करेले की खेती करने वाले किसान भाई यह तो जानते ही हैं कि इसकी फसल का उत्पादन गर्मियों के मौसम में किया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए जागरूक होती जनसंख्या भारतीय बाजार में करेले की मांग को पूरे वर्ष भर बनाए रखती है।
इसीलिए अब विश्व भर के वैज्ञानिकों के साथ भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने भी पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से बिना मौसम के ही फल और सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कमर कस ली है।
करेला (Karela; Bitter Gourd or Bitter Melon) एक व्यावसायिक फसल है जो किसान को बेहतर आय देने के अलावा कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे भी उपलब्ध करवाती है। पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से अब सर्दियों के मौसम में भी करेले की वैज्ञानिक खेती की जा सकती है।
दो आधा और दो क्रॉस सेक्शन के साथ एक पूर्ण करेला (मोमोर्डिका चारेंटिया)। (Bitter_gourd (Momordica_charantia); Source-Wiki; Author-Salil Kumar Mukherjee)[/caption]
जैविक खाद का इस्तेमाल कर इन क्यारियों में डाली गई मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाया जाना चाहिए, इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट खाद को भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
रासायनिक उर्वरकों पर विश्वास रखने वाले किसान भाई फार्मेल्डिहाइड का छिड़काव कर क्यारियों को पुनः पॉलिथीन से ढककर कम से कम 2 सप्ताह तक छोड़ देना चाहिए।
इस प्रक्रिया की मदद से खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले कई सूक्ष्म कीटों को नष्ट किया जा सकता है, इस प्रकार तैयार मिट्टी भविष्य में करेले के बेहतर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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इसके अलावा किसी भी फसल की बेहतर वृद्धि के लिए आर्द्रता की आवश्यकता होती है, पॉली-हाउस के अंदर आद्रता को कम से कम 30% रखना चाहिए।
ऊपर बताई गई जानकारी से आर्द्रता या तापमान का स्तर कम होने पर फसल की वृद्धि दर पूरी तरीके से रुक सकती है और फलों का आकार अनियमित होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।
करेले के बीज
करेले की दो पौध के मध्य कम से कम 50 सेंटीमीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए और दो अलग-अलग कतारों के 60 से 70 सेंटीमीटर दूरी रखना अनिवार्य है।
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शुरुआती दिनों में एक या दो शाखाओं को काट कर हटा दिया जाना चाहिए, इसके अलावा शाखाओं को काटते समय पोषक तत्वों वाली शाखाओं को काटने से बचना चाहिए और केवल पुरानी शाखा को ही काटना चाहिए।
उसके बाद किसी पौध के मुख्य तने और अलग-अलग शाखाओं को रस्सी की सहायता से उसके निचले हिस्से में बांधकर छत की दिशा में ले जाकर बांध दिया जाता है।
पौधे के तने और ऊपर के हिस्से को छत से बांधने के लिए किसी कठोर तार का इस्तेमाल करना चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पौधे का वजन अधिक होने से रस्सी के टूटने का खतरा बना रहता है।
पौधे के चारों तरफ रस्सी बांधते समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि हाल ही में पल्वित हुए छोटे फूल और तने को नुकसान नहीं पहुंचाए, नहीं तो उत्पादन में भारी कमी देखने को मिल सकती है।
शुरुआत के दिनों में करेले के पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए सीमित मात्रा में ही पानी दिया जाना चाहिए, अधिक पानी देने पर उसमें कई प्रकार के रोग लगने की संभावना होती है। डंपिंग ऑफ (Damping off) रोग भी पानी के अधिक इस्तेमाल से ही होता है। [caption id="attachment_11411" align="alignnone" width="675"]
करेले के पौधे में पुष्प व फल (Bitter Gourd-habitus with flowers and fruits; Source Wiki; Author H Zell)[/caption]
यदि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पर्याप्त है तो यूरिया और डीएपी खाद का इस्तेमाल ना करें, किसी भी मिट्टी में पहले से उपलब्ध पोषक तत्व को बाहर से उर्वरक के रूप में डालने से उगने वाली फसल की उत्पादकता तो कम होती ही है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी काफी नुकसान होता है।
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फलों को तोड़ने के लिए चाकू या कैंची का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी फलों को खींचकर नहीं तोड़ना चाहिए, इससे पौधे का भी नुकसान हो सकता है।
करेले के फल जब कोमल और हरे रंग के होते हैं तभी तोड़ना अच्छा होता है, नहीं तो इन्हें मंडी में पहुंचाने के दौरान परिवहन में ही यह पककर लाल हो जाते हैं, जो कि पूरी तरह से स्वादहीन हो जाते हैं।
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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई इस पॉलीहाउस तकनीक का इस्तेमाल कर किसान भाई प्रति हज़ार वर्गमीटर पॉलीहाउस में 100 क्विंटल तक करेले की सब्जी का उत्पादन कर सकते हैं आशा करते हैं merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को इस तकनीक के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और आप भी भविष्य में ऊपर दी गई जानकारी का सही फायदा उठाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।