Ad

buffalo milk

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

ये भी पढ़ें:
अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

जानें कैसे आप बिना पशुपालन के डेयरी व्यवसाय खोल सकते हैं

किसान भाई बिना गाय-भैंस पालन के डेयरी से संबंधित व्यवसाय चालू कर सकते हैं। इस व्यवसाय में आपको काफी अच्छा मुनाफा होगा। अगर आप भी कम पैसे लगाकर बेहतरीन मुनाफा कमाने के इच्छुक हैं, तो यह समाचार आपके बड़े काम का है। आज हम आपको एक ऐसे कारोबार के विषय में जानकारी देंगे, जिसमें आपकी मोटी कमाई होगी। परंतु, इसके लिए आपको परिश्रम भी करना होगा। भारत में करोड़ो रुपये का डेयरी व्यवसाय है। यदि आप नौकरी छोड़कर व्यवसाय करना चाहते हैं, तो हमारा यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, हम अगर नजर डालें तो डेयरी क्षेत्र में विभिन्न तरह के व्यवसाय होते हैं। इसमें आप डेयरी प्रोडक्ट का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं या गाय-भैंस पालकर दूध सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। परंतु, आप गाय-भैंस नहीं पालना चाहते हैं और डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो भी आपके लिए अवसर है। आप मिल्क कलेक्शन सेंटर खोल सकते हैं।

दूध कलेक्शन की विधि

बहुत सारे गांवों के पशुपालकों से दूध कंपनी पहले दूध लेती है। ये दूध भिन्न-भिन्न स्थानों से एकत्रित होकर कंपनियों के प्लांट तक पहुंचता है। वहां इस पर काम किया जाता है, जिसमें पहले गांव के स्तर पर दूध जुटाया जाता है। फिर एक स्थान से दूसरे शहर या प्लांट में भेजा जाता है। ऐसे में आप दूध कलेक्शन को खोल सकते हैं। कलेक्शन सेंटर गांव से दूध इकट्ठा करता है और फिर इसको प्लांट तक भेजता है। विभिन्न स्थानों पर लोग स्वयं दूध देने आते हैं। वहीं बहुत सारे कलेक्शन सेंटर स्वयं पशुपालकों से दूध लेते हैं। ऐसे में आपको दूध के फैट की जांच-परख करनी होती है। इसे अलग कंटेनर में भण्डारित करना होता है। फिर इसे दूध कंपनी को भेजना होता है।

ये भी पढ़ें:
जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन

कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाती है

दूध के भाव इसमें उपस्थित फैट और एसएनएफ के आधार पर निर्धारित होते हैं। कोऑपरेटिव दूध का मूल्य 6.5 प्रतिशत फैट और 9.5 प्रतिशत एसएनएफ से निर्धारित होता है। इसके उपरांत जितनी मात्रा में फैट कम होता है, उसी तरह कीमत भी घटती है।

सेंटर की शुरुआत इस प्रकार से करें

सेंटर खोलने के लिए आपको ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं होती है। सबसे पहले आप दूध कंपनी से संपर्क करें। इसके पश्चात दूध इकट्ठा कर के उन्हें देना होता है। बतादें, कि यह कार्य सहकारी संघ की ओर से किया जाता है। इसमें कुछ लोग मिलकर एक समिति गठित करते हैं। फिर कुछ गांवों पर एक कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। कंपनी की ओर से इसके लिए धनराशि भी दी जाती है।
सूरती भैंस की कीमत और दूध देने की क्षमता

सूरती भैंस की कीमत और दूध देने की क्षमता

सूरती भैंस को विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस प्रजाति की भैंसें माही और साबरमती नदियों के मध्य गुजरात के खेड़ा और बड़ौदा में देखने को मिलती हैं। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1600-1800 लीटर प्रति व्यात के दौरान होती है। सूरती भैंस रोजाना 15 लीटर तक दूध देती है, जिससे डेयरी कृषकों को काफी लाभ होता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बेशक किसानी पर अधिक बल दिया जाता हो। परंतु, खेती किसानी के सहित पशुपालन की दिशा में भी किसानों की दिलचस्पी बढ़ी है। भारत में इसे अब व्यापक रूप से किया जा रहा है, जिसका आंकलन आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि पशुपलान के क्षेत्र में हिंदुस्तान आज द्वितीय स्थान पर है। भारत में डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग को मंदेनजर रखते हुए दूध की खपत भी बढ़ी है, जिसकी वजह से डेयरी व्यवसाय काफी फल फूल रहा है। किसान भाई इससे बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं। अगर आप भी एक किसान और डेयरी बिजनेस के जरिए अपनी कमाई को बढ़ाना चाहते हैं तो इस खबर में हम आपको भैंस की सूरती नस्ल के बारे में बताएंगे, जो अधिक मात्रा में दूध का उत्पादन करती है।

