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milk production

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

पशुपालकों को हरा चारा सुनिश्चित करने के लिए काफी अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भारतीय मौसम विगाग का कहना है, कि इस बार गर्मी अपने चरम स्तर पर पहुँचने की आशंका है। 

विगत दिनों तापमान में सामान्य से अधिक वृद्धि होने की वजह से पशुपालकों के हरे चारे की उपलब्धता में गिरावट आ रही है। क्योंकि, तापमान में वृद्धि होने के कारण खेतों में नमी की मात्रा में गिरावट देखने को मिल रही है। 

हरे चारे पर इसका प्रत्यक्ष तौर प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस वजह से पशुपालकों को वक्त रहते ही हरे चारे की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए, जिससे आगामी समय में पशु को पर्याप्त चारा हांसिल हो सके। 

क्योंकि, हरे चारे के अभाव का सीधा प्रभाव पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। नतीजतन, पशुपालकों की कमाई में गिरावट आने लगती है। 

हरे चारे की किल्लत को दूर करने वाली फसलें इस प्रकार हैं ?

आप सब ने लोबिया, मक्का और ज्वार  का नाम तो सुना ही होगा। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि लोबिया, मक्का और ज्वार का चारा पशुओं के लिए बेहद लाभकारी होता है। 

इसके अतिरिक्त मक्का, ज्वार और लोबिया फसल लगाने से किसान हरे चारे की किल्लत से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि, यह एक तीव्रता से बढ़ने वाले हरे चारे वाली फसलें हैं। 

इसके अतिरिक्त इन चारों के साथ सबसे खास बात यह है, कि इनकी खेती करने से खेत की उर्वरक क्षमता को भी प्रोत्साहन मिलता है, जिससे किसान अगली फसल में मुनाफा उठा सकते हैं। वहीं, इसके प्रतिदिन सेवन से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होता है।

मक्का 

पशुओं के लिए पशुपालक हरा चारा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मक्के की संकर मक्का गंगा-2, गंगा-7, विजय कम्पोजिट जे 1006 अफ्रीकन टॉल, प्रताप चारा-6 आदि जैसी प्रमुख मक्का की उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं।

ज्वार

गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरे चारे की किल्लत को दूर करने के लिए ज्वार की पूसा चरी 23, पूसा हाइब्रिड चरी-109, पूसा चरी 615, पूसा चरी 6, पूसा चरी 9, पूसा शंकर- 6, एस. एस. जी. 59-3 (मीठी सूडान), एम.पी. चरी, एस.एस. जी.-988-898, एस. एस. जी. 59-3, • जे.सी. 69. सी. एस. एच. 20 एमजी, हरियाणा ज्वार- 513 जैसी विशेष किस्मों की खेती कर सकते हैं। 

लोबिया 

लोबिया एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाली फलियां हैं, जिसकी खेती बीजों अथवा चारे के लिए की जाती है। इसकी पत्तियाँ अंडाकार पत्तों वाली त्रिकोणीय होती हैं, जो 6-15 सेमी लंबी और 4-11 सेमी चौड़ाई वाली होती हैं। 

लोबिया के फूल सफेद, पीले, हल्के नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी फली जोड़े में पाई जाती हैं। इसकी प्रति फली में 8 से 20 बीज होते हैं। इसके साथ ही बीज सफेद, गुलाबी, भूरा या काला होता है।

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

किसान भाइयों आजकल दूध और दूध से बने पदार्थ की बहुत मांग रहती है। पशुपालन से किसानों को बहुत लाभ मिलता है। पशुपालन का असली लाभ तभी मिलता है जब उसका पशु पर्याप्त मात्रा में दूध दे और दूध में अच्छा फैट यानी वसा हो। 

क्योंकि बाजार में दूध वसा के आधार पर महंगा व सस्ता बिकता है। आइये जानते हैं कि पशुओं में दूध उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये। 

 किसान भाइयों आपको अच्छी तरह से जान लेना चाहिये कि पशुओं में दूध उत्पादन उतना ही बढ़ाया जा सकता है जितना उस नस्ल का पशु दे सकता है।  

ऐसा ही फैट के साथ होता है। दूध में वसा यानी फैट की मात्रा पशु के नस्ल पर आधारित होती है। ये बातें आपको पशु खरीदते समय ध्यान रखनी होंगी और जैसी आपको जरूरत हो उसी तरह का पशु खरीदें।

दूध उत्पादन कम होने के कारण (Due to low milk production)

  1. संतुलित आहार की कमी होना।
  2. पशुओें की देखभाल में कमी होना।
  3. बच्चेदानी की खराबी व अन्य बीमारियों का होना
  4. टीके लगाने का साइड इफेक्ट होना
  5. चारा-पानी के प्रबंधन में कमी होना।

पशुओं की देखभाल कैसे करें

दुधारू पशु की देखभाल किसान भाइयों को 24 घंटे करनी चाहिये। कोई-कोई किसान भाई कहते हैं कि अपने पशुओं के चारे-दाने पर बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं लेकिन फिर भी उनका दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है।  

आपने किसी जानवर को दूध के हिसाब से 5 किलो सुबह और 5 किलो शाम दाना खिला दिया , उसके बाद भी दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है। आपको दो समय की जगह पर उतनी ही मात्रा को चार बार देना है और समय-समय पर पानी का प्रबंध भी करना है।

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कैसा होना चाहिये पशुओं का संतुलित आहार

किसान भाइयों  आपको पशुओं की नस्ल, उनकी कद-काठी एवं दूध देने की क्षमता के अनुसार संतुलित आहार देना चाहिये। आइये जानते हैं कुछ खास बातें:-

