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पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

पराली जलाने की समस्या से कैसे निपटा जाए?

हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं. इस कचरे को पराली कहा जाता है. इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है. किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुआई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है. पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है. खरीफ फसलों (मुख्यतः धान) को हाथों से काटने और फसल अवशेष का पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से निपटान करने के काम में ना केवल ज्यादा समय लगता है बल्कि श्रम लागत भी अधिक हो जाती है. इससे कृषि का लागत मूल्य काफी बढ़ जाता है और किसान को घाटा होता है. इसलिए इस स्थिति से बचने के लिए और रबी की फसल की सही समय पर बुआई के लिए किसान अपने फसल के अवशेष को जलाना बेहतर समझते हैं. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के एक अध्ययन के मुताबिक उत्तर भारत में जलने वाली पराली की वजह से देश को हर साल लगभग दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सर्दियों में बढ़ने वाले दम घोंटू प्रदूषण की एक बड़ी वजह पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में पराली का जलाया जाना है. अकेले पंजाब में ही अनुमानित तौर पर 44 से 51 मिलियन मेट्रिक टन पराली जलायी जाती है. इससे होने वाला प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली-एनसीआर में पहुंच जाता है. अध्ययन के मुताबिक केवल धान के अवशेष को जलाने से ही 2015 में भारत में 66,200 मौतें हुईं. इतना ही नहीं, अवशेष जलने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ा. साथ ही, इससे पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैस की वजह से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है.

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पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

बागवानी की तरफ बढ़ रहा है किसानों का रुझान, जानिये क्यों?

पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।

देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं। 

सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं। 

 इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।

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खाद्यान्न फ़सलों की अपेक्षा बागवानी फसलों में हो रही है वृद्धि

सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है। 

वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।

साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।

बागवानी फसलों से प्रदूषण में लगती है लगाम

आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं। 

ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है। 

इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है। 

इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती। 

बागवानी फसलों में आधुनिक खेती से किसानों की बढ़ी आमदनी

आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।

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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है। 

बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

यह राज्य सरकार देगी पराली प्रदूषण को रोकने के लिए १ हजार रुपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि

यह राज्य सरकार देगी पराली प्रदूषण को रोकने के लिए १ हजार रुपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि

हरियाणा सरकार द्वारा पराली को जलाने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए हरियाणा सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पराली खरीदने की बात कही है। किसानों द्वारा खेतों में पराली को जलाने (stubble burning) से रोकने के लिए उन्हें एक हजार रुपए प्रति एकड़ हरियाणा सरकार प्रोत्साहन राशि देगी। हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने बताया है कि हरियाणा सरकार पराली के व्यवस्थित प्रबंधन (फसल अवशेष प्रबन्धन) के लिए पराली को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी, इसके लिए सरकार द्वारा अधिकारियों की समिति बनायी गयी है। साथ ही उन्होंने बताया कि राज्य के किसानों तक आधुनिक तकनीक, नवीन शोध, कृषि उपकरण एवं उर्वरक पहुँचाना सरकार की मुख्य प्राथमिकता है। इसे सफल करने हेतु सरकार लगातार कोशिश कर रही है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जे पी दलाल द्वारा कृषि एवं खाद्य तकनीक मेले में आयोजित संगोष्ठि को सम्बोधित करने के दौरान, मेले में हरियाणा पवेलियन का दौरा कर जानकारी ली गयी। किसानों के लिए लगाए गए स्टालों में किसान उत्पादक संगठनों से वार्तालाप की, इस दौरान जे पी दलाल द्वारा किसान उत्पाद समूहों के 13 कम्पनियों के साथ 17 समझौता ज्ञापन भी किये गए।

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हरियाणा सरकार पराली प्रदुषण को रोकने के लिए देगी १ हजार रूपये प्रति एकड़

