Ad

होता

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

बाजरा के प्रमुख उत्पादक राजस्थान के लिए FICCI और कोर्टेवा एग्रीसाइंस ने मिलेट रोडमैप कार्यक्रम का आयोजन किया

हाल ही में राजस्थान के जयपुर में FICCI और कॉर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा राजस्थान सरकार के लिए मिलेट रोडमैप कार्यक्रम आयोजित किया। जिसका प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति का भारतभर में प्रदर्शन करना है। फिक्की द्वारा कोर्टेवा एग्रीसाइंस के साथ साझेदारी में 19 मई 2023, शुक्रवार के दिन जयपुर में मिलेट कॉन्क्लेव - 'लीवरेजिंग राजस्थान मिलेट हेरिटेज' का आयोजन हुआ। दरअसल, इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बाजरा की पैदावार में राजस्थान की शक्ति को प्रदर्शित करना है। विभिन्न हितधारकों के मध्य एक सार्थक संवाद को प्रोत्साहन देना है। जिससे कि राजस्थान को बाजरा हेतु एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करने के लिए एक भविष्य का रोडमैप तैयार किया जा सके। इसी संबंध में टास्क फोर्स के अध्यक्ष के तौर पर कॉर्टेवा एग्रीसाइंस बाजरा क्षेत्र की उन्नति व प्रगति में तेजी लाने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा बाजरा रोडमैप कवायद का नेतृत्व किया जाएगा।

इन संस्थानों एवं समूहों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया

कॉन्क्लेव में कृषि व्यवसाय आतिथ्य एवं पर्यटन, नीति निर्माताओं, प्रसिद्ध शोध संस्थानों के प्रगतिशील किसानों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पैनलिस्टों ने बाजरा मूल्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण समस्याओं का निराकरण करने एवं एक प्रभावशाली हिस्सेदारी को उत्प्रेरित करने के लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में उन फायदों और संभावनाओं की व्यापक समझ उत्पन्न करने पर भी चर्चा की गई। जो कि बाजरा टिकाऊ पर्यटन और स्थानीय समुदायों की आजीविका दोनों को प्रदान कर सकता है। ये भी देखें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

श्रेया गुहा ने मिलेट्स के सन्दर्भ में अपने विचार व्यक्त किए

श्रेया गुहा, प्रधान सचिव, राजस्थान सरकार का कहना है, कि राजस्थान को प्रत्येक क्षेत्र में बाजरे की अपनी विविध रेंज के साथ, एक पाक गंतव्य के तौर पर प्रचारित किया जाना चाहिए। पर्यटन उद्योग में बाजरा का फायदा उठाने का बेहतरीन अवसर है। इस दौरान आगे उन्होंने कहा, "स्टार्टअप और उद्यमियों के लिए बाजरा का उपयोग करके विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करके नवीन व्यंजनों और उत्पादों को विकसित करने की अपार संभावनाएं हैं। बाजरा दीर्घकाल से राजस्थान के पारंपरिक आहार का एक अभिन्न भाग रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं राजस्थान 'बाजरा' का प्रमुख उत्पादक राज्य है। बाजरा को पानी और जमीन सहित कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिससे वह भारत के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद उत्पाद बन जाता है। जितेंद्र जोशी, चेयरमैन, फिक्की टास्क फोर्स ऑन मिलेट्स एंड डायरेक्टर सीड्स, कोर्टेवा एग्रीसाइंस - साउथ एशिया द्वारा इस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा गया है, कि "राजस्थान, भारत के बाजरा उत्पादन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता के रूप में, अंतरराष्ट्रीय वर्ष में बाजरा की पहल की सफलता की चाबी रखता है। आज के मिलेट कॉन्क्लेव ने राजस्थान की बाजरा मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के रोडमैप पर बातचीत करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के तौर पर कार्य किया है। यह व्यापक दृष्टिकोण राज्य के बाजरा उद्योग हेतु न सिर्फ स्थानीय बल्कि भारतभर में बड़े अच्छे अवसर उत्पन्न करेगा। इसके लिए बाजरा सबसे अच्छा माना गया है।

वर्षा पर निर्भर इलाकों के लिए कैसी जलवायु होनी चाहिए

दरअसल, लचीली फसल, किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी और संपूर्ण भारत के लिए पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराते हुए टिकाऊ कृषि का समर्थन करना। इसके अतिरिक्त बाजरा कृषि व्यवसायों हेतु नवीन आर्थिक संभावनाओं के दरवाजे खोलता है। कोर्टेवा इस वजह हेतु गहराई से प्रतिबद्ध है और हमारे व्यापक शोध के जरिए से राजस्थान में जमीनी कोशिशों के साथ, हम किसानों के लिए मूल्य जोड़ना सुचारू रखते हैं। उनकी सफलता के लिए अपने समर्पण पर अड़िग रहेंगे। ये भी देखें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र बाजरा मूल्य श्रृंखला में कॉर्टेवा की कोशिशों में संकर बाजरा बीजों की पेशकश शम्मिलित है, जो उनके वर्तमानित तनाव प्रतिरोध को बढ़ाते हैं। साथ ही, 15-20% अधिक पैदावार प्रदान करते हैं। साथ ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करते हैं एवं अंततः किसान उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाते हैं। जयपुर में कोर्टेवा का इंडिया रिसर्च सेंटर बरसाती बाजरा, ग्रीष्म बाजरा और सरसों के प्रजनन कार्यक्रम आयोजित करता है। "प्रवक्ता" जैसे भागीदार कार्यक्रम के साथ कोर्टेवा का उद्देश्य किसानों को सभी फसल प्रबंधन रणनीतियों, नए संकरों में प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना है। उनको एक सुनहरे भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले बाकी किसान भाइयों को प्रशिक्षित करने में सहयोग करने हेतु राजदूत के रूप में शक्तिशाली बनाना है। इसके अतिरिक्त राज्य भर में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय बाजरा महोत्सव का उद्देश्य उत्पादकों और उपभोक्ताओं को बाजरा के पारिस्थितिक फायदे एवं पोषण मूल्य पर बल देना है। कंपनी बाजरा किसानों को प्रौद्योगिकी-संचालित निराकरणों के इस्तेमाल के विषय में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना बरकरार रखे हुए हैं, जो उन्हें पैदावार, उत्पादकता और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ाने में सशक्त बनाता है।

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका अदा करती है

कॉर्टेवा एग्रीसाइंस (NYSE: CTVA) एक सार्वजनिक तौर पर व्यवसाय करने वाली, वैश्विक प्योर-प्ले कृषि कंपनी है, जो विश्व की सर्वाधिक कृषि चुनौतियों के लिए फायदेमंद तौर पर समाधान प्रदान करने हेतु उद्योग-अग्रणी नवाचार, उच्च-स्पर्श ग्राहक जुड़ाव एवं परिचालन निष्पादन को जोड़ती है। Corteva अपने संतुलित और विश्व स्तर पर बीज, फसल संरक्षण, डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के विविध मिश्रण समेत अपनी अद्वितीय वितरण रणनीति के जरिए से लाभप्रद बाजार वरीयता पैदा करता है। कृषि जगत में कुछ सर्वाधिक मान्यता प्राप्त ब्रांडों एवं विकास को गति देने के लिए बेहतर ढ़ंग से स्थापित एक प्रौद्योगिकी पाइपलाइन सहित कंपनी पूरे खाद्य प्रणाली में हितधारकों के साथ कार्य करते हुए किसानों के लिए उत्पादकता को ज्यादा से ज्यादा करने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि, यह उत्पादन करने वालों के जीवन को बेहतर करने के अपने वादे को पूर्ण करती है। साथ ही, जो उपभोग करते हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्नति एवं विकास सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए आप www.corteva.com पर भी विजिट कर सकते हैं।
एथेनॉल को अतिरिक्‍त चीनी दिए जाने से गन्‍ना किसानों की आय बढ़ेगी

