Published on: 17-Oct-2022
यदि आप भारत के पहाड़ी राज्य वाले क्षेत्रों से संबंध रखते हैं तो सब्जी की दुकानों पर ब्रोकली (broccoli) की सब्जी जरूर देखने को मिलती होगी, वहीं दक्षिण भारत और मध्य भारत वाले राज्यों में ब्रोकली कुछ ही स्थानों पर उगायी जाती है। यह एक पोषक तत्व वाली सब्जी की फसल होती है जिसमें प्रोटीन और कैल्शियम जैसे पोषक तत्वों के अलावा कार्बोहाइड्रेट और आयरन के साथ ही सभी प्रकार के विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्य के प्रति सतर्क युवा जनसंख्या ब्रोकली की बाजारू मांग को काफी तेजी से बढ़ा रही है।
ब्रोकली खाने के फायदे :
ब्रोकली सब्जी में कई प्रकार के फाइटोकेमिकल
(Phytochemical) या
पादपरसायन होते हैं जो कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में मददगार साबित होते हैं और इसके सेवन से प्रोस्टेट कैंसर तथा ब्रेस्ट कैंसर जैसे रोगों के प्रति सुरक्षा हासिल की जा सकती है।
गर्भवती महिलाएं भी शरीर के बेहतर विकास और पेट में पल रहे शिशु की बेहतर उन्नति के लिए ब्रोकली का सेवन करती हैं।
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ब्रोकली उत्पादन के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान :
यह एक व्यावसायिक सब्जी है। अक्टूबर और नवंबर महीने के शुरुआती दिनों में बोई जाने वाली ब्रोकली, शीत क्षेत्र में उगने वाली सब्जी है। ब्रोकली के पौधों की वृद्धि और सही विकास के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है और तापमान लगभग 18 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य रहना चाहिए।
उत्तरी भारत के राज्यों में सर्दियों के समय दिन की अवधि छोटी होती है जबकि रातें लंबी होती है, ऐसी जलवायुवीय परिस्थिति ब्रोकली के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
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ब्रोकोली और उसकी तिरछी काट (Broccoli and its cross section); Source: Wiki; Author: fir0002[/caption]
ब्रोकली उत्पादन के लिए कैसे करें नर्सरी की तैयारी :
ब्रोकली फसल की खेत में मुख्य बुवाई करने से पहले सितंबर महीने के मध्य में नर्सरी तैयार करने की शुरुआत कर देनी चाहिए।
प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 400 से 500 ग्राम उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों का इस्तेमाल कर छोटी क्यारियां बनाते हुए नर्सरी की तैयारी शुरू करनी चाहिए।
क्यारियों की चौड़ाई 1.5 से 2 मीटर होनी चाहिए और बीजों के बीच में कम से कम 10 सेंटीमीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
बेहतर बीज उपचार के लिए नर्सरी क्षेत्र की मिट्टी में केप्टोन जैसी कवकनाशी दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है।
एक बार नर्सरी तैयार हो जाने के बाद पौधों को निकालकर रोपण के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, दो पंक्तियों के बीच में कम से कम 60 सेंटीमीटर की दूरी रखनी अनिवार्य है।
किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि रोपण करने के तुरंत पश्चात सीमित मात्रा में ही पानी का इस्तेमाल करना चाहिए, अधिक पानी देने से पत्तियों के पीले होने का खतरा रहता है और सब्जी उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
कैसे करें पोषक तत्वों का बेहतर प्रबंधन :
जैविक खाद जैसे कि गोबर और
वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल खेत की जुताई के समय करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
इस सब्जी की फसल को बोने से पहले कम से कम दो से तीन बार खेत की जुताई करना आवश्यक है, और इसी दौरान जैविक खाद को खेत में बिखेर कर मिट्टी में मिलने के लिए पर्याप्त समय सीमा भी निर्धारित करनी चाहिए।
मिट्टी की जांच करवाकर
पोषक तत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद सीमित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे रासायनिक खाद का प्रयोग किया जा सकता है।
ब्रोकली सब्जी की क्षेत्रवार उन्नत किस्में :
यदि किसान भाई अगेती फसलों के रूप में ब्रोकली की किस्म का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो
'स्पार्टन अर्ली' और
'प्रीमियम क्लिप' के अलावा
'डी-सिक्को' नाम की किस्म का इस्तेमाल किया जा सकता है।
पछेती किस्मों में पूषा के वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई
'पूषा ब्रोकली' और
'पालम समृद्धि' के अलावा
'ग्रीन सर्फ' जैसी किस्मों का प्रयोग बेहतर उत्पादन प्रदान कर सकता है।
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ब्रोकली की फसल में होने वाले रोग और उनका समाधान :
ब्रोकली की फसल में भी
गोभी के जैसे ही आर्द्रगलन और काला विगलन जैसे रोग होने की संभावना रहती है, इस प्रकार के रोग पौधे की नर्सरी तैयार करते समय तापमान में बढ़ोतरी होने की वजह से होते हैं।
इन रोगों की वजह से पौधे की शाखाएं काले रंग की हो जाती है और पत्तियां मुड़ कर टूट जाती है, इनसे बचने के लिए बेहतर
बीज उपचार और रासायनिक उर्वरक जैसे कार्बेंडाजिम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
ब्रोकली की सब्जी में लगने वाले प्रमुख कीट और उनका समाधान :
कई दूसरे प्रकार की फल और सब्जियों की तरह ही ब्रोकली में भी कई प्रकार के कीट लगने की संभावनाएं होती है, जैसे कि :-
यह कीट छोटी पौध के तने को खाकर नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की पूरी कॉलोनी के तेज आक्रमण को छोटी पौध झेल नहीं पाती, जिसकी वजह से तना टूट कर नीचे गिर जाता है और पौधे की ग्रोथ रुक जाती है।
इस कीट के बेहतर प्रबंधन के लिए मेटासिसटॉक्स (Metasistocks) नामक रसायनिक उर्वरक का छिड़काव बेहतर साबित होता है।
हरे रंग का दिखाई देने वाला यह कीट पौधे की पत्तियों में छुप जाने के बाद बाहर से आसानी से पकड़ में नहीं आता है। यह पतियों की निचली सतह में छुपे रहते हैं और पत्तियों के कोमल हिस्से के रस को अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
इस रोग के इलाज के लिए हाल ही में पूषा के वैज्ञानिकों ने 'रोगोर' नामक एक दवा बनाई है, जिसका सीमित मात्रा में छिड़काव कर इस के निदान पाया जा सकता है।
इसके अलावा
डायमंडबैक मॉथ कीट और और कुछ
फफूंद जनित रोग जैसे की '
पत्तीयों में होने वाला धब्बा रोग ' फसल की उत्पादकता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सही वैज्ञानिक तकनीक और रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर इन लोगों से आसानी से निजात पाया जा सकता है।
आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को
Merikheti.com की तरफ से उपलब्ध करवाई गई
'ब्रोकली की उत्पादन तकनीक' की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी पहाड़ी क्षेत्रों वाले राज्यों में उपलब्ध जलवायुवीय परिस्थितियों का फायदा उठाकर ब्रोकली का बेहतर उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा बनाएंगे।