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने बताया कि हरियाणा सरकार एक मजबूत पराली प्रबंधन एवं बेहतर पर्यावरण को ध्यान में रखकर कार्य कर रही है। राज्य सरकार द्वारा ८० हजार सुपर सीडर की तरह कृषि उपकरण मुहैय्या कराये गए हैं, जो राज्य के पराली प्रबंधन को अच्छा बना रहे हैं। सुपर सीडर कृषि यंत्रों को प्रोत्साहन देने के अतिरिक्त, पराली का उद्योगों में इस्तेमाल हेतु जोर दिया जा रहा है। किसानों को एक हजार रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि प्रदान कर, किसानों को खेतों में पराली जलाने से रोकने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश है कि राज्य में पराली जलाने की घटनाओं में घटोत्तरी के साथ-साथ, एनसीआर में प्रदूषण भी कम हो और किसान भी सुखी एवं संपन्न हो।

अंतर्राष्ट्रीय मंडी विकसित करने के साथ किसानों को क्या सुविधाएँ दी जाएँगी ?

जे पी दलाल ने बताया है कि हरियाणा सरकार द्वारा सोनीपत में ५५० एकड़ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की किसान मण्डी विकसित हो रही है। इस अंतर्राष्ट्रीय मण्डी में किसानों को समस्त प्रकार की नवीनतम सुविधाएं मुहैय्या करायी जाएंगी। इसके अतिरिक्त किसान उत्पादक समूहों का गठन भी हो रहा है। इस साल लगभग एक हजार किसान उत्पादक समूह बनाने का संकल्प भी निर्धारित किया गया है। जिसमें से ७०० किसान उत्पादक समूहों का गठन संपन्न हो गया है। इन समूहों द्वारा १३.५० करोड़ रुपए का व्यापार किया गया है। समूहों के माध्यम से किसानों को सीधे फायदा पहुँच रहा है। किसान उत्पादक समूहों में उम्दा पैकेजिग एवं ग्रेडिंग के अनुरूप विपणन का इससे सम्बंधित प्रत्येक किसान को फायदा होगा।

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कृषि मंत्री ने बताया है कि किसानों के लिए कोल्ड चैन टैक्नोलोजी अपनाई जा रही है। इनमें आधुनिक तकनीक आधारभूत संरचना लगायी जाएगी। किसानों के लिए एक्सीलेंट सेंटर स्थापित किये जा रहे हैं। किसानों के लिए जनपदों में भी किसान प्रदर्शनी भी होगी। इनमें देखकर किसान नवीन मशीनरी एवं आधुनिक तकनीक आधारित खेती को अपनाकर फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने मेले के लिए सीआईआई का धन्यवाद किया, जिससे किसान लाभकारी जानकारी ले पा रहे हैं।
पराली जलायी तो इस राज्य में पी एम किसान सम्मान निधि से होंगे वंचित

पराली जलायी तो इस राज्य में पी एम किसान सम्मान निधि से होंगे वंचित

पराली जलाने (stubble burning) से होने वाले प्रदुषण की वजह से जनजीवन काफी हद तक प्रभावित होता है। लोगों को साँस लेने में बहुत समस्या आती है साथ ही वातावरण भी दूषित होता है। पराली से उत्पन्न होने वाले प्रदुषण से बचने के लिए सरकार व प्रशासन तरह तरह की कोशिश करते हैं। लेकिन कई प्रयासों के बावजूद भी पराली जलाने के मामले सामने आते रहते हैं। हाल ही में पराली जलाने से बचाने के लिए हरियाणा सरकार ने भी १ हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से पराली का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया है जिससे किसान पराली को जलाने की जगह, पराली बेचकर आय कर सकें। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने भी पराली जलाने वालों को रोकने के लिए एलान किया है कि जो भी किसान खेतों में पराली जलाते हुए मिला तो उसको प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभ से वंचित कर दिया जायेगा। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है की शीत काल में पराली जलाने के कारण दिल्ली का पर्यावरण तो गंभीर रूप से प्रभावित होता ही है, साथ ही देशभर को भी इसका नुकसान उठाना पड़ता है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गोरखपुर में पराली जलाने से रोकने के लिए पराली जलाने वाले किसान को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि से तो दूर रखा ही जायेगा, साथ ही १ एकड़ भूमि रखने वाले किसान से २५०० रुपए एवं इससे अधिक भूमि वाले किसान से ५००० रुपये लिए जायेंगे। कृषि विभाग डिप्टी डायरेक्टर अरविन्द सिंह ने कहा पराली के मामलों में कमी करने के लिए अब उपग्रह के जरिये नजर रखी जायेगी।

