हाँ मैं किसान हूँ देश की सेवा में अपने बेटों को बॉर्डर पर भेजने वाला किसान, इंजीनियर और वैज्ञानिक देने वाला किसान और दूसरों की थाली सजा के अपनी रूखी और चटनी से खाने वाला किसान. किसी भी अफसर से मिलने जाने पर अपना तिरस्कार होते देखने वाला किसान क्यों की मेरे कपड़ों से आने वाली पसीने और मिटटी की बदबू किसी नेता या अफसर को अच्छी नहीं लगती. सत्ता में बैठी हुई सरकार को छोड़ कर बाकि सभी को मेरी फिकर होती है. क्यूंकि उनकी राजनीति मेरी फिकर करने से ही तो चलती है.
काश मेरे भी कोई सपने पूरे होते, काश में भी महंगी गाड़ियों में चल पाता, काश में भी बिना टोल दिए निकल पाता लेकिन नहीं साहब में किसान हूँ कोई नेता या अभिनेता नहीं हूँ जो की मेरे दुःख और दर्द का कोई खबर लेने आये. आज में अपने ही देश में अपनों से ही लड़ रहा हूँ कभी कृषि कानून, कभी MSP और कभी डीजल और खाद पर आई बेहताशा महंगाई से. अपने बच्चों से रोजाना दूर रात को जंगल में खेत पर सोता हूँ ताकि अपने बच्चों को भी किताब,कपडे और खिलोने दिला सकूँ.रात भर जगता हूँ खेत को जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने को और हाँ साहब अपनी जान की परवाह भी नहीं क्यूंकि मेरी जान की कोई कीमत नहीं है में तो बस हूँ तो हूँ नहीं हूँ तो नहीं हूँ.
किसे फर्क पड़ता है. सरकार डीजल महंगा इसलिए कर देती है क्यों की उनके वश में नहीं है और हमारी फसल की कीमत इस लिए नहीं है क्यूंकि ये उनके वश में है.सबसे बड़ी बात मुझे लोन नहीं मिलता है ताकि में ट्रैक्टर खरीद सकूँ और मुझे सब्सिडी दी जाती है ट्रैक्टर के इम्प्लिमेंट्स पर, वो भी किसान नेता या किसी नेता के खास को मिल जाती है. हमें तो सरकार की योजनाओं का पता भी कहाँ चलता है साहब. में भी अब लड़ते लड़ते थक सा गया हूँ कभी मुझे खेतों की बुबाई के लिए DAP ओह सिर्फ DAP नहीं महंगा वाला DAP भी नसीब नहीं होता बाकि सब मेरे लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं. अगर सरकार MSP पर कानून ला भी दे तो क्या गारंटी है कि खरीदेगी ?
ज्यादातर फसल के समय तो बारदाना ही नहीं आता. क्या क्या लिखूं साहब मेरे दर्द का कोई अंत नहीं है. मैं नहीं चाहता की मेरा बच्चा किसान बने वो कुछ भी करे लेकिन किसान न बने. क्या कोई डॉक्टर या नेता चाहेगा की उसका बेटा उसी के क्षेत्र में आगे ना बढे बस किसान चाहता की उसका बेटा उसकी तरह किसान ना बने ताकि उसी मानसिक प्रताड़ना से उसे गुजरना पड़े. चलते चलते मेरीखेती टीम से आग्रह करूँगा कि इसको अपनी मासिक पत्रिका में जगह दे और अपनी वेबसाइट का लिंक अपने whatsApp ग्रुप में सभी को भेजे जिससे कि और किसान भाई भी इसी तरह से अपना लेख दे सकें. धन्यवाद, राकेश शर्मा कलुआ नगला वेसवां
नई दिल्ली। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने एक साल तक दिल्ली सीमा पर आंदोलन करके सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। सरकार जिस जोश में ये कृषि कानून लायी थी, किसानों ने उसी जोश से उनका विरोध किया और एक साल तक लगातार प्रदर्शन करके यह दिखा दिया कि वे किसी भी तरह सरकर के सामने झुकने वाले नहीं हैं। इसके बाद सरकार ने एक माह में कानून वापस भी ले लिये हैं और किसानों से उनकी पांच प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा भी किया है। इसके बाद किसानों नेअपना आंदोलन स्थगित करके दिल्ली सीमा से अपना डेरा हटाते हुए घरों को लौट गये। घर वापसी पर किसानों का वीरों की भांति पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया। जाते जाते किसानों ने सरकार को यह चेतावनी भी दी है कि यदि जरूरत पड़ी ते वह फिर दिल्ली सीमा पर आकर आंदोलन कर सकते हैं।
ये भी पढ़ें: कृषि कानूनों के विरोध को थामने की तैयारी
ये भी पढ़ें: तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा
ये भी पढ़ें: नए नहीं कृषि कानून: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
किसान अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर 13 फरवरी को दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। किसानों के दिल्ली चलो अभियान को लेकर दिल्ली-हरियाणा में प्रशासन हाई अलर्ट पर है।
साथ ही, पुलिस के द्वारा दिल्ली के पास बॉर्डरों पर रविवार से धारा 144 लगा दी गई है, जिसकी वजह से दिल्ली की सीमाओं को पूरी तरह से सील कर दिया गया है। ताकि किसान यूनियन दिल्ली में प्रवेश न कर सके।
