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सहजन की खेती : सेहत भी और आमदनी भी

सहजन की खेती : सेहत भी और आमदनी भी

सहजन की फलियां बेहद गुुणकारी होती हैं। इसकी पत्तियों का उपयोग भी दर्जनों बीमारियों में हाता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है। इसे विभिन्न क्षेत्रों में सहजन, सुजना, सेंंजन और मुनगा आदि नामों से जाना जाता है। 

इसके हर भाग का उपयोग पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसकी कच्ची फली और पत्तियों का उपयोग सब्जी में किया जाता है। जल को स्वच्छ करने के लिए भी इनका उपयोग होता है। 

सहजन का पौध 10 मीटर से भी ज्यादा लम्बा हो जाता है लेकिन लोग इससे अच्छी फली एवं पत्ती पाने के लिए इसकी मूल शाखा को एक से दो मीटर उूपर से काट देते हैं। 

इससे दो लाभ होते हैं। पहला पौधे के कल्लों की उूंचाई ज्यादा नहीं होती। दूसरा फली व पत्तों आदि को तोड़ने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

पोषक तत्वों की स्थिति

सहजन की कच्ची पत्तितयों एवं फलियां में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन बी1—बी2,  बी3, बी5, बी6,बी9, विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन, मैगनीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, जस्ता जैसे मूल एवं तकरीबन सभी शूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। 

सहजन का पत्ती, फली, छाल, जड़ एवं बीज से प्राप्त तेल आदि सभी का उपयोग भोजन में किया जा सकता है। इससे कुछ दवाएं भी बनाई जाती हैं। 

शरीर के लिए जरूरी तत्वों से भरपूर होने के कारण यह कई तरह की बीमारियोें से बचाता है। लोग तो यहां तक कहते हैं कि जो लोग दैनिक रूप से सहजन का उपयोग करते हैं वह तकरीबन तीन सौ बीमारियों से दूर रहते हैं।

क्या कहते हैं किसान

मथुरा जनपद के गांव खुशीपुरा निवासी मधु मलिक ने इसी तरह के विचार से प्रेरित होकर सहजन का बाग लगाया है। वह आठ माह का हुआ है। 

यदि बाजार में पत्त्यिों की कीमत की बात करें तो खरीददार 40 से 45 रुपए प्रति किलोग्राम का रेट बता रहे हैं। इसके अलावा बीज की बात करें तो कर्नाटक आदि राज्यों में सहजन पर काम करने वाले लोग इसका बीज दो से चार हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बेच लेते हैं। 

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बकरियों के चारे को लगा वेटरिनरी विवि में बाग

मथुरा के वेटरिनरी विश्वविद्याल में बकरियों को बीमारियों से बचाने और सभी पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए सहजन का बाग लगाया गया है। इससे पत्तियां संकलित कर बकरियों को खिलाया जाएगा। इसके परिणामों का आकलन भी अनुसंधान कर किया जाएगा।

मोरिंगा पाउडर बेच रहा किसान

मथुरा के बाबूगढ़ गांव के प्रगतिशील किसान चरन सिंह बताते हैं कि पीकेएम 1 पत्ती वाली किस्म है। वह पत्ती का पाउडर मोरिंगा पाउडर को पीसकर एक हजार रुपए प्रति किलो बेच रहे हैं। 

वह कहते हैं कि एक साल में आठ से दस कटिंग हो जाती हैं। एक एकड़ में सबसे पहली कटिंग एक कुंतल निकलेगी। एक मीटर उूपर से पहली कटिंग काटते हैं। इसके बाद की बाकी सारी कटिंग नई शाखाओं में से चार इंच छोड़ छोड़ कर काट लेते हैं। 

फली के लिए दक्षिण की ओडीसी वेरायटी चलती है। डेढ फीट लंबी मोटी गूदादार फली लगती है।  पीकेएम 1 किस्म की फली ज्यादा लंबी हो जाती है लिहाजा इसकी बाजार में कीमत अच्छी नहीं मिलती।

साल में दो बार मिलती हैं फली

यदि पत्ती के लिए खेती करनी है तो कटिंग नहीं की जाती। कटिंग करनी हो तो फूल आने से काफी पहले करनी चाहिए ताकि फली बनने की प्रक्रिया पूरी हो सके। सहजन पर साल में दो बार फलियां लगती हैं।

