जौ की खेती में फायदा ही फायदा

Published on: 21-Oct-2020

सरकार किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है लेकिन यह तभी संभव है जबकि किसान कम लागत वाली फसलों की उन्नत खेती करें। जौ ऐसी ही फसल है जिसे खाद-पानी सभी कम चाहिए इसके अलावा जमीन अगर कमजोर है तो उसमें भी जौ की खेती अच्छी हो जाती है। राजस्थान की कई प्रजातियां तो ऐसी है जिन्हें मात्र एक पानी में ही तैयार कर लिया जाता है। बुवाई का समय सभी क्षेत्रों में 20 अक्टूबर से लेकर 10 नवंबर तक जौ की बुवाई की जा सकती है। यह अवधि कम पानी वाले इलाकों के लिए उपयुक्त रहती है। सिंचित इलाकों में समय से बुवाई के लिए 25 नवंबर तक का समय उपयुक्त रहता है। देरी से बोई जाने वाली किस्मों को दिसंबर के दूसरे पखवाड़े तक लगाया जा सकता है। खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले हल से करें। गेहूं और जौ की खेती के लिए खेत की ज्यादा गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं होती। उन्नत किस्में बीएच -75 बौनी एवं 6 कतार, अधिक फुटावली किस्म है। सिंचित अवस्था में इसकी उपज 16 क्विंटल प्रति एकड़ तक आते हैं। यह पीला रतुआ एवं मोल्य रोग रोधी है। बीएच -393 बोनी एवं छह कतार वाली किस्म है। इसका उत्पादन 19 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। यह पीला एवं भूरा रतुआ अविरोधी है। बीएच -902 प्रजाति 20 कुंटल प्रति एकड़ तक ऊपर जीती है। रतुआ एवं झुलसा क्रोधी है। बीएच -885 यह किस्म माल्ट के लिए है। इसकी बालियां दो कतार वाली होती हैं। उपज 20 कुंटल तक मिलती है। बीएच -946 छह कतार वाली किस्म है। उपज 21 कुंतल मिलती है। उक्त किस्में हरियाणा राज्य के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं। समय से बिजाई के लिए इसके अलावा डीडब्ल्यूआरबी 52, डीएल 83, आरडी 2668, 2503, डीडब्ल्यूआर 28, आरडी 2552, बीएचयू 902, पीएल 426पेऋ एवं आरडी 2592 जैसी अनेक किस्में हैं। इसके अलावा सिंचित अवस्था में देरी से बुवाई के लिए ऑडी 2508, डीएल 88 किस्में उपयुक्त हैं। असिंचित अवस्था में समय से बिजाई के लिए आरडी 2508, आरडी 2624, आरडी 2660 पीएल 419 किस में उपयुक्त हैं। क्षारीय एवं लवणीय मृदा के लिए ऑडी 2552 डीएल 88 एनडीबी 1173 एवं मार्च के लिए बीसीयू 73 अल्फा 93 डीडब्लूआरबी 52 अच्छी किस्में हैं। इसके अलावा प्रीति के 409 किस्म 110 दिन में पक कर करीब 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन दे जाती है। यह किस सिंचित दशा के लिए प्रमुख बीमारियों के प्रति  अवरोधी है। जागृति के 287 करीब 45 कुंतल तक का उत्पादन देती है और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र के लिए है। नरेंद्र जौ 2 सिंचित समय से दुबई के लिए है और यदि 43 घंटे तक का उत्पादन देती है। समस्या ग्रस्त एवं उसर भूमि के लिए यह किस्म उपयुक्त हैं। नरेंद्र 5 छिलका रहित प्रजातियों में आता है और यह भी करीब 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देता है। मालती वाली प्रजातियों में प्रगति के 508 करीब 40 कुंटल ऋतंभरा के 551 , 45 कुंटल डीडब्ल्यू r28 करीब 45 कुंटल एवं रेखा किस्म करीब 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन देती है। बुवाई की विधि बुवाई मशीन से बीज को जमीन के अंदर 5 से 6 सेंटीमीटर गहरा बोना चाहिए। उर्वरक प्रबंधन असिंचित स्थिति में 40 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मोबाइल के समय कूडों में डालना चाहिए।सिंचित दशा में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें।कुशल एवं विलंब से बुवाई में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें। यहां नाइट्रोजन का प्रयोग पहले पानी के साथ ही करें। पहली सिंचाई 30 से 35 दिन के बाद और दूसरी दुग्ध अवस्था में करनी चाहिए। माल्टवाली जौ  के लिए अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

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