राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी कि एनजीटी की शख्ती का असर धान उत्पादन करने वाले राज्यों में होने लगा है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही के आदेश किए जा चुके हैं। आला अफसरों ने अधीनस्थों को यहां तक निर्देश दिए हैं कि यदि कहीं से पराली जलने की सूचना मिलती है तो उस गांव के प्रधान को भी जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं पराली प्रबंधन को लेकर गैर जिम्मेदार प्रधानों की ग्राम पंचायत के विकास कार्यों की निधि को भी रोकने के मौखिक आदेश कई जगहों पर दिए जा चुके हैं।
धान की पराली किसान और आमजन दोनों के जी का जंजाल बन चुकी है। धान की खेत की नमी में गेहूं की बिजाई करने की जल्दबाजी और करोड़ों करोड़ों रुपए के डीजल की बचत करना किसान की मजबूरी है। इसीलिए वह धान की पराली को आसान तरीके से आग लगा देते हैं लेकिन धान की पराली से उठने वाला धुआं दिल्ली जैसे महानगरों में दम घौंटू माहौल का कारण बन रहा है। कथित तौर पर पर्यावरण के हितेषी का दम भरने वाले लोग और मीडिया किसानों की इस हरकत को लेकर महीनों कोहराम करते नजर आते हैं लेकिन किसी के पास इसके बेहतर समाधान का कोई इंतजाम नजर नहीं आता। सरकार की पराली प्रबंधन को लेकर मशीनीकरण अनुदान योजना की बात हो या फिर ट्रेनिंग प्रोग्राम की बात हो करोड़ों करोड़ों रुपए फ्लेक्स, पंपलेट, भोजन के पैकेट और चाय नाश्ते पर बर्बाद हो जाते हैं लेकिन परिणाम बहुत ज्यादा आशा जनक नजर नहीं आता। गुजरे सालों की बात करें तो एक-एक जनपद में पिछले सालों में 25 से 50 लाख रुपए तक सरकार द्वारा खर्च किए जा चुके हैं। इसके बाद भी पराली को 1 हफ्ते के अंदर खेत में गलाने सडाने की कोई भी तकनीक वैज्ञानिक ईजाद नहीं कर पाए हैं।
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