परंपरागत तरीके से किया गया मछली पालन भी आपकी कमाई को समय के साथ इतना बढ़ा सकता है, जो कि कई गाय और भैंस पालने से होने वाली बचत से कई गुना ज्यादा हो सकती है "
- चार्ल्स क्लोवर (लोकप्रिय कृषि वैज्ञानिक)
क्या है मछली पालन और कैसे हुई इसकी शुरुआत
मछली पालन में पानी की मदद से घर पर ही एक छोटा तालाब या पूल बनाकर मछलियां को बड़ा किया जाता है और उन्हें भोजन के रूप में बेचा जाता है या फिर खुद भी इस्तेमाल किया जाता है।
एनिमल फूड प्रोडक्शन में मछली पालन सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली खेती में गिना जाता है, जिसके तहत अलग-अलग प्रजातियों की मछलियों की कृत्रिम रूप से ब्रीडिंग करवाई जाती है।
मुख्यतः मछली पालन की शुरुआत रोमन एम्पायर से जुड़े हुए देशों में हुई थी ,परंतु जिस विधि से वर्तमान मछली पालन किया जाता है, उसकी शुरुआत चीन में हुई मानी जाती है।
मछली के अंडे की मदद से आधुनिक तरीके के फार्म हाउस बनाकर 1733 में जर्मनी के कुछ किसानों ने भी आधुनिक मत्स्य पालन की नींव रखी थी और भारत में भी कुछ क्षेत्रों में वर्तमान समय में इसी प्रकार का मत्स्य पालन किया जाता है।
कैसे करें मछली पालन की शुरुआत :
वर्तमान में भारत में मछली पालन की कई अलग-अलग विधियां अपनायी जाती है।
मछली पालन की शुरुआत के लिए सबसे पहले आपको एक मछली फार्म/फिश टैंक बनाना होगा। उसी जगह पर मछलियों को लंबे समय तक रखा जाता है। मछली फार्म एक बड़ा तालाब या पूल होता है, जिसमें पानी भर कर रखा जाता है और इसे पूरी तरीके से साफ पानी से ही भरा जाता है।
किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि इस प्रकार के तालाबों में अलग-अलग तरह के उपकरण इस्तेमाल करने के लिए बीच में जगह का होना भी अनिवार्य है, साथ ही उस तालाब में पानी भरे जाने और निकालने के लिए ड्रेनेज की भी उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए, नहीं तो पानी के प्रदूषित होने की वजह से आपके तालाब में पनप रही मछलीयां पूरी तरीके से खत्म हो सकती है।
साथ ही पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए आपको तालाब की ऊपरी सतह को बारिश के समय एक कवर से ढक कर रखना होगा, नहीं तो कई बार अम्लीय वर्षा होने की वजह से तालाब के पानी की अम्लता काफी बढ़ जाती है और इससे मछलियों की ग्रोथ पूरी तरीके से रुक सकती है।
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मछली की प्रजाति का निर्धारण करना :
सबसे पहले किसान भाइयों को अपने आस पास के मार्केट में मांग के अनुसार मछली की प्रजाति का चयन करना होगा। वर्तमान में भारत में रावस (Rawas or Indian Salmon) तथा कतला (katla) के साथ ही तिलापिया (Tilapia) और कैटफिश (Catfish) जैसी प्रजातियां बहुत ही तेजी से वृद्धि करके बचत देने वाली प्रजातियों में गिनी जाती है। यदि आप अपने घर के ही किसी एरिया में मछली फार्म बनाकर उत्पादन करना चाहते हैं तो कतला और तिलपिया मछली को सबसे अच्छा माना जाता है।
पिछले एक दशक से भारत का बाजार विश्व में पानी से उत्पादित होने वाले एनिमल फूड में सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है और अभी भी विश्व निर्यात में भारत पहले स्थान पर आता है।
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फिश फार्मिंग करने की लोकप्रिय विधियां :
वर्तमान में भारत में एकल प्रजाति मछली पालन और क्लासिकल तरीके से मछली की खेती की जाती है।
एकल प्रजाति विधि :