एथेनॉल को अतिरिक्‍त चीनी दिए जाने से गन्‍ना किसानों की आय बढ़ेगी

पिछले दो वर्षों में 70 एथेनॉल परियोजनाओं के लिए लगभग 3600 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी। क्षमता बढ़ाने के लिए 185 और चीनी मिलों/डिस्टि‍लरी द्वारा 12,500 करोड़ रुपये की ऋण राशि के उपयोग को सिद्धांत रूप में मंजूरी। सामान्‍य चीनी सीजन में 320 एलएमटी चीनी का उत्‍पादन होता है जबकि घरेलू खपत 260 एलएमटी है। इस तरह 60 एलएमटी चीनी बची रह जाती है और इसकी बिक्री नहीं हो पाती। इससे 19,000 करोड़ रुपये की राशि प्रत्‍येक वर्ष चीनी मिलों के लिए रूकी पड़ी रह जाती है। परिणाम यह होता है कि चीनी मिलों की तरलता स्थिति पर प्रभाव पड़ता है और किसानों के गन्‍ने की बकाया राशि एकत्रित होती जाती है। जरूरत से अधिक चीनी भंडार से निपटने के लिए सरकार द्वारा चीनी मिलों को निर्यात के लिए प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार वित्तीय सहायता दे रही है। लेकिन भारत विकासशील देश होने के नाते चीनी के निर्यात विपणन और परिवहन के लिए डब्‍ल्‍यूटीओ व्‍यवस्‍थाओं के अनुसार केवल 2023 तक ही वित्तीय सहायता दे सकता है। इसलिए चीनी की अधिकता से निपटने और चीनी उद्योगों की स्थिति में सुधार तथा गन्‍ना किसानों को समय पर बकाये का भुगतान करने के लिए सरकार जरूरत से अधिक गन्‍ना और चीनी एथेनॉल को देने के लिए प्रोत्‍साहित कर रही है ताकि पेट्रोल के साथ मिलाने के लिए तेल विपणन कंपनियों को सप्‍लाई की जा सके। इससे न केवल कच्‍चे तेल की आयात निर्भरता कम होती है बल्कि ईंधन के रूप में एथेनॉल को प्रोत्‍साहन मिलता है। यह स्‍वदेशी है और प्रदूषणकारी नहीं है। इससे गन्‍ना किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। गन्ने इससे पहले सरकार ने 2022 तक ईंधन ग्रेड के एथेनॉल को 10 प्रतिशत पेट्रोल में मिलाने का लक्ष्‍य तय किया था। 2030 तक 20 प्रतिशत ईंधन ग्रेड एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने का लक्ष्‍य तय किया गया था। लेकिन अब सरकार 20 प्रतिशत के मिश्रण लक्ष्‍य समय से पहले प्राप्‍त करने की योजना तैयार कर रही है। लेकिन देश में वर्तमान एथेनॉल डिस्‍टि‍ल क्षमता एथेनॉल उत्‍पादन के लिए पर्याप्‍त नहीं है। इससे मिश्रण लक्ष्‍य हासिल नहीं होता सरकार चीनी मिलों/डिस्‍टि‍लरियों को नई डिस्टि‍लरी स्‍थापित करने और वर्तमान डिस्‍टि‍लिंग क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्‍साहित कर रही है। सरकार चीनी मिलों और डिस्‍टि‍लरियों द्वारा बैंक से ऋण लेने के मामले में अधिकतम 6 प्रतिशत की ब्याज दर पर पांच वर्षों के लिए ऋण सहायता दे रही है, ताकि चीनी मिलें और डिस्टि‍लरी अपनी परियोजनाएं स्‍थापित कर सकें। पिछले दो वर्षों में 70 ऐसी एथेनॉल परियोजनाओं (शीरा आधारित डिस्टि‍लरी) के लिए 3600 करोड़ रुपये के ऋण को मंजूरी दी गई है। इसका उद्देश्‍य क्षमता बढ़ाकर 195 करोड़ लीटर करना है। इन 70 परियोजनाओं में से 31 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं और इससे अभी तक 102 करोड़ लीटर की क्षमता जुड़ गई है। सरकारी द्वारा किए जा रहे प्रयासों से शीरा आधारित डिस्टि‍लरियों की वर्तमान स्‍थापित क्षमता 426 करोड़ लीटर तक पहुंच गई है। शीरा आधारित डिस्टि‍लरियों के लिए एथेनॉल ब्‍याज सहायता योजना के अंतर्गत सरकार ने सितम्‍बर, 2020 में चीनी मिलों और डिस्टि‍लरियों से आवेदन आमंत्रित करने के लिए 30 दिन का समय दिया। डीएफपीडी द्वारा इन आवेदनों की जांच की गई और लगभग 185 आवेदकों (85 चीनी मिलें तथा 100 शीरा आधारित एकल डिस्‍टि‍लरियों) को प्रतिवर्ष 468 करोड़ लीटर की क्षमता जोड़ने के लिए सिद्धांत रूप में 12,500 करोड़ रुपये की ऋण राशि प्राप्‍त करने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दी जा रही है। आशा है कि यह परियोजनाएं 3-4 वर्षों में पूरी हो जाएंगी और इससे मिश्रण का वांछित लक्ष्‍य पूरा होगा। गन्ने गन्‍ना/चीनी को एथेनॉल के लिए दिए जाने से ही मिश्रण लक्ष्‍य हासिल नहीं किया जा सकता, इसलिए सरकार अनाज भंडारों से एथेनॉल उत्‍पादन के लिए डिस्टि‍लरियों को प्रोत्‍साहित कर रही है। इसके लिए वर्तमान डिस्टि‍लरी क्षमता पर्याप्‍त नहीं है। सरकार गन्‍ना, शीरा, अनाज, चुकंदर, मीठे ज्‍वार आदि से 720 करोड़ लीटर एथेनॉल बनाने के लिए एथेनॉल डिस्‍टि‍लेशन क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रही है। देश में जरूरत से अधिक चावल की उपलब्‍धता को देखते हुए सरकार अतिरिक्‍त चावल से एथेनॉल उत्‍पादन के लिए प्रयास कर रही है। इस एथेनॉल की सप्‍लाई एफसीआई द्वारा एथेनॉल सप्‍लाई वर्ष 2020-21 (दिसम्‍बर–नवम्‍बर) में तेल विपणन कंपनियों को पेट्रोल के साथ मिलाने के लिए की जाएगी। जिन राज्‍यों में मक्‍का उत्‍पादन पर्याप्‍त है उनमें राज्‍यों में मक्‍का से एथेनॉल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। चालू एथेनॉल सप्‍लाई वर्ष 2019-20 में केवल 168 करोड़ लीटर एथेनॉल तेल विपणन कंपनियों को पेट्रोल के साथ मिलाने के लिए सप्‍लाई की जा सकी। इस तरह 4.8 प्रतिशत मिश्रण स्‍तर हासिल किया गया। लेकिन आगामी एथेनॉल सप्‍लाई वर्ष 2020-21 में पेट्रोल के साथ मिलाने के लिए तेल विपणन कंपनियों को 325 करोड़ लीटर एथेनॉल सप्‍लाई करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इससे मिश्रण का 8.5 प्रतिशत लक्ष्‍य हासिल होगा। नवम्‍बर, 2022 में समाप्‍त होने वाले एथेनॉल सप्‍लाई वर्ष 2020-21 में 10 प्रतिशत मिश्रण लक्ष्‍य प्राप्‍त करना है। सरकार के प्रयासों को देखते हुए यह संभव है। वर्ष 2020-21 के लिए तेल विपणन कंपनियों द्वारा आमंत्रित पहली निविदा में 322 करोड़ लीटर (शीरा से 289 करोड़ लीटर और अनाज से 34 करोड़ लीटर) की बोली प्राप्‍त की गई है। उसके आगे की बोलियों में शीरा तथा अनाज आधारित डिस्टि‍लरियों से और अधिक मात्रा आएगी। इस तरह सरकार 325 करोड़ लीटर और 8.5 प्रतिशत मिश्रण लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में सफल होगी। अगले कुछ वर्षों में पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण से सरकार कच्‍चे तेल का आयात कम करने में सक्षम होगी। यह पेट्रोलियम क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर बनने की दिशा में कदम होगा और इससे किसानों की आय बढ़ेगी तथा डिस्टि‍लरियों में अतिरिक्‍त रोजगार सजृन होगा।
मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

