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पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
स्प्रिंकलर सिस्टम यानी कम पानी में खेती

स्प्रिंकलर सिस्टम यानी कम पानी में खेती

फव्वारे छोटे से बड़े क्षेत्रों को कुशलता से कवरेज प्रदान करते हैं तथा सभी प्रकार की संपत्तियों पर उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। यह लगभग सभी सिंचाई वाली मिट्टियों के लिये अनुकूल हैं क्योंकि फव्वारे विस्तृत विसर्जन क्षमता में उपलब्ध हैं। 

कृषि के लिए सिंचाई बहुत आवश्यक होती है बिना सिंचाई के कृषि में एक दाना भी उपजाना संभव नहीं है। जिन क्षेत्रों में भूमिगत जल या नदियों-नहरों की अच्छी व्यवस्था है वहां तो सिंचाई आराम से की जा सकती है, लेकिन बहुत से क्षेत्रों में न तो भूमिगत जल की उपलब्धता है और न ही नदी या नहर की व्यवस्था है। 

ऐसे में सिंचाई अति कठिन कार्य हो जाता है। बहुत कम पानी के प्रयोग से ही सिंचाई करनी होती है। ऐसे क्षेत्रों के लिए छिड़काव सिंचाई प्रणाली यानी स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली बेहद कारगर साबित हो सकती हैं। सिंचाई की इन पद्धतियों से कम पानी में अच्छी उपज ली जा सकती है।

छिड़काव सिंचाई प्रणाली

स्प्रिंकलर सिस्टम 

 छिड़काव सिंचाई, पानी सिंचाई की एक विधि है, जो वर्षा के समान है। पानी पाइप के माध्यम से आमतौर पर पम्पिंग द्वारा सप्लाई किया जाता है। 

वह फिर स्प्रे हेड के माध्यम से हवा और पूरी मिट्टी की सतह पर छिड़का जाता है जिससे पानी भूमि पर गिरने वाले पानी की छोटी बूँदों में बंट जाता है। फव्वारे छोटे से बड़े क्षेत्रों को कुशलता से कवरेज प्रदान करते हैं तथा सभी प्रकार की संपत्तियों पर उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। यह लगभग सभी सिंचाई वाली मिट्टियों के लिये अनुकूल हैं। 

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लगभग सभी फसलों के लिए उपयुक्त हैं। जैसे गेहूं, चना आदि के साथ सब्जियों, कपास, सोयाबीन, चाय, कॉफी व अन्य चारा फसलों के लिए। 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली

स्प्रिंकलर सिस्टम 

 ड्रिप सिंचाई प्रणाली यानी टपक सिंचाई फसल को बूंदों के माध्यम से सींचती है। इसमें छोटी नलियों के माध्यम से पंप द्वारा पानी पाइपोें तक पहुंचता है। इनमें लगे नाजिल की मदद से पौधों और फसल को बूंद बूंद कर पानी पहुंचता है।

जितने पानी की जरूरत है उतनी मात्रा में और नियत लक्ष्त तक ही पानी पहुंचाने में यह विधि बेहद कारगर है। पानी सीधे पौधे की जड़ों में आपूर्ति करता है। 

पानी और पोषक तत्व उत्सर्जक से, पौधों की जड़ क्षेत्र में से चलते हुए गुरुत्वाकर्षण और केशिका के संयुक्त बलों के माध्यम से मिट्टी में जाते हैं। इस प्रकार, पौधों की नमी और पोषक तत्वों की कमी को तुरंत ही पुन: प्राप्त किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करते हुए कि पौधे में पानी की कमी नहीं होगी। 

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ड्रिप सिंचाई आज की जरूरत है, क्योंकि प्रकृति की ओर से मानव जाति को उपहार के रूप में मिली जल असीमित एवं मुफ्त रूप से उपलब्ध नहीं है। विश्व जल संसाधनो में तेजी से ह्रास हो रहा है। 

ड्रिप सिंचाई प्रणाली के लाभ

स्प्रिंकलर सिस्टम

पैदावार में 150 प्रतिशत तक वृद्धि। बाढ़ सिंचाई की तुलना में 70 प्रतिशत तक पानी की बचत। अधिक भूमि को इस तरह बचाये गये पानी के साथ सिंचित किया जा सकता है। फसल लगातार,स्वस्थ रूप से बढ़ती है और जल्दी परिपक्व होती है।

शीघ्र परिपक्वता से उच्च और तेजी से निवेश की वापसी प्राप्त् होती है। उर्वरक उपयोग की क्षमता 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। उर्वरक, अंतर संवर्धन और श्रम का मूल्य कम हो जाता है। उर्वरक लघु सिंचाई प्रणाली के माध्यम से और रसायन उपचार दिया जा सकता है। बंजर क्षेत्र, नमकीन, रेतीली एवं पहाड़ी भूमि को भी उपजाऊ खेती के अधीन लाया जा सकता है।

90 प्रतिशत तक मिलती है छूट

ड्रिप एवं स्प्रिंकलर ​सिस्टम लगाने पर राज्यों में अलग अलग छूट की व्यवस्था की है। उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान सहित कई राज्यों में इस पर केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से 90 प्रतिशत तक अनुदान की व्यवस्था है। किसान हर जनपद स्थित उद्यान विभाग में पंजीकरण कराकर इस योजना का लाभ ले सकते हैं।

योगी सरकार मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

योगी सरकार मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में मक्के की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नई योजना लागू करने जा रही है। इस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में 2 लाख हेक्टेयर गन्ने का क्षेत्रफल बढ़ेगा और 11 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा मक्के की उपज हांसिल होगी। 

इसके अतिरिक्त योजना के अंतर्गत किसी एक लाभार्थी को ज्यादा से ज्यादा दो हेक्टेयर की सीमा तक सब्सिडी दी जाएगी। 

योगी सरकार संकर मक्का, पॉपकार्न मक्का और देसी मक्का पर 2400 रुपये अनुदान दिया जा रहा है। साथ ही, बेबी मक्का पर 16000 रुपये और स्वीट मक्का पर 20000 रुपये प्रति एकड़ का अनुदान इस योजना के अंतर्गत दिया जाएगा।

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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि यूपी सरकार की यह योजना 4 सालों के लिए होगी। कैबिनेट की बैठक में कृषि विभाग की ओर से पिछले दिनों में ही इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जिसके बाद इस योजना को संचालित किए जाने का शासनादेश जारी कर दिया गया है।

जानिए किन जिलों के किसान भाई होंगे लाभांवित 

यदि मुख्य सचिव कृषि डॉ. देवेश चतुर्वेदी द्वारा जारी शासनादेश के मुताबिक, इस योजना को राज्य के समस्त जनपदों में चलाया जाएगा। 

परंतु, राज्य के 13 जनपदों में- बहराइच, बुलंदशहर, हरदोई, कन्नौज, गोण्डा, कासगंज, उन्नाव, एटा, फर्रुखाबाद, बलिया और ललितपुर जो कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत मक्का फसल के लिए चयनित हैं। 

इन जिलों में इस योजना के वह घटक जैसे-संकर मक्का प्रदर्शन, संकर मक्का बीज वितरण और मेज सेलर को क्रियान्वित नहीं किया जाएगा। क्योंकि ये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना में भी शामिल है।

खाघान्न में तीसरे स्थान पर मक्के की फसल

दरअसल, खाद्यान्न फसलों में गेहूं और धान के पश्चात मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। 

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आज के समय में भारत के अंदर मक्के का इस्तेमाल मुख्य तौर पर खाद्य सामग्री के अतिरिक्त पशु चारा, पोल्ट्री चारा और प्रोसेस्ड फूड आदि के तोर पर भी किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मक्का का उपयोग एथेनॉल उत्पादन में कच्चे तेल पर निर्भरता को काफी कम कर रहा है।

खरीफ सत्र में कितने मी.टन मक्के की पैदावार दर्ज हुई है 

बतादें, कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022-23 के खरीफ सत्र में 6.97 लाख हेक्टेयर में 14.56 लाख मी.टन मक्के का उत्पादन हुआ था। वहीं, रबी सत्र में 0.10 लाख हेक्टेयर में 0.28 मी.टन और जायद में 0.49 लाख हेक्टेयर में 1.42 लाख मी.टन मक्के की उपज हुई थी।

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

इस राज्य सरकार ने सरसों की खेती करने वाले किसानों के हित में उठाया महत्वपूर्ण कदम

सरसों की खेती करने वाले हरियाणा के किसानों के लिए एक खुशखबरी है। राज्य के मुख्य सचिव संजीव कौशल का कहना है, कि रबी सीजन के दौरान सरकार किसानों की सरसों, चना, सूरजमुखी व समर मूंग की निर्धारित एमएसपी पर खरीद करेगी। साथ ही, मार्च से 5 जनपदों में उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सूरजमुखी तेल की आपूर्ति की जाएगी।

मुख्य सचिव ने फसलों के उत्पादन को लेकर क्या कहा है ?

एक बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि इस सीजन में 50 हजार 800 मीट्रिक टन सूरजमुखी, 14 लाख 14 हजार 710 मीट्रिक टन सरसों, 26 हजार 320 मीट्रिक टन चना और 33 हजार 600 मीट्रिक टन समर मूंग की पैदावार होने की उम्मीद है। मुख्य सचिव ने बताया कि हरियाणा राज्य वेयरहाउसिंग कारपोरेशन, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग व हैफेड मंडियों में सरसों, समर मूंग, चना और सूरजमुखी की खरीद प्रारंभ करने के लिए तैयारियां शुरू करने के आदेश भी दिए हैं।

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सरकार कब से सरसों की खरीद चालू करेगी 

सरकार मार्च के अंतिम सप्ताह में 5 हजार 650 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से सरसों की खरीद चालू करेगी। इसी प्रकार 5 हजार 440 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों का चना खरीदा जाएगा। 15 मई से 8 हजार 558 रुपये प्रति क्विंटल की दर से समर मूंग की खरीद होगी। इसी प्रकार एक से 15 जून तक 6760 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से सूरजमुखी की खरीद होगी।

लापहरवाही करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा 

मुख्य सचिव ने खरीद प्रक्रिया के दौरान किसानों की सुविधा के लिए अधिकारियों को समस्त आवश्यक प्रबंध करने एवं खरीदी गई पैदावार का तीन दिन के अंदर भुगतान करने के लिए कहा है। साथ ही, उन्होंने कहा कि काम में लापरवाही करने वालों को बिल्कुल बख्शा नहीं जाएगा। इस फैसले से किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य भी मिल जाएगा।

गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

नई दिल्ली। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक की गई। बैठक में गन्ने की एफआरपी यानि उचित व लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price - FRP) बढाने के लिए निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि गन्ना की एफआरपी में 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने की सिफारिशें हुईं हैं। सम्भवतः जल्दी ही इसे पारित किया जाएगा। जानकारों की मानें तो बीते साल 2021 में गन्ने की एफआरपी 290 रुपए प्रति क्विंटल थीं, जो अब बढ़कर 305 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगी। बीते वित्तीय वर्ष में इसमें केवल 5 रुपये की वृद्धि हुई थी। गन्ने पर बढ़ाई जा रही एफआरपी आगामी 1 अक्तूबर से 30 सितंबर 2023 तक के लिए तय की जाएगी। इससे लाखों किसानों को फायदा मिलना तय है।

गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत तय होती है एफआरपी

- प्रदेश सरकार गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत गन्ने की एफआरपी तय करती है। इसके लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग सिफारिश करता है। एफआरपी के अंतर्गत चीनी मिल किसानों से न्यूनतम भाव पर गन्ना खरीदता है।



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देश के कई राज्यों को नहीं मिलेगा एफआरपी का फायदा

- सरकार के इस फैसले से देश के कई राज्यों में गन्ना किसानों को फायदा नहीं मिलेगा। देश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है। लेकिन यूपी के गन्ना किसानों को एफआरपी पर बढ़ी हुई कीमत का लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि यूपी में एफआरपी पहले से ही ज्यादा है।

मंहगाई को देखते हुए बढ़नी चाहिए एफआरपी

- भले ही सरकार ने गन्ना की एफआरपी 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। लेकिन किसान इसे मंहगाई की तुलना में काफी कम मान रहे हैं। किसानों के कहना है कि मंहगाई के हिसाब से ही एफआरपी बढ़नी चाहिए। क्योंकि खाद, पानी, बीज और कीटनाशक दवाओं के साथ-साथ मेहनत-मजदूरी भी लगातार बढ़ रही है।



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घट रहा है गन्ना की खेती का रकबा

- उत्तर प्रदेश में पिछले कई सालों से गन्ना की खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है। चीनी मिलों से, गन्ना का बकाया भुगतान समय से न मिलना और दूसरी फसलों में अच्छा मुनाफा होने के चलते किसानों का गन्ना से मोहभंग होता जा रहा है।
इस राज्य सरकार ने गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया भुगतान करने के लिए जारी किए 450 करोड़

इस राज्य सरकार ने गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया भुगतान करने के लिए जारी किए 450 करोड़

गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए यह धनराशि सहकारी चीनी मिलों पर कर्ज के तौर पर पहले से लंबित थी। इसलिए गन्ना उत्पादक किसान लंबे समय से बकाया धनराशि का भुगतान किए जाने की लगातार मांग कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादक किसानों लिए एक अच्छा समाचार है। शीघ्र ही राज्य के हजारों गन्ना उत्पादक कृषकों के खाते में बकाया राशि पहुंचने वाली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा गन्ना बकाया का भुगतान करने का आदेश दे दिया है। विशेष बात यह है, कि इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 450 करोड़ रुपये की राशि जारी भी कर दी गई है। साथ ही, इस खबर से किसानों के मध्य प्रशन्नता की लहर है। किसानों का यह कहना है, कि फिलहाल वह बकाया धनराशि के पैसे से वक्त पर खरीफ फसलों की खेती बेहतर ढ़ंग से कर पाऐंगे।

किसानों ने ली चैन की साँस

मीडिया खबरों के अनुसार, गन्ना किसानों के बकाया भुगतान हेतु यह राशि सहकारी चीनी मिलों पर कर्ज के तौर पर पहले से लंबित थी। ऐसी स्थिति में गन्ना उत्पादक किसान लंबे वक्त से बकाया धनराशि का भुगतान किए जाने की मांग कर रहे थे। अब ऐसी स्थिति में धान की बुवाई आरंभ होने से पूर्व सरकार के इस निर्णय से किसान भाइयों ने राहत भरी सांस ली है।

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गन्ने की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि संपूर्ण भारत में सर्वाधिक गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश में किया जाता है। फसल सीजन 2022-23 में 28.53 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती की गई। साथ ही, यूपी के उपरांत गन्ना उत्पादन के संबंध में महाराष्ट्र द्वितीय स्थान पर है। यहां पर गन्ने का क्षेत्रफल 14.9 लाख हेक्टेयर है। ऐसी स्थिति में हम कहा जा सकता है, कि उत्तर प्रदेश अकेले 46 प्रतिशत क्षेत्रफल में गन्ने की खेती करता है। उधर महाराष्ट्र की देश के कुल गन्ने के क्षेत्रफल में 24 फीसद भागीदारी है। हालांकि, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और हरियाणा में भी किसान बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती करते हैं।

गन्ना उत्पादक किसानों को कितने करोड़ का भुगतान किया जा चुका है

उत्तर प्रदेश सरकार का यह कहना है, कि प्रदेश में सरकार बनने के बाद से अभी तक वह गन्ना उत्पादक किसानों को 2 लाख 11 हजार 350 करोड़ का भुगतान कर चुकी है। इससे 46 लाख गन्ना किसानों के खाते में भुगतान राशि भेजी जा चुकी है। सरकार का यह भी दावा है, कि वह देश में गन्ना किसानों का भुगतान करने में सबसे अग्रणीय है। बतादें, कि यूपी में पेराई सत्र 2022-23 के समय कृषकों से 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से गन्ना खरीदा गया है। उधर सामान्य किस्म के गन्ने का भाव 340 रुपये और क्वालिटी प्रभावित गन्ने का भाव 335 रुपये प्रति क्विंटल रहा है।
गेहूं समेत इन 6 रबी फसलों पर सरकार ने बढ़ाया MSP,जानिए कितनी है नई दरें?

गेहूं समेत इन 6 रबी फसलों पर सरकार ने बढ़ाया MSP,जानिए कितनी है नई दरें?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई जिसमे गेहूं समेत अन्य रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने का निर्णय लिया गया। सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 40 रुपए बढ़ाकर 2,015 प्रति क्विंटल लेने का फैसला किया है। बता दें, गेहूं इससे पहले 1975 रुपए प्रति क्विंटल था। वहीं आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने चना पर 130 रुपए, मसूर पर 400 रुपए, जौ पर 35 रुपए, सरसों पर 400 रुपए और कुसुम (सूरजमुखी) पर 114 रुपए एमएसपी बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। ऐसे में अब चना 5230 रुपए, जौ 1635 रुपए, सरसों 5050 रुपए, मसूर 5500 रुपए जबकि कुसुम 5471 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदना पड़ेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, न्यूनतम समर्थन मूल्य वह दर है जिस पर सरकार किसानों से अन्न  खरीदती है। सरकार रबी और खरीफ दोनों की ही करीब 23 फसलों पर एमएसपी तय करती है। बता दें इन 23 फसलों में से गेहूं और सरसों की फसल रवि की प्रमुख फसलें मानी जाती है। खरीफ की फसलें गर्मी में उगाई जाती है और रबी की फसलें सर्दियों में उगाई जाती है। गौरतलब है कि, पिछले कई दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का लगातार प्रदर्शन जारी है। इतना ही नहीं बल्कि इन दिनों किसान संगठनों ने अपने इस आंदोलन को और भी बढ़ा दिया है। यह किसान तीन कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि सरकार अपने कृषि कानून वापस ले और एमएसपी पर कानून बनाए।

कितनी उचित मिलेगी कीमत

2022-23 के लिए रबी फसलों की एमएसपी में बढ़ोतरी केंद्रीय बजट 2018-19 में की गई घोषणा के अनुरूप है, जिसमें कहा गया कि देशभर के औसत उत्पादन को मद्देनजर रखते हुए एमएसपी में कम से कम डेढ़ गुना इजाफा किया जाना चाहिए, ताकि किसानों को उचित कीमत मिल सके। किसान द्वारा खेती में किए गए खर्च के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है। इस आधार पर सरकार मानती है कि किसानों को गेहूं, केनोला और सरसों पर 100 प्रतिशत, दाल पर 79 प्रतिशत, चना पर 74 प्रतिशत, जौ पर 60 प्रतिशत एवं कुसुम पर उत्पादन में 50 प्रतिशत लाभ का अनुमान है।

खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर हों

दशकों से खद्य तेलों के मामले में हम आत्म निर्भर नहीं हो पाए हैं। इसके चलते सरकार ने नीति बनाई है। बाजार में इस बार सरसेां की कीमतें ठीक ठाक रहने से किसान भी सरसों की खेती के लिए इच्छुक हैं। इधर राष्ट्रीय खाद्य तेल–
पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) योजना को भी सरकार ने हाल में घोषित किया है। इस योजना से खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन बढ़ेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी। इस योजना के लिये 11,040 करोड़ रुपये रखे गये हैं, जिससे क्षेत्रफल में इजाफे के साथ उत्पादन और आत्म निर्भरता बढ़ेगी। इसके अलावा केंद्रीय कैबिनेट ने कपड़ा क्षेत्र को भी मंजूरी दे दी है। मिली जानकारी के अनुसार, एमएमएफ फैब्रिक्स तथा एमएमएफ (कृत्रिम रेशे) परिधान, टेक्निकल टेक्सटाइल समेत दस अलग-अलग उत्पादों के लिए 10, 683 करोड रुपए से अधिक का पैकेज दिया जाएगा और यह पैकेज अगले 5 साल तक होगा। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना है कि, इस योजना से निर्यात और घरेलू विनिर्माण दोनों को ही बढ़ावा मिलेगा।
गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान

गेंदे के फूल का सर्वाधिक इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। इसके साथ-साथ शादियों में भी घर और मंडप को सजाने में गेंदे का उपयोग होता है। यही कारण है, कि बाजार में इसकी निरंतर साल भर मांग बनी रहती है। 

ऐसे में किसान भाई यदि गेंदे की खेती करते हैं, तो वह कम खर्चा में बेहतरीन आमदनी कर सकते हैं। बिहार में किसान पारंपरिक फसलों की खेती करने के साथ-साथ बागवानी भी बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। 

विशेष कर किसान वर्तमान में गुलाब एवं गेंदे की खेती में अधिक रूची एवं दिलचस्पी दिखा रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी पहले की तुलना में अधिक बढ़ गई है। 

यहां के किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की मांग केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि राज्य के बाहर भी हो रही है। राज्य में बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जिनकी जिन्दगी फूलों की खेती से पूर्णतय बदल गई है।

बिहार सरकार फूल उत्पादन रकबे को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है

परंतु, वर्तमान में बिहार सरकार चाहती है, कि राज्य में फूलों की खेती करने वाले कृषकों की संख्या और तीव्र गति से बढ़े। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने फूलों के उत्पादन क्षेत्रफल को राज्य में बढ़ाने के लिए मोटा अनुदान देने की योजना बनाई है। 

दरअसल, बिहार सरकार का कहना है, कि फूल एक नगदी फसल है। यदि राज्य के किसान फूलों की खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे में वे खुशहाल जिन्दगी जी पाएंगे। 

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बिहार सरकार 70 % प्रतिशत अनुदान मुहैय्या करा रही है

यही वजह है, कि बिहार सरकार ने एकीकृत बागवानी विकास मिशन योजना के अंतर्गत फूलों की खेती करने वाले किसानों को अच्छा-खासा अनुदान देने का फैसला किया है। 

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती पर नीतीश सरकार वर्तमान में 70 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई इस अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो वे उद्यान विभाग के आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। 

किसान भाई अगर योजना के संबंध में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो horticulture.bihar.gov.in पर विजिट कर सकते हैं।

बिहार सरकार द्वारा प्रति हेक्टेयर इकाई लागत तय की गई है

विशेष बात यह है, कि गेंदे की खेती के लिए बिहार सरकार ने प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 40 हजार निर्धारित किया है। बतादें, कि इसके ऊपर 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलेगा। 

किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में गेंदे की खेती करते हैं, तो उनको राज्य सरकार निःशुल्क 28 हजार रुपये प्रदान करेगी। इसलिए किसान भाई योजना का फायदा उठाने के लिए अतिशीघ्र आवेदन करें।

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

राजस्थान राज्य के 10,000 किसानों को प्याज की भंडारण इकाई हेतु 50% प्रतिशत अनुदान मतलब 87,500 रुपये के अनुदान का प्रावधान किया गया है। बतादें, कि राज्य में 2,500 प्याज भंडारण इकाई शुरू करने की योजना है। फसलों का समुचित ढंग से भंडारण उतना ही जरूरी है। जितना सही तरीके से उत्पादन करना। क्योंकि बहुत बार फसल कटाई के उपरांत खेतों में पड़ी-पड़ी ही सड़ जाती है। इससे कृषकों को काफी हानि वहन करनी होती है। इस वजह से किसान भाइयों को फसलों की कटाई के उपरांत समुचित प्रबंधन हेतु शीघ्र भंडार गृहों में रवाना कर दिया जाए। हालांकि, यह भंडार घर गांव के आसपास ही निर्मित किए जाते हैं। जहां किसान भाइयों को अपनी फसल का संरक्षण और देखभाल हेतु कुछ भुगतान करना पड़ता है। परंतु, किसान चाहें तो स्वयं के गांव में खुद की भंडारण इकाई भी चालू कर सकते हैं। भंडारण इकाई हेतु सरकार 50% प्रतिशत अनुदान भी प्रदान कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि राजस्थान सरकार द्वारा प्याज भंडारण हेतु नई योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत प्रदेश के 10,000 किसानों को 2,550 भंडारण इकाई चालू करने हेतु 87.50 करोड़ रुपए की सब्सिड़ी दी जाएगी।

भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए इतना अनुदान मिलेगा

मीडिया खबरों के मुताबिक, किसानों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्याज के भंडारण हेतु सहायतानुदान मुहैय्या कराया जाएगा। इसमें प्याज की भंडारण संरचनाओं को बनाने के लिए प्रति यूनिट 1.75 लाख का खर्चा निर्धारित किया गया है। इसी खर्चे पर लाभार्थी किसानों को 50% फीसद अनुदान प्रदान किया जाएगा। देश का कोई भी किसान अधिकतम 87,500 रुपये का फायदा हांसिल कर सकता है। ज्यादा जानकारी हेतु निजी जनपद में कृषि विभाग के कार्यालय अथवा राज किसान पोर्टल पर भी विजिट कर सकते हैं। ये भी पढ़े: Onion Price: प्याज के सरकारी आंकड़ों से किसान और व्यापारी के छलके आंसू, फायदे में क्रेता

किस योजना के अंतर्गत मिलेगा लाभ

राजस्थान सरकार द्वारा प्रदेश के कृषि बजट 2023-24 के अंतर्गत प्याज की भंडारण इकाइयों पर किसानों को सब्सिड़ी देने की घोषणा की है। इस कार्य हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 1450 भंडारण इकाइयों हेतु 12.25 करोड रुपये मिलाके 34.12 करोड रुपये व्यय करने जा रही है। इसके अतिरिक्त 6100 भंडारण इकाईयों हेतु कृषक कल्याण कोष द्वारा 53.37 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान है। ये भी पढ़े: भंडारण की परेशानी से मिलेगा छुटकारा, प्री कूलिंग यूनिट के लिए 18 लाख रुपये देगी सरकार

प्याज की भंडारण इकाई बनाने की क्या जरूरत है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इन दिनों जलवायु परिवर्तन से फसलों में बेहद हानि देखने को मिली है। तीव्र बारिश और आंधी के चलते से खेत में खड़ी और कटी हुई फसलें तकरीबन नष्ट हो गई। अब ऐसी स्थिति में सर्वाधिक भंडारण इकाईयों की कमी महसूस होती है। यह भंडारण इकाईयां किसानों की उत्पादन को हानि होने से सुरक्षा करती है। बहुत बार भंडारण इकाइयों की सहायता से किसानों को उत्पादन के अच्छे भाव भी प्राप्त हो जाते हैं। यहां किसान उत्पादन के सस्ता होने पर भंडारण कर सकते हैं। साथ ही, जब बाजार में प्याज के भावों में वृद्धि हो जाए, तब भंडार गृहों से निकाल बेचकर अच्छी आय कर सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी जोन में रायबरेली, उन्नाव, चित्रकूट और कानपुर समेत विभिन्न जनपदों में 1 नवंबर से धान की खरीद चालू हो जाएगी। जो कि अगले वर्ष 28 फरवरी तक चलती रहेगी। साथ ही, धान की बिक्री करने के लिए संपूर्ण राज्य में अब तक 1 लाख 66 हजार 645 किसानों ने पंजीकरण करवाया है। उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद शुरू हो गई है। सरकार की ओर से धान क्रय केंद्र पर पुख्ता व्यवस्थाऐं की गई हैं। हालांकि, क्रेय केंद्र पर धान बिक्री के लिए बहुत कम तादात में किसान आ रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है, कि अगले एक सप्ताह के उपरांत धान की खरीद में तीव्रता आएगी। क्योंकि इस बार मानसून विलंब से आने के कारण किसानों ने धान की रोपाई विलंभ से आरंभ की थी। दरअसल, अब तक कई क्षेत्रों में धान की फसल पक कर पूरी तरह से तैयार नहीं हो पायी है। वहीं, पश्चमी उत्तर प्रदेश में किसान अगेती धान की रोपाई करने में कामयाब हो गए थे। अब ऐसी स्थिति में वे धान विक्रय के लिए क्रय केंद्रों पर पहुंच रहे हैं।

धान खरीद के लिए राज्यभर में 4000 क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं

साथ ही, क्रय केंद्रों पर किसान भाइयों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो पाए इसके लिए प्रशासन की ओर से पूरी तैयारी की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के मुताबिक, फसल सीजन 2023- 24 के लिए किसानों से 2 केटेगरी के धान खरीदे जाएंगे। इसमें ‘धान कॉमन’ और ‘ग्रेड ए’ धान शम्मिलित हैं। विशेष बात यह है, कि ‘धान कॉमन’ की एमएसपी 2183 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित की गई है। वहीं, ‘ग्रेड ए’ को 2203 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाएगा। विशेष बात यह है, कि धान खरीदने के लिए पूरे राज्य में 4000 क्रय केंद्र निर्मित किए गए हैं।

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किसानों को पंजीकरण करवाना ही पड़ेगा

यदि किसान भाई एमएसपी पर धान की बिक्री करना चाहते हैं, तो उनको पहले आधिकारिक वेबसाइट https://fcs.up.gov.in/ अथवा मोबाइल एप UP KISAN MITRA पर जाकर पंजीकरण करवाना होगा।

एमएसपी पर धान खरीदी की अंतिम तिथि

साथ ही, किसानों को जानकारी के लिए बतादें कि यूपी सरकार भिन्न-भिन्न जोन में दो फेज में धान की खरीद करेगी। प्रथम फेज के अंतर्गत पश्चिमी जोन में धान की खरीद की जाएगी। इसमें लखनऊ मंडल के बरेली, आगरा, मुरादाबाद, सहारनपुर अलीगढ़, मेरठ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर और झांसी मंडल के समस्त जनपद शम्मिलित हैं। इन जनपदों में 1 अक्टूबर से 31 जनवरी तक एमएसपी पर धान की खरीद की जाएगी।
सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर 

सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर 

भारत की राजधानी दिल्ली समेत विभिन्न राज्यों में टमाटर का भाव 200 रुपये से 250 रुपये किलो तक पहुँच गया है। साथ ही, चंडीगढ़ में लोगों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 300 रुपये से भी ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं। भारत में महंगाई के चलते आम से लेकर खास लोगों तक की रसोई का बजट बिगड़ गया है। बतादें कि करैला, धनिया, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, भिंडी और लौकी समेत समस्त प्रकार की हरी सब्जियां महंगी हो गई हैं। परंतु, सबसे अधिक टमाटर की कीमत में आग लगी हुई है। महंगाई का कहर इतना है, कि टमाटर का भाव 250 रुपये किलो से भी ऊपर चला गया है। दिल्ली- एनसीआर सहित विभिन्न राज्यों में टमाटर की कीमत 200 रुपये से 250 रुपये किलो पर पहुँच चुकी है। साथ ही, चंडीगढ़ में लोगों को एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 300 रुपये से भी ज्यादा रुपये का खर्चा करना पड़ रहा है। यहां पर टमाटर 350 रुपये किलो तक बिक रहा है।

अब से 70 रूपए किलो बिकेगा टमाटर

हालांकि, महंगाई पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार के समेत राज्य सरकारें भी पूरा प्रयास कर रही हैं। लेकिन कीमतों में गिरावट आने की कोई आशा नजर नहीं दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार की एजेंसी नाफेड ने खुद ही दिल्ली, नोएडा और लखनऊ समेत भारत की बहुत सारे शहरों में 80 रुपये किलो टमाटर बेचना चालू कर दिया है। परंतु, वर्तमान में लोग 80 रुपये किलो से भी कम भाव पर सरकारी स्टॉल से टमाटर खरीद सकेंगे। नाफेड ने घोषणा की है, कि वह 20 जुलाई से 70 रुपये किलो के रेट से टमाटर बेचेगा। जिससे कि महंगाई पर रोकथाम लगाई जा सके। ये भी पढ़े: केंद्र सरकार दिलाएगी महंगाई से निजात देश की राजधानी समेत इन शहरों में 90 रुपए किलो बिकेगा टमाटर

टमाटर के बढ़ते भाव पर लगेगी रोक

जानकारों का कहना है, कि केंद्र सरकार ने यह ऐलान टमाटर के भाव में आ रही कमी के ट्रेंड को देखते हुए किया है। गुरुवार से भारत के विभिन्न शहरों में नाफेड 70 रुपये किलो तक टमाटर बेचेगा। मुख्य बात यह है, कि सस्ती दर पर टमाटर बिक्री के लिए केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से टमाटर की खरीदारी करेगा। सरकार का मानना है कि ऐसा करने से उत्तर भारत के राज्यों में टमाटर की बढ़ती कीमतों पर ब्रेक लगेगा।

नाफेड अब 70 रुपये किलो बेचेगा टमाटर

बता दें कि केंद्र सरकार की एजेंसी नाफेड ने पहले दिल्ली-एनसीआर में विभिन्न स्थानों पर मोबाइल वैन के माध्यम से 90 रुपये किलो टमाटर बेचना चालू किया था। इसके पश्चात 16 जुलाई को नाफेड ने 10 रुपये किलो टमाटर सस्ता कर दिया और 80 रुपये किलो बेकना शुरू कर दिया। फिलहाल, नाफेड लखनऊ और पटना में विभिन्न स्थानों पर 80 रुपये किलो टमाटर बेक रहा है। नाफेड कल से 70 रुपये किलो टमाटर बेचेगा।
गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

गौशालाओं से होगी अच्छी कमाई, हरियाणा सरकार ने योजना बनाई

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्थित स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट(Swami Sadanand Parnami Charitable Trust) के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। साथ ही गौ नस्ल की बेहतरी के वैज्ञानिक तरीकों को प्रचलन में लाने का आग्रह किया।

उपमुख्यमंत्री ने कहा कि गौशालाओं में गौवंश के संरक्षण एवं उसके मूत्र व गोबर से उत्पाद निर्मित करने की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे गौशालाएं किसी पर निर्भर न रहें। इसी सन्दर्भ में उपमुख्यमंत्री द्वारा लाडवा की गौशाला का जिक्र करते हुए कहा है, कि वहां गोबर एवं मूत्र के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, जो गौशालाओं की आय का स्त्रोत बन रहे हैं। इसी के मध्य चौटाला ने कहा कि गाय के गोबर से पेंट भी बनाया जा सकता है, जिसका पिंजौरा की एक गौशाला उत्तम उदाहरण है।

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हरियाणा राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने बताया कि समस्त सरकारी संस्थानों में गाय के गोबर से निर्मित पेंट का इस्तेमाल हो, इसके लिए वह हर संभव कोशिश करेंगे। उनकी इस पहल से और भी गौशालाओं को प्रोत्साहन मिलेगा, साथ साथ इसी तरह से गौशालाओं में बायोगैस प्लांट स्थापित कर रसोई गैस बनाई जा सकती है जो आय का प्रमुख स्त्रोत भी बन सकता है, बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए हरियाणा सरकार सहयोग करेगी।

चौटाला ने की सोलर प्लांट लगवाने की घोषणा

हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने जनपद फतेहाबाद में स्तिथ स्वामी सदानंद प्रणामी गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के वार्षिक उत्सव में संबोधन के उपरांत "अपना घर" में रहने वाले दीनहीन बेसहारा लोगों से उनका दुःख दर्द एवं हाल चाल जाना। आश्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये दुष्यंत चौटाला ने रक्तदान शिविर में खुद रक्तदान किया एवं गौसेवा के साथ ही फतेहाबाद के स्वामी सदानंद गौ सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट आश्रम में स्वयं कोष से सोलर प्लांट लगवाने का एलान किया। गौवंश को अच्छे तरीके से रखने के लिए राज्य सरकार सम्पूर्ण प्रयास करेगी।

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दीनहीन लोगों की सहायता कर सराहनीय कार्य किया जा रहा है।

वार्षिक उत्सव के दौरान हरियाणा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा है, कि संस्थान स्थापित करना बेहद सरल है जबकि, संस्थान को बेहतर तरीके से निरंतर चलाना बेहद कठिन है। श्रीकृष्ण प्रणामी आश्रम गौशाला के साथ-साथ ''अपना घर'' के माध्यम से दीनहीन व असहाय प्राणियों की सेवा की जा रही है। उन्होंने कहा कि गौ संरक्षण हेतु गौशाला निर्माण व वैज्ञानिक तरीकों से गायों की नस्ल बेहतरी के साथ दुग्ध उत्पादन में वृद्धि की अत्यंत आवश्यकता है। दुष्यंत चौटाला ने बताया, कि लगभग 40 वर्ष पूर्व गीर नस्ल के गौवंश को भारत से ही ब्राजिल ले जाया गया था। गीर नस्ल जो अब ब्राजील में ७० से ७२ लीटर तक रोजाना दूध देती हैं, एवं उन लोगों के आय का मुख्य स्त्रोत भी बनी है।