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सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

सेब के गूदे से उत्पाद बनाने को लगाएं उद्यम

प्रसंस्करण को बढ़ावा देने की सरकार की नतियां जैव विविधता वाले देश के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आलू के सीजन में आलू उत्पादक क्षेत्र में आलू खराब होता है। टमाटर की बात हो या कीमती सेब की। हर फल का यही हश्र होता है। प्रसंस्करण उद्योगों की कमी किसानों को फलों की उचित कीमत नहीं मिलने देतीं वहीं किसानों की ए​क तिहाई तक फसल खराब हो जाती है। कभी कभार कोस्टल क्राप बाजरा के बिस्किट आदि बनाने की तकनीक विकसित करने की  तो कभी सेब का जूस निकाल कर बेकार फेंकी जाने वाली लुग्दी या छूंछ के उत्पाद बनाने की खबरें शुकून देती हैं लेकिन इन्हें यातो सरकार का साथ नहीं मिलता या इन तकनीकों पर काम करने वाले लोगों को मदद नहीं मिलती कि ये तेजी से प्रसार कर सकें। यही कारण है कि यह चीजें देश में आम प्रचलन में नहीं आ पातीं।seb ka gooda हालिया तौर पर डा वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी हिमाचल प्रदेश के वैज्ञानिकों ने सेब का जूस निकालने के बाद बचने वाले पोमेस यानी अंदरूनी गूदे से कई उत्पाद बनाने की दिशा में काम आगे बढ़ाया है। विश्वविद्यालय के फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने केक,​ बिस्किट, पोमेस पाउडर एवं जेम आदि उत्पाद तैयार किए हैं। इसके अलावा एप्पल पेक्टिन केमिकल भी तैयार किया है। इससे जैली बनाई जाती है। विदित हो कि सेब उत्पादक राज्य हिमाचल प्रदेश में सेब का जूस निकालने के बाद उसके गूदे को अधिकांशत: यूंही फेंका जाता है। इससे कीमती फल का बड़ा हिस्सा बेकार चलता जाता है। इतना ही नहीं हिमाचल में ग्रीन हाउस, पॉली हाउस की चेन विकसित होने से कम जमीन पर खेती की दिशा में काफी काम आगे बढ़ा है। इसके बाद भी काफी फल रख रखाब के अभाव में सड़ जाते हैं।

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रोजगार के अवसर देगी तकनीक

बेरोजगार सेब का पोमेस आधिरित उद्योग लगा सकते हैं। इसके लिए नौणी विश्वविद्यालय मात्र 40 हजार में तकनीकी ज्ञान प्रदान करेगा। वह पोमेस से बनने वाले उत्पादों को संरक्षित करने के तरीके एवं स्वादानुसार उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग भी देगा। इस काम को शुरू करने के लिए तकरीबन 10 लाख रुपए की लागत आती है। पोमेस आधारित यूनिट के संचालन के लिए आठ से 10 लोगों की जरूरत होती है। पोमेस की यूनिट के साथ जूस की यूनिट भी लगाई जा सकती है ताकि कच्चे माल पोमेस को खरीदने के लिए इधर उधर न भटकना पडे और पोमेस उत्पाद की गुणवत्ता नियंत्रित रह सके। ​विदित हो कि सेब से जूस निकालने के बाद पोमेस को फ्रीज करना होता है अन्यथा उसमें तेजी से फरमंटेशन होन की संभावना बन जाती है।
इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

इस फल के उत्पादन से होगा बेहद मुनाफा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाये

बीमारियों के दौरान कीवी(Kiwifruit or Chinese gooseberry) ही ऐसा फल है, रोग प्रतिरोधक काफी सुद्रढ़ बनाया है। इस फल को जानवरों से भी कोई हानि नहीं होती। कीवी की फसल के माध्यम से किसान अधिकतर वर्षों तक फायदा उठा सकते हैं। मौसम परिवर्तन की वजह से सेहत काफी दुष्प्रभावित होती है व लोग अतिशीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो चुकी है कि आज औषधियों की सहायता लिए बिना स्वास्थ्य को अच्छा और संतुलित रखना बेहद कठिन हो गया है। इसी कारण से बाजार में अब फलों की मांग में वृद्धि हो रही है। अन्य फलों की अपेक्षाकृत कीवी के फल की मांग बाजार में अत्यधिक बढ़ गयी है जो किसान और लोगों के लिए एक सही संकेत है। कीवी की मांग में बढ़ोत्तरी के मध्य इसकी बागवानी एवं कृषि व्यापार करके किसान बेहतरीन लाभ प्राप्त कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि कीवी की बागवानी करने हेतु अत्यधिक व्यय वहन नहीं करना होगा, क्योंकि राष्ट्रीय बागवानी मिशन स्कीम (National Horticulture Mission) एवं प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के तहत 10 लाख तक का अनुदान, प्रशिक्षण व कर्ज की सुविधा भी दी जाएगी। अब बात करते हैं व्यवसाय से होने वाले लाभ एवं तरीकों के बारे में।

 

कीवी के फल से क्या क्या लाभ हैं

कीवी का रंग एवं केश के प्रकार बाहरी सतह भी आकर्षण का कारण बनी हुई है। कीवी के फल में विटामिन-ई, विटामिन-के, विटामिन-सी व पोटैशियम की प्रचूर मात्रा होती है। ये पोटैशियम व फोलेट जैसे पोषक तत्वों का भी बेहतरीन स्रोत है। कीवी के फल का स्वाद खट्टा व मीठा पाया जाता है। कीवी के उपयोग के द्वारा स्वास्थ्य की रोग प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है। यह स्वास्थ्य संबंधित बीमारियों से लड़ने में काफी सहायक साबित होता है। कीवी का फल विशेष रूप से होने वाले किसी भी रोगों के संक्रमण, मलेरिया व डेंगू जैसे खतरनाक रोगों से लड़ने में बेहद सहायक साबित होता है। 

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इस क्षेत्रों में कीवी आसानी से होता है

कीवी का फल मुख्य रूप से चीन में होता है, चीन के कीवी के फल को विश्वभर में अलग ही ख्याति प्राप्त हुई है। हालाँकि, कीवी के भाव थोड़ा अधिक है , लेकिन इससे कीवी की मांग एवं खपत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मिट्टी व जलवायु के अनुरूप हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश मेघालय, उत्तराखंड, नागालैंड, केरल, उत्तरप्रदेश, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों में कीवी की फसल एवं इसका प्रोसेसिंग व्यवसाय कर सकते हैं। कश्मीर से लेकर हिमाचल तक इसका प्रचार प्रसार है।

आंवला की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Gooseberry Farming in Hindi)

आंवला की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Gooseberry Farming in Hindi)

किसान भाइयों आंवला को अमर फल भी कहा जाता है। मुरब्बा,अचार,सब्जी, जैम, जैली, त्रिफला चूर्ण, च्यवनप्राश, अवलेह, शक्तिवर्धक औषधियों सहित अनेक आयुर्वेदिक औषधियों तथा केश तेल, चूर्ण, शैम्पू आदि के उत्पादन में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कहने का मतलब इस फल की व्यापारिक खेती करके अच्छी कमाई की जा सकती है।आइये जानते हैं आंवला की खेती कैसे करें | 