एकल प्रजाति विधि में फिश फार्म में लंबे समय तक केवल एक ही प्रजाति की मछलियों को रखना होगा, यदि आप एक नए किसान भाई है तो इस विधि को ही अपनाना चाहिए क्योंकि इसमें अलग-अलग प्रजाति की मछलियां ना होने की वजह से आपको कम ध्यान देने की जरूरत होगी, जिससे कि व्यापार में नुकसान होने की संभावना कम रहेगी।
क्लासिकल तरीके से मछली की खेती :
दूसरी विधि के तहत पांच से दस प्रकार की अलग-अलग प्रजातियों को एक ही जगह पर बड़ा किया जाता है।
इस विधि में किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि अलग-अलग मछलियों की भोजन और दूसरी आवश्यकता भी अलग-अलग होती है, इसलिए अपने फिश फार्म निरंतर निगरानी करते रहना होगा।
वर्तमान में मछलियों के अंडे को बड़ा करके भी कई युवा किसान भाई मछली पालन कर रहे हैं, परंतु इसके लिए आपको कई प्रकार की वैज्ञानिक विधियों की आवश्यकता होगी जो कि एक नए किसान के लिए काफी कठिन हो सकती है।
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मछली पालन के लिए कैसे प्राप्त करे लाइसेंस :
मछली पालन के लिए भारत के कुछ राज्यों में सरकारी लाइसेंस की आवश्यकता होती है। इसके बिना उत्पादन करने पर आपको भारी दंड भी भरना पड़ सकता है। आंध्र प्रदेश,तमिलनाडु और केरल राज्य सरकार ने इस प्रकार के प्रावधान बनाए है।
इस लाइसेंस की जानकारी आप अपने राज्य सरकार के कृषि मंत्रालय के मछली विभाग की वेबसाइट पर जाकर ले सकते है।
अलग-अलग राज्यों ने मछली उत्पादन के दौरान होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव और नियंत्रण के लिए कई प्रकार के कानून भी बना रखे है, क्योंकि मछली पालन के दौरान काफी ज्यादा वेस्ट उत्पादित होता है, जिसे मुर्गी पालन के दौरान उत्पादित होने वाले वेस्ट के जैसे खाद के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना कम होती है।
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मछली पालन के लिए कैसे करें सही जगह का चुनाव :
यदि आप बड़े स्तर पर मछली पालन करना चाहते हैं, तो आपको एक खुली और समतल जगह का चुनाव करना होगा और वहां पर ही मछली फार्म के लिए छोटे छोटे तालाब बनाने होंगे।
इस प्रकार के तालाब दोमट मिट्टी वाली समतल जमीन में बनाए जाएं, तो उनकी उत्पादकता सबसे प्रभावी रूप से सामने आती है।
अलग-अलग प्रजाति के लिए तालाब के आकार और डिजाइन में भी अंतर रखा जाता है, जैसे कि कैटफिश प्रजाति ज्यादातर तालाब के नीचे के हिस्से में ही रहती है इसीलिए इस प्रकार की प्रजाति के उत्पादन के लिए तालाब को ऊपर की तुलना में नीचे की तरफ ज्यादा बड़ा और चौड़ा रखा जाता है।
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मत्स्य पालन में कौन-कौन से उपकरणों की होगी आवश्यकता :
यह बात तो किसान भाई जानते ही हैं, कि किसी भी प्रकार की खेती के लिए अलग-अलग उपकरण और सामग्री की आवश्यकता होती है, वैसे ही मछली पालन के लिए भी कुछ उपकरण जरूरी होंगे।
जिनमें सबसे पहले एक पंप (pump) को शामिल किया जा सकता है, क्योंकि कई बार पानी पूरी तरीके से साफ ना होने पर उस में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे कि मछलियों को अपने गलफड़ों से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, इसके लिए आपको पम्प की मदद से ऊपर की वातावरणीय हवा को पानी में भेजना होगा, ऐसा करने से मछलियों की वृद्धि काफी तेजी से होगी और उनके द्वारा खाया गया खाना भी पूरी तरीके से उनकी वृद्धि में ही काम आ पाएगा।
दूसरे उपकरण के रूप में एक पानी शुद्धिकरण (Water Purification) सिस्टम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसके लिए कुछ किसान पानी को समय-समय पर तालाब से बाहर निकाल कर उसे फिर से भर देते है वहीं कुछ बड़े स्तर पर मछली पालन करने वाले किसान वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से अल्ट्रावायलेट किरणों का इस्तेमाल कर पानी में पैदा होने वाले हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं।
