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गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

Published on: 22-Apr-2023

सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने पर फोकस कर रही है। जिसके तहत सब्जियों की फसल लगाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि किसनों के हाथ में नियमित रूप से पैसे आते रहें। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब तो सरकार सब्जियों की खेती ले लिए किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है। गेहूं, चना, सरसों आदि की तुलना में सब्जियों की फसल जल्दी तैयार हो जाती है। ऐसे में उसी जमीन पर अगली फसल लगाने के लिए किसानों को समय मिल जाता है, जिससे किसान अच्छे से खेत तैयार करके किसी अन्य फसल को अपने खेत में लगा सकते हैं। वैसे तो बाजार में कई सब्जियां हैं जिनकी गर्मियों में भारी मांग रहती है। लेकिन करेले का एक अलग ही स्थान है। जिसकी खेती करके किसान भाई कम समय में अच्छा खासा लाभ काम सकते हैं। यह भी पढ़ें: करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा – करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी करेला अपने औषधीय गुणों के कारण सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली सब्जी है। यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान है। इसलिए डॉक्टर डायबिटीज के मरीजों को करेले का ज्यूस पीने की सलाह देते हैं। साथ ही यह शुगर कंट्रोल करने में भी सहायक होता है इसलिए डॉक्टर करेले की सब्जी खाने के लिए कहते हैं। करेला कई विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता रहती है। इसके अलावा करेले में कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों के कारण यह त्वचा रोग में बेहद लाभकारी होता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है, इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उच्च होती है। मोटापा कम करने के लिए और पीलिया ठीक करने के लिए भी करेले का सेवन किया जाता है।

ऐसे करें मिट्टी का चुनाव

करेले की खेती बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में करना चाहिए। इसके साथ ही नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसके लिए उत्तम मानी गई है। करेले के खेत में उचित जल निकास की जरूरत होती है, नहीं तो पेड़ सड़ जाएंगे। करेले को गर्मियों से साथ-साथ वर्षा ऋतु में भी उगाया जा सकता है। अगर 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होता है तो यह फसल के विकास के लिए सर्वोत्तम है। बीजों के जमाव के लिए खेत का तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में करेले की फसल की बुवाई करने से पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। बुवाई से 20 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्‍पोस्‍ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं। इसके बाद कतारबद्ध रूप से बेड बना लें। बुवाई के पहले मिट्टी के बेड के बगल से बनी नालियों में 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलो म्‍यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बुवाई के बाद यूरिया का भी प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए शाम का समय चुनें, ताकि उतने समय खेत में नमी बरकार रहे। बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद 30 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। इसके बाद करेले के पुष्‍पन व फलन के समय भी यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधे को पोषण मिलता है और उत्पादन अधिक होता है।

ये हैं करेले की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करेले की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। जिनको आप बुवाई के के लिए चुन सकते हैं। इनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि किस्में शामिल हैं। जिन्हें किसान भाई अपने खेतों  में लगाना पसंद करते हैं।

ऐसे करें करेले की बुवाई

अब बाजार में ऐसी हाइब्रिड किस्में आ गई हैं जिससे करेले की खेती अब हर मौसम में की जाती है। आमतौर पर करेले को दो तरीकों से लगाया जाता है। पहला, खेत में सीधे बुवाई के माध्यम से और दूसरा, इसकी नर्सरी तैयार करके। नर्सरी के पौधे जब बोने लायक हो जाते हैं तब इनको खेत में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बुवाई करने के लिए खेत में 2 फीट की दूरी पर बेड बना लें। इसके बाद बेड पर 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई करें। बीजों को हमेशा 2 से 2.5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। अगर करेले की पौध की रोपाई कर रहे हैं तो नाली से नाली की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर और मिट्टी के बेड की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer) एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करेले के 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। अगर पौध के माध्यम से करेले की बुवाई करना है तो बीज की मात्रा में कमी भी की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्‍टीन के घोल में उपचारित करना चाहिए। इससे पेड़ों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है।

करेले की फसल की सुरक्षा और निराई गुड़ाई

करेला बेल के रूप में उगता है। ऐसे में करेले की बेल को सहारा देना जरूरी हो जाता है नहीं तो बेल खराब हो जाएगी। जब करेले का पौधा थोड़ी बड़ा हो जाए तो उसे लकड़ी या बांस का सहारा देना चाहिए। ताकि यह एक निश्चित दिशा में वृद्धि कर सके। इसके अलावा पौधे को रस्सी के सहारे से बांधा भी जा सकता है। करेले की फसल के शुरूआती समय में निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। ऐसे में फसल की निराई गुड़ाई करें ताकि खेत में खरपतवार न पनपने पाएं। अगर शुरूआती दौर में खरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं तो करेले की अच्छी फसल प्राप्त होती है।

करेले की फसल में सिंचाई

वैसे तो करेले की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। फिर भी खेत में हल्की सिंचाई करते रहें, ताकि खेत में नमी बरकरार रहे और पौधे सूखें नहीं। फूल व फल बनने की अवस्था में फसल की सिंचाई जरूर करें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न होने पाए। खेत में पानी जमा होने की स्थिति में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करें ताकि फसल खराब न होने पाए।

करेले की तुड़ाई

आमतौर पर करेले की फसल 60 यह 70 दिनों में तैयार हो जाती है। करेले के कठोर होने के पहले ही इसकी तुड़ाई कर लेना चाहिए। करेले को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें की करेले के डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से ज्यादा न हो। इससे करेले ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहते हैं। करेले की फसल कि तुड़ाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए।

करेले की फसल का उत्पादन

एक एकड़ की फसल में किसान भाई आराम से 50 से 60 क्विंटल तक करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जबकि प्रति एकड़ इसकी खेती में मात्र 30 हजार रुपये की लागत आती है। इस हिसाब से बड़ी मात्रा में करेले की खेती करके किसान भाई ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।

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