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे मुनगा, सेजन और सहजन (Munga, Sahjan, Moringa oleifera, Drumstick) नामों से जाना जाता है। बारहमासी सब्जी देने वाला यह पेड़ विश्व स्तर पर भारत में ही सर्वाधिक इस्तेमाल में लाया जाता है।

सुरजना पौधे का महत्व

यह वृक्ष स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी समझा जाता है और इसकी पत्तियां तथा जड़ों के अलावा तने का इस्तेमाल भी कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। सुरजना या ड्रमस्टिक (Drumstick) कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकने वाला यह पौधा राजस्थान जैसे रेगिस्तानी और शुष्क इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।सीधी धूप पड़ने वाले इलाकों में इस पौधे की खेती सर्वाधिक की जा सकती है। इस पौधे का एक और महत्व यह होता है कि इससे प्राप्त होने वाले बीजों से कई प्रकार का तेल निकाला जा सकता है और इस तेल की मदद से कई आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती है। इसके बीज को गंदे पानी में मिलाने से यह पानी में उपलब्ध अपशिष्ट को सोख लेता है और अशुद्ध पानी को शुद्ध भी कर सकता है। कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकने वाला यह पौधा जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के अलावा एक प्राकृतिक खाद और पोषक आहार के रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता है। आयुष मंत्रालय के अनुसार केवल एक सहजन के पौधे से 200 से अधिक रोगों का इलाज किया जा सकता है। यदि बात करें इस पौधे की पत्तियों और तने में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की, तो यह विटामिन ए, बी और सी की पूर्ति के अलावा कैल्शियम, आयरन और पोटेशियम जैसे खनिजो की कमी को भी दूर करता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में प्रोटीन की भी प्रचुर मात्रा पाई जाती है। वर्तमान में कई कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा इस पौधे की जड़ का इस्तेमाल रक्तशोधक बनाने के लिए किया जा रहा है। इस तैयार रक्तशोधक से आंखों की देखने की क्षमता को बढ़ाने के अलावा हृदय की बीमारियों से ग्रसित रोगियों के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जा रही है।



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सुरजना पौधे के उत्पादन की संपूर्ण विधि :

जैसा कि हमने आपको पहले बताया सुरजना का बीज सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से पल्लवित हो सकता है। इस पौधे के अच्छे अंकुरण के लिए ताजा बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए और बीजों की बुवाई करने से पहले, उन्हें एक से दो दिन तक पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। सेजन पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने के लिए बालू और खेत की मृदा को जैविक खाद के साथ मिलाकर एक पॉलिथीन का बैग में भर लेना चाहिए। इस तैयार बैग में 2 से 3 इंच की गहराई पर बीजों का रोपण करके दस दिन का इंतजार करना चाहिए। इन बड़ी थैलियों में समय-समय पर सिंचाई की व्यवस्था का उचित प्रबंधन करना होगा और दस दिन के पश्चात अंकुरण शुरू होने के बाद इन्हें कम से कम 30 दिन तक उन पॉलिथीन की थैलियों में ही पानी देना होगा। इसके पश्चात अपने खेत में 2 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा एक गड्ढा खोदकर थैली में से छोटी पौधों को निकाल कर रोपण कर सकते है। पांच से छह महीनों में इस पौधे से फलियां प्राप्त होनी शुरू हो जाती है और इन फलियों को तोड़कर अपने आसपास में स्थित किसी सब्जी मंडी में बेचा जा सकता है या फिर स्वयं के दैनिक इस्तेमाल में सब्जी के रूप में भी किया जा सकता है। [embed]https://youtu.be/s5PUiHTe82Q[/embed]

सुरजना पौधे के उत्पादन के दौरान रखें इन बातों का ध्यान :

सुरजाना पौधे के रोपण के बाद किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि इस पौधे को पानी की इतनी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए सिंचाई का सीमित इस्तेमाल करें और खेत में जलभराव की समस्या को दूर करने के लिए पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था भी रखें। रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल की सीमित मात्रा में करना चाहिए, बेहतर होगा कि किसान भाई जैविक खाद का प्रयोग ही ज्यादा करें, क्योंकि कई रासायनिक कीटनाशक इस पौधे की वृद्धि को तो धीमा करते ही हैं, साथ ही इससे प्राप्त होने वाली उपज को भी पूरी तरह से कम कर सकते है। घर में तैयार नर्सरी को खेत में लगाने से पहले ढंग से निराई गुड़ाई कर खरपतवार को हटा देना चाहिए और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का पूरा पालन करना चाहिए।