दोस्तों आज हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें और मानसून से जुड़े सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी से जुड़ा होगा।

मानसून और किसानों से जुड़ी आवश्यक जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमारे इस आर्टिकल के अंत तक जरूर रहेंगे। 

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने के कृषि कार्य

दोस्तों अगर बात करें मानसून के महीने की, तो मानसून का महीना किसानों के लिए सोने पर सुहागा होता है। मानसून का आरंभ महासागर तथा अरब सागर की तरफ से भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर आने वाली पावस हवाओं को कहा जाता हैं। 

मानसून के महीने में तेज हवाएं और तेज बारिश खूब होती है। इन मानसून हवाओं के प्रभाव से भारत के आसपास के क्षेत्र यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि क्षेत्रों में भारी वर्षा होती हैं। 

इन मानसून हवाओं का सक्रिय दक्षिण एशिया क्षेत्र में जून के महीने से लेकर सितंबर तक चलता रहता है।

किसान भाइयों पर मानसून का प्रभाव:

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतएकउपजाऊदेश है। यहां हर प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं इसीलिए इसे सोना उगलने वाली भूमि भी कहां जाता है। 

भारत में अधिकांश लोग कृषि विकास और उत्पादन पर ही अपना जीवन निर्भर करते हैं। मूल रूप से कहे तो भारत एक कृषि अर्थव्यवस्था का स्वरूप है। भारत की लगभग 50% जनसंख्या अपनी आजीविका कमाई कृषि के माध्यम से ही करती हैं।

ये भी पढ़ें: खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

किसान भाइयों के लिए महत्वपूर्ण मानसून का महीना:

पूर्ण रूप से कृषि उद्योग पर निर्भर देश के लिए मानसून का महीना सब महीनों से आवश्यक महीना है। भारत की ज्यादातर कृषि भूमियों को सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह भूमि मानसून की वर्षा के कारण भली प्रकार से सिंचित हो जाती है। 

यह दक्षिण पश्चिम मानसून के संपर्क से सिंचित होती हैं। कुछ ऐसी फसलें हैं जिनको भारी वर्षा की जरूरत पड़ती है, यह फसलें कुछ इस प्रकार है जैसे: चावल, दालें आदि। इन फसलों को भरपूर वर्षा की आवश्यकता होती है, ताकि यह फसलें पूर्ण रूप से उत्पादन कर सके। 

यह भारतीयों का मुख्य आहार भी है जो भारतीय खाना बेहद पसंद करते हैं। किसानों के अनुसार रबड़ के पेड़ों को अच्छे तापमान और भारी वर्षा की बहुत जरूरत पड़ती है। 

यह रबड़ के पेड़ दक्षिणी क्षेत्रों में रोपड़ होते हैं। किसानों का यह कहना है, कि मानसून की पहली बारिश पर ही फसलों का रोपण पूर्ण रूप से निर्भर होता है। विपत्ति संकट से जूझने वाले किसानों के लिए मानसून का महीना सबसे महत्वपूर्ण होता है। 

मानसून का सीजन किसानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण होता है?

एक अच्छा मानसून का सीजन कृषि उद्योग को पुनर्जीवित करता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गांव तथा ग्रामीण में जल का कोई साधन नहीं होता हैं। मात्र नदियों और हैंडपंप के माध्यम से ही पानी का स्त्रोत बना रहता है।

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

फसलों में पानी की प्राथमिक स्त्रोत को पूरा करने के लिए महिलाएं, पुरुषों बच्चों आदि को दूर दूर से पानी लाना पड़ता है। मानसून का महीना किसानों की इस गंभीर समस्याओं को दूर कर देता है। 

भारी वर्षा के कारण भूमिगत जल आवश्यकता की आपूर्ति होती है। मानसून का महीना ग्रामीण विकास में काफी सहायक होते है और भूमि के जलाशयों की भरपूर भरपाई होती हैं। 

किसान भाई विभिन्न प्रकार के कर्ज़ में डूबे होते हैं और इन कर्ज़ों को अदा करने में मानसून का सीजन मदद करता है। इसीलिए मानसून के सीजन को सबसे महत्वपूर्ण सीजन कहा जाता है। 

सरकार द्वारा किसानों को काफी कम मुनाफा होता है इस प्रकार किसानों को और ज्यादा अच्छे उपज की जरूरत पड़ती है।

ये भी पढ़ें: राजस्थान में कम बारिश के चलते सरकार ने 15000 तालाब बनाने का लिया फैसला : किसान फार्म पौंड स्कीम (Farm pond) – Khet talai (खेत तलाई)

मानसून की शुरुआत के, जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें ?