  1. पशुओं के संतुलित आहार में, 60 प्रतिशत हरा चारा खिलाना चाहिये तथा 40 प्रतिशत सूखा चारा जिसमें दाना व खल भी शामिल है, खिलाना चाहिये।
  2. हरे चारे में घास, हरी फसल व बरसीम आदि देना चाहिये
  3. सूखे चारे में गेहूं, मक्का, ज्वार-बाजरा आदि का मिश्रण बनाकर भूसे के साथ देना चाहिये।
  4. पशुओं को दिन में 30 से 32 लीटर पानी देना चाहिये।
  5. पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने गाय को प्रतिदिन 5 किलो और भैंसको प्रतिदिन 10 किलो दाना खिलाना चाहिये।
  6. वैसे तो पशुओं को सुबह शाम सानी की जाती है लेकिन कोशिश करें कि कम से कम तीन बार तो आहार दें और कम से कम इतनी ही बार उन्हें पानी पिलायें।
  7. खली में सरसों ,अलसी व बिनौले की खली देना पशुओं के लिए उत्तम है। इससे दूध और उसका फैट बढ़ता है।

संतुलित आहार का मिश्रण कैसे तैयार करें

  1. गेहूं, जौ, बाजरा और मक्का का दानें से संतुलित आहार तैयार करें। आहार में दाने का हिस्सा 35 प्रतिशत रखना चाहिये।
  2. संतुलित आहार बनाते समय खली का विशेष ध्यान रखना चाहिये। क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग तरह की खली मिलती है। वैसे दूध की क्वालिटी अच्छी करने में सरसों की खली सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि किसी क्षेत्र में सरसों की खली न मिले तो वहां पर मूंगफली की खली, अलसी की खली या बिनौला की खली का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आहार में खली की मात्रा 30 प्रतिशत होनी चाहिये।
  3. चोकर या चूरी भी पशुओं के दूध बढ़ाने में बहुत सहायक हैं। चोकर या चूरी में गेहूं का चोकर,चना की चूरी, दालों की चूरी और राइस ब्रान आदि का प्रयोग संतुलित आहार में किया जाना चाहिये। आहार में चोकर या चूरी की मात्रा भी एक तिहाई रखनी चाहिये।
  4. खनिज लवण दो किलो या अन्य साधारण नमक एक किलो पशुओं को देने से उनका हाजमा सही रहता है तथा पानी भी अधिक पीते हैं। इससे उनके दूध उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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मौसम के अनुसार करें पशुओं की देखभाल

हमारे देश में प्रमुख रूप से सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम होते हैं। इन मौसमों में पशुओं की देखभाल करनी जरूरी होती है।

  1. चाहे कोई सा मौसम हो पशुओं को स्वच्छ व ताजा पानी पिलाना चाहिये। ताजे पानी से वो पेट भर कर पानी पी लेगा। बासी व गंदा पानी पीने से अनेक तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ठंडा बर्फीला और गर्मियों में गर्म पानी होने से पशु अपनी प्यास का आधा ही पानी पी पाता है। इससे उसके स्वास्थ्य को तो नुकसान होता ही है और उसके दुग्ध उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।
  2. आवास का प्रबंधन करना होगा। गर्मियों में पशुओं को गर्मी के प्रकोप से बचाना होता है। उन्हें प्रचंड धूप व गर्म हवा लू से बचायें। धूप के समय उनको साये में बनी पशुशाला में रखें। उन्हें अधिक बार पानी पिलायें। पानी पर्याप्त मात्रा में हो तो दिन में एक बार उन्हें ताजे पानी से नहलायें। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य रहेगा और स्वस्थ रहकर दुग्ध उत्पादन बढ़ा पायेंगे।
  3. सर्दियों में पशुओं के आवास का विशेष प्रबंधन करना होता है। शाम को या जिस दिन अधिक सर्दी हो, तब उन्हें साये वाले पशुशाला में रखें। उनके शरीर पर बोरे की पल्ली ओढ़ायें। पशु शाला में थोड़ी देर के लिए आग जलायें। आग जलाते समय स्वयं मौजूद रहें। जब आपका कहीं जाना हो तो आग को बुझायें । यदि तसले आदि में आग जलाई हो तो वहां से हटा दें।

मौसम के अनुसार आहार पर भी दें ध्यान

मौसम के बदलाव के अनुसार पशुओं के आहार में भी बदलाव करना चाहिये। गर्मियों के मौसम में संतुलित आहार बनाते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वो अपने पशुओं को ऐसी कोई चीज न खिलायें जिसकी तासीर गर्म होती हो। इस समय गुड़ और बाजरे से परहेज करना चाहिये।

गर्मियों के मौसम का आहार

गर्मियों के लिए आहार में गेहूं, जौ, मक्के का दलिया,चने का खोल, मूंग का छिलका, चने की चूरी, सोयाबीन, उड़द, जौ, तारामीरा,आंवला और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार करके पशुओं को देना चाहिये।

सर्दियों के मौसम का आहार

सर्दियों के मौसम के आहार में गेहूं, मक्का, बाजरा का दलिया, चने की चूरी, सोयाबीन, दाल की चूरी, हल्दी, खाद्य लवण व सादा नमक का मिश्रण तैयार करें। 

इसके अलावा सर्दियों के मौसम में गुड़ और सरसों का तेल भी दें। बाजरा और गुड़ का दलिया भी अलग से दे सकते हैं। यह ध्यान रहे कि यह दलिया केवल अधिक सर्दियों में ही दें। 