सूरती नस्ल की भैंस की दूध देने की क्षमता

सूरती भैंस जल भैंस की एक प्रजाति है, जो माही एवं साबरमती नदियों के मध्य गुजरात के खेड़ा एवं बड़ौदा में पायी जाती हैं। इस नस्ल की सबसे अच्छी भैंसें गुजरात के बड़ौदा, आनंद और कैरा जनपदों में पाई जाती हैं। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1600-1800 लीटर प्रति व्यात होती है, इसके दूध में वसा की मात्रा 8-12 फीसद होती है। इस नस्ल की भैंस प्रतिदिन 15 लीटर तक दूध दे सकती है। इसका रंग भूरे से सिल्वर सलेटी, काले या भूरे रंग का होता है। वहीं, इसके सींग मध्यम आकार का नुकीला धड़, लंबा सिर और दराती के आकार की सींग होती है।

ये भी पढ़ें: ब
न्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में


सूरती नस्ल की भैंस की कीमत

सूरती भैंस को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जो क्षेत्रों पर निर्भर करते हैं। विभिन्न इलाकों में इन्हें भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे गुजराती, नडियाडी, तालाबारा, चरोटारी और दक्कनी। सूरती भैंस की ज्यादा दूध उत्पादन क्षमता की वजह से इसे भैंस की उन्नत नस्लों में गिना जाता है। ऐसी स्थिति में यदि आप भी इस भैंस को आमदनी का एक जरिया बनाना चाहते हैं, तो आपको बतादें कि बाजार में इस नस्ल की भैंस की कीमत 40 हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये के मध्य रहती है।

जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

दुग्ध उत्पादन करके पशुपालक काफी अच्छा मुनाफा हांसिल करते हैं। जाफराबादी भैंस का नाम गुजरात के जाफराबाद इलाके पर पड़ा है। क्योंकि, इसकी उत्पत्ती जाफराबाद में हुई है। जाफराबादी भैंस बाकी भैंस के मुकाबले में अधिक दिनों तक दूध देती है। पशुपालक इसका पालन दूध उत्पादन क्षमता के लिए करते हैं। क्योंकि, ये बाकी भैंसों की तुलना में अधिक दूध देती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती एवं पशुपालन की काफी प्राचीन परंपरा है। विशेषकर विगत कुछ वर्षों में पशुपालन की ओर किसानों का रुझान बड़ी ही तीव्रता से बढ़ा है। खेती के पश्चात ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आमदनी का यह दूसरा प्रमुख हिस्सा है। पशुपालन के माध्यम से किसान काफी शानदार मुनाफा हांसिल कर रहे हैं। सामान्य तौर पर किसान गाय अथवा भैंस पालना ज्यादा पसंद करते हैं। क्योंकि, इनके दूध के माध्यम से किसान शानदार मुनाफा अर्जित कर हैं। दूध की बढ़ती मांग को मद्देनजर रखते हुए विगत कुछ समय में गाय-भैंस पालन का चलन तेजी से बढ़ा है। इसके साथ-साथ इसी मांग के जरिए डेयरी बिजनेस भी काफी बढ़ रहा है।

जाफराबादी भैंस की कद काठी

हालाँकि, गाय एवं भैंस की सारी प्रजातियां ही एक से बढ़कर एक हैं। परंतु, भैंस की एक नस्ल ऐसी है, जिसकी काफी ज्यादा चर्चा की जाती है। भैंस की इस नस्ल को भैंसों का 'बाहुबली' भी कहा जाता है। क्योंकि, ये भैंस दिखने में काफी हट्टी खट्टी होती है। खास बात यह है, कि इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता बाकी गाय-भैसों की तुलना में काफी ज्यादा है। जी हां, हम बात करें रहे हैं, भैंस की जाफराबादी नस्ल के बारे में। ऐसे में यदि आप भी डेयरी व्यवसाय के माध्यम से मोटा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो जाफराबादी नस्ल की भैंस आपके लिए अच्छा विकल्प है।

ये भी पढ़ें:
अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

जाफराबादी भैंस की उत्पत्ति गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से हुई है। यह गुजरात के गिर के जंगलों एवं आसपास के इलाकों, जैसे जामनगर, पोरबंदर, अमरेली, राजकोट, जूनागढ़ और भावनगर जनपदों में पाई जाती है। भैंस की इस नस्ल का नाम गुजरात के अमरेली जनपद के जाफराबाद क्षेत्र के नाम पर पड़ा है। यहां जाफराबादी भैंसों की नस्ल बड़ी तादात में देखने को मिलती है। जाफराबादी भैंस का वजन बेहद भारी होता है। दूध का व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए भैंस की ये नस्ल किसी हीरे से कम नहीं है। क्योंकि, ये भैंस प्रतिदिन 20 से 30 लीटर तक दुग्ध उत्पादन करती है, जिससे किसानों को काफी अच्छा मुनाफा होता है। वहीं अगर इसकी कीमत की बात करें तो भैंस की इस नस्ल की कीमत 90 हजार रुपये से डेढ़ लाख रुपये तक होती है। जाफराबादी भैंस की अधिक दूध उत्पादन क्षमता के चलते ही यह इतनी ज्यादा महंगी कीमत पर बिकती है। इसे भावनगरी, गिर अथवा जाफरी के नाम से भी जाना जाता है।
क्या हैं पंढरपुरी भैंस की विशेषताएं, दुग्ध उत्पादन क्षमता व कीमत

क्या हैं पंढरपुरी भैंस की विशेषताएं, दुग्ध उत्पादन क्षमता व कीमत

पंढरपुरी भैंस को विभिन्न नामों से जाना जाता है। ये विशेष तौर पर महाराष्ट्र के क्षेत्रों में पाई जाती हैं। वैसे तो भैंस की इस नस्ल की कई सारी विशेषताएं हैं। परंतु, इसे अपनी दूध उत्पादन क्षमता के लिए काफी जाना जाता है। ये भैंस एक दिन के अंदर 15 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है। भारत में गाय के साथ-साथ भैंसों का भी पालन किया जाता है। भैंस के दूध में फैट की मात्रा ज्यादा होती है। इस वजह से बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग रहती है। वहीं, डेयरी उत्पादों में भी भैंस के दूध का काफी उपयोग किया जाता है। ज्यादा मुनाफे की वजह से विभिन्न डेयरी पालक एवं किसान भैंसों का पालन करते हैं। अब यदि ऐसी स्थिति में आप भी एक भैंस अपने तबेले में लाने की सोच रहे हैं, तो ये खबर अवश्य पढ़ लें। वैसे तो भैंस की समस्त नस्लें ही एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन इस लेख में हम आपको एक ऐसी नस्ल से अवगत कराऐंगे, जो कि आपको शानदार मुनाफा प्रदान करेगी। इस भैंस को अपनी दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए जाना जाता है। जो कि बाकी भैंसों की तुलना में अधिक दूध देती है। हम भैंस की पंढरपुरी नस्ल की बात कर रहे हैं। 

पंढरपुरी भैंस प्रतिदिन 15 लीटर दूध प्रदान करती है 

पंढरपुरी भैंस की उत्पत्ति महाराष्ट्र के पंढरपुरी इलाके से हुई है। ऐसा कहते हैं, भैंस का नाम पंढरपुर गांव से पड़ा है, जो महाराष्ट्र के सोलापुर जनपद में मौजूद है। इसे पंधारी, महाराष्ट्र भैंस अथवा धारवाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि, ये भैंस देश के विभिन्न इलाकों में पाई जाती है। परंतु, महाराष्ट्र में इसका सर्वाधिक पालन किया जाता है। यह भैंस महाराष्ट्र के पंढरपुर, पश्चिम सोलापुर, पूर्व सोलापुर ,बार्शी, अक्कलकोट, सांगोला, मंगलवेड़ा, मिराज, कर्वी, शिरोल और रत्नागिरी जैसे जनपदों में पाई जाती है। इस नस्ल को उसकी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। लेकिन, इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, इसके दूध देने की क्षमता। ये भैंस प्रतिदिन 15 लीटर तक दूध दे सकती है। यदि आप भी इस भैंस को आय का एक स्त्रोत बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले इसकी पहचान, कीमत और विशेषताऐं जान लें। 

ये भी पढ़ें:
भैंस की कालाहांडी नस्ल का पालन कर लाखों की आय की जा सकती है

पंढरपुरी भैंस की पहचान एवं विशेषताएं इस प्रकार हैं 

  • पंढरपुरी भैंस के सींग किसी तलवार की भांति नजर आते हैं। इनकी लंबाई लगभग 45 से 50 सेंटीमीटर तक होती है। सींग सिर से ऊपर की तरफ आते हुए अंदर की ओर मुड़ जाते हैं।
  • इस भैंस का वजन लगभग 450 से 470 किलो के मध्य होता है।
  • पंढरपुरी भैंस हल्के काले रंग अथवा भूरे रंग की होती है। बहुत सारी पंढरपुरी भैंस में सफेद धब्बे भी दिखने को मिल जाते हैं।
  • इस भैंस के बाल चमकदार और मध्यम साइज के होते हैं।
  • इस भैंस का सिर लंबा एवं पतला होता है, जबकि नाक की हड्डी थोड़ी बड़ी होती है। 
  • पंढरपुरी भैंस शरीरसे कठोर तथा मजबूत होती है। 
  • पंढरपुरी भैंस की प्रतिदिन दूध देने की क्षमता औसतन 6 से 7 लीटर तक होती है। सही रखरखाव मिलने पर ये रोजाना 15 लीटर तक भी दूध देने की क्षमता रखती है। 


ये भी पढ़ें:
भैंस पालन से भी किसान कमा सकते हैं बड़ा मुनाफा

पंढरपुरी भैंस का प्रतियोगिताओं में भी काफी दबदबा है 

महाराष्ट्र में पंढरपुरी भैंस का पालन केवल दूध के लिए नहीं किया जाता बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में किसान इन्हें इस वजह से भी पालते हैं, ताकि वे रेसिंग तथा बुल फाइटिंग जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकें। ये अत्यंत शांत स्वभाव की होती हैं, इसलिए किसान इन्हें सहजता से पाल सकते हैं। इन्हें अधिकांश क्षेत्रों में पाला जाता है। जहां धान, गन्ना और ज्वार सहजता से उपलब्ध हो सके। यह इनकी मुख्य खुराक में से एक है। इसकी कीमत की बात की जाए तो एक पंढरपुरी भैंस की कीमत लगभग 50 हजार से 2 लाख रुपये के मध्य होती है। यह कीमत क्षेत्र एवं भैंस के दूध देने की क्षमता पर निर्भर करती है।
गर्मियों के दिनों में गाय, भैंस के घटते दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के अचूक उपाय

गर्मियों के दिनों में गाय, भैंस के घटते दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के अचूक उपाय

आने वाले दिनों में भीषण गर्मी का प्रकोप देखने को मिलेगा। भीषण गर्मी के चलते मनुष्य ही नहीं जानवर भी काफी प्रभावित होंगे। दरअसल, गर्मियों के दिनों सामान्य तौर पर खाने में अरूचि पैदा हो जाती है। ऐसा मानव और जानवर दोनों में होता है। 

पशु गर्मियों में कम चारा खाना शुरू कर देते हैं, जिसका दूध की मात्रा पर सीधा असर पड़ता है। गाय हो अथवा भैंस गर्मियों में सर्दियों के मुकाबले कम दूध देना शुरू कर देती है। इस वजह से पशुपालकों का लाभ कम होने लगता है। दुधारू मवेशियों द्वारा कम दूध देने की शिकायत को लेकर पशुपालक काफी चिंतित रहते हैं। 

अधिकांश पशुपालक अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में पशुओं को इंजेक्शन देना चालू कर देते हैं, जिससे पशुओं की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही, दूध की क्वालिटी में भी गिरावट आ जाती है। 

ये भी पढ़ें: पशुपालन के लिए 90 फीसदी तक मिलेगा अनुदान

ऐसे में पशुपालकों को गाय का दूध बढ़ाने के प्राकृतिक उपाय जिसमें घरेलू चीजों के उपयोग से तैयार की गई दवाई का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे दुग्ध उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ पशु के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। मुख्य बात यह है, कि यह सब चीजें आपको बड़ी सुगमता से बाजार में प्राप्त हो जाएंगी।

पशुओं को चारे में मिलाकर लहसुन खिलाएं

अगर गाय-भैंस के चारे में लहसुन का मिश्रण कर दिया जाए तो पशुओं का दूध काफी बढ़ जाता है। वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर ऐसा बताया जाता है, कि अगर मवेशियों को चारे में लहसुन को मिलाकर खाने के लिए दिया जाए तो वह जुगाली करते समय जो मुंह से मीथेन गैस छोड़ती हैं, वे कम छोड़ेंगी। इससे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में काफी मदद मिलेगी। ऐसा वैज्ञानिकों का मानना है। 

ये भी पढ़ें: जलवायु परिवर्तन किस प्रकार से कृषि को प्रभावित करता है ?

वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करने वाली मीथेन गैस का 4 प्रतिशत हिस्सा पशुओं की जुगाली के दौरान मुंह से निकलने वाली गैसों का है। अगर पशुओं को उनके चारे में लहसुन मिलाकर खाने को दें तो वे कम मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन करेगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में काफी मदद मिलेगी। 

लहसुन का काढ़ा बनाकर पशुओं को पिलाएं

पशु की डिलीवरी के 4-5 दिन के पश्चात पशु को लहसुन का काढ़ा अवश्य पिलाना चाहिए। इससे भी दूध की मात्रा काफी बढ़ जाती है। इसके लिए 125 ग्राम लहसुन, 125 ग्राम चीनी अथवा शक्कर और 2 किलो ग्राम दूध को मिलाकर पशु को दें। इससे पशु की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी।

जई का चारा भोजन के रूप में खिलाएं

लहसुन के अतिरिक्त पशुओं को जई का चारा भी खिलाया जा सकता है। ये भी उतना ही पोष्टिक होता है, जितना लहसुन। इसके इस्तेमाल से भी पशुओं की दूध देने की मात्राकाफी बढ़ जाती है। इसमें क्रूड प्रोटीन की मात्रा 10-12% फीसद तक होती है। जई से साइलेज भी बनाया जा सकता है, जिसको आप दीर्घ काल तक पशुओं को खिला सकते हैं।

दवा के लिए जरूरी सामग्री व उसकी मात्रा 

तारामीरा, मसूर की दाल, चने की दाल, अलसी, सौंफ, सोयाबीन, यह सभी चीजें 100 ग्राम की मात्रा में लें। मोटी इलायची के दाने 50 ग्राम, सफेद जीरा 20 ग्राम, दवा बनाने की विधि उपरोक्त सभी चीजों को देसी घी में उबालकर इसका एक किलो काढा बनाकर पशु को खिलाएं, इस दवा के सेवन से पशुओं की पाचन शक्ति काफी बढ़ेगी। इससे उन्हें भूख भी ज्यादा लगेगी। जब पशु ज्यादा खाता है, तो उसकी दूध देने की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है।  

जीरा व सौंफ से निर्मित दवा

आधा किलो सफेद जीरा और एक किलो सौंफ को पीस कर रख लें। अब प्रतिदिन इसकी एक या दो मुट्‌ठी मात्रा आधा किलो दूध के साथ पशुओं को दें। इससे पशु के दूध देने की मात्रा काफी बढ़ जाएगी।

ये भी पढ़ें: डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व

जड़ी-बूंटियों से निर्मित दवा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उपरोक्त दवाओं के अतिरिक्त पशुपालक आयुर्वेदिक में इस्तेमाल में लाई जाने वाली जड़ी बूटियां जैसे- मूसली, शतावरी, भाकरा, पलाश और कम्बोजी आदि को भी मिलाकर पशुओं को दे सकते हैं।

विशेष- उपरोक्त में दिए गए घरेलू नुस्खे अथवा उपायों को अपनाने से पूर्व एक बार पशु चिकित्सक का मशवरा जरूर लें। आपको यह सलाह दी जाती है, कि किसी भी औषधि या नुस्खे का उपयोग पशु चिकित्सक की देखरेख में ही करें।