पर जैविक खेती से उगाई सब्जियों को प्राथमिकता दे रहा है।

बीते 4 वर्षों में दो गुना से ज्यादा उत्पादन हुआ है

भारत में विगत चार वर्षों से जैविक खेती का क्षेत्रफल यानी रकबा बढ़ रहा है और दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। 2019-20 में रकबा 29.41 लाख हेक्टेयर था, 2020-21 में यह बढ़कर 38.19 लाख हेक्टेयर हो गया और पिछले साल 2021-22 में यह 59.12 लाख हेक्टेयर था।

कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में बेहद सहायक

प्राकृतिक कीटनाशकों पर आधारित जैविक खेती से कैंसर और दिल दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में शानदार बहार ला सकता है।

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भारत की धाक संपूर्ण वैश्विक बाजार में है 

जैविक खेती के वैश्विक बाजार में भारत तेजी से अपनी धाक जमा रहा है। इतनी ज्यादा मांग है कि सप्लाई पूरी नहीं हो पाती है। आने वाले वर्षों में जैविक खेती के क्षेत्र में निश्चित तौर पर काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। सभी लोग अपने स्वास्थ को लेकर जागरुक हो रहे हैं। 

जैविक खेती इस प्रकार शुरु करें 

सामान्य तौर पर लोग सवाल पूछते हैं, कि जैविक खेती कैसे आरंभ करें ? जैविक खेती के लिए सबसे पहले आप जहां खेती करना चाहते हैं। वहां की मिट्टी को समझें। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले किसान इसका प्रशिक्षण लेकर शुरुआत करें तो चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है। किसान को बाजार की डिमांड को समझते हुए फसल का चयन करना है, कि वह कौन सी फसल उगाए। इसके लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों से मशवरा और राय अवश्य ले लें।

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

आज हम आपको गुरसिमरन सिंह नामक एक किसान की सफलता की कहानी बताने जा रहे हैं। बतादें, कि किसान गुरसिमरन ने अपने चार एकड़ के खेत में 20 से अधिक फलों का उत्पादन कर लोगों के समक्ष एक नजीर पेश की है। आज उनके फल विदेशों तक बेचे जा रहे हैं। पंजाब राज्य के मालेरकोटला जनपद के हटोआ गांव के युवा बागवान किसान गुरसिमरन सिंह अपनी समृद्ध सोच की वजह से जनपद के अन्य कृषकों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत बन चुके हैं। यह युवा किसान गुरसिमरन सिंह अपनी दूरदर्शी सोच के चलते पंजाब के महान गुरुओं-पीरों की पवित्र व पावन भूमि का विस्तार कर रहे हैं। वह प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण के संरक्षण हेतु अथक व निरंतर कोशिशें कर रहे हैं। साथ ही, समस्त किसानों एवं आम लोगों को प्रकृति की नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के तौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बचाने हेतु संयुक्त कोशिशें भी कर रहे हैं।

किसान गुरसिमरन ने टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा किया हुआ है

बतादें, कि किसान गुरसिमरन सिंह ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से टिश्यू कल्चर में डिप्लोमा करने के पश्चात अपनी चार एकड़ की भूमि पर जैविक खेती के साथ-साथ विदेशी
फलों की खेती शुरु की थी। गुरसिमरन अपनी निजी नौकरी के साथ-साथ एक ही जगह पर एक ही मिट्टी से 20 प्रकार के विदेशी फल पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के फलों के पेड़ लगाए थे। इससे उनको काफी ज्यादा आमदनी होने लगी थी। किसान गुरसिमरन सिंह के अनुसार, यदि इंसान के मन में कुछ हटकर करने की चाहत हो तो सब कुछ संभव होता है।

विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है

किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं

वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं। किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है। गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

किसान भाई बिना गाय-भैंस पालन के डेयरी से संबंधित व्यवसाय चालू कर सकते हैं। इस व्यवसाय में आपको काफी अच्छा मुनाफा होगा। अगर आप भी कम पैसे लगाकर बेहतरीन मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो यह समाचार आपके बड़े काम का है। आज हम आपको एक ऐसे कारोबार के विषय में जानकारी देंगे, जिसमें आपकी मोटी कमाई होगी। परंतु, इसके लिए आपको परिश्रम भी करना होगा। भारत में करोड़ो रुपये का डेयरी व्यवसाय है। यदि आप नौकरी छोड़कर व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, हम अगर नजर डालें तो डेयरी क्षेत्र में विभिन्न तरह के व्यवसाय होते हैं। इसमें आप डेयरी प्रोडक्ट का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या गाय-भैंस पालकर दूध सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। परंतु, आप गाय-भैंस नहीं पालना चाहते हैं और डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो भी आपके लिए अवसर है। आप मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं।