खास बात

पशुओं को खली देने के बारे में भी सावधानी बरतें। सर्दियों के समय हम खली को रात भर भिगोने के बाद पशुओं को देते हैं। गर्मियों में ऐसा नहीं करना चाहिये। सानी करने से मात्र दो-तीन घंटे पहले ही भिगो कर ही दें।

फैट्स बढ़ाने के तरीके

पशुओं में फैट्स उनकी नस्ल की सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। फिर भी कोई पशु अपनी नस्ल की सीमा से कम फैट देता है तो उसको बढ़ाने के लिए निम्न उपाय करें:-

  1. शाम को जब पशुओं को रात्रि विश्राम के लिए बांधा जाये तो उस समय 300 ग्राम सरसों के तेल को 300 ग्राम गेहूं के आटे में मिलाकर दें और उसके बाद पानी न दें।
  2. अच्छा फैट देने वाले किसान भाइयों को चाहिये कि वो दूध दुहने से दो घंटे पहले ही पानी पिलायें, उसके बाद नहीं । ऐसा करने से फैट बढ़ेगा।
  3. दूध दुहने से पहले बच्चे को पहले दूध पिलायें क्योंकि पहले वाले दूध में फैट कम होता है और बाद वाले दूध में फैट अधिक होता है। यदि आपका दुधारू पशु दस-12 लीटर दूध देता है तो उसको एक चौथाई दूध दुह कर बर्तन बदल लें। बाद में जो दूध दुहेंगे उसमें फैट पहले वाले से अधिक निकलेगा।

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया को बहुत ही पोषक फसल माना जाता है। इसको पूरे भारत भर में उगाया जाता है। लोबिया के बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है।

लोबिया मनुष्य के खाने का पौष्टिक तत्व है तथा पशुधन चारे का अच्छा स्रोत भी है| ये दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने का भी अच्छा जरिया बनता है तथा इसके खाने से पशु का दूध भी पौष्टिक होता है| 

इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0.08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है| 

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लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी:

जैसा की आमतौर पर सभी फसलों के लिए गोबर की बनी हुई खाद बहुत आवश्यक होती है उसी तरह से लोबिया की फसल के लिए भी गोबर की सड़ी खाद बहुत आवश्यक होती है. 

इसके खेत में बुवाई से पहले नाइट्रोजन की मात्रा 20 kg पर एकड़ के हिसाब से मिला देना चाहिए. गोबर की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। जिससे की खाद में जो भी खरपतवार हो वो उग जाये और नष्ट हो सके| 

खाद डालने के बाद इसमें हैरो से 2 बार जुताई कर दें तथा 1 बार कल्टीवेटर निकाल दें जिससे की मिटटी मिलाने के साथ साथ इसमें गहराई भी आ सके| 

मिटटी और उर्वरक:

इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. वैसे इसके लिए रेतीली और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है. जल निकासी की सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए. 

लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाष 50 किग्रा/हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें। 

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मौसम और बोने का समय:

मौसम की अगर हम बात करें तो इसके लिए गर्म और नमी वाला मौसम अच्छा रहता है. इसको फ़रवरी,-मार्च और जून,-जुलाई में उगाया जा सकता है. 

इसके लिए 20 से 30 डिग्री तक का तापमान उचित रहता जो की इसके बीज को अंकुरित होने में सहायता करता है. 17 डिग्री से कम के तापमान पर इसे उगाना संभव नहीं है. 

लोबिया की उन्नत प्रजातियां:

हमारे कृषि वैज्ञानिक लगातार अपनी फसलों में उन्नत किस्में लेन के लिए मेहनत करते रहते हैं. लोबिया के लिए भी कुछ अच्छी पैदावार वाली किस्में विकसित की हैं. लोबिया की कुछ उन्नत प्रजातियां हैं जो निचे दी गई हैं|

  1. पूसा कोमल: लोबिया की यह किस्म रोग प्रतिरोधक है. इसमें आसानी से रोग नहीं आता है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है|
  2. पूसा बरसाती: जैसा की नाम से ही पता चलता है इसको बरसात के मौसम में यानि जुलाई के महीने में लगाना ज्यादा सही रहता है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है. खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
  3. अर्का गरिमा: अर्का गरिमा पौधे ऊँचे और लम्बे होते है तथा ये पशु चारे के लिए भी उपयुक्त होते हैं। फलियाँ हल्की हरी, लंबी, मोटी, गोल, माँसल और रेशे-रहित हैं। सब्जी बनाने के लिए उत्तम हैं। ताप और कम नमी के प्रति सहनशील है।
  4. पूसा फालगुनी: जैसा की नाम से विदित हो रहा है इसको फ़रवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. इसका पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा किस्म के होते है| इसकी फली का रंग गहरा हरा होता है. इनकी लंबाई 10 से 20 सेमी होती है. खास बात है कि यह लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
  5. पूसा दोफसली: किस्म को फ़रवरी से लेकर जुलाई, अगस्त तक लगाया जा सकता है, ये तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

