मूंग एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे ग्रीष्म (जायद) और खरीफ दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। यह अल्प अवधि में पकने वाली फसल है, जो किसानों के लिए लाभदायक होती है।
इसका प्रमुख उपयोग दाल के रूप में किया जाता है, जिसमें 24-26% प्रोटीन, 55-60% कार्बोहाइड्रेट और लगभग 1.3% वसा पाई जाती है।
मूंग एक नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली फसल है, जो अपनी जड़ों में उपस्थित ग्रंथियों के माध्यम से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करने में सहायक होती है।
इसके अलावा, फसल की कटाई के बाद पौधे की पत्तियाँ और जड़ें लगभग 1.5 टन जैविक अवशेष प्रति हेक्टेयर भूमि में छोड़ती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
मूंग की खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
मिट्टी में जैविक पदार्थों की प्रचुरता फसल की गुणवत्ता को बढ़ाती है और अधिक उत्पादन सुनिश्चित करती है।
मूंग की विभिन्न विकसित किस्में बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:
इनमें से प्रत्येक किस्म का चयन क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की विशेषताओं के आधार पर किया जाना चाहिए।
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खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, जिससे मिट्टी की संरचना दुरुस्त हो जाए। इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई कर खेत को भुरभुरा बनाया जाता है। अंत में, सुहागा फेर कर खेत को समतल किया जाता है।
चूंकि मूंग एक दलहनी फसल है, इसलिए इसे अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, बेहतर पैदावार के लिए प्रति एकड़ निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है:
इन सभी उर्वरकों को बुवाई से पहले या बुवाई के समय ही मिट्टी में मिला देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूएक्लोरीन 45 EC (500 ग्राम) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
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मूंग की फसल को कई प्रकार के कीट एवं रोग प्रभावित कर सकते हैं। इनका प्रभावी नियंत्रण निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है:
मूंग की वैज्ञानिक खेती से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है और किसानों को कम समय में अधिक लाभ मिल सकता है। यह फसल जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के कारण कृषि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक है।