किसान संगठनों का मार्च राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की तरफ तीव्रता के साथ आगे बढ़ रहा है। दरअसल, कृषकों ने 13 फरवरी, 2024 मतलब की मंगलवार के दिन 'दिल्ली चलो मार्च'/ Delhi Chalo March का आह्वान किया है।
किसानों के विरोध प्रदर्शन और शांति को बरकरार रखने के लिए दिल्ली पुलिस ने रविवार के दिन राष्ट्रीय राजधानी में धारा 144 लागू कर दी है। ऐसा कहा जा रहा है, कि धारा 144 दिल्ली में 11 मार्च, 2024 मतलब कि पूरे एक महीने तक प्रभावित रह सकती है।
किसानों के ‘दिल्ली चलो’ अभियान से पहले ही दिल्ली और हरियाणा में प्रशासन हाई अलर्ट पर है। दिल्ली से सटी सीमाओं को पुलिस के द्वारा सील कर दिया गया है। साथ ही, हरियाणा के विभिन्न जनपदों में इंटरनेट सेवा को भी बंद कर दिया गया है।
मीडिया एजेंसियों के मुताबिक, दिल्ली के किसी भी बॉर्डर पर लोगों के द्वारा भीड़ इकट्ठा होना कानून के खिलाफ माना जाएगा। साथ ही धारा 144 लागू होने के बाद से दिल्ली की सीमाओं से ट्रैक्टर, ट्रॉली, बस, कमर्शियल व्हीकल, घोड़े आदि वाहनों के आने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इसके अतिरिक्त दिल्ली की सीमा से बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति का लाठी, रोड़, हथियार और तलवार आदि सामानों का लाना प्रतिबंधित कर दिया गया है।
अगर कोई भी व्यक्ति आदेशों का उल्लंघन करते हुए पकड़ा जाता है, तो वह भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 188 के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाएगा।
ये भी पढ़ें: सरकार के नए कृषि कानूनों से किसानों को कितना फायदा और कितना नुकसान
ट्रैफिक पुलिस/ Traffic Police के माध्यम से दी गई जानकारी के अनुसार, दिल्ली से सटी सीमाऐं जैसे कि सिंघु बॉर्डर से आने वाली कमर्शियल गाड़ियों/ Commercial Vehicles के आने जाने को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
यह भी बताया जा रहा है, कि 13 फरवरी मतलब की मंगलवार के दिन दिल्ली की सीमाओं को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। ऐसे में आम जनता को भी आने-जाने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
बतादें, कि किसान विरोध प्रदर्शन को देखते हुए अप्सरा भोपरा, गाजीपुर, गाजियाबाद आदि बॉर्डर पर पुलिस की पहरेदारी व बैरिकेडिंग को बढ़ा दिया गया है। ताकि किसान यूनियन दिल्ली में प्रवेश न कर सके।
किसान संगठनों के दिल्ली कूच की घोषणा के बाद रविवार के दिन हरियाणा के लगभग 15 जनपदों में भी धारा 144 को लागू कर दिया गया है। साथ ही, हरियाणा के विभिन्न जिलों जैसे कि जींद, हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, अंबाला, कुरुक्षेत्र और कैथल में बीते कल, रविवार के दिन सुबह 6 बजे से इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया था। ऐसा बताया जा रहा है, कि इन जनपदों में इंटरनेट की सेवाएं 13 फरवरी तक बंद रह सकती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वाले कानून को लेकर पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान संगठनों ने 13 फरवरी, 2024 के दिन विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।
संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा के द्वारा 13 फरवरी को 'दिल्ली चलो' मार्च का ऐलान किया है। अनुमान है कि इस मार्च में करीब 200 से भी अधिक किसान यूनियन हिस्सा ले सकते हैं।
इस किसान आंदोलन को लेकर किसानों की मांगे हैं, कि सरकार MSP की कानूनी गारंटी, किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसान और खेतिहर मजदूरों की पेंशन, कृषि ऋण माफी और लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय मिले।
भारत सरकार ने हाल ही में महान कृषि वैज्ञानिक एम.एस स्वामीनाथन को मरणोपरांत किसानों के लिए दिए गए योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया है। आज फसलों के लिए MSP कानून की मांग कर रहे किसान एम.एस स्वामीनाथन के C2+50% फॉर्मूले के अंतर्गत एमएसपी की धनराशि का भुगतान करने की मांग कर रहे हैं।
देशभर के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने सहित 12 मांगों के समर्थन में दिल्ली कूच कर रहे हैं। किसानों के लिए कई जगह सीमाओं को सील कर दिया गया है। यह पहली बार नहीं है, कि किसान सड़कों पर उतरें हैं। किसान हमेशा से अपनी मांगों को आंदोलन के माध्यम से उठाते आ रहे हैं। किसान एम एस स्वामीनाथन आयोग की एमएसपी पर की गई सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। चलिए जानते हैं, स्वामीनाथन आयोग और उसकी सिफारिशों के बारे में।