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साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय है। अगर आप भी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करना चाहते हैं, तो ये 5 मोबाइल एप आपकी सहायता करेंगे। ये ऐप 4 भाषाओं में मौजूद हैं। किसान भाई खेती के साथ-साथ पशुपालन भी हमेशा से करते आ रहे हैं। परंतु, कुछ ऐसे किसान भी हैं, जो अपनी आर्थिक तंगी की वजह से गाय-भैंस जैसे बड़े-बड़े पशुओं का पालन नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह मुर्गी पालन और बकरी पालन आदि करते हैं। भारतीय बाजार में इनकी मांग भी वर्षभर बनी रहती है। यदि देखा जाए तो किसानों के द्वारा बकरी पालन सबसे ज्यादा किया जाता है। यदि आप भी छोटे पशु मतलब कि बकरी पालन (Goat Farming) से बेहतरीन मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको नवीन तकनीकों की सहायता से इनका पालन करना चाहिए। साथ ही, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (Central Goat Research Institute) के द्वारा निर्मित बकरी पालन से जुड़े कुछ बेहतरीन मोबाइल ऐप का उपयोग कर आप अच्छे से बकरी पालन कर सकते हैं। इन ऐप्स में वैज्ञानिक बकरी पालन, बकरियों का सही प्रबंधन, उत्पादन एवं कीमत आदि की जानकारी विस्तार से साझा की गई है।

बकरी पालन से संबंधित पांच महत्वपूर्ण एप

बकरी गर्भाधान सेतु

बकरी की नस्ल में सुधार करने के लिए बकरी गर्भाधान सेतु एप को निर्मित किया गया है। इस एप में वैज्ञानिक प्रोसेस से बकरी पालन की जानकारी प्रदान की गई है।

गोट ब्रीड ऐप

यह एप बकरियों की बहुत सारी नस्लों की जानकारी के विषय में विस्तार से बताता है, ताकि आप बेहतरीन नस्ल की बकरी का पालन कर उससे अपना एक अच्छा-खासा व्यवसाय खड़ा कर पाएं।

गोट फार्मिंग ऐप

यह एप लगभग 4 भाषाओं (हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी) में है। इसमें बकरी पालन से जुड़ी नवीन तकनीकों के विषय में बताया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें देसी नस्ल की बकरी, प्रजनन प्रबंधन, बकरी की उम्र के हिसाब से डाइट, बकरी का चारा, रखरखाव एवं देखभाल के साथ-साथ मांस और दूध उत्पादन आदि की जानकारी के विषय में जानकारी प्रदान की गई है।

बकरी उत्पाद ऐप

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस एप के अंदर बाजार में कौन-कौन की बकरियों की मूल्य वर्धित उत्पादों की बाजार में मांग। साथ ही, कैसे बाजार में इससे अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं। यह एप भी हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है।

बकरी मित्र

इस एप में बकरियों के प्रजनन प्रबंधन, मार्केटिंग, आश्रय, पोषण प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन एवं खान-पान से संबंधित जानकारी प्रदान की जाती है। साथ ही, इसमें बकरी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें किसानों की सहायता के लिए कॉल की सुविधा भी दी गई है। जिससे कि किसान वैज्ञानिकों से बात कर बेहतर ढ़ंग से बकरी पालन कर सकें। बकरी मित्र एप को विशेषतौर पर यूपी एवं बिहार के किसानों के लिए तैयार किया गया है।
‘सुपर काऊ’ से फिर फेमस हुआ चीन, इस मामले में छोड़ा दुनिया को पीछे

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सुपर काऊ का नामा सुनते ही सभी के जहन में गाय से जुड़ा कोई ना कोई ख्याल जरूर आ रहा हो होगा. तो आपको बता दें कि, आपका यह ख्याल कुछ हद तक सही भी है. लेकिन आप उस जगह तक सोच भी नहीं सकते जिस जगह तक चीन ने कर दिखाया है. क्योंकि इस मामले में चीन ने दुनिया को पीछे छोड़ दिया है. चीनी साइंटिस्ट ने तीन सुपर काऊ का एक अनोखा क्लोन बनाया है, जो सोच से भी ज्यादा दूध देगी. हालांकि चीन ने अपने डेयरी उद्योग को बढ़ाने कजे लिए इस क्लोन को बनाया है. जानकारी के मुताबिक इस क्लोन को नार्थ वेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी के साइंटिस्टों ने बनाया है. इस क्लोन से लगभग तीन बछिया का जन्म नये साल से पहले निंग्जिया क्षेत्र में हुआ. साइंटिस्टों के मुताबिक यह सभी बछियाँ जब मां बनेंगे तो कम से कम 16 से 18 टन तक दूध देंगे. यानियो यह तीनों बछियाँ सुपर काऊ बनकर अपनी पूरे जीवन में सौ टन दूध देंगे. बताया जा रहा है कि, क्लोन किये गये इन बछियों में से सबसे पहली बछिया 30 दिसंबर को ऑपरेशन के जरिये हुआ था. जिसका वजह आम बछियों की तुलना में ज्यादा था.

आसान नहीं इन्हें पालना

जानकारी के मुताबिक साइंटिस्टों ने ज्यादा दूध देने वाली गायों के कानों की कोशिकाओं की मदद से कुल 120 भ्रूण बनाए. जिसके बाद उन्हें सेरोगेट गायों में रखा गया. हालांकि साइंटिस सुपर काऊ के जन्म को सक्सेस बता रहे हैं. जो चीन में डेयरी उत्पादकों को बढ़ाएंगे ही साथ में मालामाल भी कर देंगे. सुपर काऊ का प्रजनन जल्दी बंद हो जाता है. जिसके बाद उन्हें पलना मुश्किल हो सकता है. ये भी देखें: बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