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सेजन उत्पादन के दौरान पौधे में लगने वाले रोग और उनका उपचार :

वैसे तो नर्सरी में अच्छी तरीके से पोषक तत्व मिलने की वजह से पौधे की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी हो जाती है, लेकिन फिर भी कई घातक रोग इसके उत्पादकता को कम कर सकते है, जो कि निम्न प्रकार है :-

पौधे की नर्सरी तैयार होने के दौरान ही इस रोग से ग्रसित होने की अधिक संभावना होती है। इस रोग में बीज से अंकुरित होने वाली पौध की मृत्यु दर 25 से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। यह रोग नमी और ठंडी जलवायु में सबसे ज्यादा प्रभावी हो सकता है और पौधे में बीज के अंकुरण से पहले ही उसमें फफूंद लग जाती है।

इस रोग की एक और समस्या यह है कि एक बार बीज में यह रोग हो जाने के बाद इसका इलाज संभव नहीं होता है, हालांकि इसे फैलने से जरूर बचाया जा सकता है।

इस रोग से बचने के लिए पौधे की नर्सरी को हवादार बनाना होगा, जिसके लिए आप नर्सरी में इस्तेमाल होने वाली पॉलिथीन की थैली में चारों तरफ कुछ छेद कर सकते है, जिससे हवा आसानी से बह सके।

यदि बात करें रासायनिक उर्वरकों की तो केप्टोन (Captan) और बेनोमील प्लस (Benomyl Plus) तथा मेटैलेक्सिल (metalaxyl) जैसे फंगसनाशीयों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • पेड़ नासूर रोग (Tree Canker Disease) :

सेजन के पौधों में यह समस्या जड़ और तने के अलावा शाखाओं में देखने को मिलती है।

इस रोग में पेड़ के कुछ हिस्से में कीटाणुओं और इनफैक्ट की वजह से पौधे की पत्तियां, तने और अलग-अलग शाखाएं गलना शुरू हो जाती है, हालांकि एक बार इस रोग के फैलने के बाद किसी भी केमिकल उपचार की मदद से इसे रोकना असंभव होता है, इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई सलाह के अनुसार पेड़ के नासूर ग्रसित हिस्से को काटकर अलग करना होता है।

कुछ किसान पूरे पेड़ पर ही केमिकल का छिड़काव करते हैं, जिससे कि जिस हिस्से में यह रोग हुआ है इसका प्रभाव केवल वहीं तक सीमित रहे और पेड़ के दूसरे स्वस्थ भागों में यह ना फैले।

पेड़ के हिस्सों को काटने की प्रक्रिया सर्दियों के मौसम में करनी चाहिए, क्योंकि इस समय काटने के बाद बचा हुआ हिस्सा आसानी से रिकवर हो सकता है।



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गर्मी और बारिश के समय में इस प्रक्रिया को अपनाने से पेड़ के आगे के हिस्से की वृद्धि दर भी पूरी तरीके से रुक जाती है। इसके अलावा कई दूसरे पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों जैसे कि फंगस, वायरस और बैक्टीरिया की वजह कई और रोग भी हो सकते हैं परंतु इनका इलाज इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (Integrated Pest Management) विधि की मदद से बहुत ही कम लागत पर आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को हर तरह से पोषक तत्व प्रदान करने वाला 'न्यूट्रिशन डायनामाइट' यानी कि सुरजना की फसल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी कम लागत पर वैज्ञानिकों के द्वारा जारी एडवाइजरी का सही पालन कर अच्छा मुनाफा कर पाएंगे।

सहजन की खेती से किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा, जानें वजह

सहजन की खेती से किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा, जानें वजह

खेती किसानी में एक अच्छी आय की असीमित संभावनाएं और अवसर हैं। आप कुछ अलग करते हैं तो आप इससे काफी मुनाफा कमा सकते हैं। 

सरकार भी पारंपरिक खेती से अलग हटकर नए विकल्पों की ओर देखने के लिए कृषकों को प्रोत्साहित कर रही है। अगर आप भी खेती-किसानी करते हैं और कृषि क्षेत्र में कुछ अलग हट कर करना चाहते हैं, तो आपके लिए औषधीय गुणों से भरपूर सहजन की खेती करना एक बेहतरीन विकल्प साबित होगा।

सहजन की देखरेख और लागत में कमी के कारण इससे काफी अच्छी आमदनी होती है। किसान भाई इसकी खेती से लखपति तक बन रहे हैं। औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली सुविधाएं सहजन की खेती के लिए भी उपस्थित हैं।

सहजन की खेती से क्या-क्या फायदे हैं ?