मानसून के महीने में अच्छी फसलों की प्राप्ति के लिए किसान भाइयों को क्या करना चाहिए जानिए। जुलाई के महीने में किसान भाई को कोई कठिन काम करने की आवश्यकता नहीं है, कुछ आसान तरीके हैं जो कुछ इस प्रकार है:

  • मानसून का महीना मन मोह लेने वाला होता है काफी सुहाना और खूबसूरत मौसम होता है। इस मानसून के महीने में लोग घूमना फिरना काफी पसंद करते हैं और इस मौसम का भरपूर मजा लेते हैं।
  • हमारे भारत देश में सभी प्रकार की खेती पूर्ण रूप से मौसम पर ही निर्भर होती है।अच्छी बारिश के ज़रिए खेत, खलियान हरे भरे होकर लहराने लगते हैं। खेतों को हरा भरा देख किसानों में एक अलग तरह का उत्साह पैदा हो जाता है।

ये भी पढ़ें: मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें 

जिस प्रकार हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं उसी प्रकार मानसून का महीना कुछ फसलों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता है। और कुछ फसलों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हमारे किसान भाइयों को कुछ आसान तरीके अपनाने चाहिए:

  • मानसून के महीने में फसल को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को चाहिए कि वह खेतों में ज्यादा से ज्यादा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए जलभराव को रोकना शुरू करें। जलभराव को रोकना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, क्योंकि इससे हमारी फसलें खराब हो सकती हैं। जलभराव से बचने के लिए आपको खेत के बीच में गहरी नालियों की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि जब भी कभी बारिश का पानी खेतों में जाए तो वह आसानी से बाहर निकल जाए, बिना फसलों को नुकसान पहुंचाए।
  • कृषि विशेषज्ञ मानसून के महीनों में नर्सरी फसलों की सुरक्षा के लिए हर तरह की जानकारी अवगत कराते हैं। जिस जानकारियों को अपनाकर आप अपनी नर्सरी फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार जिन फल और सब्जियों की फसलों को ज्यादा पानी की आवश्यकता पड़े, उन फसलों को किसान भाई मानसून में लगाएं ताकि फसलों को पूर्ण रूप से जल प्राप्ति हो सके।
  • फसलों के बचाव के लिए जैविक कीटनाशक छिड़काव की बहुत आवश्यकता होती है। यह छिड़काव आपको समय-समय पर फसलों पर करते रहना है।
  • रासायनिक कीटनाशक तथा फफूंदी नाशक का उपयोग सिर्फ और सिर्फ कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही करें।
  • मानसून का महीना फसलों के लिए सफ़ेद मक्खियों का प्रकोप भी बन जाता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वह लगभग 5 किलो नीम की खली को अच्छी तरह से पानी में घोलकर मिला लें। फसलों की सुरक्षा के लिए फसलों पर छिड़काव करते रहे। क्योंकि यहां सफेद मक्खियां फसलों की उत्पादन क्षमता को रोकती हैं।

ये भी पढ़ें: धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

ये भी पढ़े: भारतीय स्टेट बैंक दुधारू पशु खरीदने के लिए किसानों को देगा लोन

साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

बाजारी गुलाल को टक्कर देंगे हर्बल गुलाल, घर बैठे आसानी से करें तैयार

बाजारी गुलाल को टक्कर देंगे हर्बल गुलाल, घर बैठे आसानी से करें तैयार

होली के त्यौहार की रौनक बाजारों में दिखने लगी हैं. हर तरफ जश्न का मौहाल और खुशियों के रंग में डूब जाने की हर किसी की तैयारी है. तो ऐसे में बाजारी गुलाल रंग में भंग न डालें, इसलिये हर्बल गुलाल की डिमांड बाजार में सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है. हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी होली के सीजन में हर्बल गुलाल तेजी से तैयार किये जा रहे  हैं. को पालक, लाल सब्जियों, हल्दी, फूलों और कई तरह की जड़ी बूटियों से तैयार किये जा रहे हैं. ये हर्बल गुलाल बाजारी गुलाल को मात देने के लिए काफी हैं. विहान यानि की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की महिलाएं होली के त्यौहार को देखते हुए हर्ब गुलाल बनाने में जुट चुकी हैं. हर्बल गुलाल लगाने से स्किन में किसी तरह का कोई भी इन्फेक्शन या साइड इफेक्ट होने का डर नहीं होता. क्योनी ये गुलाल पूरी तरह से केमिकल फ्री होते हैं.

प्रदेश में बढ़ रही हर्बल गुलाल की डिमांड

अच्छे गुणों की वजह से हर्बल गुलाल की डिमांड पूरे प्रदेश के साथ साथ स्थानीय बाजारों में बढ़ रही है. जिसे देखते हुए विहान की महिलाओं को घर बैठे बैठे ही रोजगार मिल रहा है और अच्छी कमाई हो रही है. इसके अलावा महासमुंद के फ्राम पंचायत डोगरीपाली की जय माता दी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी तैयारियों में जुट गयी हैं और हर्बल गुलाल बना रही गौब. समूह की सदस्यों की मानें तो पिछले साल की होली में लगभग 50 किलो तक हर्बल गुलाल के पैकेट तैयार किये थे. जिसकी डिमांड ज्यादा रही. महिलाओं ने बताया कि, हर्बल गुलाल के पैकेट 10 रुपये से लेकर 20 और 50 रुपये के हर्बल गुलाल के पैकेट बनाए गये थे. इस बार ज्यादा मात्रा में गर्ब्ल और गुलाल तैयार किया जा रहा है. बात इस हर्बल गुलाल की तैयारी की करें तो इसे पालक, लाल सब्जी, हल्दी, जड़ी-बूटी, फूल और पत्तियों को सुखाकर प्रोसेसिंग यूनिट में पीसकर तैयार किया जाता है. ये भी देखें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

हरी पत्तियां भी होती हैं प्रोसेस

हरी पत्तियों में गुलाब, चुकंदर, अमरूद, आम और स्याही फूल की पत्तियों को प्रोसेस किया जाता है. करीब 150 रुपये तक का खर्च एक किलो गुलाल बनाने में आता है. सिंदूर के अलावा पालक और चुकंदर का इस्तेमाल गुलाल बनाने में किया जाता है. बाजार में हर्बल गुलाल की कीमत बेहद कम होती है. गर्ब्ल गुलाल बनाने से न सिर्फ महिलाओं को घर बोथे रोजगार मिल रहा है, बल्कि अच्छी कमाई भी हो रही है. जिले की ग्राम पंचायत मामा भाचा महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं इस साल पालक, लाल सब्जी, फूलों और हल्दी से हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं. जिससे पीला, नारंगी, लाल और चंदन के कलर के गुलाल बनाए जा रहे हैं. जिसे स्व सहायता समूह की महिलाएं गौठान परिसर और दुकानों के जरिये बेच रही हैं. इतना ही नहीं समूह को हर्बल गुलाल के ऑर्डर भी मिलने लगे हैं. हर्बल गुलाल बनाने में हल्दी, इत्र, पाल्स का फूल समेत कई तरह की साग सब्जियों और खाने वाले चूने का इस्तेमाल किया जाता है.
भारत के 90 प्रतिशत मखाना उत्पादक राज्य में मखाने की खेती के लिए अनुदान दिया जा रहा है

भारत के 90 प्रतिशत मखाना उत्पादक राज्य में मखाने की खेती के लिए अनुदान दिया जा रहा है

बिहार राज्य मखाना उत्पादन में काफी बड़ा राज्य है। बिहार में भारत का 90 प्रतिशत मखाने का उत्पादन होता है। वर्तमान बिहार की राज्य सरकार मखाना उत्पादन में 72 हजार रुपये तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। भारत के कुछ राज्यों में मखाने का अत्यधिक उत्पादन किया जाता है। बिहार भी उन्हीं में से एक राज्य है। जानकारी के लिए बतादें कि बिहार का मखाना भारत के विभिन्न राज्यों में भेजा जाता है। इतना ही नहीं बिहार के मखाने को विदेशों में भी बड़े स्वाद और जायके के साथ खाया जाता है। क्योंकि, मखाने की खपत काफी ज्यादा होती है, इस वजह से बिहार के किसान बेहतर आमदनी भी कर लेते हैं। बिहार सरकार की तरफ से मखाने की खेती हेतु किसानों प्रोत्साहित कर रही है। अब राज्य सरकार की तरफ से किसानों के फायदे में बड़ी पहल की गई है।