मिट्टी एवं जलवायु

किसी भी प्रकार की मिट्टी में आंवला की खेती की जा सकती है। लेकिन बलुई भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी तक में आंवले को उगाया जा सकता है। गहरी उर्वरा बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। लेकिन आंवला को ऊसर, बंजर एवं क्षारीय जमीन पर भी लगाया जा सकता है।  किसान भाइयों आंवला की खेती पीएम मान साढ़े छह से लेकर साढ़े नौ मान वाली मृदा में अच्छी तरह से की जा सकती है। आंवला की खेती समशीतोष्ण जलवायु वाली जगह पर अच्छी होती है। जहां पर अधिक सर्दी और अधिक गर्मी न पड़े, वहां पर आंवला की खेती में अच्छी पैदावार होती है। आंवला के पौधों की बुआई के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। आंवला के पौधों की बढ़वार के लिए गर्मी के मौसम की आवश्यकता होती है । आंवले का पौधा शून्य डिग्री तापमान से 45 डिग्री तक तापमान सहन कर सकता है। लेकिन पाला इसके लिए हानिकारक है।

आंवला की खेती कैसे करें

खेत की तैयारी कैसे करें

आंवला के पौधे को लगाने से पहले खेत को काफी अच्छे तरीके से तैयार करना होता है। खेत को रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी पलटनी चाहिये। उसके बाद खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिये ताकि सूर्य के प्रभाव से दीमक आदि कीटों का उपचार हो सके। बाद में खेत की जुताई करके  और पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये। इसके बाद पौधों को लगाने के लिए गड्ढों को तैयार करना चाहिये। पथरीली भूमि हो तो गड्ढे में आने वाली कंकरीली परत अथवा कंकड़ आदि को हटा देना चाहिये। यदि ऊसर भूमि में खेती कर रहे हों तो ऊसर भूमि में बुवाई से एक माह पहले 8 मीटर के आसपास गड्ढों की खुदाई कर लेनी चाहिये। गड्ढे 1 से 1.5 मीटर की लम्बाई चौड़ाई वाले होने चाहिये। लाइन से लाइन की दूरी भी 8-10 मीटर की होनी चाहिये। एक सप्ताह तक खुले छोड़ने के बाद सामान्य भूमि के प्रत्येक गड्ढे में लगभग 50 किलोग्राम गोबर की खाद, नाइट्रोजन 100 ग्राम, 20-20 ग्राम फास्फोरस और पोटाश देना चाहिये। इसके साथ ही 500 ग्राम नीम की खली व 150 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर मिलाकर गड्ढे को 10 से 15 दिन के लिए खुला छोड़ दें। उसके बार किसी अच्छी नर्सरी से पौध लाकर उसमें रोपाई करें। 

पौधे कैसे तैयार करें

आंवला के पौधे बीज और कलम दोनों ही तरीके से तैयार किये जा सकते हैं। कलम के माध्यम से पौध तैयार करना उत्तम माना जाता है। नर्सरियों से अच्छे  किस्म के पौधों की कलम मिल जाती है। आंवले की पौध को भेट कलम एवं छल्ला विधि से भी तैयार किया जाता है। बीज से पौध तैयार करने के लिए सूखे फलों से बीज निकाल कर 12 घंटे तक गोमूत्र या बाविस्टिन के घोल में डुबा दिया जाता है और उसके बाद बीजों को नर्सरी में पॉलीथिन में उर्वरक और मिट्टी मिलाकर रख दिया जाता है। बीजों से जब अंकुर निकलने लगते हैं तब जरूरत के समय उन्हें खेत में बने गड्डों में रोप दिया जाता है। पौधों की रोपाई का समय और विधि ।

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आंवला के पौधों को लगाने का सबसे सही समय जून से लेकर सितम्बर तक होता है। इसलिये खेत यानी गड्ढों को मई में ही तैयार कर लेना चाहिये। जून में जब आपकी पौध तैयार हो जाये तो एक महीने पहले से तैयार गड्ढों में पौध को रोप देना चाहिये। गड्ढों में पिंडी की साइज का एक छोटा गड्ढा तैयार कर लेना चाहिये। पौधों को रोपते समय पिंडी पर लगायी गयी पॉलिथिन या पुआल को हटा देना चाहिये। छोटे गड्ढे में पौधों को रोपने के बाद चारों ओर की मिट्टी को खुरपा के बेंट या अपने हाथों से अच्छी तरह से दबा देना चाहिये। उसके बाद हजारा से हल्की सिंचाई करनी चाहिये। किसान भाइयों पौधों को लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि एक खेत में एक किस्म के पौधे न लगायें।


सिंचाई का प्रबंधन

किसान भाइयों आंवला के पौधों को शुरुआत में ही सबसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधों की रोपाई के साथ ही पहली सिंचाई हल्की करनी चाहिये। इसके बाद गर्मियों में प्रत्येक सप्ताह और सर्दियों में 15 दिन के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिये। वर्षा के मौसम में यदि बरसात न हो तब पानी देने का  प्रबंध करना चाहिये। पौधा बड़ा हो जाये तब महीने में एक बार ही सिंचाई की जरूरत होती है। जब कलियां आने लगें तभी से सिंचाई बंद कर देनी चाहिये अन्यथा फूल फल बनने से पहले ही झड़ कर गिर सकते हैं। पैदावार कम हो सकती है। 

उर्वरक व खाद प्रबंधन

आंवले की खेती के लिए पोषक तत्वों को नियमानुसार दिया जाना चाहिये। पौधों की रोपाई से पहले गड्ढे को करते समय खाद दिये जाने के बाद एकवर्ष पूरा होने पर प्रत्येक पौधे को 5 किलो गोबर की खाद, 100 ग्राम पोटाश, 50 ग्राम फास्फोरस और 100 ग्राम नाइट्रोजन दिया जाना चाहिये। इन सभी खाद व उर्वरकों की मात्रा को प्रत्येक वर्ष एक गुना बढ़ाते रहना चाहिये। जैसे पहले वर्ष में आपने गोबर की खाद 5किलो डाली, तो दूसरे वर्ष 10 किलो और तीसरे वर्ष 15 किलो देनी चाहिये। इसी तरह से अन्य उर्वरकों की मात्रा को बढ़ाना चाहिये जैसे फास्फोरस को 50 ग्राम से बढ़ा कर 100 ग्राम और 150ग्राम कर देना चाहिये। पोटाश और नाइट्रोजन की मात्रा को 100-100 ग्राम से बढ़ाकर 200 और 300 ग्राम कर देनी चाहिये। खाद और उर्वरक देने का क्रम दस वर्ष या उससे अधिक समय तक बनाये रखना चाहिये। 

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खाद डालने के लिए समय का भी किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिये। जनवरी माह में फूल आने से पहले गोबर, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा डाल देनी चाहिये जबकि नाइट्रोजन की आधी मात्रा डाली जानी चाहिये। नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा को जुलाई व अगस्त माह में डालनी चाहिये। यदि मृदा क्षारीय है तो उसके खाद में 100 ग्राम बोरेक्स यानी सुहागा के साथ जिंक सल्फेट और कॉपर सल्फेट 100-100 ग्राम मिलाना चाहिये। आंवले की खेती में खाद, उर्वरकों के अलावा जैविक खाद भी दिये जाने से फल की गुणवत्ता काफी अच्छी हो जाती है। प्रत्येक पौधे को 1 किलो केंचुए की खाद डालने के बाद केले के पत्तों और पुआल से पलवार करने से काफी अच्छी फसल मिलती है।