दूध कलेक्शन की विधि

बहुत सारे गांवों के पशुपालकों से दूध कंपनी पहले दूध लेती है। ये दूध भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित होकर कंपनियों के प्लांट तक पहुंचता है। वहां इस पर काम किया जाता है, जिसमें पहले गांव के स्तर पर दूध जुटाया जाता है। फिर एक स्थान से दूसरे शहर या प्लांट में भेजा जाता है। ऐसे में आप दूध कलेक्शन को खोल सकते हैं। कलेक्शन सेंटर गांव से दूध इकट्ठा करता है और फिर इसको प्लांट तक भेजता है। विभिन्न स्थानों पर लोग स्वयं दूध देने आते हैं। वहीं बहुत सारे कलेक्शन सेंटर स्वयं पशुपालकों से दूध लेते हैं। ऐसे में आपको दूध के फैट की जांच-परख करनी होती है। इसे अलग कंटेनर में भण्डारित करना होता है। फिर इसे दूध कंपनी को भेजना होता है।

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कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाती है

दूध के भाव इसमें उपस्थित फैट और एसएनएफ के आधार पर निर्धारित होते हैं। कोऑपरेटिव दूध का मूल्य 6.5 प्रतिशत फैट और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ से निर्धारित होता है। इसके उपरांत जितनी मात्रा में फैट कम होता है, उसी तरह कीमत भी घटती है।

सेंटर की शुरुआत इस प्रकार से करें

सेंटर खोलने के लिए आपको ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है। सबसे पहले आप दूध कंपनी से संपर्क करें। इसके पश्चात दूध इकट्ठा कर के उन्हें देना होता है। बतादें, कि यह कार्य सहकारी संघ की ओर से किया जाता है। इसमें कुछ लोग मिलकर एक समिति गठित करते हैं। फिर कुछ गांवों पर एक कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। कंपनी की ओर से इसके लिए धनराशि भी दी जाती है।
4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

छोटी सी जगह पर शुरू की जाने वाली मशरूम की खेती किसानों के लिए काफी अच्छा मुनाफा लाती है. इस काम को शुरू करने के लिए बेहद कम लागत लगती है. मशरूम को पोषण का अच्छा और सरल जरिया भी माना जाता है. मशरूम के अच्छे उत्पादन के लिए केंद्र सरकार भी अच्छी पहल शुरू करने जा रही है. इम्यूनिटी स्ट्रांग करने के लिए मशरूम काफी फायदेमंद होता है.पोषण से भरपूर मशरूम की खेती किसानों के लिए मात्र एक ऐसा संसाधन है, जिसकी वजह से किसानों को अच्छा खासा मुनाफा होता है. 

हालांकि बाजार में मशरूम की काफी ज्यादा डिमांड बढ़ चुकी है. मशरूम की खेती करने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती. आप चाहें तो अपने घर की किसी खाली जगह पर मशरूम को आराम से उगा सकते हैं. वहीं ग्रामीण महिलाओं की बात की जाए तो, उनके लिए भी मशरूम की खेती करने आय बढ़ाने में मददगार हो सकती हैं. जहां घर पर ही रहकर महिलाएं व्यापक स्तर पर मशरूम को उगाकर आय का जरिया बना सकती हैंअब मत दीजियेगा. या फिर दीजियेगा तो शाम तक दे सकती हैं. वहीं हमारे किसान भाई भी मशरूम की खेती छोटे स्तर से शुरू करके साइड इनकम कर सकते हैं. जिसे लेकर कृषि विज्ञान केंद्र भी मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने की तैयारी में है.

4 मार्च से शुरू हो रहा प्रशिक्षण

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर में मशरूम के अच्छे उत्पादन के विषय पर युवाओं के लिए प्रिशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है. 25 दिनों तक चलने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत 4 मार्च से की जा रही है.

इन चीजों की पड़ेगी जरुरत

कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर जीआर अम्बावतीया के मुताबिक जो भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना चाहते हैं, वो प्रतिभागी अपने साथ आधार कार्ड और अपनी 10वीं की मार्कशीट और पासपोर्ट साइज़ की फोटो के साथ अपना रजिस्ट्रेशन कृषि विज्ञान केंद्र गिरवर शाजापुर में करवा सकते हैं.  इसके अलावा प्रतिभागियों का चयन पहले आयें पहले पायें की नीति पर किया जाएगा. इस सम्बन्ध में कृषि विज्ञान केंद्र की कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गायत्री वर्मा से किया जा सकता है. जिनका मोबाइल नंबर 9575036055 है. 

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मशरूम के व्यापार में लाभ

कुचल प्रशिक्षण के बाद अगर आप मशरूम का उत्पादन करते हैं, तो बता दें कि, पूरी दुनिया में मशरूम के व्यापार में हर साल 12.9 फीसद की बढ़ोतरी हो रही है. मशरूम के व्यापार में सरकारी मदद भी मिलती है. जिसके लिए आपको व्यावसायिक प्रस्ताव बनाकर सरकारी कार्यालय में जमा करना होता है. इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और बैंक खाते से जुड़ी जानकारी को साझा करना होता है. मशरूम के उत्पादन में व्यावसायिक प्रशिक्षण छोटे किसानों को मशरूम की खेती के गुण भी सिखाते हैं, जो बिलकुल फ्री होते हैं. इसके लिए सरकार ने कई प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे हैं. जहां मशरूम उगाने से लेकर सभी तरह की तकनीक के बारे में जानकारी दी जाती है.

इस किसान ने ग्रामीण किसानों के साथ मिलकर गांव को बना दिया केले का केंद्र

इस किसान ने ग्रामीण किसानों के साथ मिलकर गांव को बना दिया केले का केंद्र

आजकल बहुत सारे पढ़े लिखे नौजवान खेती किसानी की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। युवा किसान अभिषेक आनंद वैज्ञानिक पद्धति के जरिए केला का उत्पादन करके अन्य युवाओं को प्रेरित करने वाली एक अच्छी मिसाल बन चुके हैं। उन्होंने अपने किसान भाइयों के साथ सामंजस्य के साथ सीतामढ़ी को मेजरगंज केले के हब के तौर पर प्रसिद्ध किया है। आपको बतादें कि किसान पूर्व में अपना जीवनयापन करने के लिए केवल खेती-किसानी तक ही रह जाते थे। परंतु, वर्तमान में कृषकों की आमदनी को दोगुना करने हेतु उन्हें कृषि व्यवसाय के साथ जोड़ा जा रहा है। कृषि व्यवसाय के जरिए किसान भाइयों को अपनी फसल का समुचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिल रही है। अब आगे जिस तरह से कृषि व्यवसाय का विस्तार हो रहा है, इसके चलते गांव में भी रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। इससे कृषकों की आर्थिक क्षमता सुद्रण हुई है। साथ ही, ग्रामीण लोगों की आजीविका में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में फिलहाल किसान खेती करने के साथ कृषि व्यवसाय मॉडल अपना रहे हैं। इसी कड़ी में अभिषेक आनंद भी किसानों में शम्मिलित हैं। बिहार राज्य के अभिषेक आनंद, जिन्होंने अपने गांव के बाकी किसानों के साथ मिलकर केला की वैज्ञानिक खेती की है। बेहतरीन आमदनी हेतु खेत पर ही प्रोसेसिंग इकाई स्थापित की है। साथ ही, केला चिप्स के कृषि व्यवसाय से बेहतरीन आमदनी अर्जित कर रहे हैं। इन्होंने खुद के उत्पाद की अच्छी खासी ब्रांडिंग भी करवाई है, जिससे विपणन में भी खूब सहायता प्राप्त हो रही है। वर्तमान में अभिषेक आनंद के खेत पर उत्पादित होने वाले केले से निर्मित चिप्स देशभर में प्रशिद्ध हो रही हैं।

वैज्ञानिक खेती के जरिए बढ़ी केले की उत्पादकता

अभिषेक आनंद द्वारा बीते थोड़े समय पूर्व ही टिशू कल्चर तकनीक के जरिए केला की जी-9 किस्म की बागवानी चालू की थी। अच्छे अवसरों की खोज में केला चिप्स निर्मित करने की प्रोसेसिंग इकाई भी स्थापित की गई। अपनी इन कोशिशों को लेकर अभिषेक आनंद ने बताया है, कि केला की अच्छी पैदावार देने वाली तकनीकों की जानकारी हेतु उन्होंने निजी जनपद सीतामणी मौजूद उद्यान विभाग के कार्यालय में संपर्क साधा। बतादें, कि यहां पर अभिषेक आनंद को सरकार की तरफ से जारी विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी गई। बतादें, कि अभिषेक आनंद स्वयं भी कृषि स्नातक हैं, इस वजह से उनको केला की बागवानी से करने में अधिक कठिनाई नहीं हुई।