यदि आप घर से बाहर बने किसी प्राकृतिक तालाब में मछली पालन करना चाहते हैं, तो वहां से मछलियों को बाहर निकलने से रोकने के लिए बड़े जाली से बने हुए नेट का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके अंदर मछलियों को फंसा कर बाहर निकालकर बाजार में बेचा जा सकता है।
वर्तमान में तांबे की धातु से बने हुए नेट काफी चर्चा में है, क्योंकि इस प्रकार के नेट को समय-समय पर तालाब में घुमाते रहने से वहां पर पैदा होने वाले कई हानिकारक जीवाणुओं के साथ ही शैवाल का उत्पादन भी पूरी तरीके से नष्ट हो सकता है और पानी में डाला गया भोजन पूरी तरह से मछलियों की द्वारा ही काम में लिया जाता है।
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कैसे डालें मछलियों को खाना :
मछली उत्पादन की तेज वृद्धि के लिए आपको लगभग एक पाउंड वजन की मछलियों को 2 पाउंड वजन का खाना खिलाना होता है। यह खाना बाजार में ही कई कंपनी के द्वारा बेचा जाता है, इस खाने में डेफनिया (Defnia) , टुबीफेक्स (Tubifex) और ब्लडवॉर्म (Bloodworm) का इस्तेमाल किया जाता है।
इस खाने की वजह से मछलियों में कैल्शियम,फास्फोरस और कई प्रकार के ग्रोथ हार्मोन की कमी की पूर्ति की जा सकती है। यह खाना मछलियों के शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी को पूरा करने के अलावा प्रोटीन के स्तर को भी बढ़ाते है, जिससे उनका वजन बढ़ने के अलावा अच्छी क्वालिटी मिलने की वजह से बाजार में मांग भी तेजी से बढ़ती है और किसानों को होने वाला मुनाफा भी अधिक हो सकता है।
किसान भाई ध्यान रखें कि मछली फार्म में मछलियों को दिन में 2 बार ही खाना खिलाना होता है, इससे कम या ज्यादा बार खिलाने की वजह से उनकी मस्क्युलर (Muscular) ग्रोथ पूरी तरीके से रुक सकती है।
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मछली पालन में कितनी हो सकती है लागत ?
मछली पालन के दौरान होने वाली लागत का निर्धारण अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर पर किया जाता है, क्योंकि कई जगह पर तालाब में डालने के लिए काम में आने वाली छोटी मछलियों की कीमत काफी कम होती है, उसी हिसाब से वहां पर आने वाली लागत भी कम हो जाती है।
भारत के पशुपालन मंत्रालय और मछली विभाग (मत्स्यपालन विभाग - DEPARTMENT OF FISHERIES) की तरफ से जारी की गई एक एडवाइजरी के अनुसार, एक बीघा क्षेत्र में मछली फार्म स्थापित करके पूरी तरीके से मछली उत्पादन करने के दौरान, लगभग दस लाख रुपए तक का खर्चा आ सकता है।
अलग-अलग राज्यों में इस्तेमाल में होने वाले अलग उपकरणों और लेबर के खर्चे को मिलाकर यह लागत सात लाख रुपए से लेकर बारह लाख रुपए तक हो सकती है।
अलग-अलग प्रजाति की मछलियों को बड़ा होने के लिए अलग प्रकार के पर्यावरणीय कारकों की आवश्यकता होती है कई बार दिन ही पर्यावरणीय कारकों की कमी से और संक्रमण तथा दूसरी समस्याओं की वजह से मछलियों में कई तरह की बीमारियां देखने को मिलती है जिनमें कुछ बीमारियां और उनके इलाज की जानकारी निम्न प्रकार है :-
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लाल घाव रोग (Epizootic ulcerative disease syndrome) :
इस रोग से संक्रमित मछली के शरीर के आंतरिक हिस्सों में जगह-जगह पर घाव हो जाते हैं और एक बार यदि एक मछली इस रोग से संक्रमित हो जाए तो इसका संक्रमण सभी मछलियों में फैल सकता है, यहां तक कि अलग प्रजातियां भी इस रोग की चपेट में आ जाती है।