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उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के कम मामले सामने आने की मुख्य वजह

सरकार एवं प्रशासन के द्वारा की गयी कड़ाई एवं सख्ती की वजह से पराली जलाने के मामले काफी कम हुए हैं, साथ ही प्रदुषण से भी पहले की अपेक्षा काफी राहत मिली है। जुर्माने के डर की वजह से पराली जलाने के मामलों में गिरावट संभव हो पायी है। किसान पराली जलाते वक्त पकड़े जाने के डर से पराली को नहीं जलाते, जिससे प्रदूषण काफी हद तक कम हुआ है। सरकार का कहना है कि किसानों को जुर्माने का भय पराली प्रबंधन के नए तरीकों को भी विकसित कर रहा है, इसके साथ साथ लोगों में इससे होने वाले प्रदूषण के बारे में जागरूक भी हुए हैं।

हरियाणा सरकार की पराली प्रदुषण रोकने की नीति

हरियाणा सरकार द्वारा भी पराली प्रदुषण को रोकने के लिए कृषि उपकरणों पर अनुदान देने के साथ साथ पराली का न्यूतम समर्थन मूल्य भी १ हजार रुपये एकड़ कर दिया गया है। दिल्ली के साथ हरियाणा राज्य पराली से होने वाले प्रदूषण से काफी प्रभावित होता है, इसलिए वह पहले से ही सजग होकर इससे निपटने का हर सम्भव प्रयास करता है। हरियाणा में पराली जलाने से दिल्ली राज्य को काफी प्रदूषण का सामना करना पड़ता है, क्योंकि हरियाणा दिल्ली से सटा हुआ है। पराली के प्रदूषण से बचाने के लिए देश की सभी राज्य सरकारें भरपूर प्रयास कर रही हैं।
किसानों ने पराली जलाई, बिहार सरकार ने उनसे छीनीं सारी सुविधाएं

किसानों ने पराली जलाई, बिहार सरकार ने उनसे छीनीं सारी सुविधाएं

पराली जलाने (stubble burning) जलाने के कारण देश के अलग-अलग राज्यों में प्रदूषण को लेकर काफी समस्या उत्पंन्न हो रही है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। राज्य सरकारें पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ एक्शन ले रही हैं। सरकार किसानों को सरकारी सुविधाएं देती है, लेकिन अब कुछ राज्यों में पराली जलाने वाले किसानों से सरकार यह सरकारी सुविधा वापस भी लेने का काम कर रही है। बिहार में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। यहाँ राज्य सरकार ने पराली जलाने वाले 35 किसानों से सरकारी सुविधाएं छीन ली हैं। पराली जलाने से पैदा होने वाला धुआं ही प्रदूषण का एक बड़ा कारण माना जाता है। वातावरण के लिए बड़ा संकट है। खरीफ फसल कटने के बाद धान के डंठल खेतों में ही पड़े रह जाते हैं। किसान अगर चाहे तो रसायन का इस्तेमाल कर ऐसे डंठल को खेत में ही निपटा सकते हैं। कई राज्यों ने यह दावा किया है, कि वे इस पराली का कमर्शियल इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरी तरफ बहुत सारे किसान पराली निस्तारण के ऊपर खर्च नहीं करना चाहते हैं। इसलिए वे पराली में आग लगा देते हैं। नतीजतन, इस वक्त दिल्ली में जिस स्तर का प्रदूषण फैला हुआ है, उसके लिए पराली को जलाने को ही कारण माना जा रहा है।

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इतने किसानों से छीनी गई सरकारी सुविधाएं

