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पराली जली तो प्रधान जाएंगे जेल

Published on: 04-Sep-2020

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी कि एनजीटी की शख्ती का असर धान उत्पादन करने वाले राज्यों में होने लगा है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही के आदेश किए जा चुके हैं। आला अफसरों ने अधीनस्थों को यहां तक निर्देश दिए हैं कि यदि कहीं से पराली जलने की सूचना मिलती है तो उस गांव के प्रधान को भी जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं पराली प्रबंधन को लेकर गैर जिम्मेदार प्रधानों की ग्राम पंचायत के विकास कार्यों की निधि को भी रोकने के मौखिक आदेश कई जगहों पर दिए जा चुके हैं। parali prabandhan धान की पराली किसान और आमजन दोनों के जी का जंजाल बन चुकी है। धान की खेत की नमी में गेहूं की बिजाई करने की जल्दबाजी और करोड़ों करोड़ों रुपए के डीजल की बचत करना किसान की मजबूरी है। इसीलिए वह धान की पराली को आसान तरीके से आग लगा देते हैं लेकिन धान की पराली से उठने वाला धुआं दिल्ली जैसे महानगरों में दम घौंटू माहौल का कारण बन रहा है। कथित तौर पर पर्यावरण के हितेषी का दम भरने वाले लोग और मीडिया किसानों की इस हरकत को लेकर महीनों कोहराम करते नजर आते हैं लेकिन किसी के पास इसके बेहतर समाधान का कोई इंतजाम नजर नहीं आता। सरकार की पराली प्रबंधन को लेकर मशीनीकरण अनुदान योजना की बात हो या फिर ट्रेनिंग प्रोग्राम की बात हो करोड़ों करोड़ों रुपए फ्लेक्स, पंपलेट, भोजन के पैकेट और चाय नाश्ते पर बर्बाद हो जाते हैं लेकिन परिणाम बहुत ज्यादा आशा जनक नजर नहीं आता। गुजरे सालों की बात करें तो एक-एक जनपद में पिछले सालों में 25 से 50 लाख रुपए तक सरकार द्वारा खर्च किए जा चुके हैं। इसके बाद भी पराली को 1 हफ्ते के अंदर खेत में गलाने सडाने की कोई भी तकनीक वैज्ञानिक ईजाद नहीं कर पाए हैं।

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जुर्माने के नहीं कोई मायने

parali ki samasya धान की पराली को जलने से रोकने के लिए जुर्माने की जो व्यवस्था की गई है उसके कोई मायने नजर नहीं आते। पानी की कमी वाले इलाकों में ₹2000 एकड़ का जुर्माना देने में भी किसान को लाभ नजर आता है चूंकि यदि वह पराली को निस्तारित करने में 15 दिन का समय लगाएं और उसके बाद गेहूं की बिजाई के लिए खेत में पानी लगाएं तो खर्चा 2 गुना तक हो सकता है। इसके अलावा बरसात के दिनों की नमी और बोरिंग के पानी की नमी का अंतर और असर गेहूं की फसल पर बिल्कुल अलग नजर आता है। सरकारी यदि जुर्माने की राशि बढ़ाती हैं तो किसान आक्रोशित हो सकते हैं और कम जुर्माना पराली जलाने की उनकी प्रवृत्ति को बहुत ज्यादा नियंत्रित करने लायक नहीं है।

कौवे मार कर लटका दो

चौकाने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश के जनपद में तो आला अफसर ने अधीनस्थों को पेड़ पर मारकर कौवे लटकाने की नसीहत तक दे डाली। उनका इस नसीहत के पीछे मर्म यही था कि जिस प्रकार किसी स्थान से कौवों को भगाने के लिए एक कौवा मारकर पेड़ पर लटका दिया जाता है, जिसे देख कर बाकी कौवे खतरे का अंदेशा होने पर पेड़ पर नहीं बैठते। उसी तर्ज पर पराली प्रबंधन में भी काम किया जाए। उनकी इस पहेली के पीछे की मंशा जिला पंचायत राज अधिकारी जैसे अफसरों को यह संदेश देने की थी किस गांव में पराली जले वहां के प्रधानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि चंद प्रधानों के खिलाफ की गई कड़ी कार्यवाही का असर बाकी ग्राम प्रधानों पर भी हो।

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