Published on: 25-Jun-2023
अश्वगंधा की खेती भारत के आंध्र प्रदेश, केरल, जम्मू- कश्मीर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात समेत अन्य बहुत से राज्यों में की जा रही है। कृषकों की इससे आमदनी पूर्व की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ गई है।
कृषि केवल एक जीवनयापन का साधन तक सीमित नहीं रहा है। वर्तमान में कृषि एक व्यवसाय बन चुका है। खेती में नवीन-नवीन तकनीक एवं पढ़े- लिखे युवाओं की दिलचस्पी बढ़ने से पैदावार में इजाफा हुआ ही है, साथ में लोगों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है। यही कारण है, कि अब इंजीनियर की नौकरी को छोड़ कर युवा वैज्ञानिक विधि के माध्यम से खेती कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि पढ़े-लिखे युवा परंपरागत और बागवानी फसलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियों का भी उत्पादन कर रहे हैं। बतादें, कि मेडिकल क्षेत्र में जड़ी बूटियों की काफी ज्यादा मांग है। हम आपको ऐसी ही एक जड़ी-बूटी अश्वगंधा के विषय में बताऐंगे जिसकी खेती कर किसान अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।
अश्वगंधा का उपयोग औषधियां तैयार करने में किया जाता है
भारत के विभिन्न राज्यों में किसान अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। किसान भाई अश्वगंधा की उपज से बेहतरीन आमदनी भी कर रहे हैं। निश्चित तौर पर इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा। सबसे बड़ी बात अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी होती है। जिसका इस्तेमाल औषधियां निर्मित करने में किया जाता है। जानकारी के लिए बतादें, कि अश्वगंधा का सेवन करने से शरीर के गंभीर रोग भी ठीक हो जाते हैं। साथ ही, इसको दूध में घोलकर सेवन करने से शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक हो जाती है।
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खारे पानी में भी अश्वगंधा का उत्पादन किया जा सकता है
अश्वगंधा की खेती किसान भाई खारे पानी में भी सहजता से कर सकते हैं। अश्वगंधा की यह अद्भुत विशेषता इसको और खास बनाती है। अश्वगंधा की खेती के लिए सितंबर से अक्टूबर माह का समय उपयुक्त माना जाता है।
अश्वगंधा की खेती करने वाली भूमि पर सर्व प्रथम अच्छी तरह जुताई करलें। उसके पश्चात खेत में जैविक खाद अथवा वर्मी कंपोस्ट डाल दें पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। विशेष बात यह है, कि अश्वगंधा की बुवाई करने से पूर्व खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में अश्वगंधा की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 7.5 से 8 के मध्य उपयुक्त माना गया है।
अश्वगंधा में कितने किलो बीज की आवश्यकता होती है
यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं, तो 10 से 12 किलो अश्वगंधा के बीज की आवश्यकता होगी। बुवाई करने के एक सप्ताह पश्चात बीज अंकुरित हो जाएंगे। अश्वगंधा पौधों की उच्चतम प्रकार से प्रगति के लिए 25 से 35 डिग्री के मध्य तापमान होना जरूरी है। साथ ही, 750 एमएम तक वर्षा आवश्यक होती है। माना गया है, कि इसकी खेती में धान एवं गेहूं की भांति परंपरागत फसलों की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा लाभ होता है। यही कारण है, कि बिहार के अंदर किसान अश्वगंधा का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहे हैं।
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किस वजह से इस जड़ी-बूटी का नाम अश्वगंधा पड़ा है
अश्वगंधा की जड़ों से घोड़े की भांति सुगंध आती है। यही वजह है, जो इसका नाम अश्वगंधा रखा गया है। संस्कृत में घोड़े को अश्व कहा जाता है। अश्वगंधा का पौधा झाड़ी की भांति दिखाई देता है। फिलहाल बाजार में 100 ग्राम अश्वगंधा की कीमत 80 रुपए से 200 रुपए के मध्य है। ऐसे में इसकी खेती करके किसान भाई लाखों रुपए की आमदनी कर सकते हैं।