सुपर काऊ का बनेगा झुंड

चीन में आधे से ज्यादा डेयरी गायों को विदेश से मंगाया जाता है. ऐसे में विदेशी गायों पर निर्भरता कम करने के लिए सुपर काऊ का क्लोन बनाया गया है. ऐसे में चीन सुपर काऊ का झुंड बनाने की तैयारी कर रहा है, जिसमें एक हजार से ज्यादा सुपर काऊ शामिल होंगी. इतना ही नहीं चीन आने वाले दो से तीन सालों में ऐसा करने में सफल भी हो जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि, अमेरिका समेत कई देशों में ज्यादा दूध के उत्पादन के लिए जानवरों के साथ क्लोन को पैदा करते हैं. लेकिन चीन ने पिछले कुछ सालों में जानवरों के क्लोन में बड़ी उपलब्धी हासिल की है. इससे पहले चीन ने पहला क्लोन आर्कटिक भेड़िया भी बनाया था. चीन में क्लोन जानवरों की वजह से कईदेशों के जानवरों को खतरा हो सकता है, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता.
इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

खेती और पशुपालन का साथ चोली दामन का रहा है. बहुत से किसान ऐसे हैं जो फसल उगाने के साथ-साथ पशुपालन से भी जुड़े हुए हैं. इसके अलावा हमारे देश में कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनके पास खेती करने के लिए बहुत ज्यादा जमीन नहीं होती है तो ऐसे में वह अपनी जीविका कमाने के लिए लगभग पूरी तरह से पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं. पशु पालन करने के लिए उन्नत पशुधन जितना ज्यादा जरूरी है उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसानों के पास हरा चारा उपलब्ध रहे. खासकर अगर किसान दुग्ध उत्पादन से अपनी जीविका चलाना चाहते हैं तो उनके पास साल भर  हरे चारे का इंतजाम होना बेहद जरूरी हो जाता है. ऐसे तो हरे चारे के लिए बरसीम,जिरका, गिन्नी, पैरा जैसे कई तो है के चारे इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका पशु ज्यादा से ज्यादा दूध दे तो इसके लिए नेपियर घास को सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है. थोड़े ही समय में यह घास बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और यही कारण है कि इसे’  हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. सबसे पहली अफ्रीका में उगाई जाने वाली यह नेपियर घास भारत में 1912 में पहली बार तमिलनाडु में उगाई गई थी और उसके बाद इस पर कई तरह के शोध करते हुए इसे और ज्यादा  बढ़िया क्वालिटी का कर दिया गया है.

एक बार लगा कर कर सकते हैं 5 साल तक कटाई

नेपियर घास की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है और साथ ही इसके लिए बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत ही नहीं लगती है. एक बार इसे उगाने के बाद 60 से 65 दिन के भीतर इसकी पहली कटाई की जा सकती है और उसके बाद हर 30 से 35 दिन के बीच में आप इस की कटाई जारी रख सकते हैं. यह घास ना केवल आपके पशुओं के लिए अच्छी है बल्कि ये भूमि संरक्षण का भी काम करती है.इसमें प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है. इसे दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. यह भी पढ़ें: हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow) अगर आपके पास चार से पांच पशुओं है तो आप केवल आधा बीघा जमीन में है घास लगाकर उनका अच्छी तरह से पालन पोषण कर सकते हैं.

कैसे करें नेपियर घास की खेती?

अगर आप इस गांव का उत्पादन गर्मियों की धूप और हल्की बारिश के समय में करते हैं तो आपको बहुत अच्छी खासी फसल का उत्पादन में सकता है. गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में यह घास जरा धीमी गति से बढ़ती है इसीलिए किसान जून-जुलाई के महीनों में इसकी सबसे ज्यादा बुवाई करते हैं और फरवरी के आसपास की कटाई चालू हो जाती हैं. नेपियर घास की खेती करते समय हमें गहरी जुताई करते हुए खेत में मौजूदा सभी तरह के खरपतवार को खत्म कर देना चाहिए.  इस फसल से हमें बीज नहीं मिलता है क्योंकि इसे तने की कटिंग करते हुए बोया जाता.

खाने से बढ़ जाती है पशुओं की दुग्ध क्षमता

नेपियर घास एक ऐसी खास है जिसे अगर दलहन के चारे में मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाए तो कुछ ही दिनों में उनके दूध देने की क्षमता 10 से 15% तक बढ़ सकती है. ऐसे में पशुपालक आजकल बढ़-चढ़कर इस फसल का उत्पादन कर रहे हैं ताकि वह ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन के जरिए मुनाफा कमा सकें.
बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

गर्मी में बढ़ोत्तरी होने की स्थिति में मवेशी चारा तक खाना कम कर देते हैं। इससे पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, तेज धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इसकी वजह से उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लग जाती है। आजकल देशभर में अत्यधिक गर्मी पड़ रही है। इससे आम जनमानस के साथ- साथ मवेशियों का भी हाल-बेहाल हो चुका है। सुबह के 9 बजते ही शरीर को तपा देने वाली गर्म हवाएं चलने लगती हैं। ऊपर से चिलचिलाती प्रचंड धूप ने लोगों को परेशान कर दिया है। विभिन्न राज्यों में तापमान 40 डिग्री के भी लांघ चुका है। इसकी वजह से मुख्यतः मवेशी बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं। गर्मी की वजह से दुधारू मवेशियों ने दूध देना कम कर दिया है। ऐसी स्थिति में पशुपालकों की आमदनी कम हो गई है।

दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट

मीडिया खबरों के अनुसार, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में तापमान 43 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है। तापमान में बढ़ोत्तरी होने से मवेशियों ने दूध देना तक कम कर दिया है। बतादें, कि बढ़ती गर्मी की वजह से दूध की पैदावार में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। वह दूध बेच कर पशु चारे पर आने वाली लागत जैसे-तैसे निकाल पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों का कहना है, कि यदि इसी प्रकार तापमान में वृद्धि जारी रही, तो दूध उत्पादन में और भी कमी आ सकती है। इससे उनको पशुपालन में घाटा उठाना पड़ सकता है। ये भी देखें: बढ़ते तापमान और गर्मी से पशुओं को बचाने की काफी आवश्यकता है