पेड़ों की कटाई-छंटाई तथा निराई

आंवला के पौधों को एक मीटर तक बढ़ने के बाद कटाई-छंटाई करना चाहिये ताकि पौधों की बढ़वार सीधी न होकर घने वृक्ष की तरह हो ताकि अधिक फल लग सकें। पौधों की समय-समय पर निगरानी करते रहना चाहिये। सूखे व रोग ग्रस्त पौधों को निकाल कर बाहर करते रहना चाहिये। खरपतवार को नियंत्रण के लिए पौधों की रोपाई के बाद उनकी निगरानी करते रहना चाहिये। एक साल में सात या आठ बार निराई-गुड़ाई करने से जहां खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है वहीं पौधों को विकास के लिए आवश्यक ऑक्सीजन जड़ों को मिल जाता है। 

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कीट व रोग प्रबंधनआंवला में कीट व रोग प्रबंधन


आंवला में फल लगने के समय कई रोग व कीट लगते हैं। इनका नियंत्रण करना जरूरी होता है। लगने वाले रोग व कीट इस प्रकार हैं:-
  1. काला धब्बा रोग: आंवला के फलों पर काले धब्बे का रोग लगता है। इस रोग के लगने परआंवला के फलों पर गोल-गोल काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग को देखते ही पौधों की जड़ों व पौधे पर बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिये।
  2. छाल भक्षी कीट: यह कीट पौधे की शाखाओं के जोड़ में छेद बनाकर रहते हैं। इनके लगने से पौधों का विकास रुक जाता है। इसलिये इस कीट के हमले को देखने के बाद किसान भाइयों को पौधों के जोड़ों पर डाइक्लोरवास को डाल कर छेदों को मिट्टी से बंद कर देना चाहिये।
  3. कुंगी रोग: इस रोग के लगने से फलों व पत्तियों पर लाल रंग के धब्बे दिखने लगते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए इंडोफिल एम-45 का छिड़काव पेड़ों पर करना चाहिये।
  4. गुठली छेदक कीट: यह कीट सीधे फल पर हमला करता है। इसका लार्वा फल और उसकी गुठली को नष्ट कर देता है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए किसान भाइयों को चाहिये कि वे पौधों पर कार्बारिल यामोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करें।
  5. फल फफूंदी रोग: यह रोग भी कीट के माध्यम से लगता है। इस रोग के लगने से फल सड़ने लगता है। इसके नियंत्रण के लिए पौधों पर एम-45 साफ और शोर जैसी कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिये।

फलों की तुड़ाई-छटाई और लाभ

आंवला का पौधा तीन से चार साल बाद फल देना शुरू कर देता है। फूल लगने के 5 से 6 महीने के बाद ही आंवला पककर तैयार हो जाता है। पहले यह फल हरे दिखते हैं फिर पकने के बाद हल्के पीले रंग के दिखाई देने लगते हैं। जब फल पके नजर आयें तब उन्हें तोड़ लेना चाहिये। साथ ही उन्हें ठंडे पानी से धोकर छाया में सुखायें उसके बाद बाजार में बेचने के लिए भेजें। किसान भाइयों एक अनुमान के अनुसार एक पेड़ से लगभग 100 से 125 किलो तक फल मिलते हैं। एक एकड़ में लगभग 200 पौधे होते हैं। इस तरह से आंवले का उत्पादन लगभग 20 हजार किलो हो जाता है। यदि बाजार में आंवले का भाव 10 किलो भी है तो किसान भाई को दो लाख रुपये की आमदनी हो सकती है।

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

आंवला से बनाएं ये उत्पाद, झटपट होगी बिक्री

आंवला से बनाएं ये उत्पाद, झटपट होगी बिक्री

विटामिन सी के सबसे अच्छे स्रोत के रूप में अपनी पहचान बना चुका आंवला (Indian gooseberry), भारतीय प्राचीन काल से ही कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता रहा है। आंवले की खेती के पीछे सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष यह है, कि इसे किसी खास प्रकार के मौसम की जरूरत नहीं होती और कम जमीन पर भी बहुत अच्छी उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है। यह बात तो आप जानते ही हैं, कि आंवले का इस्तेमाल अचार, मुरब्बा और कैंडी बनाने के अलावा कई प्रकार के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, जैसे कि त्रिफला और च्यवनप्राश में भी किया जाता है। यदि आप भी कुछ दूसरे किसान भाइयों की तरह की आंवले की खेती करना चाहते हैं, तो सबसे पहले आप को समझना होगा कि पूसा के वैज्ञानिकों ने आंवले की खेती के पश्चात, प्राप्त हुए आंवले से बनने वाले दूसरे उत्पादों को तैयार करने की नई विधियां, किसान भाइयों के समक्ष रखी है।

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आंवले की कैंडी कैसे बनाई जाती है ?

यदि आपने अपने खेत से अच्छी मात्रा में आंवला प्राप्त कर लिया है, तो इस 'अमृत फल' का इस्तेमाल, इसकी कैंडी बनाने में किया जा सकता है।
  • आंवले की कैंडी बनाने के लिए आपको एक किलोग्राम आंवले के साथ लगभग 700 ग्राम तक चीनी के घोल को मिलाना चाहिए।
  • इस विधि के दौरान किसान भाइयों को सबसे पहले, पौधे से मिले हुए आंवलों को बिल्कुल साफ पानी से धो लेना चाहिए,
  • फिर उन्हें किसी बड़े बर्तन में डालकर अच्छी तरीके से उबालना होगा।
  • किसान भाई ध्यान रखें, कि इसे उबालने के समय बर्तन को ऊपर से पूरी तरीके से ढक दें और 2 से 3 मिनट तक पकने की तैयारी करें।
  • उसके बाद अतिरिक्त पानी को बाहर निकालकर ठंडा होने दें।
  • इसके बाद उन्हें बाहर निकाल कर चीनी को मिला दिया जाता है और इसे 2 से 3 दिन तक ढक कर रख देना चाहिए।
  • अच्छी तरीके से ढकने पर उस बर्तन में हवा का प्रवेश नहीं होगा, जिससे कि चीनी अच्छी तरीके से घुल जाएगी।
  • इसके बाद उन्हें निकाल कर पॉलिथीन की सीट पर फैला देना चाहिए और 2 दिन तक धूप में रखना होगा।
  • सभी किसान भाई ध्यान रखें, कि यदि आपके यहां बहुत तेज धूप आती है तो आंवले से दूर ही रखें, क्योंकि इससे वह बहुत ही सख्त हो सकते है।
इसके बाद उनकी अच्छे से पैकिंग कर बाजार में बेचने के लिए इस्तेमाल कर सकते है।

