मूंग की खेती कैसे की जाती है

Published on: 18-Mar-2025
Updated on: 18-Mar-2025
Side-by-side comparison of a lush green mung bean field and freshly harvested mung beans ready for consumption.
फसल खाद्य फसल मूंग

मूंग एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे ग्रीष्म (जायद) और खरीफ दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। यह अल्प अवधि में पकने वाली फसल है, जो किसानों के लिए लाभदायक होती है। 

इसका प्रमुख उपयोग दाल के रूप में किया जाता है, जिसमें 24-26% प्रोटीन, 55-60% कार्बोहाइड्रेट और लगभग 1.3% वसा पाई जाती है।  

मूंग एक नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली फसल है, जो अपनी जड़ों में उपस्थित ग्रंथियों के माध्यम से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करने में सहायक होती है। 

इसके अलावा, फसल की कटाई के बाद पौधे की पत्तियाँ और जड़ें लगभग 1.5 टन जैविक अवशेष प्रति हेक्टेयर भूमि में छोड़ती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।  

भूमि और जलवायु  

मूंग की खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

मिट्टी में जैविक पदार्थों की प्रचुरता फसल की गुणवत्ता को बढ़ाती है और अधिक उत्पादन सुनिश्चित करती है।  

मूंग की प्रमुख किस्में  

मूंग की विभिन्न विकसित किस्में बाजार में उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:  

  • नरेंद्र मूंग-1  
  • पंत मूंग-2, पंत मूंग-4  
  • एच.यू.एम-6  
  • सुनैना  
  • जवाहर मूंग-45 और जवाहर मूंग-70  

इनमें से प्रत्येक किस्म का चयन क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की विशेषताओं के आधार पर किया जाना चाहिए।  

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बीज की मात्रा एवं बुवाई का तरीका  

  • गर्मी के मौसम में: मूंग की बुवाई के लिए 8 किग्रा बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। कतारों की दूरी 20-25 सेमी रखनी चाहिए।  
  • खरीफ मौसम में: बुवाई के लिए अधिक बीज की आवश्यकता होती है। कतारों की उचित दूरी बनाए रखकर बीजों को बोया जाना चाहिए।  
  • बीज उपचार: बीजों को कार्बेन्डाजिम से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए, ताकि बीज जनित रोगों से बचाव हो सके।  

बुवाई का समय  

  • जायद (ग्रीष्म) मौसम में: जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, वहाँ रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद मूंग की बुवाई कर देनी चाहिए।  
  • खरीफ मौसम में: बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के पहले पखवाड़े के बीच करनी चाहिए।  
  • बुवाई को कतारों में करना उचित रहता है, जिससे फसल की देखभाल और निराई-गुड़ाई में आसानी होती है।  

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खेती की तैयारी  

खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, जिससे मिट्टी की संरचना दुरुस्त हो जाए। इसके बाद 2-3 बार कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई कर खेत को भुरभुरा बनाया जाता है। अंत में, सुहागा फेर कर खेत को समतल किया जाता है।  

खाद और उर्वरक प्रबंधन  

चूंकि मूंग एक दलहनी फसल है, इसलिए इसे अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, बेहतर पैदावार के लिए प्रति एकड़ निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है:  

  • नाइट्रोजन: 10 किग्रा  
  • फॉस्फोरस: 20 किग्रा  
  • पोटाश: 8-10 किग्रा  
  • गंधक: गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में 8 किग्रा गंधकयुक्त उर्वरक देना लाभकारी होता है।  

इन सभी उर्वरकों को बुवाई से पहले या बुवाई के समय ही मिट्टी में मिला देना चाहिए।  

सिंचाई और जल निकासी  

  • खरीफ मौसम में: मूंग की फसल को सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, अत्यधिक वर्षा के दौरान खेत में जलभराव न होने देना बेहद आवश्यक है, क्योंकि इससे जड़ सड़न (Root Rot) जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
  • गर्मी (जायद) मौसम में: फसल को खरीफ की तुलना में अधिक पानी की जरूरत होती है। इसलिए, 15-20 दिनों के अंतराल पर 3-4 बार सिंचाई करना आवश्यक होता है।  

खरपतवार नियंत्रण एवं निराई-गुड़ाई  

  • पहली निराई: बुवाई के 15-20 दिन बाद करनी चाहिए।  
  • दूसरी निराई: 40-45 दिनों बाद करनी चाहिए।  

खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूएक्लोरीन 45 EC (500 ग्राम) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

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फसल सुरक्षा एवं रोग नियंत्रण  

मूंग की फसल को कई प्रकार के कीट एवं रोग प्रभावित कर सकते हैं। इनका प्रभावी नियंत्रण निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है:  

1. चूसक कीट (Aphids, Whitefly):  

  •    थायोमेथॉक्साम 25WG (0.3 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।  

2. पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot):  

  •    कार्बेन्डाजिम 50WP (1 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।  

3. जड़ गलन रोग (Root Rot):  

  •    खेत में जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें।  
  •    कापर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।  

उत्पादन एवं संभावित लाभ  

  • मूंग की औसत उपज 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।  
  • यदि उन्नत तकनीकों और अच्छी देखभाल के साथ खेती की जाए, तो उत्पादन 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकता है।  

मूंग की वैज्ञानिक खेती से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है और किसानों को कम समय में अधिक लाभ मिल सकता है। यह फसल जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के कारण कृषि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक है।