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पशुपालन

राठी गाय: एक अमूल्य भारतीय नस्ल

राठी गाय: एक अमूल्य भारतीय नस्ल

भारतीय देसी गायों में राठी नस्ल एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक अत्यंत सुंदर और उच्च दूध उत्पादन करने वाली नस्ल है। दुर्भाग्यवश, विदेशी गायों के बढ़ते प्रभाव के चलते हम अपनी देसी नस्लों को भूलते जा रहे हैं। राठी जैसी कई अन्य भारतीय नस्लें भी धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर हैं। हजारों वर्षों में प्राकृतिक रूप से विकसित हुई इन गायों में अनूठे गुण पाए जाते हैं। यह किसी प्रयोगशाला में निर्मित नस्ल नहीं है, बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल उपहार है। भारत की मिट्टी में जन्मी और पली-बढ़ी ये नस्लें हमारे लिए अमूल्य धरोहर हैं।राठी गायों...
विदेशी बकरियों की बेहतरीन नस्लें: दूध उत्पादन और ऊन के लिए सबसे लाभकारी नस्लें

विदेशी बकरियों की बेहतरीन नस्लें: दूध उत्पादन और ऊन के लिए सबसे लाभकारी नस्लें

देश में बकरी पालन धीरे-धीरे एक लाभकारी व्यवसाय बनता जा रहा है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।जबकि कई दशकों से गांवों में बकरी पालन किया जाता रहा है, आज यह व्यवसाय आधुनिक कृषि क्षेत्र में तेजी से विकसित हो रहा है।भारत में पाई जाने वाली अधिकांश बकरियां मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं, लेकिन विदेशी बकरियों की नस्लों को भी अब भारत में आयात किया जाता है।इन नस्लों का पालन किया जाता है, ताकि भारतीय बकरियों की दूध उत्पादन क्षमता में सुधार किया जा सके और उच्च गुणवत्ता वाली बकरियों का उत्पादन हो सके।इस लेख में...
हल्लीकर गाय की विशेषताएँ | दूध उत्पादन, नस्ल की पहचान और पालन

हल्लीकर गाय की विशेषताएँ | दूध उत्पादन, नस्ल की पहचान और पालन

हल्लीकर, एक स्वदेशी नस्ल की गाय है जो पूर्ववर्ती विजयनगर रियासत, कर्नाटक से उत्पन्न हुई है। यह नस्ल मुख्य रूप से कर्नाटक के मैसूर, मांड्या, हसन, बैंगलोर, कोलार, चित्रदुर्ग और तुमकुर जिलों में पाई जाती है।इन्हें मसलन मैसूर नस्ल भी कहा जाता है। इसे दक्षिण भारत की सबसे बेहतरीन खींचने वाली नस्लों में से एक माना जाता है।दक्षिण भारत में पाई जाने वाली अधिकांश नस्लें हल्लीकर से उत्पन्न हुई हैं, जिसमें अमृत महल नस्ल भी शामिल है।हल्लीकर गाय की विशेषताएँयह नस्ल अपनी खींचने की क्षमता और दौड़ने की क्षमता के लिए जानी जाती है।इस नस्ल का रंग हलके...
सर्दियों में पशुओं का ध्यान रखने के नुस्खे और उपाय

सर्दियों में पशुओं का ध्यान रखने के नुस्खे और उपाय

सर्दियों में पशुओं को ठंड से बचाएं क्योंकि कम तापमान उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है और दूध उत्पादन को कम कर सकता है।इस बदलते मौसम में कई बीमारियां पशुओं में फैल सकती हैं। ऐसे में पशुओं के स्वास्थ्य पर ध्यान देना और उन्हें सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है।इस लेख में आपको उन उपायों की जानकारी मिलेगी, जिनसे आप अपने पशुओं का ध्यान रख सकते हैं और अपने डेयरी व्यवसाय को अधिक लाभदायक बना सकते हैं।ये भी पढ़ें: सर्दियों में बकरियों की देखभाल के 10 मास्टर टिप्ससर्दियों में पशुओं का ध्यान कैसे रखें?ठंड के मौसम में कम तापमान...
सर्दियों में बकरियों की देखभाल के 10 मास्टर टिप्स | ठंड में बकरियां स्वस्थ रखें

