Published on: 03-Jun-2023
आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कुल्थी की खेती करने के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु अच्छी होती है। इसके पौधों का विकास 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बेहतर माना जाता है। इसकी खेती के लिए हर प्रकार की मृदा उचित रहती है।
भारत की दलहनी फसलों में कुल्थी भी एक प्रमुख फसल है। बतादें, कि इसकी झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, खेती कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार में मुख्य रूप से की जाती है। यह रोजगार के अवसर उत्पन्न करने और किसान भाइयों की आमदनी में इजाफा करने का अच्छा माध्यम बन सकता हैा। क्योंकि, कुल्थी की खेती शुष्क क्षेत्रों में भी की जा सकती है। इस वजह से अधिक जल की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुल्थी के बीज का दाल के तौर पर सेवन करने के साथ ही इसे हरे चारे के तौर पर पशुओं को भी खिलाया जाता है। कुल्थी को हॉर्सग्राम के नाम से भी जाना जाता है। कुल्थी की खेती मिश्रित फसल के तौर पर भी की जा सकती है। बतादें, कि इसको मक्का, अरहर, ज्वार और बाजरा के साथ उत्पादित किया जा सकता है। कुल्थी की फसल स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होती है और कई बीमारियों के नियंत्रण में भी कारगर साबित होती है।
कुल्थी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
कुल्थी की खेती के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों का विकास 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बेहतर ढ़ंग से होता है। इसकी खेती के लिए हर तरह की मृदा उपयुक्त मानी जाती है। परंतु, बलुई दोमट मृदा इसके लिए सबसे अच्छी मानी जाती है एवं मिट्टी का पी.एच.मान सामान्य होना चाहिए।
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कुल्थी की बिजाई हेतु उपयुक्त समय
कुल्थी की बिजाई जुलाई के अंत से लेकर अगस्त तक की जा सकती है। यदि चारे के लिए बिजाई कर रहे हैं, तो जून से अगस्त के दौरान बुवाई कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल में इसकी बिजाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। इसे रबी और खरीफ दोनों ही तरह के मौसम में उत्पादित किया जा सकता है। खरीफ सीजन में बिजाई करते वक्त कतार से कतार फासला 40-45 सेंटीमीटर एवं
रबी फसल की बुवाई के दौरान कतार से कतार की फासला 25-30 सेंटीमीटर रखें। वहीं, पौधों के मध्य 5 सेंटीमीटर का फासला रखें। बिजाई से पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किलोग्राम की मात्रा के अनुसार उपचारित कर लें।
कुल्थी की खेती में उर्वरक और सिंचाई की आवश्यकता
कुल्थी की खेती में बुवाई के दौरान 20 किलो नाइट्रोजन एवं 30 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। साथ ही, उर्वरक बीज डालने से पूर्व ही डालें। फसल में फूल आने से पूर्व एवं फली में दाना निर्मित होने से पूर्व सिंचाई अवश्य करें। साथ ही, बिजाई के 20-25 दिन के उपरांत निराई-गुड़ाई करें।
कुल्थी की फसल कटाई के लिए तैयार कब होती है
अगर हम कुल्थी की
फसल की कटाई के बारे में बात करें तो जब फसल की फलियां ऊपर से पीली पड़ने लगें तब आप इसकी कटाई कर सकते हैं। दरअसल, इस अवस्था तक नीचे एवं मध्य भाग की फलियां पूर्णतय पक जाती है। यदि इस दौरान कटाई नहीं की जाती है, तो नीचे की फलियां चटकना शुरू हो जाती हैं। वहीं, दाना खराब हो जाता है, जिससे पैदावार कम होती है। कटाई के उपरांत दाने को 3-4 दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिए। उसके बाद ही इसका भंडारण करें। कीटों से बचाव करने के लिए प्रति क्विंटल 2 किलो सूखी नीम की पत्तियां मिला दें।
किसान कुल्थी की खेती से कितना लाभ उठा सकते हैं
वैज्ञानिक विधि के माध्यम से कुल्थी की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं। इसकी खेती में लागत प्रति हेक्टेयर करीब 17,200 रुपये एवं उत्पादन प्रति हेक्टेयर 6-10 क्विंटल तक हो सकती है। बाजार में किसान फसल को 50 रुपये प्रति किलो के भाव से बेच सकते हैं। इस प्रकार से प्रति हेक्टेयर तकरीबन 22,800 रुपये तक का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। झारखंड के जनजातीय किसान इसकी खेती में काफी रुचि दिखा रहे हैं, जिससे उनके आर्थिक हालातों में काफी बेहतरी आ रही है।