बिहार के कई शहर इस वक्त भयंकर वायु प्रदूषण के शिकार हैं। कई शहरों का वायु प्रदूषण स्तर खतरनाक स्तर तक जा पहुंचा है। यहाँ भी पराली जलाने को ले कर सरकार सख्ती दिखा रही है। बिहार के नालंदा जिले के चंडी और नगरनौसा के 35 किसानों पर ऐसी ही कार्रवाई की गई है। इस कार्रवाई के तहत पराली जलाने वाले किसानों को तीन सालों तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। यह काम बिहार सरकार ने सेटेलाइट के जरिए किया है। यानी, सेटेलाइट के जरिए खेतों की निगरानी की गई। इस वक्त नालंदा के हर खेत पर नजर रखी जा रही है। उत्तर प्रदेश में भी सरकार पराली जलाने को लेकर सख्त दिख रही है। गोरखपुर में भी पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कदम उठाया गया है। अधिकारियों ने साफ कहा है, कि कोई किसान पराली जलाते हुए पकड़ा जाता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा। यह जुर्माना ढाई हजार रूपये से लेकर पाँच हजार रूपये तक हो सकता है। पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कार्रवाई जारी है। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में धान काट रही 16 हार्वेस्टर मशीनों को सीज कर दिया गया है।
पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर किसान हुए जागरुक इन राज्यों में इतने प्रतिशत मामले हुए कम

पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर किसान हुए जागरुक इन राज्यों में इतने प्रतिशत मामले हुए कम

हरियाणा एवं पंजाब राज्य में पराली जलाने के मामलों में काफी गिरावट आयी है। किसानों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण के बारे में जागरुकता आयी है। राज्य सरकारें पराली जलाने से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के लिए काफी सख्ती और गहनता से कार्य कर रही हैं। इससे भूमि की उर्वरक क्षमता भी काफी प्रभावित होती है। पराली जलाने से होने वाले प्रदुषण के कारण आम जन-मानस का स्वास्थ्य भी बेहद खराब हो सकता है और ऐसे मामले भी आम तौर पर सामने आते हैं। किसानों को पराली जलाने से रोकने हेतु विभिन्न राज्य सरकारें हर संभव प्रयास कर रही हैं। साथ ही, राज्य सरकार का प्रयास है कि पराली जलाने के स्थान पर किसान इसकी बिक्री कर लाभ उठा सकते हैं, इसके हेतु भी राज्य सरकारों द्वारा विभन्न योजनाएं जारी की गयी हैं। हालाँकि, पराली जलाने के संबंध में अच्छी खबर सामने आयी है, अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पराली जलाने के मामलों में काफी हद तक गिरावट आयी है।

पंजाब और हरियाणा में कितने प्रतिशत मामलों में गिरावट आयी है ?

पूर्व के कई वर्षों से पराली जलाने के मामले राष्ट्रीय स्तर पर छाये रहते हैं। हरियाणा, पंजाब, बिहार, दिल्ली व उत्तर प्रदेश तक पराली द्वारा धुआँ उत्पन्न होता है। जिसकी वजह से सरकार बेहद सजगता बरत रही है। प्रदेश में पराली जलाने के मामलों को उपग्रह के जरिए से देखा जायेगा। हाल ही में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटयूट के डाटा में बताया गया है कि साल २०२० के उपरांत इस वर्ष बहुत कम पराली जलाई गयी है। बतादें कि, पूर्व वर्ष के आंकड़ों के अपेक्षाकृत पंजाब में करीब ३० फीसद व हरियाणा में ४८ फीसद तक पराली जलाने के मामलों में गिरावट आयी है। सरकार व अधिकारियों के लिए यह अच्छी बात है, लेकिन उद्देश्य इसको शून्य करने का है।

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पराली जलाने के कितने मामले सामने आये हैं ?