सहजन की खेती कम से कम जमीन पर हो सकती है। सजहन की खेती में लागत काफी कम आती है, जिसकी वजह से कृषकों को शानदार आय होती है। 

सहजन का एक पेड़ कम से कम 10 वर्षों तक फल प्रदान करता है। सहजन के पेड़ का हर भाग काफी लाभदायक होता है और उसकी बिक्री होती है। सहजन के पत्ते, छाल, तना यहां तक की इसकी जड़ भी बिक जाती है। 

वहीं अगर हम सहजन की विशेषताओं की बात करें तो इसके एक बार बीज की बुवाई करने के बाद चार वर्षों तक चलता है। मतलब कि चार वर्ष तक बुवाई करने की जरूरत नहीं होती। साथ ही, कोई विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं होती है। 

सहजन की खेती के लिए क्या जरूरी है ?

दरअसल, ठंडे राज्यों में सहजन की खेती करने में बेहद कठिनाई आती है। इसके फूल को खिलने के लिए 25 से 30 डिग्री तक का तापमान की जरूरत होती है। 

डीडी किसान के मुताबिक, सूखी बलुई मृदा या चिकनी बलुई मृदा में सहजन सही तरह से बढ़ता है। भारत में ठंडे राज्यों को छोड़कर लगभग हर हिस्से के किसान इसकी खेती कर सकते हैं। बतादें, कि कोयंबटूर 2, रोहित 1, पी के एम 1, पी के एम- 2 सहजन की प्रमुख उन्नत किस्में हैं। 

सहजन का उपयोग किन चीजों में होता है ?

सहजन को एक तरह से प्रकृति का वरदान माना जाता है। इसकी सब्जी से तो हम सब परिचित हैं। इसके अतिरिक्त भी सहजन का उपयोग बहुत सारे अन्य कार्यों में भी होता है। सहजन के बीज के तेल से औषधियां निर्मित होती हैं। छाल, पत्ती, गोंद और जड़ इत्यादि से आयुर्वेदिक औषधियां निर्मित होती हैं।

किसान भाई सहजन की खेती इस प्रकार करें ?

सहजन की खेती के लिए बीज को दिन के समय भिगो दिया जाता है। किसान भाई इसकी बुवाई सूखी मृदा में कर सकते हैं। सहजन की बुवाई के लिए जमीन को 1 फुट चौड़ा और गहरा करना होता है, वहां बुवाई होती है। फिर मिट्टी से भरना होता है। 

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बतादें, कि बुवाई नर्सरी पौधों और बीजों दोनों की होती है। मतलब, आप बीज से नर्सरी पौधा बनाकर भी बुवाई कर सकते हैं। सहजन को शुरुआत में खाद की आवश्यकता होती है। फिर इसके बाद थोड़ी सी सिंचाई की। 

सहजन के आधा किलो बीज से 2 हेक्टेयर जमीन के लिए पौध तैयार कर सकते हैं। किसान भाई 1500 से 2000 पौधे 1 एकड़ भूमि में उगा सकते हैं।

सहजन के अंदर क्या-क्या गुण होते हैं ?