लाल घाव बीमारी के पीछे कई प्रकार के कारक जैसे कि जीवाणु, फंगस और विषाणु को जिम्मेदार माना जाता है। संक्रमण फैलने के 1 से 2 दिन के बाद ही मछलियों की मृत्यु होना शुरू हो जाती है।
इस रोग का इलाज करने के लिए आपको अपने तालाब में चूने का मिश्रण बनाकर एक सप्ताह के अंतराल के साथ छिड़काव करना होगा।
हालांकि अभी इसके उपचार के लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने एक औषधि भी तैयार की है, जिसे 'सीफैक्स' ब्रांड नाम से बाजार में भी बेचा जा रहा है। इस औषधि का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के आधार पर एक लीटर की दर से किया जा सकता है।
यदि औषधि के छिड़काव के 5 से 6 दिन बाद भी मछलियों की मृत्यु जारी रहे,तो तुरंत किसी पशु चिकित्सक से सलाह लेना ना भूलें।
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ड्राप्सी रोग(Dropsy Disease) :
यह रोग मुख्यतया कैटफ़िश प्रजाति की मछलियों में देखा जाता है, इस रोग से ग्रसित होने के बाद मछली के शरीर का आकार पूरी तरह असंतुलित हो जाता है और उसके सिर की तुलना में धड़ का आकार बहुत ही छोटा और पतला रह जाता है, जिससे मछली की आगे की ग्रोथ भी पूरी तरह प्रभावित हो जाती है।
ड्रॉप्सी रोग की वजह से शरीर की अंदरूनी गुहा में पानी का जमाव होने लगता है, जोकि एक बिना संक्रमित मछली में गलफड़ों के जरिए बाहर निकल जाना चाहिए था।
इस रोग के इलाज के लिए किसान भाइयों को अपने तालाब में पानी की साफ सफाई का पूरा ध्यान रखना होगा और मछलियों को पर्याप्त मात्रा में भोजन देना होगा।
ऊपर बताई गई चूने की विधि का इस्तेमाल इस रोग के इलाज के लिए भी किया जा सकता है, बस छिड़काव के बीच का अंतराल 15 दिन से अधिक रखें।
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मछलियों के शरीर में ऑक्सीजन की कमी (Hypoxia) :
मछलियां अपने गलफड़ों की मदद से पानी में घुली हुई ऑक्सीजन का इस्तेमाल करती है परन्तु यदि किन्हीं भी कारणों से जल प्रदूषण बढ़ता है तो उस में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है, जिससे मछलियों के लिए काम में आने वाली ऑक्सीजन भी स्वतः ही कम हो जाती है।
मुख्यतया ऐसी समस्या मानसून काल और गर्मियों के दिनों में नजर आती है परंतु कभी-कभी सर्दियों के मौसम में भी प्रातः काल के समय मछलियों के लिए ऐसी दिक्कत हो सकती है।
इसके इलाज के लिए मछलियों को दिए जाने वाले भोजन को थोड़ा कम करना होगा और पंप की सहायता से बाहर की पर्यावरणीय वायु को अंदर प्रसारित करना होगा, जिससे कि जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा को एक अच्छे स्तर पर पुनः पहुंचाया जा सके।
जब भी किसी फिश टैंक को शुरुआत में स्थापित किया जाता है और उसमें एकसाथ ही सही अधिक मात्रा में मछलियां लाकर डाल दी जाती है तो उस पूरे टैंक में अमोनिया की मात्रा काफी बढ़ सकती है।
ऐसी समस्या होने पर मछलियों के गलफड़े लाल आकार के हो जाते है और उन्हें सांस लेने में बहुत ही तकलीफ होने लगती है।
इससे बचाव के लिए समय-समय पर पानी को बदलते रहना होगा और यदि आप एक साथ इतने पानी की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उस टैंक में भरे हुए 50% पानी को तो बदलना ही होगा।
इसके अलावा अमोनिया स्तर को और अधिक बढ़ने से रोकने के लिए मछलियों को सीमित मात्रा में खाना खिलाना चाहिए और अपने टैंक में मछलियों की संख्या धीरे-धीरे ही बढ़ानी चाहिए।साथ ही बिना खाए हुए खाने को तुरंत बाहर निकाल देना होगा, इसके अलावा पानी की गुणवत्ता की भी समय-समय पर जांच करवानी होगी।
