Published on: 17-May-2023
हम सभी जानते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में चीड़ के पेड़ काफी ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिमालय के आस पास पाए जाने वाले चिल्के इन पेड़ों की पत्तियां नॉनबायोडिग्रेडेबल होती है. इसके अलावा यह पत्तियां अपनी प्रकृति में बहुत ज्यादा ज्वलनशील होती है जो बहुत बार जंगल में आग का कारण भी बन जाती है और पूरे के पूरे जंगल नष्ट कर देती हैं.
सरकार ने इस समस्या का हल निकालने के साथ-साथ चीड़ के पेड़ से किसानों को कुछ लाभ करवाने के बारे में भी योजना बनाई है. पहाड़ी इलाकों में उगने वाले इस पेड़ की पत्तियों से सरकार कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के बारे में सोच रही है.
पहाड़ों में रहने वाले ग्रामीण लोगों की स्थिति में होगा सुधार
गर्मियों के मौसम में चीड़ की पत्तियां गर्मी के कारण आग पकड़ लेती है जो जंगल की आग का कारण बनती है. अब राज्य सरकार द्वारा इन पत्तियों से कंप्रेस्ड बायोगैस तैयार करने के बारे में तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं. यहां की मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि इसके लिए सबसे पहले चीड़ की पत्तियों को सीबीजी के उत्पादन के टेस्ट के लिए एचडी ग्रीन रिसर्च डेवलपमेंट सेंटर बेंगलुरु में भेजा जाएगा और उसके बाद इस पर आगे का निर्णय लिया जाएगा. अगर यह योजना सफल हो जाती है तो पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आसपास के ग्रामीण लोगों के लिए यह बहुत बड़ा आर्थिक सुधार का कदम साबित होने वाला है.
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हिमाचल में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आती हैं जंगल में आग लगने की खबर
अगर आंकड़ों की बात की जाए तो हिमाचल में लगभग सालाना 1200 से 2500 खबरें जंगल में आग लगने की सामने आ ही जाती हैं. इसे पेड़ों को तो नुकसान होता ही है साथ ही आसपास रहने वाले इलाके के लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इन्हीं घटनाओं को देखते हुए सरकार ने चीड़ की पत्तियों से कंप्लेंट बायोगैस बनाने का फैसला लिया है.
ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ किया गया है समझौता
राज्य सरकार ने कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के लिए ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ समझौता करने के लिए अपना ज्ञापन प्रस्तुत कर दिया है.माना जा रहा है कि इसके लिए जल्द ही पायलट परियोजना की शुरुआत कर दी जाएगी.
ऊर्जा संकट की परेशानी दूर होने की है संभावना
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की मानें तो उनके अनुसार वनों से निकलने वाले अपशिष्ट का अगर सही तरह से प्रयोग किया जाए तो यह राज्य में ऊर्जा संकट की परेशानी को दूर कर सकता है. इससे ना सिर्फ जंगल में आग लगने के मामले कम होंगे बल्कि आसपास के क्षेत्र में लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा और साथ ही
ऊर्जा संकट की परेशानी में भी अच्छा-खासा इजाफा होने की संभावना है.