बात करें आंकड़ों के मुताबिक, तो १५ नवंबर से लेकर २३ नवंबर के मध्य में पंजाब में अभी तक ४९६०४ पराली जलाने के मामले सामने आये हैं। २०२१ में यह आंकड़ा ७११८१ था, जबकि २०२० के दौरान ८२६९३ पराली जलाने के मामले सामने आए थे। हरियाणा राज्य के आंकड़ों के हिसाब से तो ५ सितंबर से लेकर २३ नवंबर तक ३५४९ पराली जलाने के मामले सामने आए हैं। पूर्व वर्ष में आंकड़ा ६७९२ था, २०२० में ४०२६ संख्या थी। उत्तर प्रदेश में इस वर्ष के इसी सीजन में २१०० पराली जलाने के मामले सामने आये हैं। २०२१ में ३३७६, साल २०२० में ३६२९ पराली जलाने के मामले सामने आये।

पराली जलाने वाले किसानों को किया पी एम किसान सम्मान निधि से वंचित

किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सरकारी निधियों व सुविधाओं से वंचित कर राज्य सरकार सख्ती रख रही है। इसी क्रम में कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के ९ किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि से वंचित कर दिया गया है। साथ ही, इसके अतिरिक्त भी सरकारी योजनाओं के लाभ से दूर कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर जिले के अधिकारियों द्वारा इस कार्य को अंजाम दिया गया है। निर्देशानुसार, अगर किसी किसान को पराली जलाते हुए पकड़ा गया तो उसे सरकारी योजनाओं से दूर क्र दिया जायेगा। बिहार सरकार द्वारा भी ऐसे ही निर्देश दिए गए हैं, सरकार की प्रतिक्रिया के भय से किसान लोग बहुत कम पराली जला रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है, कि इतने प्रतिबंधों के बाद भी कुछ लोगों में सुधार नहीं हुआ, वह बेधड़क होकर पराली जला रहे हैं।
पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से विषैली हुई कई शहरों की हवा

किसान भाइयों जैसा कि आप जानते हैं वर्तमान में धान की कटाई का समय चल रहा है। दरअसल, प्रति वर्ष पंजाब एवं हरियाणा की सरकारें किसानों पर कड़ाई करने व पराली जलाने से रोकने की बात तो करती हैं। परंतु, वास्तविकता में किसान निरंतर पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसी कारण से पराली जलाने से जो प्रदूषण फैल रहा है, उसके कारण दिल्ली-एनसीआर का AQI यानी वायु गुणवत्ता सूचकाँक निरंतर खतरनाक स्तर की तरफ बढ़ रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्य से विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पराली का खतरा बढ़ना शुरू हो गया है। बतादें, दोनों राज्यों की सरकार की सख्ती के पश्चात भी किसान खुले मैदानों में पराली जलाते दिख रहे हैं। पराली जलने की वजह से उठने वाला धुंआ पंजाब, हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर के लोगों की सांसों के लिए घातक साबित हो रहा है। दिल्ली-एनसीआर में CPCB द्वारा की गई मॉनिटरिंग में औसत AQI 263 रिपोर्ट हुआ है। इसकी वजह से लोगों के ऊपर गंभीर बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। पंजाब और हरियाणा राज्यों में निरंतर पराली को आग लगाई जा रही है। जैसे-जैसे धान की कटाई का सीजन आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे पराली जलाने के मामले भी निरंतरता से बढ़ रहे हैं। पराली में आग लगाने से जो धुआं और प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है, उसकी वजह से दिल्ली-एनसीआर सहित हरियाणा के भी बहुत सारे शहरों का AQI काफी खराब स्तर पर पहुंच चुका है।

पंजाब में बेखौफ पराली को आग के हवाले किया जा रहा है

पंजाब राज्य के अंदर भले ही पराली जलाने के मामले कम होने का दावा किया जा रहा हो, परंतु खुलेआम पराली जलाने का सिलसिला भी निरंतर जारी है। चंडीगढ़ के आसपास डेराबस्सी में हाईवे के किनारे ही सरेआम पराली जलती नजर आई। स्थिति आज यह है, कि यदि आप पंजाब एवं हरियाणा में किसी भी नेशनल हाईवे से गुजरते हैं, तो सड़क के किनारे जले हुए काले खेत नजर आऐंगे। जहां पर पराली पूर्णतय खाक में बदली नजर आएगी। किसान चालाकी से अपने खेत में पराली को आग लगा देते हैं और उसके पश्चात अपने खेतों से नौ दो ग्यारह हो जाते हैं, जिससे कि उन पर कोई कानूनी कार्यवाही ना हो सके।