आंवला से चटपटी सुपारी बनाने की विधि

इसके अलावा, हाल ही में एग्रीकल्चर वैज्ञानिकों ने आंवला से चटपटी सुपारी बनाने की विधि भी किसान भाइयों के लिए डीडी किसान चैनल के माध्यम पहुंचाई है।
  • इस विधि से चटपटी आंवला सुपारी तैयार करने के लिए पहले पेड़ से मिले आंवलों को अच्छे तरीके से धो लेना होगा।
  • फिर उसकी छोटी-छोटी स्लाइस काट लेनी होगी।
  • बची हुई गुठली को बाहर फेंक देना चाहिए और उसके बाद एक कांच के बर्तन में डाल लेना चाहिए।
  • इसके बाद उसमें काला नमक, सादा नमक और काली मिर्च मसाले को मिलाना होगा।
  • यदि आपके ग्राहकों को अजवाइन और जीरा जैसे मसाले भी पसंद है तो उन्हें भी मिला सकते है।
  • इन आंवलों को 3 से 4 दिन तक उसी बर्तन में रहने दें और समय-समय पर दिन में दो से तीन बार अच्छी तरीके से हिला देना चाहिए।
  • 5 दिन बाद इन छोटी-छोटी स्लाइस को एक बिना हवा प्रवेश करने वाले डिब्बे में भरकर अच्छी तरीके से ढक देना चाहिए।
इस प्रकार यह मार्केट उत्पाद बाजार में बिकने के लिए तैयार है।

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 यह तो हम सभी जानते हैं कि, आंवले के इस्तेमाल से हड्डियों को ताकत मिलती है और कैल्सियम की अधिकता होने की वजह से कई अन्य प्रकार की बीमारियों से भी बचा जा सकता है। प्राचीन काल से ही अमृत फल के रूप में लोकप्रिय आंवला भारत के कई आयुर्वेदाचार्य के द्वारा उगाया जाता रहा है। सभी किसान भाई ध्यान रखें, कि इस प्रकार तैयार किए गए मार्केट उत्पाद बहुत ही जल्दी संक्रमण से ग्रसित हो सकते है, इनसे बचने के लिए हमें उचित मात्रा में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाई गई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए। आंवले में फंगल इंफेक्शन से लड़ने की शक्ति तो होती ही है, इसी वजह से यह हमारे शरीर की प्रतिरोध की शक्ति भी बढ़ाता है। यदि आप भी कुछ बीमारियां जैसे कि मधुमेह, हृदय रोग या फिर अपाचन की समस्या से ग्रसित हैं तो आंवले का सेवन कर इन बीमारियों को दूर कर सकते है।

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आशा करते हैं, कि हमारे सभी किसान भाइयों को आंवले से बनकर बाजार में बिकने वाले उत्पादों को तैयार करने की विधि की पूरी जानकारी मिल गयी होगी और जल्द ही आप भी इन उत्पादों को बनाकर अच्छा खासा मुनाफा कमा पाएंगे।

सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

आप अभी बाजार में सेब (seb or apple) देखते होंगे तो आपको लगता होगा कि ये सेब या तो जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश या किसी ठंडे प्रदेशों से आया है, क्योंकि अब तक आप यही जानते थे कि सेब सिर्फ ठंडे प्रदेशों में होता है। लेकिन जब आप यह जानेंगे कि अब सेब बिहार में भी उगने लगा है तो आपको हैरानी होगी। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बिहार सरकार के प्रयास से बीते साल बेगूसराय जिले में सेब की खेती (seb ki kheti or apple farming) की शुरुआत की गई थी, जिसमें वहां के किसानों ने काफी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आपको यह भी बता दे कि अब तक सेब सिर्फ हिमालयी प्रदेशों में हुआ करता था। लेकिन सब कुछ अच्छा रहा तो अब सेब बिहार में भी उगेगा, यह एक अनोखा प्रयास है बिहार सरकार का, जिससे यहां के किसानों को काफी फायदा और लाभ मिलेगा।

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वैज्ञानिक की राय

भारत के सुप्रसिद्ध फल वैज्ञानिक, जो बिहार में फलों को लेकर बहुत दिनों से शोध करते हुए आ रहे हैं और किसानों को नई दिशा दे रहे हैं, उनके अनुसार सेब की खेती बिहार में किसानों के लिए वरदान है। उन्होंने बताया कि जब इसकी शुरुआत बेगूसराय में की गई तो शुरुआती दिनों में मौसम के कारण कुछ परेशानियां सामने आई, जिसे बिहार सरकार की मदद से ठीक कर लिया गया है और अब सेब की खेती सामान्य गति से हो रही है। गौरतलब है कि पूरे बिहार के किसान अब सेब की खेती में काफी बढ़ चढ़कर नई ऊर्जा और विश्वास के साथ हिस्सा ले रहे हैं। आने वाले दिनों में किसान को काफी लाभ होगा। बिहार में सेब की खेती एक खास किस्म के पौधों से संभव हो पायी है, जिसको वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है, इसका नाम है, हरमन 99 या हरिमन 99 एप्पल (HRMN-99 Apple or Hariman 99 apple)। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इस नए किस्म की उपज 40-45 डिग्री तापमान पर भी संभव है और इसी गुण के कारण यह बिहार ही नहीं अपितु राजस्थान में भी इसको उगाने का प्रयास किया जा रहा है और यह लगभग सफल होता भी साबित हो रहा है।

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यही खूबी है कि इसकी उपज आने वाले कुछ दिनों में और भी अच्छी हो जाएंगी और बिहारी सेब भी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जगह बना लेगा। आपको बता दें कि इसका प्रजनन भी स्वपरागण (self pollination) के द्वारा होगा, ताकि इसे किसी भी बगीचे में आसानी से उगाया जा सकता है। आपको बता दे कि बिहार के बेगूसराय और औरंगाबाद के कुछ जिलों में किसान अपने स्तर से इसकी खेती कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि इसका पैदावार भी बहुत उन्नत किस्म का है, इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में बिहार के सेब का स्वाद और रंग कश्मीर और हिमाचल वाले सेब से कम नही होगा।

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किसानों को विशेष प्रशिक्षण

बिहार सरकार बिहारी सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए इसे एक अभियान की तरह चला रही है। इसके पैदावार को बढ़ाने के लिए इच्छुक किसान को प्रशिक्षण भी देने की बात कही है, ताकि वे सेब की खेती से जुड़े हर तकनीक को समझ सके। बिहार सरकार और वैज्ञानिक डॉक्टर एस के सिंह का भी मानना है कि अगर किसान पारंपरिक खेती जैसे धान, गेहूं आदि के अलावा सेब की खेती पर ध्यान देते हैं, तो यह वाकई में उनके लिए एक वरदान से कम नही होगा और उनकी आय भी आने वाले दिनों में दुगुनी, तिगुनी हो सकती है।
बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

