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पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार करीब 500 करोड़ के निजी निवेश पर आधारित पांच बायोगैस प्रोजेक्टों को शीघ्र शुरू करने जा रही है। इनमें धान की पराली से बायोगैस एवं खाद बनाई जाएगी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डा. राज कुमार वेरका और पेडा के चेयरमैन एच.एस. हंसपाल की मौजुदगी में राज्य के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभाग की पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पेडा) ने मैसर्ज एवरएनवायरो रिसोर्स मैनेजमेंट प्राईवेट लिमटिड, मुंबई के साथ राज्य में धान की पराली पर आधारित पाँच बायोगैस प्रोजैक्टों के लिए हस्ताक्षर करके समझौता किया।

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इस मौके पर पेडा के सी.ई.ओ रंधावा ने बताया कि यह प्रोजैक्ट जगराओं, मोगा, धूरी, पातड़ां और फिलौर तहसीलों में स्थापित किये जाएंगे। यह कंपनी लगभग 500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से इन प्रोजेक्टों की स्थापना करेगी। इन प्रोजेक्टों का कुल उत्पादन 222000 घन मीटर रा बायो गैस प्रति दिन है जिसको शुद्ध किया जायेगा जिससे प्रति दिन 92 टन बायो सीएनजी /सीबीजी प्राप्त की जा सके। इन प्रोजेक्टों में उप-उत्पाद के तौर पर जैविक खाद भी तैयार की जायेगी जो खेती ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाएगी और रासायनिक खाद के प्रयोग को भी बदलेगी। 

यह प्रोजैक्ट दिसंबर, 2023 तक या इससे पहले बायो सीएनजी का व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देंगे। यह प्रोजैक्ट लगभग 7000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार प्रदान करेंगे। इन प्रोजैक्टों के चालू होने पर लगभग 3.5 लाख टन सालाना धान की पराली खपत होगी। इस तरह राज्य के किसानों को अपने खेतों में इन प्रोजैक्टों के लिए खेती के अवशेष की बिक्री से भी लाभ होगा और पराली जलाने की समस्या से भी काफ़ी निजात मिलेगी।

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सी.ई.ओ. ने आगे बताया कि पेडा ने राज्य में कुल 263 टन प्रति दिन सामर्थ्य वाले 23 ऐसे बायो सीएनजी प्रोजैक्ट, प्राईवेट डिवैलपरों को बीओओ के आधार पर अलाट किये हैं, जिनमें उपरोक्त 5 प्रोजैक्ट भी शामिल हैं। यह प्रोजैक्ट 2022-23 और 2023-24 तक लगभग 1300-1500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से पूरे किये जाएंगे। इन प्रोजैक्टों से लगभग 35000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार मिलेगा।

यह प्रोजैक्ट चालू होने पर लगभग 9 लाख टन सालाना धान की पराली का उपभोग करेंगे। मैसर्ज वर्बियो इंडिया प्राईवेट लिमटिड द्वारा गाँव भुटाल कलाँ, जि़ला संगरूर में प्रति दिन 33.23 टन बायो-सीऐनजी सामथ्र्य का स्थापित किया जा रहा सबसे बड़ा प्रोजैक्ट है, दिसंबर 2021 तक व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देगा। इस प्रोजैक्ट में लगभग 1.25 लाख टन धान की पराली की खपत की जायेगी।

गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

गाय के गोबर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने उठाया कदम

नई दिल्ली। केन्द्र की मोदी सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए नए नए प्रयोग कर रही है। अब मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण योजना बनाई है। 

योजना के तहत गाय के गोबर को बायोगैस के रूप में प्रयोग किया जाएगा, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। पूरे भारत वर्ष में तकरीबन 30 करोड़ मवेशी हैं और घरेलू गैस की लगभग 50 फीसदी आवश्यकता, गाय के गोबर (Cow Dung) से बनी बायोगैस से पूरी हो सकती है। 

इनमें कुछ हिस्सा एनपीके उर्वरक (NPK - Nitrogen, Phosphorus and Potassium) में बदला जा सकता है। उधर सरकार की प्राथमिकता के अनुरूप गाय के गोबर के मुद्रीकरण से डेयरी किसानों की आमदनी बढ़ाने की संभावनाएं बढ़ेंगी।

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सरकार ने डेयरी किसानों की आय बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की एक नई सहायक कंपनी एनडीडीबी मृदा लिमिटेड (NDDB MRIDA) का शुभारंभ किया है, जिसके तहत केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को एक वैधानिक स्थान मिलेगा। 

दूध, डेयरी उत्पाद, खाद्य तेल और फलों व सब्जियों का निर्माण, विपणन और बिक्री करने वाले किसानों को इसका फायदा मिलेगा। 

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, श्री पुरुषोत्तम रूपाला ने खाद प्रबंधन के लिए एनडीडीबी की सहायक कंपनी एनडीडीबी एमआरआईडीए लिमिटेड का लोकार्पण किया - इस प्रेस रिलीज़ (Press Release) का पूरा दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें

कैसे बनेगी गाय के गोबर से बायोगैस

गाय के गोबर से बायोगैस बनाने के लिए सबसे पहले पशुओं से प्रतिदिन उपलब्ध गोबर को इकट्ठा करना होता है, जो गोबर की मात्रा तथा गैस की संभावित खपत के आधार पर होगा। 

सरल तरीके से माना जाए तो, संयंत्र में एक घन मीटर बायोगैस प्राप्त करने के लिए गोबर 25 किग्रा प्रति घन मीटर क्षमता के हिसाब से प्रतिदिन डालना जरूरी है, जिसका औसत प्रति पशु और प्रतिदिन के हिसाब से डालना चाहिए।

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बायोगैस बनाने में कितना समय लगेगा

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) या गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए आपको सबसे पहले कृषि विभाग में आवेदन पत्र दाखिल करना चाहिए। इसके बाद कृषि विभाग अपनी टीम भेजकर अच्छा प्लांट तैयार करेंगे। 

करीब 5 से 7 दिन के अंदर यह प्लांट तैयार हो जाता है। इसके बाद इसमें 50 फीसदी गोबर और 50 फीसदी पानी भरा जाता है। कुछ समय बाद ही इसमें बैक्टीरिया एक्टिव हो जाते हैं और ऑक्सीजन के अभाव में मीथेन (Methane) गैस बनना शुरू हो जाती है।

गुजरात में गोबर-धन से मिलेगी क्लीन एनर्जी, एनडीडीबी और सुजुकी ने मिलाया हाथ

गुजरात में गोबर-धन से मिलेगी क्लीन एनर्जी, एनडीडीबी और सुजुकी ने मिलाया हाथ

आम तौर पर खेती करने वाले लोग कृषि क्षेत्र में गाय के गोबर का उपयोग करते हुए नजर आते हैं, क्योंकि गाय के गोबर से बने हुए खाद में मौजूद पोषक तत्व फसल के उपज को बढ़ाव देते हैं। मानव सभ्यता के जन्म से ही गाय के गोबर का उपयोग प्राकृतिक खाद के रूप में किया जाता रहा है। व्यापक पैमाने पर अब गाय के गोबर से जैविक खाद बनाई जा रही है, दूसरी तरफ देश का प्रमुख राज्य गुजरात गाय के गोबर से स्वच्छ ऊर्जा और जैविक खाद को बढ़ावा देने के लिए जबरदस्त रणनीति तैयार कर रहा हैं। बीते दिनों नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड यानी एनडीडीबी (राष्‍ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (NDDB - National Dairy Development Board)) और जापानी कार निर्माता कंपनी सुजुकी (Suzuki) ने साथ मिलकर दो बायोगैस संयंत्र (Biogas plant) बनाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है।

गुजरात में दो बायोगैस प्लांट लगाने की तैयारी

इस वर्ष सुजुकी का भारत में 40 साल पूरे होने पर पिछले दिनों गुजरात में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में एनडीडीबी और सुजुकी के बीच दो बायोगैस प्लांट बनाने को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया। गुजरात पहले से ही रीन्यूएबल और क्लीन एनर्जी (Renewable and Clean Energy) उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी रहा है।


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राज्य में सौर ऊर्जा विकल्पों पर भी काफी काम किया गया है| अब, गोबर गैस प्लांट यानी बायो गैस उत्पादन के जरिये एक बार फिर गुजरात पूरे देश के लिए एक मिसाल बन कर सामने उभरेगा। गौरतलब है की देश में जितनी बड़ी संख्या में दुधारू पशुओं की संख्या है और आम लोग भी जितनी बड़ी संख्या में पशुपालन के कार्य से जुड़े हुए हैं, उसे देखते हुए अगर गोबर गैस प्लांट के विकल्प पर इसी संजीदगी से हर राज्य विचार करे, तो देश रीन्यूएबल एवं क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की क्षमता रखता है।