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हरियाणा में जागरूक किसान पराली का उचित प्रबंधन कर रहे हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसे किसान भी हैं, जो पराली को आग के हवाले ना करके उसका प्रबंधन करने में विश्वास रखते हैं। पंचकूला के नग्गल गांव में किसान सुपर सीडर मशीन के माध्यम से पराली को खेतों में ही खाद की भांति उपयोग करने एवं सीधे गेहूं के बीज की बुवाई करते नजर आए। इन किसानों का कहना है, कि जो किसान महंगी मशीनें खरीद सकते हैं, वो तो पराली का प्रबंधन कर लेता है। परंतु, लघु व सीमांत किसानों के पास पराली को आग लगाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।

किसानों को सरकार से क्या शिकायत है

पंचकूला के मनकइया गांव में कुछ किसान पारंपरिक ढ़ंग से धान की फसल की कटाई के उपरांत पराली के ढेर बना रहे हैं। परंतु, उन्हें भी शिकायत इस बात की है, कि वो मजदूर लगाकर पराली को जलाने की बजाय उसका प्रबंधन कर रहे हैं। परंतु, सरकार की ओर से उन्हें ना तो कोई सहायता मिली है और ना ही किसी प्रकार का कोई अनुदान दिया गया है। उन्हें अपने स्वयं के खर्चे पर ही पराली का प्रबंधन करना पड़ रहा है।

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पहले से काफी मामले घटे हैं

पंजाब में विगत साल के मुकाबले में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में गिरावट आई है। राज्य में अब तक 1764 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ये आंकड़े विगत 2 वर्षों में सबसे कम हैं। इसी समयावधि में अब तक 2021 में 4327 और 2022 में 3114 मामले दर्ज किए गए थे। अगर हम हरियाणा राज्य की बात करें तो इस सीजन में यहां पराली जलाने के 714 मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि, विगत वर्ष की अपेक्षा में देखा जाए, तो विगत वर्ष अब तक 893 मामले सामने आए थे। यदि हरियाणा-पंजाब राज्यों की सरकार किसानों को पूरी तरह जागरूक करके उन्हें संसाधन मुहैय्या कराती है, तो पराली की चुनौती से छुटकारा मिल सकता है। बतादें, कि हरियाणा के कुछ शहरों का रिकॉर्ड किया गया AQI भयावह है। दरअसल, करनाल-243, रोहतक-182, जींद-155, फरीदाबाद-322, बहादुरगढ़-284, कैथल-269, कुरुक्षेत्र-256 और गुरुग्राम में 255 वायु गुणवत्ता सूचकाँक दर्ज किया गया।
धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

पंजाब राज्य के लुधियाना जिला के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा डाले हैं। वहीं, अपने आसपास के कृषकों के लिए मिशाल प्रस्तुत की है। धान की कटाई आरंभ होते ही पराली की समस्या किसानों एवं सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। आए दिन किसान पराली को खेतों में जलाते हैं। साथ ही, उन पर मुकदमा दर्ज होता है। सिर्फ इतना ही नहीं उनको इसके लिए कृषकों को हर्जाना भी देना पड़ता है। परंतु, इन सब के मध्य पंजाब में लुधियाना जनपद के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा लिए। इससे उनके आसपास के किसानों के लिए मिशाल पेश करने के साथ-साथ उन किसानों को आय का मार्ग दिखाया है। जो किसान भाई आज भी पराली जलाने का सहारा ले रहे हैं। मीडिया खबरों के अनुसार, प्रगतिशील किसान ने बात करते हुए कहा कि उन्होंने इस सीजन में धान की कटाई के उपरांत अपने खेतों में बचे तकरीबन 17,000 क्विंटल धान की पराली की गांठें निर्मित करने के लिए 5 लाख रुपये का एक सेकेंड-हैंड चौकोर बेलर और 5 लाख रुपये का रैक खरीदा है।

धान की पराली से 31.45 लाख रुपये की आमदनी कर ड़ाली

किसान का कहना है, कि "मैंने धान की पराली से 31.45 लाख रुपये कमाने के लिए उन्हें 185 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पेपर मिलों को बेच दिया।" अपने सफल पराली प्रबंधन से उत्साहित, 45 वर्षीय किसान ने अब अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और बड़ा करने की योजना तैयार की है। एक बेलर और दो ट्रॉलियों का खर्चा 11 लाख रुपये था। सभी खर्चों को पूर्ण करने के उपरांत उन्होंने 20.45 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया है।

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 साथ ही, गिल ने अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और विस्तारित करने के लिए 40 लाख रुपये के दो रेक के साथ एक और गोल बेलर और 17 लाख रुपये के रेक के साथ एक वर्गाकार बेलर खरीदते हुए कहा, “इसके अलावा, बेलर और दो ट्रॉलियां मेरे पास हैं।” उन्होंने कहा, "अब, हम दो वर्गाकार बेलरों की सहायता से 500 टन गोल गांठें और 400 टन वर्गाकार गांठें बनाने की योजना बना रहे हैं।"


 

सफल किसान हरिंदर गिल कितने एकड़ में खेती करते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान समय में गिल 52 एकड़ भूमि में खेती करते हैं, जिसमें से उन्होंने 30 एकड़ में धान की खेती की थी। वहीं, 10 एकड़ में अमरूद एवं पीयर मतलब कि नाशपाती के बाग स्थापित किए थे। इसके अतिरिक्त बाकी 12 एकड़ में चिनार के पौधे स्थापित किए थे।


 

गेहूं की खेती के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल किया जाता है

उन्होंने बताया, “मैंने पिछले सात वर्षों से धान अथवा गेहूं का पराली नहीं जलाया है और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल कर रहा हूं।” किसान ने आगे बताया “फसल उत्पादन तब से बढ़ गया है जब से उन्होंने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया है। इस वर्ष उन्होंने अपनी 30 एकड़ भूमि से 900 क्विंटल धान की पैदावार हांसिल की है। बीते दो वर्षों से मुझे ऐसा करते हुए देखकर, मेरे गांव एवं आसपास के अधिकांश किसानों ने भी यही प्रथा अपनानी चालू कर दी है।"

किसान भाई पराली को जलाने की जगह यह उपाय करें

किसान भाई पराली को जलाने की जगह यह उपाय करें

​किसान भाई पराली को आग लगाने की वजाय यहां दिए गए तरीकों को अपना सकते हैं। पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण रुकने के साथ-साथ किसान भाइयों को लाभ भी मिलेगा। दिल्ली एनसीआर समेत कई शहरों में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। प्रति वर्ष इन दिनों प्रदूषण का स्तर बढ़ने के पीछे की एक वजह पराली भी है। लेकिन, किसान भाई पराली जलाने के स्थान पर उसका क्या कर सकते हैं, आइए इसके बारे जानते हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत विभिन्न राज्यों के किसान धान के उपरांत गेहूं की खेती करते हैं। इसके अतिरिक्त वह बाकी फसलों की खेती भी करते हैं, जिसके लिए खेत तैयार करने की काफी आवश्यकता होती है। इसके चलते किसान फसल काटने के पश्चात खेतों में बचे हुए धान के डंठल अथवा पराली को जलाते हैं। कृषक भाई पराली को जलाकर फसल के अवशेषों को स्वच्छ करने और खेतों को पुनः बुवाई के लिए तैयार करते हैं।


 