बिहार के मखाना किसानों को कितना अनुदान दिया जाएगा

बिहार सरकार के कृषि विभाग द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, मखाने का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों के लिए सुनहरा अवसर है। मखाना विकास योजना के अंतर्गत मखाने के उच्च किस्म के बीज का प्रत्यक्षण करने हेतु अनुदान मुहैय्या कराया जाएगा। राज्य सरकार की तरफ से प्रति हेक्टेयर इकाई खर्च 97,000 रुपये निर्धारित किया गया है। इस पर लगभग 72750 रुपये अनुदान प्रदान किया जा रहा है। यह समकुल खर्च का 75 प्रतिशत है। यह भी पढ़ें: मखाने की खेती करने पर मिल रही 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी : नए बीजों से हो रहा दोगुना उत्पादन

अनुदान हेतु किसान कहाँ संपर्क करें

बिहार निवासी जो भी किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं अथवा योजना से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी लेना चाहते हैं। वह जनपद में उपस्थिति कृषि विभाग में जाकर योजना के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। कृषि अधिकारी से योजना से जुड़े समस्त नॉर्म्स की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

बिहार में भारत का कुल 90 प्रतिशत उत्पादन होता है

बिहार राज्य में मखाना उत्पादकता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं, कि एकमात्र बिहार राज्य में ही मखाने की 90 प्रतिशत पैदावार की जाती है। इसमें प्रोटीन काफी अधिक और प्रचूर मात्रा मेें पायी जाती है। बिहार सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि मखाना उत्पादन करने के मामले में किसानों को प्रोत्साहित करने हेतु अनुदान दिया जा रहा है। बिहार सरकार की तरफ से किसानों को अच्छी किस्मों के बीज मुहैय्या कराए जा रहे हैं। बतादें, कि बिहार के अंदर वर्ष में दो बार मखाने का उत्पादन किया जाता है। पहली फसल की बुवाई मार्च के माह में की जाती है। अगस्त-सितंबर तक पैदावार हो जाती है। द्वितीय फसल सितंबर-अक्टूबर के मध्य होती है, इसकी पैदावार फरवरी-मार्च के बीच प्राप्त होती है।
ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

ऐसे करें सहजन की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि देश के किसान सहजन की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसके पीछे मुख्य कारण सहजन की लोगों के बीच बढ़ती हुई लोकप्रियता है। 

जिससे बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा यह फसल कम लागत में किसानों को अच्छी खासी कमाई भी करा देती है। जिसके कारण किसान इसकी खेती करना पसंद कर रहे हैं। 

बाजार में सहजन के फूल और उसके फलों की भारी मांग रहती है। सहजन के बीजों का तेल निकालकर उपयोग में लाया जाता है। साथ ही इसके बीजों को सुखाकर पाउडर बनाया जाता है, जिसका विदेशों में निर्यात किया जाता है। 

इस हिसाब से देखा जाए तो सहजन की खेती हर प्रकार से किसानों के लिए लाभकारी सिद्ध हो रही है। सहजन के बारे में कहा जाता है कि यह पेड़ बंजर भूमि पर भी उगाया जा सकता है। 

साथ ही इस पेड़ की देखभाल करने की भी कोई खास जरूरत नहीं होती। सहजन के फूल, फल, पत्तियों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की सब्जियों के रूप में किया जाता है। 

औषधीय गुणों से युक्त सहजन की खेती भारत के अलावा  फिलीपिंस, श्रीलंका, मलेशिया, मैक्सिको जैसे देशों में भी की जाती है। अगर किसान भाई एक एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो साल भर में 6 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं।

सहजन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

सहजन का पौधा शुष्क और उष्ण कटिबंधीय जलवायु में उगता है। इसकी खेती के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। इस तरह की जलवायु में सहजन के पौधे तेजी से विकसित होते हैं। 

ज्यादा ठंड सहजन के लिए अच्छी नहीं होती है। अधिक ठंड में सहजन के पौधे पाले के शिकार हो सकते हैं। इसके साथ ही ज्यादा तापमान भी सहजन सहन नहीं कर सकता। 

40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर सहजन के फूल झड़ने लगते हैं। यह पौधा विभिन्न प्रकार की परिस्थियों में बेहद आसानी से उग जाता है। इसके ऊपर कम या अधिक वर्षा का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

ये भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

सहजन की खेती के लिए मिट्टी का चुनाव

सहजन की खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। कहा जाता है कि बेकार, बंजर और कम उर्वरा शक्ति वाली भूमि में भी सहजन का पौधा आसानी से उग जाता है। 

साथ ही यदि आपके पास बलुई दोमट मिट्टी वाले खेत उपलब्ध हैं तो यह सहजन के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। ध्यान रहे कि खेत की मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

सहजन के पौधों की रोपाई

सहजन के पौधों को कटिंग के द्वारा लगाया जाता है। इसके लिए 45 सेंटीमीटर लंबी कलम तैयार करना चाहिए। कलमों को खेत में सीधे लगाया जा सकता है। कलम को लगाने के पहले खेत में गड्ढे तैयार कर लें। 

उन गड्ढों में कम्पोस्ट या खाद डालें और मिट्टी से भर दें, इसके बाद गड्ढों में पानी डालें। जब पानी सूख जाए तो कलम को लगा दें और हल्की सिंचाई कर दें। ध्यान रखें कि एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 3 मीटर होनी चाहिए।

ये भी पढ़ें: चंदन की खेती : Sandalwood Farming 

इसके अलावा सहजन के बीजों के माध्यम से भी पौध तैयार की जा सकती है। इसे नर्सरी में तैयार किया जाना चाहिए। इसके बाद पौधों को भी गड्ढे में समान प्रक्रिया के साथ लगाना चाहिए। भारत के अधिकतर राज्यों में सहजन की रोपाई जुलाई से सितम्बर माह के बीच की जाती है।

सहजन की किस्में

बाजार में सहजन कि जो किस्में उपलब्ध हैं उनमें पी.के.एम.1, पी.के.एम.2, कोयंबटूर 1 तथा कोयंबटूर 2 प्रमुख हैं। इन किस्मों के पेड़ 4 से 6 मीटर तक ऊंचे होते हैं साथ ही 100 दिन के भीतर फूल लगने लगते हैं। इन पेड़ों से लगातार 4 से 5 वर्षों तक फसल प्राप्त की जा सकती है।

सहजन की पैदावार एवं मुनाफा

यह एक अधिक मुनाफा देने वाली फसल है, जिसमें किसान भाई कम लागत में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। प्रत्येक पेड़ से एक साल में कम से कम 50 किलोग्राम सहजन प्राप्त किया जा सकता है। 

फल में रेशा आने से पहले तक सहजन के फलों की बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है। अगर किसान भाई दो एकड़ खेत में सहजन की खेती करते हैं तो हर साल लगभग 10 लाख रुपये तक की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं।