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मछली पालन की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी :
अपने ग्राहकों तक सही समय और सही मात्रा में मछलियां पहुंचाने के अलावा अच्छे मुनाफे के लिए आपको एक बेहतर मार्केटिंग स्ट्रेटजी की आवश्यकता होगी।
इसके लिए, संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संस्थान (Food and Agriculture Organisation of United Nations) ने एक एडवाइजरी जारी की है, इस एडवाइजरी के अनुसार एक बेहतर मार्केट पकड़ बनाने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा, जैसे कि:
- प्राइमरी मार्केट में केवल उसी विक्रेता को अपनी मछलियां बेचें, जो सही कीमत और तैयार की गई मछलियों की निरंतर खरीदारी करता हो।
- किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि अपने द्वारा तैयार की गई मछलियों की अंतिम बाजार कीमत की तुलना में लगभग 65% तक मुनाफा मिल रहा हो।
जैसे कि यदि एक किलो मछली की वर्तमान बाजार कीमत 400 रुपए है, तो आपको लगभग 330 रुपए प्रति किलोग्राम से कम कीमत पर अपनी मछली नहीं बेचनी चाहिए।
- यदि बाजार में मांग अधिक ना हो और आपके टैंक की मछलियां पूरी तरीके से बिकने के लिए तैयार है तो उन्हें एक कोल्ड स्टोरेज हाउस में ही संरक्षित करना चाहिए।
इसके लिए भारत सरकार के उपभोक्ता (Consumer) मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वेयरहाउस डिपॉजिटरी (Warehouse Depository) संस्थान या फिर फ़ूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया (Food Corporation of India - FCI) के साथ जुड़े हुए कुछ कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) हाउस में भी संरक्षित कर सकते है।
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इसके लिए कंजूमर मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अपने आसपास में स्थित किसी ऐसे ही कोल्ड स्टोरेज हाउस की जानकारी लेनी होगी।
- संयुक्त राष्ट्र की FAO संस्थान के द्वारा ही किए गए एक सर्वे में पाया गया कि भारतीय मत्स्य किसानों को लगभग 56% मुनाफा ही देय किया जाता है और 44% मुनाफा बिचौलिये अपने पास रख लेते हैं।
अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए आप अलग-अलग बिचौलियों से संपर्क कर सकते है या फिर सरकार के राष्ट्रीय कृषि बाजार E-NAM (National Agriculture Market - eNAM) प्रोजेक्ट के तहत सीधे ही खरीदार से संपर्क कर, अपनी मछलियों को भारत के किसी भी हिस्से में बेच सकते हैं।
- मछलियों के टैंक में बड़ा होते समय उनके खानपान का पूरा ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि वजन भी अच्छा बढ़ेगा साथ ही प्रोटीन की मांग रखने वाले युवा लोगों के मध्य आप के फार्म हाउस की लोकप्रियता भी बढ़ेगी।
- अपने लोकल मार्केट में मछलियों को बेचने के लिए आप एक वेबसाइट का निर्माण करवा सकते हैं, जिसमें ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा उपलब्ध करवाकर डायरेक्ट डिलीवरी भी कर सकते हैं।
यदि आपके क्षेत्र में दूसरा प्रतिस्पर्धी नहीं है तो आसानी से आपकी सभी मछलियों को अपने इलाके में ही बेचा जा सकता है।
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मछली पालन में योगदान के लिए कुछ सरकारी स्कीम और उनके तहत मिलने वाली सब्सिडी :
भारत में मत्स्य पालन करने वाले किसानों की आय को बढ़ाने के लिए अपने संकल्प के तौर पर साल 2019 में ही, भारत सरकार ने मत्स्य पालन के लिए अलग से एक विभाग की स्थापना भी की है और इसी के तहत कुछ नई सरकारी स्कीमों की भी शुरुआत की है, जो कि निम्न प्रकार है :