बम्पर फसल के बावजूद कश्मीर का सेब उद्योग संकट में, लगातार गिर रहे हैं दाम

इस साल भारत में सेब (Apple) की जमकर फसल हुई है। इसके बावजूद भारतीय सेब उत्पादक बेहद परेशान हैं क्योंकि मंडियों में उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। कश्मीर में सेब उत्पादकों के लिए अब लागत खर्च निकाल पाना बेहद मुश्किल हो गया है। कश्मीर में अगस्त के महीने से सेब की नई फसल आ जाती है। अगस्त माह से लेकर अब तक मात्र 20 प्रतिशत सेब ही मंडियों तक पहुंचा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि लगातार घटते हुए भावों की वजह से सेब की मांग में भारी कमी आई है। कश्मीर के सेब किसान, सेब के कम दामों के लिए रूस को जिम्मेदार बता रहे हैं। किसानों का कहना है कि रूस का सेब अफगानिस्तान होते हुए भारत में भेजा जा रहा है, जिसके कारण घरेलू बाजार में सेब की उपलब्धता बढ़ गई है और किसानों को मन मुताबिक़ दाम नहीं मिल पा रहा है। किसानों का कहना है कि सेब की खेती में अब मुनाफा बेहद कम रह गया है, क्योंकि खेती करने का खर्च बहुत ज्यादा बढ़ चुका है और उसके मुकाबले में सेब की खेती से होने वाली आय दिनोदिन घटती जा रही है। पिछले कुछ महीनों में खाद, कीटनाशक दवाओं, डीजल आदि के दामों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है, इसके मुकाबले किसानों की आय उस हिसाब से नहीं बढ़ी है। पिछले साल कश्मीर घाटी में एक पेटी सेब की कीमत 1000 रूपये थी, अब वही पेटी मात्र 550 रूपये में बिक रही है। इस दौरान सेब के पैकिंग का खर्चा भी बढ़ा है। पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली रद्दी और सूखी घास की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, इसके साथ ही गत्ते के डिब्बे की कीमत और मजदूरी भी लगभग डेढ़ से दोगुनी हो गई है, जिसके कारण सेब किसान लगातार परशानियों का सामना कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार पिछले साल कश्मीर में कुल 180860 मीट्रिक टन सेब की पैदावार हुई थी, जिसमें इस साल 10 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई है, जो एक मामूली बढ़ोत्तरी है। इस साल पिछले साल की अपेक्षा अच्छी क्वालिटी का सेब उत्पादित हुआ है, इसके बावजूद सेब की कीमतों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। किसानों को उनकी फसल का पर्याप्त दाम न मिलने के कारण वो तनाव में हैं। बाजार में सेब के कम दामों को देखकर अधिकारियों से लेकर फलों की मार्केटिंग से जुड़े लोग भी हैरान हैं।

हिमाचल के सेब से मिल रही है सीधी चुनौती

फलों के व्यापार से जुड़े लोग और जम्मू कश्मीर के सरकारी अधिकारी भी ये मानते हैं कि कश्मीरी सेब को देश में ही चुनौती मिल रही है। हिमाचली सेबों ने बाजार में बेहतर पकड़ बना रखी है। खुद कश्मीरी अधिकारी इस चीज को मान रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक पैकिंग और ग्रेडिंग के मामले में जम्मू कश्मीर के किसानों से बेहतर काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से कश्मीरी सेब को बाजार में कड़ी टक्कर मिल रही है। सेब उगाने के मामले में भले ही हिमाचल प्रदेश कश्मीर से पीछे है, लेकिन हिमाचली किसानों के द्वारा सेब के डिब्बों की अलग-अलग तरह की पैकिंग ग्राहकों को आकर्षित करती है, जिसके कारण हिमाचली सेब बाजार में ज्यादा जल्दी बिकता है।

विदेशों में घट रही है कश्मीरी सेब की मांग

विदेशों में भी अब कश्मीरी सेब की मांग में लगातार गिरावट देखी जा रही है। पिछले साल दुबई के लूलू ग्रुप ने कश्मीर से सेब खरीदने के लिए करार किया था, लेकिन बाद में क्वालिटी का हवाला देकर उन्होंने सेब खरीदने से इंकार कर दिया। भारतीय व्यापारियों ने लूलू ग्रुप को जो सैम्पल भेजा था, वह परफेक्ट नहीं था। उसमें अलग-अलग साइज और अलग-अलग किस्म के सेब थे। व्यापारियों ने चालाकी दिखाते हुए कुछ घटिया सेब लूलू ग्रुप को बेचने की कोशिश की थी, जो उन पर ही भारी पड़ी। पिछले कुछ सालों से रूस में सेब के उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है, इसका कारण रूस के भीतर सरकार के द्वारा सेब की खेती को प्रोत्साहित करना है। साल 2018-19 में रूस में मात्र 190784 हेक्टेयर में सेब की खेती की जाती थी। लेकिन अब किसानों के बीच सकारात्मक रुझान के बीच, सेब की खेती बढ़कर 197600 हेक्टेयर में होने लगी है, जिससे रूस में सेब का बम्पर उत्पादन होने लगा है। इन दिनों रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रूस के ऊपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं, जिसके कारण रूसी व्यापारी अपने देश में उत्पादित हुई सेब की फसल निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। अफगानिस्तान के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाकर रूसी व्यापारी बड़ी मात्रा में सेब भारत में भेज रहे हैं, जो भारतीय बाजार में घरेलू सेब की कीमतों को प्रभावित कर रहा है।

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भारतीय अधिकारी इससे इंकार कर रहे हैं कि भारतीय बाजार में चोरी छिपे रूस का सेब पहुंच रहा है। हालांकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि भारतीय बाजार में सेब की कीमतों में लगातार गिरावट देखी जा रही है। कई लोग बताते हैं कि सेब के दामों को नियंत्रित करने में सेब माफियाओं का बड़ा हाथ है। ये ज्यादातर सेब व्यापारी हैं और सेब के बिजनेस में इनकी मजबूत पकड़ है। ये व्यापारी दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में सक्रिय है। यह एक बड़ी थोक मंडी है जहां देश का ज्यादातर सेब बिकने के लिए आता है। यहीं से सेब देश के अन्य हिस्सों में भेजा जाता है। इसलिए आज़ादपुर मंडी में सक्रिय सेब माफिया अपने हिसाब से सेबों के दामों को बढ़ा या घटा सकते हैं। कई बार व्यापारी सेब के दाम 'कश्मीर ऐपल मार्केटिंग एसोसिएशन' के निर्देश पर भी तय करते हैं। सेबों के दाम आजकल पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो गए हैं। इसलिए सेब किसानों को चाहिए कि वो उत्पादन से लेकर पैकिंग और विक्रय तक, नई तकनीकों का इस्तेमाल करें ताकि सेब उत्पादन से लेकर सेब के विक्रय में बढ़ रहे खर्चों पर लगाम लगाई जा सके। किसान यदि पुराने तरीकों को छोड़कर नए तरीकों को अपनाते हैं, तो निश्चित रूप से लागत में कमी की जा सकती है। इसके साथ-साथ नई तकनीक और नई मशीनों को अपनाने से किसानों के समय की भी बचत होगी।
हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

हिमाचल में सेब की खेती करने वाले किसान, ड्रोन का प्रयोग मुनाफा करेंगे दोगुना

आये दिन देख रहे होंगे की पूरे भारत में लगातार नई नई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जिससे खेती-किसानी और भी आसान होते जा रही है। केंद्र व राज्य सरकार भी बहुत योजनाएं चला रही है, जिससे खेती किसानी और भी आसान होते जा रही है। लेकिन ये जो नई प्रयोग राज्य सरकार के द्वारा हो रही है, वह वाकई में काबिले तारीफ है। यह प्रयोग उन किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है जो पहाड़ी और पठारी इलाकों में खेती कर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं। आपको बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी की शुरुआत की है, जिससे किसानों को काफी मदद मिल रही है, जिनसे वह अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। इसी की योजनाओं की कड़ी में हिमाचल प्रदेश सरकार ने सेब की खेती कर रहे किसानों के लिए एक बहुत अच्छा प्रयोग शुरू किया है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जब यह प्रयोग का सफल परीक्षण हो जाएगा, तब किसान सेब की खेती कर अपना सामान बाजार तक आसानी से पहुंचा सकेंगे।
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अब क्या होगा फायदा

