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तीखुर क्या है? इसकी खेती, उपयोग और फायदे जानें

Published on: 26-Nov-2024
Updated on: 26-Nov-2024

तीखुर एक औषधीय पौधा हैं इसका उपयोग कई रोगो के उपचार के लिए किया जाता हैं। तीखुर का वानस्पतिक नाम कर्कुमा अंगस्टिफोलिया (Curcuma angustifolia) है।

इसे संस्कृत में ट्वाक्सिरा और हिंदी में तीखुर कहा जाता है। यह हल्दी की तरह दिखने वाला औषधीय पौधा है, जिसे सफेद हल्दी भी कहते हैं।

इसके कंदों से कपूर जैसी खुशबू आती है, जिससे इसे जंगलों में पहचानना आसान होता है।

तीखुर क्या है?

तीखुर एक बिना तने वाला कंदीय पौधा है। इसकी जड़ें मांसल और सिरों पर हल्के भूरे रंग के कंदों से युक्त होती हैं।

इसकी भालाकार पत्तियां 30-40 सेंटीमीटर लंबी और नुकीली होती हैं। इसके पीले फूल गुलाबी सहपत्रों से घिरे होते हैं।

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तीखुर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

तीखुर मुख्य रूप से मध्य भारत, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, और हिमालयी क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसे रेतीली दोमट मिट्टी और 25-35°C तापमान की आवश्यकता होती है।

अक्टूबर-नवंबर में इसकी पत्तियां सूखने लगती हैं, जबकि अप्रैल-मई में इसका पौधा पहचानना मुश्किल हो जाता है।

औषधीय उपयोग

  • तीखुर का कंद पौष्टिक और रक्तशोधक है।
  • इसमें स्टार्च, आयरन, सोडियम, कैल्शियम, विटामिन ए और सी होते हैं।
  • इसका उपयोग मिठाइयों, शर्बत, फलाहारी खाद्य पदार्थों और आयुर्वेदिक दवाओं में होता है।
  • यह कमजोरी, बुखार, अपच, जलन, पीलिया, पथरी और अल्सर जैसी समस्याओं में लाभकारी है।

खेती की तकनीक

मिट्टी की तैयारी

  • मई में खेत की जुताई करें और 10-15 टन गोबर की खाद डालें।

कंदों की रोपाई

  • जून-जुलाई में अंकुरित कंदों को 30 से.मी. की दूरी पर लगाएं।
  • कंदों को जीवित कलियों सहित छोटे टुकड़ों में काटकर नालियों के बीच की मिट्टी में रोपें।

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सिंचाई और देखभाल

  • रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें।
  • मानसून में वर्षा न होने पर पानी दें।
  • बरसात के बाद हर 20-25 दिन में खरपतवार हटाएं।

कटाई और संग्रहण

  • तीखुर की फसल 7-8 महीने में तैयार हो जाती है।
  • फरवरी-मार्च में, जब पत्तियां सूख जाएं, तो कंदों को निकालें।
  • कंदों को धोकर छाया में सुखाएं और सुरक्षित रखें।

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