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कम बारिश में भी उगाएं कैर: जानें सूखा-सहनशील कैर की खेती के राज

Published on: 14-Nov-2024
Updated on: 14-Nov-2024
Kair plant with thorny branches and small red berries under a clear blue sky
फसल नकदी फसल

कैर (कैपेरिस डेसीडुआ (फोर्स्क) एक बहुउद्देशीय, बारहमासी, लकड़ीदार झाड़ी या छोटा पेड़ हैं, ये गर्म और शुष्क क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगता हुआ पाया जाता है।

राजस्थान में इसे आमतौर पर कैर या केर कहा जाता है। जबकि हरियाणा में इसे टींट या डेला के नाम से जाना जाता है। जबकि अंग्रेजी में इसे केपर बेरी के नाम से जाना जाता है।

यह प्रजाति शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके कच्चे फल कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और खनिजों से भरपूर होते हैं।

कैर की खेती के लिए जलवायु

कैर अत्यधिक सूखा सहने वाला पौधा है जो गर्मी की कठोर जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलित है। इसकी गहरी जड़ प्रणाली, कम पत्ते और सख्त शंक्वाकार कांटे इसे सूखा सहने के अनुकूलित बनाते हैं।

यह 150 मि.मी. से भी कम वर्षा क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है। गर्मी के महीने में जब थार रेगिस्तान में तापमान 50°C तक बढ़ जाता है तब भी ये पौधा जीवित रहता हैं।

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कैर की खेती के लिए मिट्टी

कैर की झाड़ी हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से उग सकती हैं। कम उर्वरकता वाली या कम उपजाऊ मिट्टी में भी इसको आसानी से उगा कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

इसके अलावा कई प्रकार की 6.5-8.5 पीएच वाली क्षारीय रेतीली और पथरीली मिट्टी में अच्छे से उगाया जा सकता है।

कैर की खेती में पौधे की तैयारी और बुवाई

प्राकृतिक पुनर्जनन 4-5 मीटर तक फेंके गए बीजों और जड़ के माध्यम से होता है। इसका बीज मई-जून के महीने में पक्षियों द्वारा खाया जाता है और इस प्रक्रिया में बीज बिखर जाते हैं।

इस प्रकार बिखरे हुए बीज अंकुरित होते हैं। फलों के पकने की अवधि के तुरंत बाद वर्षा ऋतु आती है जिसके परिणामस्वरूप ये बीज अंकुरित होते हैं। अंकुरों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करके उगाया जा सकता है।

गर्मियों के दौरान 2 × 2 × 2 फीट आकार के गड्ढे 4-5 मीटर की दूरी पर खोदकर फिर से भरने चाहिए।

लगभग 15 दिनों तक गड्ढों को धूप में रखने के बाद ऊपरी मिट्टी में लगभग 10 किलोग्राम गोबर की खाद मिला दें।

जुलाई-अगस्त से पहले र्पौधों की सिंचाई और देखभाल की आवश्यकता होती है। तीसरे वर्ष से झाड़ियाँ वर्षा आधारित परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती है।

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कैर की खेती में फल आने का समय

बीज के माध्यम से उगाए गए पौधे 6 से 7 वर्ष की उम्र में वानस्पतिक अवस्था में फल देने लगते हैं। प्रचारित पौधे चार साल बाद फल देना शुरू कर सकते हैं।

फूल 6-12 महीने पर आते हैं। मानसून के मौसम के अंत में यानी, शरद ऋतु (अक्टूबर) की शुरुआत के दौरान और जून के अंत तक यानी अगले मानसून सीज़न की शुरुआत तक जारी रहता है।

फूलों का चरम मौसम फरवरी-मार्च (वसंत का मौसम) है और फलने का मौसम मार्च-अप्रैल में (वसंत के अंत से गर्मियों की शुरुआत तक) होता हैं।

कैर की खेती में फलो की तुड़ाई

अपरिपक्व हरे फल मार्च-अप्रैल के दौरान कटाई के लिए उपलब्ध होते हैं, जबकि फल मई-जून के दौरान पकने की प्रक्रिया होती है जिसकी कटाई बीज निकालने के लिए की जाती है, फलों की तुड़ाई हाथ से की जाती है।

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फलों को अचार बनाने, सब्जी बनाने या सुखाने के लिए हरे नरम मटर के दाने के आकार में तोड़ना चाहिए।

अवस्था का अंदाजा फलों के आकार और फलों को दबाकर भी लगाया जा सकता है। सीज़न के अंत में यानी अप्रैल के मध्य के बाद काटे जाने पर छोटे आकार के फल भी सख्त हो जाते हैं।