बीते दिन हिमाचल प्रदेश में एक अनोखा प्रयोग का परीक्षण किया गया जो कि सफल रहा। आपको बता दे इस प्रयोग से पहले सेब की खेती कर रहे किसानों को अपने फल को मंडी तक पहुंचाने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। मज़दूरों के द्वारा सेब को ढोने में काफी समय लगता था व काफी नुकसान भी होते थे, जिससे किसान को मुनाफ़े की जगह घाटा का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब सफल परीक्षण के बाद किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि यह प्रयोग हिमाचल प्रदेश के किनौर के निचार गांव में हुआ है। निचार गांव के सेब बगान और वहाँ के पंचायत प्रतिनिधियों ने इस परीक्षण को किया है, जिसमें उन्होंने ड्रोन से सेब की पेटी को जिसका वजन लगभग 18 किलो के आसपास होता है, उसको इस ड्रोन के माध्यम से लगभग 12 किलोमीटर तक हवाई मार्ग के सहारे पहुंचाने में सफल रहा। इस तरीके के प्रयोग से सेब की खेती करने वाले किसान अब अपना सेब आसानी से कम समय में पहाड़ पर से नीचे उतार सकते हैं। इसमें मजदूर के तुलना में खर्च भी बहुत कम लगता है।
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गौरतलब हो की पहाड़ पर रोड की स्थिति सही नही होने के कारण बगान वालो को अपने फल की उचित कीमत नहीं मिल पाती है और सेब के पैकिंग से लेकर उसको बाजार तक पहुंचने में समय भी काफी अधिक लग जाता है, जिससे सेब भी खराब हो जाता है और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

क्या कह रहे है किसान

वहां के किसानों का कहना है कि "इस प्रयोग से हम लोग को काफी लाभ मिलेगा और हमारे सेब का उचित मूल्य भी मिल पाएगा”। किसान का यह भी कहना है कि पहले व्यापारी भी रास्ते में देरी होने की वजह से कीमत काफी कम देते थे जिससे किसानों को काफी नुकसान सहन करना पड़ता था, जो अब इस परीक्षण के सफल हो जाने से खतम हो जायेगा। आपको यह भी बता दें कि ड्रोन के प्रयोग से अब किन्नौर में सेब व अन्य सामग्री को गंतव्य तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।
मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

मुंबई के वासी मंडी में व्यापारियों ने की आम की पहली खेप की पूजा

आम को फलों का राजा कहा जाता है और इसमें भी जो सबसे खास है, वह अल्फांसो यानी हापुस है। बाजार में अल्फांसो का लोगों को हमेशा इंतजार रहता है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मुंबई के वासी मंडी में अलफांसो आम की पहली खेप पहुँच चुकी है जिसका व्यापारी काफी गर्मजोशी से स्वागत कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस आम की पहली खेप संजय पनसार नामक व्यापारी के यहाँ पहुंचा है। इस पहली खेप में हापुस आम का 600 दर्जन आम मंडी में पहुंचा है। इतना ही नहीं, इसी बाजार में अफ्रीका के मलावी से भी 800 दर्जन आम पहुँच चुका है। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि मलावी के आम का भी स्वाद अल्फांसो के स्वाद की तरह ही होता है। व्यापारियों का कहना है, कि अभी इन आमों की कीमत काफी अधिक है, लेकिन जब आम की आवक मार्च के पहले हफ्तों से शुरू हो जाएगी तब इसकी कीमत थोड़ी कम हो सकती है। पंसार के अनुसार फिलहाल इस आम की रेट की बात करें तो ₹5000 प्रति दर्जन के आसपास है, वही जब इसकी आवक मंडी में शुरू हो जाएगी, तब इसकी कीमत अधिकतम ₹2000 प्रति दर्जन तक रहेगी।

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गौरतलब है, कि मुंबई की इस मंडी में पहुंचने वाला हापुस आम का उत्पादन देवदत्त स्थित कटवन गांव के दो युवा आम उत्पादकों के द्वारा किया गया है। जिसका नाम दिनेश शिंदे और प्रशांत शिंदे बताया जाता है। इन युवाओं ने ही लगभग छह दर्जन हापुस आम की पहली पेटी मुंबई स्थित वाशी बाजार में भेजा है। आपको यह बता दें, कि अलफांसो नामक आम की खेप बिना सीजन बाजार में पहुंचना काफी अच्छा माना जा रहा है। इसके पहले खेप के पहुंचते ही बाजार के प्रबंधक सहित कई व्यापारियों और अध्यक्ष द्वारा इसकी पूजा अर्चना भी की गई। इस पहले खेप हापुस आम की पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से चलता आ रहा है। आपको यह जानकर बेहद खुशी होगी, कि इस अल्फांसो नामक आम की डिमांड देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी है, जिसके कारण इसका उत्पादन भी अधिक पैमाने पर किया जा रहा है। इस अल्फांसो नामक आम को जियोटैग भी मिला हुआ है।

कौन सा इलाका करता है अल्फांसो का सबसे ज़्यादा उत्पादन

अल्फांसो मांगो नामक आम का सबसे बड़ा उत्पादक महाराष्ट्र को बताया जाता है। महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में इसका उत्पादन काफी ज्यादा मात्रा में होता है, जिसमें रत्नागिरि, रायगढ़ और कोंकण प्रमुख है। विशेषज्ञों के अनुसार इस साल भी अल्फांसो मांगो नामक आम हर साल की भांति फरवरी में मुंबई के वासी बाजार में आने लगेगा। अल्फांसो मांगो नामक आम का मुख्य सीजन मार्च, अप्रैल और मई माना जाता है। इस साल भी कोंकण क्षेत्रों से अल्फांसो नामक आम की आवक मार्च से शुरू हो जाएगी।
करौंदे की खेती से होगा बम्पर मुनाफा, जल्द ही मालामाल हो सकते हैं किसान

करौंदे की खेती से होगा बम्पर मुनाफा, जल्द ही मालामाल हो सकते हैं किसान

करौंदा एक ऐसी फसल है जो किसानों को अतिरिक्त सुरक्षा देने का काम करती है। यह एक बागवानी फसल है जिससे किसान भाई हर रोज कमाई कर सकते हैं। अगर किसान भाई अपने खेत में 100 करौंदा के पेड़ लगाते हैं तो वह 20 हजार रुपये की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं। आइए हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि करौंदा की खेती कैसे करें, ताकि कम समय में ही आप जल्द से जल्द पैसे कमा सकें। करौंदा एक झाड़ीदार कांटे वाला पेड़ होता है। इसलिए इसे देखभाल की कोई खास जरूरत नहीं होती है। काटों के कारण इसके पौधे के पास कोई जानवर भी नहीं आता। यह एक ऐसी फसल होती है जिसे लगाने के लिए अतिरिक्त जमीन की जरूरत भी नहीं होती। इसे आप खेत के चारों ओर लगा सकते हैं। यह ऐसा पौधा होता है जो बिना पानी के भी कई दिनों तक जीवित रह सकता है। इसमें सूखे को सहन करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इसलिए करौंदा बंजर और रेतीली भूमि में भी बेहद आसानी से उग जाता है। इसका पेड़ लगभग 6 से 7 फीट तक ऊंचा होता है। करौंदे की खेती ठंडी जलवायु में कर पाना संभव नहीं है।

