अप्रैल माह में ज्यादातर कार्य फसल की कटाई से सम्बंधित होते है। इस माह में किसान रबी फसलों की कटाई कर दूसरी फसलों की बुवाई करते है। इस माह में कृषि से सम्बंधित किये जाने वाले आवश्यक कार्य कुछ इस प्रकार है।
गेहूँ, मटर, चना, जौ और मसूर आदि की फसल की कटाई का कार्य इस माह में ही किया जाता है। इन फसलों की कटाई सही समय पर होना बेहद जरूरी है। यदि फसल की कटाई सही समय पर नहीं होती है, तो फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ेगा। देर से कटाई करने पर फलियाँ और बालियाँ टूटकर गिरने लगती है। इसके अलावा चिड़ियों और चूहों के द्वारा भी इस फसल को नुक्सान पहुँचाया जा सकता है।
फसल की कटाई का कार्य किसान स्वयं भी कर सकता है, या फिर मशीनों द्वारा भी इसकी कटाई करवा सकते है। कुछ किसान हँसिया द्वारा फसल की कटाई करवाते है, क्योंकि इसमें भूसे और दाने का बहुत कम नुक्सान होता है। कंबाइन द्वारा फसल की कटाई आसान होती है, और इसमें हँसिया के मुकाबले बहुत ही कम समय लगता है, और धन की भी बचत होती है।
कंबाइन से कटाई करने के लिए फसल में 20 % नमी होना जरूरी है। यदि फसल की कटाई दरांती आदि से की जा रही है तो फसल को अच्छे से सुखा ले, उसके बाद कटाई प्रारम्भ करें। फसल को लम्बे समय तक खेत में एकट्ठा करके न रखें। फसल को शीघ्र ही थ्रेसर आदि से निकलवा लें।
अप्रैल माह में किसानों द्वारा भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई की जाती है। हरी खाद की फसलों में ढेंचा को भी शामिल किया जाता है। ढेंचा की बुवाई का कार्य अप्रैल माह के अंत तक कर देना चाहिए। ढेंचा की खेती से मिट्टी में पोषक तत्वों की उपस्तिथी बनी रहती है।
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अप्रैल के महीने में सरसों, आलू और चना की कटाई हो जाती है। इन सभी फसलों की कटाई के बाद किसान उसमें तुरई, खीरा, टिण्डा, करेला और ककड़ी जैसी सब्जियां भी उगा सकता है। ध्यान रखें बुवाई करते वक्त पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर के बीच में रखें। यदि इन सभी सब्जियों की बुवाई कर दी गई हो, तो सिंचाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। फसल के अधिक उत्पादन के लिए हाइड्रोजाइड और ट्राई आयोडो बेन्जोइक एसिड को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रबी फसलों की कटाई के बाद इस माह में मूली और अदरक की बुवाई की जाती है। मूली की आर आर डब्ल्यू और पूसा चेतकी किस्म इस माह में उगाई जा सकती है। अदरक की बुवाई करने से पहले बीज उपचार कर लें। बीज उपचार के लिए बाविस्टीन नामक दवा का उपयोग करें।
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टमाटर की बुवाई का कार्य अप्रैल माह से पहले ही कर दिया जाता है। अप्रैल माह में टमाटर की फसल को फल छेदक रोगों से बचाने के लिए मैलाथियान रासायनिक दवा को 1 मिली पानी में मिला कर छिड़काव कर दें। लेकिन छिड़काव करने से पहले पके फलों को तोड़ लें। छिड़काव करने के बाद फलों की 3 - 4 दिनों तक तुड़ाई न करें।
वैसे तो भिन्डी के पौधो में ग्रीष्मकालीन से ही फल लगने शुरू हो जाते है। नरम और कच्चे फलों को उपयोग के लिए तोड़ लिया जाता है। भिन्डी में लगने वाले फलों को 3-4 दिन के अंतराल पर तोड़ लेना चाहिए। यदि फलो की देरी से तुड़ाई होती है, तो फल कड़वे और कठोर रेशेदार हो जाते है।
कई बार भिन्डी के पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, और फलों का आकर भी छोटा हो जाता है। भिन्डी की फसल में यह रोग पीला मोजेक विषाणु द्वारा होता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोग ग्रस्त पौधो को उखाड़कर फेक दें या फिर रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कर इस फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
अप्रैल माह में प्याज और लहसुन की खुदाई शुरू कर दी जाती है। प्याज और लहसुन की खुदाई करने से 15 -20 दिन पहले ही सिंचाई का काम बंद कर देना चाहिए। जब पौधा अच्छे से सूख जाए तभी उसकी खुदाई करें। पौधा सूखा है या नहीं इसकी पहचान किसान पौधे के सिरे को तोड़कर कर सकता है।
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शिमला मिर्च की फसल में 8 -10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। फसल में खरपतवार को कम करने के लिए निराई और गुड़ाई का काम भी करते रहना चाहिए। शिमला मिर्च की खेती को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए रोगेर 30 ई सी को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर 10 -15 दिन के अंतराल पर फिर से छिड़काव कर सकते है।
बैंगन की फसल में निरंतर निगरानी रखे, बैंगन की फसल में तना और फल छेदक कीटों की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इसीलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का उपयोग करें।
गलन जैसे रोगों की वजह से कटहल की खेती खराब हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए जिंक कार्बामेट के घोल का छिड़काव करें।