सर्दियों में बकरियों की देखभाल के 10 मास्टर टिप्स | ठंड में बकरियां स्वस्थ रखें

किसान भाइयों सर्दियों ने दस्तक दे दी है। अब ऐसे में फसलों के साथ साथ पशुपालकों को अपने मवेशियों की भी बेहद देखभाल रखने की जरूरत है।इन 10 सुझावों का पालन करना उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता को बरकरार रखने में सहायक सिद्ध होगा।सही पोषण, गर्म आवास और नियमित निगरानी से बकरियां शर्दियों का सामना कर सकती हैं। साथ ही, इससे पशुपालकों को आर्थिक लाभ भी सुनिश्चित होता है।पशुपालकों को तापमान में गिरावट से बढ़ती ठंड के चलते बकरियों के स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।ठंड के प्रभाव से बचाव और उत्तम देखभाल के...
उत्तराखंड की बद्री गाय: जानें इस देसी नस्ल की अनोखी विशेषताएं और दूध उत्पादन क्षमता

उत्तराखंड की बद्री गाय: जानें इस देसी नस्ल की अनोखी विशेषताएं और दूध उत्पादन क्षमता

बद्री नस्ल पहाड़ी क्षेत्र में पाली जाने वाली गाय की नस्ल हैं। इस नस्ल को दोहरे उद्देश्य वाली ‘देसी’ मवेशी नस्ल में गिना जाता हैं। बद्री नस्ल की गाय को दूध देने और भार ढोने के उद्देश्य से पाला जाता है।छोटी बद्री गाय को पहाड़ी क्षेत्र में पाले जाने के कारण लाल पहाड़ी गाय और पहाड़ी गाय के नाम से भी जाना जाता हैं। ये नस्ल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं।ये एक ठण्ड और रोग प्रतिरोधी नस्ल हैं जो कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जिलों के पहाड़ी क्षेत्रों में भी आसानी से रह रही...
बछौर गाय: बिहार की दुर्लभ नस्ल, जो खेती और दूध उत्पादन में बेमिसाल है

बछौर गाय: बिहार की दुर्लभ नस्ल, जो खेती और दूध उत्पादन में बेमिसाल है

बछौर नस्ल की गाय बिहार राज्य के सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों को शामिल करने वाले बछौर परगना क्षेत्र में पाई जाती है।यह गाय अपनी भारी काम करने की क्षमता और खराब चारे पर भी जीवित रहने की विशेषता के लिए जानी जाती है। मधुबनी, दरभंगा और सीतामढ़ी जिले इस नस्ल का मूल क्षेत्र हैं।लेकिन, प्रजनन क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण, अब बछौर नस्ल की गाय नेपाल सीमा के पास वाले क्षेत्रों में केंद्रित हो गई है, जिसमें सीतामढ़ी के बछौर और कोईलपुर उपखंड भी शामिल हैं।इस नस्ल की विशेषताएँ इस लेख में आप विस्तार से जानेगे।बछौर गाय...
भारत में मुर्गियों की नस्लें: कड़कनाथ, ग्रामप्रिया और अन्य नस्लों की विशेषताएं और उपयोग

भारत में मुर्गियों की नस्लें: कड़कनाथ, ग्रामप्रिया और अन्य नस्लों की विशेषताएं और उपयोग

कुक्कुट पालन मौर्य साम्राज्य का एक बड़ा उद्योग था। 19वीं शताब्दी से ही इसे वाणिज्यिक उद्योग माना जाता था। विभिन्न प्रकार की मुर्गियों की नस्लों का पालन करके कुक्कुट के अंडे और चिकन बनाए जाते हैं।मुर्गी पालन भी किसानों को फसलों के विविधिकरण और मिश्रित खेती में फायदेमंद है। यदि मुर्गियों में बीमारी नहीं आती हैं और मुर्गियों का अच्छा मूल्य मिलता है तो यह व्यवसाय परिवार के पालन-पोषण में काफी मदद कर सकता है।अगर आप भी मुर्गी पालन करने के बारे में सोच रहे हैं और मुर्गियों की नस्लों के बारे में पता करना चाहते हैं तो आप...