करौंदा के लिए उपयुक्त मिट्टी का चुनाव

इसकी खेती के लिए बलुई और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का चुनाव करते समय ध्यान रखें कि खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। साथ ही मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

करौंदा की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करौंदा की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन कैरिसा इब्लिसा, मनोहर, पंत स्वर्ण और सीआईएसएच करौंदा-2 जैसी किस्में किसानों के द्वारा सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं। इन किस्मों के पेड़ों के फल बड़े होते हैं और उत्पादन भी ज्यादा होता है।

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करौंदा की पौध तैयारी एवं रोपाई

करौंदा की पौध की तैयारी बीजों के माध्यम से करते हैं। इसके लिए करौंदा के पके हुए फलों से बीज निकाल लेते हैं और पौधशाला में बुवाई कर देते है। 40 से 60 दिन पुराने पौधों को पन्नी में भरकर रोपाई के लिए तैयार कर लेते हैं। करौंदा के पौधों की रोपाई जुलाई और अगस्त माह में की जाती है। अगर किसान के पास सिंचाई की उचित व्यवस्था है तो इसकी रोपाई फरवरी से मार्च माह के बीच भी की जा सकती है। करौंदा के पेड़ों की रोपाई गड्ढों में करें। इसके लिए खेत में 2 फ़ीट व्यास का गड्ढे बना लें, साथ ही रोपाई के 30 दिन पहले गड्ढों को गोबर की सड़ी हुई खाद से भर दें। रोपाई के समय एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच कम से कम एक मीटर का फासला जरूर रखें।

करौंदा के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा

करौंदा की अच्छी ग्रोथ के लिए खाद एवं उर्वरक देना बेहद जरूरी है। जब करौंदा की पौध की रोपाई करें तब प्रति पौधा के हिसाब से 5 किलो गोबर, 150 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 100 ग्राम यूरिया व 75 ग्राम पोटाश दें। खाद एवं उर्वरक की इतनी मात्रा पहले तीन सालों तक देनी है। जब पौधा बड़ा हो जाए तो 450 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 300 ग्राम यूरिया, 15-20 किलो गोबर की खाद व 225 ग्राम पोटाश प्रति वर्ष के हिसाब से दे सकते हैं।

करौंदा के पौधों की सिंचाई

करौंदा के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। ये पौधे कम पानी में भी काम चला सकते हैं। लेकिन गर्मियों के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए। इसके अलावा सर्दियों के मौसम में इन पौधों में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। बरसात के मौसम में पौधों के पास से उचित जल निकासी की व्यवस्था जरूर करें।

करौंदा के फलों की तुड़ाई एवं कमाई

करौंदा के पौधे लगाने के 4 से 5 साल बाद इनमें फल आने लगते हैं। पेड़ों पर फल आने के 2 से 3 माह बाद इनकी तुड़ाई की जा सकती है। करौंदा के फलों का उपयोग अचार, सब्जी व चटनी बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसके फलों से जेली भी बनाई जाती है। करौंदा का एक पेड़ 15 से 25 किलो के बीच फल दे सकता है। जिनके फलों की तुड़ाई करके 2 से 3 दिन के बीच विक्रय के लिए मंडी भेज दिया जाता है। अगर किसान एक एकड़ में करौंदा के पेड़ों को लगाएं तो आसानी से 1 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।
यह राज्य सरकार सेब की खेती पर किसानों को 50% प्रतिशत अनुदान दे रही है, जल्द आवेदन करें

यह राज्य सरकार सेब की खेती पर किसानों को 50% प्रतिशत अनुदान दे रही है, जल्द आवेदन करें

आजकल बिहार में किसान बड़े पैमाने पर सेब की पैदावार कर रहे हैं। इससे सेब उत्पादक किसानों को लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। बतादें, कि दरभंगा, समस्तीपुर, पटना, औरंगाबाद और कटिहार समेत पूरे बिहार में बड़े स्तर पर सेब की खेती की जा रही है। बिहार में किसान फिलहाल पारंपरिक फसलों की खेती के स्थान पर बागवानी फसलों की खेती में अधिक रूचि ले रहे हैं। यही कारण है, कि राज्य सरकार बागवानी फसलों के लिए बंपर अनुदान मुहैय्या कर रही है। बिहार सरकार का कहना है, कि बागवानी फसलों की खेती से किसान भाइयों की आमदनी में काफी वृद्धि होगी। जिससे उनकी स्थिति काफी हद तक सुधरेगी। अतः वे अपने परिवार को बेहतर और समुचित सुविधाएं दे सकेंगे। ऐसे भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने विशेष उद्यानिक फसल योजना के अंतर्गत सेब की खेती करने वाले किसान भाइयों को अनुदान देने का निर्णय किया है।

बिहार में हो रही सेब की खेती

आम तौर पर लोगों की यह धारणा है, कि सेब की खेती केवल हिमाचल प्रदेश और जम्मू- कश्मीर में ही की जाती है। हालाँकि, अब इस तरह की कोई बात नहीं है। फिलहाल, बिहार में किसान बड़े पैमाने पर सेब की खेती कर रहे हैं। इससे किसान भाइयों को लाखों रुपये की आमदनी हो रही है। बतादें, कि कटिहार, दरभंगा, समस्तीपुर, पटना और औरंगाबाद समेत पूरे बिहार में सैंकड़ों की तादात में किसान सेब की खेती कर रहे हैं। यहां के किसान हिमाचल प्रदेश से सेब के पौधे लाकर अपने खेतों में रोप रहे हैं।

बिहार सरकार ने 50 प्रतिशत अनुदान देने की घोषणा की है

सेब की खेती के प्रति किसानों की रूचि को देखते हुए बिहार सरकार ने राज्य में सेब के रकबे का विस्तार करने की योजना बनाई है। बिहार सरकार यह चाहती है, कि किसान भाई ज्यादा से ज्यादा संख्या में सेब की खेती करें। जिससे कि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके। साथ ही, राज्य की अर्थव्यवस्था को भी काफी मजबूती मिलेगी। यही वजह है, कि प्रदेश सरकार ने सेब की खेती करने वाले कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का फैसला लिया है। यह भी पढ़ें: यूट्यूब से सीखकर चालू की सेब की खेती, अब बिहार का किसान कमाएगा लाखों

बिहार सरकार किसानों को कितना अनुदान देगी

विशेष बात यह है, कि सरकार ने सेब की खेती करने हेतु प्रति हेक्टेयर इकाई खर्चा 246250 रुपये तय किया है। इसके ऊपर से किसान भाइयों को 50 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। मतलब कि सरकार किसान भाइयों को 123125 रुपये मुफ्त में प्रदान करेगी। हालांकि, फिलहाल इस योजना का फायदा केवल कटिहार, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बेगूसराय, औरंगाबाद और वैशाली जनपद के किसान ही ले पाऐंगे।