अभिषेक आनंद ने कोरोना महामारी के समय बागवानी करनी चालू की थी

अभिषेक आनंद ने अपनी ग्रेजुएशन खत्म करने के उपरांत निज गांव सीतामणी के मेजरगंज पहुँच गए। कोरोना महामारी के दौरान अभिषेक आनंद के पास काफी वक्त था, परंतु उनको यह समझ नहीं आ रहा था, कि खेती के ज्ञान का समुचित उपयोग रचनात्मक रूप से कहां किया जाए। ये भी पढ़े: इस तरह लगाएं केला की बागवानी, बढ़ेगी पैदावार कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही सर्वाधिक सक्रिय था, इस वजह से उन्होंने केला की बागवानी करने का मन बनाया। जब वह कृषि विभाग के कार्यालय सहायता हेतु पहुंचे तब वहां उनको केला की आधुनिक कृषि की तकनीकों की जानकारी प्राप्त हुई। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में आवेदन करने पर ड्रिप सिंचाई के लिए 90 प्रतिशत अनुदान प्राप्त हो गया। साथ ही, मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के अंतर्गत आवेदन करने पर केला की बागवानी करने हेतु जी-9 किस्त केला की पौध सामग्री भी प्राप्त हो गई। इसके साथ कृषि निदेशालय, बिहार सरकार की तरफ से फल की तुड़ाई एवं इसके प्रबंधन हेतु 90 फीसद अनुदान पर प्लास्टिक कैरेट का भी फायदा मिल गया है।

यहां का केला विदेशों तक पहुँच रहा है

युवा किसान अभिषेक आनंद की कोशिशों का परिणाम यह रहा है, कि बिहार राज्य के सीतामढ़ी के अतिरिक्त फिलहाल नेपाल एवं ढ़ाका तक केला की जी-9 किस्म की मांग बढ़ चुकी है। वर्तमान में अभिषेक आनंद केला की बागवानी सहित इसकी प्रोसेसिंग भी कर रहे हैं। केला चिप्स की प्रोसेसिंग इकाई हेतु अभिषेक आनंद को बिहार सरकार की तरफ से 25% प्रतिशत अनुदान समेत 11 लाख रुपये का कर्जा भी प्राप्त हो गया था। अभिषेक आनंद बताते हैं, कि आज उनके साथ लोकल स्तर पर 8-10 किसान जुड़े हुए हैं, जिसमें 5 युवा किसान शम्मिलित हैं। यह सब मिलकर 7 एकड़ भूमि पर केला की वैज्ञानिक तकनीक के माध्यम से बागवानी करके अच्छी खासी आय अर्जित कर ले रहे हैं।
यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

यूपी के इस जिले की हींग को मिला जीआई टैग किसानों में दौड़ी खुशी की लहर

भारतीय मसालों का स्वाद देश ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। भारत के विभिन्न प्रकार के मसालों को विदेश में भी अत्यंत पसंद किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय मसालों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं की एक अनोखी पहचान स्थापित की हुई है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हींग जिसको हम सभी अपने भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं। हींग को हम भारतीय व्यंजनों में स्वाद को बढ़ाने के लिए उपयोग करने वाला सर्वोत्तम मसाला भी मानते हैं। अपने अनोखे स्वाद और गुणवत्ता की वजह से हींग को वर्तमान में केवल भारतीय मसालों में ही सम्मिलित नहीं किया गया है, इसने विदेशी बाजार के अंदर भी अपनी एक हटकर पहचान स्थापित की है। बतादें, कि उत्तर प्रदेश के एक जिला एक उत्पाद में शम्मिलित हाथरस की हींग को भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग प्रदान किया गया है। इसके उपरांत से ही देश-दुनिया के बाजारों में भारतीय हींग की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है।

रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे

मीड़िया द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुरूप, विश्व स्तर पर हींग को पहचान हाँसिल होने के उपरांत यह अंदाजा लगाया जा रहा है, कि भारत के बहुत से युवाओं के लिए रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न होंगे। साथ-साथ लोगों की आर्थिक परिस्तिथियों में भी सुधार देखने को मिलेगा। बतादें, कि उत्तर प्रदेश की हाथरस हींग को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत भारतीय व्यापारियों को विदेशों में अपने व्यवसाय को विस्तृत करने में काफी सुगमता रहेगी। अगर हम नजर ड़ालें तो विदेशों में केवल हींग ही नहीं हाथरस की नमकीन, रंग, गुलाल एवं गारमेंट्स आदि भी काफी प्रसिद्ध हैं। यह भी पढ़ें: जानें मसालों से संबंधित योजनाओं के बारे में जिनसे मिलता है पैसा और प्रशिक्षण