किसानों की समस्याओं के अध्ययन के लिए नवंबर 2004 में मशहूर कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। इसे 'नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स' कहा गया था। दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 तक इस कमेटी ने सरकार को छह रिपोर्ट सौंपी। इनमें कई सिफारिशें की गई थीं।
ये भी पढ़ें: कृषि कानूनों की वापसी, पांच मांगें भी मंजूर, किसान आंदोलन स्थगित
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें उनकी फसल लागत का 50 फीसदी ज्यादा देने की सिफारिश की थी। इसे C2+50% फॉर्मूला कहा जाता है। आंदोलनकारी किसान इसी फार्मूले के आधार पर MSP गारंटी कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं।
मालूम हो कि स्वामीनाथन आयोग ने इस फार्मूले की गणना करने के लिए फसल लागत को तीन हिस्सों यानी A2, A2+FL और C2 में बांटा था। A2 लागत में फसल का उत्पादन करने में सभी नकदी खर्चे को शामिल किया जाता है। इसमें खाद, बीज, पानी, रसायन से लेकर मजदूरी इत्यादि सभी लागत को जोड़ा जाता है।
A2+FL कैटगरी में कुल फसल लागत के साथ-साथ किसान परिवार की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है। जबकि C2 में नकदी और गैर नकदी लागत के अलावा जमीन का लीज रेंट और उससे जुड़ी चीजों पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल किया जाता है। स्वामीनाथन आयोग ने C2 की लागत को डेढ़ गुना यानी C2 लागत के साथ उसका 50 फीसदी खर्च जोड़कर एमएसपी देने की सिफारिश की थी। अब किसान इसी फॉर्मूले के अंतर्गत उन्हें एमएसपी देने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, सरकार और किसानों के बीच फिलहाल इस मुद्दे का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है।
बीते कई महीनों से किसान अपनी मांगों को लेकर धरना और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान फसलों पर एमएसपी कानून सहित बहुत सारी मांगों को लेकर किसान संगठनों ने एक बार फिर हुंकार भरी है।
किसान संगठनों ने सात अप्रैल को भारतभर में जुलूस निकालने की घोषणा कर दी है। इसके अलावा शम्भू बॉर्डर पर रेलवे ट्रैक को भी जाम करने का ऐलान किया है।
संगठनों ने इस दौरान भारतीय जनता पार्टी का पुतला भी फूंकने की बात कही है। साथ ही, 3 से 11 अप्रैल तक कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में युवा किसान शुभकरण सिंह की श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जाएंगी।
बतादें, कि 13 फरवरी से किसान आंदोलन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसान शम्भू बॉर्डर, खनौरी, डबवाली और रतनपुरा बॉर्डर पर डटे हुए हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने चंडीगढ़ के किसान भवन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। किसान नेताओं का कहना है, कि सरकार ने हाल ही में बहुत सारी मंडियों को समाप्त कर के गेहूं की फसल सीधे साइलो में लेकर जाने का आदेश जारी किया है,
यह भी पढ़ें: रामलीला मैदान में 'किसान मजदूर महापंचायत' के लिए किसानों का जमावड़ा शुरू
जो पिछले दरवाजे से तीन कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने के समान है। किसान नेताओं ने बताया कि 10 फरवरी से हरियाणा में सैंकड़ों किसानों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 5 किसान नेता अभी भी जेल में हैं।
किसान नेताओं का कहना है, कि कि सभी बार्डरों पर किसानों को परेशान करने के लिए बिजली व्यवस्था को जानबूझकर बाधित किया जा रहा है, जिस से किसानों को बहुत सारी दिक्कत-परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
दोनों मोर्चों ने निर्णय लिया है, कि मंडियों को बचाने के लिए जेल में बंद किसानों की रिहाई के लिये एवं किसानी मोर्चों पर बिजली की उचित व्यवस्था के लिए 7 अप्रैल को भारतभर में जिला स्तर पर बड़े जुलूस निकालकर सरकार का विरोध किया जाएगा।
अगर सरकार ने उसके बाद भी किसानों की इन बातों को नहीं माना तो 9 अप्रैल को शम्भू बॉर्डर पर रेलवे ट्रैक को जाम किया जाएगा और उसके बाद आने वाले दिनों में रेल रोकने के स्थान बढ़ाये जा सकते हैं।