सहजन को अंग्रेजी में ड्रमस्टिक कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफरा है। यह एक बहुपयोगी पौधा है। इसमें बहुत सारे 300 से ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं। 

इसी वजह से इसकी निरंतर मांग बढ़ रही है। सहजन की खेती करने वाले कृषक लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं। सहजन में 90 प्रकार के मल्टीविटामिन्स होते हैं। 

सहजन में 45 प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट गुण विघमान होते हैं। सहजन में 35 तरीके के दर्द निवारक गुण विघमान होते हैं। सहजन में 17 प्रकार के एमिनो एसिड होते हैं।

ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि देश के किसान सहजन की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसके पीछे मुख्य कारण सहजन की लोगों के बीच बढ़ती हुई लोकप्रियता है। 

जिससे बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा यह फसल कम लागत में किसानों को अच्छी खासी कमाई भी करा देती है। जिसके कारण किसान इसकी खेती करना पसंद कर रहे हैं। 

बाजार में सहजन के फूल और उसके फलों की भारी मांग रहती है। सहजन के बीजों का तेल निकालकर उपयोग में लाया जाता है। साथ ही इसके बीजों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसका विदेशों में निर्यात किया जाता है। 

इस हिसाब से देखा जाए तो सहजन की खेती हर प्रकार से किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है। सहजन के बारे में कहा जाता है कि यह पेड़ बंजर भूमि पर भी उगाया जा सकता है। 

साथ ही इस पेड़ की देखभाल करने की भी कोई खास जरूरत नहीं होती। सहजन के फूल, फल, पत्तियों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की सब्जियों के रूप में किया जाता है। 

औषधीय गुणों से युक्त सहजन की खेती भारत के अलावा  फिलीपिंस, श्रीलंका, मलेशिया, मैक्सिको जैसे देशों में भी की जाती है। अगर किसान भाई एक एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो साल भर में 6 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।

सहजन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सहजन का पौधा शुष्क और उष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगता है। इसकी खेती के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। इस तरह की जलवायु में सहजन के पौधे तेजी से विकसित होते हैं। 

ज्यादा ठंड सहजन के लिए अच्छी नहीं होती है। अधिक ठंड में सहजन के पौधे पाले के शिकार हो सकते हैं। इसके साथ ही ज्यादा तापमान भी सहजन सहन नहीं कर सकता। 

40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर सहजन के फूल झड़ने लगते हैं। यह पौधा विभिन्न प्रकार की परिस्थियों में बेहद आसानी से उग जाता है। इसके ऊपर कम या अधिक वर्षा का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

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सहजन की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

सहजन की खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। कहा जाता है कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा शक्ति वाली भूमि में भी सहजन का पौधा आसानी से उग जाता है। 

साथ ही यदि आपके पास बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत उपलब्ध हैं तो यह सहजन के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। ध्यान रहे कि खेत की मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

सहजन के पौधों की रोपाई

सहजन के पौधों को कटिंग के द्वारा लगाया जाता है। इसके लिए 45 सेंटीमीटर लंबी कलम तैयार करना चाहिए। कलमों को खेत में सीधे लगाया जा सकता है। कलम को लगाने के पहले खेत में गड्ढे तैयार कर लें। 

उन गड्ढों में कम्पोस्ट या खाद डालें और मिट्टी से भर दें, इसके बाद गड्ढों में पानी डालें। जब पानी सूख जाए तो कलम को लगा दें और हल्की सिंचाई कर दें। ध्यान रखें कि एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 3 मीटर होनी चाहिए।

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इसके अलावा सहजन के बीजों के माध्यम से भी पौध तैयार की जा सकती है। इसे नर्सरी में तैयार किया जाना चाहिए। इसके बाद पौधों को भी गड्ढे में समान प्रक्रिया के साथ लगाना चाहिए। भारत के अधिकतर राज्यों में सहजन की रोपाई जुलाई से सितम्बर माह के बीच की जाती है।

सहजन की किस्में

बाजार में सहजन कि जो किस्में उपलब्ध हैं उनमें पी.के.एम.1, पी.के.एम.2, कोयंबटूर 1 तथा कोयंबटूर 2 प्रमुख हैं। इन किस्मों के पेड़ 4 से 6 मीटर तक ऊंचे होते हैं साथ ही 100 दिन के भीतर फूल लगने लगते हैं। इन पेड़ों से लगातार 4 से 5 वर्षों तक फसल प्राप्त की जा सकती है।

सहजन की पैदावार एवं मुनाफा

यह एक अधिक मुनाफा देने वाली फसल है, जिसमें किसान भाई कम लागत में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। प्रत्येक पेड़ से एक साल में कम से कम 50 किलोग्राम सहजन प्राप्त किया जा सकता है। 

फल में रेशा आने से पहले तक सहजन के फलों की बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है। अगर किसान भाई दो एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो हर साल लगभग 10 लाख रुपये तक की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं।