पारंपरिक खेती के बजाय अब किसान बागवानी(horticulture) खेती की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यदि मौजूदा सरकार की बात करें, तो सरकार बागवानी फसलों को बढ़ावा दे रही है।
देश की केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें बागवानी फसलों को लेकर खाद-बीज, सिंचाई, रखरखाव, कटाई के बाद फसलों के भंडारण पर खास जोर दे रही हैं।
सरकारों ने बागवानी फ़सलों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कृषि वैज्ञानिकों को लगा रखा है, जो इस पर बेहद बारीकी से रिसर्च कर रहे हैं तथा नए-नए बीज और संकरित किस्मों का निर्माण कर रहे हैं।
इसको लेकर सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि किसान पारंपरिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न फ़सलों की जगह फल, फूल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती पर ध्यान दें।
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सरकार ने फसलों के उत्पादन के आंकड़े जारी किये हैं जिसमें बताया है कि मौसम की अनिश्चितता और बीमारियों के प्रकोप के कारण गेहूं, धान, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है।
वहीं बागवानी फसलों की बात करें तो फसलों के विविधिकरण, नई तकनीकों, मशीनरी और नए तरीकों का प्रयोग करने से उत्पादन में दिनों दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। साथ ही, बागवानी फसलों में प्राकृतिक आपदा और बीमारियों के प्रकोप का भी उतना असर नहीं पड़ता जितना खाद्यान्न उत्पादन करने वाली खेती में पड़ता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2021-22 के दौरान पारम्परिक खाद्यान्न फसलों के द्वारा 315,72 मिलियन टन उत्पादन हुआ है। जबकि बागवानी फसलों के द्वारा साल 2021-22 के दौरान 341.63 मिलियन टन उत्पादन हुआ है।
साल 2021-22 के दौरान बागवानी फसलों के उत्पादन में 2.10% की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में इस दौरान कमी देखी गई है।
आजकल धान-गेहूं जैसी पारंपरिक खाद्यान्न फसलों की खेती करने पर कटाई के बाद भारी मात्रा में अवशेष खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं।
ये अवशेष किसानों के किसी काम के नहीं होते, इसलिए खेत को फिर से तैयार करने के लिए उन अवशेषों में आग (stubble burning) लगाई जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में वातावरण में प्रदूषण फैलता है और आम लोगों को उस प्रदूषण से भारी परेशानी होती है।
इसके अलावा किसान पारंपरिक खेती में ढेरों रसायनों का उपयोग करते हैं जो मिट्टी के साथ-साथ पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इसके विपरीत बागवानी फसलों की खेती किसान ज्यादातर जैविक विधि द्वारा करते हैं, जिसमें रसायनों की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल होता है।
इसके साथ ही बागवानी फसलों की खेती से उत्पन्न कचरा जानवरों को परोस दिया जाता है या जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल कर लिया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ने की संभावना नहीं रहती।
आजकल बागवानी फसलों में किसानों के द्वारा आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। अब भारतीय किसान फल, फूल, सब्जी और जड़ी-बूटियां उगाने के लिए प्लास्टिक मल्च, लो टनल, ग्रीन हाउस और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके इस्तेमाल से उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और लागत में भी कमी आई है।
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इसके अलावा बागवानी फसलें नकदी फसलें होती है। जो प्रतिदिन आसानी से बिक जातीं है और इनकी वजह से किसानों के पास पैसे का फ्लो बना रहता है।
बागवानी फसलों की मदद से किसानों को रोज आमदनी होती है। बागवानी फसलों के फायदों को देखते हुए कई पढ़े लिखे युवा भी अब इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।