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गर्मियों के मौसम में करें चौलाई की खेती, होगा बंपर मुनाफा

Published on: 02-May-2023

चौलाई पत्तियों वाली सब्जी की फसल है, जिसे गर्मियों और बरसात के मौसम में उगाया जाता है। इसके पौधों को विकास के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं। वैसे चौलाई को ज्यादातर गर्मियों में ही उगाया जाता है, इस मौसम में इस फसल में अच्छा खासा उत्पादन होता है, जिससे किसानों को मोटी कमाई होती है। चौलाई प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी, आयरन,कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर होती है, इसलिए इसे कई मिनरल्स गुणों का खजाना कहा जाता है। इसके बीजों को राजगिरा कहा जाता है, जिसका आटा बनता है। यह पत्तों वाली सब्जी होती है। जिसकी शहरों में अच्छी खासी डिमांड रहती है, इसलिए आजकल इसे शहरों के आसपास जमकर उगाया जा रहा है। चौलाई पूरे विश्व में पाया जाने वाला साग है। अभी तक इसकी 60 से ज्यादा प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। इसका पौधा 80 सेंटीमीटर से लेकर 200 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। इनके पत्ते एकान्तर, भालाकार या आयताकार होती हैं, जिनकी लंबाई 3 से 9 सेमी तथा चौड़ाई 2 से 6 सेमी होती है। इसमें पीले, हरे, लाल और बैगनी रंग के फूल आते हैं जो गुच्छों में लगे होते हैं। यह अर्ध-शुष्क वातावरण में उगाया जाने वाला साग है।

चौलाई की किस्में

अभी तक चौलाई की 60 से ज्यादा किस्में पहचानी जा चुकी हैं। लेकिन भारत में अभी तक कुछ किस्मों की खेती ही की जाती है। जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं-

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चौलाई की खेती कैसे करें
कपिलासा: चौलाई की यह एक उन्नत किस्म है जो बुवाई के मात्र 95 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 165 सेंटीमीटर होती है। एक हेक्टेयर में बुवाई करने पर 13 क्विंटल साग का उत्पादन हो सकता है। यह किस्म ज्यादातर उड़ीसा, तमिलनाडू, कर्नाटक आदि में उगाई जाती है। गुजरात अमरेंथ 1: यह ऐसी किस्म है जो 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म पर कीटों का प्रभाव नहीं होता। प्रति हेक्टेयर इस किस्म की औसत पैदावार 19.50 क्विंटल है। गुजरात अमरेंथ 2 : यह किस्म मैदानी इलाकों के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। यह किस्म बुवाई के 90 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कम समय में तैयार होने से और पैदावार अधिक होने से किसान इस किस्म को बोना पसंद करते हैं। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 23 क्विंटल है। सुवर्णा: चौलाई की यह किस्म ज्यादातर उत्तर भारत में उगाई जाती है। यह बुवाई के मात्र 80 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन एक हेक्टेयर खेत में 16 क्विंटल तक हो सकता है। दुर्गा : यह चौलाई की ऐसी किस्म है जिस पर कीटों का असर नहीं होता। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 170 सेंटीमीटर होती है और यह बुवाई के 125 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पूसा कीर्ति : चौलाई इस किस्म की पत्तियां बड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की लंबाई 6 से 8 सेमी और चौड़ाई 4 से 6 सेमी होती है। इसका तना हरा होता है। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों में की जाती है। पूसा किरण : चौलाई की इस किस्म की खेती बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी पत्तियां मुलायम होती हैं तथा इनका आकार बड़ा होता है।

चौलाई की खेती के लिए जलवायु और तापमान

चौलाई की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में ही की जा सकती है। सर्दियों का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और इसका पेड़ 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को आसानी से झेल सकता है। चौलाई की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान नहीं होना चाहिए।

चौलाई की खेती के लिए इस तरह की मिट्टी होती है उपयुक्त

चौलाई की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ उचित जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी जहां पानी का जमाव होता हो, वहां पर चौलाई की खेती नहीं की जा सकती। जलभराव वाली मिट्टी में चौलाई का विकास अच्छे से नहीं होता है। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

चौलाई की बुवाई

चौलाई की पहली बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकी दूसरी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। चौलाई की बुवाई आप छिड़काव और रोपाई दोनों विधियों द्वारा कर सकते हैं। बुवाई के पहले बीजों को गोमूत्र से उपचारित कर लें। इससे फसल रोगों से सुरक्षित रहेगी। चौलाई के बीज बहुत छोटे दिखाई देते हैं, इसलिए इनकी बुआई रेतीली मिट्टी में मिलाकर करें।

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चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई पक्तियों में करना चाहिए। कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतार के बीच आधा फीट की दूरी अवश्य रखें। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। ड्रिल माध्यम से बीजों की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर जमीन के भीतर करना चाहिए।

चौलाई की सिंचाई

चौलाई की फसल में बुवाई के 3 सप्ताह बाद पहली बार सिंचाई करनी होती है। इसके बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहें। अगर वातावरण में तेज गर्मी पड़ रही हो तो हर सप्ताह सिंचाई करें। गर्मियों में कम सिंचाई करने पर इसके पत्ते पीले पड़ जाएंगे और बाजार में इसके उचित दाम नहीं मिलेंगे। अगर खेत में हमेशा नमी बनी रहती है तो चौलाई की फसल में अच्छी पैदावार देखने को मिलती है।

खरपतवार नियंत्रण

चौलाई की फसल में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी होता है। इसकी अच्छी उपज के लिए खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। खरपतवार में पाए जाने वाले कीट इस फसल की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पैदावार प्रभावित होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। निराई गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी जरूर चढ़ा दें।

चौलाई की कटाई

चौलाई की कटाई मौसम के हिसाब से की जाती है। अगर आप चौलाई की पत्तियों को बाजार में बेंचना चाहते हैं तो गर्मियों के मौसम में इसकी कटाई बुवाई के 30 दिनों के बाद कर लें। इसके बाद हर 15 दिन में कटाई करते रहें। एक हेक्टेयर जमीन पर इसका उत्पादन 100 क्विंटल के आस पास होता है। इसके साथ ही अगर आप फसल से दानों की पैदावार चाहते हैं तो जब इसकी बालियां पीली पड़ने लगे तब कटाई कर लें। चौलाई की फसल आमतौर पर 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इस हिसाब से किसान भाई इसकी फसल उगाकर कम समय में अच्छा खासा लाभ कमा सकते हैं।

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