रागी की फसल उत्पादन की सम्पूर्ण जानकारी (Ragi Ki Kheti and Finger Millet Farming in Hindi)

रागी की फसल उत्पादन की सम्पूर्ण जानकारी (Ragi Ki Kheti and Finger Millet Farming in Hindi)

फिंगर मिलेट (एल्यूसिन कोरकाना) आमतौर पर रागी के रूप में जाना जाता है, यह एक महत्वपूर्ण मोटा अनाज है और चारे के उद्देश्य से भी उगाई जाने वाली फसलें है।  भारत में विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ में इस फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। फ़सल कम इनपुट की आवश्यकता होती है और ये फसल कीट और रोगों से कम प्रभावित होता है। फसल 90-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस फसल को सूखा सहने के लिए के लिए आदर्श माना जाता है।  भारत में  कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड और महाराष्ट्र में मुख्य रूप से रागी की खेती होती है। रागी में लगभग 65-75% कार्बोहाइड्रेट, 8% प्रोटीन, 15-20% आहार फाइबर और 2.5-3.5% खनिज होते है। रागी के दाने उच्चतम कैल्शियम की मात्रा (344mg /100g अनाज), लोहा,जस्ता, आहार फाइबर और आवश्यक अमीनो एसिड के लिए जाने जाते है।

रागी की फसल किस मौसम में उगाई जाती है 

रागी की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है यहाँ एक गर्मी को सहने वाली फसल है। फसल की अच्छी वृद्धि 34 -  30 डिग्री के दिन के तापमान और  22 से 25 डिग्री सेल्सियस  रात के तापमान में होती है। यह उन क्षेत्रों में सबसे अच्छा पनपता है जहाँ वार्षिक वर्षा लगभग 1000 mm तक होती है।  यह भी पढ़ें:
मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

रागी की फसल किस प्रकार की मिट्टी में अच्छी उपज देती है 

रागी की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जाती है। चिकनी दोमट से लेकर बालुई ऊँची भूमि वाली मिटटी में भी ये फसल उगाई जा सकती है। यह फसल अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिटटी में अच्छी पनपती है। अच्छी उर्वरता वाली हल्की लाल दोमट और बलुई दोमट मिट्टी भी रागी की फसल के लिए उत्तम मानी जाती है, मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होनी चाहिए। क्षारीय मिट्टी में भी पौधा अच्छी तरह से पनपता है। 

रागी की किस्में 

कर्नाटक के लिए -  GPU 28, GPU-45, GPU-48,PR 202, MR 1, MR 6, Indaf 7, ML365, GPU 67, GPU 66, KMR 204, KMR 301, KMR 340, Tamil Nadu के लिए - GPU 28, CO 13, TNAU 946 ,(CO 14), CO 9, CO 12, CO 15,आंध्र प्रदेश के लिए - VR 847, PR 202, VR 708,VR 762, VR 900, VR 936, झारखण्ड के लिए -  A 404, BM 2, VL 379 ,उड़ीसा के लिए -  OEB 10, OUAT 2, BM 9-1, OEB 526, OEB-532, उत्तराखंड के लिए -  PRM-2, VL 315, VL 324, VL352, VL 149, VL 146, VL-348,VL-376, PES 400, VL 379,छत्तीसगढ़ के लिए -  छत्तीसगढ़ -2, BR-7, GPU 28, PR 202, VR 708 and VL149, VL 315, VL 324, VL 352, VL 376,महाराष्ट्र के लिए -   दापोली  1, Phule नाचनी, KOPN 235, KoPLM 83, Dapoli-2,गुजरात के लिए -   GN 4, GN 5, GNN 6, GNN 7

बीज बुवाई का तरीका और बीज की मात्रा 

रागी को छिड़काव और ड्रिल दोनों तरीकों से बोया जा सकता है। कई जगह इसकी खेती नर्सरी लगा कर भी की जाती है। छिड़काव विधि से बीज की डायरेक्ट खेत में हाथ से छिड़ दिया जाता है। उसके बाद बीज को मिट्टी में मिलाने के लिए कल्टीवेटर से दो बार हल्की जुताई कर पाटा लगा दिया जाता है। रागी की बिजाई मशीनों द्वारा कतारों में की जाती है। बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 25 -30 सेंटीमीटर होनी चाहिए और बीज से बीज की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए।  सीधी बुवाई करने के लिए 4-5 किलोग्राम बीज एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है। रोपण विधि में 2 किलोग्राम बीज एक एकड़ की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।  यह भी पढ़ें: सेहत के साथ किसानों की आय भी बढ़ा रही रागी की फसल 20-25 दिनों की नर्सरी रोपण के लिए उत्तम मानी जाती है। बीज को उपचारित करने के लिए थीरम, बाविस्टीन या फिर कैप्टन दवा उपयोग करें

फसल की सिंचाई

इसकी फसल (ragi crop) के लिए अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है।  अगर वर्षा सही समय पर नहीं हुई तो बुवाई के एक महीने के बाद फसल की सिचाई करें।  फसल पर फूल और दाने आने पर पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है।

रागी की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन 

अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए  5 -6 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद डालें। बुवाई से लगभग एक माह पूर्व आम तौर पर अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खाद डालें।    वर्षा आधारित स्थिति में 12-15  किलोग्राम नाइट्रोजन, 8 किलोग्राम फॉस्फोरस व 8  किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से फसल में डालें और सिंचित फसल के लिए   20 -25  किलोग्राम नाइट्रोजन ,12-15  किलोग्राम फॉस्फोरस व 12-15  किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से फसल में डालें। फॉस्फोरस, पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा और नाइट्रोजन की आधा बुवाई के समय और शेष आधी नाइट्रोजन पहली सिंचाई के समय फसल में डालें।

रागी की फसल में खरपतवार नियंत्रण

रागी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए उचित समय निराई गुड़ाई करते रहे। रागी की बुवाई के करीब 20-25 दिन बाद पहली निराई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए रागी की बुवाई से पहले आइसोप्रोट्यूरॉन या ऑक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिड़काव करें।  यह भी पढ़ें: राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने मोटे अनाजों के उत्पादों को किया प्रोत्साहित

फसल की कटाई और पैदावार 

रागी की कटाई उसकी किस्मों पर निर्भर करती है। सामान्यतः फसल तक़रीबन 115-120 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। रागी की बालियों को दराती से काट कर ढेर बनाकर धुप में 3-4 दिनों के लिए सुखाएं। अच्छी तरह से सूखने के बाद थ्रेशिंग करें। रागी की फसल से औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है।  .
इस किसान की सिंचाई करने की तकनीक के बारे में जानकर आपके होश उड़ जाऐंगे

इस किसान की सिंचाई करने की तकनीक के बारे में जानकर आपके होश उड़ जाऐंगे

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की रिपोर्ट के अनुसार, इस कमाल के मशीन को बनाने में हरजिंदर सिंह का हाथ है। उन्होंने इस मशीन पर सोलर पैनल लगा कर इसे पोर्टेबल बना दिया है। इस पूरी मशीन पर 24 सोलर पैनल लगे हुए हैं। भारत में किसान अब आधुनिक मशीनों की मदद से कृषि करने लगे हैं। इनमें बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं, जो खेती के लिए आधुनिक मशीने विदेश से मंगाते हैं। तो वहीं बहुत से किसान भाई ऐसे भी हैं जो जुगाड़ से ऐसी आधुनिक मशीने बना लेते हैं, जिनके बारे में बड़े बड़े इंजीनियर भी नहीं सोच पाते। तो चलिए आज आपको एक ऐसी ही मशीन के बारे में बताते हैं जिसकी मदद से आप जहां चाहें वहां अपने खेत की सिंचाई कर सकते हैं।

मोबाइल सोलर प्लांट

मोबाइल सोलर प्लांट एक ऐसी मशीन है, जिसकी मदद से किसान भाई अपने खेतों में सहजता से सिंचाई कर सकते हैं। जो किसान पानी की पहुंच से दूर हैं अथवा फिर जहां ट्यूबवेल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस मशीन को चलाने हेतु अलग से बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि, इस मशीन में सोलर पैनल लगे हुए होते हैं, जो सूरज की रौशनी से बिजली उत्पन्न करते हैं, जिससे ये मशीन चलती है।

इस अद्भुत कमाल को करने वाला शख्स कौन है

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार, इस कमाल की मशीन को बनाने में हरजिंदर सिंह का हाथ है। उन्होंने इस मशीन पर सोलर पैनल लगा कर इसे पोर्टेबल बना दिया है। इस पूरे मशीन पर 24 सोलर पैनल लगे हुए हैं। सबसे विशेष बात यह है, कि इस मशीन को ट्रैक्टर के सहारे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इस मशीन को सेट करने में केवल कुछ ही मिनट का वक्त लगता है। ये सिंचाई के लिए तैयार हो जाती है। इस मशीन के माध्यम से किसान दो हजार से पांच हजार लीटर पानी तक की सिंचाई बड़ी ही सुगमता से कर सकते हैं। ये भी पढ़े: भारत में लॉन्च हुए ये 7 दमदार नए ट्रैक्टर

इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ भारत नहीं जर्मनी तक होता है

हालाँकि, ऐसा नहीं है कि इस तरह की तकनीक का उपयोग सिर्फ भारत के किसान कर रहे हैं। जर्मनी में भी फलों की खेती करने वाले किसान इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। सोलर पैनल की सहायता से किसान ना केवल खेतों में सिंचाई कर रहे हैं, बल्कि पूरे खेत के लिए वो इन्हीं सोलर पैनलों से बिजली भी बना रहे हैं। धीरे-धीरे विश्वभर के किसान इस तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। साथ ही, नई-नई तकनीक की सहायता से अपनी खेती को बेहतर कर रहे हैं।
सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका 

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते हैं, इनसे बचाव के तरीकों के विषय में जानने के लिए आप इस लेख को अवश्य पढ़ें। सूरन की खेती भारत के काफी इलाकों में की जाती है। 

इसे खाने के साथ-साथ एक औषधीय फसल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत के कुछ हिस्सों में इसे ओल के नाम से भी जाना जाता है। इस फसल से अच्छी उपज पाने के लिए पौधों का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।

सामान्यतः ऐसी फसलों में विभिन्न प्रकार के रोगों और बीमारियों के लगने का संकट रहता है। यह रोग फसल की पैदावार को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।

सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनका संरक्षण

सूरन में फफूंद एवं बैक्टेरिया जनित रोग लगते है। इसके लिए फसल की समयानुसार देखभाल की जरूरत होती है। फसल की बेहतरीन उपज और बेहतर मुनाफा के लिए हमें इनको रोगों से बचाना बेहद जरूरी होता है। 

हम इस लेख के जरिए से आपको सूरन में लगने वाले रोग और उनके बचाव की प्रक्रिया के विषय में बताने जा रहे हैं।

झुलसा रोग

यह एक जीवाणु जनित रोग है। इसका आक्रमण पौधों पर सितम्बर माह के दौरान होता है। यह सूरन की पत्तियों को खा जाता है, जिससे पौधे की पत्तियों का रंग हल्का भूरा हो जाता है। 

कुछ दिन के पश्चात पत्तियां गिरने लगती हैं और पौधों की उन्नति रुक जाती है। इससे संरक्षण के लिए सूरन के पौधे पर इंडोफिल और बाविस्टीन के घोल को समुचित मात्रा मे पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

तना गलन

यह रोग जलभराव युक्त क्षेत्रों में देखा जाता है। इस तरह के रोग अत्यधिक बरसात वाले स्थानों पर होते हैं। इसके रोकथाम का सबसे बड़ा तरीका यह है, कि आप पेड़ के आस-पास जल भराव के हालात बिल्कुल ही उत्पन्न न होने दें। 

इकट्ठा होने वाला पानी पेड़ो की जड़ों में गलन पैदा करता है, जिस वजह से पौधे कमजोर होकर नीचे गिरने लगते हैं। पौधे के तने को सड़ने से बचाने के लिए इसकी जड़ों पर कैप्टन नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए। 

ये भी पढ़ें: औषधीय जिमीकंद की खेती कैसे करें (Elephant Yam in Hindi)

तम्बाकू सुंडी

सूरन में लगने वाला यह एक कीट जनित रोग है। इस तम्बाकू सुंडी कीट का लार्वा काफी ज्यादा आक्रमक होता है। इसके लार्वा का रंग हल्का सफेद होता है। यह पौधों की पत्तियों को आहिस्ते-आहिस्ते खाकर खत्म करने लगता है। 

इन कीटों के लगने का समय जून से जुलाई माह के मध्य होता है। सूरन के पौधों पर लगने वाले इस रोग से संरक्षण हेतु मेन्कोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड एवं थायोफनेट की समुचित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए।

किसान सूरन का कितना उत्पादन कर सकते हैं

बतादें, कि एक हेक्टेयर के खेत में 80 से 90 टन सूरन की उपज की जा सकती है। बाजार में इसकी कीमत 3000 रूपए प्रति क्विटल है। किसान भाई इसकी प्रति एकड़ में खेती कर 4 से 5 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं। 

सूरन की फसल बुआई के तकरीबन आठ से नौ माह में तैयार होती है। जब इन पौधों की पत्तियाँ सूख कर पीली पड़ने लगें तो इसकी खुदाई की जाती है। 

सूरन को जमीन से निकालने के उपरांत बेहतर ढ़ंग से मृदा तैयार कर दे और दो से चार दिन के लिए धूप में सूखा लें। धूप लगने से सूरन की जीवनावधि बढ़ जाती है। आप इसे किसी हवादार स्थान पर रख कर अगले 6 से 7 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

कंटोला एक औषधीय गुणों से भरपूर सब्जी है, इसके सेवन से कई सारे रोग दूर भाग जाते हैं

कंटोला एक औषधीय गुणों से भरपूर सब्जी है, इसके सेवन से कई सारे रोग दूर भाग जाते हैं

आज हम इस लेख में कंटोला नामक बागवानी फसल के विषय में बात करेंगे। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कंटोला के अंदर भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसमें मौजूद फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर को स्वस्थ व सेहतमंद रखते हैं। हमारे शरीर के बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए अच्छे पोषक तत्वों की काफी जरूरत होती है। इसके लिए हमें कई तरह की सब्जियों का सेवन करना चाहिए, जो हमारे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करें। साथ ही, हमें बाकी बीमारियों से भी दूर रखें। ऐसी स्थिति में आज हम आपको एक बेहद ही फायदेमंद सब्जी कंटोला के संबंध में बताने जा रहे हैं, जो आयुर्वेद में एक ताकतवर औषधि के तौर पर मशहूर है। इस सब्जी के अंदर मांस से 40 गुना अधिक प्रोटीन विघमान होता है। इस सब्जी में उपस्थित फाइटोकेमिकल्स हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को काफी बढ़ाता है। इसकी खेती विशेष रूप से भारत के पहाड़ी हिस्सों में की जाती है। भारत में इसे अन्य लोकल नाम कंकोड़ा, कटोला, परोपा एवं खेख्सा के नाम से जाना जाता है।

कंटोला की फसल हेतु खेत की तैयारी

कंटोला की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा काफी अच्छी होती है। आप खेत की जुताई के बाद इसपर कम से कम 2 से 3 बार पाटा जरुर चला दें. इसकी बेहतर पैदावार के लिए खेत में समय-समय पर गोबर की खाद मिला कर जैविक तरीके से खाद देते रहें। किसी भी फसल की बेहतरीन उपज के लिए खेत की तैयारी काफी अहम भूमिका अदा करती है।

कंटोला की बुआई कब की जाती है

कंटोला एक खरीफ के समय में उत्पादित की जाने वाली फसल है। गर्मी के समय में मैदानी इलाकों में जनवरी और फरवरी महीने के अंतर्गत उगाई जाती है। साथ ही, खरीफ की फसल की जुलाई-अगस्त में बुवाई की जाती है। इसके बीजों को, कंद अथवा कटिंग के जरिए से लगाया जाता है।

ये भी पढ़ें:
किसान जुलाई-अगस्त में इन फूलों की पैदावार कर अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं

कंटोला की कटाई कब की जाती है

कंटोला के फल का बड़े आकार में होने पर ही इसकी कटाई की जाती है। इन फलों की मुलायम अवस्था में दो से तीन दिनों की समयावधि पर नियमित तुड़ाई करना फायदेमंद होता है। कंटोला की खेती करना किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।

कंटोला में कौन कौन से औषधीय गुण विघमान हैं

कंटोला अपने औषधीय गुणों की वजह से जाना जाता है। यह हमारे शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाता है। इसमें उपस्थित रासायनिक यौगिक मानव शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। यह शरीर के ब्लड शुगर लेवल, त्वचा में दरार एवं आंखों के बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए सहायक साबित होता है। यह किडनी में होने वाली पथरी को भी दूर करता है। साथ ही, बवासीर के मरीजों के लिए भी लाभदायक होता है।
जानें बकरियों की टॉप पांच दुधारू प्रजातियों के बारे में

जानें बकरियों की टॉप पांच दुधारू प्रजातियों के बारे में

बकरियों की ये टॉप पांच दुधारू प्रजातियां जमुनापारी बकरी, बीटल, सिरोही, उस्मानाबादी एवं बरबरी बकरी नस्ल रोजाना कम खर्चा में चार लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं। ऐसी स्थिति में यदि पशुपालक इन टॉप पांच बकरियों की दुधारू प्रजाति का पालन करते हैं, तो आप कम वक्त में ही मोटी आय अर्जित कर सकते हैं। किसानों के लिए बकरी पालन का कारोबार काफी ज्यादा मुनाफे का सौदा साबित होता है। हमारे भारत के अधिकांश किसान खेती के साथ-साथ बकरी पालन भी करते हैं। क्योंकि इसमें गाय-भैंस के मुकाबले में किसानों को काफी ज्यादा मुनाफा हांसिल होता है। साथ ही, बकरी पालन में किसानों का ज्यादा खर्चा भी नहीं होता है। यदि आप भी बकरी पालन से शानदार मुनाफा हांसिल करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको बकरियों की दुधारू प्रजातियों का चयन करना चाहिए। इसी कड़ी में आज हम आपको बकरियों की टॉप पांच दुधारू नस्लें जमुनापारी बकरी, बीटल,सिरोही, उस्मानाबादी और बरबरी बकरी नस्ल की जानकारी देने वाले हैं।

बकरियों टॉप पांच दुधारू नस्लें

बरबरी बकरी

यह नस्ल अलीगढ़, आगरा तथा एटा जिलों में पाई जाती है। बतादें कि इस बकरी का आकार छोटा होता है और रंग की भिन्नता होती है। इसके कान का आकार नली की भांति मुड़ा हुआ होता है। इस नस्ल की बहुत सारी बकरियां सफेद होती हैं। इसके साथ ही उनके शरीर पर भूरे धब्बे होते हैं। बरबरी बकरी नस्ल की बकरी रोजाना डेढ़ लीटर तक दूध देती है।

ये भी पढ़ें:
भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

बीटल बकरी

बीटल नस्ल की बकरी पंजाब के पशुपालक के द्वारा सर्वाधिक पाली जाती है। इस नस्ल की बकरी का आकार बड़ा होता है और रंग काला होता है। शरीर पर सफेद या फिर भूरे धब्बे पाए जाते है, बाल भी छोटे तथा चमकीले होते हैं। इसके कान लम्बे और नीचे को लटके हुए तथा सर के अंदर मुड़े हुए होते हैं। वहीं, बीटल बकरी रोजाना ढाई लीटर तक दूध देती है।

कच्छी बकरी

कच्छी नस्ल की बकरी गुजरात के कच्छ जनपद में पाई जाती है। इसका आकार दिखने में काफी बड़ा होता है और इसके बाल लंबे और नाक थोड़ी उभरी हुई होती है। इसके सींग मोटे, नुकीले और बाहर की ओर हल्के उठे हुए होते हैं। इसके थन भी काफी विकसित होते हैं। कच्छी बकरी रोजाना चार लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है।

ये भी पढ़ें:
भेड़ों का पालन करने से पहले इनकी नस्लों के बारे में जरूर जानें

गद्दी बकरी

गद्दी नस्ल की बकरी मूलतः हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में सर्वाधिक देखने को मिलती है। यह अधिकांश पश्मीना इत्यादि के लिए पाली जाने वाली प्रजाति है। इस बकरी के कान 8.10 सेमी. लम्बे एवं सींग काफी नुकीले होते हैं। कुल्लू घाटी में इसको ट्रांसपोर्ट के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। गद्दी बकरी रोजाना 3.5 लीटर तक दूध देती है।

जमुनापारी बकरी

जमुनापारी नस्ल की बकरी अधिकांश इटावा, मथुरा इत्यादि जगहों पर देखने को पाई जाती है। पशुपालक इसका पालन कर दूध हांसिल करते हैं। साथ ही, यह वजन में भी काफी सही होती है। जमुनापारी नस्ल की बकरी सफेद रंग की होती है। वहीं, इसके शरीर पर हल्के भूरे रंग के धब्बे उपस्थित होते हैं, कान का आकार भी काफी लम्बा होता है। वहीं, सींग 8 से 9 से.मी. लम्बे और ऐंठन लिए होते हैं। इसके साथ ही यदि हम इस नस्ल की बकरी की दूध पैदावार की बात करें, तो यह 2 से 2.5 लीटर रोजाना देती है।