मवेशियों को सुबह-शाम तालाब में स्नान कराऐं

पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मी बढ़ने पर मवेशी चारा खाना काफी कम कर देते हैं। इससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, चिलचिलाती धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इससे उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लगती है, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दूध देने की क्षमता पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में दूध की मात्रा में कमी आने लगती है। ऐसी स्थिति में पशुओं को गर्मी और लू से संरक्षण देने के लिए सुबह- शाम उसे नहर अथवा तालाब में नहलाना चाहिए। इससे उनके शरीर का तापमान काफी कम रहता है, जिससे वह सेहतमंद रहते हैं।

मवेशियों को प्रतिदिन 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं

साथ ही, मवेशियों को गर्मी से बचाव के लिए 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं। साथ ही, पशुओं को छायादार और हवादार स्थान पर ही बांधे। यदि दोपहर में काफी ज्यादा तापमान बढ़ गया है, तब मवेशी के बाड़े में कूलर या पंखा भी चला सकते हैं। इससे मवेशियों को गर्मी से काफी सहूलियत मिलती है। यदि मवेशी सूखा चारा नहीं खा पा रहे हैं, तो उन्हें हरी- हरी घास खाने को दें। इससे दूध की पैदावार कम नहीं होगी। अगर संभव हो तो किसान भाई अपनी गाय- भैंस को लोबिया घास खाने के लिए उपलब्ध कराऐं। इसके अंदर काफी ज्यादा मात्रा में फाइबर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इससे गाय- भैंस पूर्व की तुलना में अधिक दूध देने लगती हैं।

यह घास दुग्ध उत्पादन को बढ़ा सकती है

यदि किसान भाई चाहते हैं, तो दूध की पैदावार बढ़ाने के लिए मवेशियों को अजोला घास भी खिला सकते हैं। यह घास पानी में उत्पादित की जाती है और पोषण से भूरपूर होती है। गर्मी के मौसम में इसे मवेशियों के लिए संजीवनी कहा गया है। साथ ही, प्रतिदिन 200 ग्राम सरसों के तेल में 250 ग्राम गेहूं का आटा मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन सुबह- शाम चारे के साथ मिश्रित करके मवेशियों को खिलाएं। सिर्फ एक हफ्ते तक ऐसा करें, इससे पशुओं में दूध देनी की क्षमता बढ़ सकती है।
जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

दुग्ध उत्पादन करके पशुपालक काफी अच्छा मुनाफा हांसिल करते हैं। जाफराबादी भैंस का नाम गुजरात के जाफराबाद इलाके पर पड़ा है। क्योंकि, इसकी उत्पत्ती जाफराबाद में हुई है। जाफराबादी भैंस बाकी भैंस के मुकाबले में अधिक दिनों तक दूध देती है। पशुपालक इसका पालन दूध उत्पादन क्षमता के लिए करते हैं। क्योंकि, ये बाकी भैंसों की तुलना में अधिक दूध देती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती एवं पशुपालन की काफी प्राचीन परंपरा है। विशेषकर विगत कुछ वर्षों में पशुपालन की ओर किसानों का रुझान बड़ी ही तीव्रता से बढ़ा है। खेती के पश्चात ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आमदनी का यह दूसरा प्रमुख हिस्सा है। पशुपालन के माध्यम से किसान काफी शानदार मुनाफा हांसिल कर रहे हैं। सामान्य तौर पर किसान गाय अथवा भैंस पालना ज्यादा पसंद करते हैं। क्योंकि, इनके दूध के माध्यम से किसान शानदार मुनाफा अर्जित कर हैं। दूध की बढ़ती मांग को मद्देनजर रखते हुए विगत कुछ समय में गाय-भैंस पालन का चलन तेजी से बढ़ा है। इसके साथ-साथ इसी मांग के जरिए डेयरी बिजनेस भी काफी बढ़ रहा है।

जाफराबादी भैंस की कद काठी

हालाँकि, गाय एवं भैंस की सारी प्रजातियां ही एक से बढ़कर एक हैं। परंतु, भैंस की एक नस्ल ऐसी है, जिसकी काफी ज्यादा चर्चा की जाती है। भैंस की इस नस्ल को भैंसों का 'बाहुबली' भी कहा जाता है। क्योंकि, ये भैंस दिखने में काफी हट्टी खट्टी होती है। खास बात यह है, कि इसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता बाकी गाय-भैसों की तुलना में काफी ज्यादा है। जी हां, हम बात करें रहे हैं, भैंस की जाफराबादी नस्ल के बारे में। ऐसे में यदि आप भी डेयरी व्यवसाय के माध्यम से मोटा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो जाफराबादी नस्ल की भैंस आपके लिए अच्छा विकल्प है।

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जाफराबादी भैंस की दुग्ध उत्पादन क्षमता और कीमत