कई राज्यों ने शुरू कर दिया है पशुपालकों से गोबर खरीदने का काम

बीते दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी यह घोषणा की थी कि राज्य सरकार पशुपालकों से गाय का गोबर खरीदेगी। सरकार इस योजना का विस्तार अब अनेक शहरों में भी कर रही हैं क्योकि गाय का गोबर एक सस्ता और आसानी से उपलब्ध जैव संसाधन है। गाय के गोबर में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने की प्राकृतिक क्षमता होती है। वास्तव में छतीसगढ़ की सरकार राज्य में लगभग 500 से अधिक बॉयोगैस प्लांट स्थापित करने की योजना पर पहल कर रही हैं।
खेतों में बायोगैस प्लांट बनवाकर करें अपना खर्चा कम, यह सरकार दे रही सब्सिडी

खेतों में बायोगैस प्लांट बनवाकर करें अपना खर्चा कम, यह सरकार दे रही सब्सिडी

खेतों में केमिकल का इस्तेमाल करना चाहिए, एक से दो बार तो फसल का उत्पादन अच्छा हो जाता है। लेकिन उसके बाद फसल धीरे धीरे बंजर होने लगती है। खेत में फसलों का उत्पादन भी कम होने लगता है।

इस समस्या से किसान काफी ज्यादा परेशान हैं और उसके समाधान को लेकर भी कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस समस्या का समाधान है, कि जैविक खेती की जाए। 

गोबर से बनी खाद से ना सिर्फ मिट्टी में जीवांशों की संख्या बढ़ जाती है, बल्कि फसल की उत्पादकता भी बेहतर मिलने लगती है। चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राजा सरकार सभी जैविक खेती को बढ़ावा देने पर लगे हुए हैं। सरकारों द्वारा इससे जुड़ी हुई अलग-अलग तरह की योजनाएं हाउस के सामने आती रही हैं। 

इसी समस्या के समाधान में सरकार ने बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) स्थापित करने की भी सलाह दी है। यह किसानों और पशुपालकों के लिए अतिरिक्त आय का सृजन करने में मददगार है। 

अब अगर आप यह सुनकर परेशान है कि वह कैसे बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) की स्थापना कर सकते हैं और इसमें तो उन्हें अच्छा खासा खर्चा करना पड़ेगा तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। 

अब बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) की स्थापना के लिए किसानों को आर्थिक मदद भी मिल रही है। इस कड़ी में हरियाणा सरकार ने भी किसानों से आवेदन मांगे हैं। 

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कितनी मिलेगी सब्सिडी

हरियाणा सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन के अनुसार किसानों को घन मीटर के हिसाब से अनुदान राशि दी जाएगी। 

जैसे कि 1 घन मीटर से लेकर 2-4 घन मीटर, 6 घन मीटर का बायोगैस प्लांट लगाने पर अनुदान दिया जाएगा। साथ ही सरकार द्वारा सामान्य और एससी-एसटी वर्ग के लिए यह राशि अलग-अलग निर्धारित की गई है।

  • 1 घन मीटर आकार वाले बायोगैस प्लांट की स्थापना के लिए जनरल केटेगरी/ सामान्य वर्ग को 9,800 रुपये और एससी-एसटी वर्ग को 17,000 रुपये का अनुदान दिया जाएगा।
  • 2 से 4 घन मीटर आकार वाले बायोगैस प्लांट लगाने वाले सामान्य वर्ग के लोगों को 14,350 रुपये तो वहीं एससी-एसटी वर्ग को 22,000 रुपये की मदद मिलेगी।
  • 6 घन मीटर आाकर का बायोगैस संयंत्र बनाने की लागत पर सामान्य वर्ग के आवेदकों को 22,740 रुपये और एससी-एसटी वर्ग को 29,250 रुपये अनुदान का प्रावधान है।

कहां कर सकते हैं आवेदन

किसान जो किसानी के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं। तो आप आसानी से अपने खेत में गोबर गैस प्लांट यानी कि बायोगैस प्लांट लगवा सकते हैं। इसके लिए आपको जिले के कृषि विभाग के कार्यालय में जाना होगा। 

जहां से आपको परियोजना अधिकारी सारी जानकारी दे देंगे। अधिक जानकारी के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग या हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (HAREDA) की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर भी विजिट कर सकते हैं। 

बायोगैस संयंत्र की स्थापना पर सब्सिडी का लाभ लेने के लिए आप अधिकारी वेबसाइट पर जाकर भी आवेदन दे सकते हैं। http://biogas.mnre.gov.in पर करें आवेदन मांगे गए हैं। 

किसान चाहें तो ई-मित्र केंद्र या सीएससी सेंटर की मदद से सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

बायोगैस प्लांट लगाने पर क्या फायदा होगा

आजकल गांव में खेती के साथ-साथ पशुपालन भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसका ज्यादातर कारण है कि बाजार में दूध और दूध से बनने वाले उत्पादों की बहुत ज्यादा डिमांड है। 

लेकिन आप अब अपने पशुओं के वेस्ट से भी कमाई कर सकते हैं और इससे बेहतरीन कुछ नहीं हो सकता। पशुओं से मिलने वाले गोबर से आप बायोगैस प्लांट बना सकते हैं। जिससे आपके घर खर्च के साथ-साथ आपके आमदनी भी बढ़ जाती है। 

देखा जाए तो यह एक किस्म का साइकिल है। खेतों से पशुओं को चारा मिलता है। पशुओं से हमें गोबर मिलता है, जिसको हम बायोगैस प्लांट के आधार पर खाद बनाते हुए फिर से खेत में इस्तेमाल कर सकते हैं। ये गोबर दोबारा जैव उर्वरक, वर्मीकंपोस्ट या स्लरी के तौर पर फसलों या चारा उगाने के लिए खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। 

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह जैविक खाद किसी भी केमिकल से ज्यादा अच्छा काम करता है। आपकी जमीन की गुणवत्ता को भी बनाए रखता है। 

अगर किसान अपने खेतों में बायोगैस प्लांट लगा लेते हैं। तो माना जा रहा है, कि वह अपनी खेती और घर का काफी ज्यादा खर्च बचा सकते हैं।

मथुरा में बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) बनाने जा रहा है अडानी ग्रुप, साथ ही, गोबर से बनेगी CNG

मथुरा में बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) बनाने जा रहा है अडानी ग्रुप, साथ ही, गोबर से बनेगी CNG

उत्तर प्रदेश के मथुरा में आने वाले बरसाने की श्रीमाता गौशाला से प्रति दिन 35 से 40 टन गोबर निर्मित होता है। इसलिए अडानी कंपनी द्वारा 200 करोड़ के खर्च से गोबर गैस प्लांट (Gobar Gas Plant) स्थापित कर रही है, जिसमें बायोगैस CNG सहित उर्वरक भी निर्मित किया जाएगा। 

जब भी गाय पालन एवं गौ सेवा की बात सामने आती है, तब मस्तिष्क में मथुरा-वृंदावन की एक छवि का दर्शन होता है। यहां पौराणिक काल से ही गाय पालन का विशेष महत्व है। पूर्ण विश्व ब्रज क्षेत्र को दूध हब के रूप में जानता है। 

परंतु, अब इसकी पहचान बायोगैस हब के रूप में की जाती है। हालाँकि, मथुरा में बहुत पहले से रिफाइनरी उपस्थित है। परंतु, फिलहाल निजी कंपनियां भी मथुरा के अंदर बायोगैस सीएनजी एवं खाद निर्मित करने हेतु निवेश किया जा रहा है।

भारत की बड़ी कंपनियों में शम्मिलित अडानी ग्रुप की टोटल एनर्जी बायोमास लिमिटेड द्वारा अब बरसाना स्थित रमेश बाबा की श्रीमाता गौशाला में बायोगैस प्लांट लगाने की योजना पर कार्य चल रहा है। 

आपको बतादें कि 200 करोड़ के खर्च से स्थापित होने वाला यह बायोगैस प्लांट सीएनजी सहित तरल उर्वरक नहीं निर्मित करेगा। जिसके लिए श्री माता गौशाला से प्राप्त होने वाले गोबर का उपयोग किया जाएगा। इस प्लांट हेतु किसानों एवं पशुपालकों से भी गोबर खरीदने की योजना है।

अडानी ग्रुप निर्मित करेगा सीएनजी (CNG) एवं गोबर

भारत की बड़ी गौशालाओं में शम्मिलित बरसाना की श्री माता गौशाला के अंदर गौ सेवा सहित आमदनी का सृजन भी होगा। खबरों के मुताबिक, तो अड़ानी टोटल गैस लिमिटेड द्वारा रमेश बाबा की श्री माता गौशाला से मिलकर समझौता हुआ है, जिसके अंतर्गत गौशाला की भूमि पर ही बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) स्थापित किया जाना है। 

इस 13 एकड़ में विस्तृत प्लांट 40 टन गोबर की क्षमता रखता है, जिससे कि 750 से 800 किलो तक सीएनजी की पैदावार उठायी जा सकती है। साथ ही, प्लांट से प्राप्त होने वाला तरल खाद भी किसानों को मुहैय्या कराया जाएगा। 

इस समझौते के अंतर्गत गौशाला के अंदर निर्मित किया जा रहा है। अडानी ग्रुप का बायोगैस प्लांट 20 वर्ष हेतु गौशाला की भूमि का उपयोग करेगा। जिसके बदले में गौशाला को किराया एवं गोबर के बदले भुगतान भी प्रदान किया जाना है।

केवल इतना ही नहीं, यहां निर्मित होने वाला बायोगैस CNG विक्रय कर जो आय होनी है। जिसका एक भाग गौशाला में गो सेवा पर भी व्यय होगा।

इन प्रसिद्ध डेयरियों ने भी बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) की स्थापना की है

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था जो कि कभी कृषि एवं पशुपालन पर आश्रित रहती थी। वह अब गोबर से आय के मॉडल को तीव्रता से अपना रही है। वर्तमान में बहुत से किसान-पशुपालक बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) स्थापित करके तरल खाद सहित व्यक्तिगत जरूरतों को पूर्ण करने हेतु बायोगैस का निर्माण कर रही हैं। 

इससे बहुत सारे घरों का चूल्हा चलता है। गोबर के मॉडल में तीव्रता से आने वाली वृद्धि से मुनाफा देखने को मिल रहा है। इसलिए वर्तमान में बहुत सारी कंपनियों द्वारा इस मॉडल पर निवेश किया जा रहा है। 

अडानी समूह से पूर्व अमूल कंपनी द्वारा भी गुजरात में भी ऐसा ही बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया है। हरियाणा की वीटा डेरी द्वारा भी नारनौल में इसी तरह के प्लांट पर कार्य किया जा रहा है। 

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देश की कई बड़ी कंपनियां गोबर से करोड़ों की कमाई करने की तैयारी कर रही हैं. इसी गोबर से रसोई गैस और वाहनों में इस्तेमाल होने वाली सीएनजी गैस बनाई जा रही है. साथ ही,फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर भी बनाए जा रहे हैं.

बायोगैस पूर्व से ही निर्मित की जा रही है

किसान तक की रिपोर्ट के अनुसार, मथुरा के बरसाना स्थित रमेश बाबा की श्री माता गौशाला में पूर्व से ही एक बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया है। जिससे प्रत्येक दिन 25 टन गोबर से बायोगैस निर्मित की जाती है। 

इस गैस के माध्यम से ही गौशाला रौशन रहती है। बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) से निकलने वाली गैस द्वारा 100 केवी का विद्युत जनित्र संचालित होता है। गौशाला के विभिन्न कार्यों हेतु विघुत आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।

चीड़ की पत्तियों से बनाई जाएगी कंप्रेस्ड गैस क्या है, जाने क्या है राज्य सरकार की योजना

चीड़ की पत्तियों से बनाई जाएगी कंप्रेस्ड गैस क्या है, जाने क्या है राज्य सरकार की योजना

हम सभी जानते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में चीड़ के पेड़ काफी ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिमालय के आस पास पाए जाने वाले चिल्के इन पेड़ों की पत्तियां नॉनबायोडिग्रेडेबल होती है. इसके अलावा यह पत्तियां अपनी प्रकृति में बहुत ज्यादा ज्वलनशील होती है जो बहुत बार जंगल में आग का कारण भी बन जाती है और पूरे के पूरे जंगल नष्ट कर देती हैं. सरकार ने  इस समस्या का हल निकालने के साथ-साथ चीड़ के पेड़ से किसानों को कुछ लाभ करवाने के बारे में भी योजना बनाई है. पहाड़ी इलाकों में उगने वाले इस पेड़ की पत्तियों से सरकार कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के बारे में सोच रही है.

पहाड़ों में रहने वाले ग्रामीण लोगों की स्थिति में होगा सुधार

गर्मियों के मौसम में चीड़ की पत्तियां गर्मी के कारण आग पकड़ लेती है जो जंगल की आग का कारण बनती है.  अब राज्य सरकार द्वारा इन पत्तियों से कंप्रेस्ड बायोगैस तैयार करने के बारे में तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं. यहां की मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि इसके लिए सबसे पहले चीड़ की पत्तियों को सीबीजी के उत्पादन के टेस्ट के लिए एचडी ग्रीन रिसर्च डेवलपमेंट सेंटर बेंगलुरु में भेजा जाएगा और उसके बाद इस पर आगे का निर्णय लिया जाएगा. अगर यह योजना सफल हो जाती है तो पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आसपास के ग्रामीण लोगों के लिए यह बहुत बड़ा आर्थिक सुधार का कदम साबित होने वाला है. ये भी पढ़े: भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

हिमाचल में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आती हैं जंगल में आग लगने की खबर

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो हिमाचल में लगभग सालाना 1200  से 2500  खबरें जंगल में आग लगने की सामने आ ही जाती हैं. इसे पेड़ों को तो नुकसान होता ही है साथ ही आसपास रहने वाले इलाके के लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.  इन्हीं घटनाओं को देखते हुए सरकार ने चीड़ की पत्तियों से कंप्लेंट बायोगैस बनाने का फैसला लिया है.

ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ किया गया है समझौता

राज्य सरकार ने कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के लिए ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ समझौता करने के लिए अपना ज्ञापन प्रस्तुत कर दिया है.माना जा रहा है कि इसके लिए जल्द ही पायलट परियोजना की शुरुआत कर दी जाएगी.

ऊर्जा संकट की परेशानी दूर होने की है संभावना

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की मानें तो उनके अनुसार वनों से निकलने वाले अपशिष्ट का अगर सही तरह से प्रयोग किया जाए तो यह राज्य में ऊर्जा संकट की परेशानी को दूर कर सकता है. इससे ना सिर्फ जंगल में आग लगने के मामले कम होंगे बल्कि आसपास के क्षेत्र में लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा और साथ ही ऊर्जा संकट की परेशानी में भी अच्छा-खासा इजाफा होने की संभावना है.
महिला डेयरी किसान कुलदीप कौर के बायोगैस प्लांट से पूरे गॉव का चूल्हा फ्री में जलता है

महिला डेयरी किसान कुलदीप कौर के बायोगैस प्लांट से पूरे गॉव का चूल्हा फ्री में जलता है

वर्तमान में इंडियन डेयरी एसोसिएशन ने रोपड़, पंजाब की मूल निवासी कुलदीप कौर को डेयरी के क्षेत्र में अच्छे काम के लिए सम्मानित किया है। कुलदीप के डेयरी फार्म पर कई कॉलेज के छात्र पढ़ाई करने भी आते हैं। 

साथ ही, दूध का काम शुरू करने वाले कुलदीप कौर से सलाह-मशबिरा करने और फार्म को देखने भी आते हैं।  

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि रोपड़, पंजाब के बहादुरपुर गांव में हर एक घर का चूल्हा, फ्री में जलता है। बतादें, कि महज 100 रुपये महीने के खर्च पर दिन में तीन बार चूल्हा जलता है। 

हर घर से 100 रुपये महीना भी रखरखाव के नाम पर लिया जाता है। ये सब कुलदीप कौर की डेयरी के माध्यम से संभव हुआ है। 

कुलदीप कौर गांव के करीब 70 घरों को अपने डेयरी फार्म पर बने बायो गैस प्लांट से गैस सप्लाई करती हैं। लेकिन, इसके बदले कुलदीप किसी भी घर से एक रुपया तक नहीं लेती हैं।

प्लांट के बेहतर संचालन के लिए टेक्नीशियन भी रखा है

प्लांट के सुचारू संचालन के लिए एक टेक्नीशियन नियुक्त किया गया है। इस टेक्नीशियन को हर घर से 100 रुपये प्रदान किए जाते हैं। 

कुलदीप का कहना है, कि जब हमने डेयरी शुरू की तो हमारा उद्देश्य था, कि इसका फायदा हमारे गांव के लोगों को भी मिले। केवल यही सोचकर हमने बायो गैस गांव भर के लिए निःशुल्क कर दी है।

जानिए कुलदीप कोर की डेयरी की शुरुआत के बारे में

इस किसान की कहानी बेहद उत्साहित करने वाली है। कुलदीप कौर के बेटे गगनदीप का कहना है, कि लगभग 10 वर्ष पूर्व घर में ये फैसला हुआ कि डेयरी यानी पशुपालन शुरू किया जाए। 

जब बात शुरू करने की आई तो घर के हर एक सदस्यौ ने अपनी जमा पूंजी में से कुछ ना कुछ रकम मां को दी। ताई, चाचा सभी ने इसमें सहयोग किया। इस तरह से पहले पांच गाय खरीदी गईं। 

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जब काम बढ़ने लगा तो गाय की संख्या बढ़ानी भी शुरू कर दी। पहले हमारे पास एक ही नस्ल की गाय थी। लेकिन, फिर हमने इधर-उधर से जानकारी एकत्रित करने के बाद अपने फार्म में एचएफ, जर्सी और साहीवाल गाय रखनी चालू कर दीं।

दूध के अतिरिक्त गोबर से भी अच्छी आय हो रही है

गगनदीप का कहना है, कि बायो गैस प्लांट पर गैस तैयार करने के बाद जो तरल गोबर बचता है, उसे हम ट्रॉली के हिसाब से किसानों को बेच देते हैं। 

हर रोज हमारे प्लांट से पांच ट्रॉली गोबर निकलता है। एक ट्रॉली 500 रुपये की जाती है। इस प्रकार हमें ढाई हजार रुपये रोजाना की इनकम गोबर से हो जाती है। 

इसके अतिरिक्त हमारे खेत में अब 140 गाय हैं। सभी गाय से रोजाना 950 से एक हजार लीटर तक दूध प्राप्त हो जाता है। इस पूरे दूध को हम पंजाब की वेरका डेयरी को बेच देते हैं।

कुलदीप कोर ने डेयरी शुरू करने वालों को दी सलाह

सफलता पूर्वक डेयरी संचालन करने वालीं कुलदीप कौर का कहना है, कि अगर कोई भी डेयरी खोलना चाहता है, तो उसे सबसे पहले इसका प्रशिक्षण लेना चाहिए। 

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गाय-भैंस की अच्छी ब्रीड का ही चयन करना चाहिए। इसके बाद हर समय यह प्रयास होना चाहिए, कि दूध उत्पादन की लागत को किस तरह कम किया जाए। जैसे हमने अपने फार्म पर ही चारा बनाना शुरू कर दिया। 

इस प्रकार से हमें प्रति किलो चारे पर पांच रुपये की बचत होने लगी। साथ ही, दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए गाय-भैंस की खुराक पर ध्यान दें ना की बाजार में बिकने वाली बेवजह की चीजों पर।

पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप सिंह ने भारत में नवाचार डेयरी किसान के टूर पर मिसाल कायम कर रहे हैं। गगनदीप का 150 गाय के डेयरी फार्म (Dairy farm) सहित बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) भी है, जिसके जरिये वह अपने गांव की प्रत्येक आवश्यकता को पूर्ण कर रहे हैं, प्रतिदिन भारत से एक नवीन हुनर सामने आता दिख रहा है। सर्वाधिक नवाचार कृषि जगत में देखने को मिल रही है। एक इनोवेटिव आइडिया किसानों के साथ-साथ पूरे गांव के हालात परिवर्तित कर देते है। 

वर्तमान दौर में हमारे मध्य ऐसे बहुत से किसान उपलब्ध हैं, जो खुद के इनोवेटिव आइडिया की वजह से स्वयं तो आत्मनिर्भर हुए ही हैं साथ ही अपने पूरे गांव एवं किसानों के प्रति सामाजिक दायित्व को निभाते हुए बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। इसमें सबसे विशेष जो बात है वह ये कि गगनदीप का Innovation पर्यावरण सुरक्षित रखने में बेहद सहायक साबित हो रहा है।

इस लेख में हम आगे गगनदीप के सराहनीय Innovative Idea के बारे में और गगनदीप के बारे में जानेंगे जिसने गाँव की तकदीर ही बदल दी। बतादें कि गगनदीप सिंह के डेयरी फार्म में लगभग 150 गौवंश मौजूद है। इन गौवंशों से ना केवल दूध उत्पादन लिया जा रहा है, जबकि गाय के गोबर द्वारा उत्तम मुनाफा कमा रहा है। गगनदीप सिंह ने डेयरी फार्म के सहित एक बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है, जिसमें गाय के गोबर के एकत्रित करके बायोगैस एवं जैविक खाद निर्मित की जा रही है। 

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) द्वारा उत्पन्न गैस के माध्यम से आज पूरा गांव अपना चूल्हा चला रहा है। दूसरी तरफ अतिरिक्त बचे गोबर के अवशेष द्वारा जैविक खाद तैयार कर किसानों को उपलब्ध किया जा रहा है। गगनदीप द्वारा Innovative Idea का यह प्रभाव है, कि वर्तमान में गांव के किसी भी घर में रसोई गैस का सिंलेंडर नहीं है। गाँव के लोग बायोगैस प्लांट द्वारा उत्पन्न गैस से मुफ्त में भोजन बनाते हैं। 

पूरा गाँव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

गोबर को धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सोना कहा जाता है। इसके द्वारा ना केवल मृदा की उर्वरक शक्ति बढ़ रही है, साथ ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी यह काफी सुरक्षित है। पंजाब राज्य के रूपनगर निवासी गगनदीप सिंह द्वारा इसी गोबर का उचित प्रयोग करके पूरे गांव को समृद्ध एवं सुखी बना दिया है। आपको जानकारी हेतु बतादें कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं 150 गाय के डेयरी फार्म सहित 140 क्यूबिक मीटर का भूमिगत बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) निर्मित किए हैं, जहां से एक पाइपलाइन को भी निकाल दिया गया है। इस ​पाइपलाइन द्वारा गांव के प्रत्येक व्यक्ति को बायोगैस का कनेक्शन दे दिया गया है। वर्तमान में इस पाइपलाइन कनेक्शन के माध्यम से प्रत्येक रसोई को 6 से 7 घंटे प्रतिदिन खाना निर्मित करने हेतु बायोगैस उपलब्ध करायी जाती है।

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इस गैस को पूर्णतयः निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है, इससे गांव के प्रत्येक घर में सिलेंडर का 800 से 1000 रुपये का व्यय खत्म हो गया है। कोरोना महामारी के मध्य, जब भारत में रसोई गैस की आपूर्ति हेतु काफी दिक्कत हो रही थी, उस समय गगनदीप के गांव का प्रत्येक चूल्हा बिना किसी दिक्कत के प्रज्वलित हो रहा था। 

किसानों को भी हो रहा है फायदा

जानकारी हेतु बतादें, कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं के डेयरी फार्म के नीचे भूमिगत नालियां स्थापित की हैं, जिनके माध्यम से गाय के गोबर तथा गौमूत्र को पानी सहित बायोगैस प्लांट में पहुँचाया जाता है। बायोगैस प्लांट में स्वचालित तरीके से कार्य होता रहता है। प्लांट के ऊपरी स्तर से निकलने वाली गैस को रसोईयों में भेजा जाता है। शेष बचा हुआ गोबर एवं अवशेष (स्लरी) गड्ढों में जमा हो जाता है।

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यह स्लरी किसानों के लिए बेची जाती है, इससे किसान जैविक खाद निर्मित कर खेती में उपयोग करते हैं। पहले किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों हेतु जो व्यय किया जाता था, इस खाद की वजह से उस समस्त खर्च की बचाया जा रहा है। इसकी वजह से किसान पर्यावरण के संरक्षण के लिए जैविक खेती की तरफ अग्रसर होने की प्रेरणा मिली है। 

बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए सरकार दे रही अनुदान

वर्तमान भारत में 53 करोड़ से अधिक पशुधन हैं, जिनसे प्रतिदिन 1 करोड़ टन गोबर मिलती है। अगर किसान एवं पशुपालक इसी गोबर का समुचित उपयोग किया जाए तो अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। आपको बतादें कि गोबर की शक्ति का सबसे ज्यादा फायदा यह है, कि वर्तमान में सरकार भी बड़े बायोगैस प्लांट स्थापित करने हेतु सब्सिडी प्रदान करती है। ऐसे गोबर गैस प्लांट में 55 से 75 प्रतिशत मीथेन का उत्सर्जन विघमान होता है, जिसका उपयोग भोजन निर्मित करने से लेके गाड़ी चलाने हेतु भी किया जाता है।