जीआई टैग होता क्या है

जीआई टैग का पूरा नाम जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग होता है, यह किसी स्थान विशेष की पहचान होता है। सामान्यतः जीआई टैग किसी भी स्थान विशेष के उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान प्रदान करता है। रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट-1999 के अंतर्गत भारतीय संसद में जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स जारी किया गया था। यह किसी प्रदेश को किसी विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में मिलने वाली वस्तुओं हेतु विशिष्ट वस्तु का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। ऐसी परिस्थितियों में उस विशेष इलाके के अतिरिक्त उस उत्पाद की पैदावार नहीं की जा सकती है।

जी आई टैग की आवेदन प्रक्रिया

जीआई टैग के लिए कंट्रोलर जनरल ऑफ पेरेंट्स, डिजाइंस एंड ट्रेड मार्क्स के कार्यालय में आवेदन किया जा सकता है। चेन्नई में इसका मुख्य कार्यालय मौजूद है। यह संस्था आवेदन के पश्चात इस बात की जाँच पड़ताल करती है, कि यह बात कितनी ठीक है। इसके उपरांत ही जीआई टैग प्रदान किया जाता है।
फोर्स मोटर्स ने अपने कृषि ट्रैक्टर कारोबार को बंद किया

फोर्स मोटर्स ने अपने कृषि ट्रैक्टर कारोबार को बंद किया

ऑटोमोबाइल्स क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखने वाली Force Motors अपने एग्रीकल्चर ट्रैक्टर और इससे जुड़े कारोबार को बंद करने की घोषणा कर दी है। कंपनी ने 31 मार्च (रविवार) को ट्रैक्टर कारोबार को पूर्ण रूप से बंद कर दिया है। 

कंपनी का कहना है, कि वो सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत ट्रैक्टर और इससे जुड़े कारोबार को बंद कर रही है। इसके बाद कंपनी अपने कोर सेगमेंट के कारोबार पर ज्यादा जोर देगी।

फ़ोर्स मोटर्स का कहना है, कि प्रोडक्ट रेशनलाइजेशन प्रोग्राम के तहत केवल Share Mobility Transporation, Last Mile Mobility, गुड्स एंड ट्रांसपोर्टेशन जैसे कोर सेगमेंट पर ध्यान केंद्रित करेगी। 

ये कंपनी प्रीमियम लग्जरी OEM और सिविल और डिफेंस में इस्तेमाल होने वाले स्पेशल व्हीकल बनाने का भी कार्य करती है। परंतु, अब कंपनी अपने ट्रैक्टर कारोबार से पूर्णतय बाहर निकल रही है।

फोर्स मोटर्स का समकुल कारोबार कितना है ?

फ़ोर्स मोटर्स ने एक्सचेंज फाइलिंग में कहा कि उनकी कंपनी मल्टी-सीटर पैसेंजर वाहन और Gurkha SUV बनाने के लिए पहचानी जाती है। इसके अलावा भारत में BMW और मर्सीडीज जैसी लग्जरी कंपनियों के लिए इंजन भी बनाती है।

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व्यावसायिक वर्ष 2023 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, Force Motors की कमाई का लगभग 48% भाग वाहन की बिक्री से आता है। वहीं, 36% फीसद हिस्सा कॉन्ट्रैक्ट इंजन मैन्युफैक्चरिंग से आता है।

31 मार्च 2024 तक ट्रैक्टर बिक्री से इस कंपनी की कुल आय ₹182.53 करोड़ रही, जोकि कंपनी की कुल आय में करीब 3.6% ही है। ट्रैक्टर कारोबार से जुड़े कुल एसेट्स की कीमत तकरीबन ₹12.29 करोड़ है। 

ट्रैक्टर बिक्री आंकड़ों पर दबाव की वजह क्या है ? 

फोर्स मोटर्स की तरफ से ट्रैक्टर कारोबार बंद करने का यह निर्णय एक ऐसे वक्त पर आया है। जब ट्रैक्टर बिक्री के आंकड़ों पर दबाव देखने को मिल रहा है। 

भारत की सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी Mahinda & Mahindra ने पिछले माह ही कारोबारी साल 2024 में घरेलू बाजार में ट्रैक्टर के बिक्री अनुमान में कटौती की थी। 

कंपनी ने इसके पीछे वजह बताते हुए कहा कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में फिलहाल कमजोरी की वजह से ट्रैक्टर बिक्री आंकड़ों पर दबाव देखने को मिल रहा है।