जाफराबादी भैंस की उत्पत्ति गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से हुई है। यह गुजरात के गिर के जंगलों एवं आसपास के इलाकों, जैसे जामनगर, पोरबंदर, अमरेली, राजकोट, जूनागढ़ और भावनगर जनपदों में पाई जाती है। भैंस की इस नस्ल का नाम गुजरात के अमरेली जनपद के जाफराबाद क्षेत्र के नाम पर पड़ा है। यहां जाफराबादी भैंसों की नस्ल बड़ी तादात में देखने को मिलती है। जाफराबादी भैंस का वजन बेहद भारी होता है। दूध का व्यवसाय करने वाले लोगों के लिए भैंस की ये नस्ल किसी हीरे से कम नहीं है। क्योंकि, ये भैंस प्रतिदिन 20 से 30 लीटर तक दुग्ध उत्पादन करती है, जिससे किसानों को काफी अच्छा मुनाफा होता है। वहीं अगर इसकी कीमत की बात करें तो भैंस की इस नस्ल की कीमत 90 हजार रुपये से डेढ़ लाख रुपये तक होती है। जाफराबादी भैंस की अधिक दूध उत्पादन क्षमता के चलते ही यह इतनी ज्यादा महंगी कीमत पर बिकती है। इसे भावनगरी, गिर अथवा जाफरी के नाम से भी जाना जाता है।
दुग्ध उत्पादन की कमी को दूर करने के लिए इन बातों का रखें खास ध्यान

दुग्ध उत्पादन की कमी को दूर करने के लिए इन बातों का रखें खास ध्यान

वर्तमान में हमारे भारत में दूध की बेहद कमी है। हमें जितने दूध की जरूरत है, उतने दूध का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रहा है। विकसित देशों जैसे कि  स्वीडन, डेनमार्क, इजराइल और अमेरीका इत्यादि देशों में वार्षिक दूध पैदावार 5000 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रतिवर्ष है। इसके मुकाबले भारत में महज 1000 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रति वर्ष है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हर एक व्यक्ति को 280 ग्राम प्रतिदिन दूध की जरूरत पड़ती है। वहीं, वर्तमान में 190 ग्राम दूध प्रतिदिन प्रति व्यक्ति ही मौजूद है। अत: हमारे भारत में दूध का उत्पादन बढ़ाने की बेहद आवश्यकता है। पशुओं को आहार से विशेष रूप से वसा, खनिज, विटामिंस, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आदि पोषक पदार्थ मिलते हैं, जिनका इस्तेमाल ये मवेशी अपने जीवन निर्वाह, बढ़ोतरी, पैदावार, प्रजनन और कार्यक्षमता इत्यादि के लिये करते हैं। भारत के अंदर कम दूध देने वाले पशुओं की वजह करोड़ों भूमिहीन और सीमांत कृषक, फसलों के बचे अवशेष का उपयोग चारागाहों की कमी आदि है। देश के ऐसे इलाके जहां पर मिश्रित खेती की जाती है, वहां पर दूध उत्पादन सामान्यतः ज्यादा पाया जाता है। दुग्ध उत्पादन को कारोबार के रूप में लेने के लिये चारे, दाने, खलियों और दानों के उपजात पदार्थ बहुतायत सुगमता से उपलब्ध होने चाहिऐ।

बांझपन से ग्रसित पशुओं का झुंड से निष्कासन कर देना चाहिए   

सामान्यतः युवा पशुओं में बांझपन 2-3 फीसद तक और प्रौढ़ पशुओं में 5 से 6 फीसद तक देखने को मिल जाता है, जिनको कि झुंड से निकाल देना चाहिए। जिससे कि दुग्ध उत्पादन स्तर में गिरावट हो सके और उनसे होने वाली आमदनी पर दुष्प्रभाव पड़े। साथ ही, इन पशुओं पर चारा, दाना देखभाल में होने वाले खर्च को बचाया जा सके।

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मवेशियों की सेहत की भरपूर देखभाल करें   

चिकित्सा के स्थान पर बीमारी की रोकथाम काफी अच्छी होती है, जिससे कि उपचार में बेहतर निदान की अनिश्चितता की वजह से होने वाले खर्च और जोखिम से बचाया जा सके। गाय तथा भैसों को विभिन्न प्रकार के रोग लगने की संभावना बनी रहती है। क्योंकि यहां के मौसम में गर्मी एवं आर्द्रता  काफी ज्यादा होती है। इससे पशुओं की मृत्यु भी ज्यादा होती है। इन बीमारियों से बचाने के लिए पशुओं का टीकाकरण अवश्य करवाना चाहिए।

पशुओं को पर्याप्त मात्रा में आहार प्रदान करें 

पशुओं के लिए समुचित भोजन वह है, जो स्थूल, रूचिकर, रोचक, भूखवर्धक एवं संतुलित हो। साथ ही, इसमें पर्याप्त हरे चारे भी मिले हो, उसमें रसीलापन मिला हो एवं वह संतुष्टि प्रदान करने वाला हो। पशुओं को सामान्य तौर पर दिन में थोड़े-थोड़े वक्त के समयांतराल पर 3 बार भोजन देना चाहिए। पशुओं को हरा चारा जैसे कि गेंहू का भूसा, पुआल इत्यादि के साथ मिलाकर देना चाहिए। चारे दाने का संसाधन करने से जिस तरह दाना पीसना, कुट्टी काटना एवं भिगोना आदि से भी पशु आहार की उपयोगिता को बढ़ाया जा सकता है। जहां तक संभव हो पाए पशुओं को जरूरत के मुताबिक आहार बनाकर पृथक-पृथक तौर से दिया जाये। हर एक गोवंशीय पशु को 2 से 2.5 कि.ग्रा. और भैंस को 3 कि.ग्रा. प्रति 100 कि.ग्रा. शरीर भर पर शुष्क पदार्थ देना चाहिए। पशुओं को समकुल आहार का 2/3 भाग चारे के तौर में तथा 1/3 भाग दाने के रूप में दिया जाऐ। गर्भवती गाय और भैसों को 1.5 कि.ग्रा. दाना हर रोज देना चाहिए। शारीरिक विकास करने वाले पशुओं को 1 से 1.5 कि.ग्रा. प्रति पशु शरीर विकास के लिए दिया जाना चाहिए। पशु को जीवन निर्वाह करने हेतु 1 से 1.5 कि.ग्रा. दाना और दूध उत्पादन के लिए क्रमश: गायों को प्रति 3 लीटर दूध और भैंस को 2.5 लीटर दूध पर 1 कि.ग्रा. दाना देना चाहिए। पशु आहार में पर्याप्त खनिज लवण और विटामिंस भी होने अनिवार्य हैं।