बिहार सरकार इन फसलों पर भी अनुदान दे रही है

बतादें, कि बिहार सरकार राज्य में बागवानी को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न फसलों पर अनुदान प्रदान कर रही है। फिलहाल, सरकार आम, केला, कटहल, पान, चाय एवं प्याज की खेती करने पर भी बेहतरीन अनुदान दे रही है। जानकारी के लिए बतादें, कि इसके लिए किसान भाई उद्यान निदेशालय की ऑफिसियल बेवसाइट पर जाकर आवेदन करें।
आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला को सामान्यतः भारतीय गूज़बैरी एवं नेल्ली के नाम से जाना जाता है। आंवला को उसके अंदर मौजूद औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल कई सारी दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। आंवला से निर्मित दवाइयों से डायरिया, दांतों में दर्द, अनीमिया, बुखार एवं जख्मों का इलाज किया जाता है। कई प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर एवं मुंह पर लगाने वाली क्रीमें तक आंवला से तैयार की जाती हैं। यह एक मुलायम एवं समान शाखाओं वाला पेड़ है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर तक होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं एवं यह दो प्रजातियों के होते हैं। नर फूल और मादा फूल। इसके फल हल्के पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी तक होता है। भारत में उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य माने जाते हैं।

आंवला की खेती के लिए उपयुक्त मृदा कौन-सी होती है

आंवला सख्त होने के चलते इसको हर प्रकार की मृदा में उत्पादित किया जा सकता है। आंवला को हल्की तेजाबी एवं नमकीन व चूने वाली मृदा में पैदा किया जा सकता है। यदि इसकी खेती समुचित जल निकास वाली एवं उपजाऊ-दोमट मृदा में की जाती है, तो यह बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। यह खारी मृदा को भी सहयोग्य है।
आंवला की खेती के लिए मृदा का pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी भूमि पर इसकी खेती करने से बचें।

आंवला की प्रमुख किस्में

बनारसी - यह शीघ्रता से तैयार होने वाली प्रजाति है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फ्लूनों का आकार बढ़ा, कम से कम भार 48 ग्राम, छिल्का मुलायम होता है एवं फल भंडारण योग्य नहीं होते। इस प्रजाति में 1.4% रेशा उपलब्ध होता है। इसका औसतन उत्पादन 120 किलो प्रति पेड़ होती है। कृष्णा - यह भी जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक पककर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति के फलों का आकार सामान्य से बढ़ा, भार 44.6 ग्राम, छिल्का मुलायम व फल धारियों वाले होते हैं। इस प्रजाति में 1.4% रेशा पाया जाता है। इसका औसतन उत्पादन 123 किलो प्रति पेड़ होता है। एनऐ-9 - यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 50.3 ग्राम, लम्भाकार, छिल्का मुलायम एवं पतला होता है। इस प्रजाति में रेशे की 0.9% मात्रा उपलब्ध होती है। विटामिन सी की मात्रा सर्वाधिक 100 ग्राम होती है। इससे कैंडीज, जैम एवं जैली इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एनऐ-10 - यह भी जल्दी पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में तैयार हो जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार, भार 41.5 ग्राम, छिल्का खुरदरा होता है एवं इसके 6 भिन्न-भिन्न हिस्से होते हैं। इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है व इसमें 1.5 % रेशे की मात्रा उपलब्ध होती है। फ्रांसिस - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 45.8 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा लगभग 1.5% होती है। इस प्रजाति को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं एनऐ-7 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के, भार 44 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5% मौजूद रहती है। कंचन - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल लघु आकार के, भार 30.2 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा 1.5% होती है। साथ ही, इसमें विटामिन सी की सामान्य मात्रा उपलब्ध होती है। इस प्रजाति का औसतन उत्पादन 121 किलो प्रति रुख होती है। एनऐ-6 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 38.8 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा सबसे कम 0.8% होती है। इसमें विटामिन सी की मात्रा 100 ग्राम एवं कम मात्रा में फैनोलिक उपलब्ध होता है। इसे जैम और कैंडीज बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चकिया - यह विलंभ से पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 33.4 ग्राम, इसमें 789 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम विटामिन सी की मात्रा, 3.4% पैक्टिन और 2% रेशा विघमान होता है। इसे आचार और शुष्क टुकड़े निर्मित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की खेती हेतु भूमि की तैयारी

आंवला की खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से जोताई एवं जैविक मृदा की जरूरत होती है। मिट्टी को बेहतर ढ़ंग से भुरभुरा करने के लिए बिजाई से पूर्व जमीन की जोताई करें। जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मृदा में मिलादें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. गहरे नर्सरी बैड तैयार करें।

आंवला की बिजाई की विधि

बिजाई के समय की बात करें तो, आंवला की खेती जुलाई से सितंबर के माह में की जाती है। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी माह में की जाती है। वहीं, मई-जून के महीने में कलियों वाले पौधों को 4.5x4.5 मी की दूरी पर ही लगाएं। साथ ही, बीज की गहराई 1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्डे खोदें एवं सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। बिजाई के ढंग की बात की जाए तो कलियों वाले नए पौधों की पनीरी को मुख्य खेत में लगाया जाता है। साथ ही, बेहतरीन पैदावार के लिए 200 ग्राम बीजों को प्रति एकड़ जमीन में उपयोग करें।

आंवला की फसल हेतु बीज का उपचार

आंवला की फसल को मृदा से उत्पन्न होने वाली बीमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के उपरांत बीजों को हवा में सुखा दें। यह भी पढ़ें: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

आंवला की फसल हेतु खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए समय पर गोड़ाई करें। साथ ही, कटाई एवं छंटाई भी करें। टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं को काट दें एवं केवल 4-5 सीधी टहनियां ही अधिक विकास के लिए रखें। नदीनों का नियंत्रण करने हेतु मलचिंग का तरीका भी काफी प्रभावशाली है। गर्मियों में मलचिंग पौधे के शिखर से 15-10 सैं.मी. के तने तक करें।

आंवला की फसल में सिंचाई किस तरह करें

गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के समयांतराल पर करें एवं सर्दियों में अक्तूबर-दिसंबर के माह में हर दिन चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं होती। फूल निकलने के दौरान सिंचाई ना करें।

आंवला की फसल में हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम

छाल खाने वाली सुंडी:

  • यह तने और छाल को खाकर काफी क्षति पहुंचाती है।
  • इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01% या फैनवलरेट 0.5% घोल को छेदों में भरें।
  • पित्त वाली सुंडी
  • पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
  • इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।

कुंगी:

  • कुंगी पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
  • इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर की शुरूआत में और दूसरी 15 दिनों के उपरांत डालें।

अंदरूनी गलन

  • यह बीमारी प्रमुख रूप से बोरोन की कमी के चलते होती है। इस बीमारी की वजह टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
  • इस बीमारी से संरक्षण के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के माह में डालें।
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फल का गलना

फल का गलना: इस बीमारी के चलते फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग परिवर्तित हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स और क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें।

आंवला की फसल की कटाई

बिजाई से 7-8 वर्ष के उपरांत पौधे उत्पादन देना शुरू कर देते हैं। जब फूल हरे रंग के हो जाएं एवं इनमें विटामिन सी की ज्यादा मात्रा होने पर तो फरवरी के माह में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को तेज-तेज हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की फसल की कटाई के बाद क्या करें

तुड़ाई के उपरांत छंटाई करनी चाहिए। छंटाई के पश्चात फलों को बांस की टोकरी एवं लकड़ी के बक्सों में पैक कर दें। फलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए बेहतर ढ़ंग से पैकिंग करें एवं जल्दी से जल्दी खरीदने वाली जगहों पर ले जाएं। आंवले के फलों से बहुत सारे उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, एवं मीठे उत्पाद बनाए जाते हैं।