मल्चर मशीन क्या होती है

सीटू प्रबंधन में बहुत सी मशीन हैं, जिनमें से मल्चर सबसे पहले है। धान की फसल के अवशेष को नियंत्रित करने के अलावा मल्चर भी एक प्रभावी कृषि उपकरण है। यह मशीन अपने ब्लेड से फसल के अवशेष को ट्रैक्टर की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटती है। धान की फसल के अवशेषों का प्रबंधन भी इससे काफी सहजता से होता है। इसका उपयोग करने के पश्चात आग नहीं लगानी चाहिए। धान के पुआल को मृदा में मिलाकर मिट्टी को संभालना एवं उर्वरकता को बढ़ाना एक प्रभावी और कामगर उपाय है। जैसे - पुआल को बहुत सारे जुताई उपकरणों का उपयोग करके मिट्टी में जोतने से इसका टूटना तीव्र होता है। साथ ही, मिट्टी की संरचना भी काफी शानदार होती है।

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पराली प्रबंधन के लिए सरकार अनुदान प्रदान करती है

धान की पराली के निपटारे की बजाय अन्य दूसरे विकल्पों का विचार भी किया जा सकता है। इसे पशुओं के चारे के तौर पर उपयोग कर सकते हैं। विशेष रूप से जब यह काटा अथवा संसाधित किया जाता है। बहुत सी सरकारें पुआल प्रबंधन को प्रोत्साहन देने के लिए काफी नियम बना रही हैं। पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाने अथवा मशीन खरीदने के लिए अनुदान प्रदान कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट - पराली जलाने वाले किसानों से एमएसपी पर नहीं खरीदी जाएगी फसल

सुप्रीम कोर्ट - पराली जलाने वाले किसानों से एमएसपी पर नहीं खरीदी जाएगी फसल

जैसा कि आप सब जानते हैं, कि कोर्ट के आदेश के बावजूद भी पंजाब में पराली जलना बंद होने के चलते सुप्रीम कोर्ट ने काफी नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा है, कि जो कृषक पराली जला रहे हैं, उन्हें कोई आर्थिक फायदा क्यों मिलना चाहिए, जिन्होंने पराली जलाई है और रेड फ्लैग हैं, उन पर एफआइआर दर्ज होने एवं जुर्माना लगाने के अतिरिक्त ऐसे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के फायदों से वंचित किया जाना चाहिए। सरकार को कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर झटका लगे।

सरकारें एक दूसरे पर आरोप मढ़ना बंद करें - SC 

कोर्ट ने पराली जलने से रोकने में पंजाब सरकार के रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जब हरियाणा कर सकता है, तो पंजाब क्यों नहीं कर सकता। कोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा है, कि वह अगली तारीख पर बताए कि उसने
पराली जलाने पर कितने कृषकों पर जुर्माना लगाया और उसमें से कितना वसूला गया। कोर्ट ने फिर कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने अथवा एक की दूसरे से तुलना नहीं की जानी चाहिए। केंद्र और राज्य को राजनीति भूल कर दीर्घकालिक हल ढूंढना चाहिए। ये टिप्पणियां, सुझाव और आदेश न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल और  श्री सुधांशु धूलिया की पीठ ने दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के मामले पर सुनवाई के दौरान दिये।

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पंजाब ने अपनी और से क्या कहा 

पंजाब ने कहा है, कि पूर्व की तुलना में पराली जलना काफी कम हुआ है। 984 एफआइआर दर्ज की गईं हैं। दो करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। खेत में पराली जलना रोकने के लिए उड़न दस्ते तैयार किए गए हैं। परंतु, लोग उन्हें पहुंचने नहीं देते, रास्ता बाधित किया जाता है। कानून व्यवस्था की भी समस्या हो रही है। इस पर पीठ ने कहा है, कि आदेश में एसएचओ को जिम्मेदार बनाया गया है। आप कानून व्यवस्था की बात नहीं कह सकते। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पंजाब ने सिर्फ 6621 पर्यावरण क्षति पूर्ति लगाई हैं। पंजाब में 3415 चालान हुए और 86.8 लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया गया और 473 एफआइआर दर्ज हुईं हैं।