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गर्भाधान कराकर अच्छी नस्ल की बछिया पैदा करें 

पशुओं को हमेशा स्वच्छ जल पर्याप्त मात्रा में मुहैय्या होना चाहिए। जीवन निर्वाह करने के लिए एक पशु को तकरीबन 30 लीटर रोजाना पानी की काफी मात्रा में जरूरत पड़ती है। चूंकि पानी की कमी से दुग्ध उत्पादन पर विपरीप असर पड़ता हैं। नर पशु से वीर्य कृत्रिम विधियों से अर्जित करके, जांच परख कर, मादा के जनन अंगों में स्वच्छतापूर्वक, उचित समय एवं उचित जगह पर पंहुचाने को कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है। दुधारू नस्ल के सांडों और उनके हिमीकृत वीर्य से अपनी गायों का गर्भाधान करवा कर उन्नत नस्ल की दुधारू बछिया अर्जित करनी चाहिए। जो कि दो वर्ष में गाय बनकर गर्भधारण करने लायक होगी, साथ ही, ज्यादा दूध भी प्रदान करेगी। कृत्रिम गर्भाधान के जरिए प्राप्त संकर गाय (जर्सी संतति) से ज्यादा दूध मिलता है। साथ ही, उस संकर जर्सी गाय को फिर से जर्सी नस्ल से गाभिन कराने पर 15-20 लीटर दूध देने वाली गाय हांसिल होती है।
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई इस तकनीक से अब मादा बछिया ही पैदा होंगी

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई इस तकनीक से अब मादा बछिया ही पैदा होंगी

खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन से जुड़े किसानों के लिए एक काफी अच्छी खबर है। दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने दूध के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की एक नयी तकनीक शुरू की है, जिससे गाय और भैंसों में केवल बछियों का ही जन्म होगा। वर्तमान में किसान अपनी आमदनी को दोगुनी करने के लिए खेती-बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन का काम भी करते हैं। इसी कड़ी में सरकार के द्वारा भी किसानों और पशुपालकों की आर्थिक तौर पर मदद की जाती है। 

बतादें, कि किसानों के फायदे के लिए केंद्र और राज्य सरकारें भी बहुत सारी योजनाओं को जारी करती हैं। ताकि पशुपालन को और भी ज्यादा प्रोत्साहन दिया जा सके। दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार ने दूध के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की एक नयी तकनीक सेक्स स़ाटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) का प्रारंभ किया है, जिससे सिर्फ बछियों का ही जन्म होगा।

सेक्स स़ाटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) क्या होता है ?

सेक्स साटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) एक ऐसी तकनीक है, जो पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान के लिए शुरू की गई है। इस तकनीक से गाय और भैंस में केवल मादा बच्चे उत्पन्न किए जाएंगे। इस सेक्स सॉटेड तकनीक से मादा पशुओं की संख्या बढ़ेगी और संख्या बढ़ने से दुग्ध उत्पादन में भी अच्छी-खासी वृद्धि देखने को मिलेगी।

कृत्रिम गर्भाधान घर-घर जा कर किया जा रहा है  

पशुओं की बेहतरीन नस्ल सुधार एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए वैज्ञानिक तकनीक सेक्स स़ाटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) लाई गई है। इस तकनीक का इस्तेमाल पशुपालन विभाग के पशु चिकित्सा सहायक व पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी अपने क्षेत्र के पशु चिकित्सालय, औषधालय व कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र एवं उस क्षेत्र के उन्नत किसानों के यहां घर-घर जाकर भी सेक्स साटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान कर रहे हैं। 

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सेक्स साटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) तकनीक से होने वाले फायदे क्या-क्या हैं ?

अब ये मानी सी बात है, कि इस सेक्स साटेर्ड तकनीक से किसानों के दुग्ध उत्पादन में अच्छी- खासी बढ़ोत्तरी होगी। इस तकनीक से मादा पशुओं की बढ़ोत्तरी होगी, जिससे दूध का उत्पादन भी बढेगा। इस तकनीक से दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ेगी। इस तकनीक से किसानों की आमदनी में इजाफा होगा।

सेक्स साटेर्ड सीमन (Sex Sated Semen) तकनीक से गर्भाधान का शुल्क 

सरकार द्वारा शुरू की गई इस तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान कराने के लिए अलग-अलग वर्गों से अलग-अलग कीमत हांसिल की जा रही है। इसमें सामान्य व पिछड़ा वर्ग के पशुपालकों के लिए 450 रुपए लगेगा एवं अनु जाति व जनजाति वर्ग के पशुपालकों से 400 रुपए का शुल्क लिया जाऐगा। इस तकनीक से जितने भी पशुओं में एआई की जाऐगी। उस पशु व उससे उत्पन्न पशु के बच्चा का युआईडी टैग चिन्हित कर जानकारी इनाफ सॉफ्टवेयर पर अपलोड कर दी जाएगी।