मछली उत्पादन के लिए लाई गई नील क्रांति के पहले फेज में अच्छी सफलता मिलने के बाद अब इसी का अगला फेस शुरू किया गया है।
इस स्कीम के तहत यदि आप सामान्य कैटेगरी में आते हैं तो आपको अपने प्रोजेक्ट में लगने वाली कुल आय का लगभग 40% सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा, वहीं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए सब्सिडी को 60% रखा गया है।
इस स्कीम का उद्देश्य मछली उत्पादन के अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे अलग-अलग प्रकार के किसानों को सब्सिडी प्रदान करना है।
इस स्कीम के तहत यदि आप एक नया फिश टैंक बनाते है और उस पर तीन लाख रुपए तक की लागत आने तक 20% सब्सिडी दी जाती है, वहीं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 25% सब्सिडी रखी गई है।
यदि आप अपने पुराने टैंक को पुनर्निर्मित कर उसे मत्स्य पालन में इस्तेमाल करने योग्य बनाना चाहते हैं तो भी आपको यह सब्सिडी मिल सकती है।
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कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने कृषि से जुड़े किसानों को मिलने वाले किसान क्रेडिट कार्ड की पहुंच को अब मत्स्य पालन के लिए भी बढ़ा दिया है और इसी क्रेडिट कार्ड की मदद से अब मछली पालन करने वाले किसान भी आसानी से कम ब्याज दर पर लोन दिया जा सकेगा।
यदि आप दो लाख रुपए तक का लोन लेना चाहते हैं तो आपको 7% की ब्याज दर चुकानी होगी, जिसमें समय-समय पर सरकार के द्वारा रियायत भी दी जाती है।
किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा, कि एक बार यह क्रेडिट कार्ड मिल जाने पर आपको किसी भी प्रकार के संसाधन को गिरवी रखने की जरूरत नहीं होती है और बिना अपनी पूंजी दिखाए आसानी से 3 लाख रुपए का लोन ले पाएंगे।
पिछले 2 से 3 वर्षों में भारत के मछली उत्पादक किसानों ने 2020 में लांच हुई प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी का काफी अच्छा फायदा उठाया है।
इस स्कीम के तहत अनुसूचित जाति और महिलाओं को मत्स्य पालन करने के लिए बनाए गए पूरे सेटअप पर आने वाले खर्चे का लगभग 60% सब्सिडी के तौर पर दिया जाता है, वहीं सामान्य केटेगरी से आने वाले किसानों को 40% सब्सिडी मिलेगी।
इस स्कीम से जुड़ने के लिए आपको अपना आधार कार्ड और मूल निवास प्रमाण पत्र के साथ ही बैंक पासबुक की एक प्रति और जाति प्रमाण पत्र के साथ भारत सरकार के ही अंत्योदय सरल पोर्टल पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा या फिर आप अपने आसपास ही स्थित मछली विभाग के स्थानीय ऑफिस में जाकर भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत लांच की गई इस स्कीम के अंतर्गत किसानों की आय को दोगुना करने के अलावा मछली उत्पादन के बाद उसे बाजार तक पहुंचाने में आने वाली लागत को भी 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
और अधिक जानकारी के लिए, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट को देखें :भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मात्स्यिकी विभागमत्स्य पालन विभाग (Department of Fisheries) - PMMSY
आशा करते है कि Merikheti.com के द्वारा दी गई जानकारी के साथ ही सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की मदद से आप भी मत्स्य पालन कर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे और मछली उत्पादन में भारत को विश्व में श्रेष्ठ स्थान दिलाने में भी कामयाब हो पाएंगे।